Well begun is half done.थोड़ा सा फ्लैश बैंक - ननदों भौजाइयों की रंगभरी कबड्डी
weight lifter
कुछ अंदाज तो मुझे कब्बडी का मेरी ननद ने दे दिया था पर मेरी सास ने पूरा साथ दिया था आखिर वो भी तो इस गाँव की बहू ही थीं, और गाँव में औरतों में जो खुल के बातें किचन में होती हैं, पुरुषों का तो प्रवेश निषेध ही रहता है तो बस वही हाल थी, मेरी ननद पीछे पड़ी थी
" भाभी, पिछले दो साल से होली में ननदें जीतती हैं , अबकी हैट ट्रिक होगी, फिर तो नंगे आपको और आपकी बहिनिया को नचाएंगे।
और अपना हाथ दिखाते हुए ननद ने चिढ़ाया,
" ये देख रही हो, अरे कलाई तक नहीं कुहनी तक पेलूँगी तोहरी गंडिया में, फिर मुट्ठी खोल दूंगी,... अइसन गाँड़ मारूंगी न की सांझी तक ,जो तोहार महतारी क भोंसड़ा है जिसमे से वो तोहैं और तोहरे दुनो बहिनियां ऊगली हैं, उससे भी चौड़ा हो जाएगा, ...
फिर तो गाँव भर क मरदन से, चमरौटी, भरौटी,अहिरौटी कुल से गाँड़ मरवाइयेगा,बिना तेल लगाए। और हाँ आज भले सेर भर तेल अपनी और अपनी बहिनिया की गंडिया में डाल लीजियेगा, लेकिन हम ननद सब पहले हाथ में बोरा लपेट के उहै तेलवा सुखाएँगे, तब ई चाकर गांड मारेंगे जेके देख के तोहार कुल देवर ननदोई लुभाते हैं। हाँ, कल दिन में खाने में, नाश्ते में बस,... हम होली के दिन तो खाली चटनी चटाये थे, ... अब सब हमरे पिछवाड़े से सीधे तोहरे मुंहे से होयके तोहरे पेट में,... "
मुझे जवाब देने की कोई जरूरत नहीं थी, ...मेरी सास थी न। और ननदों के खिलाफ, भले उनकी सगी बेटियां क्यों न हों, वो हरदम मेरा साथ देती थीं, आखिर थीं वो भी तो इस गाँव की बहू, और मैं भी गाँव की बहू, हाँ इनकी बूआ, मेरी बूआ सास हरदम नंदों का साथ देती थीं.
तो मेरी सास ने सराहती नज़रों से मेरी ओर देखा और जो जवाब मैं सोच भी नहीं सकती थी, वो सब दे दिया।
" अरे माना पिछले दो साल से तुम लोग जीत रही थी, लेकिन तब हमारी बहू नहीं थी,... अब अकेले कुल ननदों का पेटीकोट शलवार फाड़ने की ताकत रखने वाली है, तोहरे भाई क ताकत देख रही है इतने दिनों से तो तुम लोगों को भी पक्का हराएगी, और जानती हो जब ननदें हारती हैं तो गाँड़ बुर में मुट्ठी डालने के अलावा भौजाइयां का का करवाती हैं? "
" अरे तो तोहार बहुरिया है तो नैना भी अबकी एही लिए ससुराल से आगयी है हम ननदों का साथ देने " ननद ने अपना तुरप का पत्ता फेंका।
" अरे तो जो छुटकी आयी है असली हरी मिर्च है , बहू की छुटकी बहिनिया,... वो देखना नैना क फाड़ देगी " सास जी भी चुप नहीं होने वाली थीं, लेकिन लगे हाथ उन्होंने अपनी समधन मेरी माँ को भी लपेटा ,...
