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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ८२ -सुगना भौजी

१६१० १२७

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बंटी अलग होकर मेरे बगल में लेटा ही था की एक झाडी के पास से उठ के आती हुयी सुगना दिखी,... आज भौजाइयों में सबसे ज्यादा वही गरमाई थी, कोई सगा देवर था नहीं , मरद क़तर गया था,

गौने के कुछ दिन बाद ही तब से लौटा नहीं। पच्छिम पट्टी की,...

सुगना एकदम रस की जलेबी, वो भी चोटहिया, गुड़ की जलेबी, हरदम रस छलकता रहता, डेढ़ दो साल पहले ही गौने उतरी थी, जोबन कसमसाता रहता, चोली के भीतर जैसे अंगारे दहकते रहते, जैसी टाइट लो कट चोली पहनती सुगना भौजी, सीना उभार के चलतीं, जवान बूढ़ सब का फनफना जाता था, ... गौना उतरने के कुछ दिन बाद ही मरद कमाने चला गया, क़तर, दुबई कहीं, सास थीं नहीं। ननद बियाहिता। घर में खाली सुगना और उसके ससुर।
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गौने में दुल्हिन उतारने, परछन करने भी, वही हिना क महतारी, और मेरी सास, पठान टोली एकदम पच्छिम पट्टी से चिपकी, और हिना की महतारी तो सुगना के ससुर की मुंहबोली भौजी, सगी भौजी से बढ़कर,


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तो बस वो, मेरी सास और एक दो औरतें और गाँव की गयी थीं दुल्हिन उतारने।

, , गोरी अँजोरिया अस नमक जबरदस्त और जबान में वैसे ही जबरदस्त,... जोबन का तो पूछना नहीं,...सुगना



लोग कहते हैं, लोग क्या हमारी सास खुदे कहती है , ... बाबू सूरजबली सिंह, सुगना के ससुर,... एकदम लहीम सहिम, जबरदस्त मर्द उमर तो पचास पार कर गयी थी लेकिन ताकत में जवान मात,.. सुगना की सास सुगना के गौने उतरने के साल भर पहले ही ऊपर चली गयी थी,.. लेकिन बाबू साहेब का नागा नहीं होता था, ... खेत बाड़ी, पुरानी जमींदारी,...

अरे गुलबिया की चचिया सास ,.. उनके घर की नाउन, कभी तेल लगाने तो कभी गोड़ मींजने, इमरती नाम था,... और सब को मालूम था था की तेल कहाँ कहाँ लगता था,... और वो मुंह खोल के बताती भी थी, एक दिन में मेरी सास ने मजाक में मेरे सामने पूछ भी लिया हँसते हुए ओह बड़का औजार में तेल आज कल लगता है की नहीं, केतना बड़ा है,... तो जिस तरह बित्ता फैला के इमरतिया बोली की मेरा और मेरी सास दोनों का मुंह खुला रहा गया.



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और साथ में हंस के साफ़ भी कर दिया अरे मोटा कड़ियल काला नाग है सब बिल के बस का नहीं है।



तो जब सुगना गौने उतरी, तो एक दो रिश्ते की सूरजबली सिंह की भौजाईयो ने मजाक में पूछा भी,

" ये उजरिया अस बहुरिया केकरे लिए लाये हो अपने लिए की बेटवा के लिए. "
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और कौन वही हिना क महतारी, सबसे ज्यादा मजाक वही करती थीं सुगना के ससुर से, वो भी एकदम खुल कर, और ख्याल भी करतीं थी, सुगना के सास के जाने के बाद से तो और


" अरे भौजी तू तो भैया में ही उरझायी रहती हो, अब हमरो उमर हो गयी है,... तो बुढ़ापे के कोई तो ख्याल रखे, लड़का तो कमाए खाये जाएगा ही बाहर अब खेती में का रखा है, फिर पढाई लिखाई क का फायदा अगर,... " बाबू साहेब ने भी उसी तरह जवाब दिया,...

सुगना हाथ भर का घूंघट काढ़े थी, लेकिन डोली उतरती दुल्हिन के दस कान होते हैं, वरना ससुराल में एक दिन न निबट पाए। सुन भी लिया,.. समझ भी लिया ,... पूरा नहीं तो आधा तीहा।

और थोड़ा बहुत जो बचा था सुहाग की सेज चढ़ते उतरते,... कमरे में जाने के पहले सास क्या वही इमरतिया नाउन बोली,

" बहू सास तो हैं नहीं अब जो हैं तोहार ससुर है तो उन्ही क गोड़ छू के,... '


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सजी धजी सुगना जब गोड़ छूने गयी तो उसको उठा के, हल्का सा घूंघट उठा के ससुर बोले,...

" बहु कुछ परेशानी हो तो बिना झिझक हमें बताना अब तोहार सास तो है नहीं जो हैं हम है कोई कमी बेस हो, किसी चीज की जरूरत हो बस इशारा कर देना, मैं हूँ न,... "

गौने की रात भी बस वैसी रही,... कुछ खास नहीं।


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जो होता है वो हुआ, लेकिन दूल्हे को दुल्हिन से ज्यादा इस बात बताने में दिलचस्पी थी की उसे क़तर में बढ़िया नौकरी मिल गयी है, और कुछ दिन बाद ही उसे बंबई जाना है कागज बनवाने,... "

सुगना जब सबेरे कमरे से निकली, ... सबसे पहले ससुर दिखे और उन्होंने बहुरिया की आँखों में वो थकान नहीं देखी जो गौने के रात के बाद की होती है,... और खुद ही रोक के समझाते बोले,

" बहू कम बेसी होता है, सबके साथ,... लेकिन बस ये याद रखना मैं हूँ न, ... कोई चीज की जरूरत हो, कोई भी,... निसंकोच,.. कहने की भी जरूरत नहीं, बस इशारा काफी है, और ये घूंघट वून्घट हमसे नहीं अब तो तुझे मेरा ख्याल रखना है और मुझे तेरा "


सुगना समझ तो गयी, लेकिन गाँव भर की बड़ी, रिश्ते की सास,... काम वाली, पूरे गाँव में बांटती,... इसलिए ससुर के सामने अभी भी हाथ भर का घूंघट काढती, पर्दा करती, परछाईं तक बेराती। घर में एक काम वालियां रहती हीं, कूटना, पीसना, सबके सामने बहुत सम्हल कर, गांव क रीत रिवाज, तुरंत क गौने उतरी बहुरिया,

लेकिन अब ससुर के सामने वो किसी न किसी बहाने, भले ही परदे में,...

कभी चूड़ी खनकाती, कभी पायल झनकाती, कभी कभी आँचल लहराती।

अंगिया भी उसी डारे पर सूखने के लिए डालती जहाँ ससुर बैठते, और टांगती उतारती भी तभी जब ससुर जी आस पास ही हों.
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लेकिन सबसे खतरनाक काम उसने किया अपने मरद के जाते ही इमरतिया का घर में आना जाना बंद कर दिया,...


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डांट के हड़का के नहीं,... बल्कि प्यार से समझा के की अगल बगल की सास लोग पता नहीं का का कहती हैं वो भी उसकी सास की तरह ही है, लेकिन,..और एक बात जो कटाई में चार कट्टा, त्यौहार में साल में दो साड़ी, वो सब उसे उसी तरह मिलता रहेगा। बस एक बार लोगो का मुंह बंद हो जाये फिर,... इमरतिया ने ही उसे ससुर के बारे में सब कुछ बताया था, तो सुगना को ये भी लगता था की सब बातें ये घर घर जाके बांटेगी।
और असली चीज ससुर की भूख बढ़ेगी तो खुद ही बहू से मांगेगें, इमरतिया रहती है तो उनका काम चल जाता है. वो नहीं मिलेगी तो फिर फड़फड़ायेंगे और एक दिन सुगना के पास ही,...



और ससुर को खाने खिलाते उनका दिल भी टटोलती, आग लगाती, उकसाती,...


" भूखे मत रह जाइयेगा, वरना सोचियेगा की कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा। "
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और उसके बाद अँजोरिया अस चेहरा और दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखे उठा के देखती तो ससुर जी का टनटना उठता। एक दिन उनके मुंह से निकल गया,


" अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी ".


" अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, ..." हँसते हुए कटोरी में दही डालते वो बोली।
 
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सुगना और सुगना के ससुर

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और ससुर को खाने खिलाते उनका दिल भी टटोलती, आग लगाती, उकसाती,...

" भूखे मत रह जाइयेगा, वरना सोचियेगा की कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा। "

और उसके बाद अँजोरिया अस चेहरा और दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखे उठा के देखती तो ससुर जी का टनटना उठता।
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एक दिन उनके मुंह से निकल गया,

" अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी ".

" अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, ..." हँसते हुए कटोरी में दही डालते वो बोली।

और अपनी ओर से और जड़ दिया,

" मैं भूल नहीं सकती जिस दिन मैं आयी थी उस दिन आपने ही कहा था की बहू घर में तेरी सास नहीं है, जो कुछ मन करे कमी बेसी लगे दिल खोल के मांग लेना,... और मैं इतना खुश हुयी थी तो वही बात मैं आप से कह रही हूँ,... जो कुछ मन करे खुल के मांग लीजियेगा, बल्कि इशारा ही कर दीजिये, ... अब तो घर में हम ही आप है, एक दूसरे का सहारा,... "

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और यह कह कर के थाली लेकर रसोई में, .... हिम्मत कर के ससुर के मुंह से निकल गया,

" अगर मैंने कुछ उल्टा सीधा मांग लिया और तुम गुस्सा हो गयी तो... " वो तो हलके से बोले थे लेकिन नहीं दुल्हिन के कान,..दीवाल की उस पार की बात, बिन बोली मन की बात सुन लेती है।

और रसोई से ही खिलखिलाते हुए बहु ने जवाब दिया,

" अरे गुस्सा हो जाउंगी तो मना लीजियेगा, ये मत कहियेगा की मनाना नहीं आता आपको। और मैं झट्ट से मान भी जाउंगी, अगर गुस्सा भी हुयी पक्का "

अब इससे ज्यादा वो क्या लाइन क्लियर देती।


वो आग को खूब भड़काना चाहती थी लेकिन सुगना खुद भी तो सुलग रही थी और ख़ास तौर से जिस दिन माहवारी ख़त्म होती, बाल धोती वो,... और ससुर जी के सामने, वो भी समझ जाते, ...

तो उस दिन वही दिन था, सुगना सुलग रही रही थी सोच रही बहुत हुआ चोर सिपहिया,

और उस दिन ससुर जी की भी हालत ख़राब थी,... बाल धोने के बाद बहू जब आंगन में आयी थी अलग ही रूप छलक रहा था, चेहरे पे कैसी जबरदस्त प्यास थी । उन्हें मालूम नहीं था क्या की जिस दिन औरत की पांच दिन की छुट्टी खतम होती है वो कितना तड़पती है, सुगना की भी वही हालत थी ।

और उनकी भी, हालत कम खराब नहीं थी। साइड से कभी चोली से उसके उभरे जोबन देखते, एकदम कड़े कड़े बड़े बड़े, गौने जब से उतरी थी मरद का हाथ तो ढंग से लगा नहीं था जो मिस मिस के पिसान ( आटा ) कर देता, रोज गूंथता कस के, ... उनका मन करता की बस किसी दिन मिल जाये मुट्ठी में ये कस कस के रगडूंगा, मीसूँगा, एकदम तने हुए


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तो कभी पीछे मुड़ती तो बड़े चौड़े कूल्हे, और थिरकते हुए चलती तो बस, अब उनके बस का नहीं हो रहा था अपने को रोकना, उन्हें मालूम था अच्छी तरह, ऐसे कूल्हे वाली औरतें, बिस्तर पे कितनी गरम होती हैं मरद का पूरी तरह साथ देती हैं , हर धक्के के साथ नीचे से धक्का लगाती हैं, मन कर गया तो ऊपर चढ़ के खुद चोदती हैं,

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कित्ता मजा आये, बेचारी खुद भी तो प्यासी है, जिस के लिए लाये थे वो मेंहदी का रंग उतरने के पहले ही बंबई और फिर कतर,... और अब तो साफ़ बोलती है बाऊ जी आप लेते लेते थक जाइयेगा, मैं देते देते नहीं थकूँगी, अगर मैंने कुछ नहीं किया और किसी हरवाह, काम करने वाले के साथ, बहू मेरी ऐसी नहीं है फिर भी देह की आग,....

इमरतिया आती थी कभी एक दो दिन नागा कर के ही सही, उनका काम हो जाता था, और उम्र होने से क्या होता है न उनका शरीर बूढ़ा हो रहा था न मन, बल्कि जब से सुगना आयी थी मन और पागल हो रहा था।


आखिर उन्होंने कह ही दिया बिना सुगना से बोले,

" आज पैर में बहुत दर्द हो रहा है,... ससुरी इमरतिया भी बहुत दिन से आयी नहीं, मालिश कर देती तो,... " अपना दुःख खुद से कह रहे थे, तो सुगना बोल पड़ी

" तो मैं कर देती हूँ न मालिश, इमरतिया से ज्यादा ताकत है मेरी देह में"
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सुगना ने लाइफ टाइम ऑफर दे दिया।

" लेकिन बहू तू तो पर्दा करती है,... ससुर ने दुःख बताया।

" अरे आप भी न पर्दा इसलिए करती हूँ की आप को नहीं देखना चाहिए,... तो बस आप आँखे बंद कर लीजिये हो गया पर्दा,... अब तेल तो मैं साड़ी पहिन के लगाउंगी नहीं , कहीं तेल लग गया तो छूटेगा नहीं,.. हाँ बस आँख बंद किये रहिएगा "

वो आँखे बंद करके, तख़्त पर लेट गए, हो जाये जो होना हो,... बहू तेल कटोरी में गुनगुना करने गयी,... और लौटी तो देखा उसके पायल की झंकार सुनकर ससुर जी कनखियों से झाँक रहे हैं

वो जोर से खिलखिलाई,

" बाऊ जी बदमासी, बेईमानी नहीं चलेगी,... लेकिन मैं भी छोडूंगी नहीं, अब आपकी आँख में पट्टी बाँध देती हूँ, आप वैसे नहीं मानेगें,... किस चीज से बाँधू,... किस चीज से बांधू ,... हाँ ये ठीक रहेगा,... "

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सुगना बोली और डारे पर टंगी अपनी सूखती अंगिया उतारी और ससुर की आँखों पे

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" बहू इतना जोर मत लगा, इत्ता कस के नहीं " ससुर बोले, बहु की अंगिया का स्पर्श, मूसल चंद फनफना रहे थे ,

" देखिये में तो पूरा जोर लगाउंगी, आप इतनी बेईमानी करते हैं। और जब आप का नंबर आएगा तो आप भी पूरा जोर लगा दीजियेगा, कंजूसी मत करियेगा। मैं एकदम मना नहीं करुँगी हिसाब बराबर हो जाएगा। "

जाली वाली अंगिया, सब कुछ दिख रहा था छन छन कर के गोरा तन मस्ताया जोबन,



आराम से जैसे उनको दिखाते ललचाते सुगना ने साड़ी उतारी, सिर्फ छोटा सा लाल लाल खूब नुकीला, लो कट चोली,... और साड़ी मोड़ के गठरी जैसे बना के ससुर के सर के नीचे लगा दिया, उन्हें न भी दिखा हो तो पता चल जाये साड़ी उतर गयी है,... सर सर करती, ... और अपनी दो ऊँगली उनकी आँखों के सामने दिखा के बोली,...



" कितनी ऊँगली "




" सात " वो बोले,...
 
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तेल मालिश
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वो जोर से खिलखिलाई


" बाऊ जी बदमासी, बेईमानी नहीं चलेगी,... लेकिन मैं भी छोडूंगी नहीं, अब आपकी आँख में पट्टी बाँध देती हूँ, आप वैसे नहीं मानेगें,... किस चीज से बाँधू,... किस चीज से बांधू ,... हाँ ये ठीक रहेगा,... " सुगना बोली और डारे पर टंगी अपनी सूखती अंगिया उतारी और ससुर की आँखों पे

" बहू इतना जोर मत लगा, इत्ता कस के नहीं " ससुर बोले, बहु की अंगिया का स्पर्श, मूसल चंद फनफना रहे थे ,



" देखिये में तो पूरा जोर लगाउंगी, आप इतनी बेईमानी करते हैं। और जब आप का नंबर आएगा तो आप भी पूरा जोर लगा दीजियेगा, कंजूसी मत करियेगा। मैं एकदम मना नहीं करुँगी हिसाब बराबर हो जाएगा। "
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जाली वाली अंगिया, सब कुछ दिख रहा था छन छन कर के गोरा तन, मस्ताया जोबन,

आराम से जैसे उनको दिखाते ललचाते सुगना ने साड़ी उतारी,

सिर्फ छोटा सा लाल लाल खूब नुकीला, लो कट चोली,...

और साड़ी मोड़ के गठरी जैसे बना के ससुर के सर के नीचे लगा दिया, उन्हें न भी दिखा हो तो पता चल जाये साड़ी उतर गयी है,... सर सर करती, ...

और अपनी दो ऊँगली उनकी आँखों के सामने दिखा के बोली,...

" कितनी ऊँगली "

" सात " वो बोले,...

सही है अब पता चला की नहीं दिख रहा, सुगना हंस के बोली,... और अपनी तर्जनी और मंझली ऊँगली जोड़ के लम्बे छेद का निशान दिखा दिया ,

दिख तो उन्हें सब रहा था, और टेंसन उनके चेहरे से लग रहा था, पर सुगना तो आज बदमाशी पे आमादा थी, उसने एक शर्त और बता दी, ...

