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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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अपने सभी अस्त्रों का प्रयोग जरुरी होता है विजय पताका लहराने के लिए...Wo to hai hi.... uske pass kam se kam 3 ched haj aur aadmi k pass 1 hi hathiyaar![]()
थोड़ी के लिए इठला तो सकता है...Aurat se to bhagwan bhi nahi jeet paye Phir bechare aadmi ki kya aukaat hai ??
आदि काल से मनुष्य इन्हीं में लय ढूंढ कर संतुष्टि प्राप्त करता रहा है..भावना भी बहुत उत्तम है और आसन भी
सच में हर औरत यही तो चाहती है
और सुहागरात के बाद सारी ननदें, जेठानियाँ, सास यही देखती हैं की दुल्हन के पैर में रच रच के लगाई गयी महावर लड़के के माथे में लगी है की नहीं
और सुहागरात की तैयारी के समय सबसे पहले पायल और बिछुए पहनाये जाते हैं वो भी घँघुरु वाले , की सैंया जी के कन्धों पे चढ़के यही तो सारी रात बजेंगे और बाहर कान पारे ननदों को भी अंदाज लग जाएगा,... भैया ने काम शुरू कर दिया,
एक लोक गीत भी है जिसका इस्तेमाल मैं अक्सर करती हूँ
छोटे दाने वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे दाने वाला,
अरवट बाजे, करवट बाजे,... सैंया संग सेजरिया पे बाजे ,...![]()
अरे ये जोर की तो अभिलाषी थी... ननद रानी...are Gaon ki mehman thi phulawa ki nanad to use kuch jor to dikahna tha naa and thanks for gracing the thread and such nice comments
इस तरह की कविताओं की बरसात और हो..बहुत ही सुन्दर कविता
आभार, नमन धन्यवाद
ये गीता का ज्ञान तो जबरदस्त है...भाग ५० - माँ का नाइट स्कूल
माँ -गीता -अरविन्द
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माँ रसोई में चली गयी खाना गरम करने के लिए, लेकिन वहां से भी कान पारे, मेरी चीखें जरा भी कम हुयी तो वहीँ से भैया को कभी डांट लगाती तो कभी उकसातीं, और वो गाँड़ मारने की रफ्तार बढ़ा देता,...
जब माँ खाना ले के निकली आधे घंटे बाद तो उसी समय भैया मेरी गाँड़ में झड़ रहा था, हालत ये थी की जमीन पर चूतड़ रख के बैठा भी नहीं जा रहा था, माँ ने अपने हाथ से मुझे खाना खिलाया खूब दुलार से, ... भैया ने भी,... खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था दोनों ने पकड़ के मुझे सहारा देकर उठाया,... भैया चिढ़ा रहा था माँ ने उसे भी डांटा,..
पर छुटकी उसे तो रात का किस्सा सुनना था ये तो बस चटनी थी, और उसने कैंची चलाई और गीता से बोला,
:" दीदी तो उस दी क्या रात को कुछ नहीं आपने सिर्फ आराम किया ?"
गीता बड़ी जोर से खिलखिलाई और उस कच्ची अमिया, छुटकी को गले में लिपटा के कस के पहले चुम्मी ली और कचकचा के गोरे गुलाबी गाल काट लिए।
" अरे नयकी भौजी क छुटकी बहिनिया, रोज तोहार गाँड़ बिन नागा यह गाँव में जब मारी जायेगी न तो समझोगी। एक दो बार जीजा डबल जीजा से चुदवाने, गाँड़ मरवाने से कुछ नहीं होता, अभी तो आयी हो,... अरे ओह दिन नहीं, रोज बिना नागा रात भर,... रात में तो माँ का नाइट स्कूल चलता था, ये ये बात माँ ने सिखाई मुझे, क्या बताऊँ, ... माँ ने ऐसी एक्सरसाइज सिखाई है की दिन रात कोई चुदवाये गांड़ मरवाये, कितने भी मोटे मोटे मूसल से, चोदने वाले को लगेगा पहली बार चोद रहा है,... चूँची भी ढीली नहीं होगी मिजवाने दबवाने से,... और सिर्फ मुझको भी नहीं भैया को भी, लौंडिया को बिन चोदे कैसे खाली छू के , वो भी बिना चूत में हाथ लगाए कैसे पागल कर दो , खुद ही लौंड़ा अपने हाथ से पकड़ के अपनी बिल में घुसवायेगी, सिर्फ गाँड़ मार के कैसे लौंडिया को झाड़ दें,... "
छुटकी बहुत ध्यान से कान पारे गीता की बाते सुन रही थी, फिर छोटी बच्ची की तरह जिद करके बोली,
" दीदी, मुझे भी चाहिये, मुझे भी सीखना है,.... "
गीता ने उसे दुलार से चिपका लिया और कच्ची अमिया दबाती बोली,...
