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भाग ६७ - होलिका माई
११,६१,६७५
मेरी सास ही नहीं गाँव की हर औरत मानती थीं, बुरा वो जिसमें जोर जबरदस्ती हो, लड़की को औरत को पसंद न आये,... उसको मजा न मिले,...
और अच्छा वो जिसमें दोनों की मर्जी हो , मजा मिले अच्छा लगे,... और बाकी सब के लिए आशा बहू थीं न उन्हें सब पता रहता था की गाँव में कौन लड़की स्कर्ट पसार रही है तो उसे खुद गोली खिलाने, … और अब तो इस्तेमाल के बाद बाली भी गोली मिलती है,... और किससे करवाना है नहीं करवाना है ये फैसला भी लड़की का, औरत का।
देवर नन्दोई जीजा का तो हक़ भी होता है लेकिन उसके साथ भी मर्जी वाली बात रहती थी.
लेकिन फागुन लगते ही ऐसी फगुनाहट चढ़ती थी न,... जैसे आम बौराता है, जवान होती लड़कियां, भौजाइयां सब बौरा जाती थीं, अगर देवर कोई नखड़ा कर्रे तो भौजाई उसका पाजामा खोलती नहीं फाड़ देती थीं, और जीजा अगर गलती से थोड़ा सीधा मिल गया तो बस गाँव की सब लड़कियां मिल के चढ़ जाती थीं, और साली सलहज का तो रिश्ता लगता है सास उनसे भी दो हाथ आगे,
न रिश्ता न नाता, सिर्फ मस्ती।
जेठ ससुर जिनसे बाकी ११ महीने थोड़ा दूरी रहती है उनके साथ भी एकदम खुल के मजाक, छेड़छाड़,... और अगर कहीं रिश्ते में, गाँव के रिश्ते से देवर मिल गया, गली गैल में, कहीं नन्दोई आ गए, और लड़कियां भी अपने न हों तो सहेली के जी जीजा, गाँव में किसी के जीजा, और भाभी के भाई भी,...
( आखिर मेरे ममेरे भाई चुन्नू ने इनकी सबसे छोटी बहन की बिल का फीता काट दिया था, जब वो होली में लेने आया था मुझे,... और मंझली ननद ने खुद चढ़ के,... उसे ). जैसे जैसे होली नजदीक आती है चट चट कर के बंधन टूटने लगते हैं , फिर होली और रंग पंचमी के पांच दिन तो,... और सबसे बढ़कर औरतों और लड़कियों में रिश्तों का भी सिर्फ ननद भौजाई नहीं, सास बहू भी, सहेलियां भी आपस में,...
अगर पाहुन आये, और घर में साली सलहज है, फिर तो सलहज ही साली का नाड़ा अपने नन्दोई से खुलवाती थी नहीं तो खुद तोड़ देती थी , और अगर सलहज न हुयी तो सास ही अपनी बेटी का हाथ पीछे से पकड़ के आ रहे कच्चे टिकोरे, ऑफर कर देती थी
" अरे तनी ठीक से सही जगह पे रंग लगावा,... "
इसके बाद कौन जीजा चोली में हाथ डालने से अपने को रोक सकता था और एक बार चोली खुली तो नीचे का नंबर,...
पिछला हफ्ता इसी मस्ती में और कल का दिन भी, लेकिन अभी जो होना था उसके बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम था,
सिवाय इसके की मिश्राइन भाभी पे होलिका माई आएंगी,
और सबको एकदम चुप रहना है, ये मेरी सास ने भी बताया था और दूबे भाभी ने भी। जो पुरानी लड़कियां औरतें थीं उन्हें तो सब मालूम ही था,...
अचानक सारी मस्ती बंद हो गयी, सब लोग मिश्राइन भौजी से दूर हाथ के आम की उस बगिया में सामने जमीन पर बैठ गए, अँधेरा हो रहा था, पश्चिम की ओर सूरज डूब रहा था, हलकी सी लाली अभी भी जैसे गौने की रात के बाद, रतजगा करने के बाद नयी दुल्हन की आँखों में रहती है,... बगिया वैसे भी गझिन थी अब और गझिन लग रही थी,...
