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Thanks so muchसंगीतवा का एक-एक डायलोग ... नौ-लखे से बढ़ कर...
क्या मस्त ... गारी दे-देकर ... उकसा-उकसा कर...
और लास्ट के दो पैराग्राफ ... सृष्टि के नियम ... जो सामाजिक नियमों से भिन्न हैं... और जो सभी प्राणी जगत में विद्यमान है...
यही प्रसंग और विविधता इस कहानी को एक अलग जमात में खड़ा कर देते हैं...
lekin un dono paragraph ko padhne vaaale bhi chahaiye main lucky hun jo is kahnaai ko aap jaise readers milen, varna