" हाँ एक बात और आप को मुझे छूना भी नहीं चाहिए, ... तो आप मुझे हाथ नहीं लगा सकते,... " वो खिलखिलाते बोली।

" लेकिन बिना छुए कैसे, होगा, ... तू कैसे मालिश करेगी " ससुर बिचारे चौके, उन्हें अपनी सब उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा था।

" अरे रोक आपके ऊपर है मेरे ऊपर नहीं, ... मैं हाथ क्या जो मेरी मर्जी होगी वो सब लगाउंगी,... और मेरी सास नहीं है तो उनकी जगह घर की मालकिन मैं ही हूँ,... और बहू के होते हुए आप अपना हाथ इस्तेमाल करें,... अच्छा लगता है क्या। "
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सुगना की हंसी खिलखिला के मोतियों की तरह फर्श पर बिखर गयी।

पहले पैरों पर बहू ने तेल लगाया, फिर हाथ पैरों की ओर बढ़ गया,... लेकिन थोड़ी देर आगे बढ़ के ही ठिठक गया, और सुगना अपने को कोसती बोली,

" मैं भी न बुरबक, तेल धोती में लग गया तो सुगना तुझे ही धोना पड़ेगा, "

और धोती की गाँठ खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, जैसी कोई लौंडा किसी माल के शलवार के नाड़े पर हाथ डाले और अपने आप उस माल का हाथ उसे रोकने, अपनी नाड़े की गाँठ बचाने,... बस एकदम उसी तरह सूरजबली सिंह का हाथ अपने आप,... सुगना के हाथ की ओर बढ़ा लेकिन बहुत जोर की डांट पड़ गयी, बहू की।

" मना किया था न, एक बार में समझते नहीं हाँ. मैंने क्या कहा था, अपना हाथ अपने पास रखिये, फिर भी, चुपचाप हाथ बाँध के रखिये"

फिर प्यार से सुगना समझाते बोली,

" काहें परेशांन है , अरे और कुछ नहीं करुँगी। सिर्फ धोती खोल रहूं जिससे तेल न लगे, जैसे अपनी साड़ी उतार दी। और नीचे कच्छा तो आप पहने ही हैं। चलिए वादा उसका, नाडा अपने से मैं नहीं खोलूंगी अभी,... फिर ब्याहता हूँ चार महीने हो गए गौने आये, मुझे भी मालूम है कच्छे के अंदर क्या होता है। न डरती हूँ न लजाती हूँ,... चुपचाप हाथ दूर रखिये, वरना जैसे अपनी अंगिया से आँख बांध दी है न वैसे पेटीकोट का नाड़ा खोल के हाथ दोनों भी बाँध दूंगी कस के. "
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हाथ हटाने के अलावा कोई चारा था भी क्या, उनके पास, ..आराम आराम से धोती खोल के तहिया के बगल में सुगना ने रख दिया और तेल लगाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर में हाथ घुटने के ऊपर पहुँच रहा था, और लगा भी बहुत ढंग से ताकत से,...

जवान औरत की देह बहुत दिन बाद छू रही थी, देह उसके ससुर की गिनगीना रही थी, अब सुगना को तो कुछ बोल नहीं सकते थे अपनी समधिन का नाम लेकर सुगना की महतारी को इशारा करके छेड़ा,..

" हमार समधिन लगता है कौन नाऊ के साथ सोई थीं जब गाभिन हुयी, तू पेट में आयी, तब ही इतनी बढ़िया मालिश सीखी हो "

सुगना काहें चुप रहती उसने भी अपनी महतारी के कंधे पर रख कर बंदूक चला दी,...


" अरे आपकी समधन होतीं तो जवाब देतीं, अपने दामाद की दादी और बुआ दोनों का हाल सुना देतीं की वो लोग किसके किसके साथ टांग उठाये हैं, की कहीं आपके समधिन के समधी के साथ ही तो नहीं,... "



और साथ ही में हाथ सरक के जाँघों के ऊपर कच्छे के अंदर
 
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सुगना की मालिश का जादू


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जवान औरत की देह बहुत दिन बाद छू रही थी, देह उसके ससुर की गिनगीना रही थी, अब सुगना को तो कुछ बोल नहीं सकते थे अपनी समधिन का नाम लेकर सुगना की महतारी को इशारा करके छेड़ा,..

" हमार समधिन लगता है कौन नाऊ के साथ सोई थीं जब गाभिन हुयी, तू पेट में आयी, तब ही इतनी बढ़िया मालिश सीखी हो "

सुगना काहें चुप रहती उसने भी अपनी महतारी के कंधे पर रख कर बंदूक चला दी,...

" अरे आपकी समधन होतीं तो जवाब देतीं, अपने दामाद की दादी और बुआ दोनों का हाल सुना देतीं की वो लोग किसके किसके साथ टांग उठाये हैं, की कहीं आपके समधिन के समधी के साथ ही तो नहीं,... "
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और साथ ही में हाथ सरक के जाँघों के ऊपर कच्छे के अंदर

लेकिन उसके नाखूनों ने बॉल्स को बस छू लिया और अब सुगना गिनगीना गयी।


उसकी माँ ने जब सुगना के जोबन आने ही शुरू हुए थे उसकी चोटी करते हुए अपनी बेटी को समझा दिया,

" लंबा मोटा से भी ज्यादा जरूरी है, मरद का चोदू होना, रगड़ रगड़ के चोदे, लड़की को बिना झाड़े फेचकुर न फेंके, और उसके लिए पता चलेगा उसके पेल्हड़ से दोनों रसगुल्लों से,... "
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" अरे कहीं लंबा मोटा भी हो साथ में तो,... " चोटी करवाते हुए सुगना ने अपनी माँ से पूछा। "


" अरे फिर तो कुछ भी करो, उसे छोड़ना नहीं चाहिए, कुछ भी करके पटाओ, मनाओ,... लेकिन कउनो मरद हो बहिन महतारी की गारी जरूर अच्छी लगती है, और उहो मेहरारू के मुंह से, देखो सादी बियाह में जब तक बरतीयंन क नाम ले लेके बहिन महतारी न गरियाओ,... "

माँ ने एक और गुर बताया,...

" अरे माँ सब के सब अपनी बहिन महतारी चोदना चाहते हैं तो सच में न सही तो गारिये में,... " खिलखिलाते हुए सुगना बोली।


अगली बार सुगना के नाख़ून ने बॉल्स को खरोच भी दिया और अब जैसे माँ ने बताया था वैसे ही बल्कि उससे भी दो हाथ आगे,... सुगना को अपने ससुर के नंबरी चोदू होने का अब बिसवास हो गया था. तेल लगी उँगलियों से सिर्फ बॉल्स को वो सहला रही थी, कभी हलके से चिकोटी भी काट लेती, और असर अब उसका मूसल पर भी हो रहा था, कच्छा तन रहा था,... और सुगना की आँखे फटी की फटी रह गयीं,...

तम्बू में बम्बू,...बड़ा कितना था, इमरतिया सही कहती थी, बित्ते से भी बड़ा, और उससे ज्यादा मोटा, सुगना के कलाई के बराबर या शायद ज्यादा ही हो


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ये बात सही थी की सुगना ने अपने मर्द के अलावा किसी और का नहीं देखा था,

लेकिन सबसे पहले उसकी माँ ने फिर मौसियों ने, भौजाइयों ने,...

हर ननद भौजाई से गौने की रात के बाद यही पूछती, और हर भौजाई ससुराल से गौने के बाद पहली बार मायके लड़की ननद से, कितना बड़ा,... लेकिन किसी ने भी ऐसा बड़ा,...

पर सुगना ने कच्छा नहीं खोला, हाँ अब तेल लगी उंगलिया कभी उस मूसल के बेस पर तेल लगातीं तो कभी अंगूठे से पकड़ के दबा देती, तो कभी अंगूठे को वहीँ बेस पे रगड़ देती। फिर एक ऊँगली सहलाते हुए असली चीज,...

कितना मोटा, जाएगा कैसे अंदर,... मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा था, ... और फिर सुगना को अपनी माँ की बचपन में दी गयी सीख याद आयी
छोटी थी पहली बार माहवारी हुयी थी तभी माँ ने समझाया था सुगना को,

" अरे मोटा पतला मत देखना, ... खाली पूरी ताकत से जांघ फैला देना, हाथ से पलंग क पाटी, जो भी पकड़ में आये पकड़ लेना,... आँख बंद,... बस पेलना मरद का काम है धकेलेगा, ठेलेगा, कोई मरद सामने छेद हो बिना घुसेड़े छोड़ता नहीं, स्कूल के लौंडो को तो छोड़ते नहीं,... आखिर एही हमरी बुरिया से तू निकली थी की नहीं, और तोहरे बिलिया से हमार नाती नतिनी सब निकलेंगे, कम से कम पांच,... तो कौन लंड केतनो मोट हो बच्चे से तो पतला ही होगा, तो जउन बुरिया से पूरी दुनिया निकली ओके मोट पातर से कौन डरे की जरूरत, हाँ मोट होगा कड़ा होगा लम्बा होगा तो मजा बहुत आएगा, लेकिन घुस सब जाते हैं अंदर। :"
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एक पल के लिए हदस गयी थी सुगना लेकिन माँ की बात यादे आते ही सिर्फ ऊँगली की टिप से वहां भी कभी तेल लगा देती जैसे कोई टीक रहा हो, फिर ऊँगली उस छेद पर जैसे गलती से छू गयी जिसके पानी के लिए हर औरत पागल रहती है,

पागल उसके ससुर भी हो रहे थे, इमरतिया ने कितनी बार हाथ लगाया था, लेकिन जवान दुल्हिन के हाथ का असर ही अलग है,.. और फिर जिस तरह से वो छू के ऊँगली हटा ले रही थी,...बस जान नहीं निकल रही थी,... लग रहा था फट जायेगा, इतने दिनों का रुका सब माल निकल जाएगा,... कोई और होता तो अबतक पटक के निहुरा के

सुगना ने अब रास्ता बदला, एक हाथ तो कच्छे के अंदर नीचे से सेंध लगा रहा था दूसरे ने ऊपर से,

और अबकी हिम्मत कर मुट्ठी में,... मुट्ठी में आ ही नहीं रहा था इतना फूला,...

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पलट जाइये, पेट के बल ,... पीछे कमर पर भी लगा देती हूँ,...

