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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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मैं सिर्फ फागुन के दिन चार कहानी का अंत जिन पंक्तियों से हुआ है उसे दुहरा सकती हूँ

सुखिया सब संसार है खाये और सोये

दुःखिया दास कबीर है जागे और रोये।

और फ़ैज़ साहेब से चंद सतरें उधार मांग लेती हूँ अपनी बात कहने के लिए,

अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म
रेश-ओ-अठलस-ओ-कमख़ाब-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लितड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए


लौट जाती है इधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे - २
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

गाँव में होली गुजरते ही चैता शुरू हो जाता है होली की छुट्टी में आये परदेसी वापस चले जाते हैं, कोई टैक्सी चलाने, कोई दूध सब्जी बेचने, कोई खेती में काम करने कोई मिल में हाड़ तोड़ मेहनत करने,...

और गोदान में मुकेश ने जो चैता गाया था, बस बिन कहे सब कह देता है,


हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा
जरत रहत दिन रैन

अमवा की डाली पे बोलेली कोयलिया

तनिक न आवत चैन,

आस अधूरी प्यासी उमरिया, जाए अधूरी सूनी डगरिया
डरत जिया बेचैन
डरत जिया बेचैन ओ रामा,

जरत रहत दिन रैन

---

सुना जरूर होगा, एक बार फिर कभी सुनियेगा,

हम बनजारे कहीं भी जाएँ, थोड़ा सा गाँव देस जरूर साथ ले जाते और कभी कोने अंतरे सूने सन्नाटे मुंह भर बतिया लेते हैं।
आपके पास कई लेखकों/कवियों के उद्धरण भी हैं...
और उन्हें उचित जगह पर पेश करने की कला भी...
ये इस बात को दर्शाता है कि एक अच्छा लेखक होने से पहले एक अच्छा पाठक होना जरूरी है....
लेकिन हरेक पाठक अच्छा लेखक नहीं हो सकता...
उसके अच्छी समझ बूझ भी होना चाहिए...
जो आपमें कूट कूट के भरी हुई है...
 

motaalund

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🙏🙏🙏🙏 Gaon ki auraten bhale commerce accounts na padhi hon lekin zindagi mirco fainance sikha deti hai aur jiske paas girvi rkhane ko jamin hi na ho to,... khud ko girvi rakhna padata hai,... pahel zamindar mahajn rkahvaate the aur Mahanagr rakhvaa lete hain. vahan aadami local men kitte dhakke khaaye, utarana Muhmbra men ho kalyan tak darvaaje par hi na phunch paaye, ek bada paav khate huye phone pe bole lunch kar raha hun aur ghar laut ke mahanangr ki chamak damak sunaaye,... Bamabyu se aaya mera dost, dost ko salaam karo
एनसीईआरटी की एक पुस्तक में पढ़ा था कि एक माँ जो पढ़ी लिखी नहीं थी वो अपनी पढ़ी लिखी बेटी से अधिक तेजी से और सही लेन-देन का हिसाब का रखती थी..
लेकिन इसके उलट पढ़ी लिखी बेटी कई बार हिसाब गलत कर बैठती थी...
इसलिए जीवन का अनुभव .. हमेशा एजुकेशन के भारी पड़ता है....
 

motaalund

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आप की एक लाइन आरुषी जी की तरह कई कई पोस्टों पर भारी होती है,

क्या यादें जगा दी आपकी इस लाइन ने ' पनिया के जहाज से पलटनिया बन अइया ' इस एक लाइन में इतना दुःख छिपा है,

पहले तो पलटन, मालूम तो आपको क्या सबको होगा फिर भी, ...

पलटन शब्द अंग्रेजी के प्लैटून से आया है लेकिन रस्ते में उसने पलटा खाया, प्लैटून असल में एक छोटी यूनिट होती थी पर हिंदी में वो रेजिमेंट या बटालियन की साइज की होगयी।

और अंग्रेजी वो आया फ़्रांस से १७ वी शताब्दी से, जब बंदूक लोड करने में समय लगता था,... तो वो एक सैनिकों का समूह होता था जो एक साथ गोली चलाता था, तबतक दूसरा ग्रुप लोड कर करता था और उसकी फायरिंग के बाद वो,...