" अबे स्साली तुझे तो सिखाऊंगी ही, मेरे गाँव के लौंडो का फायदा होगा, उन्हें मजा मिलेगा तुझे दर्द,.. चल अभी एक ट्रिक बताती हूँ फिर रात का माँ के साथ का किस्सा, चूत टाइट करने के लिए माँ ने सिखाया था, दिन में चार पांच बार, तुझे तो कम से कम दस बार करना होगा, ... सुन, .. माँ बोली, जब मुतवास लगती है बड़ी जोर से लेकिन क्लास में हो या जा नहीं सकती हो तो का करती हो,
छुटकी खिलखिलाती हुयी बोली,.. अरे कस के बिलिया भींच लेती हूँ और का, एक बूँद बाहर न निकले जिससे,...
चूम के गीता बोली,...
बस एकदम यही करना है कम से कम दस बार और घडी देख के दो मिनट तक पूरी ताकत से और जब ढीली करो तो एक झटके में नहीं बहुत धीरे धीरे पूरे एक मिनट में और यही काम चार पांच बार करो,... कहीं भी कभी भी, दिन में दस बार,... इससे चुदवाने में भी बड़ा मजा आता है , जब लौंडे का औजार पूरा घुस गया हो, तो बस धीरे धीरे कर के दबोच लो,... निचोड़ लो स्साले को,.. बुरिया में ऊँगली डाल के प्रैक्टिस कर, माँ मुझे करवाती थीं, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर, ... मैं भी करवाउंगी तुझे, ... तुझे छोटी बहन बनाया है स्साली तो सिखाना ही पड़ेगा लेकिन चल पहले रात का किस्सा बताती हूँ, बहुत सीखेगी तू। "
और गीता ने किस्सा सुनाना शुरू किया, किस्सा नहीं पूरा का पूरा सच,
" रात में सबसे पहले मैं और माँ मिल के अरविन्द भैया की ऐसी की तैसी करते थे,...
माँ मुझे कहती थी उसके सामने भैया का मुंह में ले के चूसूं,...ऐसे नहीं सिर्फ होंठों के जोर से बिना हाथ लगाए, खूब धीरे धीरे भैया का पूरा सुपाड़ा गप्प करना, और साथ में आँखे मेरी भैया को लगातार देखती रहती थीं उसे चिढ़ाती उकसाती थीं, और सपड़ सपड़ चाट के जब सुपाड़ा खूब गीला हो जाए तो बस, मुंह हटा लो और तड़पने दो,...
फिर मैं सिर्फ जीभ की टिप से अरविन्द भैया के मूत वाले छेड़ में घुसा के खूब सुरसुरी करती थी, बेचारा गिनगीनाता रहता, तड़पता रहता, और मैं सिर्फ जीभ की टिप से मूत वाले छेद से हलके हलके पहले मोटे तड़पते सुपाड़े पर फिर उस चमड़े के मोटे मूसल के बेस तक थूक लगा के सहलाते, रगड़ते और बॉल्स तक,...
" और माँ क्या करती थीं " छुटकी ने मजे लेते हुए पूछा।
" माँ तो और,... " गीता ने किस्सा आगे बढ़ाया,
"थोड़ी देर में हम माँ बेटी मिल के अरविन्द भैया के खूंटे का मजा लेते, कभी गन्ना वो चूसती और रसगुल्ला मैं, कभी एक साइड से वो जीभ लगा के और दूसरी साइड से मैं जीभ लगा के चाटतीं,.. चाटते चूसते कभी माँ, अरविन्द भैया को दिखा दिखा के मेरे होठं चूसने लगती , लेकिन अरविन्द भैया को छोड़ती नहीं थी जब हम वो की जीभ होंठ लंड को छोड़ देती तो माँ की उँगलियाँ मैदान में आ जातीं और वो भैया के खूंटे को पकड़ के मुठियाने लगती और उनकी उँगलियाँ जब खूंटे को पकड़तीं तो मैं भैया की बॉल्स को, ...
तू ही सोच कोई स्साला लौंडा, अगर उसकी जवान होती कच्ची उमर वाली बहन और मस्त बड़ी बड़ी कड़ी कड़ी चूँची वाली माँ, मिल के ऐसी की तैसी करेंगी तो क्या हालत होगी,... "
छुटकी के दिमाग में तो सिर्फ गितवा के भाई अरविन्द का मोटा खड़ा तन्नाया लंड ही नजर आ रहा था उसके मुंह से निकल गया,
" बेचारे अरविन्द भैया"
गीता बड़े जोर से खिलखिलाई,
" और क्या दो दो मस्त माल सामने और चोदने को नहीं मिल रहा,... कम से कम घंटे भर माँ, अरविन्द भैया को तड़पाती लेकिन सबसे ज्यादा मजा तब आता जब भैया को बिना छुए वो उसकी हालत खराब कर देती,
" बिन छुए, ... कैसे" गीता की आँखे विस्मय से फ़ैल गयीं,
" माँ के आगे सब फेल,.. माँ पीछे से मुझे अपनी गोद में दुबका लेती थी फिर उसके दोनों हाथ मेरी छोटी छोटी चूँचियों पे, क्या मस्त दबाती है माँ,... कभी हलके हलके छूती तो कभी कस के दबोच लेती,... कभी मेरी किसमिश ऐसे निपल पकड़ के जोर जोर से पुल करती,
देख देख के भैया की हालत ख़राब, डंडा एकदम टनटना जाता, बेचारे का. लेकिन माँ की उँगलियों से मेरी हालत भी कम खराब नहीं होती, मेरी फांके गीली होने लगतीं, मेरी हथेलियां खुद मेरी पनियाई चूत पे हलके हलके सहलाने लगतीं,... मेरे मुंह से जोर जोर से सिसकियाँ निकलतीं और साथ में उफ्फ्फ माँ के चुम्मी, नहीं चेहरे पे नहीं,... कभी गले पे , कभी कंधे पे, भैया को दिखाते ललचाते, और भैया का खूंटा एकदम हवा में तना पूरे बित्ते भर का, तड़पता,...
