सुगना की मालिश का जादू
जवान औरत की देह बहुत दिन बाद छू रही थी, देह उसके ससुर की गिनगीना रही थी, अब सुगना को तो कुछ बोल नहीं सकते थे अपनी समधिन का नाम लेकर सुगना की महतारी को इशारा करके छेड़ा,..
" हमार समधिन लगता है कौन नाऊ के साथ सोई थीं जब गाभिन हुयी, तू पेट में आयी, तब ही इतनी बढ़िया मालिश सीखी हो "
सुगना काहें चुप रहती उसने भी अपनी महतारी के कंधे पर रख कर बंदूक चला दी,...
" अरे आपकी समधन होतीं तो जवाब देतीं, अपने दामाद की दादी और बुआ दोनों का हाल सुना देतीं की वो लोग किसके किसके साथ टांग उठाये हैं, की कहीं आपके समधिन के समधी के साथ ही तो नहीं,... "
और साथ ही में हाथ सरक के जाँघों के ऊपर कच्छे के अंदर
लेकिन उसके नाखूनों ने बॉल्स को बस छू लिया और अब सुगना गिनगीना गयी।
उसकी माँ ने जब सुगना के जोबन आने ही शुरू हुए थे उसकी चोटी करते हुए अपनी बेटी को समझा दिया,
" लंबा मोटा से भी ज्यादा जरूरी है, मरद का चोदू होना, रगड़ रगड़ के चोदे, लड़की को बिना झाड़े फेचकुर न फेंके, और उसके लिए पता चलेगा उसके पेल्हड़ से दोनों रसगुल्लों से,... "
" अरे कहीं लंबा मोटा भी हो साथ में तो,... " चोटी करवाते हुए सुगना ने अपनी माँ से पूछा। "
" अरे फिर तो कुछ भी करो, उसे छोड़ना नहीं चाहिए, कुछ भी करके पटाओ, मनाओ,... लेकिन कउनो मरद हो बहिन महतारी की गारी जरूर अच्छी लगती है, और उहो मेहरारू के मुंह से, देखो सादी बियाह में जब तक बरतीयंन क नाम ले लेके बहिन महतारी न गरियाओ,... "
माँ ने एक और गुर बताया,...
" अरे माँ सब के सब अपनी बहिन महतारी चोदना चाहते हैं तो सच में न सही तो गारिये में,... " खिलखिलाते हुए सुगना बोली।
अगली बार सुगना के नाख़ून ने बॉल्स को खरोच भी दिया और अब जैसे माँ ने बताया था वैसे ही बल्कि उससे भी दो हाथ आगे,... सुगना को अपने ससुर के नंबरी चोदू होने का अब बिसवास हो गया था. तेल लगी उँगलियों से सिर्फ बॉल्स को वो सहला रही थी, कभी हलके से चिकोटी भी काट लेती, और असर अब उसका मूसल पर भी हो रहा था, कच्छा तन रहा था,... और सुगना की आँखे फटी की फटी रह गयीं,... तम्बू में बम्बू,...
ये बात सही थी की सुगना ने अपने मर्द के अलावा किसी और का नहीं देखा था,
लेकिन सबसे पहले उसकी माँ ने फिर मौसियों ने, भौजाइयों ने,...
हर ननद भौजाई से गौने की रात के बाद यही पूछती, और हर भौजाई ससुराल से गौने के बाद पहली बार मायके लड़की ननद से, कितना बड़ा,... लेकिन किसी ने भी ऐसा बड़ा,...
पर सुगना ने कच्छा नहीं खोला, हाँ अब तेल लगी उंगलिया कभी उस मूसल के बेस पर तेल लगातीं तो कभी अंगूठे से पकड़ के दबा देती, तो कभी अंगूठे को वहीँ बेस पे रगड़ देती। फिर एक ऊँगली सहलाते हुए असली चीज,...कितना मोटा, जाएगा कैसे अंदर,... मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा था, ...
छोटी थी पहली बार माहवारी हुयी थी तभी माँ ने समझाया था सुगना को,
" अरे मोटा पतला मत देखना, ... खाली पूरी ताकत से जांघ फैला देना, हाथ से पलंग क पाटी, जो भी पकड़ में आये पकड़ लेना,... आँख बंद,... बस पेलना मरद का काम है धकेलेगा, ठेलेगा, कोई मरद सामने छेद हो बिना घुसेड़े छोड़ता नहीं, स्कूल के लौंडो को तो छोड़ते नहीं,... "
एक पल के लिए हदस गयी थी सुगना लेकिन माँ की बात यादे आते ही सिर्फ ऊँगली की टिप से वहां भी कभी तेल लगा देती जैसे कोई टीक रहा हो, फिर ऊँगली उस छेद पर जैसे गलती से छू गयी जिसके पानी के लिए हर औरत पागल रहती है,
पागल उसके ससुर भी हो रहे थे, इमरतिया ने कितनी बार हाथ लगाया था, लेकिन जवान दुल्हिन के हाथ का असर ही अलग है,.. और फिर जिस तरह से वो छू के ऊँगली हटा ले रही थी,...बस जान नहीं निकल रही थी,... लग रहा था फट जायेगा, इतने दिनों का रुका सब माल निकल जाएगा,... कोई और होता तो अबतक पटक के निहुरा के
सुगना ने अब रास्ता बदला, एक हाथ तो कच्छे के अंदर नीचे से सेंध लगा रहा था दूसरे ने ऊपर से,
और अबकी हिम्मत कर मुट्ठी में,... मुट्ठी में आ ही नहीं रहा था इतना फूला,...