पर बात फिर घूम फिर के वही पश्चिमी बिहार, पूर्वी और मध्य उत्तरप्रदेश पर आ जाती है. अवध ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सिपाहियों की खास तौर से बंगाल आर्मी की नर्सरी थी, अधिकतर सिपाही वहीँ से, और यही ब्रिटिश साम्राज्य के लिए चाहे चीन से से लड़ना हो ( ओपियम वार ) या बर्मा से, पानी के जहाज से जाते थे, और १८५७ के पहले ही पलटन शब्द हिंदी उर्दू में आ गया था और लोकगीतों में भी

फिर बिदेसिया सिर्फ कलकत्ते की चटकल मिलो में ही नहीं पलटन में भी होता था और पानी के जहाज से आता भी था

आपने एकदम सही कहा रेल मिलाती भी अगर बिछुड़ाती है तो,

और आज की आधुनिक नायिका के लिए तो शायद मोबाईल और लैपटॉप ही बैरन और सौतन हैं।
इतनी अगाध जानकारी नहीं थी...
शब्द की उत्पत्ति तथा अपभ्रंश ...
और उस परिवेश के संदर्भ में व्याख्या...
आपसे सीखने को बहुत कुछ है...
 

motaalund

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Thanks sometimes i do write Pathos sukh ki baate ham karte hain rhate hain kabhi kabhaar dukh ki baat bhi,.

and i feel kyi baar ye dukh vaali posts logon ko yaad rh jaati hain Jaise Phagun ke din chaar ka Bomb Blast aur CST par attack, ya Mohe rang de ka Virah ya is story ke dono last post

likhte smaay kharab bhi lagata hai accha bhi yes one can try it sometime

and by the way i yesterday posted update of



जोरू का गुलाम भाग १८७
गुड्डी की कोचिंग

सचमुच...
फागुन के दिन चार में वो मंदिर के पास दूल्हा दुल्हन का सीन...
बाद में सिर्फ एक हाथ...
बहुत हीं करुणापूर्ण दृश्य उकेरा था आपने..
और फिर स्टेशन पर करन का कोट...
कितने विचार आए-गए हो गए ..
रीत तो भुक्तभोगी थी...
लेकिन हम पाठक भी अछूते न रह पाए.
 

motaalund

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सही है, अक्सर, गोदान में किसी स्टेशन से गुलाबी साडी, पैरों में चौड़ा महावर, प्लास्टिक की गुलाबी सैंडिल,... और फाफामऊ में जैसे गंगा जी पार होती हैं,... वह गठरी धीरे धीरे खुलने लगती है,... इलाहाबाद में साथ का आदमी जो स्टेशन पर उसके साथ था लेकिन जैसे जानता पहचानता न हो,... अब स्टेशन से चाय ले आता है,... और कुछ देर में चकर मकर,... और जबलपुर इटारसी पार होते होते पूरी तरह खुल चुकी होती है।

लौटानी का हाल तो आपने बयान कर ही दिया, एक कोरा में एक ऊँगली पकडे,


लेकिन कुछ ही मेहरारू खुसकिस्मत होती हैं, उसका मन तो पहले दिन से ही करता है साथ जाने का, लेकिन बिघ्न बाधाएं भी होती है जैसे जेठानी और सास। जिंदगी भर हम चूल्हा चौका किये और ये नयको,... जेठानी सास से परछन के बाद ही,... अरे मरद को तो पहले दिन से मुट्ठी में कर लिए है महतारी जादू टोना सीखा के भेजी है, लेकिन हमहुँ बहुत दिन से मायके नहीं गए हैं,... और सोचती कुछ और है जो भी थोड़ा बहुत पैसा इसका मरद भेज रहा ये गयी तो वो भी

जोरू का गुलाम में भी जेठानी यही चाहती है की देवरानी देवर के साथ काम पर न जाए और हुआ वही, जाते ही देवर को बदल दिया।

लेकिन दूसरी बात ये भी परदेस में रहने का ठिकाना, छोटी एक कमरे की खोली भी हो मरद राजी हो जाएगा, ... लेकिन वो भी कहीं सीढ़ी के नीचे,... कहीं जिस ठेले पर दिन भर सबजी बेचता है उसी के बगल में रात और सुबह सुलभ शौचालय,... या स्टेशन पर वेंडर है तो उसी स्टाल पर या कई एक साथ तो मुश्किल है, पर कोशिश वो भी करता है जल्द से जल्द इंतजाम कर फेमली लाने का,... खाने की बड़ी तकलीफ है ये सबसे कॉमन बहाना,...

