साजन-सजनी की मनभावन होली...भाग २२
रात बाकी
और अब न उनसे रहा गया, न मुझसे क्या मस्त गाँड़ मरौव्वल हुयी मेरी, लेकिन मैं भी , दस पांच धक्के वो मारते, तो एक दो मैं भी,... कभी लंड पकड़ के गाँड़ में मेरा साजन गोल गोल घुमाता था, कभी हौले से पूरा मूसल बाहर निकाल के पूरी ताकत से वो धक्का मारते की बगल के कमरे में मेरी ननद को तो सुनाई ही पड़ता , सासू जी के कमरे में ,सासू जी और छुटकी बहिनिया को भी,...
एक बार तो अभी मेरी छुटकी बहिनिया की गाँड़ में वो झड़े ही थे , तो सेकेण्ड राउंड में टाइम तो लगना ही था, पूरे आधे घंटे,.... नान स्टॉप तूफ़ान मेल मात और जब झड़ना शुरू हुए तो बस, जैसे गर्मी के बाद सावन भादो में बादल बरसे, सूखी धरती की तरह मैं रोप रही थी , और गिरना ख़तम होने की बाद भी बड़ी देर तक मैं वैसे निहुरी रही और वो मेरे अंदर धंसे, ... और उसी तरह मुझे उठा के पलंग पर,
बड़ी देर तक बिना बोले हम दोनों एक दूसरे से चिपके रहे, लेकिन फिर शुरुआत भी मैंने की , बस छोटे छोटे चुम्मे, उनके चेहरे पर , ईयर लोब्स पर, ... उँगलियों से उनकी छाती सहलाती रही,
वो बस ललचायी नज़रों से मुझे देखते रहे,
बाहर रात झर रही थी, चन्द्रमा पश्चिम की ओर जल्दी जल्दी डग भर रहा था, ...
कुछ देर तक तो मेरी लम्बी गोरी उँगलियाँ, उनके मेल टिट्स की परिक्रमा करती रहीं, मैं समझ रही थी, उनके मन में क्या चल रहा होगा। वो सोच रहे थे की अब मेरे लम्बे नेल्स उनके मेल टिट्स को स्क्रैच करेंगे, पिंच करेंगे, उनके टिट्स उतने ही सेंसिटिव थे जित्ते मेरे निप्स। लेकिन कई बार तड़पाने का मज़ा ही कुछ और है, मैंने जस्ट ऊँगली से उनके टिट्स को ब्रश किया फिर उँगलियाँ नीचे की ओर बढ़ गयीं,...
और दूसरा मेरा फेवरिट अड्डा उनकी देह पर , ( उनकी असल में थोड़ी थी , अब तो वो मेरी हो गयी थी, इसलिए तो मेरी मर्जी मैं चाहे जिसपर उसे चढ़ाऊँ, उनकी माँ बहन ) उनकी नेवल,...और वहीँ मैं ठहर गयी. उनके उस लम्बे मोटू के अलावा कम से कम १५ इरोजेनिक प्वाइंट्स उनकी देह पर मैं जानती थीं, बस जहाँ थोड़ी सी शरारत, और झंडा उनका फहराने लगता था.
नेवल भी,... तो कुछ देर नाभि परिक्रमा के बाद मेरी एक ऊँगली हलके से सरक कर उस कूप में ( असल में मेरे बूब्स और हिप्स के साथ मेरे नेवल उन्हें भी पागल करते थे तो मेरे खूब टाइट डीप लो कट ब्लाउज तो मेरे बूब्स ख़तम होने के पहले ही ख़तम हो जाते थे, और साड़ी मैं एकदम कूल्हों पर बांधती थी, नाप के नाभि से कम से कम ८ अंगुल नीचे, तो गोरे पान से चिकने पेट पर, मेरे नेवल हरदम बवाल मचाते रहते थे ).
दूसरा हाथ बहुत हलके हलके उनकी जांघ पर सरक रहा था, मेरी अनावृत गोरी गोरी गोलाइयाँ, उनकी देह को कभी सहला देतीं तो कभी बस एक अंगुल की दूरी पे ,
मेरे होंठ उनके कानों के लोब्स पर,
हम दोनों में यह अलिखित संधि थी, दूसरे राउंड की शुरुआत मैं करुँगी,...
क्या होना है वो भी मैं ही , हाँ एक बार कुश्ती शुरू हो गयी तो उसके बाद कोई नियम कानून नहीं ,
और मेरी मर्जी भी पहले दिन से ही यही थी की अब इस जिंदगी में सिर्फ इस लड़के की मर्जी चले.
वो तड़प रहे थे, झंडा एकदम खड़ा,... मोटा बदमाश सुपाड़ा, जिसने अभी कुछ दूर पहले मेरी छोटी बहिनिया की गांड फाड़ के रख दी थी,... एकदम खुला,... मेरी जीभ का बहुत मन कर रहा था लेकिन उसे डांट के मैंने मना किया, आज मेरी प्लानिंग कुछ और थी, और,... थोड़ी देर में ही मेरी दोनों हाथों की उंगलिया ,... एक तो उनकी नेवेल से दक्षिण की यात्रा कर के , और दूसरी जाँघों से ऊपर सरक के, उस कुतबमीनार के बेस पर बस सुरसुरी कभी अंगूठे और तर्जनी से पकड़ के हलके हलके दबा देती तो कभी सरकते हुए उस मोटी लम्बी मीनार के ऊपरी हिस्से तक,...
नहीं नहीं मैं मुठिया नहीं रही थी, उसे दबा भी नहीं रही थी , बस हलके हलके , जैसे कोई किसी पंख से उसे सहलाये, हाँ बदमाश उँगलियाँ मेरे बस में तो हरदम रहती नहीं, तो उस चर्मदण्ड के पीछे की ओर, मेरा कोई नाख़ून हलके से स्क्रैच भी कर दे रहा था, और वो चीख उठते,
वो कौन सा मेरी चीखों का ख्याल करते थे जो मैं करूँ, और अब मेरी जीभ भी कभी उनके कानों में गुनगुनाती, कभी उनके चिकने गोरे गालों को बस सहला देती ,...
बेचारे उनकी हालत बहुत ख़राब थी,...
पर मेरी हालत कम खराब थी,
पिछवाड़े तो आज खूब मजा आया, पहले नन्दोई जी ने हचक के मारी, और फिर उस नन्दोई के साले ने,...
लेकिन मेरी रामपियारी अभी भी आठ आठ आंसू रो रही थी,
आज किसी ने उसे हाथ भी नहीं लगाया था, और तो उसे बस वो मोटा मूसल चाहिए था, ... इसलिए मैंने सोचा बहुत हो गया चोर सिपाही का खेल , और मैं सीधे उनके ऊपर चढ़ गयी,...
वो कहते हैं न आज कल आत्मनिर्भर,... तो बस वही,... लेकिन इस लड़के को तड़पाने का मजा अलग है, थोड़ी देर तक तो मेरी गुलाबो उसके तड़पते बौराए पगलाए मोटे सुपाडे पर रगड़ती रही,... फिर जैसे कोई दया कर के जरा सा दरवाजा खोल दे दोनों फांके खुलीं , थोड़ा सा सुपाड़ा घुसा और दरवाजा फिर बंद,...
एक दूसरे तो तडपा कर ... छेड़ कर....
और इस मामले में तो हक भी बनता है...