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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
Page 1005,
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ननद की सास, और सास का प्लान
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Ekdam aapne sahi pakdi uski chaalaki, dard se jyada vo chhilaati thi, jisase renu dar jaaye aur apne bhayi se door rahe,.... aur Laliya akele Kamal se maje loote.Kafi smart hai Lalia , achhi jugat lagai hai Renu ko maze se dur rakhne ke liye
ये दर्द नहीं ललिया की चालाकी थी,Dard dene wale mard Komal didi ki story mein mil te hain
गाँव में शादी में बरात के जाने के बाद जो रतजगा होता है उसका अच्छा नमूना इस वीडियो में हैं, हाँ कैमरा है तो थोड़ा ढोंका तोपा, वरना तो
और ये पूरे हिंदी इलाके का तो मैं बता ही सकती हूँ
नाम अलग अलग , पश्चिम उत्तर प्रदेश में खोइया कहते हैं उसके भी वीडियों यू ट्यूब पर मिल जाएंगे, कहीं डोमकच तो कही रतजगा,
लेकिन लेडीज ओनली प्रोग्राम होता है और इसी तरह मटकोर ( माटी खोदने की रस्म ) भी जहाँ सिर्फ औरतें होती है गाली और नाच, और उसके भी कुछ सेंसर्ड वीडियों यू ट्यूब पर मिल जाते हैं, बाकी तो जिसने सुना है, गाँव का जीवन जिया है,... उस के लिए तो,..
बहुत बहुत धन्यवाद शेयर करने के लिए।
Thanks for such detailed exposition.ऐ komaalrani जिज्जी,
बिहार, झारखंड और यूपी आदि राज्यों में बेटी की विदाई के दौरान खोइछा भरने की रस्म की जाती है। जिसमें शादीशुदा बेटियां को मायके से ससुराल जाते समय यानी उनकी विदाई के उनकी मां या भाभी के द्वारा कुछ सामान दिया जाता है जैसे - धान या चावल, हल्दी, सिक्का, फूल आदि दिया जाता है जिसे खोइछा कहते हैं।
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लोकनाट्य:बिहार का घरेलू नाट्य है डोमकच, सिर्फ़ महिलाओं को होती है इसमें शामिल होने की इजाज़त
बिहार का घरेलू नाट्य है डोमकच, सिर्फ़ महिलाओं को होती है इसमें शामिल होने की इजाज़त...
बिहार के मिथिलांचल व पूर्वांचल के अलावा भी भोजपुर क्षेत्रों में प्राकृतिक मौसम, त्यौहार, शादी-विवाह, पर अलग-अलग प्रकार के गीत गाए जाते रहे हैं। इनमें कुछ गीत व नाट्य महिला प्रधान होते हैं। इनके सभी पात्र महिलाओं द्वारा ही रचे जाते हैं, और उसका अभिनय भी महिलाएं ही करती हैं। ‘डोमकच’ बिहार का एक ऐसा ही घरेलू लोकनाट्य है, जो विशेषकर घर-आंगन में की जाने वाली प्रस्तुति है। इस नाट्य को अमूमन अब भी मिथिलांचल के गांवों-क़स्बों में किया जाता है।
