इंद्र के हाथी जैसे वाक्य हीं.... इसमें एक अलग रस भर देते हैं....Kya baat hai,Inder Dev ke hathi bhid gaye, bijali chamk gyi aur fir........ Jabardast, shandar update
इंद्र के हाथी जैसे वाक्य हीं.... इसमें एक अलग रस भर देते हैं....Kya baat hai,Inder Dev ke hathi bhid gaye, bijali chamk gyi aur fir........ Jabardast, shandar update
एक खास बात ये कि...Bahar bhi barish aur behn ke chhed se bhi barish.Kya kamal ki shabdabali varti hai Komal didi aap ne.Mein to aap ki ye update,kai baar read kar ke aapke dialogue yad karungi.How knowledgeable u r !. Adbhut, jabardast update
बाहर भी बारिश... अंदर भी बारिश और अपडेट की भी बारिश....Waah waah..... Update ki aisi bauchhar lagai hai ki ab hamare lund se bauchhar nhi ruk rahi hai.... Aap nahak me itna is vidha me new hone ka bahana de rhi thi . Aap to har vidha ki story likhne me no 1 ho. Bhauji no 1. Baki ke comment lund maharaj ke thoda rukne ke baad
उपमाओं के बिना कोई भी कहानी फीकी लगती है.....और कैसे कोई कुशल धनुर्धर बाण संधान के पहले प्रत्यंचा को अपने कंधे तक पूरी ताकत से खींचता और फिर बाण छोड़ता है , एकदम उसी तरह , पूरी ताकत से , उसके भैया ने पुश किया , वो ठेलते गए , धकलते गए,
कोमल... मैंने आपके द्वारा लिखी गई बहुत सी कहानियाँ पढ़ी हैं और आपकी हर कहानी उत्कृष्ट है। आप जिस तरह के शब्दों और कहावतों का इस्तेमाल करते हैं, वह एक परिपक्व लेखक का गुण है। मैं आपके लेखन कौशल के आगे नतमस्तक हूं
और ये सोपान की हरेक सीढ़ी का पायदानशायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...
और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,.
जिस तरह आपने बचपन से लेकर जवानी तक एक महिला के जीवन को चित्रित किया है, उसने मुझे स्तब्ध कर दिया है।
मुझे खुशी है कि मुझे आपकी यह कृति पढ़ने को मिली
बंपर धमाके के लिए धन्यवाद....सुपर मेगा अपडेट इस इन्सेस्ट की कहानी का
७ भाग
पेज १५२ पर,
१ इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )
दूध -मलाई
२ दूध के कटोरे
३. समझदार, बहन ...ते हैं,
४ बरसात की रात
५. .....घुस गया
६ उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ,
फ़ट गयी
७ टप टप टप
मलाईAdultery - छुटकी - होली दीदी की ससुराल में
सुपर मेगा अपडेटकिस्सा इन्सेस्ट का, भैया और बहिनी का भाग ३० बस आजWaiting 😸exforum.live
Please, do read, enjoy, like and must share your comments on a beginner's efforts of writing an incest, i will be waiting, aapke comments ka intezaar rahega , comment jaroor jaroor se den aur har parts pe
जिसे अन्य कहानियों में एक पोस्ट में निपटा दिया जाता है...Har part mei coments hafte bhar pe aayenge , content itna garam hai ki har post pe gharo ki diwalee safed ho rahi hai
आप जो भी लिखती हैं...Thanks so much, Its only your support and encouragement which has goaded me to traverse a path, a i have never stepped upon before , 10000 thanks
Sirf Guddi hi nahi, apke readers ki bhi halat achhi nahi h, Uff kya likhti ho aap komal jiभाग २१
छुटकी पर चढ़ाई -
और जो थोड़ी बहुत उम्मीद बची थी, उसपर मेरी सास ने न सिर्फ दरवाजा बंद कर दिया बल्कि मोटा सा भुन्नासी ताला भी लगा दिया,... ननद की बात के जवाब में छुटकी की ओर से वो बोलीं,
" अरे मेरी छुटकी बेटी को समझती क्या हो, डरती है क्या किसी से.... अभी देखो,... क्यों " और उन्होंने बॉल मेरे पाले में डाल दी.
बेचारी छुटकी कभी मुझे देखती कभी मेरी सास को,...
