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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ९६

ननद की सास, और सास का प्लान

Page 1005,


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भाग ४७

रोपनी
 

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भाग ४७


रोपनी





" तो फिर तो पूरे गाँव में आप के बारे में,... " छुटकी ने मुस्कराते हुए पूछा।


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" जितना न मेरे और अरविन्द भैया में जोड़ के गरमी है, उसके दूने से भी ज्यादा माँ गरमाई रहती थीं, और उन को लगता था, भाई अगर बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा, ओहमें कौन सरमाने , छुपाने क बात है, फिर गाँव जवार में तो सब कुछ,... और वो तो खुदे, गौना के पहले अपने एकलौते सगे भाई से गाभिन हो के आयी थीं, चुदवाने क बात तो छोडो,... तो वही,... हमसे ज्यादा तो वही,... " खिलखिलाती हुयी गीता ने छुटकी से कहा

"तो माँ ने क्या किया,... " छुटकी जानने को बेताब थी,...

" अरे माँ ने नहीं,शुरुआत तो हमीं किये, लेकिन माँ उसको और,... बचपन से हमारी आदत थी, जो काम भइया करता वो करने की जिद मैं भी करती, आखिर ढाई तीन साल की छुटाई बड़ाई,... उसके लिए साइकिल आयी तो मैं भी उसी की तरह कैंची चला के,...

तो रोज सुबह,... भैया रोपनी पे चला जाता था मुंह अँधेरे सब रोपनी वालियों को काम पे लगाने, कितनी आयीं नहीं आयीं , कौन से खेत में आज होना, फुलवा क माई ले आती थी रोपनी वालियों को बटोर के,... तो मैं भी जिद करने लगी की मैं भी जाउंगी भैया के साथ,...




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तो माँ ने मना नहीं किया बल्कि बोलीं की तू फुलवा की माई को नहीं जानती तुझे भी रोपनी पे लगा देगी,... लेकिन अच्छा है न खेती बाड़ी का काम भी,... "

"तो ",छुटकी से रहा नहीं गया फास्ट फारवर्ड करने के लिए वो बोली,...

" बस अगले दिन मैं भी सुबह मुंह अँधेरे, सूरज अभी निकला भी नहीं था चाँद ठीक से डूबा भी नहीं था, हाँ,... माँ ने मुझे पहनने के लिए अपनी एक बड़ी पुरानी घिसी साड़ी दी, की पानी मैं घुसना पडेगा , कीचड़ माटी लगेगी,... और ब्लाउज तो मेरे सिल ही गए थे,... तो बस साड़ी ब्लाउज पहन के, हाँ और गाँव में कोई औरत चड्ढी बनियान नहीं पहनती तो मैंने भी नहीं माँ की एक साडी और जो मेरा बलाउज दर्जिन भौजी ने सिया था वही पहन के निकल पड़ी, अरविन्द भैया के साथ, भैया ने भी बस बनियान और शॉर्ट्स "



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उसके बाद गीता ने रोपनी का हाल बयान किया


रोपनी में १५-२० औरतें, लड़कियां रही होंगी,... आधी तो करीब मेरी समौरिया, .. कुछ दो चार साल बड़ी, तो दो चार मुझसे भी एक दो साल छोटी,... मेरी समौरिया में आधी की शादी हो गयी थी, पर गौना किसी का नहीं गया था, बाकी में ज्यादा तो गाँव के रिश्ते से भौजाई ही लगती थीं, और दो चार फुलवा की माई की उमर की होंगी,...

फुलवा क माई, देह खूब भरी भरी, कड़ी कसी पिंडलियाँ, ब्लाउज से छलकते जोबन, ३८ + ही रहे होंगे, और सबसे रसीले उसके कटे तरबूज की तरह दोनों कसर मसर चूतड़, ... हाँ देख के लगता था ताकत बहुत होगी उसकी कलाई में और पूरी देह में भी, एकदम कड़ी उमर किसी ओर से ३२-३४ से ज्यादा नहीं लगती थी, फुलवा के साथ चलती थी तो उसकी बड़ी बहिन लगती थी. मज़ाक, छेड़ने में तो ग्वालिन भौजी से भी दो हाथ आगे,...



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सब गाँव की लड़कियां औरतें तो सब की सब गीता की जानी पहचानी,... सिवाय एक के,...

और वो एकदम मस्त माल लग रही थी, टनाटन, और खूब गर्मायी भी, कच्ची और कोरी,...

साफ़ था ये माल उसके गाँव का नहीं था, फुलवा के साथ ही खड़ी थी,... रोपनी के लिए , उमर में गीता से एक दो साल कम ही होगी, हंसती तो गाल में गड्ढे पड़ते,... आँखे खूब बड़ी बड़ी, गोरी,... उभार बस कच्चे टिकोरे, ... और सब लड़कियां ख़ास तौर से चमेलिया, फुलवा की छोटी बेटी, गाँव की बाकी लड़कियां और औरतें,... खुल के मज़ाक करतीं उसे छेड़तीं,...



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फुलवा की माँ काम बाँट रही थी जब गीता उसका भाई अरविन्द वहां पहुंचे,... और गीता को देख सबसे ज्यादा फुलवा खुश, और बाकी जो भौजाई लगती थीं , उन्होंने गीता को छेड़ना, चिढ़ाना शुरू कर दिया,...

लेकिन उसके भाई की निगाह तो उसी मस्त माल के कच्चे टिकोरों पे टिकी,

अरविंद ने ही सिर्फ एक छोटा सा शार्ट और बनियान खुले बांह की पहन रखी थी, उसकी बाँहों की एक एक मसल्स, सब मछलियां छलक रही थीं,... खुली जाँघों की मांसपेशियां भी उसकी ताकत बखान कर रही थीं, लेकिन उस की मन हालत उस कच्ची कली को देख के , उसका खड़ा मस्ताया खूंटा जो शार्ट को फाड़ रहा था , बता रहा था,... पूरे बित्ते भर का तन्नाया, रात में तीन बार अरविन्दअपनी सगी छोटी बहन और एक बार माँ को चोद के भी थका नहीं था , और कसे माल को देख के फिर फनफनाने लगा था।

और सब रोपनी वालियों की आँख कभी उस खूंटे पे तो कभी नए माल पे,...



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फुलवा अरविन्द भैया के साथ मिल के रोपनी क काम बाँट रही थी लेकिन उसके पहिले उस नए माल के बारे में अरविन्द भैया को बता दिया,...

" अरे ये मस्त माल, फुलवा क सगी ननद है छोटी, अरे कौन दूर गाँव है , आयी पांच दस दिन के के लिए, तो मैं इसको भी रोपनी के लिए ले आयी,... "



जैसे ही फुलवा की माँ अरविन्द भैया के साथ थोड़ा सा दूसरी ओर मुड़ी, फुलवा की ननद, फुलवा की छुटकी बहिनिया, चमेलिया को चिढ़ाने लगी,... ( रिश्ता भी ननद भौजाई का था )

" अरे तोहार बहिनिया क पेट हमार भैया पहले दिन फुलाय दिए, अइसन ताकत है हमरे भैया में, हमरे गाँव क लड़कों में, ... पहली बार में फाड़ेंगे भी गाभिन भी कर देंगे,... तोहार दिदिया, गौना के दस दिन में उलटी करने लगीं , खटट्टा मांगने लगी,... "



गीता ने चमेलिया की ओर देखा और वो भी उसे देख के मुस्करा दी , यानी उसको भी मालूम था की फुलवा का पेट फुलवाने वाला असल में कौन था,... पहले धक्के में रात में अमराई में,... गीता का भाई अरविन्द,... जवाब चमेलिया ने ही दिया,

" चला जब हमारे गाँव क लड़का चढ़िये न तोहरे ऊपर तो अपने भैया के भुलाय जाओगी। "



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गीता क्यों छोड़ती उसे आखिर गाँव के रिश्ते से फुलवा की ननद उसकी भी तो ननद लगेगी,... वो भी छेड़ते बोली,... "

" तो का तू अपने भैया से फड़वाय के आयी आयी हो ? अरे एक बार जब हमरे भैया चढ़ के हुमचीहें कस कस के,... न जब लौट के अपने गाँव क लड़कियों को बोलोगी न तो सब की सब यहाँ टांग उठाने आ जाएंगी,... "

लेकिन तब तक फुलवा अरविन्द को ले के आ गयी और अरविन्द को दिखाते बोली,

" अरे वो सामने जो गन्ने का खेत के पिछवाड़े गढ़ई है न वहां वाली रोपनी, के लिए अपने साथ ले जा के दिखाया दा,... आज वहां तोहरे साथ ,... तो फिर कल से हम लोगन के साथ,... गाँव क मेहमान है, तो तनी अच्छे से रोपनी,... "



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गीता के समझ में नहीं आया वहां कहाँ धान और और रोपनी, वो तो गन्ने के सबसे घने , और गन्ना इतना ऊंचा था की हाथी छिप जाए,... जहाँ ये धान का खेत ख़तम होता था वहीँ , सामने ही,..


लेकिन वो चुप रही, .. और अरविंद फुलवा की ननद को लेकर गन्ने की खेत की ओर मुड़ा भी नहीं था की फुलवा की माई ने गीता की ओर रुख किया और अपनी एक देवरानी को बुलाया,...

" हे चम्मो बो, तानी आवा,... नयको को आज ज़रा रोपनी ठीक से सिखावल जाए। "

कोयराने की चम्मो बो, गाँव के रिश्ते से भौजी ही लगती थीं, चार साल पहले गौना में उतरी थीं, लेकिन सब भौजाइयों में सबसे तेज, ननदों की रगड़ाई करने में, ... और अरविन्द को दिखाते हुए उन्होंने,...

असल में रोपनी में तो सब औरतें, लड़कियां साड़ी घुटने से ऊपर जाँघों तक, खींच के बांधती थी, की रोपनी के लिए झुकने पे धान के खेत के पानी और कीचड़ से साड़ी गंदी न हो जाए, फिर निहुर के चूतड़ उठा उठा के,... दोनों हाथ से सम्हाल सम्हाल के , मुलायम हाथों से,..

