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भाग २३
नई सुबह

उसी समय ननदोई जी ने दरवाजा खटखटाया,... नहीं नहीं बिना बिना झड़े नहीं गए , मैं तो बिदा कर भी देती उनको खड़े लंड के साथ पर उनकी छोटी स्साली , उससे नहीं रहा गया,...
और बाहर नन्दोई जी खटखट कर रहे थे और वो मेरी बहन पर चढ़े हुए थे,... जब मैंने दरवाजा खोला उस समय भी उनका खूंटा अंदर धंसा अपनी साली के निचले मुंह को रबड़ी मलाई खिला रहा था,
थोड़ी देर में वो और नन्दोई जी निकल गए , मैं छुटकी को दुबका के सो गयी , घंटे आध घंटे की जो नींद मिल जाए,...
आधी नींद में मैं सोच रही थी पहले दिन मेरी सास, जेठानी और नंदों ने मिल के,... क्या क्या नहीं ,...
और इन्ही ननद ने साफ़ साफ़ बोला था की भौजी ये तो ट्रेलर है, असली तो उस दिन होगा जब आप मायके से लौट आइयेगा, जिस दिन गाँव में सिर्फ औरतें होती है, पर उस दिन भी,...

खटखट ननद जी ने की और बाहर सिर्फ मेरी सास नहीं , चचिया सास बुआ सास , और गाँव की और सास लगने वाली ,
कुछ जेठानिया भी ( मेरी सगी जेठानी तो जेठ जी के पास चली गयीं थी मेरी छोटी ननद के साथ, वहीँ उसका एडमिशन कराना था,... ) और होली की मस्ती चालू हो गयी ,
(और होली वाले दिन तो कुछ नहीं था आज के आगे,)
होली वाले दिन की तरह,
रस्म है की नयी बहू सबसे पहले सास को रंग लगाती है,

फिर सास

और वो, गाँव की रिश्ते की सब सास. और जेठानियाँ नयी बहू की हेल्प करती हैं तो ननदें तो कभी किसी जनम में भौजी का साथ नहीं देतीं , दुनिया के किसी कोने में नहीं तो वो हाथ धोकर, भौजाई के पीछे, और सास भी बहू की माँ को ( आखिर उनकी समधन लगती हैं तो गरियाने का रिश्ता है ही ) न सिर्फ एक से एक गन्दी गालियां देती हैं, बल्कि बहू से भी दिलवाती हैं उसकी माँ को, ( या सिद्ध करने के लिए की वह अब अपने ससुराल की हो गयी है, मायके की नहीं ),
सासू जी के पैरों में गुलाल लगाने के साथ मैंने इनकी मातृभूमि का दर्शन करने के लिए सासू की साड़ी कमर तक उठा दी, और सासू जी ने भी कोई रेजिस्ट नहीं किया,...

पर मेरी ननद ने और एक चचिया सास ने मिल के मेरा मुंह सीधे ' वहीं' इनकी 'मातृभूमि',... पर और एक जेठानी ने चिढ़ाया भी,
" यहीं से देवर जी निकले थे जो रोज कबड्डी खेलते हैं तोहरे साथ, तनी आज इसको चख लो, "
सासू जी ने भी अपनी जाँघे खुद फैला दी और आज उन्होंने अपनी झांटे अच्छी तरह साफ़ कर ली थीं ( बाद में मुझे पता चला की ये साफ़ सफाई मेरी छुटकी बहिनिया के लिए की गयी थी ), चूत चटोरी तो मैं मायके से थी, और सास की चूत चाटने में , जिस चूत ने मोटे मोटे लंड घोंट के, इनका बीज रोपा गाभिन हुयी और नौ महीने बाद बियाइं,...

आज होली के दिन,... थोड़ी देर में ही सास जी के पैर डगमगाने लगे, लेकिन पकड़ उनकी जाँघों की एकदम सँड़सी की तरह, ताकत में अपने बेटे से उन्नीस नहीं थीं वो , मैं लाख कोशिश कर के भी उनकी जाँघों के बीच से अपना सर नहीं छुड़ा पा रही थी, पता नहीं मायके से ससुराल तक कितने मर्दों को अपनी जाँघों के बीच दबोचा होगा,...
और मौके का फायदा उनकी बेटी, मेरी ननद ने उठाया, पहले तो मेरी साड़ी आराम से धीमे धीमे खोली, फिर पेटीकोट का नाड़ा न सिर्फ खोला बल्कि मेरे पेटीकोट से निकाल के दूर फेंक दिया और अब मैं कोशिश कर के भी पेटीकोट नहीं पहन सकती थी, ... एक पड़ोस की ननद ने ब्लाउज के दो टुकड़े कर दिए ,...
पर मैं पूरी ताकत से इन सबसे बेखबर अपनी सासू माता का भोंसड़ा चूस रही थी,

और अपने से वादा कर रही थी, हफ्ते भर के अंदर इस छिनार के इसी भोसड़े के अंदर अपने सामने इसके बेटे का लंड न घुसवाया, फिर इनके समधियाने के, अपने मायके के सब मरदों का हरवाह, घोसी, धोबी, मोची, कोई नहीं बचेगा जो इस पोखर में डुबकी न लगाएगा,...
नई सुबह