और ये सोच के सुन के छुटकी भी गीली हो रही थी पर बिन बोले, टोके गीता की बात वो सुन रही थी,... और गीता सुना रही थी,
" माँ, अरविन्द भैया को ललचाते अपने दोनों हाथों से मेरी अमिया उठा के पकड़ एक उसे दिखातीं और ललचातीं, बोलतीं, " देख, मेरी बेटी के जुबना कितने मस्त है, स्साली इस गाँव क्या आस पास के किसी गाँव में किसी माल का इत्ता मस्त जोबन नहीं है, बोल चाहिए क्या ? और भैया लिबराता देखता तो माँ और उसे हड़काती, स्साले दो साल पहले से इसकी कच्ची अमिया आने लगी थीं , गांव भर के लौंडो को महक लग गयी थी, सब पीछे पड़े थे,.. और तू बुरबक,... अरे तभी पकड़ के चोद देता, दो चार बार जबरदस्ती पेलता रोती गाती कुछ दिन में खुद चुदवाने लगती,... लेकिन तू भी न,... पर सोच ले चाहिए तो मेरी सब बात माननी पड़ेगी "
माँ -बेटी का सीन लिखने में भी आपका जवाब नहीं...माँ बेटी का प्यार दुलार
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" माँ, अरविन्द भैया को ललचाते अपने दोनों हाथों से मेरी अमिया उठा के पकड़ एक उसे दिखातीं और ललचातीं, बोलतीं,
" देख, मेरी बेटी के जुबना कितने मस्त है, स्साली इस गाँव क्या आस पास के किसी गाँव में किसी माल का इत्ता मस्त जोबन नहीं है, बोल चाहिए क्या ? और भैया लिबराता देखता तो माँ और उसे हड़काती, स्साले दो साल पहले से इसकी कच्ची अमिया आने लगी थीं , गांव भर के लौंडो को महक लग गयी थी, सब पीछे पड़े थे,..
और तू बुरबक,... अरे तभी पकड़ के चोद देता, दो चार बार जबरदस्ती पेलता रोती गाती कुछ दिन में खुद चुदवाने लगती,... लेकिन तू भी न,... पर सोच ले चाहिए तो मेरी सब बात माननी पड़ेगी "
" कौन सी बात माँ की " अब छुटकी से नहीं रहा गया उसने पूछ ही लिया, पर गीता ने नहीं बताया उसने किस्सा जारी रखा,
" मैं भी भैया को ललचाती हुयी बोलती,
आओ न भैया, तेरा मन नहीं कर रहा अपनी बहन की लेने का क्या, उह्ह आह्हः , देख मेरी महारानी किती गीली हो रही है , आओ न अरविन्द भैया, प्लीज,... "
भैया जैसे मेरी ओर आने को होता माँ उसे रोक देती बोलती,
पहले मैं दुलारी प्यारी बेटी की चाशनी चाटूँगी, तू चुपचाप मेरी बात मान और माँ बेटी का प्यार दुलार देख। "
फिर माँ मेरे पास आके मेरी एक टांग उठा के पहले तो मेरी प्यारी गीली बौराई सहेली को हलके हलके थपकाती, फिर हल्के हलके सिर्फ जीभ की टिप मेरी चूत की दोनों फांकों को अलग करती और फांकों के बीच में थोड़ा सा प्रेशर डल के जैसे कोई लौंडा बिनचुदी चूत में अपना सुपाड़ा फंसाता है माँ एकदम उसी तरह से , हलके हलके आगे पीछे,...
