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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Real@Reyansh

हसीनो का फेवरेट
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" मार लो,... "




दिन भर वो मौका आपके अपने भाई को चिढ़ाती रही, छेड़ती रही, उकसाती रही. कभी पीछे से उसको दबौच लेती थोड़ा , बिना ढक्कन के अपने कच्चे टिकोरों को उसकी पीठ पे रगड़ते बोलती,...


" भैया, मारो न, सच्च में मैं किसी से नहीं कहूँगी,... "




और पीछे से उसके कानो पर एक किस्सी ले लेती , जो कत्तई भाई बहिन वाली नहीं होती,...



अगले दिन भी माँ कहीं पड़ोस में गयी थीं , और गीता का स्कूल भी था, नहा के, बिना ब्रा के सिर्फ सफ़ेद स्कूल टॉप और स्कर्ट में वो बाथरूम में,...


और भाई के बाथरूम में अंदर घुसते ही आज बजाय मोबाइल के, वो दरवाजे से चिपक गयी, थोड़ी देर में ही उसका भाई चालू था, उसकी २८ सी की टीन सफ़ेद ब्रा हाथ में लिए, पूरी तेजी से मुट्ठ मार रहा था , जितनी तेजी से उसका हाथ चल रहा था उतनी ही तेजी से उसकी छुटकी बहिनिया के छोटे छोटे कबूतर अपने भैया का मूसल सा लंड देखकर धड़क रहा था, ...


गीता ने एक पल घडी की ओर नजर डाली,... अभी स्कूल में टाइम था,...



और भाई का हाथ पूरी तेजी से चल रहा था, आँखे बंद थीं,




गीता की भी आँखे बंद हो गयीं बस उसे लग रहा था किसी तरह यह मोटा दोस्त उसकी सहेली के अंदर ,लम्बा कितना, भैया के मुट्ठी बंद करने के बाद भी आधे से ज्यादा मुट्ठी से बाहर, उसके तो बित्ते से बड़ा ही होगा और भैया की भी मुट्ठी में नहीं समा पा रहा था,... ओह्ह्ह कित्ता मज़ा आएगा, ... जब उसकी दोनों टाँगे उठा के भैया इसे पेलेगा उसकी कोरी बिल में



और जब उसकी आँखे खुलीं तो उसके भैया ने ब्रा के कप फिर एक बार अपने खुले सुपाडे , और थोड़ी देर में सफ़ेद दूध की धारा बह निकली, खूब गाढ़ी मलाई मार के, और की कटोरे के बाद दूसरे कटोरे को,... वो भी छलकने लगा,...

गीता खूब गरमा गयी थी , समझ में नहीं आ रहा था क्या करे,, दोनों जाँघों को एक दूसरे से रगड़ती रही , उसकी चड्ढी भी हलकी हलकी गीली हो गयी थी, 'वो ' खूब लसलसा गयी थी,

बाहर जा के उसने घड़े से एक ग्लास पानी पिया, थोड़ा पानी के छींटे अपने गोरे गोरे चेहरे पर मारा,... गाल पर छेड़ती लट को सीधा किया और वापस अपने कमरे में ,

भैयाअभी भी बाथरूम में था, उसने छेद से देखा बस वो निकलने वाला था और उसकी ब्रा के दोनों कप अभी भी रबड़ी मलाई से भरे,

पलंग पे वो आके बैठ गयी , उसे एक शरारत सूझी,... माँ अभी भी नही आयी थी और बाहर का दरवाजा अभी भी बंद था,...

" भैया, जल्दी निकलो , ... कित्ती देर से घुसे हो ,... "





और उसके भैया बाहर निकल आये, सिर्फ टॉवेल लपेटे, और बहन बाथरूम में अंदर,...

पहले तो दरवाजा उसने अंदर से बंद किया और उस छेद से पीठ सटा के खड़ी हो गयी , जिससे उसके भैया देखना चाहें तो भी न देख पाएं , अपना सफ़ेद स्कूल का टॉप उठा के हुक पे टांग दिया, और ब्रा उठा के अपने अनावृत नए आ रहे उरोजों पर, ...




ठंडा ठंडा ,गरम गरम , पूरे उभारों पर वो फ़ैल गया, लेकिन हाथ से कस के उन कप्स को उसने अपने कच्ची अमिया पर दबा रखा था जिससे बाहर ज्यादा न छलके सब रबड़ी मलाई वहीँ पे,... ,

पीछे हाथ उठा के उसने हुक बंद करने की कोशिश की , लेकिन एक हुक वो भी आधा बंद हुआ,... और वहीँ से उसने आवाज लगाई ,

" भैया आँखे बंद कर लो, मैं बाहर आ रही हूँ,... "

बाहर सिर्फ ब्रा और स्कर्ट पहने वो निकली,... सच में उसका भाई आँख बंद किये था,

मन ही मन उसने सोचा एकदम बुद्धू है, और उसकी ओर पीठ कर के खड़ी हो गयी,...

