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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Random2022

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देवर की बारी,

उसकी पिचकारी




और मेरी बुर को भी अब उस सुपाड़े की आदत पड़ गयी थी, एक दो बार मैंने अपनी बुर को टाइट, ढीला किया , फिर देवर की कमर पकड़ के, नहीं धक्के नहीं मारे बस सरकना,... जैसे नटिनी की जवान लड़की सरसर सरसर बांस पर सरकती है न मेले में, बस उसी तरह, फिर अच्छी तरह से सरसों के तेल से पोत पोत के मैंने चिकना कर दिया था, ... पूरी ताकत मैं लगा रही थी, लेकिन मैं भी,... किसी आदमी का जितना होता है उतना तो मैं घोंट गयी थी , छह सात इंच, पर उसका तो बांस था,...



कुछ देर के लिए मैं फिर रुक गयी, लेकिन देवर से अब नहीं रहा गया, मैं भी गोल गोल कमर घुमा के , कभी आगे पीछे हो के , क्या कोई मरद चोदेगा जिस तरह से मैं ऊपर चढ़ के,... वो भी अब नीचे से धक्का लगा के साथ दे रहा था, पर जब उससे नहीं रहा गया तो मेरी पतली कमरिया पकड़ के, उसने मुझे अपनी ओर खींचा और नीचे से भी धक्का मारा, पांच छह धक्के और अब मैंने पूरा घोंट लिया था,

और उसकी छाती पे लेट के अपने जोबन कभी उसकी छाती पर रगड़ती कभी उठ के उसके होंठों पर रगड़ देती, और भौजी हो और होली न हो , तो हाथ फैला के बगल की नाली से कीच निकाल के एक बार फिर से उसके मुंह पे , सीने पे,





कुछ देर की मस्ती के बाद, कमान देवर ने अपने हाथ में ले ली , मैं अब नीचे थी वो ऊपर , लेकिन मैंने इत्ते कस के मूसल भींच रखा था , ज़रा भी सरक के बाहर नहीं आया,... और उसके बाद तो क्या उसने धुनाई की, हर धक्का बच्चेदानी पर लगता था, ...


मुझे अब समझ में आ रहा था , चार चार बच्चो वाली माँ, काम करने वाली सब क्यों हार मान जाती थी, साइज के साथ ये जो तूफान मेल चलाता था,... एक पल के लिए भी सांस नहीं लेने देता था, पर मैं पूरा साथ दे रही थी,नीचे से चूतड़ उछालती , उसकी पीठ पे अपने नाख़ून धंसाती , और ज़रा भी सुस्ताता वो तो उसकी माँ भीं सब गरिया देती, ... मैं कितनी बार झड़ी पता नहीं, तीन चार बार तो कम से कम , और मुझे झाड़ना आसान नहीं था, तब भी,




मुझे समझ में आ गयी थी इसकी परेशानी, जैसे कोई भुक्खड़ हो , लगता हो कहीं सामने से थाली न छीन जाए,... हबड़ हबड़, जल्दी जल्दी, बस जो दो चार बार औरतों ने उसे मना कर दिया, बस उसे लगा की वो मना करें उसके पहले अपने मन की कर ले,...

और टाइम भी उसे बहुत लगता था , ताकत भी बहुत थी और औजार भी पूरा बुलडोजर था ,... बस अगर यही काम वो धीमे धीमे करता , कुछ देर तक लड़की को उसके लंड की आदत लग जाती फिर , थोड़ा और , फिर थोड़ा और,...

और एक बार अगर चीख पुकार ज्यादा हो तो रुक के थोड़ा चुम्मा चाटी, थोड़ा चूँची चूसता, क्लिट सहलाता, और उसे इतना गरम कर देता की वो खुद चुदवाने के लिए चिल्लाने लगती,



जो लग जल्दी झड़ते है उन्हें हड़बड़ी होती है, पर इसको तो आराम आराम से,



तलवार जबरदस्त थी, तलवार चलाने की ताकत भी बहुत थी, बस तलवार के पैंतरे सीखने बाकी थे,...