और मुझे जल्द फैसला लेना था, पहली बात सास की बात, वो भी सबके सामने काटने की मैं सोच भी नहीं सकती थी,
फिर मैंने सोचा सास को अपने साथ मिलाने के बड़े फायदे हैं, पहली बात तो तुरंत ही, कल ननद भौजाई का जो मैच होगा उसमें जज वही होंगी,... और थोड़ा बहुत मैच फिक्सिंग,... फिर अब घर में भी जेठानी और छुटकी ननदिया तो जेठ जी के पास चली गयी हैं साल में कभी कभार छुट्टी छपाटी, लौटेंगी ... और ये ननद नन्दोई भी चार पांच दिन में, ...
फिर तो घर में मैं, मेरी छोटी बहिन, उसके जीजा,... और मेरी सास ही रहेंगी, ... मैं सोच रही थी सास जी के बारे में
और मेरी चमकी, बहुत सी बड़ी उमर की औरतों को कुछ करने करवाने से ज्यादा मज़ा आता है,.. देखने में,.... और जिस पर चढ़ाई हो रही हो , वोएकदम कच्ची उमर वाली, कच्चे टिकोरों वाली हो हो कहना ही क्या,
फिर छुटकी को देख के सबसे ज्यादा आँखे उन्ही की चमकी थी, उसे साथ ले के अपने कमरे में चली गयीं थी,... तो उसकी कच्ची अमिया उनके सामने कुतरी जाए , ये देखने का मन उनका कर रहा होगा
मैंने एक पल ननद जी की और उनके भैया की ओर देखा, और मुझे लगा की अगर आज सबके सामने , अपनी माँ के सामने ये खुल के मेरी बहन की चुदाई करेंगे तो इनकी जो भी झिझक है और ननद जी की भी वो सब निकल जायेगी, फिर एक दो दिन में मैं इनकी बहन के ऊपर इसी घर में अपने सामने चढ़ाउंगी, तब आएगा असली मज़ा. जो मजा ननद के ऊपर भौजाई को अपने सामने ननद के सगे भाई को चढ़ाने में आता है न उसके आगे कोई भी मजा फेल है।
बस ये सब सोच के मैंने अपनी सास का साथ दिया,...
" एकदम, क्यों डरेगी और किससे डरेगी, बड़ी बहादुर है मेरी छुटकी बस अभी थोड़ी देर में,... "
छुटकी ने कुछ बोलने की कोशिश की तो मैंने समझा दिया अरे मैं रहूंगी न तेरे साथ, ... और अबकी मेरी सास ने भी उसका साथ दिया,...
हाँ मैच शुरू होने के पहले मैंने कुछ शर्तें ननद औरसास से मनवा ली, वो क्या थीं, मौके पर बताउंगी।
और एक बात और रीतू भाभी ने जो सूखी गाँड़ मारने की शर्त रखी थी, वो तो सिर्फ पहली बार के लिए थी, फटने के लिए, ...
और फट तो चुकी ही थी उसकी इसलिए अब तो कोई भी चिकनाई उसको लगा सकती थी मैं, दूसरे नन्दोई जी ने जो कटोरी भर मलाई उसकी कच्ची गाँड़ में डाली थी उससे भी तो पिछवाड़े का छेद कुछ कुछ चिकना हो चुका होगा,...
बीच आँगन में ननद रानी ने गद्दे बिछा दिया, पर छुटकी बिचक रही थी, पर मैंने उसे बहलाया फुसलाया , चुम्मी ली , उसकी छोटी छोटी चूँचिया दबायी,...
मुझे उसके देह की एक एक बटन मालूम थी , ट्रेन में तो इनके सामने हम दोनों ने खूब लेस्बो सेक्स कर के उसके जीजा को खूब ललचाया था तो बस फिर से वही,
" अरे चल थोड़ी देर हम दोनों मजा लेते है न , उसमें तो नहीं दर्द होगा तुझे न,... "
मैंने समझाया उसे और थोड़ी देर में हम दोनों आंगन में सिक्स्टी नाइन वाली पोज में थे, रीतू भाभी, मिश्राइन भाभी और मोहल्ले की भाभियों ने कब का छुटकी को चूत चूसने की तगड़ी ट्रेनिंग दे दी थी , और हम दोनों एक दूसरे की चूत चूसने में लगे थे , पर झाड़ने की जल्दी न मुझे थी न उसे।
छुटकी की फांके अभी एकदम चिपकी थीं, एक दो बार ही तो उसमें मूसल घुसा था, कस के एक दूसरे को पकडे जैसे सहेलियां बिछुड़ने के डर से गलबहिंया बाँध के बैठी हों, रस तो इतना छलक रहा था की संतरे की फांके झूठ,...