हम सब जैसे कुछ होने का इन्तजार कर रहे थे,... और जैसे ही पश्चिम में सूरज डूबा, दूबे भाभी ने इशारा किया,...
पांच सुहागिने, मैं और चमेलिया जो साल भर के अंदर गौने उतरी थीं, और उनकी पहली होली थी, ... मोहिनी भौजी जो अभी लड़कोर नहीं हुयी थी, गौने के तीन साल हो गए थे,...
और दो ननदें बियाहता लेकिन जिनका गौना अभी नहीं हुआ था, नीलू और लीला,...
सबसे आगे मैं और चमेलिया,.... और मिश्राइन भाभी को पकड़ के, हम पांचो,... जैसे रास्ता अपने आप खुलता जा रहा था, एक बड़ा सा पाकुड़ का पेड़ था उसके साथ पांच महुवा के,... लोग दिन में भी उधर से नहीं जाते थे,... बस उधर ही, खूब घुप अँधेरा, हो रहा था,...
रात अभी नहीं हुयी थी लेकिन घने पेड़ कभी लगता था हमारा रास्ता रोक रहे हैं कभी लगता, डाल झुका के मिश्राइन भौजी को निहोरा कर रहे हैं. उन पेड़ों के पीछ सैकड़ों साल पुरानी बँसवाड़ी, ... जिसके बांस सिर्फ शादी में मंडप के लिए, किसी जाति की बाइस पुरवा में लड़की की शादी हो या लड़के की बांस यहीं से, लेकिन बांस काटने के पहले भी खूब पूजा विधान,... और शादी के अलावा कोई उस बँसवाड़ी की ओर मुंह भी नहीं करता था,... उसी बँसवाड़ी के घने झुरमुट में,....
मोहिनी भाभी ने इशारा किया हम सब वहीँ रुक जाएँ और फिर मुझे इशारा किया,... मैंने मिश्राइन भौजी की साड़ी खोली,... उसके बाद ब्लाउज, पेटीकोट,... एकदम निसुति,...
मिश्राइन भौजी ने वो अपनी पहनी साड़ी उठा के मुझे दे दी,... मुझे बाद में पता चला की वो कितनी बड़ी चीज है,... होलिका देवी का पहला आशीर्वाद,.... और जो औरत उस साड़ी को पहनती थीं अपने आप पूरे गाँव में उस का असर होता था,... ब्लाउज उन्होंने चमेलिया को दी और पेटीकोट मोहिनी भाभी को, महुआ के कुछ फूल थे चुवा हुआ महुवा, वो एक अंजुली में रख कर सबसे पहले उन्होंने गाँव की दोनों लड़कियों को नीलू और लीला को, फिर हम सब को,...
उसका मतलब बाद में समझ में आया, जिस जिस को मिला उसके जोबन का असर महुआ से भी तेज नशीला होगा, देख कर के लड़के, मरद सब झूमेंगे,...
हम सब मिश्राइन भाभी के पैरों की ओर देख रहे थे, उन से आँख मिलाने की ताकत किसी में नहीं थी,... और अब मोहिनी भाभी ने इशारा किया,... हम सब लोगों ने आँखे बंद कर ली,
एक अजीब सी महक, एक हलकी हलकी झिरझिराती हुयी हवा हम सब के पूरे देह में, हम सब सिहर रहे थे,... कोई कुछ बोलने को छोड़िये सोच भी नहीं रहा था बस जो हवा थी, महक थी, अजब सी मस्ती,.... पूरी देह में जैसे मदन रस,... और हलके हलके मिश्राइन भाभी के पायल के बिछुए के घुंघरू की आवाज, ... दूर होते पैरों की आहट,... हलकी और हलकी होती,... एक बहुत पतली सी पगडंडी, जिधर मैं कभी गयी नहीं थी, चारो ओर खूब घनी बँसवाड़ी,...
हां मालूम था उसके अंत में एक पोखर है लेकिन गाँव की बड़ी बूढ़ियों ने, गुलबिया की सास ने, सबने बरजा था, बल्कि कभी सपने में उसकी बात भी नहीं करनी थी,...