" भैया मुझसे अंगिया का हुक नहीं लग रहा है , बंद कर दो न , आँख मत खोलना लेकिन "

" पागल हो क्या, आँख बंद किये कैसे हुक बंद करूंगा,... " वो बोला।

तो ठीक है आँख खोल लो,... वो मान गयी,




और जब तक वो हुक बंद करता रहा वो बोलती रही,

" भैया मेरी अंगिया छोटी हो गयी है , तुम बाजार से इससे बड़ी ला दो न अच्छी सी खूब,... "

" मैं कैसे लाऊंगा , लड़कियों का सामान , फिर मुझे नाप भी क्या मालूम " आखिरी हुक लगाते वो बोला।

" अरे तो नाप लो न , " खिलखिलाती वो शरीर बोली और अपने भैया के दोनों हाथ पकड़ के अपने ब्रा में कैद उभारों पर,... पल भर के लिये दोनों को जबरदस्त करेंट लगा लेकिन भैया ने हाथ हटा लिया ,..

और वो बदमाश मुड़ी, ... उसके भैया की आँखे उसकी ब्रा से चिपकी,

" बदमाश, आँखे बंद, ... "


शरारत से वो बोली और वापस बाथरूम में और अपनी स्कूल की शर्ट पहन ली, खूब खींच के उसने टक की थी , स्कूल की बेल्ट भी खूब टाइट बाँधी थी , जिससे उभारों का कटाव , कड़ापन सब कुछ साफ़ खूब मीठे वाले प्यारे वाले बुद्धू , तूने मेरा देखा था न , चल ,... " और चलने के पहले अपने भैया का टॉवेल खींच दिया ,

उसके पकड़ते रोकते भी उसको उस बदमाश मोटू की झलक दिख गयीसाफ़ दिख रहा था,...

जैसे वो बाहर निकली, दरवाजे पर खटखट की आवाज सुनाई दी, लगता है माँ आ गयी थीं , पर चलने के पहले उसने अपने भैया के होंठों पे कस के चुम्मी ली,... और हंस के बोली,

" बुद्धू"

दरवाजे पर माँ खड़ी थी और खुलते ही हड़का लिया ,

" कहाँ सो गयी थी , तेरी सहेलियां इन्तजार कर रही हैं और शाम को सीधे घर आना किसी सहेली के यहाँ नहीं ,... "

एकदम माँ और दौड़ती उछलती अपनी सहेलियों के साथ स्कूल की ओर वो हिरणी,...




लेकिन स्कूल में तो और उसकी सहेलियों ने आग लगाई, ... जो उसकी सबसे अच्छी सहेली थी , वही जिसके जीजू ने शादी के चार दिन के अंदर उसकी फाड़ी थी, छह सात महीने पहले ही और फिर तो हफ्ते भर दीदी की ससुराल में , ... कई बार तो दीदी के सामने ही, और दीदी भी हंस के बोलती तो क्या हुआ जीजा हैं तेरे, हक़ है उनका,...

और कल शाम को वो आ गए थे आज सुबह गए ,.. रात भर,...वो दूध लेकर गयी थी उनको देने बस उन्होंने पकड़ लिया, तेरी दीदी तो आज हैं नहीं तो तेरे साथ ही,... पूरे तीन बार,... पूरा डिटेल , कितना लम्बा, ,मोटा,... एक बार तो निहुरा के भी,... और गीता को वो और उकसा रही थी,

" हे जीजू तुझे बहुत याद कर रहे थे चिरौरी कर रहे थे , गितवा की दिलवा , गितवा की ,...दस बार तो कहा होगा , ... तो मैंने भी बोल दिया ठीक है अगली बार आप आने वाले होंगे तो पहले से बता दीजियेगा , मैं साथ पढ़ने के नाम पे उसके घर से परमिशन लेके ले आउंगी। उसकी चिड़िया तो अभी तक उड़ती भी नहीं है। "



लेकिन गीता के आँख के सामने तो अपने भैया का खूंटा घूम रहा था, जो उसकी सहेली अपने जीजू का बता रही थी , ... उसके भैया के आगे कुछ भी नहीं था,...बडे घमंड से कह रही जीजू , ६ -७ मिनट से पहले कभी नहीं , और उसके भैया तो उसने खुद घड़ी देखी थी इत्ता तेजी से मुठिया रहे थे, तब भी पूरे चौदह मिनट,...


आधे से ज्यादा लड़कियां तो उसकी क्लास की स्कर्ट फैला चुकी थीं और जिनकी नहीं फटी थी उनका मज़ाक उड़ाती थीं.


एक जिसके यार आधे दर्जन से भी ऊपर थे, रोज नया किस्सा , कल शाम को वो बोली,... की दिशा मैदान के लिए गाँव की एक भाभी के साथ जा रही थी,... उन भाभी से पहले ही सेटिंग थीं , उन का कोई देवर बहुत दिन से उनसे कह रहा था,... बस वो पहले से गन्ने के खेत में था और वहीँ गन्ने के खेत में निहुरा के क्या मस्त चोदा उसने,... भाभी दूर खड़ी चौकीदारी कर रही थीं,... गन्ने के खेत में अजब ही मजा आता है।



स्कूल की छुट्टी से लौटते हुए गीता के मन में बस यही बात थी , कुछ भी हो जाय,... कुछ भी , ..आज भैया के साथ,... मन तो उनका भी इतना करता है , रोज तो मेरी ब्रा में मुट्ठ मारते हैं,... लेकिन बस वही झिझक, ... मुझे ही कुछ करना पडेगा।

बादल उमड़ घुमड़ कर रहा था,... सावन तो लगा ही था , ... खूब तेज हवा चल रही थी,... लग रहा था पानी बरसेगा,...

