Random2022
Active Member
- 557
- 1,350
- 123
Ab chandu ko apne takkar bhi bhabhi mili hai , bus talwar baaji sikhni haiदेवर की बारी,
उसकी पिचकारी
और मेरी बुर को भी अब उस सुपाड़े की आदत पड़ गयी थी, एक दो बार मैंने अपनी बुर को टाइट, ढीला किया , फिर देवर की कमर पकड़ के, नहीं धक्के नहीं मारे बस सरकना,... जैसे नटिनी की जवान लड़की सरसर सरसर बांस पर सरकती है न मेले में, बस उसी तरह, फिर अच्छी तरह से सरसों के तेल से पोत पोत के मैंने चिकना कर दिया था, ... पूरी ताकत मैं लगा रही थी, लेकिन मैं भी,... किसी आदमी का जितना होता है उतना तो मैं घोंट गयी थी , छह सात इंच, पर उसका तो बांस था,...
कुछ देर के लिए मैं फिर रुक गयी, लेकिन देवर से अब नहीं रहा गया, मैं भी गोल गोल कमर घुमा के , कभी आगे पीछे हो के , क्या कोई मरद चोदेगा जिस तरह से मैं ऊपर चढ़ के,... वो भी अब नीचे से धक्का लगा के साथ दे रहा था, पर जब उससे नहीं रहा गया तो मेरी पतली कमरिया पकड़ के, उसने मुझे अपनी ओर खींचा और नीचे से भी धक्का मारा, पांच छह धक्के और अब मैंने पूरा घोंट लिया था,
और उसकी छाती पे लेट के अपने जोबन कभी उसकी छाती पर रगड़ती कभी उठ के उसके होंठों पर रगड़ देती, और भौजी हो और होली न हो , तो हाथ फैला के बगल की नाली से कीच निकाल के एक बार फिर से उसके मुंह पे , सीने पे,
कुछ देर की मस्ती के बाद, कमान देवर ने अपने हाथ में ले ली , मैं अब नीचे थी वो ऊपर , लेकिन मैंने इत्ते कस के मूसल भींच रखा था , ज़रा भी सरक के बाहर नहीं आया,... और उसके बाद तो क्या उसने धुनाई की, हर धक्का बच्चेदानी पर लगता था, ...
मुझे अब समझ में आ रहा था , चार चार बच्चो वाली माँ, काम करने वाली सब क्यों हार मान जाती थी, साइज के साथ ये जो तूफान मेल चलाता था,... एक पल के लिए भी सांस नहीं लेने देता था, पर मैं पूरा साथ दे रही थी,नीचे से चूतड़ उछालती , उसकी पीठ पे अपने नाख़ून धंसाती , और ज़रा भी सुस्ताता वो तो उसकी माँ भीं सब गरिया देती, ... मैं कितनी बार झड़ी पता नहीं, तीन चार बार तो कम से कम , और मुझे झाड़ना आसान नहीं था, तब भी,
मुझे समझ में आ गयी थी इसकी परेशानी, जैसे कोई भुक्खड़ हो , लगता हो कहीं सामने से थाली न छीन जाए,... हबड़ हबड़, जल्दी जल्दी, बस जो दो चार बार औरतों ने उसे मना कर दिया, बस उसे लगा की वो मना करें उसके पहले अपने मन की कर ले,...
और टाइम भी उसे बहुत लगता था , ताकत भी बहुत थी और औजार भी पूरा बुलडोजर था ,... बस अगर यही काम वो धीमे धीमे करता , कुछ देर तक लड़की को उसके लंड की आदत लग जाती फिर , थोड़ा और , फिर थोड़ा और,...
और एक बार अगर चीख पुकार ज्यादा हो तो रुक के थोड़ा चुम्मा चाटी, थोड़ा चूँची चूसता, क्लिट सहलाता, और उसे इतना गरम कर देता की वो खुद चुदवाने के लिए चिल्लाने लगती,
जो लग जल्दी झड़ते है उन्हें हड़बड़ी होती है, पर इसको तो आराम आराम से,
तलवार जबरदस्त थी, तलवार चलाने की ताकत भी बहुत थी, बस तलवार के पैंतरे सीखने बाकी थे,...
और आखिर भौजाइयां क्यों होती हैं तो बस ये जिम्मेदारी मेरे ऊपर, चंदू का आज ब्रह्मचर्य तो मैंने तुड़वा ही दिया, अब उसे नंबरी चुदक्क्ड़ बनाना था, गाँव की जितनी कुँवारी लड़कियां उसकी बहनें लगती हैं, चुदी, बिनचुदी, सब पर उसे चढ़ाउंगी,..
पर अभी मैं उसे रोक नहीं रही थी, अब मैं उसके इन तूफानी धक्को का मजा ले रही थी, गाँव में इस तरह खुले में, मस्त चुदने का और वो भी ऐसे मूसल छाप से, पहला मौक़ा था मेरा,...
पूरे आधे घंटे की नॉन स्टाप चुदाई के बाद झड़ा वो और पांच दस मिनट मैं उसे कस के अपनी बांहों में रही, मेरी कल कल मेरे इस देवर ने ढीली कर दी थी... और जब वो निकला बाहर तो मेरी आँखे फैली की फैली रह गयीं, एक तो इतनी ज्यादा मलाई, उसके गाँव की सब कुँवारी गाभिन हो जातीं,...
मेरी कटोरी ऊपर तक बजबजा रही थी और साथ में बह बह के मेरी जाँघों पर ,
देवर भाभी की असली होली तो यही सफ़ेद रंग वाली होली है, पिचकारी तो मेरे इस देवर की जबरदस्त है ही, रंग भी खूब गाढ़ा और ढेर सारा,..दूसरी बात अच्छी तरह झड़ने के बाद भी , अभी भी ६-७ इंच का और जितना सोया उससे ज्यादा जागा।
और ऊपर से मेरे देवर के ब्रम्हचारी बनने का चक्कर,... मैं अलसा रही थी , और सोच रही थी,
गाँव का टेलीग्राफ, आज शाम नहीं तो कल तक पूरे गाँव की मेरी सारी जेठानियों, ननदों को मालूम पड़ जाएगा, ... उर्वशी मेनका की तरह, नयकी भौजी ने भी,... मैं अपने देवर को देख के मुस्करा रही थी, देखने में भी एकदम कामदेव का अंश, और तीर भी उसका,...
और वो भी मुस्करा रहा था, पहली बार वो किसी पर चढ़ा था और वो चीख चिल्ला नहीं रही थी, उसे गरिया नहीं रही थी,..
उसे अपनी ओर खींच लिया मैंने और बाँहों में भर के देर तक चूमती रही, होंठों पर मुंह में जीभ डाल के सीने पर अपने उभार रगड़ रगड़ के,... पता नहीं क्या खाते हैं इस गाँव के लौंडे, मरद,... झंडा खड़ा होना शुरू हो गया, अब वो खूंटा तो मेरा था तो बस मैंने अपने मुट्ठी में, नहीं नहीं मुठिया नहीं रही थी, बस हलके से पकड़ के महसूस कर रही थी, उसका कड़ापन, मुटाई,... इत्ता अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती,...
![]()