तो चम्मो बो और फुलवा की माई ने उसके भाई, अरविन्द के सामने ही, गीता को जबरन निहुरा के,... उसकी साड़ी उठायी तो,... एकदम पूरी कमर तक,... बुर गाँड़ सब साफ़ साफ़ दिख रहा था और दोनों में से छलकती उसकी भैया की मलाई भी, खूब गाढ़ी गाढ़ी,... और दोनों ने मिल के, साड़ी कमर से ही लपेट के ऐसे कस के खोंस के बाँध दी, की गीता के बस का भी नहीं था कुछ तोपना ढांकना,

उसके गोरे गोरे गोल छोटे छोटे चूतड़ एकदम खुले,

और रोपनी बिना गाने के हो और भौजी हों और ननद गरियाई न जाए,.. चम्मो बो ने टेर दिया फिर सब औरतों ने एक सुर में तेज आवाज में अगल बगल के खेत में भी आवाज जा रही थी,...


करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे, करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे,

कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे, कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे,

जाइला तो जाइला हम अरविंदवा क बहिनिया के पास रे,... जाइला तो जाइला हम गितवा के पास रे,...

उहे अरविंदवा क बहिनिया चोदनो के,... गितवा चोदनो के लागल चोदवास रे, लागल चोदवास रे।


जाइला तो जाइला गितवा चोदनो के पास रे,... उहै भाई चोदनो के लागल चोदवास रे।
 
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फुलवा की ननद




और गीता की रोपनी


तक फुलवा अरविन्द को ले के आ गयी और अरविन्द को दिखाते बोली,

" अरे वो सामने जो गन्ने का खेत के पिछवाड़े गढ़ई है न वहां वाली रोपनी, के लिए अपने साथ ले जा के दिखाय दा,... आज वहां तोहरे साथ ,... तो फिर कल से हम लोगन के साथ,... गाँव क मेहमान है, तो तनी अच्छे से रोपनी,...फुलवा क छोट ननद है "

अरविन्द की निगाह फुलवा की ननद के जोबन से नहीं हट रही थी, छोटे छोटे, अभी आये ही थे, लेकिन थे एकदम जानमारु. फुलवा क छोट ननद, मतलब फुलवा से छोटी तो है ही, फुलवा की छोटकी बहिनिया चमेलिया से भी कच्ची लग रही थी, गीतवा से तो साल दो साल, .... और फुलवा क ननद बजाय हिचकिचाने के और मुस्करा रही थी और बीच बीच में कनखियों से देख के मुस्करा रही थी,



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चम्मो बो और फुलवा की माई ने उसके भाई अरविन्द के सामने ही, गीता को जबरन निहुरा के,... उसकी साड़ी उठायी तो,... एकदम पूरी कमर तक,... बुर गाँड़ सब साफ़ साफ़ दिख रहा था और दोनों में से छलकती उसकी भैया की मलाई भी, खूब गाढ़ी गाढ़ी,... और दोनों ने मिल के, साड़ी कमर से ही लपेट के ऐसे कस के खोंस के बाँध दी, की गीता के बस का भी नहीं था कुछ तोपना ढांकना, उसके गोरे गोरे गोल छोटे छोटे चूतड़ एकदम खुले,

और रोपनी बिना गाने के हो, भौजी हों और ननद गरियाई न जाए,.. चम्मो बो ने टेर दिया फिर सब औरतों ने एक सुर में तेज आवाज में, अगल बगल के खेत में भी आवाज जा रही थी,...


करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे, करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे,

कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे, कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे,

जाइला तो जाइला हम अरविंदवा क बहिनिया के पास रे,... जाइला तो जाइला हम गितवा के पास रे,...

उहे अरविंदवा क बहिनिया चोदनो के,... गितवा चोदनो के लागल चोदवास रे, लागल चोदवास रे।

जाइला तो जाइला गितवा चोदनो के पास रे,... उहै भाई चोदनो के लागल चोदवास रे।


और गाने के साथ,... फुलवा की माई ने हचाक से अपनी दो मोटी मोटी उंगलिया गितवा की बुरिया में पेल दिया और इस ताकत के साथ की पहले धक्के में दोनों उँगलियाँ जड़ तक , भैया की रात भर की मलाई ने भी भी घुसना आसान कर दिया था, सब के साथ गाते हुए, फुलवा की माई ने चम्मो बो को ललकारा,..


" अरे देख इसके भाई अरविंदवा साले ने गाँड़ मारी है की नहीं, अपनी बहिनिया ... अपनी इस छिनार बहिनिया की,... की हम लोग मुट्ठी से मार मार के इसकी गाँड़ चाकर करें "

चूतड़ तो निहुरी हुयी गीता के तो खुले ही थे, बहुत प्यार से बाकी रोपनी वालियों को दिखाते हुए, पहले तो कम्मो बो ने सहलाया,फिर चांटे कस कस के दोनों चूतड़ों पर ... फिर गाँड़ दोनों अंगूठों से खूब कस के फैला के सब रोपनी वालियों को दिखाती बोली,

" अरे अइसन मस्त माल क गाँड़ तो कौनो गांडू ही होगा जो छोड़ेगा,... खूब हचक के इसके भाई अरविंदवा स्साले ने मारी है अपनी बहिनिया की गाँड़,... देखो अबतक मलाई छलछला रही है,... "




और पूरी ताकत से गाँड़ में भौजी ने दो ऊँगली एक साथ पेल दी. गीता जोर से चीखी , लेकिन गाने की तेज आवाज में कौन सुनता,

बुर और गाँड़ दोनों में ऊँगली गपागप अंदर बाहर हो रही थीं और गाना बदल गया था,




अरविंदवा स्साले क बहिना छिनार,... अरविंदवा स्साला, गांडू चोदे आपन बहिनिया के, आपने गितवा के,...



और फुलवा गितवा को रोपनी सिखा रही थी,

" दोनों हाथ से पकड़ ले , अरे जैसे अपने भाई का लंड पकड़ती हो , मुलायम हाथों से लेकिन हलकी सी ताकत लगा के, ... हाँ ऐसे ही उखाड़ो,... आराम से दोनों हाथ से,.. सम्हाल सम्हाल के , जैसे चोदवाना सीख गयी हो ये भी करते करते आ जाएगा,... ये सब तुझे करना है, कल आओगी तो इसका दूना करना होगा,.. "



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उसको सिखाते सिखाते फुलवा की माई बाकी रोपनी वालियों पर भी निगाह लगाए थी, ... और हड़का रही थी,


" किसी का ज़रा सा भी बचा, न तो समझ लो,... यही मुट्ठी गाँड़ में जायेगी,... "

और प्यार से गीता के गाल पे चिकोटी काटते बोली,

" और अगर तेरा बचा न तो तोहरे बुर और गाँड़ दुनो में मुट्ठी पेलायेगी और खाली हम नहीं , जितनी रोपनी में तोहार भौजाई हैं न सोब तोहार गाँड़ मारेगी, अरे भाई से गाँड़ तो रोज बिना नागा मरवाती हो तो कभी कभी भौजाई से भी मरवा लिया करों "

बाकी औरतों और लड़कियों की तरह, गीता की भी नजर बार उन घने गन्ने के खेतों की ओर चुपके से मुड़ जाती थी, जहाँ उस का भाई, अरविन्द फुलवा की छोटी ननद को रोपनी कराने ले गया था. पहले तो उसकी समझ में नहीं आ रहा था की गन्ने के खेत में रोपनी का क्या मतलब,... लेकिन अब वो भी समझ गयी बाकी रोपनी वालियों की तरह फुलवा की माँ की शरारत, ... खूब घने गन्ने के खेत, हाथी से भी ऊँचे,... भले उसके ऊपर गन्ने के खेत में चढ़ाई न हुयी हो , लेकिन गाँव की लड़की,... कब से उसे मालूम था अगर कोई लड़का किसी लड़की को गन्ने के खेत में ले जाता है तो क्यों ले जाता है .

गितवा मुस्करायी ये सोच के की पता तो फुलवा की ननदिया को भी होगा लेकिन उसे ये नहीं मालूम होगा की कितना मोटा गन्ना मिलेगा. जो फुलवा की ननदिया,मुझे, चमेलिया को , गाँव की बाकी लड़कियो को चिढ़ा रही थी जब अरविन्द भैया का घोंटेंगी तो पता चलेगा,...ऐसा परपारएगी, छरछरयेगी, वो चीख मचेगी की यहाँ तक सुनाई देगा।



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रोपनी तो उसका भाई अरविन्द करेगा, फुलवा की ननदिया की कुँवारी कच्ची बिल में अपने मोटे गन्ने की,... और आज फुलवा की ननदिया चाहे रोये चाहे चिल्लाये, चाहे लाख चूतड़ पटके उसका भाई उसकी फाड़ के ही छोड़ेगा, और मोटा कितना है उसका मूसल,... फिर कमर में ताकत,...


फुलवा की माँ और चम्मो बो, कोयराने वाली भौजी ने मिल के गीता को रोपनी सिखा दिया था, कैसे कोमल कोमल नवजात शिशु की तरह के धान के पौधों को अपने मुलायम हाथों से हलके हलके,... अभी बहुत सम्हाल के धीमे धीमे वो कर रही थी, पर दिमाग उसका अभी भी अपने भाई पे लगा था, ...

कितना बदमाश है, पहले फुलवा की फाड़ी, एकदम कोरी कच्ची चूत, और उसे गाभिन कर के गौने में बिदा किया, फिर फुलवा के सामने ही, फुलवा की छुटकी बहिनिया चमेलिया की भी फाड़ी, उससे भी छोटी ही होगी और आज ये फुलवा की ननद, ... वो भी चमेलिया की समौरिया ही होगी, गीता का तो मन कर रहा था उसका भाई आज अच्छी तरह से, ऐसे कस के पेले की फुलवा की ननदिया को मालूम हो जाय अपनी भौजाइ के मायके के लौंडों की लंड की ताकत. बहुत उछल रही थी न की उसके भाई ने फुलवा को पहली रात में ही गाभिन कर दिया, उसे क्या मालूम की किसके भाई ने गाभिन कर के भेजा है,...



उईईईईई ओह्ह्ह्ह जान गयी,.... गन्ने के खेत में से बहुत तेजी से चीख आयी, ....



" फट गयी, फुलवा की ननदिया की ,"

फुलवा की पट्टी वाली ही कोई लड़की खुश हो के बोली, जैसे ननदें गौने की रात, नयी नयी आयी भौजाई की चीख सुनने के लिए कान पारे रहती हैं,..