और घर में पहुँचते ही वो ठिठक गयी , माँ एकदम तैयार , खूब सज धज के हरी साडी हरी चूड़ियां ,... गोरी तो वो खूब थीं ही , थोड़ी मांसल ,बहुत सुन्दर लग रही थीं,... उनका बैग भी बगल में रखा था, ...
भैया भी वहीँ खड़ा,

माँ ने उसे पकड़ के दुलराते हुए कहा ,

" तेरी ही बाट जोह रही थी,... मैं एकदम तैयार थी , तेरे मामा के यहाँ जा रही हूँ ,... उनका अर्जेन्टी बुलावा आया है ,... मामी को अपने मायके जाना पड़ा, कोई बात है ,... तो मुझे बुलाया है बस आज के लिए कल शाम को मैं आ जाउंगी,... घबड़ाना मत , बाहर मत जाना,... दो तीन दिन तेरी स्कूल की भी तो छुट्टी है, ... खाना मैंने बना के रख दिया है , खुद भी खा लेना भैया को भी दे देना। "




वो और दुलार से माँ से दुबक गयी और भैया को शरारत से देखते बोली,


" दे दूंगी, लेकिन एक बात है माँ, भैया से कह देना ,.... "

"क्या बोल न,... " माँ ने पूछा।
" भैया से कह देना,... मारेंगे नहीं ,..."

" क्यों नहीं मारेगा , जरूर मारेगा, ... कस के मारेगा, ... अरे तू उसकी छोटी बहन है तुझे नहीं तो क्या बाहर किसी को,... " माँ ने प्यार से गीता को चपत मारते हुए अपने बेटे को देखा और उसको और उकसाया,...




" हे ये मना भी करे न तो भी मारना जरूर, और कस के,... "

" मैं बहुत जोर से चिल्लाऊंगी ,... " गीता खिलखिलाते हुए बोली।

" तो ये तेरा मुंह बंद करके मारेगा,... ऐसे " माँ ने हँसते हुए गीता का मुँह अपने हाथ से कस के बंद कर के बोलीं , फिर जाते हुए कहा,


" अच्छा बड़े प्यार से मारेगा , अब तो ठीक, चलती हूँ नहीं तो बस छूट जाएगी। " और वो चली गयीं
लगता है गीता की मां भी अपने भईया से मार खाने ही जा रही है 😉😉😎
 

Real@Reyansh

हसीनो का फेवरेट
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और सिर्फ एक छक्का नहीं ओवर की हर बाल पर छक्का,...

छका छका के मारने का, जब तो मरवाने वाली छक न जाए 😂😂



Last Update is on page 152
Vaise bhee T-20 World cup me Ek छक्के से काम थोड़े चलता है 😎
चरण स्पर्श दीदी 🙏🙏
 

Luckyloda

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भाग ३०


इन्सेस्ट कथा उर्फ़ किस्सा भैया और बहिनी का ( अरविन्द -गीता )

दूध -मलाई




" भैया से कह देना,... मारेंगे नहीं ,..."

" क्यों नहीं मारेगा , जरूर मारेगा, ... कस के मारेगा, ... अरे तू उसकी छोटी बहन है तुझे नहीं तो क्या बाहर किसी को,... " माँ ने प्यार से गीता को चपत मारते हुए अपने बेटे को देखा और उसको और उकसाया,..." हे ये मना भी करे न तो भी मारना जरूर, और कस के,... "

" मैं बहुत जोर से चिल्लाऊंगी ,... " गीता खिलखिलाते हुए बोली।



" तो ये तेरा मुंह बंद करके मारेगा,... ऐसे " माँ ने हँसते हुए गीता का मुँह अपने हाथ से कस के बंद कर के बोलीं , फिर जाते हुए कहा,

" अच्छा बड़े प्यार से मारेगा , अब तो ठीक, चलती हूँ नहीं तो बस छूट जाएगी। "



और वो चली गयीं।

.......




शाम हुयी रात हुयी , मन तो दोनों का कर रहा था था , लेकिन हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था , कौन शुरू करे ,...




