- 22,308
- 58,080
- 259
भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, मजे ले, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, मजे ले, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
Last edited:
गीता का चेहरा ख़ुशी से दमक गया बोली तुम माँ से मिली नहीं हो एकदम अलग माटी की है वो,... भइया से तो उतना नहीं जाने के पहले मुझे से एक एक चीज खूब खुल के, बोली मुझसे जानती है गितवा लोग दुइये चीज पे फैसला कर लेते हैं अच्छा बुरा, फिर जीभ निकाल के दिखाया और अपनी जांघ के ऊपर रगड़ के और हम दोनों हंसने लगे, तो फिर सीरियस होके बोलीं , गितवा ये समझ ले की कोई का खाता पीता है, और किसके साथ का करता है , बहुत एही से तय कर लेते हैं कौन अच्छा कौन,... लेकिन मेरे हिसाब से अच्छा वही तो अपना काम ईमान से करे और सब से बढ़ के सबके काम आये, दुःख में सुख में, आदमी आदमी में भेद न करे, ... अरे सब तो भगवान के बनाये,...गीता और माँ
और एक बार फिर से गीता छुटकी से सट के बैठ गयी थी, उसके कंधे पे हाथ रख के जैसे न जाने कब बिछुड़ी सहेलियां हो,एकदम राजदार,... और अपने मन की एक और बात, जो उसने न जाने कब से मन के किसी कोने में सात ताले में बंद कर के रखी हो,... और एकदम धीमे धीमे,...
" एक बात और, न तो माँ ने कभी कही न भैया ने, भैया का तो सवाल ही नहीं वो तो पैदायशी बुद्धू है,... लेकिन मुझे लगता है,... "
छुटकी की बड़ी बड़ी आँखे उसे उकसा रही थीं बिना हिचक आगे की बात बताने के लिए,... और गीता ने उसे और दुबका लिया और मन की बात बताने लगी,...
" मुझे लगता है,... माँ भी,... वो सोच रही थीं,... लेकिन जब उस दिन उन्होंने मुझे और भैया को मामा के यहाँ से लौटने के बाद देखा तो,... पता नहीं पर लगता है माँ के मन की बात... कि मेरे और भैया के बीच जो चल रहा है वो चलता रहे और खूब कस के चले,.. मैं जरा भी न झिझकूं,... इसलिए,... और जानती हो क्यों , उनकी सोच का भी एक कारण है,... "
" क्या दी,... " छुटकी ने हुंकारी भी भरी और उकसाया,...
" माँ सोच चुकी थीं की उन्हें बंबई जा के वहां का काम काज बाऊ जी का देखना है,... चाचा के बस का नहीं है,... लेकिन यहाँ वहां,... और उन्होंने ये भी मन बना लिया था की यहाँ की जिम्मेदारी भैया को,... लेकिन उन्हें चिंता मेरी भी थी,... अकसर गाँव में जब कम उमर में मर्दों के पास जमीन जायदाद तो बजाय जिम्मेदारी के,... और गाँव में चढाने वाले भी बहुत होते हैं,... फिर कोई न कोई लड़की औरत अगर चिपक जाती,... आके घर में बैठ जाती,... अरे शादी नहीं बस ऐसे ही ही तो सब जमीन जायदाद,.... और फिर मेरा क्या होता,... फिर मान लो भैया की शादी भी ,..और इतनी जल्दी न वो तैयार होता न गाँव में भी अब जब तक लड़का कमाए नहीं, सरकारी नौकरी,... और वो सब उन्हें कराना नहीं था,... फिर मेरी शादी तो इस उमर में,...
" एकदम लड़कों की शादी की उमर तो न जाने कब से २१ साल है ,.. " छुटकी ने जताया वो भी कम ज्ञानी नहीं है ,
" एकदम तो अभी तो उसको बहुत टाइम है उस उमर में और मुझसे तीन चार साल ही तो बड़ा है,... तो बस माँ ने मेरे और भैया को आपस में ,... मतलब बल्कि बढ़ावा ही दिया,...