जब लड़के के विवाह के समय आमतौर पर सभी पुरुष बारात लेकर दुल्हन के घर चले जाते हैं, तब घर की महिलाएं ख़ुद को एक रात के लिए पितृसत्ता द्वारा ओढ़ाए गए मर्यादा के सभी आवरणों से मुक्त करती हैं। घर पर छूट गई महिलाएं एक रात के लिए रात्रि जागरण करती है। इनमें वे कई तरह के स्वांग, लोकगीतों के बहाने अपनी अव्याख्यायित इच्छाओं को स्वर देती हैं। इनमें से कोई एक या दो महिलाएं पुरुष का वेश धारण करती हैं। पुरुष-वेश धारण करने वाली महिलाओं में ज़्यादातर लड़के (दूल्हा) की बहन या बुआ (फुआ) होती हैं। वो अपने घर के बड़े-बुज़ुर्गों का शर्ट, धोती-कुर्ता, गमछा, बनावटी मूंछ और लकड़ी की लाठी भी साथ रखती हैं। महिलाएं पहले अपने घर फिर उसके बाद पड़ोस के घर जाकर अन्य सभी महिलाओं को छेड़ती हैं। इनके गीत और भंगिमाएं बहुरंगी होते हैं।
डोमकच का ख़ास तौर पर महिलाओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। जब वे पारंपरिक पितृसत्ता द्वारा ओढ़ाई गई मर्यादा से मुक्त होकर लोकनाट्य रग में स्वच्छंद होकर सांस लेती हैं। डोमकच सामान्यतः अन्य नृत्यों से अलग महिला प्रधान होते हुए भी हास्य-व्यंग्य व छींटाकशी वाले गीतों से भरा पड़ा है।
*****
मटकोरा, गृहस्थ जीवन में प्रवेश के पूर्व धरती से याचना है कि वह हमें स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करें। वह धनधान्य पूर्ण करें जो गृहस्थ जीवन का आवश्यक तत्व है।
जहां तक इस मटकोरा परंपरा के निभाने के प्रक्रिया की बात है तो इसमें वर तथा वधू दोनों पक्षों की महिलाएं शादी के निर्धारित तिथि के दो तीन दिन पूर्व सम्पादित करती हैं। महिलाएं समूह में मंगल गीत गाती एक दउरी में जौ, पान, कसैली तथा पीला कपड़ा का एक टुकड़ा रख गांव के बाहर जाती हैं। वहां साथ लाए फावड़ा की ऐपन सिंदूर से पूजा के बाद जम कर नाच गाना के बीच वर अथवा वधू के बुआ द्वारा जमीन से मिट्टी खोदने के साथ ही पांच महिलाओं का खोईंछा भरा जाता है।
इस बीच लगुहा महिलाओं के प्रति सुहाग गालियां गायी जाती है। बुआ के नहीं रहने पर मिट्टी खोदने का रस्म वर अथवा वधू की बहन द्वारा पूरा किया जाता है। तत्पश्चात खोदी गयी मिट्टी को दउदा में रख महिलाएं घर वापस आ जाती है। यहां महिलाओं द्वारा साथ लायी गयी मिट्टी को मकान के आंगन में रख पंडित जी के पूजा के बाद उस कलश स्थापित किया जाता है। बाद में दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाने के साथ ही उनकी कलाई में धागा में बंधी लोहे की अंगूठी तथा जवाइन बांधा जाता है जिसे कंगन अथवा ककन कहते हैं। हिन्दू विवाह पद्धति में यह अमत महत्वपूर्ण रश्म है।
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धन्यवाद
Great, u r very knowledgeableऐ komaalrani जिज्जी,
बिहार, झारखंड और यूपी आदि राज्यों में बेटी की विदाई के दौरान खोइछा भरने की रस्म की जाती है। जिसमें शादीशुदा बेटियां को मायके से ससुराल जाते समय यानी उनकी विदाई के उनकी मां या भाभी के द्वारा कुछ सामान दिया जाता है जैसे - धान या चावल, हल्दी, सिक्का, फूल आदि दिया जाता है जिसे खोइछा कहते हैं।
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लोकनाट्य:बिहार का घरेलू नाट्य है डोमकच, सिर्फ़ महिलाओं को होती है इसमें शामिल होने की इजाज़त
बिहार का घरेलू नाट्य है डोमकच, सिर्फ़ महिलाओं को होती है इसमें शामिल होने की इजाज़त...
