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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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“”फुलवा की ननद-घर वापसी
तीसरी बार अरविन्द ऐसे साइड से फुलवा की ननद के पिछवाड़े झड़ा। फुलवा की ननद अब उठने के लायक भी नहीं रह गयी थी बार बार कह रही थी अब बस
चमेलिया और गितवा बोलीं
" तीन बार नहीं कम से कम चार बार "
एक बार फिर दोनों सहेलियों ने चूस के भाई का लंड मिल के खड़ा किया और फुलवा की ननद की बोला
" चल स्साली चढ़ "
वो समझी की ऊपर चढ़ के चुदवाने की बात हो रही है लेकिन गितवा पहले से तैयार थी उसने ऐन मौके पे अपने भाई का खूंटा बजाय आगे के पीछे की ओर सटा दिया, ऊपर से चमेलिया ने बहन की ननद के दोनों कंधे पकड़ के दबा दिए,...
एक बार फिर से चीख पुकार
कुछ देर तक तो अरविन्द उसकी कमर पकड़ के कभी नीचे करता कभी नीचे से धक्का मारता, लेकिन गीता ने मना कर दिया नहीं अब ये खुद ऊपर नीचे चढ़ उतर के मरवाएँगी,... वरना अंदर ऐसी ही पेल के रखना,
बेचारी फुलवा की ननद , लेकिन कुछ देर के बाद उसने हलके हलके ऊपर नीचे हो के मरवाना शुरू किया दोनों हाथ जमीन पे रख के पुश कर के ऊपर होती, फिर धीरे धीरे सरकती हुयी नीचे, जिस गाँड़ में इस अमराई में आज घुसने के पहले ऊँगली घुसने में मुश्किल होती थी वो आज खुद कलाई ऐसा मोटा ऊपर नीचे कर के घोंट रही थी।
जब अरविन्द चौथी बार फुलवा की ननद की गाँड़ में झडा तो बेचारी खड़ा होने कौन कहे, उठने की हालत में नहीं थी, चमेलिया और गितवा ने उसे कपड़े पहनाये, ...पहनाये क्या देह पर टांग दिए,
लेकिन चमेलिया को एक बदमाशी सूझी वो बोली
" अरे ननद रानी अपने पिछवाड़े क स्वाद तो भैया क खूंटा से हमरे ऊँगली से ले लिया , हमरे पिछवाड़े क खुदे मुंह से चूस के तो ये गितवा बची है,... और जब तक गितवा समझे, चमेलिया की ऊँगली उसके पिछवाड़े और वहां से ननद के मुंह में
और उन दोनों के सहारे से किसी तरह फुलवा की ननद वापस लौटी,
सांझ हो चुकी थी।
जमीन पर एक कदम रखते ही जोर की चीख निकलती,... पिछवाड़े से अभी भी रह रह के सड़का टपक रहा था गालों पर जोबन पर दांतों के नाख़ून के निशान
गितवा की माँ भी फुलवा की माँ के घर के बाहर खड़ी थी,...
समझ तो दोनों गयीं की ये बुरी तरह से गाँड़ मरवा के आ रही है और खुश भी हुयी लेकिन गितवा की माँ ने पूछ ही लिया
" अरे ये का हुआ, ये तोहार हालत,... "
फुलवा की ननद की तो दर्द से हालत खराब थी, गुस्से से फुलवा की माँ की ओर इशारा करते बोली,
" और कौन करेगा, इनके दामाद ने,... चला नहीं जा रहा, कल सबेरे भिन्सारे वापस जाना है , एक कदम तो उठ नहीं रहा है कैसे गाँव जाउंगी अपने "
" अरे तो जिसने ये हालत किया है वही ले जायेगे पहुंचाएगा,... "गितवा की माँ मुस्कराते हुए बोली
तब तक अरविन्द कहीं दिख गया और गितवा की माँ ने उसे जोर से बुलाया,...
" सुन कल भिन्सारे, अपनी फटफटिया पे इसको फुलवा के ससुरारी, पीछे बैठा के, और हाँ बहिनयोरे जा रहे हो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए,... अभी जा के पांच सेर मिठाई ले आना , ... "
" बस , हो गया न फटफटिया पे टांग फैलाये रखना दोनों " चमेलिया ने चिढ़ाया
" और अरविन्द भैया को कस के पकडे रखना " गितवा क्यों छोड़ देती।
फुलवा की माँ बोली अरे तो फैलाये रहेगी न टांग कौन बड़ी बात है और बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कान दबायी ,...
अगले दिन जब फुलवा की ननद जा रही थी तो गितवा भी आयी और फुलवा की ननद उसे ऐसे गले भेंट के मिली जैसे कोई सगी बहन हो,... और वादा भी किया की बस होली ख़तम होने के चार पांच दिन बाद वो आएगी और फिर महीना भर रहेगी,...
और मामला भी साफ़ किया , दसवे का इम्तहान,... कउनो स्किम है की जो लड़की दस पास कर लेती हैं उनको कउनो कन्या योजना में दस हजार मिलता है तो बड़े मास्टर बोले हैं की बस इम्तहान मैं दे दूँ पास कराने का जिम्मा उनका,...
पीछे से चमेलिया ने अपनी बहन के ननद के दोनों जोबन दबाते हुए कहा, और पास कराई में ये मास्टर जी को दे देना,..
लेकिन इम्तहान के बाद , फुलवा की ननद ने हामी भरते हुए कहा, ... कॉपी वापी पे खाली हम नाम लिखे देंगे बाकी गुरु जी,...
अरविंद इन्तजार कर रहा था और फुलवा की ननद फटफटिया पर पीछे बैठ के चल दी,...
गीता थोड़ी देर चुप रही
फिर मुस्कराते हुए बोली तुम पूछती रहती हो ने ये कहाँ सीखी कैसे तो चलो बता देती हूँ माँ ने ही,...
,... लेकिन मुझे उन्होंने जो चीजें सिखायीं न,... हम लोगों के बीच रिश्ता माँ बेटी से बढ़ के सहेली का हो गया था,... हम दोनों बिना बात के खिलखिलाते रहते थे, देर तक बतियाते, माँ अपने मायके की, शादी के बाद की, और मैं भी स्कूल की, सहेलियों की, कुछ भी माँ से छुपाती नहीं थी। और माँ ने वो बातें बतायीं, वो सिखाया,... जो एक औरत ही,... " ये कह के गीता खिलखिलाने लगी.
और छुटकी के मन में और उत्सुकता बढ़ गयी, बताओ न दीदी, ... मुझसे क्या छिपाना।
गीता ने उसे गले से लगा लिया और चूम के बोली, " बुद्धू, ये बताने से ज्यादा सिखाने की चीज है, लेकिन चल तुझे भी सिखा दूंगी। "
और बताना शुरू किया, की माँ ने उसे कैसे बताया था की क्या क्या जोबन पे लगाएं क्या एक्सरसाइज करें की जोबन हरदम तने कड़े रहें,... चाहे जितना दबवाओ, मिसवाओ,... और माँ के खुद उन्होंने तो हम दोनों को दूध पिलाया था लेकिन अभी भी बिना ब्रा के एकदम टनाटन रहते थे उनके, हरदम तने खड़े,... मालिश का तरीका, बाहर से नीचे की ओर से हलके हाथ से ऊपर की ओर और एक खास् तेल था उनके पास, दस बाहर जड़ी बूटियां पड़ी थी उसमें, और उस तेल को बनाने का तरीका भी मुझे सिखाया था। पहले तो हर दूसरे तीसरे दिन में मेरे उभारों पे वो तेल लगा के, फिर खुद मुझे बोलतीं की मैं उनके सामने करूँ , हफ्ते भर में मैं पक्की हो गयी और चुनमुनिया का भी,.. "
छुटकी अपने को रोक नहीं पायी और बोली, चुनमुनिया का क्या,
" अरे वो असल में माँ का नहीं नानी का था, भैया के होने के बाद,... उनकी माँ ने सिखाया था कैसे क्या करें। उन्होंने मेरी माँ से कहा था की बच्चे होने के बाद औरत की ढीली हो जाती है , और फिर मरदो का मन फिरने लगता है तो उन्होंने कोई मलहम सा देसी दारू में मिला के ऊँगली में लगा के,... तो वही माँ मेरे साथ , ... और बोलती थीं यार तू दिन रात चुदवा, इस उमर में नहीं चुदवायेगी तो कब, और तेरे लिए मैंने सांड़ ऐसा बेटा जना है, तेरा भाई,.... लेकिन चूँची और चूत दोनों खूब टाइट होनी चाहिए,... पहली बार चुद रही लड़की की तरह,.. तो वो अभी भी हफ्ते में एक दो बार,... और रोज दो बार सुबह शाम और कभी कभी दिन में भी,... स्कूल में भी ,... "
" क्या " छुटकी बोली,
" तू भी किया कर ,... " बड़ी बहन की तरह गीता ने समझाया,... जब जोर से मूतवास लगती है न और चूत को भींच के रोकते हैं, बस वही,... बस पूरी ताकत से , लेकिन गिनती गिन के १०० तक रोके रह,... फिर धीरे धीरे टाइम बढ़ा के और देर तक,... फिर ढीला करो, लेकिन एक झटके में नहीं नहीं बहुत धीरे धीरे काम से कम १०० तक गिनती गिन पूरी ढीला होने तक,... और ये काम कम से कम २० बार, सुबह शाम, ... सिखा दूंगी न मैं तुझे सब,... और एक बात माँ ने समझायी मरद की देह में क्या होता है खूंटे के अलावा, उन्हें गरम करने के लिए,
छुटकी कान पारे सुन रही थी,...
गीता खिलखिला के बोली, माँ ने जो बताया तो मैं हंसती रही लेकिन बात उनकी सोलहों आने सही, वो बोलीं की जो जो छूने से लड़कियां गर्माती हैं बस वही, जैसे लड़कियां चूँची दबाते मसलते ही गर्माने लगती है, तो मर्द के भी जो छोटी छोटी टिट्स होती हैं वहां बस सहला दो , नाख़ून से , जीभ से छू दे,...