" और जो इसकी महतारी क भोंसडे क बात कर रही हो न , तो तुमको मालूम नहीं है वो छिनार मायके क लंडखोर है और गदहा, घोडा, कुछ नहीं छोड़ी है , तो ओकर भोंसड़ा तो ताल पोखर अस चौड़ा है, अरे तोहरे भैया क पूरी बरात ओहमें नहायी थी , लेकिन जहाँ तक हमरी बहू की बात है , अबकी वही जीतेगी,.... बस तैयार हो जाओ हारने के लिए। "
मैच के पहले ही अम्पायर ने फैसला सुना दिया।
अगर भाभियाँ जीत जाती हैं तो साल भर नंदों को उनकी बात,
और उस दिन तो जो सारी ननदों की, कुँवारी हों, बियाहिता हों वैसी दुर्गत होगी, लेकिन असली मस्ती आती है अगले दो दिन, ...
जब देवर भी, ... बस भौजाई लोग मिल के किसी भी देवर को, ज्यादातर कच्ची उमर वाला या कुंवारा पकड़ के उसकी आँख में पट्टी बाँध के घर के अंदर, जहाँ ननद भौजाइयों का झुण्ड, बस उस देवर की कोई सगी बहन हो उसी की उम्र की नहीं तो चचेरी पट्टी दारी की, ....
पहले देवर के कपडे फटते थे, फिर उसकी सगी बहन,
जबरदस्ती मुट्ठ मरवाई जाती थी
और एक बार खड़ा हो गया तो, सीधे मुंह में लेकर चूसवाया जाता था, सारी मलाई घोंटनी पड़ती थी,....
और अगर किसी ननद ने ज्यादा नखड़े किये तो भौजाइयां ही चूस चूस के पहले खूंटा खड़ा करती थीं, फिर दो तीन भाभिया मिल के उस ननद को पकड़ के , उसके सगे भाई के खूंटे पे बैठाती थीं, फिर खुद पकड़ के ऊपर नीचे, जबरदस्त चुदाई,... और धमकाती भी थीं , सीधे से चोद नहीं तो तेरी तो गाँड़ फाड़ेंगे ही इसकी भी ,...
मंजू भाभी के साथ मिलकर कल हम लोग यही जोड़ी बना रहे थे, किस देवर पर किस ननद को, सबसे पहले सगी ननदें, ... लेकिन उसके पहले जरूरी था जीतना , और मैं जानती थी, लड़ाई जंग के मैदान में नहीं उसके पहले जीती जाती है, प्लानिंग रिसोर्सेज,...
गाँव में कल कोई मर्द नहीं रहते हैं, तो इसलिए औरतों का राज पोखर के बगल में जो बड़ा सा मैदान है उसी में, ठीक साढ़े बारह बजे से, डेढ़ घंटे की ननद भौजाई की,...
और दो बजे के बाद वहीं बगल में पोखर में घंटे भर तक साथ साथ नहाना, फिर सबके घर से जो खाना आता था वहीं बगिया में खाना, सांझ होने के पहले होली खतम, सब लोग अपने अपने घर और सूरज डूबने के साथ मरद
इसलिए जब मंजू भाभी के यहाँ कबडी की बात चल रही थी मैं सबसे छोटी होते हुए भी बोली भी और पहल भी की
एक मेरी बड़ी उम्र की जेठानी कहने लगीं,... ' अरे इसमें क्या इतना सोचना है,... मौज मस्ती ही तो है , क्या जीत हार, अरे पिछले कितने सालों से तो ननदें ही जीतती आयीं है , इस बार फिर वही जीतेंगी। इसमें क्या प्लानिंग, क्या,... "
और उन की बात में बात जोड़ती उन्ही की उमर की एक जेठानी बोलीं, ' सही कह रही हो , हम तो भुलाई गए कब भौजाई लोगन की टीम जीती थी,... अरे ननदों के आगे,... "
मुझे बड़ा बुरा लगा, मैं तो आयी ही थी अपनी ससुराल, ननदों की गाँड़ मारने, अपने भाइयों, देवरों से सब ननदो को चुदवाने, रगड़ रगड़ कर,...
और यहाँ तो मैच शुरू होने के पहले ही कोच कप्तान सब हार मान के बैठे हैं,... और गबर गबर खाली गुझिया खाये जा रहे हैं, और उसी समय मैंने तय कर लिया की आज चाहे जो हो जाय ननदों को तो हरा के ही रहना है, अरे साल भर स्साली छिनारों की नाक रगड़ने का मौक़ा,..