और कभी कभी आना जाना कुछ दिन के लिए जैसे इस कहानी में गितवा की माँ

शुरू शुरू में बच्चे छोटे और सास, कौन देखेगा फिर खेत बाड़ी,...

और बाद में दो बार एक बार बच्चो के साथ घूमने फिरने, और फिर बच्चे जब थोड़े बड़े हो गए तो उन्हें ननिहाल भेज के दो महीने के लिए,...

माइग्रेशन में सिंगल मेल माइग्रेंट सबसे ज्यादा है और उसके बाद पति पत्नी,... और सबसे बड़ी बात ये माइग्रेशन कभी भी पूरा नहीं होता, साल में एक बार दो बार, घर से नाता जुड़ा ही रहता है

और हम सब महानगर में थोड़ा बहुत गाँव साथ में लेकर जाते हैं, यादों में आदत में

और शहर तो अच्छी तरह आ जाता है , अब लोकगीतों में भी मम्मी पापा आ गए हैं और भोजपुरी पिक्चरों में हीरो सुजीत कुमार की तरह धोती कुरता और कंधे पर लाठी ले के नहीं दीखते बल्कि जींस में नजर आते हैं,...
ये सब बातें आपकी..
टाईम ट्रेवल करा देती हैं...
अतीत में...
कितने यादें संजोए...
और उन्हीं दृश्यों को किसी दूसरे के साथ होते देखकर अपनी कहानी दुबारा जीवंत होती हुई प्रतीत होती है...
 

Shetan

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लेकिन एक बात और छुटकी को नहीं समझ में आ रही थी और उसने पूछ लिया,

"माँ नहीं है , कहाँ गयी कब आएँगी "

और अब गीता थोड़ी खामोश हो गयी पर रुक रुक के उसने सब बता दिया, माँ, बाऊजी, चाचा,...सब,


सब बताया उसने बिना कुछ काट पीट के लेकिन पहले थोड़ी देर चुप रही, गहरी सांस ली,

फिर गीता ने बताना शुरू किया माँ कहाँ गयी, लेकिन अबकी बात शुरू की अपने बाउ जी से,...

' बताया तो था जब मैं पैदा पैदा हुयी,... बल्कि माँ के पेट में आयी तब से बाऊ जी बंबई में "



छुटकी गीता की उमर जोड़ने लगी तो हंस की गीता ने टोका, नौ महीने और जोड़ दे, होली के दिन माँ के पेट में मैं पधारी थी और बाऊ जी बंबई से आये थे,... तब तक उनको करीब साल भर हो गया था बंबई गए,..



फिर कुछ रुक के उसने बाउ जी के बंबई का किस्सा बताया,...



" पहले वो टैक्सी चलाते थे, फिर कोई मारवाड़ी था, उनकी टैक्सी में कभी बैठा तो,... फिर वो उस के ड्राइवर और कुछ दिन के बाद ही, उसकी बहुत सी खोली थीं तो उसका किराया उगाहने के काम पे लगा दिया उसने, दस टका मिलता था उनको,... और पैसे वैसे जोड़ के उन्होंने खुद की पहले एक और फिर एक , दो टैक्सी खरीद ली , और गाँव जवार के दो लड़के उनसे चलवाना शुरू कर दिया , ये मेरे पैदा होने के बाद की बात है, तभी सब उनसे कहते थे की तेरे घर में लक्ष्मी आयी है,... अब बाबू जी दो पैसा जोड़ के, ... खुद तो खाली मारवाड़ी की गाडी या कभी उसकी बीबी या बेटी गयी तो वो चलाते थे, बाकी टाइम वही कभी किराया उगाहना कभी और ऐसे वैसे काम, तनख्वाह के अलावा सब वसूली के काम में दस टका, ... बाबू जी के पहले जो था वो तो,.. बाऊ जी बताते थे या तो किराया उगाह नहीं पाता था या खुदे बीच में, टैक्सी का पैसा और वो उगाही का दस टका जोड़ जोड़ के,... फिर दो टैक्सी और



अब गीता चुप हो गयी और छुटकी ने सवाल दाग दिया. दी आप कभी गयी थीं बंबई कैसा है , मैंने बहुत सुना है, और बाऊ जी का काम धाम...