मस्ती से में चूतड़ उचकाती और पीछे से भैया निहुरि हुई माँ के पिछवाड़े जीभ लगा के सपड़ सपड़ , जितनी जोर से माँ मेरा चाटती, चूसती, उससे ज्यादा जोर से भैया माँ का,... "
" अरविन्द भैया माँ की बुर चूसता,... " छुटकी से रहा नहीं गया उसने पूछ लिया।
गीता बड़ी देर तक हंसती रही, फिर बोली ,
" तू स्साली सब पूछ के दम लेगी। हां भी नहीं भी। पहले तो वो माँ की बुर में ही मुंह लगाता,... लेकिन कुछ देर बाद माँ हल्के से झटके,...माँ के बड़े बड़े चूतड़ कोई भी लहालोट हो जाता तो अरविन्द भैया भी,... और माँ को एकदम मालूम था तो उस झटके से माँ के पिछवाड़े का छेद, और भैया का मालूम था की वहां ऊपर से चाटने से काम नहीं चलेगा पूरी जीभ अंदर डालनी पड़ेगी जबतक जीभ की टिप पे अंदर का माल न लगे , और फिर जैसे ऊँगली अंदर डाल के घुमाते हैं न उसी तरह से जीभ से, माँ ने अरविन्द और मुझे दोनों अच्छी तरह से ये सब सिखा दिया था, पिछवाड़े चाटना, चूसना,... मैं तुझे भी सिखा दूंगी, घबड़ा मत,"
गीता थोड़ी रुकी फिर फ़ास्ट फारवर्ड किया,...
" और जब भैया मुझे चूसता , तो मेरे मुंह पे माँ की बुर माँ खूब रगड़ रगड़ के मुझसे चुसवाती, ... और बेचारे अरविन्द भैया के ये देख के और हालत ख़राब,... और जब मैं अरविन्द भैया का लंड चूसती तो माँ उसके ऊपर चढ़के उससे अपनी बुर चुसवाती, खूब मजा आता ,लेकिन घंटे भर से पहले मैं अरविन्द भैया को चोदने के लिए नहीं मिलती थी।
और जब चुदाई शुरू होती तो,... कोई रात ऐसी नहीं गयी होगी जब मैं सात आठ बार से कम झड़ी होऊं और भैया भी तीन चार बार से कम कभी नहीं , कम से कम दो बार मेरे अंदर और एक दो बार माँ के अंदर मलाई छोड़ता ,...
और उसके अलावा जब मैं स्कूल के लिए तैयार हो जाती तो उस समय जबरदस्ती कर के भैया मुझे निहुरा के अगवाड़े पिछवाड़े मलाई जरूर भरता
और गाँड़ तो जब मेरी कमीनी सहेलियां आ जातीं उसके बाद ऐसे हचक हचक के मारता, सहेलियों का कन्धा पकड़ के, उन्ही के सहारे सहारे मैं स्कूल जा पाती"
और माँ कित्ती बार ,...
छुटकी को तो पूरा हिसाब चाहिए था और गीता थोड़ा उदास हो गयी बोली, मुश्किल से एक दो बार। फिर कुछ सोच के मुस्कराते हुए बोली , लेकिन हाँ एक रात मैंने और भैया ने तय कर लिया था की आज माँ की हम दोनों भाई बहन मिल के ,... और उस दिन चार बार माँ झड़ी रात में , .. और फिर गीता ने वो किस्सा माँ का , विस्तार से सुनाया।
वैसे तो कोई दिन नागा नहीं जाता था, जब मैं अरविन्द भैया और माँ, चाहे दिन हो या रात मस्ती नहीं करते थे. हाँ जब मैं नहीं रहती थी, स्कूल में या सहेलियों के साथ मटरगस्ती करने तो माँ और भैया कोई बदमाशी नहीं करते थे, ...
लेकिन एक दिन मैंने और भैया ने तय कर लिया था की आज माँ की जबरदस्त रगड़ाई करनी है, हम दोनों तो वैसे भी मौका पाते ही बदमाशी चालू कर देते थे, चुम्मा चाटी, मेरी छोटी छोटी चूँची दबाना, मसलना , खास तौर से मेरी सहेलियों के सामने उन्हें ललचाते जलाते, और मैं भी कौन कम, बस उसकी जांघिया नीचे सरका के चुसूर चुसूर चूस के खड़ा कर देती और देने के समय अपने चूतड मटका के, मुड़ के जीभ चिढ़ाते हुए बाहर भाग जाती थी.
मैं जानती थी की पकड़ में आउंगी तो अरविन्द भैया हचक के गाँड़ मारेगा, .. तो मारे न,.. मेरा एकलौता प्यारा मीठा सा सगा भाई है, वो स्साला बहनचोद नहीं मारेगा तो कौन मारेगा। लेकिन वो दिन मैंने और अरविन्द भैया ने माँ के नाम कर दिया और सोच के खूब जुगत लगा के,... गितवा छुटकी को सुनाते समझाते बोली।
छुटकी भी खूब ध्यान से सुन रही थी, सुन सुन के सोच सोच के पिघल रही थी। गीता सुना रही थी, उस दिन की बात,
" शाम से ही माँ कुछ उदास लग रही थी. हम दोनों की बात का जवाब हूँ हां में दे रही थी, हम दोनों आपस में बदमाशी भी करते, लड़ते तो डांट नहीं रही थी,... पता नहीं कहा था ध्यान उसका। ग्वालिन भौजी भी, उनसे तो रोज माँ खूब चहक चहक के बात करती थी, और भौजी भी गाँव की कुल लड़कियों औरतों का हाल मिर्च मसाले के साथ,..और अब तो मेरे सामने भी,... कौन किससे फंसी है, हमारे टोला के साथ, चमरौटी, भरौटी, अहिरोटी कोई पुरवा नहीं बचता था,... कौन भौजाई अपने मरद के पंजाब जाने के बाद देवर के साथ बिना नागा सोती है, कौन लड़की जवान हो रही है , कहाँ सास बहु मिल के किस लौंडे को फांस रही हैं, सब कुछ,...