लेकिन अभी सुनने और समझने का था,
तब तक एक जेठानी और , वही हार में ख़ुशी मनाने वाली ,... बोलीं,...
" अरे थोड़ा बहुत कोशिश करते भी लेकिन अबकी तो नैना भी आगयी है जब्बर छिनार , उसको तो सौ गुन आते हैं,... "
ये बात मैं मान गयी की नैना के आने से मुकाबला थोड़ा टाइट होगया लेकिन ननदों की टाइट को ढीला उनकी भाभियाँ नहीं करेंगी तो कौन कराएगा, फिर अभी अभी दो देवरों को चोद के आ रही हूँ , जिसके आगे सब ने हाथ झाड़ लिया था,...
मंजू भाभी, ने मेरी ओर इशारा भी किया,...
"अरे अबकी मेरी नयकी देवरानी आ गयी है , करेगी न नैना क मुकाबला, अरे तीन दिन पहले होली के दिन , मिश्राइन भौजी के यहाँ कैसे कुल ननदों क बुर गाँड़ सब बराबर,... "
अब माहोल थोड़ा बदला ,
लेकिन मैं अभी भी सुन रही थी और समझने की कोशिश कर रही थी की आखिर क्यों हर बार भौजाइयों की टीम हार जाती है और कोई न कोई तो ननदों में कमजोरी होगी , जिसका हम सब फायदा उठा सकते हैं,... और मुझे कुछ बातें तो समझ में आ गयी,...
पहली बात ये थी की टीम ११ की होती थी,...
और ननदें ज्यादातर टीनेजर, या जो शादी शुदा वो भी २० -२२ वाली,
लेकिन भौजाइयों की औसत उमर तीस से ऊपर और सीनियारिटी के नाम पर जो बड़ी होती थीं वो भी कई टीम में , ४० के पार वाली भी जो चुद चुद के, बच्चे जन जन के घर का काम कर के थकी मांदी ,
तो ताकत और एनर्जी दोनों में ननदों की टीम बीस नहीं पच्चीस पड़ती थी,...
दूसरी बात की मैच का कोई टाइम नहीं होता था तो वो पहले तो मजे ले लेकर , भौजाइयों को दौड़ा के थका देतीं थीं और उसके बाद,...
तीसरी बात जो मैं देख रही थी , भौजाइयों की टीम में बार बार हारने के बाद जीतने की न इच्छा बची थी , न विश्वास
और आखिरी बात, कोई स्ट्रेटजी प्लानिंग भी नहीं होती थी और बेईमानी के कौन जीतता है तो लेकिन बेईमानी के लिए बहुत जुगत लगानी पड़ती है और वो यहाँ दिख नहीं रहा था,... अंत में सब लोगों ने मुझसे पूछा ,
तो मैंने अपनी प्लानिंग, तो बात शुरू की मैंने टीम बदलने से,...
किसी तरह से मुझे ज्यादा जवान , कम उमर वाली खूब तगड़ी औरतें चाहिए थीं और जो एकदम बेसरम हों , ...
और मैंने जुगत लगा ली,... लेकिन मेरी प्लानिंग में दो बड़ी अड़चने थीं एक तो टीम में बदलाव दूसरा थोड़ा बहुत रूल्स , और मैच की अम्पायर को तो मैं सम्हाल लेती , आखिर मेरी सास ही थीं, और उन्हें मैंने छुटकी ऐसी बड़ी सी घूस थमा दी थी, और उनके साथ जो एक दो और होंगी , छुटकी सुबह से ही उनका मन बहला रही थी , लेकिन ज्यादा बड़ी दिक्कत थी मेरी टोली की ही, भौजाइयों की टीम की जो पुरानी खिलाड़ी थी हर बार हारती थीं , उन्हें मनाना,
और इस मामले में मंजू भाभी ने पूरा मेरा साथ दिया, टीम ११ की ही थी,.... तो कम से ४ -५ तो जवान खूब तगड़ी, और ऐसी भौजाइयां होनी चाहिए जो न गरियाने में पीछे हटें न ननदों के इधर उधर छूने रगड़ने उँगरियाने में,... और वैसे भी ननद भौजाई की इस होली वाली कबड्डी में कुछ भी फाउल नहीं होता था, ... कपडे तो सबके फटते थे और पूरी तरह, आधे टाइम तो वैसे ही , लेकिन उस समय कोई मरद चिड़िया भी नहीं रहती थी तो औरतों लड़कियों में क्या शर्म, वो भी होली के दिन,...
