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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
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ननद की सास, और सास का प्लान
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वाह कोमल जीसांझ की बेला
पिछला हफ्ता इसी मस्ती में और कल का दिन भी, लेकिन अभी जो होना था उसके बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम था, सिवाय इसके की ..., और सबको एकदम चुप रहना है, ये मेरी सास ने भी बताया था और दूबे भाभी ने भी। जो पुरानी लड़कियां औरतें थीं उन्हें तो सब मालूम ही था,...
अचानक सारी मस्ती बंद हो गयी, सब लोग मिश्राइन भौजी से दूर,.... आम की उस बगिया में सामने जमीन पर बैठ गए, अँधेरा हो रहा था, पश्चिम की ओर सूरज डूब रहा था, हलकी सी लाली अभी भी जैसे गौने की रात के बाद, रतजगा करने के बाद नयी दुल्हन की आँखों में रहती है,... बगिया वैसे भी गझिन थी अब और गझिन लग रही थी,...
हम सब जैसे कुछ होने का इन्तजार कर रहे थे,...
और जैसे ही पश्चिम में सूरज डूबा, दूबे भाभी ने इशारा किया,...
पांच सुहागिने, मैं और चमेलिया जो साल भर के अंदर गौने उतरी थीं, और उनकी पहली होली थी, ... मोहिनी भौजी जो अभी लड़कोर नहीं हुयी थी, गौने के तीन साल हो गए थे,... और दो ननदें बियाहता लेकिन जिनका गौना अभी नहीं हुआ था, नीलू और लीला,... सबसे आगे मैं और चमेलिया,.... और
बहुत बहुत धन्यवाद आभारवाह कोमल जी
लेखन क्या ये तो सुखद अत्याचार ही कहलाएगा और अभी तो आरूषी मैम का प्रहार भी बाकी है।
पाठक वर्ग थैथर होके रहेगा।
सादर
Superb, sexiest, gazab updatesभाग ६६
ननदों संग मस्ती -मज़ा कच्ची कली रूपा का
11,34,182
पहले जैसे मैं गयी थी ननदें खूब हल्ला कर रही थीं, यही रूपा बोली,
"मैं तो अपनी मीठी प्यारी भौजी की गाँड़ मिर्चे के अचार वाला तेल लगा के मारूंगी , भौजी,... देवर नन्दोई क गाँड़ मरवाई भूल जाएंगी नंदों के आगे ,... "
और मैंने तय कर लिया था की जीतने के बाद इसका नेवान जरूरी करुँगी, कच्ची कली थी बिनचुदी,... छुटकी से भी तीन चार महीने छोटी,.... लेकिन जुबान और जोबन दोनों में जबरदस्त,...
रूपा बहुत बुरा सा मुंह बना रही थी, वो कुछ देर पहले ही देख रही थी की कैसे मैं अपनी ननद के ऊपर बैठी दोनों जाँघे खोल के, सावन भादो की धार ननद रानी के मुंह में, बिना धार टूटे, और वही स्वाद उसके मुंह में,... वो छटपटा रही थी, छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन छटपटाती ननदों से अच्छा नज़ारा भाभी के लिए क्या होगा, मैंने कस के अपनी जाँघों के बीच से दबोच रखा था, कस के उसका सर अपने दोनों हाथों से पकड़ के,...
आखिर बेचारी की चाटना ही पड़ा,...
लेकिन कुछ देर बाद मुझे दया आ गयी और उसे उठा के गोद में क्या मस्त गोरे चिकने गाल थे उस चिकनी के, मुझसे बिन चुम्मा लिए रहा नहीं गया, फिर चुम्मा से कहाँ मन मानता है ऐसे कच्चे गाल देख के , तो चूसना काटना और मेरे हाथ दोनों बस आ रहे जोबन मसलने लगे, इस होली में मैंने दर्जनों ननदों की चूँचियाँ रगड़ी होंगीं, लेकिन इसकी एकदम,... मैच में बेला की जैसी थीं,... बस आ रही उसी तरह की,... और चूँचियाँ उठान के समय से अगर चूँचियों की रगड़ाई मसलाई शुरू हो जाये तो बस साल दो साल में जबरदंग,...
और ये जिम्मेदारी तो भौजाइयों की होती है , फिर फायदा मेरे देवरों के साथ मेरे भाइयों का भी होता,... भले सगा भाई कोई नहीं था लेकिन ममेरा भाई चुन्नू था न, मेरी ससुराल पहले भी आ चुका था, बस उसी को चढ़ाउंगी इस कोरी के ऊपर,... और उसके दोस्त यार भी हैं,... चचेरे मौसेरे भाई तो हैं, सब का नंबर लगेगा,...
