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Thanks so much. I have provided the Index on page 1. Please have a look and do read the earlier parts too. You will surely enjoy.Nice Update
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होली की शुभकामनाओ के लिए धन्यवाद।
Aap sab ko ..
Holi ki shubhkamnaye...
Niceपहला पन्ना- मज़ा पहली होली का ससुराल में,
( जिसका यह सीक्वेल है )
मजा पहली होली का, ससुराल में
( इस कहानी के सभी पात्र वयस्क हैं और सभी चित्र इंटरनेट से लिए गए हैं यदि किसी को कोई आपत्ति हो तो टिप्पणी कर सकता है। अंडर एज सेक्स न सिर्फ इस फोरम के नियमों के खिलाफ है बल्कि वैधानिक रूप से भी निषिद्ध है , और मैं वयक्तिगत रूप से भी इसे नहीं पसंद करती।)
मुझे त्योहारों में बहुत मज़ा आता है, खास तौर से होली में.
पर कुछ चीजें त्योहारों में गड़बड़ है. जैसे, मेरे मायके में मेरी मम्मी और उनसे भी बढ़ के छोटी बहनें कह रही थीं
कि मैं अपनी पहली होली मायके में मनाऊँ. वैसे मेरी बहनों की असली दिलचस्पी तो अपने जीजा जी के साथ होली खेलने में थी.
परन्तु मेरे ससुराल के लोग कह रहे थे कि बहु की पहली होली ससुराल में हीं होनी चाहिये.
मैं बड़ी दुविधा में थी. पर त्योहारों में गड़बड़ से कई बार परेशानियां सुलझ भी जाती हैं. इस बार होली २ दिन पड़ी.
मेरी ससुराल में 17 मार्च को और मायके में 18 को.
मायके में जबर्दस्त होली होती है और वो भी दो दिन. तय हुआ कि मेरे घर से कोई आ के मुझे होली वाले दिन ले जाए और ‘ये’ होली वाले दिन सुबह पहुँच जायेंगे. मेरे मायके में तो मेरी दो छोटी बहनों नीता और रीतू के सिवाय कोई था नहीं.
......
मैं फ्लैश बैक में चली गई.
सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.
सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.
मुझे अब तक याद है, उस दिन मैंने सलवार-सूट पहन रखा था, जो थोड़ा टाईट था और मेरे मम्मे और नितम्ब खूब उभर के दिख रहे थे. रानू ने मेरे चूतड़ों पे चिकोटी काट के चिढ़ाया,
“भाभी लगता है आपके पिछवाड़े में काफी खुजली मच रही है. आज आपकी गांड़ बचने वाली नहीं है, अगर आपको इस ड्रेस में भैया ने देख लिया...”
“अरे तो डरती हूँ क्या तुम्हारे भैया से? जब से आई हूँ लगातार तो चालू रहते है, बाकी और कुछ तो अब बचा नहीं......
ये भी कब तक बचेगी?”
चूतड़ मटका के मैंने जवाब दिया.
और तब तक ‘वो’ भी आ गए. उन्होंने एक हाथ से खूब कस के मेरे चूतड़ को दबोच लिया
और उनकी एक उंगली मेरे कसी सलवार में, गांड़ के क्रैक में घुस गई.
उनसे बचने के लिये मैं रजाई में घुस गई अपनी सास के बगल में.....
‘उनकी’ बगल में मेरी जेठानी और छोटी ननद बैठी थी. वह भी रजाई में मेरी बगल में घुस के बैठ गए
और अपना एक हाथ मेरे कंधे पे रख दिया.
छेड़-छाड़ सिर्फ कोई ‘उनकी’ जागीर तो थी नहीं. सासू के बगल में मैं थोड़ा सेफ भी महसूस कर रही थी
और रजाई के अंदर हाथ भी थोड़ा बोल्ड हो जाता है.
मैंने पजामे के ऊपर हाथ रखा तो उनका खूंटा पूरी तरह खड़ा था. मैंने शरारत से उसे हल्के से दबा दिया और उनकी ओर मुस्कुरा के देखा.
बेचारे.... चाह के भी..... अब मैंने और बोल्ड हो के हाथ उनके पजामे में डाल के सुपाड़े को खोल दिया. पूरी तरह फूला और गरम था. उसे सहलाते-सहलाते मैंने अपने लंबे नाख़ून से उनके पी-होलको छेड़ दिया.
जोश में आ के उन्होंने मेरे मम्मे कस के दबा दिए.