लेकिन मैं सोच रही थी की कम से कम आधी ऐसी हों जिनके अभी बच्चे न हों, शादी के चार पांच साल से ज्यादा न हुए हों पर गाँव में पिछले दो तीन साल में तो सिर्फ मेरी ही डोली उतरी थी , और चार पांच साल में पांच छह बहुएं आयी तो थी,... लेकिन मेरे अलावा तीन ही थीं जिन्होंने गाँव को अपना अड्डा बनाया था बाकी की सब अपने मर्दों के साथ, काम पर,....
फिर एक बार दिल्ली बंबई पहुँचने के बाद कौन गाँव लौटता है,...
होली के इस खेल में गाँव में हम लोगो की ही, मलतब भरौटी, अहिरौटी और बाकी सब टोले वाली नहीं,... वैसे तो गाँव में औरतों के बीच के बीच पूरा समाजवाद चलता है, जब मैं आयी थी तो उम्र और रिश्ते के हिसाब से जो भी सास और जेठानी लगती थीं, सब का पैर मैंने हाथ में आँचल ले के दोनों हाथ से पूरा झुक के छूआ था, और गाँव में जो मेरी अकेली देवरानी लगती थी, कुसमा, ...
उस का मर्द कुंए पे पानी भरता था और वो पानी अंदर लाती थी, हाथ पैर भी दबाती और अपने मर्द के किस्से सुनाती थी , कैसे रगड़ रगड़ के, उसे बर्थ कंट्रोल पिल्स भी मैंने ही दिया था और होली के दिन उसके टोले में जा कर होली भी अपने देवर, उसके मरद के साथ खेली थी,... तो उसी की तरह की और भी थीं कुछ अगर दो तीन उस तरह की टीम में हमारी आ जाएँ तगड़ी तगड़ी,...जैसे ही मैंने उसका नाम लिया वही मेरी जेठानी जो हारने में कोई बुराई नहीं देखती थी ४० -४५ की रही होंगी देह भी एकदम ढीली ढाली,... उचक के बोलीं
" अरे उ कलुआ क मेहरारू,... "
मैं तो समझ गयी, गयी भैंस पानी में,... मेरी पतंग की डोर उड़ने से पहले ही उन्होंने काट दी,...
लेकिन मेरी जेठानी मंजू भाभी थी न , उन्होंने अपनी सहेली की ओर देखा, और बस मोर्चा उन्होंने सम्हाल लिया,... और मेरी ओर तारीफ़ की निगाह से देखते बोलीं,
"नयको को इतने दिन में ही कुल बात , ... एकदम सही कह रही है,... अरे बहुत जांगर ओहमें हैं देह दबाती है तो देह तोड़ के रख देती है, एकदम बड़ी ताकत है,... सही है। "
ये तो मुझे मालूम था रोज रात भर मेरे ऊपर इनके चढ़ने के बाद जब उठा नहीं जाता तो कटोरी भर तेल ले के मेरी देह मेरी जाँघों में , दोनों पैर या तो रात भर उठे रहते या निहुरी रहती , और इनके धक्के भी हर धक्के में पेंच पेंच ढीली हो जाती,... और उसकी मालिश के बाद तो मन यही करता की, अब एक दो बार और हो जाए तो कोई बात नहीं,...
असली खेल था जांघ की मालिश की बाद बात बात में वो हथेली से रगड़ रगड़ के सीधे गुलाबो पे , और हर चढ़ाई का किस्सा सुन के ही , फिर उँगलियों से दोनों फांको को रगड़ के, दो ऊँगली एकदम जड़ तक अंदर,... दो चार मिनट में तो कोई भी झड़ने के कगार पर पहुँच जाए , ....