लेकिन उस दिन माँ ने उन्हें भी बस दो चार मिनट में निपटा दिया,... "
छुटकी को तो सीधे एडल्ट सीन में इंट्रेस्ट था वो फ़ास्ट फारवर्ड करते बोली, वो बताइये न दी, कैसे आप ने और अरविन्द भैया ने मिल के, आप ही तो कह रही थीं की माँ कभी भी रात भर में एक दो बार से ज्यादा नहीं झड़ती थी जबकि आप सात आठ बार, अरविन्द भैया चार बार,...
गीता उस रात की बात याद करके खिलखिलाने लगी और उसने भी गाड़ी चौथे गियर में डाल दी। और बताना शुरू किया,...
बड़ी अच्छी प्लानिंग की है भाई बहन ने मिलकर...माँ की रगड़ाई
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छुटकी को तो सीधे एडल्ट सीन में इंट्रेस्ट था वो फ़ास्ट फारवर्ड करते बोली, वो बताइये न दी, कैसे आप ने और अरविन्द भैया ने मिल के, आप ही तो कह रही थीं की माँ कभी भी रात भर में एक दो बार से ज्यादा नहीं झड़ती थी जबकि आप सात आठ बार, अरविन्द भैया चार बार,...
गीता उस रात की बात याद करके खिलखिलाने लगी और उसने भी गाड़ी चौथे गियर में डाल दी। और बताना शुरू किया,...
मैं और माँ रोज की तरह 69 कर रहे थे, अरविन्द भैया को ;ललचाने के लिए
और माँ इस लिए भी करती की मेरी चुनमुनिया गीली रहेगी तो पेलवाने में ज्यादा दिक्क्त नहीं आएगी ,... अब उसने कडुआ तेल में कंजूसी शुरू कर दी थी, और मैं कहती थी तो मुझे ही हड़काती थी,
' छिनार कल गन्ने के खेत में, आम क बगिया में बँसवाड़ी में पेलवायेगी गाँव क लौंडन से तो क्या कुल तेल क बोतल लेके आएंगे अरे थूक लगा लें तो गनीमत जान, ... "
बेचारा अरविन्द भैया उसका खूंटा टनटना रहा था, पूरे बित्ते भर का, लेकिन बेचारा हाथ भी नहीं लगा सकता था उसे मालूम था उसकी माँ के हर अंग में आँखे हैं और अगर कहीं उन्होंने भैया को ' उसे ' छूते देख लिया, तो बस आफ़त। डांट तो पड़ेगी ही क्या पता दो चार हाथ भी लग जाए। और बात भी सही है घर में दो दो मस्त माल नंबरी चुदवासी,... और घर का लड़का ६१, ६२,... हम दोनों की बेइज्जती।
और जब वो तड़पता तो मुझे बहुत मज़ा आता लेकिन आज मैं सोच रही थी आज भैया का खूंटा एकदम लोहे का खम्भा हो जाये तभी,...
आज कुछ भी हो हम दोनों भाई बहन को मिल के माँ की माँ चोद देनी थी, बिना तीन चार बार झाड़े उसे,...
और बहुत सी ट्रिक तो मैंने माँ से ही सीखी थीं ( कुछ ट्रिक्स तो माँ ने सिर्फ मुझे सिखाई थीं भैया को भी नहीं ) . और सबसे बड़ी बात हर लड़का औरत अलग अलग जगह पे छूने से गर्माती है, असली खेल है पांच मिनट के अंदर ये समझ जाना और बिना उसके कहे,... और माँ के साथ तो मैं और भैया कब से छल कब्बडी खेल रहे थे,... तो मुझे मालूम था की माँ की भारी भारी मांसल जाँघे, और बड़े बड़े चूतड़ ही खजाने की चाभी हैं, वहां हलके हलके सहलाना, जोर से नहीं न दबाना न और कुछ बस ऊँगली की टिप से सरसारते हुए सहलाना,...
दूसरी बात मुझे अंदाज लग गयी थी, बिन माँ के बताये, ... माँ की एक और चाभी थी हचक के गाँड़ मारना उनकी,... उन्हें मालूम था की हचक के उनके पिछवाड़े की ली जाए तो बस वो अपने को झड़ने से नहीं रोक पाएंगी, इसलिए वो गाँड़ ,मरवाने से बचती थी और कभी भैया ने जिद करके माँ की मार भी ली तो उस समय मुझे दूर ही रखती थीं
तो बस मैंने हलके हाथों से मैंने माँ की गोरी गोरी जाँघों का सहलाना शुरू किया, मेरी जीभ भी उनकी फांको पे नाच रही थी पतुरिया की तरह, कहीं भी एक पल नहीं टिकती थी,...