लेकिन मेरी जीभ ने वहां छुआ भी नहीं , बस जाँघों पर उसके आसपास, हाँ मेरे तगड़े हाथों ने कस के उसकी जाँघों को न सिर्फ फैला दिया बल्कि टाँगे उठा भी दी, और मेरी सास जो बगल में ही बैठीं थी, एक दो तकिये छुटकी के चूतड़ के नीचे भी लगा के खूब उठा दिए, मेरी जीभ और उँगलियाँ बस उस कुँवारी के रस कूप के आस पास,
और थोड़ी ही देर में वो रसकूप रस से भर गया, रस छलकने लगा , पर मैंने उसे तड़पने दिया, मैं जानती आज असली हमला तो कहीं और होना है,...
तो बस जीभ की टिप थोड़ा और नीचे,...
गोलकुंडा के गोल गोल दरवाजे पर जो आज ही थोड़ी देर पहले आम की बगिया में खुला था, जहाँ मेरे प्यारे दुलारे ननदोई का मोटा मूसल खूब जम के चला था, और जीभ की टिप नहीं नहीं गोलकुंडा के गोल कुंवे के अंदर नहीं, बस कुंवे के चारो ओर बनी चौड़ी जगत पर, कभी जीभ की टिप छू देती , कभी रगड़ देती कभी बस सहला देती, वो पिछवाड़े वाला छेद अब बुदबुदा रहा था, हलके हलके सिकुड़ता, फैलता,... और जैसे कोई दरवाजे की कुण्डी खटका के बच्चा भाग जाए, बस उसी तरह मेरी जीभ भी, चित्तौड़गढ़ के दरवाजे पर सांकल खटखटा के , एकदम से हट गयी, और फिर छोटे छोटे चुम्मे उस लौंडा छाप चूतड़ों पे,...
नहीं मैंने उस रस कूप को नहीं छोड़ दिया था , मेरी कोमल कोमल उंगलिया,... उस संतरे की रस से भरी फांको पर, कभी हलके हलके रगड़ती रगड़ती, कभी फांकों के बीच में हल्के से दबा के उस दरवाजे को खोलने की कोशिश करती, जिसके अंदर अब तक सिर्फ मेरे साजन को दाखिला मिला था,...
मेरी इन शरारतों से सिर्फ छुटकी की हालत नहीं खराब हो रही थी, मैंने देख लिया था की मेरी सास के साथ सास के दामाद भी, मेरे नन्दोई भी और शॉर्ट्स में उनका खूंटा पूरा तना,
नन्दोई का ख्याल सलहज नहींकरेगी तो क्या ननद की ननद करेगी ? मैंने इशारे से ऊँगली मोड़ के उन्हें पास बुलाया और एक झटके से उनकी शॉर्ट्स को खींच के उतार फेंका, इत्ता मस्त मोटा लंड, ... कैद में रहे, वो भी ससुराल में , मेरे ऐसी सलहज के रहते, ...
और मैंने कनखियों से देखा मेरी सास के चेहरे की ख़ुशी को,
अब मेरा एक हाथ नन्दोई के मोटे फनफनाये लंड को मुठिया रहा था, दूसरा हाथ मेरी छुटकी बहन के कभी जाँघों पे कभी उसकी चिपकी सहेली पर फिसल रहा था,... और होंठ उसी जगह अब चिपके थे जहाँ असली खेल होना था, मेरी छुटकी बहिनिया का पिछवाड़ा,...
खूब चूस रही थी , चाट रही थी , मुंह में ढेर सारा थूक ले के उसी जगह फैला के अंदर तक,...
बेचारे ननदोई , सलहज मुठिया रही थी , सलहज की छुटकी बहिनिया का पिछवाड़ा सामने , एकदम तैयार,...