और खाली शादी शुदा ही नहीं कुंवारियां भी , आज स्कूल में मैच है की आज पी टी में कमर पिराने लगी , और पांच मिनट में उस लड़की के पोर पोर का दर्द , मालिश करवाने वाली भी जानती थी और कुसुमा भी की मालिश कहाँ की होनी है,... असल में नाम तो उसका कुसुमा था लेकिन मेरी एक सास लगती थीं उनका भी मिलता जुलता नाम तो अब सबने नाम उसका बदल के चमेली कर दिया था तो मैं भी उसी नाम से पुकार के,...
" हाँ उहे चमेलिया,... अरे गाँव में हमारी अकेली देवरान , हमरे बाद तो वही आयी बियाह के और ओकरे साथ,... '
मैंने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की तो एक बार फिर मेरी बात काट दी गयी वही मंजू भाभी की सहेली , मेरी जेठानी और उन्होंने सही बात काटी,...
" अरे छोडो , समझ गए हम सब चमेलिया और ठीक है तू और मंजू आपस में बात करके तय कर लो ,... सही बात है यह बार कुछ नया होना चाहिए और ननदों को हराना चाहिए "
मैं समझ गयी , अगर मैं बाकी का नाम लेती और वो जेठानी जो कुछ भी नए के खिलाफ थीं वो फिर.... अगर किसी के खिलाफ हो जातीं तो ,...
अब मैंने टीम की बाकी मेंबर्स का नाम एनाउंस किया , मेरे अलावा जो तीन भौजाइयों की टीम में वही जो लड़कोर नहीं थीं,... मंजू भाभी , वो जो हमारा साथ दे रहे थी और एक दो और
फिर मैंने जो बड़ी बुजुर्ग भाभी लोग थीं उनकी ओर मुंह कर के बोला, खूब आदर के साथ ५०० ग्राम मक्खन मार के,
" और आप लोग थोड़ा हम लोगों का का कहते हैं उ, मार्गदर्शक रहिएगा,... आप लोगों का जो इतना एक्सपीरियंस है, एक एक ननद क त कुल हाल चाल आप लोगों को मालूम होगा ही, तो बस आप लोग जैसे कहियेगा,... एकदम वैसे वैसे , और आप लोगन क आसीर्बाद और पिलानिंग से कहीं जीत गए,... तो जितने कच्चे टिकोरे होंगे न सब आप लोगों की झोली में,... "
वो भी मेरी बात से सहमत होती बोलीं , " ठीके कह रही हो , अब सांस फुला जाती है, चूल्हा झोंकते बच्चे पैदा करते,... "
तो फिर उन पुरानी जेठानियों ने काफी ज्ञान दिया जिसे मैंने एक कान से सुन के दूसरे कान से निकाल दिया , लेकिन तब तक किसी ने छुटकी का नाम ले लिया,...
" अरे उ नैनवा पक्की छिनार, वो तोहरे छुटकी बहिनिया को भी भौजाई की टीम में जुड़वाएगी , मानेगी नहीं। "
" अरे कैसे उसकी कौन शादी हुयी है यह गाँव में , भौजाई कैसे हुयी वो " मैं भी अड़ गयी , फिर मुस्कराते हुए मैंने तुरुप का पत्ता खोला,..." देखिये पहले तो हम लोग मानेगे नहीं , और मानेगे बहुत कहने सुनने पर तो अपनी तीन शर्तों के साथ ,.... "
अब वो जेठानिया भी मान गयी ,
लेकिन असली वाला तुरुप का पत्ता नहीं खोला था छुटकी जब आठ में थी , -- कैटगरी , ४२ किलो वाली फ्री स्टाइल में , जिले में नहीं पूरे रीजन में , रीजनल रैली में सेकेण्ड आयी थी, फ्री स्टाइल में और तीन साल से अपने स्कूल की कबड्डी टीम में थी और उसका स्कूल भी रीजनल रैली में तीसरे नंबर पर था, उसकी पकड़ तो कोई छूट नहीं सकता , फिर साँस भी डेढ़ दो मिनट तो बहुत आसानी से,... स्टेट के लिए कोचिंग भी की थी दो महीना,... स्पोर्ट्स हॉस्टल में,..