" दूध पियेगा मेरा, भैया,... पिलाऊंगी ना खूब प्यार से "

गीता अपने भाई अरविन्द की बात पे खिलखिला के हंस रही थी. आज उसने जान बूझ के एक दो साल पुरानी एकदम घिसी हुयी छोट सी टॉप पहनी थी, वो भी खूब लो कट वाली। उभार तो उभर के सामने आ ही रहे थे, नए नए आ रहे निप्स भी टॉप फाड़ते सफ़ साफ़ दिख रहे थे. और हंसती हुई जब वो आगे की ओर झुकती तो दोनों जुबना और उनके बीच की गहराई भी खुल के सामने आ जाती।

और वो ये भी देख रही थी की उसके भैया का खूंटा एकदम लोहे का रॉड हो रहा था, लेकिन वो मन में गुस्सा भी हो रही थी, स्साला लोहे का रॉड होने का, इत्ता मोटा मूसल होने का क्या फ़ायदा अगर सामने ओखली रखी है और वो चलाने से घबड़ा रहा है,

खाने की मेज़ पे दोनों आमने सामने बैठे थे. माँ को गए चार घंटे हो गए थे, उनका फोन भी आ गया था की वो मामा के यहाँ पहुँच गयी हैं और कल शाम के बाद ही आएँगी।

लेकिन गीता अब उछल के अपने भाई के बगल में बैठ गई एकदम चिपक के और गाल से गाल सटा के, हलके हलके रगड़ते अरविंद से बोली,


" भैया आप भी न, एतना खेत खलिहान क बात जानते हो इहौ नहीं मालूम की जबतक बछिया के ऊपर सांड़ हचक ह्च्चक के नहीं चढ़ता बछिया दूध नहीं देती,... "




अब इससे ज्यादा कोई क्या बोलती लेकिन माँ नहीं थी थी आज इसलिए उसकी भी हिम्मत एकदम बढ़ी थी और उसके भाई अरविन्द की भी , ये नहीं की इसके पहले वो चढ़ा नहीं था, ... कितनों पर,... उसकी बहन के उमर वाली भी, बड़ी उम्र की,... वो भी खुल के बोला,...
" हे बछिया जब हुड़कती है न खूंटा तोड़ाने लगती है तो उसको सांड़ के पास ले जाते हैं, इहो मालूम होगा तुमको "

मजाक में उसका कान खींचती वो बोली,
" हुड़क तो रही है इत्ते दिनों से , अब कोई कान में तेल डाल के बैठे, आँख में मोटी पट्टी लगा के बैठा हो तो बेचारी बछिया का करे " .



और भाई का हाथ खींच के अपने कंधे पर रख लिया , और अब वो आलमोस्ट उसकी गोद में चढ़ गयी.

बेचारे अरविन्द का मन तो ललचा रहा था की कंधे पर का हाथ बस थोड़ा सा सरका एक उस रसीले जोबन को दबोच ले, अब बहुत होगया। छेड़ते हुए वो भी बोला ,

" और बछिया की हालत देखी है जब सांड़ चढ़ता है तो बछिया कैसे कस के उछलती है, छुड़ाने की कोशिश करती है, ... "

हंसती खिलखिलाती गीता ने अपने भाई का कंधे पर का हाथ खुद खींच के अपने उभार पे न सिर्फ रख लिया बल्कि अपने हाथ उसको हाथ के ऊपर रख के हलके हलके दबाने लगी की कहीं वो झिझक के हाथ हटा न ले। और एकदम खुल के जवाब दिया,

" अरे भैया मैं गाँव की लड़की हूँ सब देखी हूँ, बछिया पे चढ़ते सांड़ को भी और कातिक में कुतिया पे चढ़ते कुत्ते को भी कैसे जब गाँठ बन जाती है तो,... लेकिन एक बात मैं भी समझ गयी हूँ,... की बछिया कितनो नौटंकी करे,लेकिन साँड़ जब दोनों अगली टांग से उसको कस के चांप देता है न बिना पूरा काम धाम किये छोड़ता नहीं , और थोड़ी देर बाद बछिया भी मजे ले ले के ,... और आज तक कउनो बछिया सांड क शिकायत ले के कही नहीं गयी, और अगली बार फिर हुड़कती है , वही हालत कुतिया की, अगले दिन फिर कउनो और चढ़ा रहता है,... "



और अबकी जान बूझ के गीता ने जैसे गलती से पड़ गया हो, उसकी शार्ट फाड़ते खूंटे पे हाथ रख दिया, देखती तो रोज थी की उसे देखते ही भैया के तम्बू में बम्बू तन जाता था लेकिन शार्ट के ऊपर से ही उसे छूने का मौका पहली बार मिला।

कितना मोटा, कितना कड़ा,... मन तो कह रहा की पकड़ के कस कस के मुठियाये जैसे भैया के मोबाइल में लड़कियां करती थीं, पर,... मन को दिलासा दिया
आएगा आएगा वो भी दिन आएगा जल्दी ही और बात आगे बढ़ाई.

लेकिन गीता कुछ बोलती, की उसकी बातों का वो असर उसके भाई अरविन्द पे हुआ की जो हाथ बस ऊपर ऊपर से टॉप के ऊपर हलके हलके उभारों को छू रहा था, अब वो जोबन मसलने रगड़ने लगा,... और गीता ने मजे से सेक्सी सिसकियाँ लेते हुए भाई का दूसरा था भी पकड़ के अपने दूसरे उभार पे रख दिया और उसके गाल पे हल्की सी चुम्मी ले के बोली,
Aakhir kar ubhar Aa hi gye arvind k hath .
M....



Ab daba daba k size bda dega
 

Luckyloda

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Doodh k karore.... aur gud ki kheer ..... aur lantern.......