उनके चेहरे से उत्तेजना साफ़ दिख रही थी. वह उठ के बगल के कमरे में चले गए जो मेरी छोटी ननद का रीडिंग रूम था. बड़ी मुश्किल से मेरी ननद और जेठानी ने अपनी मुस्कान दबायी.
“जाइये-जाइये भाभी, अभी आपका बुलावा आ रहा होगा.”
शैतानी से मेरी छोटी ननद बोली.
हम दोनों का दिन-दहाड़े का ये काम तो सुहागरात के अगले दिन से हीं चालू हो गया था.
पहली बार तो मेरी जेठानी जबरदस्ती मुझे कमरे में दिन में कर आई और उसके बाद से तो मेरी ननदें और यहाँ तक की सासू जी भी.......बड़ा खुला मामला था मेरी ससुराल में......
एक बार तो मुझसे ज़रा सी देर हो गई तो मेरी सासू बोली,
“बहु, जाओ ना... बेचारा इंतज़ार कर रहा होगा...”
“ज़रा पानी ले आना...” तुरन्त हीं ‘उनकी’ आवाज सुनाई दी.
“जाओ, प्यासे की प्यास बुझाओ...”
मेरी जेठानी ने छेड़ा.
कमरे में पँहुचते हीं मैंने दरवाजा बंद कर दिया.
उनको छेड़ते हुए, दरवाजा बंद करते समय, मैंने उनको दिखा के सलवार से छलकते अपने भारी चूतड़ मटका दिए.
फिर क्या था.? पीछे आके उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया और दोनों हाथों से कस-कस के मेरे मम्मे दबाने लगे.
और ‘उनका’ पूरी तरह उत्तेजित हथियार भी मेरी गांड़ के दरार पे कस के रगड़ रहा था. लग रहा था, सलवार फाड़ के घुस जायेगा.
मैंने चारों ओर नज़र दौडाई. कमरे में कुर्सी-मेज़ के अलावा कुछ भी नहीं था. कोई गद्दा भी नहीं कि जमीन पे लेट के.
मैं अपने घुटनों के बल पे बैठ गई और उनके पजामे का नाड़ा खोल दिया. फनफ़ना कर उनका लंड बाहर आ गया.
सुपाड़ा अभी भी खुला था, पहाड़ी आलू की तरह बड़ा और लाल.
मैंने पहले तो उसे चूमा और फिर बिना हाथ लगाये अपने गुलाबी होठों के बीच ले चूसना शुरू कर दिया.
धीरे-धीरे मैं लॉलीपॉप की तरह उसे चूस रही थी और कुछ हीं देर में मेरी जीभ उनके पी-होल को छेड़ रही थी.
उन्होंने कस के मेरे सिर को पकड़ लिया. अब मेरा एक मेहन्दी लगा हाथ उनके लंड के बेस को पकड़ के हल्के से दबा रहा था और दूसरा उनके अंडकोष (Balls) को पकड़ के सहला और दबा रहा था. जोश में आके मेरा सिर पकड़ के वह अपना मोटा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे.
उनका आधे से ज्यादा लंड अब मेरे मुँह में था. सुपाड़ा हलक पे धक्के मार रहा था. जब मेरी जीभ उनके मोटे कड़े लंड को सहलाती और मेरे गुलाबी होठों को रगड़ते, घिसते वो अंदर जाता.... खूब मज़ा आ रहा था मुझे. मैं खूब कस-कस के चूस रही थी, चाट रही थी.
उस कमरे में मुझे चुदाई का कोई रास्ता तो दिख नहीं रहा था. इसलिए मैंने सोचा कि मुख-मैथुन कर के हीं काम चला लूं.
पर उनका इरादा कुछ और हीं था.
“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ...” वो बोले..
मैं झुक गई.
............................
तो कुछ ऐसे हुयी थी,इस कहानी की शुरुआत जिसका सीक्वेल मैं पेश कर रही हूँ, पर उसके पहले पूर्वाभास, उस कहानी के कुछ वो प्रसंग जहाँ छुटकी का जिक्र आया है, सभी नहीं बस कुछ, और अगर डिसजवाईंटेड लगे तो मैं मूल कहानी के पेज नंबर का सन्दर्भ भी साथ साथ देने की कोशिश करुँगी, जिससे सुधी पाठक पाठिकाओं को लिंक बैठाने में कोई मुश्किल ने हो.
Thanks so much for reading the story from the beginning. The index is also on Page 1. Please read all the parts and do share your comments. Thanks.Nice