" अरे अभी कहाँ, ... अभी तो ई गितवा के खसम का मोटा सुपाड़ा घुसा होगा,... अभी तो पहली चीख है " ज्यादा समझदार फुलवा की माँ बोली ,

" अरे आपन बहिनिया क चोद चोद के , ई गितवा क गाँड़ मार मार के,... अरविंदवा क लंड और लोहे क खम्भा हो गया है , आज फुलवा क ननदिया क मुसीबत है"

गीता की गांड में घचाघच ऊँगली पेलतीं, चम्मो बो बोलीं,



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गीता कसमकस कर रही थी,... लेकिन दो उँगलियाँ अंदर जड़ तक उसके पिछवाड़े घुसेड़ रखी थी भौजी ने, ... और के हचक के गाँड़ मार रही थीं,और आगे बुरिया में फुलवा क माई क दो मोटी मोटी उँगलियाँ, कभी चूत के अंदर करोचती तो कभी कैंची की तरह दोनों उँगलियाँ फैला देती तो गीता की बुर फटने लगती, ऊपर से वो हड़का रही थी,

" हे बबुनी रोपनी करे आयी हो , तो फुलवा क माई क बात माने क होई, ... हम लोग आपन काम करब तू आपन, रोपनी में एकदम कमी नहीं होना चाहिए,... "

जैसे मजा भैया के लंड से बुरिया में आता था वैसा ही फुलवा क माई क ऊँगली से आ रहा था, ऐसे मस्त चोद रही थी वो, .. और एक साथ दोनों बिल में ऊँगली हो रही थी , किसी रोपनी करती जवान लड़की ने जो गीता के बगल में ही थी , गितवा के भाई अरविन्द का नाम लेके उसे छेड़ा तो एक खेली खायी बड़ी उमर की औरत बोल पड़ी,

" अरे जउन ताकत बहन चोदने से लंड में आती है, वो भी सगी, वो कउनो चीज से नहीं आ सकती,... अरे महीने भर का कहते हैं , उ शिलाजीत, ... असली वाला, ... खाये, सांडे क तेल लगाए उतनी ताकत तो एक बार बहिनिया चोदने से आ जाती है,... "

सब लड़कियां खिलखिलाने लगीं तो उन्होंने लड़कियों को हड़काया,

" अरे तो सब काहें मुंह बंद कर के , खी खी खी खाली,... कुछ गाना वाना गाओ,... "
 
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रोपनी की मस्ती






जैसे मजा भैया के लंड से बुरिया में आता था वैसा ही फुलवा क माई क ऊँगली से आ रहा था, ऐसे मस्त चोद रही थी वो, .. और एक साथ दोनों बिल में ऊँगली हो रही थी ,

किसी रोपनी करती जवान लड़की जो गीता के बगल में ही थी , उसके भाई,अरविंदवा का नाम लेके उसे छेड़ा तो एक खेली खायी बड़ी उमर की औरत बोल पड़ी,

" अरे जउन ताकत बहन चोदने से लंड में आती है, वो भी सगी, वो कउनो चीज से नहीं आ सकती,... अरे महीने भर का कहते हैं , उ शिलाजीत, ... असली वाला, ... खाये, सांडे क तेल लगाए उतनी ताकत तो एक बार बहिनिया चोदने से आ जाती है,... "

सब लड़कियां खिलखिलाने लगीं तो उन्होंने लड़कियों को हड़काया,

" अरे तो सब काहें मुंह बंद कर के , खी खी खी खाली,... कुछ गाना वाना गाओ,... "

और एक नयी आयी भौजाई ने गाना छेड़ दिया गाली फिर गीता और उसके भैया को ले के,...



अरिया अरिया रईया बुआवे, बीचवा बोवावे चौरइया जी,

अरे सगवा खोटन गयी अरविंदवा क बहिनी, सगवा खोटनं गयी गितवा छिनरी

अरे बुरिया में घुस गईल लकडिया जी, अरे भोंसडे में घुस गइल लकडिया जी

अरे दौड़ा दौड़ा अरविन्द भैया, -अपने मुंहवा से खींचा, अरे हमरी बुरिया से खींचा लकडिया जी।

अरे एक पग गयली दूसर पग गेलीन, अरे गितवा क गंडियो में घुस घयल लकडिया जी


अरे दौड़ा दौड़ा अरविन्द भैया गंडिया से खींचा लकडिया



और तभी जोर की चीख आयी गन्ने के खेत से,...

उईईईईई ओफ़्फ़्फ़्फ़ नहीं , जान गयी,... उईईई

उईईईईई नहीं नहीं , और फिर रोने कराहने की आवाज और फिर चीखने की, ...

अब फटी है , फुलवा की ननदिया की ,जिंदगी भर ये गाँव याद रखेगी , फुलवा की माई बोली।



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और गीता को हड़काया

तू अपना काम कर , तेरा भाई अपना काम कर रहा है ,...

फुलवा की माई का बायां हाथ तो गितवा की चूत की रगड़ाई में जुटा था,लेकिन दाएं हाथ से वो गीता का हाथ पकड़ के उसे रोपनी करना सिखा रही थी, और गीता के कान भले ही गन्ने के खेत से निकलती चीखों से चिपके थे, पर,... अब उसने भी धीरे धीरे रोपनी करना सीख लिया था,... लेकिन उसकी हालत ख़राब कर रही थी, फुलवा की माई की दोनों मोटी मोटी उँगलियाँ,... जैसे उसके भैया का मोटा तगड़ा लंड जब उसकी बुर में घुसता था,.... दरेरता, रगड़ता, घिसटता, फाड़ता,... तो उसकी चीख और सिसकी साथ साथ निकलती, दर्द और मजे दोनों का अहसास होता और बिलकुल उसी तरह,



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लेकिन फुलवा की माई की उँगलियों में एक बात थी, उन्हें ( या फुलवा की माई को ,) बुर के अंदर का पूरा भूगोल मालूम था , उस प्रेम गली का, कभी वो ऊँगली करती करती, उसे मोड़ लेती थी और उँगलियों की टिप से बुर की अंदरूनी दीवाल को करोदती,रगड़ती और वहां छिपे हजारो तंत्रिकाएं झंकृत हो उठतीं, जैसे बरसों से पड़े सितार को किसी कुशल वादिका की उँगलियों ने छेड़ दिया हो. और साथ साथ उँगलियाँ मुड़ने से एक ओर तो ऊँगली की टिप कहर ढ़ातीं, और दूसरी ओर की गीता की बुर की दीवाल पे फुलवा की माई की उँगलियों के नकल रगड़ते कस कस के, मजे से बस जान नहीं निकलती और वो बस झड़ने के कगार पे आ जाती तो फुलवा की माई उँगलियों को सीधा करके बस जस का तस छोड़ देती एकदम अच्छे बच्चो की तरह,...

हाँ अगर रोपनी में जरा भी ढील हुयी तो वो कैंची की दोनों फाल की तरह, दोनों उँगलियाँ पूरी ताकत से फैला देती और बस गीता अपना पूरा ध्यान, रोपनी पे,

गीता ऐसी नयी बछेड़ियों को 'सब सिखाने पढ़ाने में' फुलवा की माई असली मास्टराइन थी.

लेकिन अब गीता रोपनी मन लगा के कर रही थी, मस्ती से बाकी रोपनी वालियों की बात के चिढ़ाने के गालियों के जो सब की सब, उसको और उसके भाई अरविन्द को लगा के थीं एक से एक गन्दी गालियां एकदम खुली खुली,... और अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर उँगलियाँ घचर घचर, अगवाड़े फुलवा की माई के खेले हुए हाथ और पिछवाड़े कोयराने वाली नयकी भौजी, चम्मो बो, जिनसे सब ननदें पनाह मांगती थीं, ...

दो तीन बार फुलवा की माई उसे झड़ने के कगार पे ले गयी, जैसे उसका भाई ले जा के रुक जाता था, ... पर अचानक चौथी बार वो नहीं रुकी और दोनों उँगलियों के साथ अंगूठा भी क्लिट पे मैदान में आगया और गितवा झड़ने लगी, पूरी देह गिनगीना रही थी काँप रही थी और नयकी भौजी ने दोनों ऊँगली से गाँड़ मारने की रफ्तार भी बढ़ा दी, और साथ में बाकी लड़कियों को ललकारा,

" हे छुटकी सब, अरे ये नयकी रोपनी वाली क अंचरा ना खुलल अब तक, खाली अपने भाई से चुसवाये मलवायेगी, का कुल जांगर तू सब अपने अपने भाई से चोदवाये में, ..."



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गीता को समझ में नहीं आया पर दो तीन लड़कियां,

एक तो वो समझ गयी चमेलिया थी, फुलवा की छुटकी बहिनिया, उससे भी उमर में बारी और दो तीन और उसी की समौरिया, सब छांप ली अंचरा हटा, ब्लाउज खुला नहीं , सब बटन टूट टाट के धान के खेत में और दुनो जोबना बाहर,...


चमेलिया ने धान के खेत में से ढेर सारा कीचड़ निकाल के उसकी एक छोटी छोटी चूँची पे लपेट दिया और लगी रगड़ने मसलने, क्या कोई लौंडा चूँची मसलेगा,...


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गीता सोच रही थी उसके भाई ने ही तो इसकी भी झिल्ली फाड़ी थी,... चमेलिया गीता के निपल को पकड़ के कस कस के उमेठ रही थी , और बाकी दोनों लड़कियां, चमेलिया की ही पट्टी की, दूसरे जोबन में कीचड़ मर्दन कर रही थीं,

लेकिन अब तक गितवा भी बाकी रोपनी वालियों के ही रंग में रंग गयी थी, उसने भी थोड़ा सा कीचड़ निकाल के चमेलिया के चूतड़ पे लपेटते उसे चिढ़ाया,...

'हमरे भाई क चोदी,...'

" ठीक कह रही हो, हम दोनों एक ही लंड के चोदे हैं " खिलखिलाती हुयी चमेलिया ने अब कीचड़ गितवा के चूतड़ पे लपेटते हुए जवाब दिया,...



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और फुलवा की माई की दोनों उँगलियों की रफ्तार एकदम तूफ़ान मेल की तरह , और गितवा फिर झड़ने लगी, फिर दुबारा, तिबारा, झड़ के थेथर हो गयी,

गालियां और तेज और खुली , सब की सब गितवा क नाम ले ले के,... फिर सब लड़कियां उसके पीछे पड़ गयी और उससे दस बार जोर जोर से कबुलवाया, ...

हाँ उसका भाई अरविंदवा उसे चोदता है , दिन रात चोदता है, गाँड़ भी मारता है, ... वो भाई चोद है , ...