Bhut jabardast tarike se shuruwat huyi hai......



Majedaar
दूध के कटोरे






लेकिन गीता कुछ बोलती, की उसकी बातों का वो असर उसके भाई अरविन्द पे हुआ की जो हाथ बस ऊपर ऊपर से टॉप के ऊपर हलके हलके उभारों को छू रहा था, अब वो जोबन मसलने रगड़ने लगा,... और गीता ने मजे से सेक्सी सिसकियाँ लेते हुए भाई का दूसरा था भी पकड़ के अपने दूसरे उभार पे रख दिया और उसके गाल पे हल्की सी चुम्मी ले के बोली,

" भैया, मेरे तो दोनों दूध के कटोरे तेरे लिए हैं लेकिन मुझे भी गाढ़ी वाली रबड़ी मलाई चाहिए, ये नहीं की इधर उधर कभी मेरे कपड़े में, कभी अपने, अब हर बूँद मुझे, मेरे लिए, ... तुझे तो मालूम है मुझे रबड़ी मलाई कित्ती पसंद है "




और ये कहके गीता ने शॉर्ट्स के ऊपर से भाई का खूंटा कस के अबकी खुल के दबा दिया।


अब दोनों गरम हो गए थे तो गीता ने ही बात मोड़ी,


" लेकिन मैंने तेरे लिए दूध की खीर बनायी है, गुड़ डाल के बखीर




( गीता को मालुम था की गौने की रात को दूल्हा दुल्हन दोनों को ये खिलाई जाती है और उसकी तासीर ये होती है की दुल्हन दूल्हा का हाथ लगने के पहले ही अपने साये का नाड़ा खोल देती है और दुलहा जो चढ़ता है तो सूरज चढ़ने के बाद ही, वो भी चार पांच राउंड के बाद ही जबतक दुल्हन थेथर नहीं हो जाती, मलाई उसकी बुर से निकल के जाँघों पर नहीं बहने लगती, पेलता ही रहता है ).



मुझे मालूम है तुझे बहुत पसंद है, बस पांच दस मिनट और,... क्या बहुत भूख लगी है भैया ?


" बहोत भूख लगी है यार " उसके दोनों उभारों को अब खुल के रगड़ता वो बोला, .... और जोड़ा,

" बोल देगी न गितवा की खाली बोल रही है ?"
" भैया आपने अपनी बहन को देखा नहीं है, अभी आप लेते लेते थक जाओगे , मैं देते देते नहीं थकूँगी "



और वो उठ कर रसोई की ओर जाने लगी तभी बिजली लपलापने लगी. वैसे तो गाँव में बिजली थी पर जाती ज्यादा थी आती कम थी, और गाँव वालों को भी बिजली की जरूरत जाड़े में खासतौर से सुबह, ट्यूबवेल से गेंहू की सिचाई के लिए ज्यादा महसूस होती थी. और बाकी दिन तो गाँव में सब को जल्दी सोने की आदत थी,


सात आठ बजे तक खाना, साढ़े आठ तक लालटेन भी बुझ जाती थी



और पौने नौ बजे हर घर में साये का नाड़ा खुल जाता , टाँगे उठ जातीं और रात भर जुताई होती।




और बारिश में तो खासकर, एक बूँद पानी की आयी नहीं की लाइट गायब,

माँ भी नहीं थी सब जिम्मेदारी अरविन्द पे, वो जान रहा था बस आधे घंटे, घंटे में लाइट जायेगी और फिर कब आएगी भरोसा नहीं, उसने गीता से बोला,


" सुन यार तू ज़रा सब दरवाजे खिड़की चेक कर ले , तेज बारिश आने वाली है , लाइट जायेगी, तूफ़ान भी आ सकता है, मैं तब तक सब लालटेन, ढिबरी बत्ती जला लेता हूँ।"


सिर्फ भाई बहन थे घर में तो जिम्मेदारी भी उन दोनों की।

" हाँ भैया, ग्वालिन भौजी बोल गयी थी की उन्होंने गाय गोरु को चारा खिला के बंद कर दिया है , सांझ से ही लग रहा था की आज तूफ़ान आएगा, लेकिन मैं वो भी एक नजर देख लूंगी। बस दस मिनट, लौट के आके खाना लगाती हूँ। "




गीता बाहर गयी और उसका भाई अरविन्द, स्टोर से सब लालटेन ढिबरी निकाल के साफ़ कर के पूरा तेल भर के जलाने में लगा गया. तूफ़ान आने वाला था लेकिन उस के मन में एक दूसरा तूफ़ान चल रहा था उसकी बहन को लेकर, करे न करे
Aur toofan aane wale hai... Dekho kya kya ujhadta hai ye toofaan
 

Luckyloda

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समझदार, बहन ...ते हैं,









गीता बाहर गयी और उसका भाई अरविन्द, स्टोर से सब लालटेन ढिबरी निकाल के साफ़ कर के पूरा तेल भर के जलाने में लगा गया.

