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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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जो भोगा जो देखा वही लिखा,
कहीं पढ़ा था सुबह सुबह दो लोग जाते हैं कमाने एक के कंधे पे गैंता, फावड़ा और दूसरे के लैपटॉप का झोला,
गैंता फावड़ा वाला तो शाम को आ जाता है , लैपटॉप वाले का पता नहीं कब लौटे
एकदम, चमेलिया और गितवा जैसे उदार भावना वाली लड़कियां इस कलयुग में दुर्लभ हैं,और ये अध्ययन ... घर पहुँच कर भी काम आएगा...
i am awfully busy this week, so it may get delayed a bit. But I will still tryAb agle update ki pratiksha hai
Npi am awfully busy this week, so it may get delayed a bit. But I will still try
आपने एकदम सही याद दिलाया पानी में छपाछप ननद की ट्रेनिंग और सोलहवां सावन के अलावा कहीं नहीं हुयी है हाँ ये कहानी जिस का सीक्वेल है उसमे होली के दिन छुटकी और उसकी सहेलियों के साथ,... लेकिन वो जल क्रीड़ा से ज्यादा होली थी,ये नदी वाला एपिसोड "सोलवां सावन" और वाटर पार्क वाला "ननद की ट्रेनिंग" के अलावा भी कहीं गाँव देहात में ... कुछ संभावना...
बाढ़ की विभीषिका तो बहुत ही भयावह और पूर्वांचल से भी बढ़कर मिथिलांचल मेंहाँ... जब पिता दूर हों..
माँ का मायूस चेहरा... भाई की चिंता से लिप्त आँखें...
गीता को बड़ी करने के लिए काफी से ज्यादा है...
एकाएक खिलंदड़ी गीता बड़ी और समझदार लगने लगी...
और एक मुख्य कारण ये भी है कि हर साल बाढ़ आती है और खेत तीन-चार महीने के लिए उपज से महरूम...
गाय-गोरु भी इनसे वंचित नहीं रह पाते...
पानी उतरने के बाद भी स्थिति सुधरने में काफी समय लगता है...
thanks so much for nice words, next part soonGood