आपकी तो जितनी भी तारीफ करो कम है कोमल जी। हमेशा की तरह इस बार ही एक बहुत ही बढ़िया और उत्कृष्ट अपडेट. सच में आपके लेखन की तारीफ में शब्द ही नहीं सूझते. ननद भाभी के बीच की केमिस्ट्री भी लाजवाब है. ननद पे प्रति इतना स्नेह, उसकी प्रति इतनी चिंता ये सब बहुत ही अद्भुत है. और भोजई की चतुराई तो जैसे सोने पे सुहागा। कैसे माँ के आदेश से बंधे ननदोई का काबू मुझे करना है वो अच्छे से जानती है. अपना सच कहा कि पति पत्नी में रिश्ते में पति कभी गलत नहीं होता लेकिन उस पति को जवानी की एक झलक दिखला कैसे बेवकूफ़ बनाया जा सकता है वो अच्छे से जानती है।. मर्द चाहे कितना भी ताक़तवर क्यों न हो..औरत के आगे हथियार डाल ही देते हैं.
मजा मेरे मरद ने लिया. हचक हचक के नन्दोई की मेहरारू को लिटाय के, निहुराय के, कुतिया बनाय के पेला, फाड़ी उसकी बुर, उसे गाभिन किया, लेकिन सेने का काम,... ननदोई के जिम्मे ।चोद के, आपन बीज डाल के, गाभिन कर के , ….जब पेट फूलने लगेगा तो अपने बहनोई के हवाले….: सचमुच बहुत खूब. पड कर ही मजा आ गया. एक नपुंसक मर्द अपनी मर्दंगी पे इतरा रहा होगा बिना ये जाने के उसकी बीवी के पेट में पल रहा बच्चा उसका नहीं बल्कि बल्की उसके साले का है और इस सब काम को अंजाम देने वाला और कोई नहीं उसकी अपनी सलहज है जिसे वो अपना परम मित्र और उसकी हितेषी मानता है.
कोटि कोटि प्रणाम आपको इस अपडेट के लिए
आप ऐसी सिद्धहस्त लेखिका के मुंह से ऐसे शब्द सुनके मैं जो भी आभार करूँ, धन्यवाद दूँ, कम होगा। कई बार आपके कमेंट्स का जवाब मैं जानबूझ के विलम्ब से देती हूँ, क्योंकि ऐसे शब्दों को जितनी बार पढूं, थोड़ा आत्मविश्वास बढ़ता हैं, दूसरे अच्छा भी लगता है की आप ऐसी कुशल लेखिका न सिर्फ मेरे थ्रेड पे आयीं बल्कि उन्होंने अपना मत भी रखा।
यह और उसके पहले केएक दो भाग और आने वाले भाग, भाग ९९ और भाग १०० इस समस्या को एक नयी दृष्टि देते हैं, इसमें नारी की वेदना भी है , और जो आपने कहा नपुंसकता वाली बात, तो दोष तो हमेशा नारी को ही दिया जाता है, ज़मीन को ही लोग ऊसर बंजर बोलते हैं, हल और बीज की कमी कौन निकालता है
और नपुंसकता का एक अलग आयाम भी नन्दोई के पक्ष से इस कहानी में आया है। ननदोई के जबरदस्त सेक्स सीन्स हैं, सलहज और सास से भी और हमारा कानून भी नपुंसकता और इंफर्टिलटी में अंतर् करता है। नपुंसकता ( साल भर तक अगर विवाह में देह संबंध न स्थापित हों तलाक का कारण है लेकिन इनफर्टिलिटी नहीं। पर वन्ध्यापन की सामाजिक प्रतारणा, और व्यक्तिगत कष्ट तो हैं ही।
कोशिश करुँगी, इसी हफ्ते अगली पोस्ट दे दूँ और फिर आपके कमेंट की राह तकूँगी।
एक बार फिर से आभार, नमन