तूफ़ान आने वाला था लेकिन उस के मन में एक दूसरा तूफ़ान चल रहा था उसकी बहन को लेकर,

करे न करे,

मन तो उसका काबू में एकदम नहीं था और ललचाता तो कब से उसको देख के था लेकिन जब एक दिन नहीं रहा गया और उसने बाथरूम में छेद करके, ...


उफ़ उफ़ क्या जोबन उभरा था, आस पड़ोस के चालीस पचास गाँव में ऐसी कोई नहीं ,...




और जब एक दिन उसने उसकी चूत देख ले , ..एकदम चिकनी, जैसे झांटे आयी ही नहीं हो, संतरे की फांकों की तरह रसीली


और फिर उस दिन से , कोई दिन बाकी नहीं गया,... जब उसका नाम ले के दो तीन बार वो मुट्ठ नहीं मारता था,...


भाई बहन के रिश्ते का भी ख्याल था, लेकिन उसकी बातों से ,..और इतना बुद्धू भी नहीं था की उसकी बातें इशारे न समझता हो , वो जान गया था की वो गरमा रही है

और गाँव का , उसके स्कूल के आसपास का , किसी सहेली का भाई उसे ठोंक ही देगा , अभी नहीं तो महीने दो महीने के अंदर ही , और बाहर वाले से पेलवा के वो कहीं बदनाम न करे और उसको सब में बांटे,... उससे अच्छा तो वही,

घर का माल घर में इस्तेमाल होगा,


परेशानी उसको दूसरी हो रही थी. बचपन से वो गीता को बहुत प्यार करता था और अब न जाने कब से वो प्यार जवानी के प्यार में बदल गया था और अब गीता खुद भी,..

लेकिन वो गीता के चेहरे पे दर्द नहीं देख सकता था और उसका थोड़ा ज्यादा,...




और वैसे भी उसने अब उसकी कच्ची कली को देख लिया था, एकदम कसी चिपकी कोरी, लेने में तो बहुत मजा आएगा, आज के पहले भी उसने बहुत सी कच्ची कलियों की, लेकिन जैसा मज़ा इसके साथ आएगा , न कभी आया था न कभी आएगा,



पर उसे दर्द बहुत होगा, वो दर्द पीने की कोशिश करेगी, पर,...

लेकिन और कोई करेगा तो भी गितवा को दर्द होगा और वो पता नहीं कहाँ कैसे फाड़े उसकी, गन्ने के खेत में खाली थूक लगा के,... और वो कितना रोयेगी , चूतड़ पटकेगी वो और जोर जोर से, बिना फाड़े कौन छोड़ता है,...

और वो करेगा तो घर के कोल्हू में पेरा कडुवा तेल लगा के,



और लंड में भी अपना अच्छी तरह चुपड़ के , खूब सम्हाल के और पहली बार में बस थोड़ा सा,... घर की चीज कहाँ जा रही है, दूसरी तीसरी बार में ही पूरा पेलेगा। तो वो अगर उसका ख़याल करता है तो अब उसे, बस और आज माँ भी नहीं है,...

आज अगर उसने और इशारा किया तो रात में जब वो सो जायेगी, नहीं तो सबेरे होने के पहले तीन चार बजे,उस समय चीख पुकार होगी भी तो कोई सुनेगा नहीं , और फिर उस समय उसका,.... लेकिन आज की रात,... बहुत मन कर रहा था,

उसे दो ऊँटो वाला एक विज्ञापन याद आया और उसने अपने आप से मुस्कराते हुए बोला,...




समझदार बहन चोदते हैं,







और उधर सब दरवाजे खिड़की देख के बाहर गाय गोरु देख के किचेन में खाना लगाते गीता मन ही मन में मुस्करा रही थी, जिस तरह से भैया आज खुल के जोबन दबा रहा था , जिस तरह से उसका लंड फनफनाया था , और माँ भी नहीं थी आज लग रहा था उसकी सहेली का दरवज्जा खुल जाएगा।
Bhut hi shandaar.....ab lag rha hai... Aaj to Maa ki absent me naya darwaja khul hi jayega.....



Aur arvind ne bhi tel ki bottle pahle hi apne pass rakh li.... malum h ki aaj Raat khun khachaar to hona hi hai...



Lajawaab update
 

komaalrani

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शायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...

और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,.

जिस तरह आपने बचपन से लेकर जवानी तक एक महिला के जीवन को चित्रित किया है, उसने मुझे स्तब्ध कर दिया है।
मुझे खुशी है कि मुझे आपकी यह कृति पढ़ने को मिली

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।


" शायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...

और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,...

और चेहरे की सारी पीड़ा, दुखते बदन का दर्द मीठी मुस्कान में घोल के पिया से बिन बोले बोलती है, ' कुछ भी तो नहीं'. आंसू तिरती दिए सी बड़ी बड़ी आँखों में ख़ुशी की बाती जलाती है,... और शायद जीवन का सबसे बड़ा सुख,नारी जीवन की परणिति, सृष्टि के क्रम को आगे चलाने में उसका योगदान, ...

