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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ९८

अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, मजे ले, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 
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komaalrani

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सत्य है, आदरणीय
Posted More of Shila Bhabhi in Rang Prasang
 

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग १८७
गुड्डी की कोचिंग

update posted, please read, like, and share your comments.

 

komaalrani

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Nice update
Thanks so much aapke isi tarh regular cooment aate rahenge to likhne men aur maja aayega🙏🙏🙏🙏
 

komaalrani

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प्रिय कोमल जी

आप तो दुःख लिखा ही मत करो, सच में दिल के आर पार हो जाता है। हर लाइन पर सिर पकड़ कर बैठने और जार जार रोने का मन करता है।

चाहे मोहे रंग दे की बिरहा हो, फागुन के दिन चार के बम ब्लास्ट या इस कहानी में हो। बस पढ़ कर एक खामोशी सी छा जाती है। कुछ अच्छा नहीं लगता।

लेकिन ये आपकी ही लेखनी का कमाल है कि जिस शिद्दत से आप लिखती हैं मुझ जैसे पाठक उसी शिद्दत से महसूस भी करते हैं और क्यों न करे हर लाइन में सच ही सच, सच के अलावा कुछ नहीं।

जैसा मन में आया लिख मारा। आपकी लेखनी को सादर प्रणाम और ईश्वर से प्रार्थना है कि ये इसी तरह चलती रहे।

सादर
मैं सिर्फ फागुन के दिन चार कहानी का अंत जिन पंक्तियों से हुआ है उसे दुहरा सकती हूँ

सुखिया सब संसार है खाये और सोये

दुःखिया दास कबीर है जागे और रोये।

और फ़ैज़ साहेब से चंद सतरें उधार मांग लेती हूँ अपनी बात कहने के लिए,

अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म
रेश-ओ-अठलस-ओ-कमख़ाब-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लितड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए


लौट जाती है इधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे - २
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

गाँव में होली गुजरते ही चैता शुरू हो जाता है होली की छुट्टी में आये परदेसी वापस चले जाते हैं, कोई टैक्सी चलाने, कोई दूध सब्जी बेचने, कोई खेती में काम करने कोई मिल में हाड़ तोड़ मेहनत करने,...

और गोदान में मुकेश ने जो चैता गाया था, बस बिन कहे सब कह देता है,

हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा
जरत रहत दिन रैन

अमवा की डाली पे बोलेली कोयलिया

तनिक न आवत चैन,

आस अधूरी प्यासी उमरिया, जाए अधूरी सूनी डगरिया
डरत जिया बेचैन
डरत जिया बेचैन ओ रामा,

जरत रहत दिन रैन

---

सुना जरूर होगा, एक बार फिर कभी सुनियेगा,

हम बनजारे कहीं भी जाएँ, थोड़ा सा गाँव देस जरूर साथ ले जाते और कभी कोने अंतरे सूने सन्नाटे मुंह भर बतिया लेते हैं।
 
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komaalrani

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“”

" माँ नहीं है न नहीं तो दस गारी देतीं तोहरी महतारी के , वैसे भी उनका समधिन का रिस्ता लगता,... बैंक के नाम से मुंह नोच लेती थी, कहती थी हमार पैसा लेते है तो ओनकर कउनो जमीन जायदाद नहीं और हमको जरूरत पड़ी तो कुल गिरवी रखा लेंगे, हमार पैसा लेंगे तोदो टका सूद देंगे और हमें पैसा देंगे तो १२ से पंद्रह टका और लेंगे और टेबल टेबल जाके बिनती करा, परसाद चढ़ावा बाबू लोगन के,...

“”

Waah finance ki barikiyan
🙏🙏🙏🙏 Gaon ki auraten bhale commerce accounts na padhi hon lekin zindagi mirco fainance sikha deti hai aur jiske paas girvi rkhane ko jamin hi na ho to,... khud ko girvi rakhna padata hai,... pahel zamindar mahajn rkahvaate the aur Mahanagr rakhvaa lete hain. vahan aadami local men kitte dhakke khaaye, utarana Muhmbra men ho kalyan tak darvaaje par hi na phunch paaye, ek bada paav khate huye phone pe bole lunch kar raha hun aur ghar laut ke mahanangr ki chamak damak sunaaye,... Bamabyu se aaya mera dost, dost ko salaam karo
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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मैं सिर्फ फागुन के दिन चार कहानी का अंत जिन पंक्तियों से हुआ है उसे दुहरा सकती हूँ

सुखिया सब संसार है खाये और सोये

दुःखिया दास कबीर है जागे और रोये।

और फ़ैज़ साहेब से चंद सतरें उधार मांग लेती हूँ अपनी बात कहने के लिए,

अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म
रेश-ओ-अठलस-ओ-कमख़ाब-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लितड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए


लौट जाती है इधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे - २
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

गाँव में होली गुजरते ही चैता शुरू हो जाता है होली की छुट्टी में आये परदेसी वापस चले जाते हैं, कोई टैक्सी चलाने, कोई दूध सब्जी बेचने, कोई खेती में काम करने कोई मिल में हाड़ तोड़ मेहनत करने,...