उनको लगा होगा की भैया बाहर चाहे जितना मुंह मारेगा,... लेकिन घर में तो किसी को नहीं लाके बैठायेगा अगर मेरे साथ उसका,... और उनके सामने ही उन्होंने खुद हर काम हम दोनों जोड़े से, चाहे बाहर पूजा हो घर का काम हो,... और खेत के काम में मुझे भी इसी लिए की बाहर की हाल चाल भी मुझे पता रहेगी,... माँ बहुत दूर की सोचती थीं और बंबई से भी हर दूसरे तीसरे मेरे पास उनका फोन आता है,... और भैया भी रोपनी, काम करने वालियों का कभी कभार का चक्कर छोड़ दो, ... वो तो खुद ही उसे उकसा के,... लेकिन मेरी सहेलियों ने बहुत कोशिश की पर वो नहीं,... मेरे अलावा गाँव की किसी लड़की के साथ नहीं,...
लेकिन अब दी आपने ये बात छेड़ दी है तो, माँ ने कभी ये नहीं सोचा की ये गलत है वो गलत है
गीता का चेहरा ख़ुशी से दमक गया बोली तुम माँ से मिली नहीं हो एकदम अलग माटी की है वो,... भइया से तो उतना नहीं जाने के पहले मुझे से एक एक चीज खूब खुल के, बोली मुझसे जानती है गितवा लोग दुइये चीज पे फैसला कर लेते हैं अच्छा बुरा, फिर जीभ निकाल के दिखाया और अपनी जांघ के ऊपर रगड़ के और हम दोनों हंसने लगे, तो फिर सीरियस होके बोलीं , गितवा ये समझ ले की कोई का खाता पीता है, और किसके साथ का करता है , बहुत एही से तय कर लेते हैं कौन अच्छा कौन,... लेकिन मेरे हिसाब से अच्छा वही तो अपना काम ईमान से करे और सब से बढ़ के सबके काम आये, दुःख में सुख में, आदमी आदमी में भेद न करे, ... अरे सब तो भगवान के बनाये,...
छुटकी ने सर हिलाया तो गीता ने बात बढ़ाई,
और माँ हरदम सदन कसाई का किस्सा सुनाती थी हम दोनों को, ... और भैया से तो नहीं लेकिन मुझसे कभी कभी किस्सा सुनाती थी अपने बचपन का,... की काम करने वाली आके बताती हँसते हँसते, ... गलती से कहीं पानी क बर्तन छू गया तो, ....कुंआ से पानी भरना तो दूर,... और उहे बँसवाड़ी खेताडी में पीछे पीछे,...एक बार दे दो,... बस लहंगा पसार देगी तो फिर दुबारा खेत के बाहर पहचानेंगे भी नहीं,... खैर अब तो ये सब का ख़तम हो गया,...
लेकिन वो सब खुद, ग्वालिन भौजी एक बार बीमार पड़ी थीं माँ दो दिन सोई नहीं उनकी चारपाई के पास, और हम लोग भी गाँव में उमर के रिश्ते के हिसाब से भौजी, चाची , काकी , आज तक आस पास के टोला में कोई ऐसी दुल्हिन नहीं उतरी होगी जिसे उतारने माँ नहीं गयी होंगी , ... और कोई बिटिया नहीं बिदा हुयी जिसे बिदा करने माँ नहीं गयी हों, पूजा पाठ सब करती थीं लेकिन कहीं कोई मुसीबत पड़ी तो सब छोड़ के सबसे पहले वहां ,... इसी लिए उन्हें बिस्वास था की बाबू जी को कुछ नहीं होगा।
गीता एक बार फिर चुप हो गयी
तो बाऊ जी का कुछ,... सहमते हुए गीता ने पूछा
गीता का चेहरा एकदम खुश था, बोली,... हाँ बस डेढ़ दो महीना में बंबई आएंगे, माँ से १० दिन पहले ही बात हुयी थी,... पहली बार वीडियो काल, माँ बहुत जिद्द कर रही थी तो वीडियो काल हुयी, वहीँ से हो सकती है,... बोल रही थीं बहुत दुबरा गए हैं। बस आ जाएँ एक बार तो अब खिला पिला के,... माँ बाऊ जी के आने के बाद भी छह सात महीना तो बंबई से नहीं आने वाली और आएगी भी तो बस जल्दी, ... वापस
और दोनों सहेलियां मुस्कराने लगी
लेकिन गीता के मन में कुछ और पक रहा था साथ साथ
फिर एक बात उसने छुटकी के कान में,...