पलट जाइये, पेट के बल ,... पीछे कमर पर भी लगा देती हूँ,...
और अब बदमाशी बंद कर के उसके दोनों हाथो एकदम कुशल मालिश वाली की तरह दोनों कंधे पर से रगड़ते हुए रीढ़ की हड्डी के अंत तक बार बार, ... अब सच में रिलैक्स हो रहे थे वो क्या हाथ है,
लेकिन तभी उनके सर को थोड़ा और ऊपर उठा के बोली,
" ये भी लगा लीजिये सर में गड़ रहा होगा,... "
और सुगना के ब्लाउज की महक उनके नथुनों में भर गयी.
मतलब,... वो समझ नहीं पा रहे थे,...
लेकिन थोड़ी देर बाद खुद ही पता चल गया, सुगना झुक के पीठ पर तेल लगा रही थी जाने अनजाने उसके दूध के कटोरे,... पूरे नहीं बल्कि सिर्फ निपल उसके ससुर की पीठ को कभी कभी छू दे रहे थे, एकदम कड़े पत्थर से, और अब सुगना ने धीरे धीरे कच्छे को पीछे से सरकाना शुरू कर दिया, और तेल लगे हाथ जैसे अपने आप सरक के ससुर के दोनों नितम्बो पर, एकदम टाइट कड़े कड़े,...
उस दिन सुगना की चोटी करते हुए उसकी महतारी ने ये भी बताया था, सुन, मरद की कमर की ताकत का पता कैसे लगेगा, धक्का कितना जबरदस्त मारता है ,... और खुद ही बस आ रहे छोटे छोटे टिकोरों वाली अपनी एकलौती बेटी को, समझाया, मरद के चूतड़ से,...
और एकदम उसी तरह का चूतड़ था जैसे माई ने बताया था,... सुगना का रोम रोम सिहर उठा,... मरद चाहे जैसा रहा हो, अच्छा हुआ चला गया, अब असली मरद,... तो यही है, और एक बार कटोरी में तेल में तर्जनी बाएं हाथ की सुगना ने डुबोई अच्छी तरह,.. और नितम्बो की बस रीढ़ की हड्डी की जड़ से सरकते हुए सीधे नितम्बों के बीच की दरार में, ... जैसे गलती से छू गया हो,... लेकिन फिर दो बार तीन बार चार दरेरते, रगड़ते,... और अब सुगना के जोबन खुल के उन की पीठ पे सरक रहे थे रगड़ रहे थे,...
जिन गोलाइयों को जब सुगना को पहली बार देखा था उन्होंने तभी से तोपे ढके ब्लाउज और अच्छे से ओढ़े गए आँचल के अंदर से भी, सोच के उनकी हालत खराब थी और वो आज एकदम खुल के उनकी पीठ पर रगड़ रहे थे,... अब वो सिसक रहे थे, देह कसमसा रहे थे,
सुगना ससुर की ये हालत देखकर मुस्करा रही थी. उसकी बाएं हाथ की ऊँगली जो पिछवाड़े की दरार के बीच दरेर रही थी,... कलाई की पूरी ताकत लगा के उसने ठेल दिया,... और एक पोर भी नहीं, मुश्किल से नाख़ून भर अंदर पिछवाड़े, और उसी के साथ दांया हाथ, सरक कर कच्छे के अंदर और अबकी खुल के सुगना ने ससुर के मूसल चंद को मुट्ठी में दबोच लिया, अंगूठे से कभी सुपाड़े को सहलाती कभी दबाती,... कभी बस रगड़ देती,...
वो पेट के बल लेटे थे,...सुगना उनकी पीठ पर, कभी देह से देह सटा देती कभी हटा लेती,... और चिढ़ाते हुए बोली,
" आपकी समधिन तो पता नहीं का कहतीं, लेकिन एक बात मैं बोल सकती हूँ आपकी समधिन की ओर से,.. आपकी समधिन के एकलौते समधी की महतारी,... जरूर किसी गदहे घोडे के संग सोई होंगी, ... जो हमरे ससुर,... या पता नहीं कउनो पंचायत गर्भ केंद्र वाले सांड़ के पास,... "
और ये कहके सुगना ने मुठियाया तो नहीं लेकिन कभी पूरी ताकत से कस के दबा देती तो कभी ढीला छोड़ देती उस मूसल को, सुगना की कलाई से चौड़ा ही रहा होगा,...
थोड़ी देर बाद सुगना ने उन्हें सीधा किया, कच्छा भी ठीक किया, एकदम बांस की तरह खड़ा था तना, कच्छे के ऊपर से एक बार होंठ से फिर अपने दोनों जोबन से हलके से सहला के सुगना उठ गयी और बोली,
बस आप ऐसे ही रहिये, थोड़ी देर में तेल सूख जाएगा,... तबतक मैं खाना बना लेती हूँ,
खाना खिलाते हुए ससुर जी ने आज साफ़ साफ़ बोल ही दिया,
" तुमने तो मुझे भूखा ही छोड़ दिया "
सुगना ने अपने मन की बात बोल दी, " मेरा भी तो कब से उपवास चल रहा है, घबड़ाइये मत आज रात को दावत होगी, जिमियेगा छक कर.
रात को दावत हुयी। जम कर हुयी,