गीता जैसे अतीत में खो गयी थी, बात वो छुटकी से कर रही थी, लेकिन थी कही और,... बात उसने जारी रखी

मारवाड़ी से ज्यादा उस की बीबी उन को मानती थी,... और कुछ दिन के बाद जब वो सेठ गुजर गया तो उस की बीबी ने और काम धाम बाउ जी को,... सेठ के साथ काम करते करते बाऊ जी बहुत काम सीखगए थे उसका,... कहाँ से कितना पैसा लाना है कितनी खोली किस चाल में सेठ की है, सब उनकी जुबान पे था,... ड्राइवरी उन्होंने छोड़ दी थी, कभी मन करे तो या वो मरवाडिन या उसकी बेटी बस कभी कभी उन दोनों को ले जाते थे, बस अब अपना धंधा पानी

मैं पांच साल की थी तो हम लोग एक बार गए थे, ... तब तक बाउ जी ने डोम्बिवली में कुछ दूकान डलिया भी शुरू कर दी थी, चार पांच टैक्सी चलने लगी थी,... और हम लोग खूब घूमे,... जूते वाला पार्क था था , और इतने आदमी इतने आदमी, गाँव क मेला झूठ, जहाँ जाओ वहां मेला,... " दस साल से थोड़ा ज्यादा ही हुआ.

गीता जैसे लग रहा था एक बार फिर से बंबई वापस चली गयी थी, ... मुस्कराती हुयी छुटकी को समझा के बोली,



जानती हो छुटकी बाऊ जी ले गए थे वहां तू सोच नहीं सकती,... इतना पानी इतना पानी , हमरे गाँव क सौ बल्कि ज्यादा पोखरा ताल सब समाय जाएँ ,...

छुटकी ने किताब में पढ़ा था उसके कोर्स में था वो हंस के बोली,

" दी समुन्दर,.. "


" हाँ, वही,... " गीता खिलखिलाते हुए बोली बाऊ जी बताये थे, हम भी बाद में भूगोल में पढ़े लेकिन किताब में उतना अंदाजा नहीं लग सकता,... और सबसे बड़ी बात, सांझ की जून हम सब लोग टहल रहे थे, मैं माई बाऊ जी , अरविन्द,... अपने यहाँ तो सूरज धीरे धीरे,... मैं वही देख रही थी,... वहां वो झप्प से डूब गया, एकदम आग क गोला,... जैसे कउनो मनई पानी में झट्ट से डुबकी मार ले, अभी दिख रहा अभी नहीं एकदम वैसे। "



" बाउ जी आते नहीं थे यहाँ,... और यहाँ की खेती बारी,... "छुटकी ने धीमे से पूछा


" आते थे, कई बार होली, दिवाली और उसके बाद एक बार कम से कम कम दस पंद्रह दिन के लिए जब फसल की कटाई होती,... और मेरे लिए गुड़िया , लिटा दो तो पट्ट से आँख बंद कर लेगी, बैठा दो तो चट्ट से आँख खोल लेगी मेरी सहेलियां जलती थीं और भैया के लिए कपडे, मेरे लिए भी ,...

और गीता फिर शांत हो गयी चुप, एकदम चुप चेहरा भी एकदम खामोश, फिर धीरे धीरे बोलना शुरू किया

लेकिन खेत बारी धीरे धीरे माँ ने खुद देखना शुरू कर दिया था,...