छुटकी के चेहरे पे खूब ख़ुशी छा गयी, वो जोर जोर से खिलखिलाने लगी,और छुटकी ने मुस्करा के चूम लिया गीता को और झट से बोली,... " दी, एकदम बहुत आसान " और गीता के कान में रास्ता बता दिया।
गीता भी अब खुश थी,... पर छुटकी ने गीता से कहा दी मेरी दो छोटी छोटी शर्तें हैं, शर्त नहीं रिवेस्ट,... "
" अरे तू छोटी बहन है , बड़ी बहन की हर चीज पे छोटी का हक होता है बोल न पहेली न बुझा वरना बहुत पिटेगी " गीता हँसते हुए बोली,...
छुटकी ने एक बात तो बता दी और गीता ने तीन तिरबाचा भी भर दिया और दूसरी शर्त वक्त जरूरत के लिए बचा के रख ली।
क्या बात हुयी दोनों सहेलियों के बीच , मतलब बहनों के बीच,... सबका मन करता है न लड़कियों की बातें सुनने का, एकदम प्राइवेट ख़ास बात हो तो भी,...
लालच जो न कराए.. थोड़ा है..खेत खलिहान
छुटकी सुन रही थी और एक बार फिर दोनों चुप थीं।
गीता अब सचमुच बड़ी हो गयी थी।
कुछ देर तक दोनों चुप बैठी रहीं, फिर गीता ने मुस्कराते हुए छुटकी की ओर देखा, फिर उसके बगल में आकर बैठ गयी और उसे चिपका लिया और उसके कान में बोली,....
" तू छोटी है लेकिन बात सही कहती है। "
छुटकी को कुछ समझ में नहीं आया लेकिन वो मुस्करा दी,...
गीता उसके बगल में बैठी रही फिर कुछ रुक के बोली,
" दो बाते बता रही हूँ , तुझे , सिर्फ तुझे, तू मेरी असली वाली छोटी बहन है ".
छुटकी को अभी भी कुछ समझ में नहीं आया , लेकिन गीता ने बात साफ़ की,...
" ये बात न मुझे माँ ने बताई, न भैया ने लेकिन थोड़ा बहुत जो देखा समझा उससे अंदाज लगा के कह रही हूँ। जो तू कह रही थी न माँ भी यही चाहती है,... बाहर न जाने वाली बात , जब से बाऊ जी का पता नहीं चल रहा है,.. और पास के गाँव वाले दो जवान लड़के,... क़तर में, अरे वहीँ जहाँ वो फ़ुटबाल मैच,...हाँ हाँ वही,... माँ एकदम चुप्प हो गयी थीं।
गीता और छुटकी दोनों कुछ देर चुप बैठी रहीं फिर गीता ने बोलना शुरू किया, जैसे कोई राज़ की बात कर रही हो।
जानती हो भैया से उन्होंने तीन तिरबाचा भरवाया है, ... मैं बाहर खड़ी सुन रही थी,... बंबई क़तर जाना तो दूर की बात ,… मेरी, अपनी बाऊ सबकी कसम धरायी, बस खेती किसानी,.. पास के शहर में भी कोई नौकरी चाकरी नहीं,... जा सकते हैं काम हो, घूमना हो लेकिन कमाई खेत से ही।
जब से बाऊ जी का पता नहीं चल रहा है,...माँ बोलती तो नहीं,ऊपर से तो बहुत खुश खुश रहती है, लेकिन जब कभी आँगन में अकेले बैठती है तो उसका मुंह एकदम,... और मैं पास जाती हूँ तो बस गोद में दुपका लेती है, जब मैं बहुत छोटी थी एकदम वैसे,...