कितनी पीड़ा,... प्रसव पीड़ा से शायद बड़ी कोई पीड़ा नहीं और नए जन्में बच्चे का मुंह देखने से बड़ा कोई सुख नहीं स्त्री के लिए,

और उसके बदलाव के हर क्रम का साक्ष्य रहती हैं रक्त की बूंदे , यौवन के कपाट खुलने की पहली आहट, प्रथम मिलन,... और स्त्री से माँ बनना,... "


आपने मुझे निःशब्द कर दिया। जब मैंने उपरोक्त पंक्तियाँ लिखी थीं, मन के अंदर किसी भी लालची लिखने वाले की तरह ये ये आशा और लालसा दोनों थीं की कोई कम से कम इन पंक्तियों को कम से कम पढ़े, और हो सके तो सराहे भी. लेकिन उम्मीद बिलकुल नहीं थी. पर आप ने, जब पहली बार आप के दोनों कमेंट्स पढ़े तो मैं सोच नहीं पा रही थी कैसे धन्यवाद ज्ञापन करूँ, उसे जो खुद शब्दों की जादूगर है, और जिसकी कवितायें जो इस बार मेरी प्रेरणादायी लेखिका, इस समय फोरम पर सबसे पॉपुलर, उनकी रचना में श्रीवृद्धि करती हैं , तो उनकी तो उपस्थित मात्र ही मुझ जैसी कलम घसीट लेखिका की रचना पर (जिसके पाठक भी विरले हैं और सराहने वाले, मात्र मेरे मित्र, जो मित्रता का मन रखते कुछ अच्छा अच्छा बोलते हैं) आभार का कारण बनती। लेकिन इन पंक्तियों को उद्धृत कर आपने मुझे अपनी पंखी बना लिया।

और मुझे दुस्साहस भी दिया दो बातें शेयर करने की मेरे लिखने के बारे में।

पहली बात मैं मानती हूँ की हम जो यहाँ अवैतनिक, निज सुख के लिए लिखते हैं, कलम के सिपाही या मजदूर भले न हो लेकिन कलम के सौदागर भी नहीं है। इसलिए मेरी पहली प्रतिबध्दिता मेरी कलम के साथ है. मैं उसी तरह से लिखना चाहती हूँ जिसे अगर मैं फिर से पढूं ( तो सौ डेढ़ सौ वर्तनी की गलतियों के अलावा ) मुझे खुद अच्छा लगे.

और एक और मेरी कमजोरी है,महिला पात्र में जिसकी दृष्टि से कहानी को देखना चाहती हूँ और साथ में उसके अंतर्जगत की उथल पुथल, हलचल को भी इंगित करना, अपनी सीमाभर चाहती हूँ. में मानती हूँ की अक्सर न सिर्फ इस फोरम में बल्कि अन्य फोरमों में भी फीमेल सेंसुअसनेस, के पहलू बिन उजागर हुए रह जाते हैं. वह रमण करने योग्य है इसलिए रमणी है , उसकी कामना करते हैं , इसलिए काम्या है, पर देह की जरूरत या स्मर का असर, उसपर भी कम नहीं होता। उसी के साथ मुझे एक और चीज नहीं अच्छी लगाती है, नारी का, लड़की हो, महिला हो , उस का आब्जेक्टिफिकेशन या कामोडिफिकेशन। मेरे लेखे सबसे सुन्दर ' इरोटिक ' या श्रृंगार साहित्य है तो वो संस्कृत में, और महिलाओं की सेंसुअसनेस, जब देह सुख को हम पाप से जोड़ के नहीं देखते थे और इसके बाद रीति काल में ( इसलिए मैंने बिहारी के दोहे लाउंज में शुरू किया था पर किसी रससिद्ध मॉडरेटर की उसपर 'कृपा' हो गयी। )

मैं मानती हूँ की सेक्स, पुरुष के लिए शायद पांच सात मिनट का मामला रहे, पर महिला के लिए तो वो जीवन में मील का पत्थर होता है , जिससे वो अपनी जिंदगी के सोपान नापती है।

काफी कुछ अनर्गल शायद मैंने कह सुन दिया, ...

पर, एक बार पुन: कोटिश आभार, वंदन, नमन आपकी पंक्तियों के लिए , बस हो सके तो कभी कभार आती रहिये,
 

komaalrani

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Bhut hi shandaar.....ab lag rha hai... Aaj to Maa ki absent me naya darwaja khul hi jayega.....



Aur arvind ne bhi tel ki bottle pahle hi apne pass rakh li.... malum h ki aaj Raat khun khachaar to hona hi hai...



Lajawaab update
Ekdam sahi kaha aapane,...samjhdaar to hai hi vo hana thoda slow start hai,...lekin ek baar start hogaya to
 

komaalrani

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Doodh k karore.... aur gud ki kheer ..... aur lantern.......



Bhut jabardast tarike se shuruwat huyi hai......



Majedaar

Aur toofan aane wale hai... Dekho kya kya ujhadta hai ye toofaan
isliye to saat paart post karne pade jisse toofan aane ki bhi dastan bayan ho jaaaye
 

Real@Reyansh

हसीनो का फेवरेट
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हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।


" शायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...

और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,...