लेकिन छुटकी हँसते हुए बोली पर दी, उनकी चूत तो नहीं होती न,
" एकदम होती है बस पीछे की ओर होती है " हंसती हुयी गीता बोली और छुटकी को गले लगा के समझा दिया , अरे पीछे वाली दरार छूने से भी बहुत मरद गिनगीना जाते हैं , चूतड़ सहलवाना भी अच्छा लगता है , चल सब सब समझा दूंगी तुझे अभी तो तू तीन चार महीने है न यहां। "
लेकिन एक बात और छुटकी को नहीं समझ में आ रही थी और उसने पूछ लिया,
"माँ नहीं है , कहाँ गयी कब आएँगी "
और अब गीता थोड़ी खामोश हो गयी पर रुक रुक के उसने सब बता दिया
“”फुलवा की ननद-घर वापसी
तीसरी बार अरविन्द ऐसे साइड से फुलवा की ननद के पिछवाड़े झड़ा। फुलवा की ननद अब उठने के लायक भी नहीं रह गयी थी बार बार कह रही थी अब बस
चमेलिया और गितवा बोलीं
" तीन बार नहीं कम से कम चार बार "
एक बार फिर दोनों सहेलियों ने चूस के भाई का लंड मिल के खड़ा किया और फुलवा की ननद की बोला
" चल स्साली चढ़ "
वो समझी की ऊपर चढ़ के चुदवाने की बात हो रही है लेकिन गितवा पहले से तैयार थी उसने ऐन मौके पे अपने भाई का खूंटा बजाय आगे के पीछे की ओर सटा दिया, ऊपर से चमेलिया ने बहन की ननद के दोनों कंधे पकड़ के दबा दिए,...
एक बार फिर से चीख पुकार
कुछ देर तक तो अरविन्द उसकी कमर पकड़ के कभी नीचे करता कभी नीचे से धक्का मारता, लेकिन गीता ने मना कर दिया नहीं अब ये खुद ऊपर नीचे चढ़ उतर के मरवाएँगी,... वरना अंदर ऐसी ही पेल के रखना,
बेचारी फुलवा की ननद , लेकिन कुछ देर के बाद उसने हलके हलके ऊपर नीचे हो के मरवाना शुरू किया दोनों हाथ जमीन पे रख के पुश कर के ऊपर होती, फिर धीरे धीरे सरकती हुयी नीचे, जिस गाँड़ में इस अमराई में आज घुसने के पहले ऊँगली घुसने में मुश्किल होती थी वो आज खुद कलाई ऐसा मोटा ऊपर नीचे कर के घोंट रही थी।
जब अरविन्द चौथी बार फुलवा की ननद की गाँड़ में झडा तो बेचारी खड़ा होने कौन कहे, उठने की हालत में नहीं थी, चमेलिया और गितवा ने उसे कपड़े पहनाये, ...पहनाये क्या देह पर टांग दिए,
लेकिन चमेलिया को एक बदमाशी सूझी वो बोली
" अरे ननद रानी अपने पिछवाड़े क स्वाद तो भैया क खूंटा से हमरे ऊँगली से ले लिया , हमरे पिछवाड़े क खुदे मुंह से चूस के तो ये गितवा बची है,... और जब तक गितवा समझे, चमेलिया की ऊँगली उसके पिछवाड़े और वहां से ननद के मुंह में
और उन दोनों के सहारे से किसी तरह फुलवा की ननद वापस लौटी,
सांझ हो चुकी थी।
जमीन पर एक कदम रखते ही जोर की चीख निकलती,... पिछवाड़े से अभी भी रह रह के सड़का टपक रहा था गालों पर जोबन पर दांतों के नाख़ून के निशान
गितवा की माँ भी फुलवा की माँ के घर के बाहर खड़ी थी,...
समझ तो दोनों गयीं की ये बुरी तरह से गाँड़ मरवा के आ रही है और खुश भी हुयी लेकिन गितवा की माँ ने पूछ ही लिया
" अरे ये का हुआ, ये तोहार हालत,... "
फुलवा की ननद की तो दर्द से हालत खराब थी, गुस्से से फुलवा की माँ की ओर इशारा करते बोली,
" और कौन करेगा, इनके दामाद ने,... चला नहीं जा रहा, कल सबेरे भिन्सारे वापस जाना है , एक कदम तो उठ नहीं रहा है कैसे गाँव जाउंगी अपने "
" अरे तो जिसने ये हालत किया है वही ले जायेगे पहुंचाएगा,... "गितवा की माँ मुस्कराते हुए बोली
तब तक अरविन्द कहीं दिख गया और गितवा की माँ ने उसे जोर से बुलाया,...
" सुन कल भिन्सारे, अपनी फटफटिया पे इसको फुलवा के ससुरारी, पीछे बैठा के, और हाँ बहिनयोरे जा रहे हो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए,... अभी जा के पांच सेर मिठाई ले आना , ... "
" बस , हो गया न फटफटिया पे टांग फैलाये रखना दोनों " चमेलिया ने चिढ़ाया
" और अरविन्द भैया को कस के पकडे रखना " गितवा क्यों छोड़ देती।
फुलवा की माँ बोली अरे तो फैलाये रहेगी न टांग कौन बड़ी बात है और बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कान दबायी ,...
अगले दिन जब फुलवा की ननद जा रही थी तो गितवा भी आयी और फुलवा की ननद उसे ऐसे गले भेंट के मिली जैसे कोई सगी बहन हो,... और वादा भी किया की बस होली ख़तम होने के चार पांच दिन बाद वो आएगी और फिर महीना भर रहेगी,...
और मामला भी साफ़ किया , दसवे का इम्तहान,... कउनो स्किम है की जो लड़की दस पास कर लेती हैं उनको कउनो कन्या योजना में दस हजार मिलता है तो बड़े मास्टर बोले हैं की बस इम्तहान मैं दे दूँ पास कराने का जिम्मा उनका,...
पीछे से चमेलिया ने अपनी बहन के ननद के दोनों जोबन दबाते हुए कहा, और पास कराई में ये मास्टर जी को दे देना,..
लेकिन इम्तहान के बाद , फुलवा की ननद ने हामी भरते हुए कहा, ... कॉपी वापी पे खाली हम नाम लिखे देंगे बाकी गुरु जी,...
अरविंद इन्तजार कर रहा था और फुलवा की ननद फटफटिया पर पीछे बैठ के चल दी,...
गीता थोड़ी देर चुप रही
फिर मुस्कराते हुए बोली तुम पूछती रहती हो ने ये कहाँ सीखी कैसे तो चलो बता देती हूँ माँ ने ही,...
,... लेकिन मुझे उन्होंने जो चीजें सिखायीं न,... हम लोगों के बीच रिश्ता माँ बेटी से बढ़ के सहेली का हो गया था,... हम दोनों बिना बात के खिलखिलाते रहते थे, देर तक बतियाते, माँ अपने मायके की, शादी के बाद की, और मैं भी स्कूल की, सहेलियों की, कुछ भी माँ से छुपाती नहीं थी। और माँ ने वो बातें बतायीं, वो सिखाया,... जो एक औरत ही,... " ये कह के गीता खिलखिलाने लगी.
और छुटकी के मन में और उत्सुकता बढ़ गयी, बताओ न दीदी, ... मुझसे क्या छिपाना।
गीता ने उसे गले से लगा लिया और चूम के बोली, " बुद्धू, ये बताने से ज्यादा सिखाने की चीज है, लेकिन चल तुझे भी सिखा दूंगी। "
और बताना शुरू किया, की माँ ने उसे कैसे बताया था की क्या क्या जोबन पे लगाएं क्या एक्सरसाइज करें की जोबन हरदम तने कड़े रहें,... चाहे जितना दबवाओ, मिसवाओ,... और माँ के खुद उन्होंने तो हम दोनों को दूध पिलाया था लेकिन अभी भी बिना ब्रा के एकदम टनाटन रहते थे उनके, हरदम तने खड़े,... मालिश का तरीका, बाहर से नीचे की ओर से हलके हाथ से ऊपर की ओर और एक खास् तेल था उनके पास, दस बाहर जड़ी बूटियां पड़ी थी उसमें, और उस तेल को बनाने का तरीका भी मुझे सिखाया था। पहले तो हर दूसरे तीसरे दिन में मेरे उभारों पे वो तेल लगा के, फिर खुद मुझे बोलतीं की मैं उनके सामने करूँ , हफ्ते भर में मैं पक्की हो गयी और चुनमुनिया का भी,.. "
छुटकी अपने को रोक नहीं पायी और बोली, चुनमुनिया का क्या,
" अरे वो असल में माँ का नहीं नानी का था, भैया के होने के बाद,... उनकी माँ ने सिखाया था कैसे क्या करें। उन्होंने मेरी माँ से कहा था की बच्चे होने के बाद औरत की ढीली हो जाती है , और फिर मरदो का मन फिरने लगता है तो उन्होंने कोई मलहम सा देसी दारू में मिला के ऊँगली में लगा के,... तो वही माँ मेरे साथ , ... और बोलती थीं यार तू दिन रात चुदवा, इस उमर में नहीं चुदवायेगी तो कब, और तेरे लिए मैंने सांड़ ऐसा बेटा जना है, तेरा भाई,.... लेकिन चूँची और चूत दोनों खूब टाइट होनी चाहिए,... पहली बार चुद रही लड़की की तरह,.. तो वो अभी भी हफ्ते में एक दो बार,... और रोज दो बार सुबह शाम और कभी कभी दिन में भी,... स्कूल में भी ,... "
" क्या " छुटकी बोली,
" तू भी किया कर ,... " बड़ी बहन की तरह गीता ने समझाया,... जब जोर से मूतवास लगती है न और चूत को भींच के रोकते हैं, बस वही,... बस पूरी ताकत से , लेकिन गिनती गिन के १०० तक रोके रह,... फिर धीरे धीरे टाइम बढ़ा के और देर तक,... फिर ढीला करो, लेकिन एक झटके में नहीं नहीं बहुत धीरे धीरे काम से कम १०० तक गिनती गिन पूरी ढीला होने तक,... और ये काम कम से कम २० बार, सुबह शाम, ... सिखा दूंगी न मैं तुझे सब,... और एक बात माँ ने समझायी मरद की देह में क्या होता है खूंटे के अलावा, उन्हें गरम करने के लिए,
छुटकी कान पारे सुन रही थी,...
