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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ९८

अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६

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motaalund

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और ननद की चीख पुकार से मीठा संगीत क्या होगा, अमराई है घने बादल, भीगी नम हवा, और यह संगीत
न में उतर आती थीं...


पूरा वातावरण संगीतमय बन गया है...
 

motaalund

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एकदम यही बात है थोड़ा नखड़ा थोड़ा मन मनुहार
और फिर .. इश्किया फिल्म की तरह... चूतियम सल्फेट कहकर उकसाना....
 

motaalund

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और फुलवा चिढ़ाएगी भी उसे, ... फिर चमेलिया ने अपना और गितवा का भी

तुलनात्मक अध्ययन के लिए
और ये अध्ययन ... घर पहुँच कर भी काम आएगा...
 

motaalund

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गितवा धीरे धीरे गाँव के सब रसम रिवाज सीख रही है और चमेलिया हैं न उसको सब अड्डे बताने वाली
ये नदी वाला एपिसोड "सोलवां सावन" और वाटर पार्क वाला "ननद की ट्रेनिंग" के अलावा भी कहीं गाँव देहात में ... कुछ संभावना...
 

motaalund

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अरे उसकी चाल से ही पता चल जाएगा की


ट्रैक्टर पिछवाड़े भी चला है और कस कर चला है, गाँव में अब किसी लौंडे को सील तोड़ने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, न अगवाड़े की न पिछवाड़े की।
खेत की जुताई हो गई है...
अब मिट्टी नरम पड़ गई...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने

किसी ने कहा है की अगर कान में खुजली हो और आप ऊँगली से खुजलाओ तो मज़ा का को आता है कि ऊँगली को,

बस वही बात है, म्यान को कम मजा नहीं आता भले शुरू में म्याऊं म्याऊं करे
कान तो ऐसे मजे के लिए तरसती है...
 

motaalund

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आप कविता की चंद पंक्तयों में जो दुःख बयान कर देती हैं, वो गद्य के दस पन्ने भी नहीं कर पाते, जीवन यही सुख दुःख का धूप छाँव का खेला है,

आप की उपस्ठिति किसी भी थ्रेड को, कुछ भी कहे के प्रभाव को दस गुना बढ़ा देती है।
और छंद में अभिव्यक्ति तो चार चाँद लगा देती है...
 

motaalund

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भाग ५६ - गीता और खेत खलिहान

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और बाऊजी के आने का

गीता अब थोड़ा सहज हो गयी थी, बोली,

चाचा से बात हुयी थी उनकी लेकिन आमने सामने नहीं फोनवे पे,... और चाचा का भी पासपोर्ट वहां रखवाय लिया है , उनका फोन आया था माँ के पास,... इधर से नहीं कर सकते उधर से ही वो भी हफ्ते में एक दिन,... तो माँ ने हम दोनों को भी बताया लेकिन ये भी बोला की जबतक वो खुद बात नहीं कर लेती तो, ... और चाचा ने उन्हें बोला है की बाऊ जी वो फूटबाल वाला सब मैचवा ख़त्म हो गया तो जिसके यहाँ थे उसी ने ६ महीने के लिए सऊदी भेज दिया है और बाऊ जी बोल रहे थे की छह महीने बाद पक्का बम्बई चले जाएंगे।

तो छह महीने बाद बाऊ जी गाँव आएंगे,... छुटकी को तो हर बात का जवाब चाहिए था.

गीता ने लम्बी सांस ली फिर कुछ रुक के बोली,... पता नहीं,... माँ ने बोला था बिना बाऊ जी से मिले गाँव नहीं लौटेंगी और उ मुँहझौंसी एजेंसिया क काम तो एकदम बंद. माँ तो कटाई बुआई तीज त्यौहार आएँगी, हफ्ता दस दिन में आता है फोन उनका,... लेकिन बाऊ जी आएंगे नहीं आएंगे गाँव पता नहीं।

एक बार गीता फिर से चुप हो गयी थी।

माहौल अब थोड़ा नार्मल हो चला था , छुटकी एक बात पूछने की सोच रही थी, हिम्मत कर के उसने पूछ ही लिया,...

" दी, गुस्सा मत होइयेगा, मेरी समझ में एक बात नहीं आयी, ...आप लोगों के पास इतना खेत, बाग़ बगीचा सब है,... लेकिन तब भी बाऊ जी बंबई गए और अब माँ भी,... "



गीता मुस्करा दी और छुटकी को गले लगाते बोली, गुस्सा क्यों होउंगी वो गाना सुना है , रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे,...