माँ ने सब काम धीरे धीरे भैया को सौंप दिया था और मेरे सामने मैं देखती थी,
जमीन के कागज़ जो बाऊ जी ने सब माँ के नाम कर दिए थे,... उनमें मेरा और भैया दूनो का नाम जोड़ दिया था और शर्त ये रखी थी की बिना हम तीनों की मर्जी के इंच भी नहीं बिक सकती। और काम धाम सब खेत का भैया के हवाले और चाचा के बंबई जाने के बाद चाची ने भी सब जिम्मेदारी भैया को ही सौंप दी थी,... माँ ने न सिर्फ समझाया बल्कि खेत में भेज के, मजूर मजूरिन का काम सिर्फ देखना नहीं, खुद साथ साथ करो तब अंदाज लगता है, ...
और बाकी गाँव वाले अगर कटनी रोपनी का एक कट्ठा देते थे तो माँ कहती थी भैया से दो नहीं तो डेढ़ से कमी नहीं,.. और माँ पहले खुद खेत में जाती थी लेकिन अब उसने बंद कर दिया था, भैया या मैं । हाँ कउनो टोला में कउनो जाती में अगर बिटिया क बियाह तो माँ सबसे पहले,... हर रस्म में, लड़के की शादी हो तो बरात बिदा करने भी और दुल्हन उतारने भी,...
वही गुन माँ ने धीरे धीरे मुझे भी,..
रोपनी में दो दिन तो गयी ही, कटनी में भी,..
अगर भाई को दो तीन दिन शहर में किसी काम से जाना है तो खेत और बाग़ के एक इंच का काम मैं अकेले देख लेती थी, कहाँ खाद डालनी है , गन्ने में कीड़े तो नहीं लग रहे हैं,... सब कुछ स्कूल के बाद और जिस दिन छुट्टी है तो,.. और नहीं तो घर का सारा काम काज,... गाय भैंस, आधा दर्जन, ...ग्वालिन भौजी ने दूध दुहना सिखा दिया है , माँ तो पहले से ही , शादी के बाद से ही अपनी,... और सानी चारा गोबर,... सब कर लेती हूँ,...
माँ जो गपाष्टक बैठक करती थी आस पड़ोस की औरतों के साथ,... बाद में पता चला,... काम करने वालियां भी उसमें, खूब हंसी मजाक ,... माँ ने प्लान किया था,... अब वो चली गयी तो स्कूल बंद होने के बाद गर्मी में,.. गर्मी बरसात खेत में तो ज्यादा काम होता नहीं तो दुपहरिया, तिझरिया में बड़ी, पापड़, चिप्स ये सब बनाने का प्रोग्राम,... बेचने का काम भैया के जिम्मे, माँ ने पहले से ही कहीं बात कर लिया है,....और अब माँ नहीं है तो मेरे जिम्मे, गर्मी की छुट्टी में, मेरा स्कूल बंद ,... खेती किसानी बंद तो यही सब
गीता एक बार फिर चुप हो गयी थी लेकिन अबकी खुश थी, मुस्करा रही थी।
तो भैया की पढ़ाई, ये सब चक्कर में,... छुटकी को तो हर बात जांननी थी,...