यह रास्ता शायद उसी ओर को जाता था,
हम पांचो की आँखे बंद, देह बस सिहर रही थी, पूरी देह में एक अजब सी तरंग उठ रही थी, जैसे चरम कामोत्तेजना के समय,... हम सब एक दूसरे के हाथ पकड़े, मैंने बाएं हाथ से लीला का हाथ पकड़ा था वो कस के मेरी मुट्ठी भींच रही थी और मेरे दाएं हाथ में चमेलिया का हाथ,... और जैसे उन उँगलियों से हमारी मस्ती दूसरे की देह में उतर रही थी,...
आँखे बंद होने पर भी लग गया था, सूरज गाँव के पिछवाड़े, एक चांदी की हँसुली सी मुड़ती लहराती नदी जो थी, बस उसमें उतर गया था, अपना काम चाँद को सम्हाल कर,... और वो अभी जम्हाई ले रहा था, आकाश के आँगन में उतरने के लिए,... तारे उसका इन्तजार कर रहे थे,
झपाक बड़ी जोर की आवाज, हुयी लगा जैसे सूरज रोज की तह नदी में उतरने की जगह आज उस पोखर में डूब गया,...
बिना आंख खोले मोहिनी भाभी ने इशारा किया मुड़ने का, और हम सब एक के पीछे एक, सब से आगे मोहिनी भाभी, उमर में भी बड़ी और ब्याहता भी और सबसे पीछे मैं और चमेलिया बीच में दोनों ननदें,... मजाक छेड़ छाड़ चाहे जितना हो, पर ननदो की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा जिसके ऊपर रहती है वो गाँव की भौजाई लोग ही होती हैं,..
पाकुड़ के उस बड़े से पेड़ के पास पहुँच के मोहिनी भाभी ने इशारा किया, हम सब रुक गए, फिर एक बार एक दूसरे का हाथ पकडे, लीला और नीलू बीच में दोनों ओर हम तीनो उनकी भौजाई
दस मिनट, पन्दरह मिनट
एकदम चुप हम सब,... हमारी तो छोड़िये घर लौट रहे चिड़िया चंगुर भी शांत,... वो मदन समीर उसी तरह चल रही थी, झिर झिर,... झिर झिर
११,६१,६७५
मेरी सास ही नहीं गाँव की हर औरत मानती थीं, बुरा वो जिसमें जोर जबरदस्ती हो, लड़की को औरत को पसंद न आये,... उसको मजा न मिले,...
और अच्छा वो जिसमें दोनों की मर्जी हो , मजा मिले अच्छा लगे,... और बाकी सब के लिए आशा बहू थीं न उन्हें सब पता रहता था की गाँव में कौन लड़की स्कर्ट पसार रही है तो उसे खुद गोली खिलाने, … और अब तो इस्तेमाल के बाद बाली भी गोली मिलती है,... और किससे करवाना है नहीं करवाना है ये फैसला भी लड़की का, औरत का।
देवर नन्दोई जीजा का तो हक़ भी होता है लेकिन उसके साथ भी मर्जी वाली बात रहती थी.
लेकिन फागुन लगते ही ऐसी फगुनाहट चढ़ती थी न,... जैसे आम बौराता है, जवान होती लड़कियां, भौजाइयां सब बौरा जाती थीं, अगर देवर कोई नखड़ा कर्रे तो भौजाई उसका पाजामा खोलती नहीं फाड़ देती थीं, और जीजा अगर गलती से थोड़ा सीधा मिल गया तो बस गाँव की सब लड़कियां मिल के चढ़ जाती थीं, और साली सलहज का तो रिश्ता लगता है सास उनसे भी दो हाथ आगे,
न रिश्ता न नाता, सिर्फ मस्ती।
जेठ ससुर जिनसे बाकी ११ महीने थोड़ा दूरी रहती है उनके साथ भी एकदम खुल के मजाक, छेड़छाड़,... और अगर कहीं रिश्ते में, गाँव के रिश्ते से देवर मिल गया, गली गैल में, कहीं नन्दोई आ गए, और लड़कियां भी अपने न हों तो सहेली के जी जीजा, गाँव में किसी के जीजा, और भाभी के भाई भी,...