" सुना, अरे गाती भी हूँ, ... " और छुटकी ने गाने की पहली लाइनें दुहरा भी दी,




रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे,

रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे ।

जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,


पानी बरसे टिकस गल जाए रे, रेलिया बैरन ।।


" एकदम " गीता बोली, फिर उसे दुलार से समझाया, लेकिन असली लाइन है आखिरी, जो अक्सर नहीं गाते,...

ना रेलिया बैरन ना जहजिया बैरन, इहे पइसवा बैरन,

तो असली चीज है पैसा, पक्का टाइम टाइम पे मिलने वाला वाला पैसा,... जो खेती में अक्सर,

गीता चुप हो गयी, थोड़ी उदास थोड़ी गुस्से में, फिर अचानक बोली,...

" अच्छा हम लोगो के पास तो खेत है, अच्छा ख़ासा बाग़ भी है ट्यूबवेल लगा है, ... और तुम पूछ रही हो क्यों गए

लेकिन कजरी का भाई क सोच वो नाउन के बेटवा, गुलबिया भौजी क मरद , बियाहे क महीना नहीं हुआ था चला गया कमाने,... केतना जमीन है उसके पास,... पहले तो जजमानी में गाँव में मनई, दाढ़ी बाल बनावे के,... नाउन कउनो तीज त्यौहार,... पैर में रंग लगाने रस्म काज,... अब पास में बजार में सैलून खुल गया है बढ़िया, जेको देखो वहीँ जाके बाल दाढ़ी और जउन स्टाइल चाहो तौन,... फिर जजमानी में जमीन एक दो बिस्सा, अब खेतिहर के पास खुदे जमीन नहीं तो नाऊ कहार के कहा, ... फिर कजरी की माई बताती है , जब वो बियाह के आयी,.. उसकी ददिया सास के जमाने में चार बिस्सा थी,... जजमानी क,... लेकिन चार भाई तो घट के एक बिस्सा और अगली पीढ़ी में,... फिर फुलवा क मरद उसकी तो न जजमानी न एक इंच जमीन न जाए कमाने तो का, दस दिन बाद वो भी,.... अरे कजरी क भौजी क गोड़े क महावर भी नहीं सूखा था, मुंह देखाई भी पूरी नहीं हुयी थी,... लेकिन जेतना छुट्टी उतना ही न, और एक बार नौकरी चली गयी तो,... हमारे गाँव में भरौटी कहारौटी छोडो कई दर्जन लोग, ...बस वही होली दिवाली कभी रिजर्वेशन नहीं मिला तो कभी छुट्टी नहीं, साल दो साल में एक बार "


छुटकी चुपचाप सुन रही थी वो शहर से आयी थी उसे ये सब बातें इतनी नहीं मालूम थी लेकिन सवाल पूछने में क्या, और उसने सवाल पूछ लिया,...

मान लीजिये जमीन नहीं है, तो मजदूरी कर के भी तो,..



गीता चुप रही फिर बड़ी बेचारगी की हंसी हंसी।

जिनके पास खेत है, उनकी हालत खराब और जिनके पास एकदम नहीं हो वो तो और, उनके पास कौन चारा है बाहर जाने के अलावा, केतना काम रह गया है , माँ बताती थीं जब वो बियाह के आयीं तो यह देखते थे की कितने हल की खेती है,... चार चार हरवाह थे "

और अब कितने हैं छुटकी ने उत्सुकता से पूछा


" एक तोहार भतार। " खिलखिलाते हुए गितवा बोली और छुटकी के गाल पे जोर से चिकोटी काट ली, और छुटकी न समझी हो तो बोल भी दिया,..

" अरे और कौन अरविन्द भैया "

छुटकी भी खिलखिला पड़ी। और गीता ने हाल खुलासा बयान किया

" भैया चलाते हैं खुदे ट्रैक्टर, शुरू में तो कोई और था लेकिन माँ पीछे पड़ीं और अब तो सब काम ट्रैकटर वाला वो खुदे ,...वो भी बाबू जी के पैसे से आया, कुछ कर्जा भी लिए थे लेकिन बमबई में ही आपन दो टैक्सी बैंक के पास रख के,... और जब आया तो मैं भैया और माँ उस पे चढ़ के मंदिर गए, फिर उसकी ट्राली आयी फिर और बहुत कुछ चीज पीछे लगाने वाली,... साल दो साल तो खाली हम लोगों के पास था अब तो तीन तीन ट्रैक्टर है और एक तो किराए पे भी चलाता है ,..."


