अन्य राईटर और आपमें यही फर्क है कि ....तेरी दो टकिया की नौकरी मेरा लाखों का सावन जाए
और उधर सब दरवाजे खिड़की देख के बाहर गाय गोरु देख के किचेन में खाना लगाते गीता मन ही मन में मुस्करा रही थी, जिस तरह से भैया आज खुल के जोबन दबा रहा था , जिस तरह से उसका लंड फनफनाया था , और माँ भी नहीं थी आज लग रहा था उसकी सहेली का दरवज्जा खुल जाएगा।
खाना खाते समय भी दोनों की छेड़ छाड़ चालू रही।
उसके भाई अरविन्द ने अपनी बहन गीता की आँख में आँख डाल के बोला,
आज लगता है जबरदस्त बारिश होगी,
थोड़ा मुस्करा के, थोड़ा उदास चेहरा बना के गीता खाना निकालते बोली,
" हो जाने दे न बारिश , लेकिन, कहाँ भैया, मेरा सावन तो सूखा सूखा जा रहा है, "
और ये बोलते गीता के एक हाथ की उँगलियाँ उसकी दोनों जाँघों के बीच, जिससे किसी को अंदाज भी न लगाने को बाकी रहे,' कहाँ की बारिश' की बात हो रही है। उसका भाई अरविन्द भी बहुत गरमाया था, खूंटा उसका भी खड़ा था. उसे चिपकाता बोला,
" अरे बहना सोलहवां सावन में बारिश नहीं होगी तब कब होगी, इस बार देखना तुम्हारा ताल पोखर सब भर जाएगा, पानी से हरदम छलकता रहेगा,. "
" भैया इस बात पे तेरे मुंह में गुड़ खीर,... और अपने हाथ से गुड़ का पूआ और गन्ने के रस की खीर खिला दी, , और जब उसके भाई ने हाथ पकड़ने की कोशिश की तो झिड़क दिया,
" भैया तू भी न , अपने हाथ में खीर लगा लोगे, फिर उसी हाथ से मेरे इधर उधर छुओगे, दे तो रही हूँ , आज लेने का काम तेरा देने का मेरा , तू मन भर के ले मैं एकदम मना नहीं करुँगी "
और अब सरक कर वो सीधे अपने भैया के गोद में, जहाँ खड़ा मोटा खूंटा उसकी छोटी छोटी किशोर गाँड़ में धंस रहा था, पर यही तो वो चाहती थी।
सहेली की भौजी ने यही तो सिखाया था की,
"जब तेरे अरविन्द भैया का खूंटा तुझे देख के, छू के, रगड़ के खड़ा हो जाए तो समझ ले अब अरविंदवा तुझे चोदना चाहता है, तुझे अब वो माल की तरह देखने लगा है और दूसरी बात खूंटा, जितना बड़ा हो,कड़ा हो, और मोटा हो, उत्ता ही मजा आएगा।"
और भैया का खूंटा खड़ा कौन कहे, एकदम बौरा रहा था, उसके चूतड़ पे रगड़ खा के, ... बस वो कौन कम गरमा रही थी, वो भी अपने छोटे छोटे चूतड़ उसके मोटे पागल मूसल पे रगड़ने लगी. और अपने भाई अरविन्द का हाथ पकड़ के अपने दोनों जोबन पे रख के दबाते हुए कहने लगी,
" भैया ठीक से पकड़ न, तुझे जवान लड़की को पकड़ना भी नहीं आता। "
बस पकड़ने के साथ गदराते उभरते उभारों को अरविन्द ने पहले हलके हलके फिर कस के मसलना शुरू कर दिया, और गीता की जाँघों के बीच लसलसाने लगा।
अबकी गीता ने ललचाते हुए पूए का एक टुकड़ा खीर में लगा के पहले अपने भैया को दिखाया फिर खुद गड़प कर लिया और कस कस के अपने छोटे नितम्बों से उसके खूंटे को दबा के बोली,
" भैया, तुम खाली बोलते हो बहिन का ख्याल नहीं करते, तेरी दो टकिया की नौकरी मेरा लाखों का सावन जाए
जो बादल गरजते हैं वो बरसते नहीं। "
अंगूठे और तर्जनी के बीच एक निपल को पकड़ के मसलते उसके भाई ने कहा,
" करिया बादर जी डरवाये,भूरा बादर पानी लाये,... तो गितवा ये भूरा बादल है सिर्फ बरसेगा नहीं बाढ़ आ जायेगी तेरी ताल तलैया में, बस आज रात."
और अपना एक हाथ उभार से हटा के लसलसाती जाँघों के बीच सीधे वहीँ रख दिया। गीता गिनगीना गयी।
उसने अपनी दोनों जाँघों को कस के भैया के हाथों के ऊपर सिकोड़ लिया और ऐसे भींच लिया जैसे वो उसका हाथ नहीं मस्ताना लंड हो।
इसी छेड़छाड़ और डबल मीनिंग बात में खाना खत्म होगया और गीता बर्तन लेकर किचेन में,
भाई का मन वो जान रही थी थी , उसके शार्ट में खूंटा एकदम तना था , बित्ते भर का तो होगा,... लेकिन वही झिझक,...
चुदाई के पहले जो माहौल है....
जो दोनों में छेड़-छाड़ होती है
वो विस्तार से होती है....
वरना अन्य कहानियों में लड़के ने लिटाया और घुसा दिया....
यही चीज आपकी कहानियों का मजा कई गुना बढ़ा देती है....
इसमें आपका कोई सानी नहीं...