ऊपर से मैंने आँख मार के उनसे बिन बोले पूछा, " चाहिए ये माल, इसकी कच्ची गाँड़ '
कौन मर्द पागल नहीं हो जाता।
और अब मैंने थोड़ा फास्ट फारवर्ड किया, ..सीधे अब जीभ कसी चूत पर दोनों फांके मेरे होंठों के बीच, कस कस के मैं चूस रही थी , जीभ कभी क्लिट को सहला देती , तो कभी दोनों फांकों को फ़ैलाने की कोशिश करती, और
अब मेरे दोनों हाथ असली काम में जुट गए थे, कस के मेरी बहन के चूतड़ फ़ैलाने में , उसके लौंडा मार्का छोटे छोटे चूतड़ नन्दोई जी को पागल बना रहा थे ,
हाँ मेरे सास की आइडिया थी , मैंने दोनों हाथों की दसों उँगलियों में घर के कोल्हू का कडुवा तेल, अच्छी तरह से एकदम तर कर लिया था,...
और अब वो उँगलियाँ छुटकी की पिछवाड़े की दरार में , दरार के पहले उस दर्रे में , उसके चारों ओर, गाँड़ मरवाते समय न सिर्फ जिस छेद में मूसल घुसता है वहां दर्द होता है, बल्कि उसके अगल बगल भी फटन होती है, और एक बार तो जबरन मंझली ऊँगली , तेल में डूबी दो पोर तक घुसेड़ कर पूरे दो मिनट तक गोल गोल ,
लेकिन सिर्फ बछिया को तैयार करने से नहीं काम चलने वाला था सांड़ को भी तो पागल करना था, बस जो होंठ मेरे बहिनिया की चूत चूस रहे थे वो खुले और नन्दोई का सुपाड़ा, अंदर खूब सटासट, और वो तेल लगी उँगलियाँ उस चर्मदण्ड को तेल से,... बस दोनों पगलाए थे,
एक बार फिर मैंने छुटकी की चूत को खूब कस कस के चूसना शुरू किया, और जीभ अब अंदर घुस गयी थी , बस वो झड़ने के कगार पर थी,
दोनों हाथों ने उसका पिछवाड़ा कस के पहले फैलाया, फिर एक हाथ से मैंने नन्दोई का खूंटा पकड़ के अपनी छुटकी बहिनिया की कसी गाँड़ के छेद पर सटाया,
बहुत ताकत थी मेरे प्यारे नन्दोईया की कमर में , क्या जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने,... और मैं पहले से तैयार थी, छुटकी इतना तेज उछली, ... पर मैंने अपनी पूरी देह का वजन उसके ऊपर डाल रखा था, जैसे कोई बछिया खूंटा छुडाके भागने की कोशिश करे , कोई मछली जाल से पूरी ताकत से उछल के वापस नदी में जाने की कोशिश करे,
पर न बछिया खूंटा छुड़ा के भाग पाती है , मछली बच पाती है,
न छुटकी बची,...
Yeh achhi baat nhi h komal Ji, itna hot update bhi kya likhna ki poora update bhi na padh pao, gajab komal jiधंस गया,... घुस गया,...
उईईई उईईईईई
दोनों हाथों ने उसका पिछवाड़ा कस के पहले फैलाया, फिर एक हाथ से मैंने नन्दोई का खूंटा पकड़ के अपनी छुटकी बहिनिया की कसी गाँड़ के छेद पर सटाया,
बहुत ताकत थी मेरे प्यारे नन्दोईया की कमर में , क्या जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने,... और मैं पहले से तैयार थी, छुटकी इतना तेज उछली, ... पर मैंने अपनी पूरी देह का वजन उसके ऊपर डाल रखा था, जैसे कोई बछिया खूंटा छुडाके भागने की कोशिश करे , कोई मछली जाल से पूरी ताकत से उछल के वापस नदी में जाने की कोशिश करे,
पर न बछिया खूंटा छुड़ा के भाग पाती है , मछली बच पाती है,
न छुटकी बची,...