गीता रुक गयी, फिर बोली ऐसा नहीं है की मजूर आसानी से गाँव में मिल जाते हैं
ये रेल पिया को दूर हीं नहीं ले जाती...
पास भी लाती है...

रेलगाड़ी के गुजरने का दृश्य दूर से हीं दिख जाता है...
और गाँव में घर के छत पर से एकाध किमी दूर से हीं लोग पहचान लेते थे... खास कर जब पर्व त्योहार हो... और आने की प्रबल संभावना हो...
फलाना आ रहे हैं... उनका सामान खुद उठाने के लिए दौड़ कर पहुँच जाते थे और हँसते खिलखिलाते बातें करते रास्ता तय होता था....

और इन गीतों में दूर से आने वाले से फरमाइश भी होती थी...
पनिया के जहाज से पलटनिया बनी अईह पिया...
ले ले अईह हो पिया झुमका पंजाब से...
 

motaalund

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गीता अब बड़ी हो गयी





गीता रुक गयी, फिर बोली ऐसा नहीं है की मजूर आसानी से गाँव में मिल जाते हैं

अब छुटकी को मौका मिल गया, वो चढ़ गयी, बोली यही बात तो मैं भी कह रही थी की फिर क्यों

लेकिन गीता ने उसे बात पूरी करने का मौका नहीं दिया, बोली अब रहोगी न तीन चार महीने तो पता चला जाएगा, ... अरे जब काम होता तो एकसाथ, सबकी कटाई दँवाई,... और जब नहीं होता तो कुछ नहीं, गर्मी भर देखना,...

पर अब छुटकी हार नहीं मानने वाली थी

बोली दी, लेकिन अब मजूरी का भी तो, गाँव में नहीं रहे लेकिन रेडियो सुनते हैं अखबार पढ़ते हैं , ...कोई स्किम है

गीता जैसे जल बुझ गयी, तू पढ़ी हो हम देखते हैं , १०० दिन मतलब २६५ दिन नहीं मिलेगा। उही में परधान जिसको चाहेगा लगाएगा, मेट की चिरौरी करो, रूपया में चार आना तो हाजिरी लगाएगा, वर्ना काम कोई करे हाजिरी किसी की,... कई तो खाली हाजिरी लगाए अंगूठा निशानी सब कराय के गायब,... अगर जुगाड़ है वरना २०-३० दिन मिल जाए तो बहुत,... और जो बाहर जाते है उनका तो हर महीने मनी आर्डर आएगा आजकल तो मोबाइल से ही,... केतना तो पैसा जोड़ के थोड़ बहुत खेत भी, मनई सोचता है हमारा जो हुआ बच्चो का भी,... अच्छा स्कूल मिल जाये,...

फिर पलट के उसने छुटकी पे ही वार किया,..

अपने दीदी क ससुराल देखो, ... उनके जेठ गए न बाहर, फिर अब जेठानी भी चली गयी,... और अपनी छुटकी ननद को भी ले गयी की वहां अच्छा स्कूल है,... और अब तोहरे घर में केतना आदमी केतना औरत, ... और तुमको ही न अब हम जल्दी जाने देंगे न गाँव के लौंडे,... तो तू, हमार नयकी भौजी, उनकी सास,... और मरद में तोहार जीजू,... अब ये जिन कहना की उ अकेले तीन तीन के लिए काफी हैं,...

हँसते हुए गीता के मुंह से निकला, लेकिन छुटकी के मुंह से हाँ निकलते निकलते रह गया,... उसके सामने ही जीजू ने बारी बारी से उसकी दोनों सहेलियों को क्या रगड़ रगड़ के, फिर मंझली के भी अगवाड़े पिछवाड़े,... बस वो मुस्करा दी।

गीता अब शांत हो गयी थी, फिर उसने अब तक की बातचीत समेटते हुए कहना शुरू किया

सब बातें समझायी गीता ने। वो बोली,


" सबसे पहले गाँव में हम लोगों का अपना ट्यूबवेल लगा,....कैसे बाऊ जी के बंबई के पैसे से, भैया की फटफटिया, , बमबई के पैसे से, हर महीने पांच तारीख को डाकिया खड़ा रहता था बाउ जी का मनीआर्डर,... "

फिर गीता ने खेती की परेशानी बतायी।

पहले तो बारिस का ठिकाना नहीं, और केतनो ट्यूबवेल हो गया लेकिन रोपनी है तो बिना पानी के ,


फिर बारिश नहीं तो गेंहू के लिए जमींन,... और एक दो बार तो फसल हो गयी कट के थोड़ बहुत खलिहान में, ... और बेटाइम क बारिस, ओला पड़ गया,...