( आखिर मेरे ममेरे भाई चुन्नू ने इनकी सबसे छोटी बहन की बिल का फीता काट दिया था, जब वो होली में लेने आया था मुझे,... और मंझली ननद ने खुद चढ़ के,... उसे ). जैसे जैसे होली नजदीक आती है चट चट कर के बंधन टूटने लगते हैं , फिर होली और रंग पंचमी के पांच दिन तो,... और सबसे बढ़कर औरतों और लड़कियों में रिश्तों का भी सिर्फ ननद भौजाई नहीं, सास बहू भी, सहेलियां भी आपस में,...
अगर पाहुन आये, और घर में साली सलहज है, फिर तो सलहज ही साली का नाड़ा अपने नन्दोई से खुलवाती थी नहीं तो खुद तोड़ देती थी , और अगर सलहज न हुयी तो सास ही अपनी बेटी का हाथ पीछे से पकड़ के आ रहे कच्चे टिकोरे, ऑफर कर देती थी
" अरे तनी ठीक से सही जगह पे रंग लगावा,... "
इसके बाद कौन जीजा चोली में हाथ डालने से अपने को रोक सकता था और एक बार चोली खुली तो नीचे का नंबर,...
पिछला हफ्ता इसी मस्ती में और कल का दिन भी, लेकिन अभी जो होना था उसके बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम था,
सिवाय इसके की मिश्राइन भाभी पे होलिका माई आएंगी,
और सबको एकदम चुप रहना है, ये मेरी सास ने भी बताया था और दूबे भाभी ने भी। जो पुरानी लड़कियां औरतें थीं उन्हें तो सब मालूम ही था,...
अचानक सारी मस्ती बंद हो गयी, सब लोग मिश्राइन भौजी से दूर हाथ के आम की उस बगिया में सामने जमीन पर बैठ गए, अँधेरा हो रहा था, पश्चिम की ओर सूरज डूब रहा था, हलकी सी लाली अभी भी जैसे गौने की रात के बाद, रतजगा करने के बाद नयी दुल्हन की आँखों में रहती है,... बगिया वैसे भी गझिन थी अब और गझिन लग रही थी,...
हम सब जैसे कुछ होने का इन्तजार कर रहे थे,... और जैसे ही पश्चिम में सूरज डूबा, दूबे भाभी ने इशारा किया,...
पांच सुहागिने, मैं और चमेलिया जो साल भर के अंदर गौने उतरी थीं, और उनकी पहली होली थी, ... मोहिनी भौजी जो अभी लड़कोर नहीं हुयी थी, गौने के तीन साल हो गए थे,...
और दो ननदें बियाहता लेकिन जिनका गौना अभी नहीं हुआ था, नीलू और लीला,...
सबसे आगे मैं और चमेलिया,.... और मिश्राइन भाभी को पकड़ के, हम पांचो,... जैसे रास्ता अपने आप खुलता जा रहा था, एक बड़ा सा पाकुड़ का पेड़ था उसके साथ पांच महुवा के,... लोग दिन में भी उधर से नहीं जाते थे,... बस उधर ही, खूब घुप अँधेरा, हो रहा था,...
रात अभी नहीं हुयी थी लेकिन घने पेड़ कभी लगता था हमारा रास्ता रोक रहे हैं कभी लगता, डाल झुका के मिश्राइन भौजी को निहोरा कर रहे हैं. उन पेड़ों के पीछ सैकड़ों साल पुरानी बँसवाड़ी, ... जिसके बांस सिर्फ शादी में मंडप के लिए, किसी जाति की बाइस पुरवा में लड़की की शादी हो या लड़के की बांस यहीं से, लेकिन बांस काटने के पहले भी खूब पूजा विधान,... और शादी के अलावा कोई उस बँसवाड़ी की ओर मुंह भी नहीं करता था,... उसी बँसवाड़ी के घने झुरमुट में,....
मोहिनी भाभी ने इशारा किया हम सब वहीँ रुक जाएँ और फिर मुझे इशारा किया,... मैंने मिश्राइन भौजी की साड़ी खोली,... उसके बाद ब्लाउज, पेटीकोट,... एकदम निसुति,...