और आखिर भौजाइयां क्यों होती हैं तो बस ये जिम्मेदारी मेरे ऊपर, चंदू का आज ब्रह्मचर्य तो मैंने तुड़वा ही दिया, अब उसे नंबरी चुदक्क्ड़ बनाना था, गाँव की जितनी कुँवारी लड़कियां उसकी बहनें लगती हैं, चुदी, बिनचुदी, सब पर उसे चढ़ाउंगी,..




पर अभी मैं उसे रोक नहीं रही थी, अब मैं उसके इन तूफानी धक्को का मजा ले रही थी, गाँव में इस तरह खुले में, मस्त चुदने का और वो भी ऐसे मूसल छाप से, पहला मौक़ा था मेरा,...

पूरे आधे घंटे की नॉन स्टाप चुदाई के बाद झड़ा वो और पांच दस मिनट मैं उसे कस के अपनी बांहों में रही, मेरी कल कल मेरे इस देवर ने ढीली कर दी थी... और जब वो निकला बाहर तो मेरी आँखे फैली की फैली रह गयीं, एक तो इतनी ज्यादा मलाई, उसके गाँव की सब कुँवारी गाभिन हो जातीं,...

मेरी कटोरी ऊपर तक बजबजा रही थी और साथ में बह बह के मेरी जाँघों पर ,



देवर भाभी की असली होली तो यही सफ़ेद रंग वाली होली है, पिचकारी तो मेरे इस देवर की जबरदस्त है ही, रंग भी खूब गाढ़ा और ढेर सारा,..दूसरी बात अच्छी तरह झड़ने के बाद भी , अभी भी ६-७ इंच का और जितना सोया उससे ज्यादा जागा।


और ऊपर से मेरे देवर के ब्रम्हचारी बनने का चक्कर,... मैं अलसा रही थी , और सोच रही थी,

गाँव का टेलीग्राफ, आज शाम नहीं तो कल तक पूरे गाँव की मेरी सारी जेठानियों, ननदों को मालूम पड़ जाएगा, ... उर्वशी मेनका की तरह, नयकी भौजी ने भी,... मैं अपने देवर को देख के मुस्करा रही थी, देखने में भी एकदम कामदेव का अंश, और तीर भी उसका,...




और वो भी मुस्करा रहा था, पहली बार वो किसी पर चढ़ा था और वो चीख चिल्ला नहीं रही थी, उसे गरिया नहीं रही थी,..



उसे अपनी ओर खींच लिया मैंने और बाँहों में भर के देर तक चूमती रही, होंठों पर मुंह में जीभ डाल के सीने पर अपने उभार रगड़ रगड़ के,... पता नहीं क्या खाते हैं इस गाँव के लौंडे, मरद,... झंडा खड़ा होना शुरू हो गया, अब वो खूंटा तो मेरा था तो बस मैंने अपने मुट्ठी में, नहीं नहीं मुठिया नहीं रही थी, बस हलके से पकड़ के महसूस कर रही थी, उसका कड़ापन, मुटाई,... इत्ता अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती,...

Ab chandu ko apne takkar bhi bhabhi mili hai , bus talwar baaji sikhni hai
 

motaalund

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बिल्कुल सही ढंग से ट्रेनिंग दी है चाची ने।


🤩🤩🤩🤩🤩
चाची को इतने सालों का एक्सपेरिएंस है....
एकदम ट्रेंड बना कर छोड़ेगी....
 

Random2022

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Yeh
मज़ा देवर की पिचकारी का -होली में






,... झंडा खड़ा होना शुरू हो गया, अब वो खूंटा तो मेरा था तो बस मैंने अपने मुट्ठी में, नहीं नहीं मुठिया नहीं रही थी, बस हलके से पकड़ के महसूस कर रही थी, उसका कड़ापन, मुटाई,... इत्ता अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती,...