बीच बीच में लम्बे नाख़ून से माँ की जांघ सहलाना शुरू, थोड़ी देर में माँ ने कसमसाना शरू कर दिया, और अब मेरे होंठों ने कस के माँ की दोनो रसीली फांको को दबोच के चूसना शुरू कर दिए और एक हथेली माँ के चूतड़ों पे , अंगूठा बस उनके पिछवाड़े के छेद को छू छू के हट जाता
ओह्ह्ह ओह्ह माँ ने सिसकियाँ भरनी शुरू की और इस बढ के क्या सबूत होता की माँ को मज़ा आ रहा था,...
लेकिन माँ आखिर माँ थी हम दोनों ने उन्ही से सीखा था , ... तो माँ ने काउंटर अटैक शुरू कर दिया, वो कस कस के मेरी चूत चूस रही थी और साथ में अपनी मोटी जीभ मेरी कसी किशोर चूत में ढकेल दी , जो मजा भैया के मोटे लौंड़े में आता था उससे कम माँ की जीभ से नहीं आता था
और साथ में अपने दोनों हाथों से माँ ने मेरे चूतड़ मसलने शुरू कर दिए
अब मेरी हालत खराब हो रही थी, और माँ जानती थी की अब मेरी शरारतें धीमी हो जाएंगी, लेकिन मुझे अंदाज था ये होने ही वाला है और मेरे पास मेरा प्यारा दुलारा मीठा मीठा भैया था न, ... बस तो मैंने उसको इशारा किया, तकिए कुशन जो कुछ भी पलंग पे हो माँ के मोटे मोटे चूतड़ों के नीचे लगा के खूब ऊपर उठा दे,... बस माँ के मस्त चूतड़ हवा में एक बित्ते ऊपर उठ गए,... मैंने अपने दोनों हाथों से माँ की गाँड़ फैला दी,...
बस इतना इशारा काफी था, भइया ने तो पता नहीं कबसे लम्बे छेद के पहले ही गोल दरवाजे में घुसना शुरू कर दिया था,... बस उसने एक करारा धक्का मारा और माँ जो कस कस के चूस के मेरी हालत खराब कर रही थीं, उन की हालत खराब हो गयी, उनके बेटे ने पहले धक्के में ही अपना पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाड़ा अपनी माँ की गांड के पेल दिए अब वो लाख चूतड़ पटकें
मैंने भी गियर चेंज किया,...
और दो उँगलियाँ एक साथ माँ के भोंसडे में पेल दी, फिर तीसरी भी और अंगूठे से माँ की क्लिट रगड़नी शुरू कर दी , इस दोहरे हमले से माँ की हालत खराब हो गयीऔर भैया ने भी खूब ताकत से माँ की गाँड़ में धकेला उनके चूतड़ पकड़ के कस के जोर लगा के, दो धक्के में गाँड़ का छल्ला पार और उसी समय मेरी तीसरी ऊँगली भी अंदर, दस पंद्रह मिनट तक मैं माँ की बुर और भैया पिछवाड़े पूरी ताकत से,... लेकिन मैं समझ गयी इत्ती आसानी से काम नहीं चलेगा, मैंने भैया से गुहार लगाई,
" अरविन्द भैया चल हम दोनों मिल के माँ को मजा देते हैं मेरी उँगलियों से इसका कुछ नहीं होने वाला है '
मैंने कैची की तरह अपनी उँगलियाँ फैला के माँ का भोंसड़ा खोल दिया और भैया ने भी अब अपनी दो उँगलियाँ अंदर ढकेल दी. पांच उँगलियाँ, तीन मेरी दो अरविन्द भैया की और पिस्टन की तेजी और ताकत, साथ में न भैया ने गाँड़ मारने में ताकत कम की न मैंने क्लिट चूसने में,... फिर मुझे याद आया माँ ने सिखाया था, बुर की गली में अंदर, दो सवा दो इंच अंदर कुछ मसल्स बहुत हल्की सी फूली होती है हलकी ऊँगली से पता चलता है, वो जगह क्लिट से भी ज्यादा खतरनाक होती है,..सारी नर्व्स वहीँ होती हैं,... बस अब मैंने वहीँ ध्यान दिया,...
आधे घंटे से ऊपर हो गए थे, बस एक बार जगह वो मिल गयी तो बस ऊँगली के पीछे के नकल से मैंने पहले हलके हलके फिर कस के रगड़ना शुरू किया,
अरविन्द भैया का मोटा लंड भी माँ की गाँड़ में,...
माँ ने आखिरी कोशिश की, वो नीचे लेटी थी मैं उनके ऊपर 69 वाली पोज़ में, उन्होंने पूरी ताकत से मुझे पलटने की कोशिश की, छटपटा रही थीं वो, पर एक तो हम भाई बहिन की पांच उँगलियाँ उनके अंदर धंसी, अरविन्द भैया का मोटा खूंटा उनकी गाँड़ में जड़ तक धंसा और सबसे बड़ी बात अरविन्द भैया के देह में बहुत ताकत थी, रोज सुबह १५० डंड पेलता था, अखाड़े भी जाता था,... मैं अकेली होती तो माँ पार पा लेती लेकिन आज हम दोनों भाई बहन, ...