गीता खिलखिला के बोली, माँ ने जो बताया तो मैं हंसती रही लेकिन बात उनकी सोलहों आने सही, वो बोलीं की जो जो छूने से लड़कियां गर्माती हैं बस वही, जैसे लड़कियां चूँची दबाते मसलते ही गर्माने लगती है, तो मर्द के भी जो छोटी छोटी टिट्स होती हैं वहां बस सहला दो , नाख़ून से , जीभ से छू दे,...
लेकिन छुटकी हँसते हुए बोली पर दी, उनकी चूत तो नहीं होती न,
" एकदम होती है बस पीछे की ओर होती है " हंसती हुयी गीता बोली और छुटकी को गले लगा के समझा दिया , अरे पीछे वाली दरार छूने से भी बहुत मरद गिनगीना जाते हैं , चूतड़ सहलवाना भी अच्छा लगता है , चल सब सब समझा दूंगी तुझे अभी तो तू तीन चार महीने है न यहां। "
लेकिन एक बात और छुटकी को नहीं समझ में आ रही थी और उसने पूछ लिया,
"माँ नहीं है , कहाँ गयी कब आएँगी "
और अब गीता थोड़ी खामोश हो गयी पर रुक रुक के उसने सब बता दिया
“”फुलवा की ननद-घर वापसी
तीसरी बार अरविन्द ऐसे साइड से फुलवा की ननद के पिछवाड़े झड़ा। फुलवा की ननद अब उठने के लायक भी नहीं रह गयी थी बार बार कह रही थी अब बस
चमेलिया और गितवा बोलीं
" तीन बार नहीं कम से कम चार बार "
एक बार फिर दोनों सहेलियों ने चूस के भाई का लंड मिल के खड़ा किया और फुलवा की ननद की बोला
" चल स्साली चढ़ "
वो समझी की ऊपर चढ़ के चुदवाने की बात हो रही है लेकिन गितवा पहले से तैयार थी उसने ऐन मौके पे अपने भाई का खूंटा बजाय आगे के पीछे की ओर सटा दिया, ऊपर से चमेलिया ने बहन की ननद के दोनों कंधे पकड़ के दबा दिए,...
एक बार फिर से चीख पुकार
कुछ देर तक तो अरविन्द उसकी कमर पकड़ के कभी नीचे करता कभी नीचे से धक्का मारता, लेकिन गीता ने मना कर दिया नहीं अब ये खुद ऊपर नीचे चढ़ उतर के मरवाएँगी,... वरना अंदर ऐसी ही पेल के रखना,
बेचारी फुलवा की ननद , लेकिन कुछ देर के बाद उसने हलके हलके ऊपर नीचे हो के मरवाना शुरू किया दोनों हाथ जमीन पे रख के पुश कर के ऊपर होती, फिर धीरे धीरे सरकती हुयी नीचे, जिस गाँड़ में इस अमराई में आज घुसने के पहले ऊँगली घुसने में मुश्किल होती थी वो आज खुद कलाई ऐसा मोटा ऊपर नीचे कर के घोंट रही थी।
जब अरविन्द चौथी बार फुलवा की ननद की गाँड़ में झडा तो बेचारी खड़ा होने कौन कहे, उठने की हालत में नहीं थी, चमेलिया और गितवा ने उसे कपड़े पहनाये, ...पहनाये क्या देह पर टांग दिए,
लेकिन चमेलिया को एक बदमाशी सूझी वो बोली
" अरे ननद रानी अपने पिछवाड़े क स्वाद तो भैया क खूंटा से हमरे ऊँगली से ले लिया , हमरे पिछवाड़े क खुदे मुंह से चूस के तो ये गितवा बची है,... और जब तक गितवा समझे, चमेलिया की ऊँगली उसके पिछवाड़े और वहां से ननद के मुंह में
और उन दोनों के सहारे से किसी तरह फुलवा की ननद वापस लौटी,
सांझ हो चुकी थी।
जमीन पर एक कदम रखते ही जोर की चीख निकलती,... पिछवाड़े से अभी भी रह रह के सड़का टपक रहा था गालों पर जोबन पर दांतों के नाख़ून के निशान
गितवा की माँ भी फुलवा की माँ के घर के बाहर खड़ी थी,...
समझ तो दोनों गयीं की ये बुरी तरह से गाँड़ मरवा के आ रही है और खुश भी हुयी लेकिन गितवा की माँ ने पूछ ही लिया
" अरे ये का हुआ, ये तोहार हालत,... "
फुलवा की ननद की तो दर्द से हालत खराब थी, गुस्से से फुलवा की माँ की ओर इशारा करते बोली,
" और कौन करेगा, इनके दामाद ने,... चला नहीं जा रहा, कल सबेरे भिन्सारे वापस जाना है , एक कदम तो उठ नहीं रहा है कैसे गाँव जाउंगी अपने "
" अरे तो जिसने ये हालत किया है वही ले जायेगे पहुंचाएगा,... "गितवा की माँ मुस्कराते हुए बोली
तब तक अरविन्द कहीं दिख गया और गितवा की माँ ने उसे जोर से बुलाया,...
" सुन कल भिन्सारे, अपनी फटफटिया पे इसको फुलवा के ससुरारी, पीछे बैठा के, और हाँ बहिनयोरे जा रहे हो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए,... अभी जा के पांच सेर मिठाई ले आना , ... "
" बस , हो गया न फटफटिया पे टांग फैलाये रखना दोनों " चमेलिया ने चिढ़ाया
" और अरविन्द भैया को कस के पकडे रखना " गितवा क्यों छोड़ देती।
फुलवा की माँ बोली अरे तो फैलाये रहेगी न टांग कौन बड़ी बात है और बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कान दबायी ,...
अगले दिन जब फुलवा की ननद जा रही थी तो गितवा भी आयी और फुलवा की ननद उसे ऐसे गले भेंट के मिली जैसे कोई सगी बहन हो,... और वादा भी किया की बस होली ख़तम होने के चार पांच दिन बाद वो आएगी और फिर महीना भर रहेगी,...
और मामला भी साफ़ किया , दसवे का इम्तहान,... कउनो स्किम है की जो लड़की दस पास कर लेती हैं उनको कउनो कन्या योजना में दस हजार मिलता है तो बड़े मास्टर बोले हैं की बस इम्तहान मैं दे दूँ पास कराने का जिम्मा उनका,...
पीछे से चमेलिया ने अपनी बहन के ननद के दोनों जोबन दबाते हुए कहा, और पास कराई में ये मास्टर जी को दे देना,..
लेकिन इम्तहान के बाद , फुलवा की ननद ने हामी भरते हुए कहा, ... कॉपी वापी पे खाली हम नाम लिखे देंगे बाकी गुरु जी,...
अरविंद इन्तजार कर रहा था और फुलवा की ननद फटफटिया पर पीछे बैठ के चल दी,...
गीता थोड़ी देर चुप रही
फिर मुस्कराते हुए बोली तुम पूछती रहती हो ने ये कहाँ सीखी कैसे तो चलो बता देती हूँ माँ ने ही,...
,... लेकिन मुझे उन्होंने जो चीजें सिखायीं न,... हम लोगों के बीच रिश्ता माँ बेटी से बढ़ के सहेली का हो गया था,... हम दोनों बिना बात के खिलखिलाते रहते थे, देर तक बतियाते, माँ अपने मायके की, शादी के बाद की, और मैं भी स्कूल की, सहेलियों की, कुछ भी माँ से छुपाती नहीं थी। और माँ ने वो बातें बतायीं, वो सिखाया,... जो एक औरत ही,... " ये कह के गीता खिलखिलाने लगी.
और छुटकी के मन में और उत्सुकता बढ़ गयी, बताओ न दीदी, ... मुझसे क्या छिपाना।
गीता ने उसे गले से लगा लिया और चूम के बोली, " बुद्धू, ये बताने से ज्यादा सिखाने की चीज है, लेकिन चल तुझे भी सिखा दूंगी। "
और बताना शुरू किया, की माँ ने उसे कैसे बताया था की क्या क्या जोबन पे लगाएं क्या एक्सरसाइज करें की जोबन हरदम तने कड़े रहें,... चाहे जितना दबवाओ, मिसवाओ,... और माँ के खुद उन्होंने तो हम दोनों को दूध पिलाया था लेकिन अभी भी बिना ब्रा के एकदम टनाटन रहते थे उनके, हरदम तने खड़े,... मालिश का तरीका, बाहर से नीचे की ओर से हलके हाथ से ऊपर की ओर और एक खास् तेल था उनके पास, दस बाहर जड़ी बूटियां पड़ी थी उसमें, और उस तेल को बनाने का तरीका भी मुझे सिखाया था। पहले तो हर दूसरे तीसरे दिन में मेरे उभारों पे वो तेल लगा के, फिर खुद मुझे बोलतीं की मैं उनके सामने करूँ , हफ्ते भर में मैं पक्की हो गयी और चुनमुनिया का भी,.. "
छुटकी अपने को रोक नहीं पायी और बोली, चुनमुनिया का क्या,
" अरे वो असल में माँ का नहीं नानी का था, भैया के होने के बाद,... उनकी माँ ने सिखाया था कैसे क्या करें। उन्होंने मेरी माँ से कहा था की बच्चे होने के बाद औरत की ढीली हो जाती है , और फिर मरदो का मन फिरने लगता है तो उन्होंने कोई मलहम सा देसी दारू में मिला के ऊँगली में लगा के,... तो वही माँ मेरे साथ , ... और बोलती थीं यार तू दिन रात चुदवा, इस उमर में नहीं चुदवायेगी तो कब, और तेरे लिए मैंने सांड़ ऐसा बेटा जना है, तेरा भाई,.... लेकिन चूँची और चूत दोनों खूब टाइट होनी चाहिए,... पहली बार चुद रही लड़की की तरह,.. तो वो अभी भी हफ्ते में एक दो बार,... और रोज दो बार सुबह शाम और कभी कभी दिन में भी,... स्कूल में भी ,... "
" क्या " छुटकी बोली,
" तू भी किया कर ,... " बड़ी बहन की तरह गीता ने समझाया,... जब जोर से मूतवास लगती है न और चूत को भींच के रोकते हैं, बस वही,... बस पूरी ताकत से , लेकिन गिनती गिन के १०० तक रोके रह,... फिर धीरे धीरे टाइम बढ़ा के और देर तक,... फिर ढीला करो, लेकिन एक झटके में नहीं नहीं बहुत धीरे धीरे काम से कम १०० तक गिनती गिन पूरी ढीला होने तक,... और ये काम कम से कम २० बार, सुबह शाम, ... सिखा दूंगी न मैं तुझे सब,... और एक बात माँ ने समझायी मरद की देह में क्या होता है खूंटे के अलावा, उन्हें गरम करने के लिए,
छुटकी कान पारे सुन रही थी,...