उसी समय ननदोई जी ने दरवाजा खटखटाया,... नहीं नहीं बिना बिना झड़े नहीं गए , मैं तो बिदा कर भी देती उनको खड़े लंड के साथ पर उनकी छोटी स्साली , उससे नहीं रहा गया,...
और बाहर नन्दोई जी खटखट कर रहे थे और वो मेरी बहन पर चढ़े हुए थे,... जब मैंने दरवाजा खोला उस समय भी उनका खूंटा अंदर धंसा अपनी साली के निचले मुंह को रबड़ी मलाई खिला रहा था,
थोड़ी देर में वो और नन्दोई जी निकल गए , मैं छुटकी को दुबका के सो गयी , घंटे आध घंटे की जो नींद मिल जाए,...
आधी नींद में मैं सोच रही थी पहले दिन मेरी सास, जेठानी और नंदों ने मिल के,... क्या क्या नहीं ,...
और इन्ही ननद ने साफ़ साफ़ बोला था की भौजी ये तो ट्रेलर है, असली तो उस दिन होगा जब आप मायके से लौट आइयेगा, जिस दिन गाँव में सिर्फ औरतें होती है, पर उस दिन भी,...

खटखट ननद जी ने की और बाहर सिर्फ मेरी सास नहीं , चचिया सास बुआ सास , और गाँव की और सास लगने वाली ,
कुछ जेठानिया भी ( मेरी सगी जेठानी तो जेठ जी के पास चली गयीं थी मेरी छोटी ननद के साथ, वहीँ उसका एडमिशन कराना था,... ) और होली की मस्ती चालू हो गयी ,
(और होली वाले दिन तो कुछ नहीं था आज के आगे,)
होली वाले दिन की तरह,
रस्म है की नयी बहू सबसे पहले सास को रंग लगाती है,

फिर सास

और वो, गाँव की रिश्ते की सब सास. और जेठानियाँ नयी बहू की हेल्प करती हैं तो ननदें तो कभी किसी जनम में भौजी का साथ नहीं देतीं , दुनिया के किसी कोने में नहीं तो वो हाथ धोकर, भौजाई के पीछे, और सास भी बहू की माँ को ( आखिर उनकी समधन लगती हैं तो गरियाने का रिश्ता है ही ) न सिर्फ एक से एक गन्दी गालियां देती हैं, बल्कि बहू से भी दिलवाती हैं उसकी माँ को, ( या सिद्ध करने के लिए की वह अब अपने ससुराल की हो गयी है, मायके की नहीं ),
सासू जी के पैरों में गुलाल लगाने के साथ मैंने इनकी मातृभूमि का दर्शन करने के लिए सासू की साड़ी कमर तक उठा दी, और सासू जी ने भी कोई रेजिस्ट नहीं किया,...

पर मेरी ननद ने और एक चचिया सास ने मिल के मेरा मुंह सीधे ' वहीं' इनकी 'मातृभूमि',... पर और एक जेठानी ने चिढ़ाया भी,
" यहीं से देवर जी निकले थे जो रोज कबड्डी खेलते हैं तोहरे साथ, तनी आज इसको चख लो, "
सासू जी ने भी अपनी जाँघे खुद फैला दी और आज उन्होंने अपनी झांटे अच्छी तरह साफ़ कर ली थीं ( बाद में मुझे पता चला की ये साफ़ सफाई मेरी छुटकी बहिनिया के लिए की गयी थी ), चूत चटोरी तो मैं मायके से थी, और सास की चूत चाटने में , जिस चूत ने मोटे मोटे लंड घोंट के, इनका बीज रोपा गाभिन हुयी और नौ महीने बाद बियाइं,...

आज होली के दिन,... थोड़ी देर में ही सास जी के पैर डगमगाने लगे, लेकिन पकड़ उनकी जाँघों की एकदम सँड़सी की तरह, ताकत में अपने बेटे से उन्नीस नहीं थीं वो , मैं लाख कोशिश कर के भी उनकी जाँघों के बीच से अपना सर नहीं छुड़ा पा रही थी, पता नहीं मायके से ससुराल तक कितने मर्दों को अपनी जाँघों के बीच दबोचा होगा,...
और मौके का फायदा उनकी बेटी, मेरी ननद ने उठाया, पहले तो मेरी साड़ी आराम से धीमे धीमे खोली, फिर पेटीकोट का नाड़ा न सिर्फ खोला बल्कि मेरे पेटीकोट से निकाल के दूर फेंक दिया और अब मैं कोशिश कर के भी पेटीकोट नहीं पहन सकती थी, ... एक पड़ोस की ननद ने ब्लाउज के दो टुकड़े कर दिए ,...
पर मैं पूरी ताकत से इन सबसे बेखबर अपनी सासू माता का भोंसड़ा चूस रही थी,

और अपने से वादा कर रही थी, हफ्ते भर के अंदर इस छिनार के इसी भोसड़े के अंदर अपने सामने इसके बेटे का लंड न घुसवाया, फिर इनके समधियाने के, अपने मायके के सब मरदों का हरवाह, घोसी, धोबी, मोची, कोई नहीं बचेगा जो इस पोखर में डुबकी न लगाएगा,...
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