और अब बदमाशी बंद कर के उसके दोनों हाथो एकदम कुशल मालिश वाली की तरह दोनों कंधे पर से रगड़ते हुए रीढ़ की हड्डी के अंत तक बार बार, ... अब सच में रिलैक्स हो रहे थे वो क्या हाथ है,

लेकिन तभी उनके सर को थोड़ा और ऊपर उठा के बोली,

" ये भी लगा लीजिये सर में गड़ रहा होगा,... "

और सुगना के ब्लाउज की महक उनके नथुनों में भर गयी.

मतलब,... वो समझ नहीं पा रहे थे,...

लेकिन थोड़ी देर बाद खुद ही पता चल गया, सुगना झुक के पीठ पर तेल लगा रही थी जाने अनजाने उसके दूध के कटोरे,...




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पूरे नहीं बल्कि सिर्फ निपल उसके ससुर की पीठ को कभी कभी छू दे रहे थे, एकदम कड़े पत्थर से, और अब सुगना ने धीरे धीरे कच्छे को पीछे से सरकाना शुरू कर दिया, और तेल लगे हाथ जैसे अपने आप सरक के ससुर के दोनों नितम्बो पर, एकदम टाइट कड़े कड़े,...



उस दिन सुगना की चोटी करते हुए उसकी महतारी ने ये भी बताया था, सुन, मरद की कमर की ताकत का पता कैसे लगेगा, धक्का कितना जबरदस्त मारता है ,... और खुद ही बस आ रहे छोटे छोटे टिकोरों वाली अपनी एकलौती बेटी को, समझाया, मरद के चूतड़ से,...
और एकदम उसी तरह का चूतड़ था जैसे माई ने बताया था,... सुगना का रोम रोम सिहर उठा,... मरद चाहे जैसा रहा हो, अच्छा हुआ चला गया, अब असली मरद,... तो यही है, और एक बार कटोरी में तेल में तर्जनी बाएं हाथ की सुगना ने डुबोई अच्छी तरह,.. और नितम्बो की बस रीढ़ की हड्डी की जड़ से सरकते हुए सीधे नितम्बों के बीच की दरार में, ... जैसे गलती से छू गया हो,... लेकिन फिर दो बार तीन बार चार दरेरते, रगड़ते,...


और अब सुगना के जोबन खुल के उन की पीठ पे सरक रहे थे रगड़ रहे थे,...


जिन गोलाइयों को जब सुगना को पहली बार देखा था उन्होंने तभी से तोपे ढके ब्लाउज और अच्छे से ओढ़े गए आँचल के अंदर से भी, सोच के उनकी हालत खराब थी और वो आज एकदम खुल के उनकी पीठ पर रगड़ रहे थे,... अब वो सिसक रहे थे, देह कसमसा रहे थे,


सुगना ससुर की ये हालत देखकर मुस्करा रही थी. उसकी बाएं हाथ की ऊँगली जो पिछवाड़े की दरार के बीच दरेर रही थी,... कलाई की पूरी ताकत लगा के उसने ठेल दिया,... और एक पोर भी नहीं, मुश्किल से नाख़ून भर अंदर पिछवाड़े, और उसी के साथ दांया हाथ, सरक कर कच्छे के अंदर और अबकी खुल के सुगना ने ससुर के मूसल चंद को मुट्ठी में दबोच लिया, अंगूठे से कभी सुपाड़े को सहलाती कभी दबाती,... कभी बस रगड़ देती,...



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वो पेट के बल लेटे थे,...सुगना उनकी पीठ पर, कभी देह से देह सटा देती कभी हटा लेती,... और चिढ़ाते हुए बोली,

" आपकी समधिन तो पता नहीं का कहतीं, लेकिन एक बात मैं बोल सकती हूँ आपकी समधिन की ओर से,.. आपकी समधिन के एकलौते समधी की महतारी,... जरूर किसी गदहे घोडे के संग सोई होंगी, ... जो हमरे ससुर,... या पता नहीं कउनो पंचायत गर्भ केंद्र वाले सांड़ के पास,... "

और ये कहके सुगना ने मुठियाया तो नहीं लेकिन कभी पूरी ताकत से कस के दबा देती तो कभी ढीला छोड़ देती उस मूसल को, सुगना की कलाई से चौड़ा ही रहा होगा,...



थोड़ी देर बाद सुगना ने उन्हें सीधा किया, कच्छा भी ठीक किया, एकदम बांस की तरह खड़ा था तना, कच्छे के ऊपर से एक बार होंठ से फिर अपने दोनों जोबन से हलके से सहला के सुगना उठ गयी और बोली,


बस आप ऐसे ही रहिये, थोड़ी देर में तेल सूख जाएगा,... तबतक मैं खाना बना लेती हूँ,



खाना खिलाते हुए ससुर जी ने आज साफ़ साफ़ बोल ही दिया,

" तुमने तो मुझे भूखा ही छोड़ दिया "



सुगना ने अपने मन की बात बोल दी, " मेरा भी तो कब से उपवास चल रहा है, घबड़ाइये मत आज रात को दावत होगी, जिमियेगा छक कर.



रात को दावत हुयी। जम कर हुयी,
 
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komaalrani

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.चार दिन की चांदनी
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खाना खिलाते हुए ससुर जी ने आज साफ़ साफ़ बोल ही दिया,

" तुमने तो मुझे भूखा ही छोड़ दिया "

सुगना ने अपने मन की बात बोल दी, " मेरा भी तो कब से उपवास चल रहा है, घबड़ाइये मत आज रात को दावत होगी, जिमियेगा छक कर.

रात को दावत हुयी। जम कर .


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सुगना को लेकिन सुबह लगा उसके ऊपर से कोई रोड रोलर गुजर गया , असली सुहागरात तो आज ही हुयी, पूरी देह टूट रही थी। एक पल सोने का सवाल ही नहीं था. और जैसा सुहागिन का सिंगार होता है गाल पर , होंठ पर, जोबन पर दांत का निशान, नीचे मलाई छलक रही थी, सुबह ससुर ने ही उठाया, पकड़ कर , खुद चाय बना कर ले आये थे .

और उस दिन के बाद कोई दिन नागा नहीं गया, दिन में तो घूंघट काढ़े, ...
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कोई कूटने पीसने वाली, काम वाली होती तो उसके सामने,... एकदम


और जैसे ही अकेले तो बस,...


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पर छह सात महीने पहले परेशानी हो गयी, आंगन में काई लगी थी बारिश का मौसम था, सुगना कही बाहर पड़ोस में गयी थी, लौटी तो ससुर उसके फिसल के गिरे पड़े, सर में कमर में जम कर चोट लगी थी, दो महीने बिस्तर पर रहे, सुगना ने खूब सेवा की,... ठीक कुछ कुछ होगये,.. सहारा लेकर खड़े भी हो जाते हैं, ... अपना काम बाथरूम नहाना कर लेते हैं, पकड़ पकड़ के,...

लेकिन कमर की कोई ऐसी नस दब गयी,... की बस ससुर तो सहारा लेकर खड़े हो जाते हैं वो नहीं हो पाता,

सुगना ने पता किया कोई नीली गोली आती है लेकिन फिर डाकटर ने कहा की इनको ब्लड प्रेसर भी है तो बहुत हुआ तो महीने में एक बार इससे ज्यादा होने पर खतरा हो सकता है,...


तो जिस दिन माहवारी उसकी खतम होती है उस दिन वही नीली गोली खिला के, खुद ऊपर चढ़ के,... एक दो बार पानी निकाल देती है, और जहाँ रोज होता था वहां हफते दस दिन में एक दिन कभी हाथ से पकड़ के कभी मुंह में ले के पानी निकाल देती है।
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ससुर उससे खुद कहते हैं किसी और के साथ,... मन उसका भी करता है लेकिन,... इतनी आसानी से कौन,... और जहाँ नयी नयी लड़कियां टांग फैलाये खड़ी रहती हैं तो कौन लड़का,...




तो पिछले छह महीने से उपवास ही चल रहा था, तो कल कब्बडी में आयी तो सुगना को जब पता चला की कल देवरों की रगड़ाई होगी, गुलबिया ने एक बार सुगना को बोला तो वो झट से तैयार,...

मैंने सुगना से इशारे से पूछा, कितने देवर कितनी बार चुदी, पांचो ऊँगली फैला दी उसने,...



तभी सुगना की निगाह बंटी पर पड़ी, वो भी पश्चिम पट्टी पड़ोस की,...
 
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komaalrani

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सुगना और बंटी




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तो पिछले छह महीने से उपवास ही चल रहा था, तो कल कब्बडी में आयी तो सुगना को जब पता चला की कल देवरों की रगड़ाई होगी, गुलबिया ने एक बार सुगना को बोला तो वो झट से तैयार,...

मैंने सुगना से इशारे से पूछा, कितने देवर कितनी बार चुदी, पांचो ऊँगली फैला दी उसने,...

तभी सुगना की निगाह बंटी पर पड़ी, वो भी पश्चिम पट्टी पड़ोस की,...
जब मैंने सुगना से पूछा कहाँ से आ रही हो भौजी

तो बंटी को सुनाती बोली, " मूत कर के आ रही हूँ, पता नहीं था की ये यहाँ छुपा है नहीं तो ,...
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सुगना की बात मैंने पूरी की तो एकरे मुंह में मूत देती, अरे सुगना भौजी जो लगा हो वही चटा दीजिये, दो चार बूँद बची हो,..."