और अब वो चालू हो गया, मैंने ब्रेक तो नहीं लगाया, लेकिन कुछ इशारे से कुछ बोल के कुछ उसके हाथों को खिंच के, ... फोरप्ले, एक लड़की के कितने काम केंद्र होते हैं धीरे, धीरे , कन्धों को, पीठ के ऊपरी हिस्से को जाँघों के अंदरूनी भाग को कैसे हलके हलके सहला के, उँगलियों की टिप का कब इस्तेमाल करना है कब पूरी हथेली का लेकिन हलकी हवा की तरह, और कैसे पता चलेगा लड़की अब गरमा रही है , उसकी जाँघे अपने आप खुलने लगे, आंख्ने बंद होने लगे , मुट्ठी बार बार खोलने भींचने लगे,...



लेकिन बहुत देर मैंने इन्तजार नहीं कराया देवर को, मन तो मेरा भी कर रहा था, और अबकी मैंने कुछ किया भी नहीं, न मुख मैथुन , न मुठियाना,...




और ताकत का अंदाज तो मुझे पहली बार ही होगया था , लेकिन इस तरह से भी चोदा जा सकता है , चुदवाया जा सकता है, ... मैंने स्कूल की किताबों से ज्यादा , माँ की अलमारी से निकाल के चुपके चुपके हाईस्कूल के पहले आठ दस बार तो सचित्र कोकशास्त्र , ८४ आसन, असली, (बड़ा ) पढ़ चुकी थी पर उसमें भी ये सब नहीं था,


चार पांच तरीकों से तो खड़े खड़े,...




एक तो उसकी जाँघों के साथ उसकी हाथों में ताकत बहुत थी, हम दोनों आमने सामने, और एक हाथ से उसने मेरी एक जांघ उठा के , मेरी जांघ खुद फ़ैल गयी, दूसरा उसका हाथ मेरी पीठ पर थी, और मेरा पूरा वजन उसके दोनों हाथों पर, पहले तो धीरे धीरे , फिर इतने कस के धक्के मारे उसने ,

और फिर, मान गयी उसकी ताकत, दोनों हाथों से उसने मुझे उठा के और मैं अपनी दोनों लम्बी लम्बी टाँगे उसकी कमर में लपेट के, और मजाल है जो लंड सूत भर भी बाहर सरका हो, मेरे दोनों हाथ उसके गले के चारों ओर कंधे पर, मैं उससे चिपकी और वो मुझे गोद में उठाये खड़े खड़े चोद रहा था,...




लेकिन उसकी असली ताकत पता चली, जब उसने मुझे हवा में ही लिटाकर,... मैंने दोनों पैरों से कस के उसकी कमर को बाँध रखा था, उसके दोनों हाथ मेरे नितम्बों पर ,... और क्या धक्के मेरे मारे, मेरी ननदों के यार, उस बहनचोद देवर ने, हर धक्का एकदम अंदर तक बुर को फाड़ता, फैलाता रौंदता , सीधे बच्चेदानी तक, हर बार मैं झड़ने की कगार पर पहुँच जाती ,


लेकिन खड़े खड़े चुदने में मुझे सबसे ज्यादा मजा आया और सबसे कस के रगड़ाई हुयी, आम के पेड़ के नीचे, खूब पुराना, चौड़े तने वाला आम का पेड़ था, एकदम गझिन,...




बस उसी से सटा के, मेरी पीठ आम के पेड़ के तने से चिपकी,और मेरी एक टांग लता की तरह देवर की कमर से लिपटी, मैंने दोनों हाथों से उसकी पीठ को जकड़ रखा था,... और वो, मेरी ननदों का यार, अपनी बहनों का भतार, मेरा देवर,... पूरी तरह से मेरे अंदर धंसा, एकदम मुझसे चिपका, ... उसके हर धक्के पर मेरी सांस रुक जाती, मेरे बड़े बड़े उभार उसकी चौड़ी मजबूत छाती के नीचे दब कर पिस जाती, जो उन्होंने अपने बड़े खड़े होने का इतना गुमान था, मेरे जोबन को , आज मिला था उनके गर्व को चूर करने वाला, ...

और साथ में जिस तरह से मेरी पीठ, मेरे चूतड़ आम के पेड़ की छाल से रगड़ जाते, मैंने सोचा भी नहीं था की खुले आसमान के नीचे चुदने में इत्ता मज़ा आएगा,..