और चेहरे की सारी पीड़ा, दुखते बदन का दर्द मीठी मुस्कान में घोल के पिया से बिन बोले बोलती है, ' कुछ भी तो नहीं'. आंसू तिरती दिए सी बड़ी बड़ी आँखों में ख़ुशी की बाती जलाती है,... और शायद जीवन का सबसे बड़ा सुख,नारी जीवन की परणिति, सृष्टि के क्रम को आगे चलाने में उसका योगदान, ...

कितनी पीड़ा,... प्रसव पीड़ा से शायद बड़ी कोई पीड़ा नहीं और नए जन्में बच्चे का मुंह देखने से बड़ा कोई सुख नहीं स्त्री के लिए,


और उसके बदलाव के हर क्रम का साक्ष्य रहती हैं रक्त की बूंदे , यौवन के कपाट खुलने की पहली आहट, प्रथम मिलन,... और स्त्री से माँ बनना,... "


आपने मुझे निःशब्द कर दिया। जब मैंने उपरोक्त पंक्तियाँ लिखी थीं, मन के अंदर किसी भी लालची लिखने वाले की तरह ये ये आशा और लालसा दोनों थीं की कोई कम से कम इन पंक्तियों को कम से कम पढ़े, और हो सके तो सराहे भी. लेकिन उम्मीद बिलकुल नहीं थी. पर आप ने, जब पहली बार आप के दोनों कमेंट्स पढ़े तो मैं सोच नहीं पा रही थी कैसे धन्यवाद ज्ञापन करूँ, उसे जो खुद शब्दों की जादूगर है, और जिसकी कवितायें जो इस बार मेरी प्रेरणादायी लेखिका, इस समय फोरम पर सबसे पॉपुलर, उनकी रचना में श्रीवृद्धि करती हैं , तो उनकी तो उपस्थित मात्र ही मुझ जैसी कलम घसीट लेखिका की रचना पर (जिसके पाठक भी विरले हैं और सराहने वाले, मात्र मेरे मित्र, जो मित्रता का मन रखते कुछ अच्छा अच्छा बोलते हैं) आभार का कारण बनती। लेकिन इन पंक्तियों को उद्धृत कर आपने मुझे अपनी पंखी बना लिया।

और मुझे दुस्साहस भी दिया दो बातें शेयर करने की मेरे लिखने के बारे में।


पहली बात मैं मानती हूँ की हम जो यहाँ अवैतनिक, निज सुख के लिए लिखते हैं, कलम के सिपाही या मजदूर भले न हो लेकिन कलम के सौदागर भी नहीं है। इसलिए मेरी पहली प्रतिबध्दिता मेरी कलम के साथ है. मैं उसी तरह से लिखना चाहती हूँ जिसे अगर मैं फिर से पढूं ( तो सौ डेढ़ सौ वर्तनी की गलतियों के अलावा ) मुझे खुद अच्छा लगे.

और एक और मेरी कमजोरी है,महिला पात्र में जिसकी दृष्टि से कहानी को देखना चाहती हूँ और साथ में उसके अंतर्जगत की उथल पुथल, हलचल को भी इंगित करना, अपनी सीमाभर चाहती हूँ. में मानती हूँ की अक्सर न सिर्फ इस फोरम में बल्कि अन्य फोरमों में भी फीमेल सेंसुअसनेस, के पहलू बिन उजागर हुए रह जाते हैं. वह रमण करने योग्य है इसलिए रमणी है , उसकी कामना करते हैं , इसलिए काम्या है, पर देह की जरूरत या स्मर का असर, उसपर भी कम नहीं होता। उसी के साथ मुझे एक और चीज नहीं अच्छी लगाती है, नारी का, लड़की हो, महिला हो , उस का आब्जेक्टिफिकेशन या कामोडिफिकेशन। मेरे लेखे सबसे सुन्दर ' इरोटिक ' या श्रृंगार साहित्य है तो वो संस्कृत में, और महिलाओं की सेंसुअसनेस, जब देह सुख को हम पाप से जोड़ के नहीं देखते थे और इसके बाद रीति काल में ( इसलिए मैंने बिहारी के दोहे लाउंज में शुरू किया था पर किसी रससिद्ध मॉडरेटर की उसपर 'कृपा' हो गयी। )

मैं मानती हूँ की सेक्स, पुरुष के लिए शायद पांच सात मिनट का मामला रहे, पर महिला के लिए तो वो जीवन में मील का पत्थर होता है , जिससे वो अपनी जिंदगी के सोपान नापती है।

काफी कुछ अनर्गल शायद मैंने कह सुन दिया, ...

पर, एक बार पुन: कोटिश आभार, वंदन, नमन आपकी पंक्तियों के लिए , बस हो सके तो कभी कभार आती रहिये,
आज के इंटरनेट के काल्पनिक युग, में जीवन नीरस
सा होने के बावजूद आप की कहानियों में वो बात है जो एक अनोखे अनुभव का रंग भरा अनुभव मिलता है, ❤️

आप की सबसे बड़ी खूबी है कि मॉर्डन Background को आप देसी तड़के के साथ लिखती है, चरण स्पर्श 🙏🙏
 

komaalrani

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