बिहार के मिथिलांचल व पूर्वांचल के अलावा भी भोजपुर क्षेत्रों में प्राकृतिक मौसम, त्यौहार, शादी-विवाह, पर अलग-अलग प्रकार के गीत गाए जाते रहे हैं। इनमें कुछ गीत व नाट्य महिला प्रधान होते हैं। इनके सभी पात्र महिलाओं द्वारा ही रचे जाते हैं, और उसका अभिनय भी महिलाएं ही करती हैं। ‘डोमकच’ बिहार का एक ऐसा ही घरेलू लोकनाट्य है, जो विशेषकर घर-आंगन में की जाने वाली प्रस्तुति है। इस नाट्य को अमूमन अब भी मिथिलांचल के गांवों-क़स्बों में किया जाता है।
जब लड़के के विवाह के समय आमतौर पर सभी पुरुष बारात लेकर दुल्हन के घर चले जाते हैं, तब घर की महिलाएं ख़ुद को एक रात के लिए पितृसत्ता द्वारा ओढ़ाए गए मर्यादा के सभी आवरणों से मुक्त करती हैं। घर पर छूट गई महिलाएं एक रात के लिए रात्रि जागरण करती है। इनमें वे कई तरह के स्वांग, लोकगीतों के बहाने अपनी अव्याख्यायित इच्छाओं को स्वर देती हैं। इनमें से कोई एक या दो महिलाएं पुरुष का वेश धारण करती हैं। पुरुष-वेश धारण करने वाली महिलाओं में ज़्यादातर लड़के (दूल्हा) की बहन या बुआ (फुआ) होती हैं। वो अपने घर के बड़े-बुज़ुर्गों का शर्ट, धोती-कुर्ता, गमछा, बनावटी मूंछ और लकड़ी की लाठी भी साथ रखती हैं। महिलाएं पहले अपने घर फिर उसके बाद पड़ोस के घर जाकर अन्य सभी महिलाओं को छेड़ती हैं। इनके गीत और भंगिमाएं बहुरंगी होते हैं।
डोमकच का ख़ास तौर पर महिलाओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। जब वे पारंपरिक पितृसत्ता द्वारा ओढ़ाई गई मर्यादा से मुक्त होकर लोकनाट्य रग में स्वच्छंद होकर सांस लेती हैं। डोमकच सामान्यतः अन्य नृत्यों से अलग महिला प्रधान होते हुए भी हास्य-व्यंग्य व छींटाकशी वाले गीतों से भरा पड़ा है।
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मटकोरा, गृहस्थ जीवन में प्रवेश के पूर्व धरती से याचना है कि वह हमें स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करें। वह धनधान्य पूर्ण करें जो गृहस्थ जीवन का आवश्यक तत्व है।
जहां तक इस मटकोरा परंपरा के निभाने के प्रक्रिया की बात है तो इसमें वर तथा वधू दोनों पक्षों की महिलाएं शादी के निर्धारित तिथि के दो तीन दिन पूर्व सम्पादित करती हैं। महिलाएं समूह में मंगल गीत गाती एक दउरी में जौ, पान, कसैली तथा पीला कपड़ा का एक टुकड़ा रख गांव के बाहर जाती हैं। वहां साथ लाए फावड़ा की ऐपन सिंदूर से पूजा के बाद जम कर नाच गाना के बीच वर अथवा वधू के बुआ द्वारा जमीन से मिट्टी खोदने के साथ ही पांच महिलाओं का खोईंछा भरा जाता है।
इस बीच लगुहा महिलाओं के प्रति सुहाग गालियां गायी जाती है। बुआ के नहीं रहने पर मिट्टी खोदने का रस्म वर अथवा वधू की बहन द्वारा पूरा किया जाता है। तत्पश्चात खोदी गयी मिट्टी को दउदा में रख महिलाएं घर वापस आ जाती है। यहां महिलाओं द्वारा साथ लायी गयी मिट्टी को मकान के आंगन में रख पंडित जी के पूजा के बाद उस कलश स्थापित किया जाता है। बाद में दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाने के साथ ही उनकी कलाई में धागा में बंधी लोहे की अंगूठी तथा जवाइन बांधा जाता है जिसे कंगन अथवा ककन कहते हैं। हिन्दू विवाह पद्धति में यह अमत महत्वपूर्ण रश्म है।
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धन्यवाद
Laliya ne khoob chalaki dikhai.....apne to maze le liye lekin Renu ko nahi lene dena chahti thiचालाकी ललिया की
तो ललिया बहुत मजा ले रही थी चीख चीख के हमरे देवर के साथ,... हँसते हुए मैंने कहा,... लेकिन चाची अब सीरियस थी, उन्होंने उसका दूसरा पहलू समझाया,
" उसको तो मजा आ रहा था लेकिन बेचारी मेरी रेनू का इसी बहाने वो पत्ता काट रही थी , ये मुझे बाद में समझ आया। कई बार खुली खिड़की से रेनू को आते देखती तो और जोर जोर से चिल्लाने लगती थी, ...