और गोदान में मुकेश ने जो चैता गाया था, बस बिन कहे सब कह देता है,


हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा
जरत रहत दिन रैन

अमवा की डाली पे बोलेली कोयलिया

तनिक न आवत चैन,

आस अधूरी प्यासी उमरिया, जाए अधूरी सूनी डगरिया
डरत जिया बेचैन
डरत जिया बेचैन ओ रामा,

जरत रहत दिन रैन

---

सुना जरूर होगा, एक बार फिर कभी सुनियेगा,

हम बनजारे कहीं भी जाएँ, थोड़ा सा गाँव देस जरूर साथ ले जाते और कभी कोने अंतरे सूने सन्नाटे मुंह भर बतिया लेते हैं।

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komaalrani

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ये रेल पिया को दूर हीं नहीं ले जाती...
पास भी लाती है...

रेलगाड़ी के गुजरने का दृश्य दूर से हीं दिख जाता है...
और गाँव में घर के छत पर से एकाध किमी दूर से हीं लोग पहचान लेते थे... खास कर जब पर्व त्योहार हो... और आने की प्रबल संभावना हो...
फलाना आ रहे हैं... उनका सामान खुद उठाने के लिए दौड़ कर पहुँच जाते थे और हँसते खिलखिलाते बातें करते रास्ता तय होता था....

और इन गीतों में दूर से आने वाले से फरमाइश भी होती थी...
पनिया के जहाज से पलटनिया बनी अईह पिया...
ले ले अईह हो पिया झुमका पंजाब से...
आप की एक लाइन आरुषी जी की तरह कई कई पोस्टों पर भारी होती है,

क्या यादें जगा दी आपकी इस लाइन ने ' पनिया के जहाज से पलटनिया बन अइया ' इस एक लाइन में इतना दुःख छिपा है,

पहले तो पलटन, मालूम तो आपको क्या सबको होगा फिर भी, ...

पलटन शब्द अंग्रेजी के प्लैटून से आया है लेकिन रस्ते में उसने पलटा खाया, प्लैटून असल में एक छोटी यूनिट होती थी पर हिंदी में वो रेजिमेंट या बटालियन की साइज की होगयी।

और अंग्रेजी वो आया फ़्रांस से १७ वी शताब्दी से, जब बंदूक लोड करने में समय लगता था,... तो वो एक सैनिकों का समूह होता था जो एक साथ गोली चलाता था, तबतक दूसरा ग्रुप लोड कर करता था और उसकी फायरिंग के बाद वो,...

पर बात फिर घूम फिर के वही पश्चिमी बिहार, पूर्वी और मध्य उत्तरप्रदेश पर आ जाती है. अवध ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सिपाहियों की खास तौर से बंगाल आर्मी की नर्सरी थी, अधिकतर सिपाही वहीँ से, और यही ब्रिटिश साम्राज्य के लिए चाहे चीन से से लड़ना हो ( ओपियम वार ) या बर्मा से, पानी के जहाज से जाते थे, और १८५७ के पहले ही पलटन शब्द हिंदी उर्दू में आ गया था और लोकगीतों में भी

फिर बिदेसिया सिर्फ कलकत्ते की चटकल मिलो में ही नहीं पलटन में भी होता था और पानी के जहाज से आता भी था

आपने एकदम सही कहा रेल मिलाती भी अगर बिछुड़ाती है तो,

और आज की आधुनिक नायिका के लिए तो शायद मोबाईल और लैपटॉप ही बैरन और सौतन हैं।
 

komaalrani

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Awesome updates, super duper gazab,Gita ne bahut achha sikhaya padhaya hai chhutki ko.
New adbhut style writing.
👌👌👌👌👌👌👌
✅✅✅✅✅✅
🔥🔥🔥🔥🔥

Didi tume dekh kar mene bhi apni writing mein kuch changes ki hain.
Raji tumari shisya jo thehri.
Padh kar dekhna apni Raji behn ki story mein changes bilkul Komal the gr8 style mein.
Komal mam u r a superb, super se bhi upar writer.
Love u didi 💋💋💋♥️♥️♥️

Thanks sometimes i do write Pathos sukh ki baate ham karte hain rhate hain kabhi kabhaar dukh ki baat bhi,.