मेरी बात ख़तम होने के पहले ही सुगना दोनों जाँघे फैला के अपनी बुर अपने देवर बिट्टू के ऊपर चढ़ कर बुर सीधे उसके मुंह के ऊपर,...थोड़ी देर में बंटी खुद ही चाट रहा था,...


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लेकिन मेरी निगाह बंटी की जाँघों के बीच और देखते ही देखते उसका एकदम फिर से खड़ा हो गया, सुगना भी उधर ही देख रही थी, ... मुझे देख के मुस्कराने लगी।



तबतक मेरे कान में रेनू की आवाज पड़ी, " नयकी भौजी "

मैंने आगे का काम सुगना के हवाले कर दिया,... अरे तोहरी पट्टी क है तोहार पड़ोसी, देवर, तो लड़का से मर्द बनाने का काम अब सुगना भौजी तोहरे जिम्मे,
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" एकदम अब किसी दिन नहीं छोडूंगी इसको रोज,... और नयको तू जा रेनुवा चोकर रही है।" सुगना कस कस के अपनी गीली बुर बंटी के मुंह पे रगड़ती बोली।



मैं सुगना को बंटी के पास छोड़ कर रेनू के पास जहाँ बाकी भौजाई ननद और देवर थे, वहां आ गयी

लेकिन रेनू वहां नहीं थी,... किसी ने बोला की आपको ढूंढते बँसवाड़ी की ओर गयी है,... उधर तो बाग़ और गझिन थी, आम के साथ महुआ, पाकड़, और दो चार खूब पुरानी बँसवाड़ी, जल्दी उधर कोई नहीं आता था.

कहीं दिखी नहीं, हाँ उसकी कभी खिलखिलाहट कभी मुझे पुकारने की आवाज हलकी हलकी सुनाई दे रही थी। मैं बँसवाड़ी के झुरमुट के पास तक पहुंच गयी थी, पीछे बहुत घने पुराने दो पाकड़ के चार महुए के बहुत पुरना पेड़, महुए के फूलों की मादक महक आ रही थी, एकदम नशा सा हो रहा था,

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तभी पीछे से मुझे किसी ने दबोच लिया, बड़ी तगड़ी पकड़ थी, महक हलकी सी जानी पहचानी
 
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Shetan

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भाग ८२ -सुगना भौजी

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बंटी अलग होकर मेरे बगल में लेटा ही था की एक झाडी के पास से उठ के आती हुयी सुगना दिखी,... आज भौजाइयों में सबसे ज्यादा वही गरमाई थी, कोई सगा देवर था नहीं , मरद क़तर गया था,

गौने के कुछ दिन बाद ही तब से लौटा नहीं। पच्छिम पट्टी की,...

सुगना एकदम रस की जलेबी, वो भी चोटहिया, गुड़ की जलेबी, हरदम रस छलकता रहता, डेढ़ दो साल पहले ही गौने उतरी थी, जोबन कसमसाता रहता, चोली के भीतर जैसे अंगारे दहकते रहते, जैसी टाइट लो कट चोली पहनती सुगना भौजी, सीना उभार के चलतीं, जवान बूढ़ सब का फनफना जाता था, ... गौना उतरने के कुछ दिन बाद ही मरद कमाने चला गया, क़तर, दुबई कहीं, सास थीं नहीं। ननद बियाहिता। घर में खाली सुगना और उसके ससुर।
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गौने में दुल्हिन उतारने, परछन करने भी, वही हिना क महतारी, और मेरी सास, पठान टोली एकदम पच्छिम पट्टी से चिपकी, और हिना की महतारी तो सुगना के ससुर की मुंहबोली भौजी, सगी भौजी से बढ़कर,


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तो बस वो, मेरी सास और एक दो औरतें और गाँव की गयी थीं दुल्हिन उतारने।

, , गोरी अँजोरिया अस नमक जबरदस्त और जबान में वैसे ही जबरदस्त,... जोबन का तो पूछना नहीं,...सुगना



लोग कहते हैं, लोग क्या हमारी सास खुदे कहती है , ... बाबू सूरजबली सिंह, सुगना के ससुर,... एकदम लहीम सहिम, जबरदस्त मर्द उमर तो पचास पार कर गयी थी लेकिन ताकत में जवान मात,.. सुगना की सास सुगना के गौने उतरने के साल भर पहले ही ऊपर चली गयी थी,.. लेकिन बाबू साहेब का नागा नहीं होता था, ... खेत बाड़ी, पुरानी जमींदारी,...

अरे गुलबिया की चचिया सास ,.. उनके घर की नाउन, कभी तेल लगाने तो कभी गोड़ मींजने, इमरती नाम था,... और सब को मालूम था था की तेल कहाँ कहाँ लगता था,... और वो मुंह खोल के बताती भी थी, एक दिन में मेरी सास ने मजाक में मेरे सामने पूछ भी लिया हँसते हुए ओह बड़का औजार में तेल आज कल लगता है की नहीं, केतना बड़ा है,... तो जिस तरह बित्ता फैला के इमरतिया बोली की मेरा और मेरी सास दोनों का मुंह खुला रहा गया.



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और साथ में हंस के साफ़ भी कर दिया अरे मोटा कड़ियल काला नाग है सब बिल के बस का नहीं है।



तो जब सुगना गौने उतरी, तो एक दो रिश्ते की सूरजबली सिंह की भौजाईयो ने मजाक में पूछा भी,

" ये उजरिया अस बहुरिया केकरे लिए लाये हो अपने लिए की बेटवा के लिए. "
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और कौन वही हिना क महतारी, सबसे ज्यादा मजाक वही करती थीं सुगना के ससुर से, वो भी एकदम खुल कर, और ख्याल भी करतीं थी, सुगना के सास के जाने के बाद से तो और


" अरे भौजी तू तो भैया में ही उरझायी रहती हो, अब हमरो उमर हो गयी है,... तो बुढ़ापे के कोई तो ख्याल रखे, लड़का तो कमाए खाये जाएगा ही बाहर अब खेती में का रखा है, फिर पढाई लिखाई क का फायदा अगर,... " बाबू साहेब ने भी उसी तरह जवाब दिया,...

सुगना हाथ भर का घूंघट काढ़े थी, लेकिन डोली उतरती दुल्हिन के दस कान होते हैं, वरना ससुराल में एक दिन न निबट पाए। सुन भी लिया,.. समझ भी लिया ,... पूरा नहीं तो आधा तीहा।

और थोड़ा बहुत जो बचा था सुहाग की सेज चढ़ते उतरते,... कमरे में जाने के पहले सास क्या वही इमरतिया नाउन बोली,

" बहू सास तो हैं नहीं अब जो हैं तोहार ससुर है तो उन्ही क गोड़ छू के,... '


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सजी धजी सुगना जब गोड़ छूने गयी तो उसको उठा के, हल्का सा घूंघट उठा के ससुर बोले,...

" बहु कुछ परेशानी हो तो बिना झिझक हमें बताना अब तोहार सास तो है नहीं जो हैं हम है कोई कमी बेस हो, किसी चीज की जरूरत हो बस इशारा कर देना, मैं हूँ न,... "

गौने की रात भी बस वैसी रही,... कुछ खास नहीं। जो होता है वो हुआ, लेकिन दूल्हे को दुल्हिन से ज्यादा इस बात बताने में दिलचस्पी थी की उसे क़तर में बढ़िया नौकरी मिल गयी है, और कुछ दिन बाद ही उसे बंबई जाना है कागज बनवाने,... " सुगना जब सबेरे कमरे से निकली, ... सबसे पहले ससुर दिखे और उन्होंने बहुरिया की आँखों में वो थकान नहीं देखी जो गौने के रात के बाद की होती है,... और खुद ही रोक के समझाते बोले,

" बहू कम बेसी होता है, सबके साथ,... लेकिन बस ये याद रखना मैं हूँ न, ... कोई चीज की जरूरत हो, कोई भी,... निसंकोच,.. कहने की भी जरूरत नहीं, बस इशारा काफी है, और ये घूंघट वून्घट हमसे नहीं अब तो तुझे मेरा ख्याल रखना है और मुझे तेरा "


सुगना समझ तो गयी, लेकिन गाँव भर की बड़ी, रिश्ते की सास,... काम वाली, पूरे गाँव में बांटती,... इसलिए ससुर के सामने अभी भी हाथ भर का घूंघट काढती, पर्दा करती, परछाईं तक बेराती। घर में एक काम वालियां रहती हीं, कूटना, पीसना, सबके सामने बहुत सम्हल कर, गांव क रीत रिवाज, तुरंत क गौने उतरी बहुरिया,

लेकिन अब ससुर के सामने वो किसी न किसी बहाने, भले ही परदे में,... कभी चूड़ी खनकाती, कभी पायल झनकाती, कभी कभी आँचल लहराती। अंगिया भी उसी डारे पर सूखने के लिए डालती जहाँ ससुर बैठते, और टांगती उतारती भी तभी जब ससुर जी आस पास ही हों.

लेकिन सबसे खतरनाक काम उसने किया अपने मरद के जाते ही इमरतिया का घर में आना जाना बंद कर दिया,... डांट के हड़का के नहीं,... बल्कि प्यार से समझा के की अगल बगल की सास लोग पता नहीं का का कहती हैं वो भी उसकी सास की तरह ही है, लेकिन,..और एक बात जो कटाई में चार कट्टा, त्यौहार में साल में दो साड़ी, वो सब उसे उसी तरह मिलता रहेगा। बस एक बार लोगो का मुंह बंद हो जाये फिर,... इमरतिया ने ही उसे ससुर के बारे में सब कुछ बताया था, तो सुगना को ये भी लगता था की सब बातें ये घर घर जाके बांटेगी।



और ससुर को खाने खिलाते उनका दिल भी टटोलती, आग लगाती, उकसाती,...