तो बस सब मेहनत डाँड़,बीज, खाद क पैसा भी, और बाजार में कउनो चीज बिना पैसा के नहीं, हमरे और भैया के फ़ीस के लिए पैसा, किताब कपडा के लिए पैसा , और सबसे बढ़कर बीज, खाद कउनो चीज नहीं बिना पैसे के ,...


छुटकी ने ज्ञान की बात कर दी और डाँट पड़ गयी, लेकिन दी बैंक से पैसा,... पहले तो गीता ने डांटा और फिर प्यार से बोली,

" माँ नहीं है न नहीं तो दस गारी देतीं तोहरी महतारी के , वैसे भी उनका समधिन का रिस्ता लगता,... बैंक के नाम से मुंह नोच लेती थी, कहती थी हमार पैसा लेते है तो ओनकर कउनो जमीन जायदाद नहीं और हमको जरूरत पड़ी तो कुल गिरवी रखा लेंगे, हमार पैसा लेंगे तोदो टका सूद देंगे और हमें पैसा देंगे तो १२ से पंद्रह टका और लेंगे और टेबल टेबल जाके बिनती करा, परसाद चढ़ावा बाबू लोगन के,...


फिर गीता ने एक साल का किस्सा बताया , हंसती भी रही, साथ साथ

माँ भी न एक साल आलू का दाम खूब बढ़ गया, बस आधे खेत में आलू बोवाय दी , और बाकी लोग भी, फसल भी खूब अच्छी हुयी , लेकिन आलू जब खेत में से खोदा गया तो दाम एक रूपया डेढ़ रुपया किलो,...

"तो कोल्ड स्टोरेज " छुटकी ने फिर सलाह देने की गलती की,...

और एक जोर का हाथ पड़ा पीठ पे,...

" कोल्ड स्टोरेज,.. अरे वो ससुरे चौगुना दाम बढ़ा दिए , फिर ओहु में जगह नहीं, बाद में पता चला की तीन चौथाई जगह कुल बनिया लोग फसल क अंदाज कइके पहले से एडवांस रख लिए और केतना कोल्ड स्टोरेज तो उन्ही सब का,... बस आलू मंडी में पहुंचाने के लिए ट्रक, ट्रैक्टर छकड़ा सब ने दाम दूना तिगुना,... बस और वही बनिया सीधे खेत से उठा रहे थे तो वही एक रूपया दो रूपया,... भैया किसी तरह से ले गया मंडी तो वहां भी गोल बंदी कर के वही दाम और जानती हो शहर में चार पांच महीने बाद वही एक रूपये वाला आलू कितने में बिका,.. "

छुटकी तो हरदम पास की दूकान से ही खरीद के लाती थी , फिर भी उसने पूछा कितने में ,...

एकदम जल के गीता बोली,... २० रूपया में , हमें मिला एक रूपया और तुमको पड़ा २० रूपया।

" फिर खेती में साल भर का काम तो है नहीं , रोपनी, बोआई कटाई जब ज्यादा आदमी लगते हैं , बाकी तो अब मशीन आ गयी है , हरवाह नहीं रहे,... तो आदमी सब का करें कभी पंजाब कभी बंबई और जिसका जुगाड़ लग गया वो खाड़ी में,.. " गीता कुछ रुक के बोली। फिर समझाया,... कउनो गाँव में चल जाओ, आदमी कम है औरतें ज्यादा,..और वही कउनो बड़े सहर में तो उलटा,.... "

छुटकी सुन रही थी और एक बार फिर दोनों चुप थीं।



गीता अब सचमुच बड़ी हो गयी थी।



कुछ देर तक दोनों चुप बैठी रहीं, फिर गीता ने मुस्कराते हुए छुटकी की ओर देखा, फिर उसके बगल में आकर बैठ गयी और उसे चिपका लिया और उसके कान में बोली,....



" तू छोटी है लेकिन बात सही कहती है। "
हाँ... जब पिता दूर हों..
माँ का मायूस चेहरा... भाई की चिंता से लिप्त आँखें...
गीता को बड़ी करने के लिए काफी से ज्यादा है...
एकाएक खिलंदड़ी गीता बड़ी और समझदार लगने लगी...

और एक मुख्य कारण ये भी है कि हर साल बाढ़ आती है और खेत तीन-चार महीने के लिए उपज से महरूम...
गाय-गोरु भी इनसे वंचित नहीं रह पाते...
पानी उतरने के बाद भी स्थिति सुधरने में काफी समय लगता है...
 
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