गीता हंसी बोली माँ ने बोल रखा है हम दोनों को अगर इम्तहान में फेल हुए तो कान का पान बनाउंगी।
हाँ भैया ने कालेज छोड़ दिया है लेकिन प्राइवेट बी ए कर रहा है. पर वो एग्रिकल्चर भी पढ़ना चाहता था तो वो तो प्राइवेट में नहीं हो सकता है तो किताब ला के,... क्या मास्टर लोग जानेगे, और वो ऑनलाइन कभी वीडियो कभी पढ़ के,... अरविन्द भैया तो हर चीज में
गीता तो एकदम अपने भाई की फैन थी पर छुटकी को चिढ़ाने से कौन रोक सकता था
किताब पढ़ के कौन खेती करता है, छुटकी हँसते हुए बोली।
गीता भी हंसने लगी बोली तेरी पिटाई करुँगी तो पता चलेगा, पिटाई के लिए मुझे कोई किताब नहीं पढ़नी पड़ेगी,... तूने हम लोगों के गन्ने के खेत तो देखे होंगे,...
छुटकी अब मज़ाक के मूड में थी बोली नहीं दी, जैसे आपने देखा था गन्ने के खेत अंदर से जमीन पे लेट के ऊपर कोई चढ़ा हुआ,
" घबड़ा मत जल्दी देख लेगी और गिनती भूल जाएगी कितने चढ़ेंगे लेकिन मैं दूसरी बात कह रही हूँ, ... भैया गन्ने के खेत के बारे में ,
छुटकी को रोकना मुश्किल था, हँसते हुए बोली, मुझे मालूम है आपके साथ और आपके पहले भी,... गन्ने के खेत में तो मास्टरी है उनकी
और तेरे साथ भी करेंगे घबड़ा मत और मैं बगल में बैठ के देखूंगी, गन्ने के खेत में हँसते हुए गीता बोली,
फिर जो उसने बताया उसका सार संक्षेप यह है की, गन्ने का दाम अच्छा नहीं मिलता था, माँ ने भी बात की मिल वालों से , तो परेशानियां थी,... एक तो सबके गन्ने साथ कटते थे तो पेराई में,... और मिल वाले की मर्जी, ... फिर मिल वाले की मजबूरी ये थी की मिल कुछ महीने ही चलती थी अगर ऐसे गन्ने लोग बोयें जो कुछ पहले हो जाएँ , कुछ बाद में हो तो मिल ज्यादा दिन तक चल पाएगी, और जिसके गन्ने पहले आयंगे उन्हें कुछ ज्यादा मिलेगा,... बस भैया लखनऊ गया था वहां कोई गन्ने का रिसर्च करते हैं इक्षु करके कुछ है, मिल वालों ने ही बताया था,... वहीँ से ले आया है रिसर्च वाले और मिल वाले भी साथ दे रहे हैं दो बीघा हमारा और दो बीघा चाची का ,... और असली फायदा ये होगा की देखा देखी बाद में बाकी गाँव वाले भी,
लेकिन छुटकी अब सीरियस बात करने के मूड में नहीं थी चिढ़ाते हुए बोली
अरे ये सब कहानी है असल में अरविन्द भैया चाहते है की जितनी जल्दी गन्ने के खेत में उतनी जल्दी मेरी दी के ऊपर चढ़ाई,... लेकिन चाची का खेत,...
अरे नहीं उस खेत में तो सबसे पहले तेरे ऊपर चढ़वाऊंगी भैया को , और चाची एक दो महीने पहले चली गयीं, चाचा तो बताया था बाऊ जी का काम पहले बम्बई फिर वो भी क़तर,... तो चाची की एकलौती लड़की मेडिकल कोचिंग कर रही थी, उसका मेडिकल में हो गया, अब वो गाँव आती नहीं। तो जिस शहर में उसका हुआ है वहीँ दो कमरे का मकान लेकर, छोटा सा है लेकिन बेटी के पास है और खेती क काम सब चाची ने अरविन्द भैया को सौंप दिया।
और एक बार फिर से गीता छुटकी से सट के बैठ गयी थी, उसके कंधे पे हाथ रख के जैसे न जाने कब बिछुड़ी सहेलियां हो,एकदम राजदार,... और अपने मन की एक और बात, जो उसने न जाने कब से मन के किसी कोने में सात ताले में बंद कर के रखी हो,... और एकदम धीमे धीमे,...