और उसके बाद जब भौजाइयां पीछे पड़ गयीं तो सब कुछ गीता से ही कहलवाया,

उससे उसके भाई अरविन्द को एक से गन्दी गाली दिलवाई, बहनचोद , मादरचोद से लेकर,...

और सब पूछ डाला , केतना बड़ा लंड है, गाँड़ मरवाने के बाद लंड उसका चूसती है की नहीं,... उसके लंड पे खुद चढ़के गाँड़ मरवाई हो की नहीं,... और हाँ नहीं में जवाब नहीं , सब पूरा खोल के डिटेल में और जोर जोर से जिससे खाली वो सब रोपनी वाली नहीं , अगल बगल के खेत में भी जो रोपनी कर रही थीं वो सब भी अच्छी तरह सुन लें ,...



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उसकी गाँड़ मारती, नयकी भौजी चिढ़ाते बोलीं,...

" अरे यह गाँव क हमार कुल ननदें, भाई चोद हैं, सब भौजाई के आने के पहले ही अपने भैया को अपनी बुरिया क स्वाद चखा चखा के तैयार कर देती हैं , सब सब मर्द नम्बरी बहनचोद "

लेकिन ननदें कौन चुप रहने वाली थीं , एक बियाहिता अभी अभी गौने के बाद ससुराल से लौटी ननद सावन मनाने मायके आयी, चिढ़ाते बोली,...

" अरे तो भौजी लोगन को खुस होना चाहिए,की सीखा पढ़ा, खेला खेलाया मिला,... वरना निहुराय के कहीं अगवाड़े की बजाय पिछवाड़े पेल देता, महतारी बुरिया में चपाचप कडुवा तेल लगाय के बिटिया को चोदवाये के लिए भेजी थी और यहाँ दमाद सूखी सूखी गाँड़ मार लिया,... "

फिर तो ननदों की इतनी जोर की हंसी गूंजी,... और उसमें सबसे तेज गीता की हंसी थी, एक और कुँवारी ननद बोली,...

" अरे भौजी, तबे तो,... यहाँ के मरद एतने जोरदार है की सब भौजाई लोगन क महतारी दान दहेज़ दे के , ...चुदवाने के लिए आपन आपन बिटिया यहां भेजती हैं ,... "



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इस मस्ती के बीच रोपनी भी चल रही थी हाँ गन्ने के खेत से आने वाली चीखें अब थोड़ी देर पहले बंद हो गयी थीं और वहां से कभी कभी रुक के सिसकियाँ बस आतीं।

डेढ़ दो घण्टे से ऊपर हो गया था, भैया को फुलवा की बारी ननदिया को गन्ने के खेत में ले गए,...



जब रोपनी शुरू हुयी थी, बस आसमान में ललाई छानी शुरू भी नहीं हुयी थी ठीक से,... और अब सूरज निकल तो आया था, लेकिन बादल अभी भी लुका छिपी खेल रहे थे, सावन भादो की धूप छाँह का खेल, और काले काले घने बादल जब आसमान में घिर जाते तो दिन में रात होने सा लगता,... और कभी धूप धकिया के नीचे खेत में रोपनी करने वालियों की मस्ती देखने, झाँकने लगती और कभी उन की शैतानियों से शरमा के बादलों के पीछे मुंह छिपा लेती,...
 
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komaalrani

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इस फोरम की मेरी सर्वप्रिय लिखनेवालियों में से एक आरुषि दयाल जी ने मेरी दूसरी कहानी जोरू का गुलाम थ्रेड में अपनी कुछ पंक्तियाँ पोस्ट की हैं

उन्हें गागर में सागर भरने में महारत हासिल है, थोड़े में बहुत वाली,... लेकिन उनकी यह पंक्तियाँ एकदम अरविन्द और गीता के किस्से पे , इस इन्सेस्ट कथा पर भी भी फिर बैठती हैं


उनका आभार और उनकी पंक्तियाँ मैं जस की तस प्रस्तुत कर रही हूँ, इस इन्सेस्ट कथा पर


देख भैया का मोटा लौड़ा

डर लगता था थोड़ा थोड़ा

चुत भी गिल्ली हो जाती थी

रोज़ रात को तड़पाती थी

दिल करता था मुह में लू

जी भर के मैं इस से खेलू

चूस चूस के गिला कर दूं

नसों में उसकी लहू मैं भर दूं

फुलो की जो सेज सजाई

उस पर लिटा के मुझको भाई

चुची मेरी खूब दबाओ

अपना लौड़ा भी चुसवायो

अब करो ना जरा सी देरी

चुत चूस ले झट से मेरी

चुत मेरी को कर दो ठंडा

घुसा के अपना मोटा डंडा

मेरे नाज़ुक बदन से खेलो

जड़ तक अपना लौड़ा पेलो

मिट्टा दो मेरी चूत की खारीश

कर दो इसमें प्यार की बारिश

आरुषि दयाल


 

Rajizexy

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भाग ४७


रोपनी





" तो फिर तो पूरे गाँव में आप के बारे में,... " छुटकी ने मुस्कराते हुए पूछा।


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" जितना न मेरे और अरविन्द भैया में जोड़ के गरमी है, उसके दूने से भी ज्यादा माँ गरमाई रहती थीं, और उन को लगता था, भाई अगर बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा, ओहमें कौन सरमाने , छुपाने क बात है, फिर गाँव जवार में तो सब कुछ,... और वो तो खुदे, गौना के पहले अपने एकलौते सगे भाई से गाभिन हो के आयी थीं, चुदवाने क बात तो छोडो,... तो वही,... हमसे ज्यादा तो वही,... " खिलखिलाती हुयी गीता ने छुटकी से कहा

"तो माँ ने क्या किया,... " छुटकी जानने को बेताब थी,...

" अरे माँ ने नहीं,शुरुआत तो हमीं किये, लेकिन माँ उसको और,... बचपन से हमारी आदत थी, जो काम भइया करता वो करने की जिद मैं भी करती, आखिर ढाई तीन साल की छुटाई बड़ाई,... उसके लिए साइकिल आयी तो मैं भी उसी की तरह कैंची चला के,...

तो रोज सुबह,... भैया रोपनी पे चला जाता था मुंह अँधेरे सब रोपनी वालियों को काम पे लगाने, कितनी आयीं नहीं आयीं , कौन से खेत में आज होना, फुलवा क माई ले आती थी रोपनी वालियों को बटोर के,... तो मैं भी जिद करने लगी की मैं भी जाउंगी भैया के साथ,...




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तो माँ ने मना नहीं किया बल्कि बोलीं की तू फुलवा की माई को नहीं जानती तुझे भी रोपनी पे लगा देगी,... लेकिन अच्छा है न खेती बाड़ी का काम भी,... "

"तो ",छुटकी से रहा नहीं गया फास्ट फारवर्ड करने के लिए वो बोली,...

" बस अगले दिन मैं भी सुबह मुंह अँधेरे, सूरज अभी निकला भी नहीं था चाँद ठीक से डूबा भी नहीं था, हाँ,... माँ ने मुझे पहनने के लिए अपनी एक बड़ी पुरानी घिसी साड़ी दी, की पानी मैं घुसना पडेगा , कीचड़ माटी लगेगी,... और ब्लाउज तो मेरे सिल ही गए थे,... तो बस साड़ी ब्लाउज पहन के, हाँ और गाँव में कोई औरत चड्ढी बनियान नहीं पहनती तो मैंने भी नहीं माँ की एक साडी और जो मेरा बलाउज दर्जिन भौजी ने सिया था वही पहन के निकल पड़ी, अरविन्द भैया के साथ, भैया ने भी बस बनियान और शॉर्ट्स "



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उसके बाद गीता ने रोपनी का हाल बयान किया


रोपनी में १५-२० औरतें, लड़कियां रही होंगी,... आधी तो करीब मेरी समौरिया, .. कुछ दो चार साल बड़ी, तो दो चार मुझसे भी एक दो साल छोटी,... मेरी समौरिया में आधी की शादी हो गयी थी, पर गौना किसी का नहीं गया था, बाकी में ज्यादा तो गाँव के रिश्ते से भौजाई ही लगती थीं, और दो चार फुलवा की माई की उमर की होंगी,...

फुलवा क माई, देह खूब भरी भरी, कड़ी कसी पिंडलियाँ, ब्लाउज से छलकते जोबन, ३८ + ही रहे होंगे, और सबसे रसीले उसके कटे तरबूज की तरह दोनों कसर मसर चूतड़, ... हाँ देख के लगता था ताकत बहुत होगी उसकी कलाई में और पूरी देह में भी, एकदम कड़ी उमर किसी ओर से ३२-३४ से ज्यादा नहीं लगती थी, फुलवा के साथ चलती थी तो उसकी बड़ी बहिन लगती थी. मज़ाक, छेड़ने में तो ग्वालिन भौजी से भी दो हाथ आगे,...



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सब गाँव की लड़कियां औरतें तो सब की सब गीता की जानी पहचानी,... सिवाय एक के,...

और वो एकदम मस्त माल लग रही थी, टनाटन, और खूब गर्मायी भी, कच्ची और कोरी,...

साफ़ था ये माल उसके गाँव का नहीं था, फुलवा के साथ ही खड़ी थी,... रोपनी के लिए , उमर में गीता से एक दो साल कम ही होगी, हंसती तो गाल में गड्ढे पड़ते,... आँखे खूब बड़ी बड़ी, गोरी,... उभार बस कच्चे टिकोरे, ... और सब लड़कियां ख़ास तौर से चमेलिया, फुलवा की छोटी बेटी, गाँव की बाकी लड़कियां और औरतें,... खुल के मज़ाक करतीं उसे छेड़तीं,...



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फुलवा की माँ काम बाँट रही थी जब गीता उसका भाई अरविन्द वहां पहुंचे,... और गीता को देख सबसे ज्यादा फुलवा खुश, और बाकी जो भौजाई लगती थीं , उन्होंने गीता को छेड़ना, चिढ़ाना शुरू कर दिया,...

लेकिन उसके भाई की निगाह तो उसी मस्त माल के कच्चे टिकोरों पे टिकी,

अरविंद ने ही सिर्फ एक छोटा सा शार्ट और बनियान खुले बांह की पहन रखी थी, उसकी बाँहों की एक एक मसल्स, सब मछलियां छलक रही थीं,... खुली जाँघों की मांसपेशियां भी उसकी ताकत बखान कर रही थीं, लेकिन उस की मन हालत उस कच्ची कली को देख के , उसका खड़ा मस्ताया खूंटा जो शार्ट को फाड़ रहा था , बता रहा था,... पूरे बित्ते भर का तन्नाया, रात में तीन बार अरविन्दअपनी सगी छोटी बहन और एक बार माँ को चोद के भी थका नहीं था , और कसे माल को देख के फिर फनफनाने लगा था।

और सब रोपनी वालियों की आँख कभी उस खूंटे पे तो कभी नए माल पे,...