४० मिनट के लगातार तूफानी चुदाई के बाद जब भैया उनकी गाँड़ में झड़ा तो साथ साथ माँ भी,...
और बड़ी देर तक,... मैं तो तब तक दो तीन बार पार लग चुकी थी.
माँ के हर छेद की सेवा...माँ बेटी बेटे की मस्ती
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४० मिनट के लगातार तूफानी चुदाई के बाद जब भैया उनकी गाँड़ में झड़ा तो साथ साथ माँ भी,... और बड़ी देर तक,... मैं तो तब तक दो तीन बार पार लग चुकी थी.
लेकिन अगली बार भैया को माँ ने मेरे ऊपर ही चढ़ाया, अपने चूस के खड़ा किया और जब भैया मुझे चोद रहा था तो वो मेरे मुंह में अपनी पहले बुर फिर गाँड़ रगड़ रही थी जिसमें से अभी भी भी भैया का सड़का टपक रहा था,...
पर थोड़ी देर बाद,... और जैसे मैं और माँ मिल के भैया का चूसती थीं, उसी तरह हम दोनों भाई बहन ने मिल के चूस चूस के ,...
जब भैया अपनी जीभ माँ के भोसड़े में पेलता तो मैं माँ की क्लिट रगड़ती और माँ को अच्छी तरह गरम करने के बाद भैया ने माँ को चोदना शुरू किया। माँ को मैंने और भैया ने बाँट लिया था उनकी एक बड़ी सी चूँची भैया के हवाले और दूसरी मैं रगड़ रही थी। भाई का मोटा मूसल माँ के भोंसडे में,... और मेरे दोनों होंठ माँ की क्लिट पे,
भैया दो बार झड़ा था एक बार अपनी माँ की गाँड़ में, दुबारा सगी छोटी बहन की चुनमुनिया में तो इतनी जल्दी तो हार मानने वाला नहीं था, चोद चोद के माँ को थेथर कर रहा था , और अकेले तब भी उसके बस का नहीं था, लेकिन उसकी छोटी बहन की जीभ कम नहीं थी , तो एक बार जब भैया ने अपनी पिचकारी माँ की बिल में छोड़ी साथ माँ भी गई उस पार,... और इस बार बड़ी देर तक वो कांपती रही।
पूरी रात हम तीनो ने खूब मस्ती की और पहली बार माँ के हर छेद में भैया ने मलाई छोड़ी और तीन बार माँ को हम दोनों ने मिल के झाड़ दिया।
लेकिन उसका बदला माँ ने सुबह लिया स्कूल जाने के पहले माँ ने लिया सूद समेत, जिस तरह भैया से गाँड़ मरवाई मेरी,... पता नहीं का उन्होंने नाश्ते में खिला दिया था अपने बेटे को वो पूरा सांड़ हो रहा था,... मैं रो रही थी चीख रही थी,... और स्कूल के रस्ते में दोनों सहेलियों के कंधे पकड़ के ही गयी समझो टांग के ले गयीं वो सब।
छुटकी सुन रही मुस्करा रही थी, गीता और उसके भाई अरविन्द का किस्सा सुन सुन के,... और गीता भी मुस्कराने लगी और उसने एक मजेदार बात बतायी,
माँ एक बदमाशी और करती कभी कभी रात में मुझ जबरदस्ती ढेर सारा खिलाती कुछ प्यार से कुछ दुलार से कुछ जबरदस्ती डाँट डांट के,... लेकिन उस दिन रात के आखिरी फर बल्कि भोर में जब मुझे बड़ी जोर की लगती थी न,... इत्ता रात में खायी होती, एकदम रोका नहीं जाता,... उस समय जबरदस्ती मुझे पकड़ के दबोच के निहुरा के भैया से गाँड़ मेरी मरवाती। अपने हाथ से अपने बेटे का पकड़ के मेरे पिछवाड़े,... और मैं जब दुहाई करती माँ, बस जाने दे बहुत जोर से लगी है, लौट के,.. तो हंस के मेरी छोटी छोटी चूँची दबा के निप्स खींच के बोलतीं
" अरे स्साली छिनार काहें घबड़ा रही है, मेरा बेटा इतनी मोटी डॉट लगाए हैं, कुछ नहीं होने वाला है "
और भैया भी, सुबह के समय तो हर लौंडे का खड़ा होता है तो उसका भी , और मारने के साथ पकड़ के गोल गोल मथानी की तरह घुमाता भी, माँ की तरह मेरी हालत खराब करने में उसे भी मजा आता था,
गीता और छुटकी दोनों ये सोच सोच के हंस रही थीं,
और गीता ने माँ का एक और किस्सा सुनाया
" जानती हो ये स्साले लौंडे सब के सब गाँड़ के दीवाने होते हैं,... बस एक बार चखने की देर है और असली चक्कर है लड़की जब मिलती नहीं बल्कि लड़की की लेने के पहले आपस में ही,... तो जो लौंडा लौंडिया की गाँड़ न मारे समझ ले वो स्साला खुद गांडू है,... और अरविंदवा तो क्या हचक के गाँड़ मारता है, दोनों चूँची पकड़ के जब गाँड़ में पेलता है दिन में तारे दिखते हैं और दूसरी बात , गाँड़ मरवाते समय जितना चीखो चिल्लाओगी, तड़पोगी उसके चंगुल से छूटने की कोशिश करोगी मरद को उतना ही मजा मिलता है। वो और दबोच के रगड़ रगड़ के,... "माँ का पिछवाड़ा