गीता खिलखिला के बोली, माँ ने जो बताया तो मैं हंसती रही लेकिन बात उनकी सोलहों आने सही, वो बोलीं की जो जो छूने से लड़कियां गर्माती हैं बस वही, जैसे लड़कियां चूँची दबाते मसलते ही गर्माने लगती है, तो मर्द के भी जो छोटी छोटी टिट्स होती हैं वहां बस सहला दो , नाख़ून से , जीभ से छू दे,...
लेकिन छुटकी हँसते हुए बोली पर दी, उनकी चूत तो नहीं होती न,
" एकदम होती है बस पीछे की ओर होती है " हंसती हुयी गीता बोली और छुटकी को गले लगा के समझा दिया , अरे पीछे वाली दरार छूने से भी बहुत मरद गिनगीना जाते हैं , चूतड़ सहलवाना भी अच्छा लगता है , चल सब सब समझा दूंगी तुझे अभी तो तू तीन चार महीने है न यहां। "
लेकिन एक बात और छुटकी को नहीं समझ में आ रही थी और उसने पूछ लिया,
"माँ नहीं है , कहाँ गयी कब आएँगी "
और अब गीता थोड़ी खामोश हो गयी पर रुक रुक के उसने सब बता दिया
“”फुलवा की ननद-घर वापसी
तीसरी बार अरविन्द ऐसे साइड से फुलवा की ननद के पिछवाड़े झड़ा। फुलवा की ननद अब उठने के लायक भी नहीं रह गयी थी बार बार कह रही थी अब बस
चमेलिया और गितवा बोलीं
" तीन बार नहीं कम से कम चार बार "
एक बार फिर दोनों सहेलियों ने चूस के भाई का लंड मिल के खड़ा किया और फुलवा की ननद की बोला
" चल स्साली चढ़ "
वो समझी की ऊपर चढ़ के चुदवाने की बात हो रही है लेकिन गितवा पहले से तैयार थी उसने ऐन मौके पे अपने भाई का खूंटा बजाय आगे के पीछे की ओर सटा दिया, ऊपर से चमेलिया ने बहन की ननद के दोनों कंधे पकड़ के दबा दिए,...
एक बार फिर से चीख पुकार
कुछ देर तक तो अरविन्द उसकी कमर पकड़ के कभी नीचे करता कभी नीचे से धक्का मारता, लेकिन गीता ने मना कर दिया नहीं अब ये खुद ऊपर नीचे चढ़ उतर के मरवाएँगी,... वरना अंदर ऐसी ही पेल के रखना,
बेचारी फुलवा की ननद , लेकिन कुछ देर के बाद उसने हलके हलके ऊपर नीचे हो के मरवाना शुरू किया दोनों हाथ जमीन पे रख के पुश कर के ऊपर होती, फिर धीरे धीरे सरकती हुयी नीचे, जिस गाँड़ में इस अमराई में आज घुसने के पहले ऊँगली घुसने में मुश्किल होती थी वो आज खुद कलाई ऐसा मोटा ऊपर नीचे कर के घोंट रही थी।
जब अरविन्द चौथी बार फुलवा की ननद की गाँड़ में झडा तो बेचारी खड़ा होने कौन कहे, उठने की हालत में नहीं थी, चमेलिया और गितवा ने उसे कपड़े पहनाये, ...पहनाये क्या देह पर टांग दिए,
लेकिन चमेलिया को एक बदमाशी सूझी वो बोली
" अरे ननद रानी अपने पिछवाड़े क स्वाद तो भैया क खूंटा से हमरे ऊँगली से ले लिया , हमरे पिछवाड़े क खुदे मुंह से चूस के तो ये गितवा बची है,... और जब तक गितवा समझे, चमेलिया की ऊँगली उसके पिछवाड़े और वहां से ननद के मुंह में
और उन दोनों के सहारे से किसी तरह फुलवा की ननद वापस लौटी,
सांझ हो चुकी थी।
जमीन पर एक कदम रखते ही जोर की चीख निकलती,... पिछवाड़े से अभी भी रह रह के सड़का टपक रहा था गालों पर जोबन पर दांतों के नाख़ून के निशान
गितवा की माँ भी फुलवा की माँ के घर के बाहर खड़ी थी,...
समझ तो दोनों गयीं की ये बुरी तरह से गाँड़ मरवा के आ रही है और खुश भी हुयी लेकिन गितवा की माँ ने पूछ ही लिया
" अरे ये का हुआ, ये तोहार हालत,... "
फुलवा की ननद की तो दर्द से हालत खराब थी, गुस्से से फुलवा की माँ की ओर इशारा करते बोली,
" और कौन करेगा, इनके दामाद ने,... चला नहीं जा रहा, कल सबेरे भिन्सारे वापस जाना है , एक कदम तो उठ नहीं रहा है कैसे गाँव जाउंगी अपने "
" अरे तो जिसने ये हालत किया है वही ले जायेगे पहुंचाएगा,... "गितवा की माँ मुस्कराते हुए बोली
तब तक अरविन्द कहीं दिख गया और गितवा की माँ ने उसे जोर से बुलाया,...
" सुन कल भिन्सारे, अपनी फटफटिया पे इसको फुलवा के ससुरारी, पीछे बैठा के, और हाँ बहिनयोरे जा रहे हो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए,... अभी जा के पांच सेर मिठाई ले आना , ... "
" बस , हो गया न फटफटिया पे टांग फैलाये रखना दोनों " चमेलिया ने चिढ़ाया
" और अरविन्द भैया को कस के पकडे रखना " गितवा क्यों छोड़ देती।
फुलवा की माँ बोली अरे तो फैलाये रहेगी न टांग कौन बड़ी बात है और बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कान दबायी ,...
अगले दिन जब फुलवा की ननद जा रही थी तो गितवा भी आयी और फुलवा की ननद उसे ऐसे गले भेंट के मिली जैसे कोई सगी बहन हो,... और वादा भी किया की बस होली ख़तम होने के चार पांच दिन बाद वो आएगी और फिर महीना भर रहेगी,...
और मामला भी साफ़ किया , दसवे का इम्तहान,... कउनो स्किम है की जो लड़की दस पास कर लेती हैं उनको कउनो कन्या योजना में दस हजार मिलता है तो बड़े मास्टर बोले हैं की बस इम्तहान मैं दे दूँ पास कराने का जिम्मा उनका,...
पीछे से चमेलिया ने अपनी बहन के ननद के दोनों जोबन दबाते हुए कहा, और पास कराई में ये मास्टर जी को दे देना,..
लेकिन इम्तहान के बाद , फुलवा की ननद ने हामी भरते हुए कहा, ... कॉपी वापी पे खाली हम नाम लिखे देंगे बाकी गुरु जी,...
अरविंद इन्तजार कर रहा था और फुलवा की ननद फटफटिया पर पीछे बैठ के चल दी,...
गीता थोड़ी देर चुप रही
फिर मुस्कराते हुए बोली तुम पूछती रहती हो ने ये कहाँ सीखी कैसे तो चलो बता देती हूँ माँ ने ही,...
,... लेकिन मुझे उन्होंने जो चीजें सिखायीं न,... हम लोगों के बीच रिश्ता माँ बेटी से बढ़ के सहेली का हो गया था,... हम दोनों बिना बात के खिलखिलाते रहते थे, देर तक बतियाते, माँ अपने मायके की, शादी के बाद की, और मैं भी स्कूल की, सहेलियों की, कुछ भी माँ से छुपाती नहीं थी। और माँ ने वो बातें बतायीं, वो सिखाया,... जो एक औरत ही,... " ये कह के गीता खिलखिलाने लगी.