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फुलवा अरविन्द भैया के साथ मिल के रोपनी क काम बाँट रही थी लेकिन उसके पहिले उस नए माल के बारे में अरविन्द भैया को बता दिया,...

" अरे ये मस्त माल, फुलवा क सगी ननद है छोटी, अरे कौन दूर गाँव है , आयी पांच दस दिन के के लिए, तो मैं इसको भी रोपनी के लिए ले आयी,... "



जैसे ही फुलवा की माँ अरविन्द भैया के साथ थोड़ा सा दूसरी ओर मुड़ी, फुलवा की ननद, फुलवा की छुटकी बहिनिया, चमेलिया को चिढ़ाने लगी,... ( रिश्ता भी ननद भौजाई का था )

" अरे तोहार बहिनिया क पेट हमार भैया पहले दिन फुलाय दिए, अइसन ताकत है हमरे भैया में, हमरे गाँव क लड़कों में, ... पहली बार में फाड़ेंगे भी गाभिन भी कर देंगे,... तोहार दिदिया, गौना के दस दिन में उलटी करने लगीं , खटट्टा मांगने लगी,... "



गीता ने चमेलिया की ओर देखा और वो भी उसे देख के मुस्करा दी , यानी उसको भी मालूम था की फुलवा का पेट फुलवाने वाला असल में कौन था,... पहले धक्के में रात में अमराई में,... गीता का भाई अरविन्द,... जवाब चमेलिया ने ही दिया,

" चला जब हमारे गाँव क लड़का चढ़िये न तोहरे ऊपर तो अपने भैया के भुलाय जाओगी। "



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गीता क्यों छोड़ती उसे आखिर गाँव के रिश्ते से फुलवा की ननद उसकी भी तो ननद लगेगी,... वो भी छेड़ते बोली,... "

" तो का तू अपने भैया से फड़वाय के आयी आयी हो ? अरे एक बार जब हमरे भैया चढ़ के हुमचीहें कस कस के,... न जब लौट के अपने गाँव क लड़कियों को बोलोगी न तो सब की सब यहाँ टांग उठाने आ जाएंगी,... "

लेकिन तब तक फुलवा अरविन्द को ले के आ गयी और अरविन्द को दिखाते बोली,

" अरे वो सामने जो गन्ने का खेत के पिछवाड़े गढ़ई है न वहां वाली रोपनी, के लिए अपने साथ ले जा के दिखाया दा,... आज वहां तोहरे साथ ,... तो फिर कल से हम लोगन के साथ,... गाँव क मेहमान है, तो तनी अच्छे से रोपनी,... "



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गीता के समझ में नहीं आया वहां कहाँ धान और और रोपनी, वो तो गन्ने के सबसे घने , और गन्ना इतना ऊंचा था की हाथी छिप जाए,... जहाँ ये धान का खेत ख़तम होता था वहीँ , सामने ही,..


लेकिन वो चुप रही, .. और अरविंद फुलवा की ननद को लेकर गन्ने की खेत की ओर मुड़ा भी नहीं था की फुलवा की माई ने गीता की ओर रुख किया और अपनी एक देवरानी को बुलाया,...

" हे चम्मो बो, तानी आवा,... नयको को आज ज़रा रोपनी ठीक से सिखावल जाए। "

कोयराने की चम्मो बो, गाँव के रिश्ते से भौजी ही लगती थीं, चार साल पहले गौना में उतरी थीं, लेकिन सब भौजाइयों में सबसे तेज, ननदों की रगड़ाई करने में, ... और अरविन्द को दिखाते हुए उन्होंने,...

असल में रोपनी में तो सब औरतें, लड़कियां साड़ी घुटने से ऊपर जाँघों तक, खींच के बांधती थी, की रोपनी के लिए झुकने पे धान के खेत के पानी और कीचड़ से साड़ी गंदी न हो जाए, फिर निहुर के चूतड़ उठा उठा के,... दोनों हाथ से सम्हाल सम्हाल के , मुलायम हाथों से,..

तो चम्मो बो और फुलवा की माई ने उसके भाई, अरविन्द के सामने ही, गीता को जबरन निहुरा के,... उसकी साड़ी उठायी तो,... एकदम पूरी कमर तक,... बुर गाँड़ सब साफ़ साफ़ दिख रहा था और दोनों में से छलकती उसकी भैया की मलाई भी, खूब गाढ़ी गाढ़ी,... और दोनों ने मिल के, साड़ी कमर से ही लपेट के ऐसे कस के खोंस के बाँध दी, की गीता के बस का भी नहीं था कुछ तोपना ढांकना,

उसके गोरे गोरे गोल छोटे छोटे चूतड़ एकदम खुले,

और रोपनी बिना गाने के हो और भौजी हों और ननद गरियाई न जाए,.. चम्मो बो ने टेर दिया फिर सब औरतों ने एक सुर में तेज आवाज में अगल बगल के खेत में भी आवाज जा रही थी,...


करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे, करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे,

कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे, कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे,

जाइला तो जाइला हम अरविंदवा क बहिनिया के पास रे,... जाइला तो जाइला हम गितवा के पास रे,...

उहे अरविंदवा क बहिनिया चोदनो के,... गितवा चोदनो के लागल चोदवास रे, लागल चोदवास रे।


जाइला तो जाइला गितवा चोदनो के पास रे,... उहै भाई चोदनो के लागल चोदवास रे।
nice, madak,erotic update
👌👌👌💥💥💥💯💯💯
 

Rajizexy

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रोपनी की मस्ती






जैसे मजा भैया के लंड से बुरिया में आता था वैसा ही फुलवा क माई क ऊँगली से आ रहा था, ऐसे मस्त चोद रही थी वो, .. और एक साथ दोनों बिल में ऊँगली हो रही थी ,

किसी रोपनी करती जवान लड़की जो गीता के बगल में ही थी , उसके भाई,अरविंदवा का नाम लेके उसे छेड़ा तो एक खेली खायी बड़ी उमर की औरत बोल पड़ी,

" अरे जउन ताकत बहन चोदने से लंड में आती है, वो भी सगी, वो कउनो चीज से नहीं आ सकती,... अरे महीने भर का कहते हैं , उ शिलाजीत, ... असली वाला, ... खाये, सांडे क तेल लगाए उतनी ताकत तो एक बार बहिनिया चोदने से आ जाती है,... "

सब लड़कियां खिलखिलाने लगीं तो उन्होंने लड़कियों को हड़काया,

" अरे तो सब काहें मुंह बंद कर के , खी खी खी खाली,... कुछ गाना वाना गाओ,... "

और एक नयी आयी भौजाई ने गाना छेड़ दिया गाली फिर गीता और उसके भैया को ले के,...



अरिया अरिया रईया बुआवे, बीचवा बोवावे चौरइया जी,

अरे सगवा खोटन गयी अरविंदवा क बहिनी, सगवा खोटनं गयी गितवा छिनरी

अरे बुरिया में घुस गईल लकडिया जी, अरे भोंसडे में घुस गइल लकडिया जी

अरे दौड़ा दौड़ा अरविन्द भैया, -अपने मुंहवा से खींचा, अरे हमरी बुरिया से खींचा लकडिया जी।

अरे एक पग गयली दूसर पग गेलीन, अरे गितवा क गंडियो में घुस घयल लकडिया जी


अरे दौड़ा दौड़ा अरविन्द भैया गंडिया से खींचा लकडिया



और तभी जोर की चीख आयी गन्ने के खेत से,...

उईईईईई ओफ़्फ़्फ़्फ़ नहीं , जान गयी,... उईईई

उईईईईई नहीं नहीं , और फिर रोने कराहने की आवाज और फिर चीखने की, ...

अब फटी है , फुलवा की ननदिया की ,जिंदगी भर ये गाँव याद रखेगी , फुलवा की माई बोली।



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और गीता को हड़काया

तू अपना काम कर , तेरा भाई अपना काम कर रहा है ,...

फुलवा की माई का बायां हाथ तो गितवा की चूत की रगड़ाई में जुटा था,लेकिन दाएं हाथ से वो गीता का हाथ पकड़ के उसे रोपनी करना सिखा रही थी, और गीता के कान भले ही गन्ने के खेत से निकलती चीखों से चिपके थे, पर,... अब उसने भी धीरे धीरे रोपनी करना सीख लिया था,... लेकिन उसकी हालत ख़राब कर रही थी, फुलवा की माई की दोनों मोटी मोटी उँगलियाँ,... जैसे उसके भैया का मोटा तगड़ा लंड जब उसकी बुर में घुसता था,.... दरेरता, रगड़ता, घिसटता, फाड़ता,... तो उसकी चीख और सिसकी साथ साथ निकलती, दर्द और मजे दोनों का अहसास होता और बिलकुल उसी तरह,



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लेकिन फुलवा की माई की उँगलियों में एक बात थी, उन्हें ( या फुलवा की माई को ,) बुर के अंदर का पूरा भूगोल मालूम था , उस प्रेम गली का, कभी वो ऊँगली करती करती, उसे मोड़ लेती थी और उँगलियों की टिप से बुर की अंदरूनी दीवाल को करोदती,रगड़ती और वहां छिपे हजारो तंत्रिकाएं झंकृत हो उठतीं, जैसे बरसों से पड़े सितार को किसी कुशल वादिका की उँगलियों ने छेड़ दिया हो. और साथ साथ उँगलियाँ मुड़ने से एक ओर तो ऊँगली की टिप कहर ढ़ातीं, और दूसरी ओर की गीता की बुर की दीवाल पे फुलवा की माई की उँगलियों के नकल रगड़ते कस कस के, मजे से बस जान नहीं निकलती और वो बस झड़ने के कगार पे आ जाती तो फुलवा की माई उँगलियों को सीधा करके बस जस का तस छोड़ देती एकदम अच्छे बच्चो की तरह,...

हाँ अगर रोपनी में जरा भी ढील हुयी तो वो कैंची की दोनों फाल की तरह, दोनों उँगलियाँ पूरी ताकत से फैला देती और बस गीता अपना पूरा ध्यान, रोपनी पे,

गीता ऐसी नयी बछेड़ियों को 'सब सिखाने पढ़ाने में' फुलवा की माई असली मास्टराइन थी.