" भैया, छोड़ दो, बहुत दर्द कर रहा है, मारो मत, काटो मत, लगता है,... ओह्ह एक मिनट रुक जाओ,... मन भर चोदना लेकिन ज़रा आराम आराम से,... ओह्ह मना नहीं कर रही हूँ पर, उफ़ जान निकल गयी,... '
और रेनू खिड़की से ये सब आवाजें सुनती थीं तो हदस जाती थी. वापस चली जाती थी।
उधर तोहार देवर सोचता था की स्साली ललिया रोज की तरह नौटंकी कर रही वो और जोर से उसके चूतड़ पे चांटे मारता,... गाल कस के काट लेता, नाख़ून निपल में नोच लेता और करीब पूरा लंड निकाल के वो धक्का मारता की सीधे बच्चेदानी पे धक्का लगता और ललिया और चिल्लाती,...
और बाहर आवाज सुन के रेनुआ और घबड़ाती, की कहि तोहार देवर उस पे चढ़ गया तो उसकी तो जान ही निकल जायेगी। "
मैं ध्यान से सुन रही थी और समझ भी रही थी। लेकिन मैंने चाची से पूछा लेकिन रेनू ने उस छिनार से ये नहीं कहा की जब तोहें इतना दर्द हो रहा है तो काहें रोज टांग फैला के हमरे भैया से चुदवाने आ जाती हो.
" पूछा था, रेनुआ ने "
चाची बोलीं लेकिन ललिया का जवाब सुनके मेरी भी हिल गयी। ललिया ने उसे समझाया
" देख रेनुआ यह गाँव में तू ही हमार सहेली हो। हमार तो चलो फट गयी है , सबसे पहले सुधीर सर ने ही फाड़ दिया था मैथ में नंबर बढ़ाने के लिए,... फिर तीन चार और,... फिर भैया भी महीने दो महीने से,... लेकिन तेरी तो अभी कोरी है, तुझे तो अस्पताल ही जाना होगा, फिर अस्पताल में क्या कहोगी, मेरे भैया ने फाड़ दिया ? मैं रोज इसी लिए चुदवाती हूँ की वो तेरे पीछे न पड़े, मेरी सहेली के साथ कुछ हादसा न हो। मैं मना नहीं कर रही हूँ खाली बता रही हूँ, हमारे क्लास की आधी से ज्यादा लड़कियां चुदवाती हैं लेकिन मेरे गाल पे, जोबन पे जो दांत के निशान रहते हैं, दो दिन टांग छितरा के चलती हूँ, और किसी की हालत होती है ऐसी क्या ? देखो तुम्हारा भाई है, मैं बुराई नहीं करती,... लेकिन झिल्ली कहीं और फड़वा ले मेरी तरह, दो चार चुदवा ले उसके बाद ही तू उसके लायक हो पाएगी। "
मैं अब सब समझ गयी थी मैंने रेनू की चाची की को बताया
" समझ गयी, हमार ननद कोरी कुँवार, चाँद अँजोरिया अस,... ललिया जानती थी , एक बार देवर जी को उसका स्वाद मिल गया, फिर घर में , जब चाहे तब,... वो ललिया को पूछेगा भी नहीं, इसलिए रेनुवा को भड़काए रहती थी। और रेनुआ के साथ बाकी उसकी उम्र की लड़कियों को भी हदसा के रख दिया,... की कउनो कुँवारी लड़की हमरे देवर के आगे नाड़ा न खोले,... लेकिन वो पिछवाड़े वाली का बात।'
मुझे जो नैना ने बताया था उसके आधार पे मैंने एक सवाल और रेनू की चाची से पूछ लिया और उन्होंने उलटे मुझसे सवाल पूछ लिया।
और उसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था सिवाय हाँ बोलने के लिए।
रेनू की चाची ने पूछा,
" ये बताओ नयको, कउनो कच्ची अमिया वाली हो, लौंडा छाप छोट छोट टाइट टाइट चूतड़, खूब मटका के चलती हो,... कच्ची कोरी गाँड़,.... तो गाँड़ उसकी मारी जायेगी की नहीं, कउनो तोहार देवर हो तो ऐसे माल की गाँड़ मारेगा की नहीं।"