and i feel kyi baar ye dukh vaali posts logon ko yaad rh jaati hain Jaise Phagun ke din chaar ka Bomb Blast aur CST par attack, ya Mohe rang de ka Virah ya is story ke dono last post

likhte smaay kharab bhi lagata hai accha bhi yes one can try it sometime

and by the way i yesterday posted update of



जोरू का गुलाम भाग १८७
गुड्डी की कोचिंग

 

komaalrani

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समस्याएं हर क्षेत्र, राज्य में हर तरह की हैं। लेकिन कुछ नव विवाहिताएं अपने मनसेधू के साथ बियाह के तुरंत बात परदेस जाके जोबन का जो आनंद उठाती हैं बिना लाज सरम के। अपने गांव देस से दूर । पौने दो साल बाद आती हैं तो एक लरिका नीचे चल रहा होता है तो एक कोरा (गोद) में होता है। फिर भी गांव की समौरी मेहरारू से कम उमर की दीखती हैं। परदेस में दुख भी है आनंद भी है। पहले जो डेढ़ साल परदेस में छ महीने गांव में रहते थे। उन्होंने गांव सहर दोनो का भरपूर आनंद लिया है। अगर आपने शहरों को करीब से देखा हो तो आपको पता होगा। सहर में कुछ औरतें बेहद आजादी से रहती हैं अच्छा भोजन दोपहर और रात में चुदाई । सुबह प्रकृति के साथ विहार शाम को बाजारों में विहार।
सही है, अक्सर, गोदान में किसी स्टेशन से गुलाबी साडी, पैरों में चौड़ा महावर, प्लास्टिक की गुलाबी सैंडिल,... और फाफामऊ में जैसे गंगा जी पार होती हैं,... वह गठरी धीरे धीरे खुलने लगती है,... इलाहाबाद में साथ का आदमी जो स्टेशन पर उसके साथ था लेकिन जैसे जानता पहचानता न हो,... अब स्टेशन से चाय ले आता है,... और कुछ देर में चकर मकर,... और जबलपुर इटारसी पार होते होते पूरी तरह खुल चुकी होती है।

लौटानी का हाल तो आपने बयान कर ही दिया, एक कोरा में एक ऊँगली पकडे,

लेकिन कुछ ही मेहरारू खुसकिस्मत होती हैं, उसका मन तो पहले दिन से ही करता है साथ जाने का, लेकिन बिघ्न बाधाएं भी होती है जैसे जेठानी और सास। जिंदगी भर हम चूल्हा चौका किये और ये नयको,... जेठानी सास से परछन के बाद ही,... अरे मरद को तो पहले दिन से मुट्ठी में कर लिए है महतारी जादू टोना सीखा के भेजी है, लेकिन हमहुँ बहुत दिन से मायके नहीं गए हैं,... और सोचती कुछ और है जो भी थोड़ा बहुत पैसा इसका मरद भेज रहा ये गयी तो वो भी

जोरू का गुलाम में भी जेठानी यही चाहती है की देवरानी देवर के साथ काम पर न जाए और हुआ वही, जाते ही देवर को बदल दिया।

लेकिन दूसरी बात ये भी परदेस में रहने का ठिकाना, छोटी एक कमरे की खोली भी हो मरद राजी हो जाएगा, ... लेकिन वो भी कहीं सीढ़ी के नीचे,... कहीं जिस ठेले पर दिन भर सबजी बेचता है उसी के बगल में रात और सुबह सुलभ शौचालय,... या स्टेशन पर वेंडर है तो उसी स्टाल पर या कई एक साथ तो मुश्किल है, पर कोशिश वो भी करता है जल्द से जल्द इंतजाम कर फेमली लाने का,... खाने की बड़ी तकलीफ है ये सबसे कॉमन बहाना,...

और कभी कभी आना जाना कुछ दिन के लिए जैसे इस कहानी में गितवा की माँ

शुरू शुरू में बच्चे छोटे और सास, कौन देखेगा फिर खेत बाड़ी,...

और बाद में दो बार एक बार बच्चो के साथ घूमने फिरने, और फिर बच्चे जब थोड़े बड़े हो गए तो उन्हें ननिहाल भेज के दो महीने के लिए,...

माइग्रेशन में सिंगल मेल माइग्रेंट सबसे ज्यादा है और उसके बाद पति पत्नी,... और सबसे बड़ी बात ये माइग्रेशन कभी भी पूरा नहीं होता, साल में एक बार दो बार, घर से नाता जुड़ा ही रहता है

और हम सब महानगर में थोड़ा बहुत गाँव साथ में लेकर जाते हैं, यादों में आदत में

और शहर तो अच्छी तरह आ जाता है , अब लोकगीतों में भी मम्मी पापा आ गए हैं और भोजपुरी पिक्चरों में हीरो सुजीत कुमार की तरह धोती कुरता और कंधे पर लाठी ले के नहीं दीखते बल्कि जींस में नजर आते हैं,...
 
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