लेकिन अब गीता रोपनी मन लगा के कर रही थी, मस्ती से बाकी रोपनी वालियों की बात के चिढ़ाने के गालियों के जो सब की सब, उसको और उसके भाई अरविन्द को लगा के थीं एक से एक गन्दी गालियां एकदम खुली खुली,... और अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर उँगलियाँ घचर घचर, अगवाड़े फुलवा की माई के खेले हुए हाथ और पिछवाड़े कोयराने वाली नयकी भौजी, चम्मो बो, जिनसे सब ननदें पनाह मांगती थीं, ...

दो तीन बार फुलवा की माई उसे झड़ने के कगार पे ले गयी, जैसे उसका भाई ले जा के रुक जाता था, ... पर अचानक चौथी बार वो नहीं रुकी और दोनों उँगलियों के साथ अंगूठा भी क्लिट पे मैदान में आगया और गितवा झड़ने लगी, पूरी देह गिनगीना रही थी काँप रही थी और नयकी भौजी ने दोनों ऊँगली से गाँड़ मारने की रफ्तार भी बढ़ा दी, और साथ में बाकी लड़कियों को ललकारा,

" हे छुटकी सब, अरे ये नयकी रोपनी वाली क अंचरा ना खुलल अब तक, खाली अपने भाई से चुसवाये मलवायेगी, का कुल जांगर तू सब अपने अपने भाई से चोदवाये में, ..."



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गीता को समझ में नहीं आया पर दो तीन लड़कियां,

एक तो वो समझ गयी चमेलिया थी, फुलवा की छुटकी बहिनिया, उससे भी उमर में बारी और दो तीन और उसी की समौरिया, सब छांप ली अंचरा हटा, ब्लाउज खुला नहीं , सब बटन टूट टाट के धान के खेत में और दुनो जोबना बाहर,...


चमेलिया ने धान के खेत में से ढेर सारा कीचड़ निकाल के उसकी एक छोटी छोटी चूँची पे लपेट दिया और लगी रगड़ने मसलने, क्या कोई लौंडा चूँची मसलेगा,...


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गीता सोच रही थी उसके भाई ने ही तो इसकी भी झिल्ली फाड़ी थी,... चमेलिया गीता के निपल को पकड़ के कस कस के उमेठ रही थी , और बाकी दोनों लड़कियां, चमेलिया की ही पट्टी की, दूसरे जोबन में कीचड़ मर्दन कर रही थीं,

लेकिन अब तक गितवा भी बाकी रोपनी वालियों के ही रंग में रंग गयी थी, उसने भी थोड़ा सा कीचड़ निकाल के चमेलिया के चूतड़ पे लपेटते उसे चिढ़ाया,...

'हमरे भाई क चोदी,...'

" ठीक कह रही हो, हम दोनों एक ही लंड के चोदे हैं " खिलखिलाती हुयी चमेलिया ने अब कीचड़ गितवा के चूतड़ पे लपेटते हुए जवाब दिया,...



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और फुलवा की माई की दोनों उँगलियों की रफ्तार एकदम तूफ़ान मेल की तरह , और गितवा फिर झड़ने लगी, फिर दुबारा, तिबारा, झड़ के थेथर हो गयी,

गालियां और तेज और खुली , सब की सब गितवा क नाम ले ले के,... फिर सब लड़कियां उसके पीछे पड़ गयी और उससे दस बार जोर जोर से कबुलवाया, ...

हाँ उसका भाई अरविंदवा उसे चोदता है , दिन रात चोदता है, गाँड़ भी मारता है, ... वो भाई चोद है , ...

और उसके बाद जब भौजाइयां पीछे पड़ गयीं तो सब कुछ गीता से ही कहलवाया,

उससे उसके भाई अरविन्द को एक से गन्दी गाली दिलवाई, बहनचोद , मादरचोद से लेकर,...

और सब पूछ डाला , केतना बड़ा लंड है, गाँड़ मरवाने के बाद लंड उसका चूसती है की नहीं,... उसके लंड पे खुद चढ़के गाँड़ मरवाई हो की नहीं,... और हाँ नहीं में जवाब नहीं , सब पूरा खोल के डिटेल में और जोर जोर से जिससे खाली वो सब रोपनी वाली नहीं , अगल बगल के खेत में भी जो रोपनी कर रही थीं वो सब भी अच्छी तरह सुन लें ,...



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उसकी गाँड़ मारती, नयकी भौजी चिढ़ाते बोलीं,...

" अरे यह गाँव क हमार कुल ननदें, भाई चोद हैं, सब भौजाई के आने के पहले ही अपने भैया को अपनी बुरिया क स्वाद चखा चखा के तैयार कर देती हैं , सब सब मर्द नम्बरी बहनचोद "

लेकिन ननदें कौन चुप रहने वाली थीं , एक बियाहिता अभी अभी गौने के बाद ससुराल से लौटी ननद सावन मनाने मायके आयी, चिढ़ाते बोली,...

" अरे तो भौजी लोगन को खुस होना चाहिए,की सीखा पढ़ा, खेला खेलाया मिला,... वरना निहुराय के कहीं अगवाड़े की बजाय पिछवाड़े पेल देता, महतारी बुरिया में चपाचप कडुवा तेल लगाय के बिटिया को चोदवाये के लिए भेजी थी और यहाँ दमाद सूखी सूखी गाँड़ मार लिया,... "

फिर तो ननदों की इतनी जोर की हंसी गूंजी,... और उसमें सबसे तेज गीता की हंसी थी, एक और कुँवारी ननद बोली,...

" अरे भौजी, तबे तो,... यहाँ के मरद एतने जोरदार है की सब भौजाई लोगन क महतारी दान दहेज़ दे के , ...चुदवाने के लिए आपन आपन बिटिया यहां भेजती हैं ,... "



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इस मस्ती के बीच रोपनी भी चल रही थी हाँ गन्ने के खेत से आने वाली चीखें अब थोड़ी देर पहले बंद हो गयी थीं और वहां से कभी कभी रुक के सिसकियाँ बस आतीं।

डेढ़ दो घण्टे से ऊपर हो गया था, भैया को फुलवा की बारी ननदिया को गन्ने के खेत में ले गए,...



जब रोपनी शुरू हुयी थी, बस आसमान में ललाई छानी शुरू भी नहीं हुयी थी ठीक से,... और अब सूरज निकल तो आया था, लेकिन बादल अभी भी लुका छिपी खेल रहे थे, सावन भादो की धूप छाँह का खेल, और काले काले घने बादल जब आसमान में घिर जाते तो दिन में रात होने सा लगता,... और कभी धूप धकिया के नीचे खेत में रोपनी करने वालियों की मस्ती देखने, झाँकने लगती और कभी उन की शैतानियों से शरमा के बादलों के पीछे मुंह छिपा लेती,...
Gr8 update.
Didi tum ne khet ki Ropni ke sath sath ladkiyon ke kheton ki bhi ropni karva di.
Aru sis has decorated your update further. Unki poem ne apki update par "sone pe suhage"ka kaam kiya hai.

Gazab super duper hot update
👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
💥💥💥💥💥💥💥💥
💯💯💯💯💯💯
 

komaalrani

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nice, madak,erotic update
👌👌👌💥💥💥💯💯💯
Thanks so much first like ( aur abhi tak akeli) First comment and ekdam dil se Thanks again
 

pprsprs0

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भाग ४७


रोपनी





" तो फिर तो पूरे गाँव में आप के बारे में,... " छुटकी ने मुस्कराते हुए पूछा।


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" जितना न मेरे और अरविन्द भैया में जोड़ के गरमी है, उसके दूने से भी ज्यादा माँ गरमाई रहती थीं, और उन को लगता था, भाई अगर बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा, ओहमें कौन सरमाने , छुपाने क बात है, फिर गाँव जवार में तो सब कुछ,... और वो तो खुदे, गौना के पहले अपने एकलौते सगे भाई से गाभिन हो के आयी थीं, चुदवाने क बात तो छोडो,... तो वही,... हमसे ज्यादा तो वही,... " खिलखिलाती हुयी गीता ने छुटकी से कहा

"तो माँ ने क्या किया,... " छुटकी जानने को बेताब थी,...

" अरे माँ ने नहीं,शुरुआत तो हमीं किये, लेकिन माँ उसको और,... बचपन से हमारी आदत थी, जो काम भइया करता वो करने की जिद मैं भी करती, आखिर ढाई तीन साल की छुटाई बड़ाई,... उसके लिए साइकिल आयी तो मैं भी उसी की तरह कैंची चला के,...

तो रोज सुबह,... भैया रोपनी पे चला जाता था मुंह अँधेरे सब रोपनी वालियों को काम पे लगाने, कितनी आयीं नहीं आयीं , कौन से खेत में आज होना, फुलवा क माई ले आती थी रोपनी वालियों को बटोर के,... तो मैं भी जिद करने लगी की मैं भी जाउंगी भैया के साथ,...




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तो माँ ने मना नहीं किया बल्कि बोलीं की तू फुलवा की माई को नहीं जानती तुझे भी रोपनी पे लगा देगी,... लेकिन अच्छा है न खेती बाड़ी का काम भी,... "

"तो ",छुटकी से रहा नहीं गया फास्ट फारवर्ड करने के लिए वो बोली,...

" बस अगले दिन मैं भी सुबह मुंह अँधेरे, सूरज अभी निकला भी नहीं था चाँद ठीक से डूबा भी नहीं था, हाँ,... माँ ने मुझे पहनने के लिए अपनी एक बड़ी पुरानी घिसी साड़ी दी, की पानी मैं घुसना पडेगा , कीचड़ माटी लगेगी,... और ब्लाउज तो मेरे सिल ही गए थे,... तो बस साड़ी ब्लाउज पहन के, हाँ और गाँव में कोई औरत चड्ढी बनियान नहीं पहनती तो मैंने भी नहीं माँ की एक साडी और जो मेरा बलाउज दर्जिन भौजी ने सिया था वही पहन के निकल पड़ी, अरविन्द भैया के साथ, भैया ने भी बस बनियान और शॉर्ट्स "



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उसके बाद गीता ने रोपनी का हाल बयान किया


रोपनी में १५-२० औरतें, लड़कियां रही होंगी,... आधी तो करीब मेरी समौरिया, .. कुछ दो चार साल बड़ी, तो दो चार मुझसे भी एक दो साल छोटी,... मेरी समौरिया में आधी की शादी हो गयी थी, पर गौना किसी का नहीं गया था, बाकी में ज्यादा तो गाँव के रिश्ते से भौजाई ही लगती थीं, और दो चार फुलवा की माई की उमर की होंगी,...