" भूखे मत रह जाइयेगा, वरना सोचियेगा की कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा। "

और उसके बाद अँजोरिया अस चेहरा और दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखे उठा के देखती तो ससुर जी का टनटना उठता। एक दिन उनके मुंह से निकल गया,

" अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी ".


" अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, ..." हँसते हुए कटोरी में दही डालते वो बोली।
वाह री सुगना. तूने कब कोमरिया के बाउजी का खुटा देख लिया. चस्लो रिश्ते मै देवर लगे तो फागुन भी लगा ही होगा.

पर पति गइल प्रदेश. तो खाना तो ससुर को तू ही परोसेगी. देख लो सुगना के ससुर. तुम लेते थक जाओगे. वो देते ना थकेगी.

जबरदस्त कोमलजी. मान गए. पहेली बार आप की कलम से. ससुर बहु. वाह.

इस पोस्ट मे बहोत सारे जबरदस्त डायलॉग है. जो पढ़ने मे माझा दे रहे है. शारारत का लेवल अप


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Shetan

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सुगना और सुगना के ससुर

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और ससुर को खाने खिलाते उनका दिल भी टटोलती, आग लगाती, उकसाती,...

" भूखे मत रह जाइयेगा, वरना सोचियेगा की कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा। "

और उसके बाद अँजोरिया अस चेहरा और दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखे उठा के देखती तो ससुर जी का टनटना उठता।
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एक दिन उनके मुंह से निकल गया,

" अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी ".

" अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, ..." हँसते हुए कटोरी में दही डालते वो बोली।

और अपनी ओर से और जड़ दिया,

" मैं भूल नहीं सकती जिस दिन मैं आयी थी उस दिन आपने ही कहा था की बहू घर में तेरी सास नहीं है, जो कुछ मन करे कमी बेसी लगे दिल खोल के मांग लेना,... और मैं इतना खुश हुयी थी तो वही बात मैं आप से कह रही हूँ,... जो कुछ मन करे खुल के मांग लीजियेगा, बल्कि इशारा ही कर दीजिये, ... अब तो घर में हम ही आप है, एक दूसरे का सहारा,... "

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और यह कह कर के थाली लेकर रसोई में, .... हिम्मत कर के ससुर के मुंह से निकल गया,

" अगर मैंने कुछ उल्टा सीधा मांग लिया और तुम गुस्सा हो गयी तो... " वो तो हलके से बोले थे लेकिन नहीं दुल्हिन के कान,..दीवाल की उस पार की बात, बिन बोली मन की बात सुन लेती है।

और रसोई से ही खिलखिलाते हुए बहु ने जवाब दिया,

" अरे गुस्सा हो जाउंगी तो मना लीजियेगा, ये मत कहियेगा की मनाना नहीं आता आपको। और मैं झट्ट से मान भी जाउंगी, अगर गुस्सा भी हुयी पक्का "

अब इससे ज्यादा वो क्या लाइन क्लियर देती।


वो आग को खूब भड़काना चाहती थी लेकिन सुगना खुद भी तो सुलग रही थी और ख़ास तौर से जिस दिन माहवारी ख़त्म होती, बाल धोती वो,... और ससुर जी के सामने, वो भी समझ जाते, ... तो उस दिन वही दिन था, सुगना सुलग रही रही थी सोच रही बहुत हुआ चोर सिपहिया, और उस दिन ससुर जी की भी हालत ख़राब थी,... बाल धोने के बाद बहू जब आंगन में आयी थी अलग ही रूप छलक रहा था, चेहरे पे कैसी जबरदस्त प्यास थ। उन्हें मालूम नहीं था क्या की जिस दिन औरत की पांच दिन की छुट्टी खतम होती है वो कितना तड़पती है, सुगना की भी वही हालत थ। और उनकी भी साइड से कभी चोली से उसके उभरे जोबन देखते, तो कभी पीछे मुड़ती तो बड़े चौड़े कूल्हे, और थिरकते हुए चलती तो बस, अब उनके बस का नहीं हो रहा था अपने को रोकना, इमरतिया आती थी कभी एक दो दिन नागा कर के ही सही, उनका काम हो जाता था, और उम्र होने से क्या होता है न उनका शरीर बूढ़ा हो रहा था न मन, बल्कि जब से सुगना आयी थी मन और पागल हो रहा था।


आखिर उन्होंने कह ही दिया बिना सुगना से बोले,

" आज पैर में बहुत दर्द हो रहा है,... ससुरी इमरतिया भी बहुत दिन से आयी नहीं, मालिश कर देती तो,... " अपना दुःख खुद से कह रहे थे, तो सुगना बोल पड़ी

" तो मैं कर देती हूँ न मालिश, इमरतिया से ज्यादा ताकत है मेरी देह में"


सुगना ने लाइफ टाइम ऑफर दे दिया।

" लेकिन बहू तू तो पर्दा करती है,... ससुर ने दुःख बताया।

" अरे आप भी न पर्दा इसलिए करती हूँ की आप को नहीं देखना चाहिए,... तो बस आप आँखे बंद कर लीजिये हो गया पर्दा,... अब तेल तो मैं साड़ी पहिन के लगाउंगी नहीं , कहीं तेल लग गया तो छूटेगा नहीं,.. हाँ बस आँख बंद किये रहिएगा "

वो आँखे बंद करके, तख़्त पर लेट गए, हो जाये जो होना हो,... बहू तेल कटोरी में गुनगुना करने गयी,... और लौटी तो देखा उसके पायल की झंकार सुनकर ससुर जी कनखियों से झाँक रहे हैं

वो जोर से खिलखिलाई,

" बाऊ जी बदमासी, बेईमानी नहीं चलेगी,... लेकिन मैं भी छोडूंगी नहीं, अब आपकी आँख में पट्टी बाँध देती हूँ, आप वैसे नहीं मानेगें,... किस चीज से बाँधू,... किस चीज से बांधू ,... हाँ ये ठीक रहेगा,... " सुगना बोली और डारे पर टंगी अपनी सूखती अंगिया उतारी और ससुर की आँखों पे

" बहू इतना जोर मत लगा, इत्ता कस के नहीं " ससुर बोले, बहु की अंगिया का स्पर्श, मूसल चंद फनफना रहे थे ,

" देखिये में तो पूरा जोर लगाउंगी, आप इतनी बेईमानी करते हैं। और जब आप का नंबर आएगा तो आप भी पूरा जोर लगा दीजियेगा, कंजूसी मत करियेगा। मैं एकदम मना नहीं करुँगी हिसाब बराबर हो जाएगा। "

जाली वाली अंगिया, सब कुछ दिख रहा था छन छन कर के गोरा तन मस्ताया जोबन,



आराम से जैसे उनको दिखाते ललचाते सुगना ने साड़ी उतारी, सिर्फ छोटा सा लाल लाल खूब नुकीला, लो कट चोली,... और साड़ी मोड़ के गठरी जैसे बना के ससुर के सर के नीचे लगा दिया, उन्हें न भी दिखा हो तो पता चल जाये साड़ी उतर गयी है,... सर सर करती, ... और अपनी दो ऊँगली उनकी आँखों के सामने दिखा के बोली,...



" कितनी ऊँगली "




" सात " वो बोले,...

अरे चाहे कोउ होय. भूखा रखना तो पाप है. तो क्या हुआ जब ससुर है तो.
कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा। "


ये लो. बड़ी जोर की लगी फिर भी मांग नहीं रहे. अरे बहुरिया है तो क्या हुआ

अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी


देखा कितना बड़ा दिल है बहुरिया का. आप भी ना सुगना के ससुर जी.

जो कुछ मन करे खुल के मांग लीजियेगा, बल्कि इशारा ही कर दीजिये, ... अब तो घर में हम ही आप है, एक दूसरे का सहारा,... "
अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, .


लो हिम्मत करो. अरे बोलो भी कुछ सुगना के ससुरजी.

अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी "


देखा अब बोलो. कहा मिलेगी ऐसे बड़े दिल वाली बहुरिया. अब बोलो.

अरे गुस्सा हो जाउंगी तो मना लीजियेगा, ये मत कहियेगा की मनाना नहीं आता आपको। और मैं झट्ट से मान भी जाउंगी, अगर गुस्सा भी हुयी पक्का "

आखिर तुम्हारी अपनी बहु है. आज सेवा करवा ही लो. सुगना के ससुर जी.

आज पैर में बहुत दर्द हो रहा है,... ससुरी इमरतिया भी बहुत दिन से आयी नहीं, मालिश कर देती तो,.


देखा कितनी समजदार बहुरिया है. वाह री सुगना. अब पकड़ ले.
अरे मै तेरे मरद के गॉड की बात कर रही हु.
लेकिन बहू तू तो पर्दा करती है,... ससुर ने दुःख बताया।

" अरे आप भी न पर्दा इसलिए करती हूँ की आप को नहीं देखना चाहिए,... तो बस आप आँखे बंद कर लीजिये हो गया पर्दा,

आंखे बंद कीजिये सुगना उठा री घुंघट. और देख ले बाउजी का........ गोड़.

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जबरदस्त इरोटिक. सोच से बिलकुल परे. कभी सोचा नहीं था की आप ये भी लिखोगी. मरद कतार और ससुर भतार. माझा आ गया.
 