अब इस बात का क्या जवाब होता सिवाय सर हिला के हामी भरने के, वो मैंने किया फिर साफ़ साफ़ बोल दिया।
ऐ komaalrani जिज्जी,
बिहार, झारखंड और यूपी आदि राज्यों में बेटी की विदाई के दौरान खोइछा भरने की रस्म की जाती है। जिसमें शादीशुदा बेटियां को मायके से ससुराल जाते समय यानी उनकी विदाई के उनकी मां या भाभी के द्वारा कुछ सामान दिया जाता है जैसे - धान या चावल, हल्दी, सिक्का, फूल आदि दिया जाता है जिसे खोइछा कहते हैं।
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लोकनाट्य:बिहार का घरेलू नाट्य है डोमकच, सिर्फ़ महिलाओं को होती है इसमें शामिल होने की इजाज़त
बिहार का घरेलू नाट्य है डोमकच, सिर्फ़ महिलाओं को होती है इसमें शामिल होने की इजाज़त...
बिहार के मिथिलांचल व पूर्वांचल के अलावा भी भोजपुर क्षेत्रों में प्राकृतिक मौसम, त्यौहार, शादी-विवाह, पर अलग-अलग प्रकार के गीत गाए जाते रहे हैं। इनमें कुछ गीत व नाट्य महिला प्रधान होते हैं। इनके सभी पात्र महिलाओं द्वारा ही रचे जाते हैं, और उसका अभिनय भी महिलाएं ही करती हैं। ‘डोमकच’ बिहार का एक ऐसा ही घरेलू लोकनाट्य है, जो विशेषकर घर-आंगन में की जाने वाली प्रस्तुति है। इस नाट्य को अमूमन अब भी मिथिलांचल के गांवों-क़स्बों में किया जाता है।
जब लड़के के विवाह के समय आमतौर पर सभी पुरुष बारात लेकर दुल्हन के घर चले जाते हैं, तब घर की महिलाएं ख़ुद को एक रात के लिए पितृसत्ता द्वारा ओढ़ाए गए मर्यादा के सभी आवरणों से मुक्त करती हैं। घर पर छूट गई महिलाएं एक रात के लिए रात्रि जागरण करती है। इनमें वे कई तरह के स्वांग, लोकगीतों के बहाने अपनी अव्याख्यायित इच्छाओं को स्वर देती हैं। इनमें से कोई एक या दो महिलाएं पुरुष का वेश धारण करती हैं। पुरुष-वेश धारण करने वाली महिलाओं में ज़्यादातर लड़के (दूल्हा) की बहन या बुआ (फुआ) होती हैं। वो अपने घर के बड़े-बुज़ुर्गों का शर्ट, धोती-कुर्ता, गमछा, बनावटी मूंछ और लकड़ी की लाठी भी साथ रखती हैं। महिलाएं पहले अपने घर फिर उसके बाद पड़ोस के घर जाकर अन्य सभी महिलाओं को छेड़ती हैं। इनके गीत और भंगिमाएं बहुरंगी होते हैं।
डोमकच का ख़ास तौर पर महिलाओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। जब वे पारंपरिक पितृसत्ता द्वारा ओढ़ाई गई मर्यादा से मुक्त होकर लोकनाट्य रग में स्वच्छंद होकर सांस लेती हैं। डोमकच सामान्यतः अन्य नृत्यों से अलग महिला प्रधान होते हुए भी हास्य-व्यंग्य व छींटाकशी वाले गीतों से भरा पड़ा है।
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मटकोरा, गृहस्थ जीवन में प्रवेश के पूर्व धरती से याचना है कि वह हमें स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करें। वह धनधान्य पूर्ण करें जो गृहस्थ जीवन का आवश्यक तत्व है।