और छुटकी के मन में और उत्सुकता बढ़ गयी, बताओ न दीदी, ... मुझसे क्या छिपाना।
गीता ने उसे गले से लगा लिया और चूम के बोली, " बुद्धू, ये बताने से ज्यादा सिखाने की चीज है, लेकिन चल तुझे भी सिखा दूंगी। "
और बताना शुरू किया, की माँ ने उसे कैसे बताया था की क्या क्या जोबन पे लगाएं क्या एक्सरसाइज करें की जोबन हरदम तने कड़े रहें,... चाहे जितना दबवाओ, मिसवाओ,... और माँ के खुद उन्होंने तो हम दोनों को दूध पिलाया था लेकिन अभी भी बिना ब्रा के एकदम टनाटन रहते थे उनके, हरदम तने खड़े,... मालिश का तरीका, बाहर से नीचे की ओर से हलके हाथ से ऊपर की ओर और एक खास् तेल था उनके पास, दस बाहर जड़ी बूटियां पड़ी थी उसमें, और उस तेल को बनाने का तरीका भी मुझे सिखाया था। पहले तो हर दूसरे तीसरे दिन में मेरे उभारों पे वो तेल लगा के, फिर खुद मुझे बोलतीं की मैं उनके सामने करूँ , हफ्ते भर में मैं पक्की हो गयी और चुनमुनिया का भी,.. "
छुटकी अपने को रोक नहीं पायी और बोली, चुनमुनिया का क्या,
" अरे वो असल में माँ का नहीं नानी का था, भैया के होने के बाद,... उनकी माँ ने सिखाया था कैसे क्या करें। उन्होंने मेरी माँ से कहा था की बच्चे होने के बाद औरत की ढीली हो जाती है , और फिर मरदो का मन फिरने लगता है तो उन्होंने कोई मलहम सा देसी दारू में मिला के ऊँगली में लगा के,... तो वही माँ मेरे साथ , ... और बोलती थीं यार तू दिन रात चुदवा, इस उमर में नहीं चुदवायेगी तो कब, और तेरे लिए मैंने सांड़ ऐसा बेटा जना है, तेरा भाई,.... लेकिन चूँची और चूत दोनों खूब टाइट होनी चाहिए,... पहली बार चुद रही लड़की की तरह,.. तो वो अभी भी हफ्ते में एक दो बार,... और रोज दो बार सुबह शाम और कभी कभी दिन में भी,... स्कूल में भी ,... "
" क्या " छुटकी बोली,
" तू भी किया कर ,... " बड़ी बहन की तरह गीता ने समझाया,... जब जोर से मूतवास लगती है न और चूत को भींच के रोकते हैं, बस वही,... बस पूरी ताकत से , लेकिन गिनती गिन के १०० तक रोके रह,... फिर धीरे धीरे टाइम बढ़ा के और देर तक,... फिर ढीला करो, लेकिन एक झटके में नहीं नहीं बहुत धीरे धीरे काम से कम १०० तक गिनती गिन पूरी ढीला होने तक,... और ये काम कम से कम २० बार, सुबह शाम, ... सिखा दूंगी न मैं तुझे सब,... और एक बात माँ ने समझायी मरद की देह में क्या होता है खूंटे के अलावा, उन्हें गरम करने के लिए,
छुटकी कान पारे सुन रही थी,...
गीता खिलखिला के बोली, माँ ने जो बताया तो मैं हंसती रही लेकिन बात उनकी सोलहों आने सही, वो बोलीं की जो जो छूने से लड़कियां गर्माती हैं बस वही, जैसे लड़कियां चूँची दबाते मसलते ही गर्माने लगती है, तो मर्द के भी जो छोटी छोटी टिट्स होती हैं वहां बस सहला दो , नाख़ून से , जीभ से छू दे,...
लेकिन छुटकी हँसते हुए बोली पर दी, उनकी चूत तो नहीं होती न,
" एकदम होती है बस पीछे की ओर होती है " हंसती हुयी गीता बोली और छुटकी को गले लगा के समझा दिया , अरे पीछे वाली दरार छूने से भी बहुत मरद गिनगीना जाते हैं , चूतड़ सहलवाना भी अच्छा लगता है , चल सब सब समझा दूंगी तुझे अभी तो तू तीन चार महीने है न यहां। "
लेकिन एक बात और छुटकी को नहीं समझ में आ रही थी और उसने पूछ लिया,
"माँ नहीं है , कहाँ गयी कब आएँगी "
और अब गीता थोड़ी खामोश हो गयी पर रुक रुक के उसने सब बता दिया
एकदम सही कहा आपने , चाची ने फुलवा ने,...अरविन्द को उस्ताद सब अच्छे मिले
लेकिन अभी आप भाग ५२ में है
और भाग ५३ और भाग ५४ पोस्ट हो गया
जिस बाग़ में फुलवा के साथ, फिर फुलवा खुद ले आयी अपनी छुटकी बहिनिया चमेलिया को
उसी बाग़ में फुलवा की ननदिया का पिछवाड़ा
भाग ५३ - पृष्ठ ४९५ फुलवा की ननद
भाग ५४ पृष्ठ ५०७ स्वाद पिछवाड़े का
मैं इन्तजार करुँगी आपके कमेंट का इन दोनों भागों पर तभी अगला भाग आएगा
भाग ५५।
Arvind ke liye ab ijjat par baat aa gyi h.uske dariyadili ko darpok ka naam mil gyaभाग ५३ -
फुलवा की ननद-अमराई का किस्सा
छुटकी से नहीं रहा गया वो उछल गयी
" सच में ये तो बहुत नाइंसाफी है क्या अरविन्द भैया ने उसकी गाँड़ नहीं मारी थी , आप कह रही थी चुदवाती तो भैया से खूब चूतड़ मटका मटका के तो पिछवाड़े के मामले"
एक बार फिर फिर उसके रसीले होंठों को चूम के गितवा बोली,
" एक बात समझ ले की ननद का मतलब छिनार, और फुलवा की ननद तो हम सब की,पूरे गाँव की लड़कियों की ननद, छिनार नहीं जब्बर छिनार। स्साली नौटंकी करती थी, लेकिन गलती वो स्साले तेरे भाई की,अरविन्द की भी कम नहीं। लंड उसका जितना सख्त है दिल उतना मुलायम है और बहनचोद बुद्धू भी बहुत है कोई भी लड़की उसे चरा देगी। मैंने भैया से पूछा भी कई बार , कहा भी,
तो वो बोला की,, अरे वो बहुत चिल्लाती है , नौ नौ टसुए बहाने लगती है। जैसे ही मैं पिछवाड़े छुआता भी हूँ एकदम उछल जाती है, और टाइट है भी उसकी बहुत। अब वहां खेत में कहाँ तेल "
छुटकी वैसे तो बड़ी बहन की बात कभी नहीं काटती थी लेकिन अब उससे नहीं रहा गया, उफनती हुयी बोली,
" स्साली छिनार, अरे पटक के सूखे पेलना चाहिए था,... "
" यही तो , मैं भी भैया से बार बार कहती थी लेकिन वो सुने तब ना"
गीता ने अपना दुख सुनाया।
" तो क्या फुलवा की ननद अपना पिछवाड़ा कोरा लेकर चली गयी। " छुटकी उदास हो के बोली।
" अरे नहीं यार तेरी बड़ी बहन किस लिए हैं हम लड़कियों की नाक कट जाती अगर उसकी फटती नहीं और फिर मेरी पक्की सहेली चमेलिया थी न ,... लेकिन तू अब बीच में मत बोलना , वरना नहीं सुनाऊँगी अमराई का किस्सा। "
छुटकी ने दोनों कान पकडे और होंठ पे ऊँगली लगा के चुप रहने का इशारा किया और गितवा ने अमराई का किस्सा आगे बढ़ाया।
चमेलिया ने मुझसे कहा " सुन गितवा ये बिना गाँड़ फड़वाये चली जायेगी तो पूरे गाँव की नाक कटेगी. चल हम दोनों मिल के ही इसकी फाड़ देते हैं लंड से नहीं मुट्ठी से ही सही,.. "
और ये कह के चमेलिया ने फुलवा की ननद के दोनों हाथ कस के जकड़ लिए और मैंने आराम से उस की साड़ी पहले पेटीकोट से खोल के अलग की और खींच के एक ओर,
लेकिन फुलवा की ननद हंस रही थी, खिलखिला रही थी मुझे और चमेलिया को चिढ़ा रही थी,
" अरे जा जा , हमरे भैया के सारे में ताकत ही नहीं थी हमार गाँड़ मारने की ( अरविन्द को वो ' भैया क सार ' ही कहती थी और फुलवा उसके सगे भाई को बियाही थी, हमारे गाँव की लड़की, तो उस हिसाब से सही ही बोलती थी ), ... तू दोनों चला कल हमरे साथे हमरे गाँव, तोहरे बहिनी के देवर से मरवाइब तोहं दोनों की गाँड़,... "
मुझे बुरा लगा अरविन्द के बारे में जैसे वो बोल रही थी , उसकी साड़ी दोनों हाथों में कस के पकड़ते मैंने भी जवाब दिया,
" अरे जब हमार भाई मारना चाहता था तो दस बहाना तुंही बनायीं थी मार जोर जोर से चिल्ला रही थी, और जहाँ तोहरे गाँव के लौंडन क सवाल है तो भेज देना हमार भैया उनकी भी गाँड़ मार के भाड़ बना देगा तोहरे महतारी के भोंसडे से भी चाकर, ... उ सब खुदे गांडू,... "
लेकिन फुलवा की ननदिया, हँसते हुए बोली,
" हमरे भैया क सार और तोहार भाई एकदम बुद्धू हैं लड़की का तो काम रोना चिल्लाना मना करना है , मारने वाला मार लेता है अर्जी नहीं देता। "
और ये बात उस की एकदम सही थी, अगर मैं पहल न करती तो मेरी झिल्ली अबतक वैसे ही रहती , गीता ने हँसते हुए छुटकी से कबूला।
" फिर क्या हुआ " छुटकी अमराई का वो किस्सा बहुत ध्यान लगा के सुन रही थी।
" अरे वो फुलवा की ननदिया पक्की छिनार, हंस के गितवा बोली,...
मैंने उसकी साड़ी जो मैंने खींच के उतार ली थी पेड़ के ऊपर फेंकने के लिए हाथ दोनों ऊपर किये लेकिन रोकने के बजाय वो खिलखिला रही थी और मैं तब समझी जब मेरे फेंकते फेंकते, उसने मेरी साड़ी भी पेटीकोट से खींच दी और आँचल हाथ में पकड़ के वो चक्कर घिन्नी खायी की पूरी साड़ी उसके हाथ में और उसने मेरी साड़ी भी वहीँ फेंक दी जहाँ मैंने उसकी फेंकी थी अब हम दोनों ब्लाउज पेटीकोट में,... "
छुटकी जोर से मुस्करायी और गितवा बोली,...