Shetan

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तेल मालिश


" लेकिन बहू तू तो पर्दा करती है,... ससुर ने दुःख बताया।

" अरे आप भी न पर्दा इसलिए करती हूँ की आप को नहीं देखना चाहिए,... तो बस आप आँखे बंद कर लीजिये हो गया पर्दा,... अब तेल तो मैं साड़ी पहिन के लगाउंगी नहीं , कहीं तेल लग गया तो छूटेगा नहीं,.. हाँ बस आँख बंद किये रहिएगा "

वो आँखे बंद करके, तख़्त पर लेट गए, हो जाये जो होना हो,... बहू तेल कटोरी में गुनगुना करने गयी,... और लौटी तो देखा उसके पायल की झंकार सुनकर ससुर जी कनखियों से झाँक रहे हैं

वो जोर से खिलखिलाई


" बाऊ जी बदमासी, बेईमानी नहीं चलेगी,... लेकिन मैं भी छोडूंगी नहीं, अब आपकी आँख में पट्टी बाँध देती हूँ, आप वैसे नहीं मानेगें,... किस चीज से बाँधू,... किस चीज से बांधू ,... हाँ ये ठीक रहेगा,... " सुगना बोली और डारे पर टंगी अपनी सूखती अंगिया उतारी और ससुर की आँखों पे

" बहू इतना जोर मत लगा, इत्ता कस के नहीं " ससुर बोले, बहु की अंगिया का स्पर्श, मूसल चंद फनफना रहे थे ,



" देखिये में तो पूरा जोर लगाउंगी, आप इतनी बेईमानी करते हैं। और जब आप का नंबर आएगा तो आप भी पूरा जोर लगा दीजियेगा, कंजूसी मत करियेगा। मैं एकदम मना नहीं करुँगी हिसाब बराबर हो जाएगा। "

जाली वाली अंगिया, सब कुछ दिख रहा था छन छन कर के गोरा तन मस्ताया जोबन,

आराम से जैसे उनको दिखाते ललचाते सुगना ने साड़ी उतारी, सिर्फ छोटा सा लाल लाल खूब नुकीला, लो कट चोली,... और साड़ी मोड़ के गठरी जैसे बना के ससुर के सर के नीचे लगा दिया, उन्हें न भी दिखा हो तो पता चल जाये साड़ी उतर गयी है,... सर सर करती, ... और अपनी दो ऊँगली उनकी आँखों के सामने दिखा के बोली,...

" कितनी ऊँगली "

" सात " वो बोले,...

सही है अब पता चला की नहीं दिख रहा, सुगना हंस के बोली,... और अपनी तर्जनी और मंझली ऊँगली जोड़ के लम्बे छेद का निशान दिखा दिया ,

दिख तो उन्हें सब रहा था, और टेंसन उनके चेहरे से लग रहा था, पर सुगना तो आज बदमाशी पे आमादा थी, उसने एक शर्त और बता दी, ...

" हाँ एक बात और आप को मुझे छूना भी नहीं चाहिए, ... तो आप मुझे हाथ नहीं लगा सकते,... " वो खिलखिलाते बोली।

" लेकिन बिना छुए कैसे, होगा, ... तू कैसे मालिश करेगी " ससुर बिचारे चौके, उन्हें अपनी सब उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा था।

" अरे रोक आपके ऊपर है मेरे ऊपर नहीं, ... मैं हाथ क्या जो मेरी मर्जी होगी वो सब लगाउंगी,... और मेरी सास नहीं है तो उनकी जगह घर की मालकिन मैं ही हूँ,... और बहू के होते हुए आप अपना हाथ इस्तेमाल करें,... अच्छा लगता है क्या। "

सुगना की हंसी खिलखिला के मोतियों की तरह फर्श पर बिखर गयी।

पहले पैरों पर बहू ने तेल लगाया, फिर हाथ पैरों की ओर बढ़ गया,... लेकिन थोड़ी देर आगे बढ़ के ही ठिठक गया, और सुगना अपने को कोसती बोली,

" मैं भी न बुरबक, तेल धोती में लग गया तो सुगना तुझे ही धोना पड़ेगा, "

और धोती की गाँठ खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, जैसी कोई लौंडा किसी माल के शलवार के नाड़े पर हाथ डाले और अपने आप उस माल का हाथ उसे रोकने हूँ न लजाती हूँ अपनी नाड़े की गाँठ बचाने,... बस एकदम उसी तरह सूरजबली सिंह का हाथ अपने आप,... सुगना के हाथ की ओर बढ़ा लेकिन बहुत जोर की डांट पड़ गया।

" मना किया था न, एक बार में समझते नहीं हाँ. मैंने क्या कहा था, अपना हाथ अपने पास रखिये, फिर भी, चुपचाप हाथ बाँध के रखिये"

फिर प्यार से सुगना समझाते बोली,

" काहें परेशांन है , अरे और कुछ नहीं करुँगी। सिर्फ धोती खोल रहूं जिससे तेल न लगे, जैसे अपनी साड़ी उतार दी। और नीचे कच्छा तो आप पहने ही हैं। चलिए वादा उसका नाडा अपने से मैं नहीं खोलूंगी अभी,... फिर ब्याहता हूँ चार महीने हो गए गौने आये, मुझे भी मालूम है कच्छे के अंदर क्या होता है। न डरती हूँ न लजाती हूँ,... चुपचाप हाथ दूर रखिये, वरना जैसे अपनी अंगिया से आँख बांध दी है न वैसे पेटीकोट का नाड़ा खोल के हाथ दोनों भी बाँध दूंगी कस के. "

हाथ हटाने के अलावा कोई चारा था भी क्या, उनके पास, ..आराम आराम से धोती खोल के तहिया के बगल में सुगना ने रख दिया और तेल लगाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर में हाथ घुटने के ऊपर पहुँच रहा था, और लगा भी बहुत ढंग से ताकत से,...

जवान औरत की देह बहुत दिन बाद छू रही थी, देह उसके ससुर की गिनगीना रही थी, अब सुगना को तो कुछ बोल नहीं सकते थे अपनी समधिन का नाम लेकर सुगना की महतारी को इशारा करके छेड़ा,..

" हमार समधिन लगता है कौन नाऊ के साथ सोई थीं जब गाभिन हुयी, तू पेट में आयी, तब ही इतनी बढ़िया मालिश सीखी हो "

सुगना काहें चुप रहती उसने भी अपनी महतारी के कंधे पर रख कर बंदूक चला दी,... " अरे आपकी समधन होतीं तो जवाब देतीं, अपने दामाद की दादी और बुआ दोनों का हाल सुना देतीं की वो लोग किसके किसके साथ टांग उठाये हैं, की कहीं आपके समधिन के समधी के साथ ही तो नहीं,... "

और साथ ही में हाथ सरक के जाँघों के ऊपर कच्छे के अंदर

पूरा के पूरा अपडेट ही जबरदस्त है. मै क्या क्या नोट करुँगी. पर जबरदस्त तेल मालिश. और शारारत की तो कोई लिमिट ही नहीं है. वाह री सुगना. मान गए तुझे भी. देवर और ससुर मे कोई फर्क ही नहीं. पूरा स्वाद लेकर मज़ाक कर रही है. एकदम इठलाकर. ससुर के ही आँखों पर पट्टी. खुद देखेगी. उन्हें नहीं दिखाएगी. और हाथ बाँधने की धमकी भी बड़े प्यार से दी है. आखिर मे ससुर बहु मे जो माज़क किया जबरदस्त.

कहीं आपके समधिन के समधी के साथ ही तो नहीं,... "

देखा बड़ी चंचल बहुरिया है हमारी सुगना.


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Shetan

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सुगना की मालिश का जादू




जवान औरत की देह बहुत दिन बाद छू रही थी, देह उसके ससुर की गिनगीना रही थी, अब सुगना को तो कुछ बोल नहीं सकते थे अपनी समधिन का नाम लेकर सुगना की महतारी को इशारा करके छेड़ा,..

" हमार समधिन लगता है कौन नाऊ के साथ सोई थीं जब गाभिन हुयी, तू पेट में आयी, तब ही इतनी बढ़िया मालिश सीखी हो "

सुगना काहें चुप रहती उसने भी अपनी महतारी के कंधे पर रख कर बंदूक चला दी,...

" अरे आपकी समधन होतीं तो जवाब देतीं, अपने दामाद की दादी और बुआ दोनों का हाल सुना देतीं की वो लोग किसके किसके साथ टांग उठाये हैं, की कहीं आपके समधिन के समधी के साथ ही तो नहीं,... "

और साथ ही में हाथ सरक के जाँघों के ऊपर कच्छे के अंदर

लेकिन उसके नाखूनों ने बॉल्स को बस छू लिया और अब सुगना गिनगीना गयी।


उसकी माँ ने जब सुगना के जोबन आने ही शुरू हुए थे उसकी चोटी करते हुए अपनी बेटी को समझा दिया,

" लंबा मोटा से भी ज्यादा जरूरी है, मरद का चोदू होना, रगड़ रगड़ के चोदे, लड़की को बिना झाड़े फेचकुर न फेंके, और उसके लिए पता चलेगा उसके पेल्हड़ से दोनों रसगुल्लों से,... "

" अरे कहीं लंबा मोटा भी हो साथ में तो,... " चोटी करवाते हुए सुगना ने अपनी माँ से पूछा। "


" अरे फिर तो कुछ भी करो, उसे छोड़ना नहीं चाहिए, कुछ भी करके पटाओ, मनाओ,... लेकिन कउनो मरद हो बहिन महतारी की गारी जरूर अच्छी लगती है, और उहो मेहरारू के मुंह से, देखो सादी बियाह में जब तक बरतीयंन क नाम ले लेके बहिन महतारी न गरियाओ,... "

माँ ने एक और गुर बताया,...