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गीता और छुटकी दोनों ये सोच सोच के हंस रही थीं,
और गीता ने माँ का एक और किस्सा सुनाया
उस रात के बाद , बल्कि उस रात से ही भैया मेरा अरविन्द माँ की गाँड़ का दीवाना हो गया।
फिर कुछ रूक के छुटकी को चूम के उसकी कच्ची अमिया मसलते गीता ने ज्ञान दिया, " जानती हो ये स्साले लौंडे सब के सब गाँड़ के दीवाने होते हैं,... बस एक बार चखने की देर है और असली चक्कर है लड़की जब मिलती नहीं बल्कि लड़की की लेने के पहले आपस में ही,... तो जो लौंडा लौंडिया की गाँड़ न मारे समझ ले वो स्साला खुद गांडू है,... और अरविंदवा तो क्या हचक के गाँड़ मारता है, दोनों चूँची पकड़ के जब गाँड़ में पेलता है दिन में तारे दिखते हैं और दूसरी बात , गाँड़ मरवाते समय जितना चीखो चिल्लाओगी, तड़पोगी उसके चंगुल से छूटने की कोशिश करोगी मरद को उतना ही मजा मिलता है। वो और दबोच के रगड़ रगड़ के,... "
छुटकी ये सब बातें सुन सुन के खुश हो रही थी और उस के आँख सामने पहले दीदी के नन्दोई से फिर जीजू से गाँड़ मरवाने का सीन घूम रहा था लेकिन वो माँ वाली बात सुनना चाहती थी तो उसने गीता को टोका,
" दी, माँ वाली बात,... "
गीता कुछ देर खिलखिलाती रही फिर बोली माँ की गाँड़ तो भैया ने खूब आसन बदल बदल के , पहले तो निहुरा के और माँ को भी चाहे चुदवाना हो या गाँड़ मराना इसी पोज में सबसे अच्छा लगता है, मैंने खुद अपने हाथ से भैया का खूंटा पकड़ के माँ के पिछवाड़े सटाया और अपने हाथ से ही उनका चूतड़ कस के फैलाया, फिर क्या ताकत से भैया ने धक्का मारा,... पूरा सुपाड़ा एक बार में अंदर, गप्पांक
छुटकी ध्यान से सुन रही थी और गीता ने बात आगे बढ़ाई
" लेकिन मुझे भी तो मजा लेना था तो मैं माँ के आगे आयी और अपनी चिकनी चमेली माँ के मुंह पे ,... माँ ने मुझसे बहुत चटवाया था आज मेरा मौका था और जब कोई मर्द दो औरतों को आपस में मस्ती करते देखता है तो वो और गरम हो जाता है तो वही हालत भैया की हो रही थी मुझे चटवाते देख के वो पूरी ताकत से अपना मूसल माँ की गाँड़ में ठोंक रहा था। लेकिन कुछ देर बाद उसने पोज बदला माँ पीठ के बल और वो जैसे चोदते हैं बस आगे की जगह पीछे का छेद। माँ की दोनों टाँगे भैया के कंधे पर,...
" और दी आप क्या कर रही थीं "
छुटकी ने पूछा
" थोड़ी देर तक तो मैं भैया की बदमाशी देख रही थी फिर मैं भी माँ के ऊपर चढ़ के अपनी चूत उनके मुंह पे रगड़ने लगी और झुक के एक साथ होनी तीन ऊँगली माँ की बुर में पेल दिया और अब माँ के दोनों छेदों की पेलाई हो रही थी, एक तरफ से बेटा एक तरफ बेटी,...
माँ की चुनमुनिया मुझे बहुत प्यारी लगती है तो झुक के मैंने चूसना भी शुरू कर दिया और माँ बेटी 69 की पोज़ में और बेटा माँ की गांड़ मार रहा था। कुछ देर तक तो ऐसे ही
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फिर माँ को अपनी गोद में बिठा के और माँ भी ऐसी एक्सपर्ट की खुद उन्होंने अपने पिछवाड़े का छेद अपने बेटे के खूंटे पे सटा के क्या धक्के मारे,... भैया तो खाली उन्हें गोद में ले बैठा था , माँ खुद ऊपर नीचे होकर बेटे से गाँड़ कुटवा रही थीं और मुझे ऐसे देख रही थीं मानो कह रही हों सीख ले बेटी, बहन भाई के गोद में कैसे मजे लेती है। उसके बाद तो कोई दिन नागा नहीं गया जब भैया ने दिन दहाड़े मेरे सामने माँ की गाँड़ नहीं मारी हो और रात में तो माँ का नाइट स्कूल चलता ही था।