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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ९८

अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६

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motaalund

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सोलहवां सावन, गुड्डी, उसकी भाभियों और अजय, रविंद्र से बढ़कर कहानी थी,

सावन की खासतौर से सोलहवें सावन की, और साथ में गांव की,...

मेरी कोशिश थी की एक किशोरी की तरुणी बनने की,... जैसे एक कली चटक के फूल बनती है उस पल को , संजोने की,...

कभी आपने देखा होगा जब एकदम सूखी मिट्टी पर बारिश की पहली बूंदे पड़ती हैं तो कित्ती सोंधी सोंधी सी खुशबू आती है,... तो बस उसी खुशबू को कैप्चर करने की,...

और उसके बाद कितनी भी बारिश हो , परनाले बहें, मेंड़ टूट जाए पर वो खुशबू दुबारा नहीं आती,... तो बस

रक्षाबंधन के साथ सावन की समाप्ति करना मुझे श्रेयस्कर लगा

क्योंकि उसके बाद एक तो दुहराव होता,.. दूसरे कहानी लिखने में मुझे सबसे अच्छा लगता है चेंज को दर्शाना, एटीट्यूड में नजरिये में

और रविन्द के साथ,.. आपने देखा होगा वो चेंज गुड्डी में हो गया था, पहल उसी ने किया, अब देह के सुख के लिए उसे घबड़ाहट झिझक नहीं हो रही थी, हाँ उसे अहसास था रविन्द की झिझक का,..

जबकि गाँव में वो शुरू में झिझकती थी , वहां आग लगाने वाली उसकी समौरिया चंदा थी, भाभियाँ थीं,... और अजय के साथ भी पहले मिलन की झिझक साफ़ साफ है , गाँव के रतजगे में गानों में सब खुल जाती है धीरे धीरे


तो बस मुझे लगा की अब कहानी को आगे बढ़ाने से एक तो दुहराव होगा दूसरे अब पहली बारिश की खुशबू नहीं रहेगी ,... और कहानी लिखने में कहाँ रुका जाए , किस टर्न पे ये एक बड़ा मुश्किल चैलेन्ज रहता है , तो बस मेरी सोच यही थी
मैं आपसे सहमत हूँ... लेकिन रक्षाबंधन का गिफ्ट लिए बगैर... चंदा मामा की गवाही में.. कम से कम से एक राउंड... आखिर इस कहानी में रविंद्र का तकाजा कई बार आया...
और सबसे औजार का अधिकारी... जो छटे हुए छिनारों की भी चीखें निकलवा दे...
लेकिन वो अछूता रह गया... क्योंकि बाकी सब आपने पाठकों के कल्पनाओं पर छोड़ दिया...
ऐसा लगा कि मास्टर गोगो कह रहा हो... हाथ को आया मुँह न लगा...
 

motaalund

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Hoga hoga lekin pahli baar to kitani trick se abhi ekadh detailed episodes bhi honge threeosme ke
अभी ट्रेनिंग पीरियड है...
प्रैक्टिकल करके सीख रहा है...
लेकिन जब फॉर्म में आएगा तो मैराथन दौड़ भी जीत लेगा..
कभी धीरे-कभी तेज....
 
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motaalund

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Are vahi to Gitava se sb kissa ugalva rahi hai uske bhaai ka uske maa ke saath, chhutki ki jidd ka hi natija tha ki Geeta ne bataya,....
हमें तो छुटकी का आभारी होना चाहिए..
गीता-अरविंद के इस किस्से को उगलवाने और हम सबको इससे अवगत कराने के लिए...
 
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motaalund

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Tabhi to me kaheti hu. Chhutki komaliya ka chhutka roop he.
Or mukabla bhi hoga hi bhouji vs nanand chhhinaro ka. Me kahani nahi bhuli.

Tab bhi guddi ka tod bhi chhutki hi to banegi. Saree nannde bhoji ke dewaro or bhaiyao se fadvaegi.

Aage besabri se intjar.
इस कहानी में गुड्डी कहाँ से आ गई...
 
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motaalund

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असल में बिना झिझक हिचक और कुछ इस तरह के ' ट्रिक्स ' के इन्सेस्ट थोड़ा सा अस्वाभाविक लगता है,...


बात आपकी सही है भाई बहन ने मिल के,

इस तिकड़ी के खेल तमाशे और विस्तार से आगे भी एकाध पोस्ट में आएंगे
और आपकी लेखनी ने इसे स्वाभाविक रूप से... प्रस्तुत किया...
खास कर पहली बार माँ बेटे के रिश्तों की झिझक...
और उसके बाद बेटे को सिखाने की ललक.. सहज और अंतर्भूत लगी...
 
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motaalund

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विपरीत रति असल में प्रौढ़ा को ही सुहाती है

किशोरियों के लिए तो बस उत्सुकता और ' एक बार ट्राई करने में क्या हर्ज है ' वाली बात है

और गीता तो क्विक लर्नर है ही,... फिर माँ ऐसी गुरुआनी
ये गुरु ज्ञान तो माँ जैसी दक्ष और निपुण हीं अपने अगली पीढ़ी को दे सकती है...
 
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