इस होली पर कबड्डी के लिए फुलवा नहीं आई...ekdam aur uska bhi Tala arvind ne hi khola vo bhi phulava ke saamen aur ab Gita ki pakki saheli bhi
इसका अफसोस है...
ननदों को कुछ दांव पेंच... अपने अनुभव से...
इस होली पर कबड्डी के लिए फुलवा नहीं आई...ekdam aur uska bhi Tala arvind ne hi khola vo bhi phulava ke saamen aur ab Gita ki pakki saheli bhi
सही कहा...आरुषि जी लाजवाब है , लाजवाब कर देती हैं, शब्द उनके इशारे पर चलते हैं।
शायद उनका मतलब सध गया है....क्यों करेंगे वोटों की फसल काटने के लिए उनके पास एक से एक बीज हैं,
कोरोना के समय सबने वादा किया था अब यहीं रोजगार,... पर भी भी पूर्वांचल से दर्जनों ट्रेने बंबई, पंजाब दिल्ली को भर भर के जाती हैं, खुले खेत बगीचों से उठा उठा के ले जाती हैं और महानगरों में पटक देती हैं,...
शायद इस फोरम को भी चलाने के लिए स्तन(धन) की आवश्यकता हो....ये लाइक करने पर कभी कभी फोरमवा तीन तिरबाचा क्यों भरवाता है, कुछ पता हो तो रौशनी डालिएगा।
फिर भी बहुत अच्छे से ली गई... फुलवा की ननदिया की...दुहराव से भी बचना था और कहानी को आगे बढ़ाना था, फुलवा की ननद के पिछवाड़े का यह प्रसंग दो भागों में चला
यही देखने सुनने का अनुभव...well said
छिनार पना करना तो उसका जनमसिद्ध अधिकार है...एकदम, चमेलिया और गितवा जैसे उदार भावना वाली लड़कियां इस कलयुग में दुर्लभ हैं,
अरे फुलवा की ननद का पिछवाड़ा खुलवा के कितनो का कल्याण किया,
फुलवा के मन से हदस निकल गयी, अब वह मारे छिनार पना के बहाना भले करे लेकिन डर नहीं लगेगा उसे,
फिर फुलवा के सारे देवरों, गाँव के लौंडो का का कल्याण, उसकी ननद को उन दोनों सहेलियों ने अमराई में जो स्वाद लगाया था उसके लिए फुलवा की ननद खुद निहुरने को तैयार रहेगी,
Ohhhh... take your own time.i am awfully busy this week, so it may get delayed a bit. But I will still try