तो अब बचीं मैं मंजू भाभी और तीन चार जेठानियाँ जो टीम में थीं और मैंने पूरी बात बताई।
कुसुमा या चमेलिया का नाम तो मैंने पहले ही बता दिया था, और उसके हाथों के जादू के सब कायल थे उसके बाद दूसरा नाम मैंने लिया रमजनिया, अरे वही जो चंदू देवर , जिसकी सहायता से मैं अपने उस ब्रम्हचारी देवर को फिर से चोदू बना पायी, और मेरे उस के कुछ गुन बखारने के पहले मंजू भाभी बोल पड़ीं ,
" सही बोल रही हो, का ननद का भौजाई का गाँव क कउनो लौंडा सब का एक एक बात का हाल उसको मालूम रहता है ,... ननदों के टीम के एक एक का नस वो पकड़ के बता सकती है , फिर तगड़ी भी बहुत है, दो चार लौंडियों को तो झटक के छुड़ा के,... "
तीसरा नाम मैंने जोड़ा नउनिया क छुटकी बहू , गुलबिया का,
हमसे सात आठ महीने पहले गवना करा के आयी थी, खूब गोरी सुंदर , देह कद काठी जबरदस्त,... लेकिन दो चार महीने बाद मरद पंजाब कमाने चला गया तब से मरद बिना छनछनाई रहती है , गरम तावा पे पानी की बूँद डालने पे जो हालत होती है वही, और आपन कुल जोर कुँवार ननदन पे उतारती है , होली में दस बार मरद को फोन किया, वो बोला भी,... फिर वही बहाना , छुट्टी नहीं मिली , रिजर्वेशन नहीं मिला,... गाडी छूट गयी,... गुस्से में बोलती,
हमको मालूम है उंहा किससे गाँड़ मरा रहे हैं , नहीं आओ तोहरी बहिनिया क चोद के,...
और बहिन उसकी कौन , कजरी , नैना की सहायक,...
होली में कजरी के पिछवाड़े मैंने जो जड़ तक ऊँगली पेली थी दस मिनट तक और निकाल के सीधे उसके मुंह में , गुलबिया खूब खुश हुयी ,... तो आज जब सब एक से एक कच्ची उमर वाली ननदें मिलेंगी तो फिर तो,... और जो काम करने वाली होती हैं रोज चक्की चलाती हैं , कुंवे से पानी निकालती हैं सर पे दो दो घड़ा , बगल में एक घड़ा लेकर चलती हैं , पूरी पिंडलियाँ , जांघें हाथ सब एकदम कसे कसे ,...
और चौथा नाम एक जेठानी ने बताया, और नाम बताते ही मैं समझ गयी, उमर में चमेलिया और गुलबिया से थोड़ी बड़ी,.. लेकिन एक बार रतजगे में वो दुल्हिन बनी थी,... और एक जो दूल्हा बनी थी उसके ऊपर चढ़ के उसी को चोद दिया बेचारी की माँ बहन सब एक कर दी,...
जेठानी ने जोड़ा चूत से चूत पे घिस्सा देने में उसका कोई मुकाबला नहीं , बड़ी से बड़ी उम्र में दूनी हो ताकत में ज्यादा हो तो बस एक बार चढ़ गयी किसी लड़की, के ऊपर तो बस उसका पानी निकाल के दम लेती है और एक साथ दो ,दो तीन तीन , एक को चूत से रगडेंगी, बाकी दो को दोनों हाथ से ,.. और उसके पल्ले कोई पड़ गयी न तो एक दो ऊँगली का तो मतलब ही नहीं, कुँवारी हो, झील्ली न फटी हो , तो भी सीधे तीन ऊँगली, और गरियायेगी भी
इसे हमारी तरफ स्थानीय बोली में...
"नाधा तो आधा.."
कहते हैं...
और जीत का इनाम लेस्बियन रेसलिंग की तरह हीं ..बल्कि उससे भी बीस.. लेकिन स्थानीय पुट भी हो....
टीम का सेलेक्शन .. जब चुन चुन कर हो तो ..
कर लो दुनिया मुट्ठी में...