मैंने खुद नन्दोई जी का मोटा खूंटा पकड़ रखा था और उसे अपनी बहन की गाँड़ में ठेल रही थी, सलहज का इशारा नन्दोई न समझे , अबकी पहली बार से ही ज्यादा जोर से नन्दोई जी ने धक्का मारा , और पूरा तो नहीं लेकिन आधा सुपाड़ा उस कसी गाँड़ में अटक गया।
इतना अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती, नन्दोई जी का लाल टमाटर ऐसा खूब मोटा फूला सुपाड़ा, आधे से ज्यादा छुटकी बहिनिया की गाँड़ में अटका धंसा, बस मैंने झुक के जो सुपाड़े का हिस्सा बाहर निकला था, उसे मारे ख़ुशी के चूम लिया,
थोड़ी देर तक मैं जीभ से अपनी लपर लपर उसे चाटती रही, जिस जगह सुपाड़ा बाकी लंड से जुड़ता है, वहां जो चमड़ा रहता है , उसे जीभ से सहलाती रही , फिर कभी एक हाथ से नन्दोई के बॉल्स को सहला देती तो कभी लंड जड़ से जहाँ तक गांड में घुसा था, धीरे धीरे चाटती।
नन्दोई मेरे गाँड़ मारने में पूरे उस्ताद थे, ... चोदने और गाँड़ मारने का अंतर् उन्हें अच्छी तरह मालूम था ,
चूत में जहाँ सुपाड़ा घुसा उसके बाद तो कस के पेल के , धक्के पर धक्का,... लेकिन गाँड़ में बस एक बार सुपाड़ा अटक जाए, जिसकी मारी जा रही है वो झटका दे के उसे निकाल न पाए , बस मारने वाला थोड़ी देर उसे उसी तरह छोड़ देता है, ... जिससे गाँड़ धीरे धीरे फ़ैल जाए, उसे उस मोटे सुपाड़े की आदत पड़ जाए, मसल्स थोड़ी ढीली हो जाए ,
बस कुछ रुक के अगला धक्का, दूसरी बात बजाय बार बार अंदर बाहर करने के शुरू में बस खाली पुश, पूरी ताकत से पुश , और एक बार गाँड़ का छल्ला पार हो जाए,...
लेकिन अब टाइम आ गया था,... पर सब बड़ी बात होती है की जिसकी मारी जाती है वो कहीं मारे डर के गांड़ लंड पर भींच न ले , किसी तरह वहां से ध्यान हटे,...
और नन्दोई का काम उसकी सलहज नहीं कराएगी तो कौन करायेगा, बस मैंने छुटकी की चूत कस कस के चूसनी शुरू की, और जब वो झड़ने के करीब आयी तो बस अंगूठे और तर्जनी से कस के उसकी क्लिट कस के पिंच कर दी,
और दूसरे हाथ से नन्दोई का खूंटा कस के पुश किया, इतना इशारा काफी था और नन्दोई ने वो जबरदंग धक्का मारा अबकी पूरा सुपाड़ा छुटकी की गाँड़ के अंदर था,... क्लिट में हो रहे दर्द के चक्कर में वो पिछवाड़े का दर्द एकदम भूल गयी थी और उसी का फायदा उठा के नन्दोई ने छक्का मार दिया , अब वो गांड भींच के भी क्या करती सुपाड़ा तो पूरा अंदर था।
लेकिन दर्द तो उसे हो ही रहा था , वो सिसक रही थी, कराह रही थी, बीच बीच में चीख भी रही थी, मैंने अपनी बुर से उसके मुंह को बंद करने की कोशिश की तो मेरी ननद ने इशारे से मना कर दिया ,
मेरी ननद तो यही चीख पुकार सुनना चाहती थीं, बल्कि गाँव भर को मालूम हो जाए की आज मेरी बहिनिया की अच्छी तरह ली गयी , उन्होंने खिड़कियां भी खोल दी,...
उईईई उईईईईई छुटकी चीख रही थी, चिल्ला रही थी , बिलख रही थी ,
पर अब जब आधा लंड गाँड़ में घुस चुका हो तो बिना गाँड़ मारे कौन छोड़ता , और नन्दोई तो बचपन के अपने साले की तरह पिछवाड़े के शौक़ीन,... और जब जिसकी मारी जाए, वो कच्ची अमिया वाली , गाँड़ एकदम कसी सिर्फ एक बार मूसल चला हो ,
और नन्दोई का हल नहीं ट्रैक्टर था,
मुझसे ज्यादा कौन जानता था , इत्ती बार ( शादी के तीसरे चौथे दिन से तो , रोज बिना नागा मेरी मारी जाती थी ) इनसे गाँड़ मरवाने के बाद भी जब चार दिन पहले ही तो, होली में नन्दोई ने गाँड़ मेरी मारी थी, ...बस जान नहीं निकली थी, ... लम्बा तो इन्ही का ज्यादा होगा , पर मोटा नन्दोई जी का ही , और जिस तरह से दरेरते, रगड़ते धकेलते थे , मजा भी खूब आता था लेकिन आँख में आंसू छलक जाते थे,हो
और ये तो नई बछेड़ी थी, आम के बाग़ में थोड़ी बहुत चीख पुकार मची भी होगी तो सिर्फ नैना ननदिया ने सुना था और तुरंत ही तो उसके जीजा ने अपना मूसल उसके मुंह में ठेल दिया था हलक तक,... अब दरद चाहे जितना हो , गाँड़ फट के चीथड़े चीथड़े हो जाए , वो एक आवाज नहीं निकाल पा रही थी , पर अभी तो
जोर जोर से चोकर रही थी, रो रही थी दुहाई दे रही थी , पर जब गाँड़ फटती है न तो बचाने वाला कोई नहीं होता,...