जहां तक इस मटकोरा परंपरा के निभाने के प्रक्रिया की बात है तो इसमें वर तथा वधू दोनों पक्षों की महिलाएं शादी के निर्धारित तिथि के दो तीन दिन पूर्व सम्पादित करती हैं। महिलाएं समूह में मंगल गीत गाती एक दउरी में जौ, पान, कसैली तथा पीला कपड़ा का एक टुकड़ा रख गांव के बाहर जाती हैं। वहां साथ लाए फावड़ा की ऐपन सिंदूर से पूजा के बाद जम कर नाच गाना के बीच वर अथवा वधू के बुआ द्वारा जमीन से मिट्टी खोदने के साथ ही पांच महिलाओं का खोईंछा भरा जाता है।
इस बीच लगुहा महिलाओं के प्रति सुहाग गालियां गायी जाती है। बुआ के नहीं रहने पर मिट्टी खोदने का रस्म वर अथवा वधू की बहन द्वारा पूरा किया जाता है। तत्पश्चात खोदी गयी मिट्टी को दउदा में रख महिलाएं घर वापस आ जाती है। यहां महिलाओं द्वारा साथ लायी गयी मिट्टी को मकान के आंगन में रख पंडित जी के पूजा के बाद उस कलश स्थापित किया जाता है। बाद में दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाने के साथ ही उनकी कलाई में धागा में बंधी लोहे की अंगूठी तथा जवाइन बांधा जाता है जिसे कंगन अथवा ककन कहते हैं। हिन्दू विवाह पद्धति में यह अमत महत्वपूर्ण रश्म है।
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धन्यवाद
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाँव में बरात के जाने के बाद का खोइयाऐ komaalrani जिज्जी,
बिहार, झारखंड और यूपी आदि राज्यों में बेटी की विदाई के दौरान खोइछा भरने की रस्म की जाती है। जिसमें शादीशुदा बेटियां को मायके से ससुराल जाते समय यानी उनकी विदाई के उनकी मां या भाभी के द्वारा कुछ सामान दिया जाता है जैसे - धान या चावल, हल्दी, सिक्का, फूल आदि दिया जाता है जिसे खोइछा कहते हैं।
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लोकनाट्य:बिहार का घरेलू नाट्य है डोमकच, सिर्फ़ महिलाओं को होती है इसमें शामिल होने की इजाज़त
बिहार का घरेलू नाट्य है डोमकच, सिर्फ़ महिलाओं को होती है इसमें शामिल होने की इजाज़त...
बिहार के मिथिलांचल व पूर्वांचल के अलावा भी भोजपुर क्षेत्रों में प्राकृतिक मौसम, त्यौहार, शादी-विवाह, पर अलग-अलग प्रकार के गीत गाए जाते रहे हैं। इनमें कुछ गीत व नाट्य महिला प्रधान होते हैं। इनके सभी पात्र महिलाओं द्वारा ही रचे जाते हैं, और उसका अभिनय भी महिलाएं ही करती हैं। ‘डोमकच’ बिहार का एक ऐसा ही घरेलू लोकनाट्य है, जो विशेषकर घर-आंगन में की जाने वाली प्रस्तुति है। इस नाट्य को अमूमन अब भी मिथिलांचल के गांवों-क़स्बों में किया जाता है।
जब लड़के के विवाह के समय आमतौर पर सभी पुरुष बारात लेकर दुल्हन के घर चले जाते हैं, तब घर की महिलाएं ख़ुद को एक रात के लिए पितृसत्ता द्वारा ओढ़ाए गए मर्यादा के सभी आवरणों से मुक्त करती हैं। घर पर छूट गई महिलाएं एक रात के लिए रात्रि जागरण करती है। इनमें वे कई तरह के स्वांग, लोकगीतों के बहाने अपनी अव्याख्यायित इच्छाओं को स्वर देती हैं। इनमें से कोई एक या दो महिलाएं पुरुष का वेश धारण करती हैं। पुरुष-वेश धारण करने वाली महिलाओं में ज़्यादातर लड़के (दूल्हा) की बहन या बुआ (फुआ) होती हैं। वो अपने घर के बड़े-बुज़ुर्गों का शर्ट, धोती-कुर्ता, गमछा, बनावटी मूंछ और लकड़ी की लाठी भी साथ रखती हैं। महिलाएं पहले अपने घर फिर उसके बाद पड़ोस के घर जाकर अन्य सभी महिलाओं को छेड़ती हैं। इनके गीत और भंगिमाएं बहुरंगी होते हैं।
