हाँ ये तो सही है कि कनफुजिया गए...
देर से और कभी कभार आने से आप कभी कभी लगता है कनफुजिया जाते हैं दो कहानी के बीच में
अरे सास हमारी तीरथ बरत करने गयीं है पंडों के साथ धक्कम धुक्का, मेले में ठेला ठेली का मज़ा लेने, और हमरी मम्मी और हमारी दोनों की मनौती में अपनी मनौती मिला के,... जोरू का गुलाम वाली कहानी में और उनके आने के पहले ही इनकी बचपन की माशूका और होने वाली रखैल को लेकर हम लोग उड़न छू होने वाले हैं उस कहानी में
इस कहानी वाली सास तो छुटकी के कच्चे टिकोरे कुतुर कुतुर के मस्त हो रही हैं। तो दोनों कहानी पे आइये , आपके कमेंट के बिना तो कहानी का मजा न लिखने में न पढ़ने में।
देर से और कभी कभार आने से आप कभी कभी लगता है कनफुजिया जाते हैं दो कहानी के बीच में
अरे सास हमारी तीरथ बरत करने गयीं है पंडों के साथ धक्कम धुक्का, मेले में ठेला ठेली का मज़ा लेने, और हमरी मम्मी और हमारी दोनों की मनौती में अपनी मनौती मिला के,... जोरू का गुलाम वाली कहानी में और उनके आने के पहले ही इनकी बचपन की माशूका और होने वाली रखैल को लेकर हम लोग उड़न छू होने वाले हैं उस कहानी में
इस कहानी वाली सास तो छुटकी के कच्चे टिकोरे कुतुर कुतुर के मस्त हो रही हैं। तो दोनों कहानी पे आइये , आपके कमेंट के बिना तो कहानी का मजा न लिखने में न पढ़ने में।
लेकिन तब दो-दो कहानी का रस इकट्ठे मिलता है...