" एक बात और, न तो माँ ने कभी कही न भैया ने, भैया का तो सवाल ही नहीं वो तो पैदायशी बुद्धू है,... लेकिन मुझे लगता है,... "
इस नयको के दांव पेंच के आगे .. सारे चारो खाने चित्त....अगली पोस्ट की नन्ही मुन्नी झलक
क्या बात हुयी दोनों सहेलियों के बीच , मतलब बहनों के बीच,... सबका मन करता है न लड़कियों की बातें सुनने का, एकदम प्राइवेट ख़ास बात हो तो भी,...
लेकिन अभी ये सब बाते यही ,
अभी कहानी वापस मुड़ रही है जहाँ से मुड़ी थी या ननद भौजाई के बीच कबड्डी की तैयारी,..बस दो घंटे बचे हैं ,
कब से भौजाइयां लगातार हार रही हैं लेकिन अबकी पासा पलटना है , स्ट्रेटजी बनानी है , टीम का फाइनल करना है और टीम मेंबर्स के साथ बैठ के स्ट्रेटजी सेट करनी है तो बस अगली पोस्ट में
और घड़ाइये मत , गीता और छुटकी की आखिर में क्या कानाफूसी हुयी ,क्या बात छुटकी ने मानी और क्या शर्तें रखीं सब अगली पोस्ट में ,..
छुटकी अभी ननदो से होली खेल के लौटी नहीं पर मैं परेशान थी,
नहीं नहीं छुटकी के लिए नहीं, उसके तो अब खेलने खाने के दिन थे,... और ननद छिनार हों वो भी नैना ऐसी तो,...
मेरी परेशानी ननदों को लेकर ही थी लेकिन दूसरी,...
मंजू भाभी के यहाँ मैंने गाँव की अपनी जेठानियों को बोल तो दिया था की अबकी ननदों को हम लोग न सिर्फ हराएंगे बल्कि खुल के उनकी गाँड़ मारेंगे भी गाँव के बीच में खुले मैदान में और अपने देवरों से भी अगले दिन मरवाएँगे,...
दो चार उमर में थोड़ी बड़ी जेठानियों ने मुंह भी बिचकाया,..सोच रही थी ये नयको नयी आयी आयी है पहली होली है इस गाँव की,... कुछ दिन पहले घूंघट छूटा है बस खाली माँ ने बढ़ बढ़ के बोलना सिखाया है,
पर मंजू भाभी को पूरा भरोसा था मेरे ऊपर जिस तरह से चुन्नू की में थोड़ी देर पहले नथ उतारी थी और एक बहुत बड़ा चैलेंज गाँव की भौजाइयों ननदों सब का पूरा किया था, सुबह सुबह आज, चंदू ब्रह्मचारी देवर से तीन राउंड कुश्ती खेल के आ रही थी , और अब एक बार उसका लंगोट खुल गया तो वो नाग लंगोट में बंद होने वाला नहीं था. और ये भरोसा मंजू भाभी के साथ मेरी बाकी जेठानियों का भी था,...