धीरे धीरे आना जाना कम होने लगा,... बस त्योहार त्यौहार, लेकिन आते ही गाँव के सब लड़के पीछे,.... हम भी चलेंगे, हम को भी काम दिलवा दीजिये, गाँव जवार में बहुत इज्जत थी,... तब तक बाऊ जी का काम धाम बहुत बढ़ गया था, छह सात टैक्सी चलने लगी थी, और भी कुछ धंधा,.. खुद की दूकान कैसे छोड़ के आते, मैंने एक बार बोल दिया उनको आने को ,तो वो वो तो कुछ नहीं बोले, माँ ने ही मुझे समझाया

गीता रुक रुक के बाऊ जी के बारे में बोल रही थी

हर महीने पैसा भेजते थे उसी से सबसे पहले गाँव में हमारे खेत में अपना ट्यूबवेल लगा, नहीं तो सरकारी ट्यूबवेल,... और उस का कोई भी भरोसा नहीं, कभी इनका नंबर कभी उनका नंबर, खेत झुरा रहा है लेकिन,... पर जब से अपना टुयुबवेल हो गया तो,... गाँव में कोई कोई बोलता था बंबई क कमाई,.... मैं ने माँ से बोला तो माँ बोली तो बोलने दो न कौन हराम क कमाई है देह तोड़ मेहनत कर रहे हैं मेहरारू बच्चा छोड़ के दो पैसा जोड़ने के लिए


एक बार आये तो तीन साल पहिले तो भैया के लिए फटफटिया ख़रीदे, हम सब लोग बनारस गए थे उसी साल


उस बार माँ भी उनके साथ गयी थी, दो महीना रहीं वहां, गर्मी क छुट्टी थी, मैं और भैया दोनों ननिहाल में थे,... उसी साल बाउ जी ने अंबरनाथ कउनो जगह है उँहा वहां एक एक कमरे का, का बोलते हैं वन बी एच के, वाला मकान खरीदे माँ के नाम से,...

और तब तक कउनो एजेंसी थी, जिसके जरिये गांव के आस पास के लड़कों को सऊदी और पता नहीं कहाँ कहाँ भेजते थे उसमे भी आठ आने की हिस्सेदारी ले लिए थे,... दूकान भी कई हो गयी थी, माँ बताती थी, बाउ जी की अपने इलाके के जितने लोग बंबई में थे सब में गोरेगांव, जोगेश्वरी, ठाणे हर जगह अपने ओर के लोगों में उनकी अच्छी,...


लेकिन बोलते बोलते गीता अचानक चुप हो गयी, जैसे उसके चाँद से चेहरे पर ग्रहण छा गया. आंखे डबडबा गयीं।


छुटकी की कुछ समझ में नहीं आया, वो बस एकटक उसका मुंह देखती रही,... फिर हिम्मत कर के धीरे से बोली, फिर क्या हुआ दी,...



गीता बड़ी देर तक चुप रही, फिर बोली,


बाउ जी का पता नहीं चल रहा है , "
Wah Komalji ajib creativity he. Kya baki kadi se kadi jodi. Bauji kamane me. Maiyaji chu.....

Gitva ko ne bhi kya kya apne ghar ke raaz jan rakhe he. Amezing
 

motaalund

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एकदम,

बिहारी ने भी यही कहा था

परयो ज़ोर विपरीत रति, सूरत करत रंधीर
बाजत कटि की किंकड़ी, मौन रहत मंजीर

अब करधनी बज रही है और पायल मौन हो गयी है।

and as they say why only boys should have all the fun.
और फिर जोरू के गुलाम वाली मंजू हो तो... अपने मालिश से पीड़ा हर लेती है....
 

motaalund

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कमाल देखने वाले की नजर का है

वरना नज़रिया तो मेरा हमेशा वही रहा है
लिखने वाले तो कई इसी फोरम पर मौजूद हैं...
लेकिन जो अपनी लेखनी से मुग्ध कर दे ..
ऐसा कोई एक्का-दुक्का हीं है...

और पाठक तो असंख्य... वे शालीनता/शिष्टाचार का प्रदर्शन ना करते हुए..
दो शब्द कहने के बजाए.. चुपचाप एक अच्छी कृति को एंजॉय करते हुए निकल जाते हैं...
 

motaalund

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जो भोगा जो देखा वही लिखा,

कहीं पढ़ा था सुबह सुबह दो लोग जाते हैं कमाने एक के कंधे पे गैंता, फावड़ा और दूसरे के लैपटॉप का झोला,

गैंता फावड़ा वाला तो शाम को आ जाता है , लैपटॉप वाले का पता नहीं कब लौटे
देखने वाले तो कई होंगे...
लेकिन उसमें अंतर्निहित भावना को शब्द रूप देना किसी खास को हीं ये सौगात प्रदत है...
 
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