एक हाथ से मैं बस चूँचिया उठान दबा रही थी मीज रही थी मसल रही थी और दूसरा हाथ रूपा के गोरे पान ऐसे चिकने पेट पर सहलाते हुए, जो इस उम्र की लड़कियों के लिए सहज है रूपा ने अपनी दोनों जाँघे कस के भींच ली,
लेकिन जाँघे भींचने से बुलबुल न तो भौजाइयों से बचती है, न गाँव के लौंडो से,... मेरा बायां हाथ अभी कच्ची अमिया का रस ले रहा था, बस ललछौहैं आ रहे निपल को कभी पकड़ के खींच लेती कभी अंगूठे और तर्जनी में पकड़ के मसल देती,...
दायां हाथ, रूपा के पेट से सरकते गहरी नाभी में जा कर अटक गया था और रूपा ने सिसकते हुए और कस के दोनों पैरों को सिकोड़ने की कोशिश की, वो बारी कुँवारी कोरी चिकनी मेरी गोद में बैठी थी. मैंने अपने दोनों पैरों को उसके पैरों के बीच में फंसा के फैला दिया, जांघ भी थोड़ी सी खुल गयी, बस मैंने जाँघों के ऊपरी हिस्से में कस के चिकोटी काटी और रूपा ने जोर की चीख मारी, जाँघे उसकी पल भर के लिए खुल गयीं। इतना टाइम बहुत था.
मेरी दायीं हथेली ने बाज की तरह झप्पटा मारा, और खजाना मेरे हाथ में। अब चिपका ले वो जांघ, सटा ले सेंध तो लग ही गयी थी.
एकदम मक्खन मलाई, जितनी गोरी गुलाबी उतनी चिकनी,... बस दो चार झांटे आ ही रही थीं,
बस मैंने पक्का कर लिया भले इसका फीता कोई काटे, चढ़वाऊंगी तो मैं अपने भाइयों को जरूर,... थोड़ी देर की रगड़ाई मसलाई उसकी चिकनी चूत की रूपा ने जाँघे खुद ढीली कर दी. मेरी अनुभवी उँगलियों ने छुटकी नांदिया की फांको को पकड़ के सहलाना रगड़ना शुरू कर दिया, अंगूठा क्लिट ढूंढ रहा था वो भी मिल गयी.
कुछ देर में एक तार की चाशनी निकलने लगी, जाँघे खुद ही फैली गयी, रूपा सिसक रही थी, हाँ भौजी, हाँ भौजी बोल रही थी बस।
उधर भौजाइयों के जीत का जश्न शुरू हो गया था, मिश्राइन भौजी, मंजू भाभी, रज्जो भाभी के साथ गुलबिया, चमेलिया, चननिया,...
सब ननदें इकट्ठी की जा रही थीं,... दूबे भाभी ने सवाल किया
कौन कौन ननद पांच भौजाई से ज्यादा की बुर आज चूसी हैं ?
दर्जन भर से ऊपर हाथ उठ गए।
छह से ज्यादा
चार पांच,
सात से ज्यादा,
सिर्फ दो थे एक तो कम्मो और दूसरे रूपा की ही सहेली सोना। और उन दोनों को बुला के मिश्राइन और दूबे भाभी ने अपनी जांघ पर बैठा दिया और बाकी को हुक्म दिया
नाच सालियों
कपड़ों का तो सवाल ही नहीं था , ऊपर से कभी चमेलिया कभी चननिया,
"अरे ऐसे नहीं तनी आपने जोबना उठाय उठा के कमर मटकाय के अरे जैसे चुदवाती समय कमर उछालती हो वैसे उछालो छिनरों"
जहां से मैं बैठी था साफ़ नहीं दिख रहा था ऊपर से रूपा गोद में, मैं खड़ी हो गए एक महुए के पेड़ का सहारा लेकर, अपनी टाँगे फैला के. और रूपा को टांगो के बीच में उसके गुलाबी होंठ सीधे मेरी चुनमुनिया पे,
"चल चाट कस कस के और बिना झाड़े छोड़ना मत,... वरना"
हड़काया मैंने रूपा को, " तू अपना काम कर मैं अपना "
मेरी बारी कुँवारी कच्ची ननद मेरी बिल चूस रही थी कस कस के और मैं ननदों का नाच देख रही थी, इसी सब सुख के लिए तो ये जान लगा के कबड्डी का मैच जीती थी अब से इस गाँव में भौजाइयों का राज
मैं एक डाल पकड़ के खड़ी नंदों का नाच देख रही थी और रूपा मेरी बिल चाट चूस रही थी.