ये भी मानवीय भावनाओं का एक रस है...प्रिय कोमल जी
आप तो दुःख लिखा ही मत करो, सच में दिल के आर पार हो जाता है। हर लाइन पर सिर पकड़ कर बैठने और जार जार रोने का मन करता है।
चाहे मोहे रंग दे की बिरहा हो, फागुन के दिन चार के बम ब्लास्ट या इस कहानी में हो। बस पढ़ कर एक खामोशी सी छा जाती है। कुछ अच्छा नहीं लगता।
लेकिन ये आपकी ही लेखनी का कमाल है कि जिस शिद्दत से आप लिखती हैं मुझ जैसे पाठक उसी शिद्दत से महसूस भी करते हैं और क्यों न करे हर लाइन में सच ही सच, सच के अलावा कुछ नहीं।
जैसा मन में आया लिख मारा। आपकी लेखनी को सादर प्रणाम और ईश्वर से प्रार्थना है कि ये इसी तरह चलती रहे।
सादर
the whole thing is that कि भईया सबसे बड़ा रुपईया....“”
तो असली चीज है पैसा
“
satyavachan
लेकिन पुराने जमाने के लाला और सूदखोर से कुछ हीं अच्छे...“”
" माँ नहीं है न नहीं तो दस गारी देतीं तोहरी महतारी के , वैसे भी उनका समधिन का रिस्ता लगता,... बैंक के नाम से मुंह नोच लेती थी, कहती थी हमार पैसा लेते है तो ओनकर कउनो जमीन जायदाद नहीं और हमको जरूरत पड़ी तो कुल गिरवी रखा लेंगे, हमार पैसा लेंगे तोदो टका सूद देंगे और हमें पैसा देंगे तो १२ से पंद्रह टका और लेंगे और टेबल टेबल जाके बिनती करा, परसाद चढ़ावा बाबू लोगन के,...
“”
Waah finance ki barikiyan
You have good statistics to back the situations...Some facts without comments about Eastern and Central UP, where this story is based
1. Credit deposit ratio ( CDR ) in India is about 70% (2019) but if we move to eastern UP and central UP it is around 40 % and if we further move to rural it will be further reduced and if we break it to those who are marginal farmers, small farmers or landless labor one can understand the limits.
It was in 1980 that the RBI has advised rural and semi urban branches to achieve a CDR of about 80 %.
2. Purvanchal tops with over 84% of agricultural land holdings below one hectare. Eastern Uttar Pradesh, popularly termed as Purvanchal, leads the tally in the state with highest percentage of agricultural land holdings below one hectare, which classifies a farmer as marginal. The all-India average of land holding below one hectare is about 65 per cent.
3. As per 2011 census of UP, there were more females than males in many districts of UP, a result of migration. In Jaunpur it was 1024, in Deoria, it was 1017 and Azamgarh it was 1,019, to name a few. However, job rich districts like Gautam Buddh Nagar ( NOIDA) has only 851 female per 1000 males.
भूख के मारे बिरहा बिसरिगा, बिसरिगा कजरी कबीर
अब देख देख गोरी क जोबनवा उठै न करेजवा में पीर।
![]()
Ballia’s tenant farmers: struggling to subsist - PARI Education
“I have no money, but I work very hard.” Toofani Rajbhar is an agricultural labourer and goat herder. “Farming hardly pays anything so I do dihadi mazdoori [daily wage labour work] to earn some money,” he said. The ‘farming’ that Rajbhar of Akhar village is referring to is an informal...pari.education
लेकिन शुद्ध हवा पानी और भोजन से वंचित...समस्याएं हर क्षेत्र, राज्य में हर तरह की हैं। लेकिन कुछ नव विवाहिताएं अपने मनसेधू के साथ बियाह के तुरंत बात परदेस जाके जोबन का जो आनंद उठाती हैं बिना लाज सरम के। अपने गांव देस से दूर । पौने दो साल बाद आती हैं तो एक लरिका नीचे चल रहा होता है तो एक कोरा (गोद) में होता है। फिर भी गांव की समौरी मेहरारू से कम उमर की दीखती हैं। परदेस में दुख भी है आनंद भी है। पहले जो डेढ़ साल परदेस में छ महीने गांव में रहते थे। उन्होंने गांव सहर दोनो का भरपूर आनंद लिया है। अगर आपने शहरों को करीब से देखा हो तो आपको पता होगा। सहर में कुछ औरतें बेहद आजादी से रहती हैं अच्छा भोजन दोपहर और रात में चुदाई । सुबह प्रकृति के साथ विहार शाम को बाजारों में विहार।