और चिढ़ाने मज़ाक उड़ाने वाले बहुत ,
यहाँ तो मेरी ननद ही थी , चिढ़ाने मज़ा लेने में , भौजाई की छोटी बहन की मारी जा रही हो , सबके सामने , मारने, फाड़ने वाला उसका अपना मर्द हो तो कौन ननद ये मौका छोड़ती ,...
" अरे भौजी क छुटकी बहिनिया , चीख लो , चिल्ला लो ,... पूरे गाँव में सुनाई पड़ रही होगी ,... और पूरे गाँव वाले मेरे सब भाई तेरे जीजू लगेंगे, और ये छोटी छोटी गाँड़ जो मटका के चलती है न , महीने भर में तेरी माँ के भोंसडे से चौड़ा तेरी गाँड़ का छेद हो जाएगा ,... "
छुटकी कुछ भी कहने सुनने की हालत में नहीं थी , सिर्फ चीख चिल्ला रही थी और ननद के साथ अगर किसी और पे उसका असर हुआ तो वो मेरे नन्दोई थे जो हर चीख के साथ दूनी ताकत से धक्के मार रहे थे ,
सास मेरी बोल तो नहीं रही थीं , लेकिन कच्ची कली की गाँड़ फाड़ी जाती देख के उन्हें भी बहुत मजा आ रहा था,.. उनकी आँखे उस की कच्ची गाँड़ के छेद पे चिपकी थीं ,
नन्दोई अब धीमे धीमे ठेल रहे थे , एक बार उसकी गाँड़ तो मार ही चुके थे और उन्होंने खुद मेरे साजन से कबूल किया था की उन्होंने दर्जनों कच्ची गांड खोली थी, लेकिन अबतक की ये सबसे कसी थी।
मैं अपनी छुटकी बहिनिया की कस कस के चूस रही थी, पर वो जैसे झड़ने के किनारे आती मैं रुक जाती दो चार बार ऐसे ही तड़पाया मैंने उसे , फिर एक बार जब वो किनारे पर आयी, मैंने कस के उसकी क्लिट को चूसना शुरू कर दिया और दो ऊँगली एक साथ जड़ तक उसकी चूत में पूरी ताकत से पेल दी , मोड़ के , बस वो झड़ने लगी
पर मैं अबकी इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी, मेरी मुड़ी उँगलियों के नकल ने उसकी बिल के अंदर उसके जी प्वाइंट ढूंढ लिया था, बस मैं वहीँ बार बार रगड़ रही थी , साथ में मेरी जीभ मेरे होंठ उसके क्लिट पर, एक बार उसका झड़ना रुकता उसके पहले वो दूसरी बार झड़ना शुरू कर देती ,
और मौके का फायदा उठा के नन्दोई जी ने अपना बांस पूरा ठेल दिया गांड का छल्ला पार हो गया।
अब मैं रुक गयी और नन्दोई जी पूरी ताकत से और पूरी स्पीड से चालू गए, जैसे कोई धुनिया रुई धुनें उस तरह छुटकी की गाँड़ मारी जा रही थी,... जैसे इंजिन का पिस्टन अंदर बाहर हो उसी तरह ननदोई जी का लंड मेरी बहन की गाँड़ में,...
आठ दस मिनट तक ,
छुटकी रो रही थी , चीख रही थी अपने हाथ पटक रही थी , पर जितना वो तड़पती उतना ही नन्दोई जी और कस कस के,...
तभी मैंने देखा की मेरे साजन भी, उन्हें मैं क्यों बख्शती , उनकी भी शार्ट उतर गयी , ननदोई का खूंटा मेरी छोटी बहन की गाँड़ में और ननदोई के साले का खूंटा नन्दोई की सलहज के मुंह में ,...