Jiashishji
दिल का अच्छा
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Dono maa beti ke khel me bechara tadap raha haiमाँ बेटी
गीता ने छुटकी से आगे का हवाल बयान किया,...
और जब वो एकदम बौरा गया तो मैं उसे छोड़ के उछल के माँ की गोद में,...
हाँ छोड़ने के पहले थोड़ी देर तक उसकी गोद में बैठ के अपने छोटे छोटे चूतड़ उसके खड़े खूंटे पर रगड़ती रही,... सीधे पिछवाड़े के छेद में,....
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वो रोज दस बार इसी के लिए हाथ पैर जोड़ता था, पर मैं डरती थी, बहुत दर्द होगा , इसलिए मैंने साफ़ साफ़ बोल दिया , मेरे पीछे के पीछे पड़ोगे न तो आगे वाला भी नहीं मिलेगा।
और हाँ उसकी सारी गांठे भी चेक कर ली,... मैं स्कूल में प्रेजिडेंट गाइड थी , नॉट में पहला नंबर,... लाख कोशिश करे , छुड़ाने को तो छोड़ दीजिये,.. हिल भी नहीं सकता था।
और माँ की गोद में पहुँचते ही माँ चालू हो गयी।
मुझे दुलारते गोद में बिठा लिया अपने,एकदम छोटी बच्ची की तरह, और भैया को ललचाते मेरे छोट छोट जोबना दिखाते उभारते, कभी हलके हलके दबाते तो कभी नीचे से पकड़ के और उभार के पूछती,...
" हे बहनचोद,... कैसे हैं मेरी बेटी के छोट छोट जोबना, लोगे, दबाओगे, बहुत रस है इनमे,"
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और कभी झुक के चुसूर चुसूर चूसने लगती,... एक हाथ से मेरी चूँची मसली जाती और दूसरी माँ के होंठों के बीच,...भैया से भी ज्यादा कस के और मस्त चूसती थी,
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छोटे छोटे निपल एकदम खड़े, आँखे मेरी मस्ती से बंद, धड़कन तेजी से चलने लगती,...
और उधर मेरे ही हाथों ने माँ के ब्लाउज साड़ी में बंधा भैया छनछनाता रहता, उचकता रहता,...
लेकिन मैं भी तो उसी माँ की बेटी थी, पलटी मार के,..
अब माँ की खूब बड़ी बड़ी गदरायी, लेकिन एकदम कड़ी कड़ी चूँचियाँ मेरे हाथों में,,...
और मैं उन्हें दबाते मसलते, भैया को ललचाते, उसे चिढ़ाती उकसाती, बोलती,
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" अरे बहनचोद बन गए तो अब मादरचोद बनने की बारी है, बनोगे न. कितनी मस्त मस्त चूँचिया हैं , बहुत मजा आएगा दबाने,... "
तो माँ सीधे मेरी भरतपुर पे हमला करतीं, अपनी दो ऊँगली एक साथ पेल के हचक हचक के, ... और सब कुछ भैया को दिखाते,...
" क्यों स्साले, है न मस्त माल मेरी बेटी, अरे इसे मैंने पैदा इसीलिए किया था सोच के की बड़ी होके अपने भैया से पेलवायेगी,.... स्साले इत्ता देर काहें लगाए, इसकी झिल्ली फाड़ने में, ये तो कबसे गरमाई थी,... अब रोज पेलना इसको,... बिना नागा,... "
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और मैं भी माँ को तुरंत जवाब देती,...
" एकदम मेरा भैया है , इत्ता प्यारा सुन्दर, इत्ता मस्त है इसका हथियार, एकदम चुदवाउंगी,... और ये स्साला जरा भी ना नुकुर करेगा न तो खुद चढ़ के चोद दूंगी, मैं बहन हूँ,मेरा हक है, लेकिन भैया , माँ भी तो मस्त है, अब इनकी भी चढ़ाई कर ही दो,... इत्ता मस्त खड़ा किया हो ."
सच में हम दोनों की मस्ती सुन के तो किसी का भी,...
पर भैया का तो मैंने बांधते छानते ही चूस चूस के एकदम खड़ा कर दिया था , अब तो खूंटा एकदम पगला रहा था,...
वो तो गाँठ कस के मैंने बाँधी थी, लाख कोशिश कर ले छुड़ा नहीं सकता था,... आप सोच सकते हैं की एक जवानी की दहलीज पर खड़ी किशोरी, और दूसरी रस में डूबी एक प्रौढ़ा, २८ और ३८ के उभारों का जबरदस्त मुकाबला था , देख के किसी की भी हालत ख़राब हो जाती,
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पर माँ ने गाडी का गियर भी चेंज कर दिया और एक्सप्रेसवे वाली स्पीड,.. मैं नीचे वो ऊपर,...
लेकिन ये ध्यान रख रही थीं,... की उनके बेटा को सब कुछ देखने को मिले,... इसके पहले भी के बार मैंने कन्या रस वाला खेल खेला था लेकिन माँ खिलाड़िन नहीं अर्जुन अवार्ड वाली ओलिम्पिक चैम्पियन थी,...
और ताकत भी गजब की थी, भैया से कम नहीं ज्यादा ही होगी,.. जिस तरह ताकत से उन्होंने मेरी दोनों जाँघों को फैलाया, क्या कोई मरद फैलाता,... और फिर जीभ से चपर चपर, सिर्फ दोनों फांको पे, फिर जीभ अंदर जैसे भैया मस्त चोदता था,...
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उसी तरह, पूरी ताकत से पेला उन्होंने और साथ में दोनों हाथ मेरे छोट छोट जोबना पे, मसलना रगड़ना,...
और बेटा उनका देख रहा था तड़प रहा था,... ललचा रहा था,...
लेकिन माँ की ताल तलैया भी तो बेटी की जीभ के लिए लपलपा रही थी तो खुद उन्होंने,... वरना मेरी क्या बिसात थी की उनकी धृतराष्ट्र के सदृश पकड़ से छूट जाऊं,...
और मेरी जीभ माँ की ताल तलैया में डुबकी लगा रही थी, कुछ तो मैं नेचुरल थी कुछ माँ की उँगलियाँ , हाथ गाइड कर रहे थे और कुछ माँ की हरकतों से मैं सीख गयी थी,... और माँ भी कुछ देर में सिसकियाँ भरने लगी,..
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लेकिन एक तो वो इतनी जल्दी झड़ती नहीं थी, दूसरे झड़ना चाहती भी नहीं थी, उसका पहला टारगेट नयी नयी बस जवान हो रही बेटी थी , उसकी सब लाज सरम छुड़ा के उसे मजे लेना सिखाना,...
और असली टारगेट बेटा था, मस्त तगड़ा जवान,... उसे ललचाना,इतना पागल कर देना की जवानी की की अंधी आंधी में सब रिश्ते नाते भूल के सिर्फ
इसलिए थोड़ी देर में वो फिर मेरी जाँघों के बीच में और अबकी शुरू से ही फुल स्पीड, ट्रिपल अटैक, ... जोबन पर, जांघों के बीच मेरे रसकूप पे और साथ में जादू की बटन, मेरी क्लिट पे,...
थोड़ी देर में ही मेरी देह में तूफ़ान मचा हुआ था, तूफ़ान का केंद्र भले ही जाँघों के बीच में था,... पर कुछ ही देर में ज्वार भाटा पूरी देह में, ज्वालामुखी फूट रहे थे ,... मैं मचल रही थी उछल रही थी, सिसक रही थी , चीख रही थी,... और कुछ देर में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,
जैसे बेटा वैसी माँ,