मिश्राइन भौजी ने वो अपनी पहनी साड़ी उठा के मुझे दे दी,... मुझे बाद में पता चला की वो कितनी बड़ी चीज है,... होलिका देवी का पहला आशीर्वाद,.... और जो औरत उस साड़ी को पहनती थीं अपने आप पूरे गाँव में उस का असर होता था,... ब्लाउज उन्होंने चमेलिया को दी और पेटीकोट मोहिनी भाभी को, महुआ के कुछ फूल थे चुवा हुआ महुवा, वो एक अंजुली में रख कर सबसे पहले उन्होंने गाँव की दोनों लड़कियों को नीलू और लीला को, फिर हम सब को,...
उसका मतलब बाद में समझ में आया, जिस जिस को मिला उसके जोबन का असर महुआ से भी तेज नशीला होगा, देख कर के लड़के, मरद सब झूमेंगे,...
हम सब मिश्राइन भाभी के पैरों की ओर देख रहे थे, उन से आँख मिलाने की ताकत किसी में नहीं थी,... और अब मोहिनी भाभी ने इशारा किया,... हम सब लोगों ने आँखे बंद कर ली,
एक अजीब सी महक, एक हलकी हलकी झिरझिराती हुयी हवा हम सब के पूरे देह में, हम सब सिहर रहे थे,... कोई कुछ बोलने को छोड़िये सोच भी नहीं रहा था बस जो हवा थी, महक थी, अजब सी मस्ती,.... पूरी देह में जैसे मदन रस,... और हलके हलके मिश्राइन भाभी के पायल के बिछुए के घुंघरू की आवाज, ... दूर होते पैरों की आहट,... हलकी और हलकी होती,... एक बहुत पतली सी पगडंडी, जिधर मैं कभी गयी नहीं थी, चारो ओर खूब घनी बँसवाड़ी,...
हां मालूम था उसके अंत में एक पोखर है लेकिन गाँव की बड़ी बूढ़ियों ने, गुलबिया की सास ने, सबने बरजा था, बल्कि कभी सपने में उसकी बात भी नहीं करनी थी,...
यह रास्ता शायद उसी ओर को जाता था,
हम पांचो की आँखे बंद, देह बस सिहर रही थी, पूरी देह में एक अजब सी तरंग उठ रही थी, जैसे चरम कामोत्तेजना के समय,... हम सब एक दूसरे के हाथ पकड़े, मैंने बाएं हाथ से लीला का हाथ पकड़ा था वो कस के मेरी मुट्ठी भींच रही थी और मेरे दाएं हाथ में चमेलिया का हाथ,... और जैसे उन उँगलियों से हमारी मस्ती दूसरे की देह में उतर रही थी,...
आँखे बंद होने पर भी लग गया था, सूरज गाँव के पिछवाड़े, एक चांदी की हँसुली सी मुड़ती लहराती नदी जो थी, बस उसमें उतर गया था, अपना काम चाँद को सम्हाल कर,... और वो अभी जम्हाई ले रहा था, आकाश के आँगन में उतरने के लिए,... तारे उसका इन्तजार कर रहे थे,
झपाक बड़ी जोर की आवाज, हुयी लगा जैसे सूरज रोज की तह नदी में उतरने की जगह आज उस पोखर में डूब गया,...
बिना आंख खोले मोहिनी भाभी ने इशारा किया मुड़ने का, और हम सब एक के पीछे एक, सब से आगे मोहिनी भाभी, उमर में भी बड़ी और ब्याहता भी और सबसे पीछे मैं और चमेलिया बीच में दोनों ननदें,... मजाक छेड़ छाड़ चाहे जितना हो, पर ननदो की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा जिसके ऊपर रहती है वो गाँव की भौजाई लोग ही होती हैं,..
पाकुड़ के उस बड़े से पेड़ के पास पहुँच के मोहिनी भाभी ने इशारा किया, हम सब रुक गए, फिर एक बार एक दूसरे का हाथ पकडे, लीला और नीलू बीच में दोनों ओर हम तीनो उनकी भौजाई
दस मिनट, पन्दरह मिनट
एकदम चुप हम सब,... हमारी तो छोड़िये घर लौट रहे चिड़िया चंगुर भी शांत,... वो मदन समीर उसी तरह चल रही थी, झिर झिर,... झिर झिर
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