डोमकच का ख़ास तौर पर महिलाओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। जब वे पारंपरिक पितृसत्ता द्वारा ओढ़ाई गई मर्यादा से मुक्त होकर लोकनाट्य रग में स्वच्छंद होकर सांस लेती हैं। डोमकच सामान्यतः अन्य नृत्यों से अलग महिला प्रधान होते हुए भी हास्य-व्यंग्य व छींटाकशी वाले गीतों से भरा पड़ा है।
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मटकोरा, गृहस्थ जीवन में प्रवेश के पूर्व धरती से याचना है कि वह हमें स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करें। वह धनधान्य पूर्ण करें जो गृहस्थ जीवन का आवश्यक तत्व है।
जहां तक इस मटकोरा परंपरा के निभाने के प्रक्रिया की बात है तो इसमें वर तथा वधू दोनों पक्षों की महिलाएं शादी के निर्धारित तिथि के दो तीन दिन पूर्व सम्पादित करती हैं। महिलाएं समूह में मंगल गीत गाती एक दउरी में जौ, पान, कसैली तथा पीला कपड़ा का एक टुकड़ा रख गांव के बाहर जाती हैं। वहां साथ लाए फावड़ा की ऐपन सिंदूर से पूजा के बाद जम कर नाच गाना के बीच वर अथवा वधू के बुआ द्वारा जमीन से मिट्टी खोदने के साथ ही पांच महिलाओं का खोईंछा भरा जाता है।
इस बीच लगुहा महिलाओं के प्रति सुहाग गालियां गायी जाती है। बुआ के नहीं रहने पर मिट्टी खोदने का रस्म वर अथवा वधू की बहन द्वारा पूरा किया जाता है। तत्पश्चात खोदी गयी मिट्टी को दउदा में रख महिलाएं घर वापस आ जाती है। यहां महिलाओं द्वारा साथ लायी गयी मिट्टी को मकान के आंगन में रख पंडित जी के पूजा के बाद उस कलश स्थापित किया जाता है। बाद में दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाने के साथ ही उनकी कलाई में धागा में बंधी लोहे की अंगूठी तथा जवाइन बांधा जाता है जिसे कंगन अथवा ककन कहते हैं। हिन्दू विवाह पद्धति में यह अमत महत्वपूर्ण रश्म है।
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धन्यवाद
कलावतिया केवल कमल को हीं समझाती थी...पिछवाड़ा ललिया का
" हे सुन, वो स्साली पता नहीं तोहसे पहले कैसे कैसे चुदवा के, तोहसे चोदवा रही है, अरे मजा तो सील खोलने में है, चलो अगवाड़ा नहीं तो पिछवाड़ा ही सही,... अबकी चाहे जो हो जाए उसकी गाँड़ की सील जरूर फाड़ना। स्साली छिनरपन करती है. और कउनो आराम आराम से करने की जरूरत नहीं है, पठानटोला और भरौटी तक आवाज जाए उसकी,... फट जायेगी तो मैं खुदे ले जाके मोची से सिलवा दूंगी, छोटी छोटी सिलाई करेगा, पता भी नहीं चलेगा। देवर तोहरे आगे तो छिनरपन करती है बहरे गाँव भर में गाती होगी, रेनुआ क भाई में गाँड़ मारने का जांगर ही नहीं है। छोड़ना मत स्साली को. "