फुलवा क माई, देह खूब भरी भरी, कड़ी कसी पिंडलियाँ, ब्लाउज से छलकते जोबन, ३८ + ही रहे होंगे, और सबसे रसीले उसके कटे तरबूज की तरह दोनों कसर मसर चूतड़, ... हाँ देख के लगता था ताकत बहुत होगी उसकी कलाई में और पूरी देह में भी, एकदम कड़ी उमर किसी ओर से ३२-३४ से ज्यादा नहीं लगती थी, फुलवा के साथ चलती थी तो उसकी बड़ी बहिन लगती थी. मज़ाक, छेड़ने में तो ग्वालिन भौजी से भी दो हाथ आगे,...



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सब गाँव की लड़कियां औरतें तो सब की सब गीता की जानी पहचानी,... सिवाय एक के,...

और वो एकदम मस्त माल लग रही थी, टनाटन, और खूब गर्मायी भी, कच्ची और कोरी,...

साफ़ था ये माल उसके गाँव का नहीं था, फुलवा के साथ ही खड़ी थी,... रोपनी के लिए , उमर में गीता से एक दो साल कम ही होगी, हंसती तो गाल में गड्ढे पड़ते,... आँखे खूब बड़ी बड़ी, गोरी,... उभार बस कच्चे टिकोरे, ... और सब लड़कियां ख़ास तौर से चमेलिया, फुलवा की छोटी बेटी, गाँव की बाकी लड़कियां और औरतें,... खुल के मज़ाक करतीं उसे छेड़तीं,...



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फुलवा की माँ काम बाँट रही थी जब गीता उसका भाई अरविन्द वहां पहुंचे,... और गीता को देख सबसे ज्यादा फुलवा खुश, और बाकी जो भौजाई लगती थीं , उन्होंने गीता को छेड़ना, चिढ़ाना शुरू कर दिया,...

लेकिन उसके भाई की निगाह तो उसी मस्त माल के कच्चे टिकोरों पे टिकी,

अरविंद ने ही सिर्फ एक छोटा सा शार्ट और बनियान खुले बांह की पहन रखी थी, उसकी बाँहों की एक एक मसल्स, सब मछलियां छलक रही थीं,... खुली जाँघों की मांसपेशियां भी उसकी ताकत बखान कर रही थीं, लेकिन उस की मन हालत उस कच्ची कली को देख के , उसका खड़ा मस्ताया खूंटा जो शार्ट को फाड़ रहा था , बता रहा था,... पूरे बित्ते भर का तन्नाया, रात में तीन बार अरविन्दअपनी सगी छोटी बहन और एक बार माँ को चोद के भी थका नहीं था , और कसे माल को देख के फिर फनफनाने लगा था।

और सब रोपनी वालियों की आँख कभी उस खूंटे पे तो कभी नए माल पे,...



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फुलवा अरविन्द भैया के साथ मिल के रोपनी क काम बाँट रही थी लेकिन उसके पहिले उस नए माल के बारे में अरविन्द भैया को बता दिया,...

" अरे ये मस्त माल, फुलवा क सगी ननद है छोटी, अरे कौन दूर गाँव है , आयी पांच दस दिन के के लिए, तो मैं इसको भी रोपनी के लिए ले आयी,... "



जैसे ही फुलवा की माँ अरविन्द भैया के साथ थोड़ा सा दूसरी ओर मुड़ी, फुलवा की ननद, फुलवा की छुटकी बहिनिया, चमेलिया को चिढ़ाने लगी,... ( रिश्ता भी ननद भौजाई का था )

" अरे तोहार बहिनिया क पेट हमार भैया पहले दिन फुलाय दिए, अइसन ताकत है हमरे भैया में, हमरे गाँव क लड़कों में, ... पहली बार में फाड़ेंगे भी गाभिन भी कर देंगे,... तोहार दिदिया, गौना के दस दिन में उलटी करने लगीं , खटट्टा मांगने लगी,... "



गीता ने चमेलिया की ओर देखा और वो भी उसे देख के मुस्करा दी , यानी उसको भी मालूम था की फुलवा का पेट फुलवाने वाला असल में कौन था,... पहले धक्के में रात में अमराई में,... गीता का भाई अरविन्द,... जवाब चमेलिया ने ही दिया,

" चला जब हमारे गाँव क लड़का चढ़िये न तोहरे ऊपर तो अपने भैया के भुलाय जाओगी। "



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गीता क्यों छोड़ती उसे आखिर गाँव के रिश्ते से फुलवा की ननद उसकी भी तो ननद लगेगी,... वो भी छेड़ते बोली,... "

" तो का तू अपने भैया से फड़वाय के आयी आयी हो ? अरे एक बार जब हमरे भैया चढ़ के हुमचीहें कस कस के,... न जब लौट के अपने गाँव क लड़कियों को बोलोगी न तो सब की सब यहाँ टांग उठाने आ जाएंगी,... "

लेकिन तब तक फुलवा अरविन्द को ले के आ गयी और अरविन्द को दिखाते बोली,

" अरे वो सामने जो गन्ने का खेत के पिछवाड़े गढ़ई है न वहां वाली रोपनी, के लिए अपने साथ ले जा के दिखाया दा,... आज वहां तोहरे साथ ,... तो फिर कल से हम लोगन के साथ,... गाँव क मेहमान है, तो तनी अच्छे से रोपनी,... "



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गीता के समझ में नहीं आया वहां कहाँ धान और और रोपनी, वो तो गन्ने के सबसे घने , और गन्ना इतना ऊंचा था की हाथी छिप जाए,... जहाँ ये धान का खेत ख़तम होता था वहीँ , सामने ही,..


लेकिन वो चुप रही, .. और अरविंद फुलवा की ननद को लेकर गन्ने की खेत की ओर मुड़ा भी नहीं था की फुलवा की माई ने गीता की ओर रुख किया और अपनी एक देवरानी को बुलाया,...

" हे चम्मो बो, तानी आवा,... नयको को आज ज़रा रोपनी ठीक से सिखावल जाए। "

कोयराने की चम्मो बो, गाँव के रिश्ते से भौजी ही लगती थीं, चार साल पहले गौना में उतरी थीं, लेकिन सब भौजाइयों में सबसे तेज, ननदों की रगड़ाई करने में, ... और अरविन्द को दिखाते हुए उन्होंने,...

असल में रोपनी में तो सब औरतें, लड़कियां साड़ी घुटने से ऊपर जाँघों तक, खींच के बांधती थी, की रोपनी के लिए झुकने पे धान के खेत के पानी और कीचड़ से साड़ी गंदी न हो जाए, फिर निहुर के चूतड़ उठा उठा के,... दोनों हाथ से सम्हाल सम्हाल के , मुलायम हाथों से,..

तो चम्मो बो और फुलवा की माई ने उसके भाई, अरविन्द के सामने ही, गीता को जबरन निहुरा के,... उसकी साड़ी उठायी तो,... एकदम पूरी कमर तक,... बुर गाँड़ सब साफ़ साफ़ दिख रहा था और दोनों में से छलकती उसकी भैया की मलाई भी, खूब गाढ़ी गाढ़ी,... और दोनों ने मिल के, साड़ी कमर से ही लपेट के ऐसे कस के खोंस के बाँध दी, की गीता के बस का भी नहीं था कुछ तोपना ढांकना,

उसके गोरे गोरे गोल छोटे छोटे चूतड़ एकदम खुले,

और रोपनी बिना गाने के हो और भौजी हों और ननद गरियाई न जाए,.. चम्मो बो ने टेर दिया फिर सब औरतों ने एक सुर में तेज आवाज में अगल बगल के खेत में भी आवाज जा रही थी,...


करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे, करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे,

कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे, कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे,

जाइला तो जाइला हम अरविंदवा क बहिनिया के पास रे,... जाइला तो जाइला हम गितवा के पास रे,...

उहे अरविंदवा क बहिनिया चोदनो के,... गितवा चोदनो के लागल चोदवास रे, लागल चोदवास रे।


जाइला तो जाइला गितवा चोदनो के पास रे,... उहै भाई चोदनो के लागल चोदवास रे।
“”

फुलवा क माई, देह खूब भरी भरी, कड़ी कसी पिंडलियाँ, ब्लाउज से छलकते जोबन, ३८ + ही रहे होंगे, और सबसे रसीले उसके कटे तरबूज की तरह दोनों कसर मसर चूतड़, ... हाँ देख के लगता था ताकत बहुत होगी उसकी कलाई में और पूरी देह में भी, एकदम कड़ी उमर किसी ओर से ३२-३४ से ज्यादा नहीं लगती थी, फुलवा के साथ चलती थी तो उसकी बड़ी बहिन लगती थी.

“”

फुलवा की माई भी कम गरम नहीं है 🔥🔥
 

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159
भाग ४७


रोपनी





" तो फिर तो पूरे गाँव में आप के बारे में,... " छुटकी ने मुस्कराते हुए पूछा।


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" जितना न मेरे और अरविन्द भैया में जोड़ के गरमी है, उसके दूने से भी ज्यादा माँ गरमाई रहती थीं, और उन को लगता था, भाई अगर बहन को नहीं चोदेगा तो कौन चोदेगा, ओहमें कौन सरमाने , छुपाने क बात है, फिर गाँव जवार में तो सब कुछ,... और वो तो खुदे, गौना के पहले अपने एकलौते सगे भाई से गाभिन हो के आयी थीं, चुदवाने क बात तो छोडो,... तो वही,... हमसे ज्यादा तो वही,... " खिलखिलाती हुयी गीता ने छुटकी से कहा

"तो माँ ने क्या किया,... " छुटकी जानने को बेताब थी,...

" अरे माँ ने नहीं,शुरुआत तो हमीं किये, लेकिन माँ उसको और,... बचपन से हमारी आदत थी, जो काम भइया करता वो करने की जिद मैं भी करती, आखिर ढाई तीन साल की छुटाई बड़ाई,... उसके लिए साइकिल आयी तो मैं भी उसी की तरह कैंची चला के,...

तो रोज सुबह,... भैया रोपनी पे चला जाता था मुंह अँधेरे सब रोपनी वालियों को काम पे लगाने, कितनी आयीं नहीं आयीं , कौन से खेत में आज होना, फुलवा क माई ले आती थी रोपनी वालियों को बटोर के,... तो मैं भी जिद करने लगी की मैं भी जाउंगी भैया के साथ,...