" अरे माँ सब के सब अपनी बहिन महतारी चोदना चाहते हैं तो सच में न सही तो गारिये में,... " खिलखिलाते हुए सुगना बोली।


अगली बार सुगना के नाख़ून ने बॉल्स को खरोच भी दिया और अब जैसे माँ ने बताया था वैसे ही बल्कि उससे भी दो हाथ आगे,... सुगना को अपने ससुर के नंबरी चोदू होने का अब बिसवास हो गया था. तेल लगी उँगलियों से सिर्फ बॉल्स को वो सहला रही थी, कभी हलके से चिकोटी भी काट लेती, और असर अब उसका मूसल पर भी हो रहा था, कच्छा तन रहा था,... और सुगना की आँखे फटी की फटी रह गयीं,... तम्बू में बम्बू,...


ये बात सही थी की सुगना ने अपने मर्द के अलावा किसी और का नहीं देखा था,

लेकिन सबसे पहले उसकी माँ ने फिर मौसियों ने, भौजाइयों ने,...

हर ननद भौजाई से गौने की रात के बाद यही पूछती, और हर भौजाई ससुराल से गौने के बाद पहली बार मायके लड़की ननद से, कितना बड़ा,... लेकिन किसी ने भी ऐसा बड़ा,...

पर सुगना ने कच्छा नहीं खोला, हाँ अब तेल लगी उंगलिया कभी उस मूसल के बेस पर तेल लगातीं तो कभी अंगूठे से पकड़ के दबा देती, तो कभी अंगूठे को वहीँ बेस पे रगड़ देती। फिर एक ऊँगली सहलाते हुए असली चीज,...कितना मोटा, जाएगा कैसे अंदर,... मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा था, ...


छोटी थी पहली बार माहवारी हुयी थी तभी माँ ने समझाया था सुगना को,

" अरे मोटा पतला मत देखना, ... खाली पूरी ताकत से जांघ फैला देना, हाथ से पलंग क पाटी, जो भी पकड़ में आये पकड़ लेना,... आँख बंद,... बस पेलना मरद का काम है धकेलेगा, ठेलेगा, कोई मरद सामने छेद हो बिना घुसेड़े छोड़ता नहीं, स्कूल के लौंडो को तो छोड़ते नहीं,... "

एक पल के लिए हदस गयी थी सुगना लेकिन माँ की बात यादे आते ही सिर्फ ऊँगली की टिप से वहां भी कभी तेल लगा देती जैसे कोई टीक रहा हो, फिर ऊँगली उस छेद पर जैसे गलती से छू गयी जिसके पानी के लिए हर औरत पागल रहती है,

पागल उसके ससुर भी हो रहे थे, इमरतिया ने कितनी बार हाथ लगाया था, लेकिन जवान दुल्हिन के हाथ का असर ही अलग है,.. और फिर जिस तरह से वो छू के ऊँगली हटा ले रही थी,...बस जान नहीं निकल रही थी,... लग रहा था फट जायेगा, इतने दिनों का रुका सब माल निकल जाएगा,... कोई और होता तो अबतक पटक के निहुरा के

सुगना ने अब रास्ता बदला, एक हाथ तो कच्छे के अंदर नीचे से सेंध लगा रहा था दूसरे ने ऊपर से,

और अबकी हिम्मत कर मुट्ठी में,... मुट्ठी में आ ही नहीं रहा था इतना फूला,...

पलट जाइये, पेट के बल ,... पीछे कमर पर भी लगा देती हूँ,...

और अब बदमाशी बंद कर के उसके दोनों हाथो एकदम कुशल मालिश वाली की तरह दोनों कंधे पर से रगड़ते हुए रीढ़ की हड्डी के अंत तक बार बार, ... अब सच में रिलैक्स हो रहे थे वो क्या हाथ है,

लेकिन तभी उनके सर को थोड़ा और ऊपर उठा के बोली,

" ये भी लगा लीजिये सर में गड़ रहा होगा,... "

और सुगना के ब्लाउज की महक उनके नथुनों में भर गयी.

मतलब,... वो समझ नहीं पा रहे थे,...

लेकिन थोड़ी देर बाद खुद ही पता चल गया, सुगना झुक के पीठ पर तेल लगा रही थी जाने अनजाने उसके दूध के कटोरे,... पूरे नहीं बल्कि सिर्फ निपल उसके ससुर की पीठ को कभी कभी छू दे रहे थे, एकदम कड़े पत्थर से, और अब सुगना ने धीरे धीरे कच्छे को पीछे से सरकाना शुरू कर दिया, और तेल लगे हाथ जैसे अपने आप सरक के ससुर के दोनों नितम्बो पर, एकदम टाइट कड़े कड़े,...



उस दिन सुगना की चोटी करते हुए उसकी महतारी ने ये भी बताया था, सुन, मरद की कमर की ताकत का पता कैसे लगेगा, धक्का कितना जबरदस्त मारता है ,... और खुद ही बस आ रहे छोटे छोटे टिकोरों वाली अपनी एकलौती बेटी को, समझाया, मरद के चूतड़ से,...
और एकदम उसी तरह का चूतड़ था जैसे माई ने बताया था,... सुगना का रोम रोम सिहर उठा,... मरद चाहे जैसा रहा हो, अच्छा हुआ चला गया, अब असली मरद,... तो यही है, और एक बार कटोरी में तेल में तर्जनी बाएं हाथ की सुगना ने डुबोई अच्छी तरह,.. और नितम्बो की बस रीढ़ की हड्डी की जड़ से सरकते हुए सीधे नितम्बों के बीच की दरार में, ... जैसे गलती से छू गया हो,... लेकिन फिर दो बार तीन बार चार दरेरते, रगड़ते,... और अब सुगना के जोबन खुल के उन की पीठ पे सरक रहे थे रगड़ रहे थे,...



जिन गोलाइयों को जब सुगना को पहली बार देखा था उन्होंने तभी से तोपे ढके ब्लाउज और अच्छे से ओढ़े गए आँचल के अंदर से भी, सोच के उनकी हालत खराब थी और वो आज एकदम खुल के उनकी पीठ पर रगड़ रहे थे,... अब वो सिसक रहे थे, देह कसमसा रहे थे,



सुगना ससुर की ये हालत देखकर मुस्करा रही थी. उसकी बाएं हाथ की ऊँगली जो पिछवाड़े की दरार के बीच दरेर रही थी,... कलाई की पूरी ताकत लगा के उसने ठेल दिया,... और एक पोर भी नहीं, मुश्किल से नाख़ून भर अंदर पिछवाड़े, और उसी के साथ दांया हाथ, सरक कर कच्छे के अंदर और अबकी खुल के सुगना ने ससुर के मूसल चंद को मुट्ठी में दबोच लिया, अंगूठे से कभी सुपाड़े को सहलाती कभी दबाती,... कभी बस रगड़ देती,...



वो पेट के बल लेटे थे,...सुगना उनकी पीठ पर, कभी देह से देह सटा देती कभी हटा लेती,... और चिढ़ाते हुए बोली,



" आपकी समधिन तो पता नहीं का कहतीं, लेकिन एक बात मैं बोल सकती हूँ आपकी समधिन की ओर से,.. आपकी समधिन के एकलौते समधी की महतारी,... जरूर किसी गदहे घोडे के संग सोई होंगी, ... जो हमरे ससुर,... या पता नहीं कउनो पंचायत गर्भ केंद्र वाले सांड़ के पास,... "



और ये कहके सुगना ने मुठियाया तो नहीं लेकिन कभी पूरी ताकत से कस के दबा देती तो कभी ढीला छोड़ देती उस मूसल को, सुगना की कलाई से चौड़ा ही रहा होगा,...



थोड़ी देर बाद सुगना ने उन्हें सीधा किया, कच्छा भी ठीक किया, एकदम बांस की तरह खड़ा था तना, कच्छे के ऊपर से एक बार होंठ से फिर अपने दोनों जोबन से हलके से सहला के सुगना उठ गयी और बोली,



बस आप ऐसे ही रहिये, थोड़ी देर में तेल सूख जाएगा,... तबतक मैं खाना बना लेती हूँ,



खाना खिलाते हुए ससुर जी ने आज साफ़ साफ़ बोल ही दिया,



" तुमने तो मुझे भूखा ही छोड़ दिया "



सुगना ने अपने मन की बात बोल दी, " मेरा भी तो कब से उपवास चल रहा है, घबड़ाइये मत आज रात को दावत होगी, जिमियेगा छक कर.



रात को दावत हुयी। जम कर हुयी,
मान गए. उस रिस्तो मे शरारत एरिटीका पैदा कर दिया जो सोचा नहीं था. ससुर बहु और मालिश. सुगना ने तो हद ही पार कर दी. हाथो से खुटा भी छू लिया और पिछवाडा भी. और भौजी के ज्ञान को अपनी महतारी से हासिल किया. जबरदस्त. बेचारे ससुर भूखे रहे तो क्या हुआ. सुगना का भी तो उपवास था. रात मे दोनों साथ ही भूख मिटाएंगे. वाह अमेज़िंग

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