मैं कित्ती बार झड़ी, न वो धीमा हुआ , न मैंने गिना, बस चोद चोद के झाड़ झाड़ के मेरे देवर ने मुझे थेथर कर दिया था, ...




और जब वो झड़ा, वही आम का पेड़, उसी तने को पकड़ के मैं निहुरी हुयी थी, साथ भी दे रही थी उसका, बीच बीच में कभी धक्के मार के अपने चूतड़ से , कभी उसके मोटू को अपनी बुर में निचोड़ के तो कभी उसकी महतारी, अपनी चचिया सास को गरिया के,


" मादरचोद, लगता है अपनी महतारी क भोसड़े को चोद चोद के चोदना सीखे हो,... अरे ई तोहरे महतारी क भोंसड़ा अस ताल पोखरा नहीं है जहाँ हमरे मायके वाले डुबकी मारते हैं, हाथी ऊंट सब डूब आते हैं, ज़रा आराम से,... "



और महतारी का नाम लेने पे तो बस जैसे कोई घोड़े की ऐड मार दे , उसकी रफ़्तार दूनी हो जाती थी,...


लेकिन जब तक वो झड़ा मैं एकदम थेथर हो चुकी थी,... पर एक एक बूँद मैंने निचोड़ के, .. एक बूँद भी बाहर बहने नहीं दिया,




और जब मेरी हालत थोड़ी ठीक हुयी तो मैं समझी की देवर ने, खड़े खड़े या गोद में ले के,... वो नहीं चाहता था की मेरी देह में या साड़ी पर कीचड़ , अखाड़े की मट्टी न लगे,


लेकिन साड़ी पर तो पूरी की पूरी कीच लग ही चुकी थी, बस मैंने उतार के वहीँ लगे ट्यूबवेल पर धुल के,... और वो पास आता तो पानी उछाल के ,... साड़ी जब मैंने सूखने के लिए फैला दी, तो एक बार फिर से ट्यूबवेल के नीचे हम दोनों,




अबकी बदमाशी की शुरुआत मैंने की,.. और पहली बार ट्यूबवेल की मोटी धार के नीचे चुदी,


अब उसे जल्दी नहीं थी, न मुझे कभी वो पानी की धार के ठीक नीचे मेरे मोटे मोटे जोबन कर देता, तो कभी मेरी चूत, और पीछे से गपागप अपना लंड पेलता,



जहाँ वह लड़कियों के नाम से घबड़ाता, गाँव की औरतों की परछाई देख के दूर हो जाता, आज वहीँ एकदम खुले में , ट्यूबवेल के नीचे, अमराई में , अखाड़े में./
Yeh Chandu to Komal ji se 20 nikal, pehle baar komal ji ko achhi takkar ka mila hai koi. Tethar kar diya
 

motaalund

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Ekdam banars ki baat hi aur hai, meir ek lambi kahani ya upanyas kahun, ... PHAGUN ke DIN Chaar ( jp isi forum men pdf men hai ) men bhi BANARS ka bhoot detail men varnan hua hai aur Mohe Range de, isi forum ki ek aur kahani ki shuraat bhi banaras ke ek gaaon, ... Pandepur se sate base,... jahan ka Gulaabjanum mashoor hai,...se shuru hoti hai, Thanks for graicing the thread, agar in dono ko na padha ho to jaroor padhiyegaa
बनारस के फगुआ और चैताल(चैतार) तो रंग के मौसम में रस घोल देता है....
एक अजीब सा उत्साह समाया रहता है....
 
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motaalund

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Thanks so much aap muhse shabdheen kar dete hain thanks for all the nice words
नतमस्तक हूँ आपकी विनम्रता के आगे....
 
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motaalund

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Muje bhi to yahi pasand he. Aap ke abdaz me
सही है... एक विशिष्ट अंदाज .... जो कभी मुस्कान ला देता है.... तो कभी सोचने पर मजबूर कर देता है....
 
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motaalund

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आपने तीन शब्दों में एक चित्र खींच के रख दिया , सब भावनाएं उकेर के रख दी, कोटिशः आभार
ये शब्द तो तुच्छ हैं... आपकी कहानी के सामने....
 
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