और चमेलिया हम दोनों को पेटीकोट ब्लाउज में देख के हंस रही थी बोली, बड़ी अच्छी लग रही हो तुम दोनों,... बस हम दोनों ने मिल के उस की साड़ी खींच के आम के पेड़ पर फेंक दी और अब हम तीनों हंस रहे थे. लेकिन ये पहली बार नहीं हो रहा था हम तीनो आपस में खूब मस्ती करते थे, किसी दिन मैं अरविन्द से चुदवा के उन दोनों के पास पहुंचती थी, और मैं और चमेलिया उसे पटक के,... फिर मैं अपनी बिल फुलवा की ननदिया के मुंह पे रगड़ रगड़ के चटाती थी और पूछती थी बोल किसकी मलाई है
वो स्साली हंस के बोलती, अरे हमारे भैया क साले की और किसकी, ऐसी गाढ़ी स्वादिष्ट मलाई और कहाँ मिलेगी, और बची खुची होंठ पे चिपकी जीभ से चाट लेती,
चमेलिया उसे और चिढ़ाती, जउने दिन तोहरे भैया के सार गाँड़ मारेंगे न गितवा की तो सीधे अपने पिछवाड़े से खिलाएगी।
लेकिन उस दिन तो मामला कुछ और था हम दोनों ने तय किया था की फुलवा की ननद का पिछवाड़ा बिना फटे नहीं जाएगा , तो बस हम दोनों ने मिल के पहले तो पकड़ के उसकी चोली खोली,... और वो गरिया रही थी
" अरे हमरे भैया क सारे क रखैल,... तोहरे भाई का तो ताकत थी नहीं गाँड़ मारने की. महीना भर तोहरे गाँव में रह के कोरी गाँड़ ले के लौटेंगे तो तू लोग कहाँ से मारोगी,... हाँ बहुत मरवाने क मन कर रहा हो चला हमरे साथ फुलवा से मुलाकात भी कर लेना और अगवाड़ा पिछवाड़ा का स्वाद भी बदल लेना। "
लेकिन गलती से उससे ये हुयी की वो जोर जोर से बोल रही थी और उसी समय अरविन्द भैया बाग़ में पीछे से आये , मैंने और चमेलिया ने तो देख लिया पर फुलवा की ननदिया की पीठ उनकी ओर थी उसने नहीं देखा और वो बोलती रही,...
" हमारे भैया क सार वैसे तो बहुत निक है आपन बहिन दिए हैं हमरे भैया को, औजार भी तगड़ा है, ओनकर माई जरूर गदहा घोडा से चुदवाए होंगी लेकिन गाँड़ फाड़े वाली हिम्मत नहीं है . देखा हम कोरी गाँड़ लिए आये, कोरी लिए जा रहे हैं और वो मुंह से लार टपकावत,..."
तबतक भैया ने पीछे से उसे दबोच लिया और मैंने और चमेलिया ने भी,
Yuddh ki taiyari chal rhi h abhi. Talwar me dhaar lagai jaa rhi hपिछवाड़ा फुलवा की ननदिया का
लेकिन गलती से उससे ये हुयी की वो जोर जोर से बोल रही थी और उसी समय अरविन्द भैया बाग़ में पीछे से आये , मैंने और चमेलिया ने तो देख लिया पर फुलवा की ननदिया की पीठ उनकी ओर थी उसने नहीं देखा और वो बोलती रही,...
" हमारे भैया क सार वैसे तो बहुत निक है आपने बहिन दिए हैं हमरे भैया को, औजार भी तगड़ा है, ओनकर माई जरूर गदहा घोडा से चुदवाए होंगी.
लेकिन गाँड़ फाड़े वाली हिम्मत नहीं है . देखा हम कोरी गाँड़ लिए आये, कोरी लिए जा रहे हैं और वो मुंह से लार टपकावत,..."
तबतक भैया ने पीछे से उसे दबोच लिया और मैंने और चमेलिया ने भी,
चमेलिया ने उसका पेटीकोट का नाड़ा खींच के बाहर निकाल के मुझे पकड़ाया और मैंने पूरी ताकत से उसको दो हिस्सों में तोड़ दिया अब पहने पेटीकोट,
और अमराई में अब उसका पेटीकोट भी जमीन पर सरसराकर, नाड़ा निकला नहीं टूट चूका था। ओर और वो एकदम निसुती,
लेकिन उसने भी मुड़ के सीधे अरविन्द भैया का लोवर पकड़ के नीचे , ... शर्ट भैया ने खुद ही उतार फेंकी।
तीन तीन चढ़ती जवानियों को देख के किसका न खड़ा हो और अरविन्द तो मेरा प्यारा मीठा दुलारा भइया,... उसका सोते में भी ६ इंच का जितना कितनों का खड़े होने पे मुठियाने पे न हो,
फुलवा की ननदिया जब्बर छिनार, भैया का लंड देख के पनिया रही थी, लेकिन मुझको चिढ़ाते बोली,
" चलो तुम दोनों इतना चिरौरी कर रही हो हाथ जोड़ रही हो तो मरवा लूंगी पिछवाड़ा लेकिन पहले इनका खड़ा तो हो,... "
चमेलिया भैया का हाथ में लेके मसलते बोली,
" अरे साली हरामी रंडी की जनी, तेरी माई को हमरे गाँव क गदहे चोदे, हमारे गाँव क लौंडन क हरदम खड़ा रहता है बोल देना कल जाके अपने गाँव भर में, जे चाहे, जब चाहे आके मरवा ले,... '
लेकिन फुलवा की ननद इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी हंस के खिलखिलाते बोली,
" अरे गदहा से के चोदवाया है वो तो दिखाई पड़ रहा है, गितवा क महतारी, गदहा घोडा,... और फिर सीधे अरविन्द भैया पे हमला बोलते छेड़ी,
" कहो भैया क सार, ... अपने महतारी से कभी पूछे हो, माई हमको गाभिन करने के लिए कउने धोबी के यहाँ गयी थी, केकरे गदहवा से चुदवाई हो तानी हमहू के बताय दोगे, आवतजात हमहुँ अपने भैया के स्साले के बाबू जी से मिल लेब "
फिर अगला अटैक मेरे ऊपर,... एकदम असली ननद,...दर्जन भर भौजाई से घिरी हो तो भी हार न माने,
" अरे सगी बहिनिया चूस चूस के,... भाई चोद तो तुम पैदायशी हो, ... लेकिन देखना ये है की, ये गदहा अस, पूरा का पूरा मुंह में ले पाती हो की नहीं,... एक बार तू अपने मुंहे में ले ला तो हम भी अपने पिछवाड़े ,
चमेलिया और अरविन्द भैया दोनों ने मुझे बड़ी आशा से देखा,
आज और अभी आखिरी मौका था इस स्साली की गाँड़ फाड़ने का, भैया का मन भी बहुत कर रहा था, किसका नहीं करेगा, अमराई में गाँड़ मराई का।
इसी अमराई में भैया ने न जाने कितने लौंडे लौंडियों का पिछवाड़ा फाड़ा लेकिन फुलवा की ननदिया की बात और थी, कब से भैया को ललचा तडपा रही थी. और आज मौसम भी खूब मस्त हो रहा था अमराई में मरवाने वाला, बादल खूब घने छाये थे। वैसे तो हमार्री बाग़ इतनी गझिन थी की दुपहरिया में सांझ हो जाती थी ,... पर आज बदरी के चक्कर में अंधियार, हलकी हलकी पुरवाई बह रही थी, दूर कहीं बारिश हो रही थी हवा में भी नमी थी, और घर में भी माँ नहीं थीं सांझ को ही आने वाली थीं,...
लेकिन मैंने भी आज तक कभी किसी और लड़की के सामने भैया का मुंह में नहीं लिया था,... माँ की बात और थी वहां तो ज़रा देर होने पर मार मार के वो चूतड़ लाल कर देती,...
एक पल के लिए हिचकिचाई बहाना बनाया,
" अरे जेके मरवावे के हो वही चूसे,... "
पर चमेलिया आ गयी बीच में और वो मेरी पक्की वाली सहेली, उस की बात मैं सपने में भी नहीं टालती थी, वो बोली,
" अरे गितवा मेरी बहिनिया मान जा रे चूस ले ,... और चूसेगी वो भी तू उसकी गाँड़ में जाने के पहले चूस, वो गाँड़ में से झड़ के निकलने के बाद चूसेगी, और चूसेगी नहीं तो जायेगी कहाँ हम दोनों हैं न पटक के चुसवाएंगे उससे,... "
गांड में से निकलने के बाद हचक हचक के मारने के बाद, ... अरविन्द भैया के खूंटे की जो हालत होगी और सीधे फुलवा की ननदिया की कसी बिन फटी गाँड़ में से उसके मुंह में,...सोच के में सिहर गयी और तुरंत भैया का मुंह में
लेकिन बहन भाई का रिश्ता बिना छेड़छाड़ के तड़पाये ,...
भैया का सुपाड़ा तो हरदम खुला खड़ा रहता था, चाची ने उसे सिखाया था और अब माँ का भी हुकुम,... माँ ने मेरे सामने समझाया था देख कपडे से रगड़ रगड़ के खुला सुपाड़ा एकदम समझो सुन्न सा,... जल्दी नहीं झड़ेगा, मर्द वही जो लौंडिया को झाड़ के झड़े और ऐसा मरद पाके कोई भी लौंडिया उसके आगे पीछे,... और मुझे तो भैया आज तक बिना तीन बार झाड़े नहीं झड़ता था।
तो बस मैंने जीभ निकाली खूब लम्बी सी, और उसकी टिप बस भैया के खुले सुपाड़े में,... हाँ वही पेशाब वाले छेद में जैसे मेरी जीभ उसका लंड चोद रही हो , खूब सुरसुरी ,... और भैया की देह गिनगीना गयी, ... मैं अपनी बड़ी बड़ी आँखों से उसे देख रही थी तड़पा रही थी मन तो उसका कर रहा था मैं उसका सुपाड़ा पूरा गप्प कर लूँ ,
मैं तो और तड़पाती लेकिन फुलवा क ननदिया छिनार मुझे चिढ़ाते बोली,
" अरे हमरे भैया के सारे क रखैल तोहसे ना होई , सुपाड़ा तो मुंह में ले नहीं पा रही हो उसका गदहा अस लंड का लोगी "
बस गप्प एक बार में ही मैंने अरविन्द भैया का पूरा सुपाड़ा गप्प कर लिया। स्साला खूब मोटा था लेकिन अभी तो फूलना शुरू हुआ था
और ऊपर से जिस पे अगवाड़े तो पूरा गाँव जवार चढ़ा था लेकिन पिछवाड़ा कोरा लेकर जाने का पिलान बना रही थी वो फुलवा क ननद और आग मूत रही थी,
" हे हमरे भैया क सारे क रखैल, पूरा घोंटा पूरा ये का खाली,... "
और मुझे माँ की बताई एक ट्रिक याद आयी,...