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तो माँ ने मना नहीं किया बल्कि बोलीं की तू फुलवा की माई को नहीं जानती तुझे भी रोपनी पे लगा देगी,... लेकिन अच्छा है न खेती बाड़ी का काम भी,... "

"तो ",छुटकी से रहा नहीं गया फास्ट फारवर्ड करने के लिए वो बोली,...

" बस अगले दिन मैं भी सुबह मुंह अँधेरे, सूरज अभी निकला भी नहीं था चाँद ठीक से डूबा भी नहीं था, हाँ,... माँ ने मुझे पहनने के लिए अपनी एक बड़ी पुरानी घिसी साड़ी दी, की पानी मैं घुसना पडेगा , कीचड़ माटी लगेगी,... और ब्लाउज तो मेरे सिल ही गए थे,... तो बस साड़ी ब्लाउज पहन के, हाँ और गाँव में कोई औरत चड्ढी बनियान नहीं पहनती तो मैंने भी नहीं माँ की एक साडी और जो मेरा बलाउज दर्जिन भौजी ने सिया था वही पहन के निकल पड़ी, अरविन्द भैया के साथ, भैया ने भी बस बनियान और शॉर्ट्स "



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उसके बाद गीता ने रोपनी का हाल बयान किया


रोपनी में १५-२० औरतें, लड़कियां रही होंगी,... आधी तो करीब मेरी समौरिया, .. कुछ दो चार साल बड़ी, तो दो चार मुझसे भी एक दो साल छोटी,... मेरी समौरिया में आधी की शादी हो गयी थी, पर गौना किसी का नहीं गया था, बाकी में ज्यादा तो गाँव के रिश्ते से भौजाई ही लगती थीं, और दो चार फुलवा की माई की उमर की होंगी,...

फुलवा क माई, देह खूब भरी भरी, कड़ी कसी पिंडलियाँ, ब्लाउज से छलकते जोबन, ३८ + ही रहे होंगे, और सबसे रसीले उसके कटे तरबूज की तरह दोनों कसर मसर चूतड़, ... हाँ देख के लगता था ताकत बहुत होगी उसकी कलाई में और पूरी देह में भी, एकदम कड़ी उमर किसी ओर से ३२-३४ से ज्यादा नहीं लगती थी, फुलवा के साथ चलती थी तो उसकी बड़ी बहिन लगती थी. मज़ाक, छेड़ने में तो ग्वालिन भौजी से भी दो हाथ आगे,...



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सब गाँव की लड़कियां औरतें तो सब की सब गीता की जानी पहचानी,... सिवाय एक के,...

और वो एकदम मस्त माल लग रही थी, टनाटन, और खूब गर्मायी भी, कच्ची और कोरी,...

साफ़ था ये माल उसके गाँव का नहीं था, फुलवा के साथ ही खड़ी थी,... रोपनी के लिए , उमर में गीता से एक दो साल कम ही होगी, हंसती तो गाल में गड्ढे पड़ते,... आँखे खूब बड़ी बड़ी, गोरी,... उभार बस कच्चे टिकोरे, ... और सब लड़कियां ख़ास तौर से चमेलिया, फुलवा की छोटी बेटी, गाँव की बाकी लड़कियां और औरतें,... खुल के मज़ाक करतीं उसे छेड़तीं,...



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फुलवा की माँ काम बाँट रही थी जब गीता उसका भाई अरविन्द वहां पहुंचे,... और गीता को देख सबसे ज्यादा फुलवा खुश, और बाकी जो भौजाई लगती थीं , उन्होंने गीता को छेड़ना, चिढ़ाना शुरू कर दिया,...

लेकिन उसके भाई की निगाह तो उसी मस्त माल के कच्चे टिकोरों पे टिकी,

अरविंद ने ही सिर्फ एक छोटा सा शार्ट और बनियान खुले बांह की पहन रखी थी, उसकी बाँहों की एक एक मसल्स, सब मछलियां छलक रही थीं,... खुली जाँघों की मांसपेशियां भी उसकी ताकत बखान कर रही थीं, लेकिन उस की मन हालत उस कच्ची कली को देख के , उसका खड़ा मस्ताया खूंटा जो शार्ट को फाड़ रहा था , बता रहा था,... पूरे बित्ते भर का तन्नाया, रात में तीन बार अरविन्दअपनी सगी छोटी बहन और एक बार माँ को चोद के भी थका नहीं था , और कसे माल को देख के फिर फनफनाने लगा था।

और सब रोपनी वालियों की आँख कभी उस खूंटे पे तो कभी नए माल पे,...



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फुलवा अरविन्द भैया के साथ मिल के रोपनी क काम बाँट रही थी लेकिन उसके पहिले उस नए माल के बारे में अरविन्द भैया को बता दिया,...

" अरे ये मस्त माल, फुलवा क सगी ननद है छोटी, अरे कौन दूर गाँव है , आयी पांच दस दिन के के लिए, तो मैं इसको भी रोपनी के लिए ले आयी,... "



जैसे ही फुलवा की माँ अरविन्द भैया के साथ थोड़ा सा दूसरी ओर मुड़ी, फुलवा की ननद, फुलवा की छुटकी बहिनिया, चमेलिया को चिढ़ाने लगी,... ( रिश्ता भी ननद भौजाई का था )

" अरे तोहार बहिनिया क पेट हमार भैया पहले दिन फुलाय दिए, अइसन ताकत है हमरे भैया में, हमरे गाँव क लड़कों में, ... पहली बार में फाड़ेंगे भी गाभिन भी कर देंगे,... तोहार दिदिया, गौना के दस दिन में उलटी करने लगीं , खटट्टा मांगने लगी,... "



गीता ने चमेलिया की ओर देखा और वो भी उसे देख के मुस्करा दी , यानी उसको भी मालूम था की फुलवा का पेट फुलवाने वाला असल में कौन था,... पहले धक्के में रात में अमराई में,... गीता का भाई अरविन्द,... जवाब चमेलिया ने ही दिया,

" चला जब हमारे गाँव क लड़का चढ़िये न तोहरे ऊपर तो अपने भैया के भुलाय जाओगी। "



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गीता क्यों छोड़ती उसे आखिर गाँव के रिश्ते से फुलवा की ननद उसकी भी तो ननद लगेगी,... वो भी छेड़ते बोली,... "

" तो का तू अपने भैया से फड़वाय के आयी आयी हो ? अरे एक बार जब हमरे भैया चढ़ के हुमचीहें कस कस के,... न जब लौट के अपने गाँव क लड़कियों को बोलोगी न तो सब की सब यहाँ टांग उठाने आ जाएंगी,... "

लेकिन तब तक फुलवा अरविन्द को ले के आ गयी और अरविन्द को दिखाते बोली,

" अरे वो सामने जो गन्ने का खेत के पिछवाड़े गढ़ई है न वहां वाली रोपनी, के लिए अपने साथ ले जा के दिखाया दा,... आज वहां तोहरे साथ ,... तो फिर कल से हम लोगन के साथ,... गाँव क मेहमान है, तो तनी अच्छे से रोपनी,... "



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गीता के समझ में नहीं आया वहां कहाँ धान और और रोपनी, वो तो गन्ने के सबसे घने , और गन्ना इतना ऊंचा था की हाथी छिप जाए,... जहाँ ये धान का खेत ख़तम होता था वहीँ , सामने ही,..


लेकिन वो चुप रही, .. और अरविंद फुलवा की ननद को लेकर गन्ने की खेत की ओर मुड़ा भी नहीं था की फुलवा की माई ने गीता की ओर रुख किया और अपनी एक देवरानी को बुलाया,...

" हे चम्मो बो, तानी आवा,... नयको को आज ज़रा रोपनी ठीक से सिखावल जाए। "

कोयराने की चम्मो बो, गाँव के रिश्ते से भौजी ही लगती थीं, चार साल पहले गौना में उतरी थीं, लेकिन सब भौजाइयों में सबसे तेज, ननदों की रगड़ाई करने में, ... और अरविन्द को दिखाते हुए उन्होंने,...

असल में रोपनी में तो सब औरतें, लड़कियां साड़ी घुटने से ऊपर जाँघों तक, खींच के बांधती थी, की रोपनी के लिए झुकने पे धान के खेत के पानी और कीचड़ से साड़ी गंदी न हो जाए, फिर निहुर के चूतड़ उठा उठा के,... दोनों हाथ से सम्हाल सम्हाल के , मुलायम हाथों से,..

तो चम्मो बो और फुलवा की माई ने उसके भाई, अरविन्द के सामने ही, गीता को जबरन निहुरा के,... उसकी साड़ी उठायी तो,... एकदम पूरी कमर तक,... बुर गाँड़ सब साफ़ साफ़ दिख रहा था और दोनों में से छलकती उसकी भैया की मलाई भी, खूब गाढ़ी गाढ़ी,... और दोनों ने मिल के, साड़ी कमर से ही लपेट के ऐसे कस के खोंस के बाँध दी, की गीता के बस का भी नहीं था कुछ तोपना ढांकना,

उसके गोरे गोरे गोल छोटे छोटे चूतड़ एकदम खुले,

और रोपनी बिना गाने के हो और भौजी हों और ननद गरियाई न जाए,.. चम्मो बो ने टेर दिया फिर सब औरतों ने एक सुर में तेज आवाज में अगल बगल के खेत में भी आवाज जा रही थी,...


करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे, करिया करिया भेंडवा के भूवर भूवर बार रे,

कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे, कहाँ गया भेंडवा अंधरिया हो रात रे,

जाइला तो जाइला हम अरविंदवा क बहिनिया के पास रे,... जाइला तो जाइला हम गितवा के पास रे,...

उहे अरविंदवा क बहिनिया चोदनो के,... गितवा चोदनो के लागल चोदवास रे, लागल चोदवास रे।


जाइला तो जाइला गितवा चोदनो के पास रे,... उहै भाई चोदनो के लागल चोदवास रे।
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" अरे तोहार बहिनिया क पेट हमार भैया पहले दिन फुलाय दिए, अइसन ताकत है हमरे भैया में, हमरे गाँव क लड़कों में, ... पहली बार में फाड़ेंगे भी गाभिन भी कर देंगे,... तोहार दिदिया, गौना के दस दिन में उलटी करने लगीं , खटट्टा मांगने लगी,... "

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इस बेचारी को कुछ पता ही नहीं 😂😂
 
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