अगर हाथी को घर में घुसाना हो तो एक बच्चा हाथ दरवाजे से घुसा दो आंगन में, और कुछ दिन में वो बड़ा हो जाएगा तो बस,... माँ ने भाई के खूंटे के बारे में ही समझाया था, और अभी तो बढ़ना शुरू ही हुआ था,... बस मैंने धीरे धीरे सैलाइवा के सहारे भैया का पूरा खूंटा घोंटना शुरू कर दिया,... लेकिन आधे के बाद भाई का मूसल अटक गया, होता ये था की हर बार भाई ही मेरा सर पकड़ के अपना खूंटा पूरी ताकत से पेलता,...
मैं गो गो करती रहती और माँ उसे चढाती रहती, ... पेल न लौंडिया तो छिनरापना करेगी ही, इतने चौड़े मुंह में नहीं घोंटेंगी और पतली सी चूत की दरार और गाँड़ के गोल दरवाजे में घुसवा लेगी, पेल कस के बहनचोद,...
और भाई ठोंक देता, ...
भैया ने एक बार फिर मेरा सर पकड़ा लेकिन फिर वो छिनार जोर से चिल्लाई,
" अरे नहीं खुदे घोंटा,... नहीं शऊर है तो कल चला हमरे साथ हमारे गांव क लौंडन चुसाय चुसाय के सिखाय देंगे, ... फिर गदहा घोडा सब घोंट लेंगी तोहार रखैल, कुल छेद में "
मैंने खुद ही कोशिश की,... और साथ देने चमेलिया आ गयी, जैसे कभी कभी माँ करती थी, मेरा सर दोनों हाथों से पकड़ के कस के धकेलने लगी, अरविन्द भैया भी पूरी ताकत से कमर के जोर से ठेल रहा था पेल रहा था, माँ ने बहुत अच्छी तरह सिखाया था मुझे कैसे मोटा लम्बा हलक तक ले सकती हूँ , इंच इंच करके अंदर जा रहा था, मैं भी थूक लगा लगा के,...
और अब मेरे मुंह ने तिहरा हमला कर दिया था, मेरे रसीले होंठ अरविन्द भैया के बड़े होते खूंटे को मस्ती से रगड़ रहे थे, सगी छोटी बहन के होंठों को छू के किस भाई का लौंड़ा पागल नहीं हो जाएगा, नीचे से मैं जीभ से चाट रही थी और पूरी ताकत से वैक्यूम क्लीनर मात इस तरह से चूस रही थी,...
माँ ने सिखाया था,
देख गितवा पहले तय कर ले मरद का काहें चूस रही है, उसे खड़ा कड़ा करने के लिए या उसे झाड़ने के लिए, और दोनों की उन्होंने दस दस तरकीब बताई थी, तो आज मैं खड़ा कड़ा करने के लिए, मैं चाह रही थी जब मेरे प्यारे भैया का लंड ननद छिनार की गाँड़ में घुसे तो एकदम लोहे की रॉड बन के धंसे,... मोटा लम्बा बांस,
और चमेलिया भी यही सोच रही की आज उसकी बहन की ननद की गाँड़ मारी न जाए फाड़ी जाए और उसके लिए तो खूब मोटा कड़ा लोहे का खम्भा,...
Pehle ka bhi hisab aaj chukta hogaतैयारी और चढ़ाई -ननदिया के पिछवाड़े
मैं चाह रही थी जब मेरे प्यारे भैया का लंड ननद छिनार की गाँड़ में घुसे तो एकदम लोहे की रॉड बन के धंसे,...
मोटा लम्बा बांस, और चमेलिया भी यही सोच रही की आज उसकी बहन की ननद की गाँड़ मारी न जाए फाड़ी जाए और उसके लिए तो खूब मोटा कड़ा लोहे का खम्भा,...
बस थोड़ा सा ही बचा था तो चमेलिया ने पैंतरा बदला,
अब वो अरविन्द भैया के पीछे खड़ी अपने जोबन से उनके पीठ पे रगड़ रही थी और उसका बायां हाथ भैया के लंड के बेस पे, जान पहचान तो पुरानी थी आखिर उसी खूंटे तो तो चमेलिया को कली से फूल बनाया था और वो भी उसकी बहन फुलवा के सामने इसी अमराई में ,...
भैया का हाथ लगाना मना था लेकिन चमेलिया तो पकड़ सकती ही थी बस बेस पे पकड़ के जैसे कोई चूड़ी वाले नट बोल्ट को,... हलके हलके घुमा के ,... और अब पूरा का पूरा अंदर मेरे मुंह में
और चमेलिया ने ललकार के फुलवा की नंद से कहा
" चल छिनार आय के देख ले गितवा ने घोंट लिया पूरा अब तू चल घोड़ी बन और गाँड़ मरवा "
अब उस बेचारी के पास कोई रस्ता नहीं था लेकिन मैं और गितवा अभी अरविन्द भैया को और गरम करना चाहते थे तो अब हम दोनों ने मिल के चूमना चाटना चूसना शुरू कर दिया , अब एक बार सिर्फ सुपाड़ा मेरे मुंह में था और साइड से चमेलिया चाट रही थी कभी वो जीभ निकाल के बेस पे तो कभी हम दोनों सिर्फ जीभ निकाल के सुपाड़े को दायीं और से मैं और बायीं और से चमेलिया,
भैया का खूंटा एकदम पागल हो रहा था
और अब चमेलिया ने जबरदस्ती फुलवा की ननद को निहुरा के घोड़ी बना दिया और अरविन्द भैया को ललकारा, आ जाओ भैया चढ़ जाओ घोड़ी पे,...
अरविन्द तो एकदम गांड मारने में उस्ताद इसी अमराई में कितनों को घोड़ी बना के,...
और फुलवा की ननद का पिछवाड़ा तो एकदम कोरा, ऊँगली भी नहीं गयी थी अंदर और चौड़े चाकर चूतर, वो खुद कित्ते दिनों से कोशिश कर रहे थे पर वो छिनरपना करके पर आज बचने वाली नहीं थी।
और मैं अरविन्द भैया का लंड पकड़ के सीधे उस निहुरी हुयी फुलवा की ननद के सामने ले गयी,...
और बित्ते से नाप के भैया का पूरा तन्नाया, गुस्से से फूला, मोटा लंड नाप के दिखाया,...
" देख लो ध्यान से, पूरा बित्ता, और दो अंगुल की मोटाई और,... तोहरे चाची माई मौसी जेके मरवावे के हो अपनी अपनी बिटिया के साथ, खुल भोंसड़ी वाली को गौने क रात याद जायेगी,... "
चमेलिया क्यों पीछे रहती, उसकी सगी बहन की ननद, ... सामने, अरविन्द भैया का मुट्ठी में दबोचती बोली,..
देख ले केतना मोटा हो, मुट्ठी में नहीं आ पाता, अभी तोहार गाँड़ फाड़ेगा और एकरे बाद अपने गाँव जाय के फुलवा के मरद देवर ननदोई जिससे भी,... कुल लंड नहीं नूनी लगेंगे,... हाँ जब खुजली ज्यादा मचे आ जाना हमरे गाँव,.. और दो चार कच्ची अमिया लेआना, ...
और अब आगे से चमेलिया फुलवा की ननद को दबोचे निहुराये और पीछे से मैं, सच में उस स्साली की एकदम कोरी थी, मुश्किल से एक दरार दिख रही थी,... और मारे डर के सिकोड़े हुए थी, सिकोड़ ले आज तो मेरे प्यारे भैया का मोटा सांड़ ऐसा घुस के फाड़ेगा की,... देख के मैं सोच रही थी, मेरे चूसने से भैया का तो खूब गीला हो रहा था लेकिन फिर भी मैंने मुंह में थूक भरा और ढेर सारा भैया के सुपाड़े पे लिथड़ दिया,.. और फिर दुबारा मुंह में थूक ले के,... इतनी बार गन्ने के खेत में भैया से चुदवा के मुंह के लार का फायदा मैं अच्छी तरह समझ गयी थी,...
और फुलवा क ननद का चूतड़ मैंने खूब अच्छे से, लेकिन तबतक चमेलिया की आवाज सुनाई पड़ी, वो जोर जोर से सर हिला हिला के इशारा कर रही थी। मैं समझ गयी उसका मतलब गाँड़ मरवानी थी ननद रानी की, ननद की गाँड़ जबतक तीन दिन तक परपराये, छरछराये नहीं,... हर कदम रखते ही चिलख न उठे तो उसके मायके वाले कैसे जानेगें की भौजी के गाँव से ननद रानी, भौजी के भाई से गाँड़ मरवाये क आय रही हैं।
लेकिन मुंह में तो मैंने थूक भर ही लिया था तो बस अपने दोनों हाथ के अंगूठों पे पूरा का पूरा, और उस खैबर के दर्रे में दोनों अंगूठे एक साथ,
जब मामला ननद के पिछवाड़े का हो तो डबल ताकत आ जाती है , तो मैंने धीरे धीरे कर के पूरी ताकत से ननद की कुँवारी गाँड़ का छेद फैलाना शुरू किया और वो छिनार कुछ मारे डर के कुछ बदमाशी के सिकोड़ रही थी, लेकिन चमेलिया मेरी पक्की सहेली समझ गयी उसकी बदमाशी, बोली
" हमरे पूरे गाँव क रखैल, ढीली कर, ढीली कर,... वरना अरविन्द क लंड तो बाद में मैं और गितवा पहले साथ साथ मुट्ठी पेलेंगे तोहरी गांड में, ... "
और कस चमेलिया ने निहुरी हुयी ननदिया के निपल नोच लिए
मारे दर्द के उसकी चीख निकल गयी, पिछवाड़े पर से उसका ध्यान हट गया और मैंने पूरी ताकत से दोनों हाथों के अंगूठों को अंदर पेल दिया, अब सिकोड़े जितनी मर्जी हो, मेरे दोनों अंगूठे अंदर थे,... फिर मैंने कैंची की फाल तरह अपने दोनों अंगूठो को फैलाना शुरू किया और थोड़ा थोड़ा छेद खुलना शुरू हुया
और भैया का चेहरा खिल उठा खुले छेद को देख, ...
बस भैया ने अपना मोटा सुपाड़ा उस खुले छेद पर सटाया, मैंने अंगूठे बाहर निकाले और दोनों चूतड़ों को पकड़ के फैलाना शुरू किया, चमेलिया की आँखे मेरे चेहरे से चिपकी थी, बस जैसे ही मैंने आँख मारी उसे, एक बार फिर कस के निपल नोचना उसने शुरू किया उस निहुरी ननदिया का,... वो जोर से चीखी
और भैया ने पूरी ताकत से ठेला,...
नहीं नहीं सुपाड़ा पूरी नहीं घुसा बस फंस गया,... एक तो उस स्साली की गाँड़ वास्तव में बहुत कसी थी, दूसरे भैया का सुपाड़ा भी पहाड़ी आलू की तरह खूब मोटा था ,... पर इतना काफी था, अरविन्द भैया मेरा पक्का खिलाड़ी, कित्ते कोरे पिछवाड़े उसने फाड़े थे,... कमर पकड़ के उसने अब पूरी ताकत से धक्का मारा ,सुपाड़ा अभी भी पूरा नहीं घुसा था हाँ आधा धंस गया था. बहुत प्यारा लग रहा था ननद रानी की कसी कुँवारी गाँड़ में धंसा मोटा सुपाड़ा,...
सच में चुदती हुयी ननदें बहुत अच्छी लगती हैं और खास तौर पर जब भाभी के भाई से चुदे,... और कच्ची कसी गांड हो तो कहना ही क्या,...
और उस आधे धंसे का फायदा ये हुआ की अब वो लाख चूतड़ पटके चीखे चिल्लाये बिना आधे घंटे तक हचक के गाँड़ मारे, अंदर तक मलाई खिलाये वो निकलने वाला नहीं था.
भैया ने और नहीं धकेला बस कस के अपने दोनों हाथों से फुलवा की ननद की पतली कमरिया दबोच ली, वो छिनार खूब चूतड़ पटक रही थी, झटक रही थी पर मेरे अरविन्द भैया का , निकलने का सवाल ही नहीं था, ... थोड़ी देर में थक गयी वो तो भैया ने धक्के मारने शुरू किये और तीन चार धक्कों में सुपाड़ा अंदर,...
मुझे लगा अभी भैया धक्कापेल पेलेगा,
लेकिन बस सुपाड़ा घुसा के भैया ने छोड़ दिया, तबतक चमेलिया ने इशारा किया और मैंने फुलवा की ननद के चेहरे की ओर देखा, दर्द के मारे कहर रही थी. पूरे चेहरे पर दर्द लिखा था, किसी तरह होंठों को दांतों से दबाये थी की चीख न निकले,... हालत खराब थी बेचारी की, और अब मैं समझी की भैया रुक काहे गए
एक बार ननद रानी को पिछवाड़े का स्वाद मिल जाए, इस मोटे सुपाड़े की आदत पड़ जाये, फिर तो आना जाना लगा रहेगा, पहली बार घुसा है, याद रहेगी उसको ये फटन, अरविन्द भैया ने कस के एक बार फिर से उसको दबोचा दोनों हाथों से कमर को पकड़ा, मैंने भी और चमेलिया ने कंधो को पकड़ के दबाया, ... फिर अरविन्द भैया ने ज़रा सा मुश्किल से सूत भर बाहर निकाला और क्या जोरदार धक्का मारा और मारते ही रहे
दो बार, चार बार , पांच बार
और फुलवा की ननदिया रोती रही, चीखती तड़पती रही, क्या पानी से बाहर निकली मछली मचलेगी, तड़पेगी। बेचारी उलट पलट रही थी लेकिन मैंने और चमेलिया ने कस के उसे दबोच रखा था, कच्ची ननदियों को अपने भाई से फड़वाने में जो मजा मिलता है, उन्हें तड़पते कलपते चीखते देखते जो सुख मिलता है बता नहीं सकती,
उह्ह्ह उईईईईई माँ उययी माँ जान गयी ओह्ह माँ बहुत दर्द नहहीइ माँ
Jabardast li gyi h fulwa ki nanad ki. Maja aa gyaमलाई मक्खन -ननद के पिछवाड़े
" अरविन्द भइया और जोर से मार स्साली की कल तो चली ही जायेगी, इतने दिन से नौटंकी कर रही थी स्साली,... फाड़ के चीथड़े कर दे इसकी गाँड़ "
और ये कह के मैंने भैया को चूम लिया बस जैसे किसी ने एक्सीलेरेटर पर पूरी ताकत से पैर रख दिया हो, भैया ने मेरे चुम्मी का और जोश से जवाब दिया और दूनी तेजी से फच्चर फच्चर,... ननद की गाँड़ में और देखा देखी मैंने एक ऊँगली और ठेली, और चारो ऊँगली उसकी बुर में गोल गोल, अंगूठे से क्लिट और एक हाथ पीछे कर के उसकी बड़ी बड़ी चूँची दबा मसल रही थी, दूसरी चूँची चमेलिया के कब्जे में
और अबकी जब फुलवा की ननद झड़ी तो मैं रुकी नहीं बल्कि और जोर से,... थोड़ी देर में ही दो बार, तीन बार,... झड़ झड़ के वो थेथर हो गयी थी लेकिन न भैया ने गाँड़ मारने की रफ्तार की न चमेलिया ने उसके मुंह पे अपनी गाँड़ रगड़ने की,...
ननद की कसी गाँड़ में अपने भाई के मोटे मूसल के अंदर बाहर होते देखने का मज़ा ही कुछ और है। लेकिन मेरे मन में एक और शरारत आयी मैंने झुक के भैया के बांस के थोड़े से हिस्से को पकड़ के गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया जैसे कोई मथानी चल रहा हो और उसका असर ननद के पिछवाड़े वही होता जो मथानी चलने का होता है,...
तबतक चमेलिया भी उतर के आ गयी, और वो काम उसने अपने जिम्मे ले लिया और मैं एक बार फिर से ननद को झाड़ने,... और अब जब वो झड़ी तो फिर झड़ती रही देर तक और साथ में भैया भी ,
चमेलिया गोल गोल घुमाती रही और भैया का खूंटा पकड़ के सीधे फुलवा की ननद के मुंह की ओर
लेकिन फुलवा की ननद कम खिलाडी नहीं थी, वो समझ रही थी चमेलिया का करने वाली है उसकी गाँड़ से निकला सब कुछ उसी के मुंह में,...
फिर सब चिढ़ातीं उसको,... कैसा स्वाद लगा,... पूछतीं,...
उसने कस के मुँह भींच के बंद कर लिया, लेकिन अपनी भौजाई की फुलवा की गाँव वालियों को उसने कम समझा था, गितवा थी न उसके साथ. वो भी कम जब्बर नहीं थी.
बस गितवा ने झट से पूरी ताकत से एक हाथ से ननद के नथुने भींच लिए और दूसरे हाथ से गाल कस के दबा दिया और लगी गरियाने,
" खोल ससुरी, हमरे भैया के आगे बुर खोलने में लाज नहीं, गाँड़ फैलाने में शरम नहीं और साली तोर सारी बहिन महतारी को अपने भैया से चोदवाउ, .... मुंह खोलने में छिनरपना,... खोल नहीं तो मार मार के,... "
सांस ननद के लिए लेना मुश्किल हो गया था, एक पल के लिए उसने जरा सा होंठ खोला होगा, बस गीता ने उसके दोनों गालों को इत्ती कस के दबाया की मुंह उसने चियार दिया और चमेलिया तो तैयार बैठी बस फुलवा की ननदिया की गाँड़ से निकला लिथड़ा चुपड़ा सुपाड़ा उसने अंदर ठेल दिया,... और बस एक बार मरद का सुपाड़ा अंदर जाने की देर होती है उसके बाद तो बस, कउनो छेद हो वो बिना पूरा पेले छोड़ता नहीं और अरविंदवा तो पंचायती सांड़,
और मुंह भी फुलवा की ननद का जो महीने भर से नौटंकी कर रही थी गाँड़ मरवाने के नाम पर, उसने भी जोर लगा दिया और सुपाड़ा पूरा अंदर,...----
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तो कैसा लगा ये अपडेट
फुलवा के ननद के पिछवाड़े की सेवा अगले भाग में भी जारी रहेगी और साथ में और भी बहुत कुछ
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Last few updates with page numbers
भाग ४८ - पृष्ठ 394 रोपनी -फुलवा की ननद
भाग ४९ पृष्ठ ४२० मस्ती -माँ, अरविन्द और गीता की
भाग ५० पृष्ठ ४३५ माँ का नाइट स्कूल
भाग ५१ पृष्ठ ४५६ भैया के संग अमराई में
भाग ५२ पृष्ठ ४७९ गन्ने के खेत में भैया के संग