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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Shetan

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यह पोस्ट सुगना भौजी ,

आरुषि जी की कविता ससुर और बहू से अनुप्राणित है और आरुषि जी को ट्रिब्यूट के तौर पर समर्पित है।

कंचन और ससुर कहानी का आरुषि जी ने एक काव्य रूपांतर प्रस्तुत किया था, मेरी कहानी जोरू के गुलाम में कई भागो में। यह कविता पृष्ठ ११९५ ( पोस्ट ११९५० ) से शुरू हुयी थी जिसमे आरुषि जी ने कहा था,

"आज एक नई कविता शुरू कर रही हूं जो एक कहानी से प्रेरित है जो मैंने यहां ससुर और बहू (कंचन और ससुर) के बीच यौन संबंधों पर पढ़ी है।"


और मैंने उनकी पंक्तियों से प्रभावित होकर लिखा था

" अब जो आपने ससुर बहु का यह प्रंसग यहाँ दिखाया है, तो मुझे लग रहा है की आपकी इस कविता के ट्रिब्यूट के तौर पर छुटकी होली दीदी की ससुराल में एक छोटा ही प्रसंग, बहू और ससुर के बारे में लिखने का प्रयास करूँ, जो आपकी कविता की प्रतिछाया भी नहीं होगी पर मेरी ओर से एक छोटा सा ट्रिब्यूट होगा इस कविता को, : ( जोरू का गुलाम -पृष्ठ ११९६)

तो बस वही छोटी सी कोशिश है सुगना और ससुर के रूप में

हाँ एक बात और

इस भाग में सवाल ज्यादा उपजे हैं

क्या सुगना के ससुर ठीक हो पाए ?

हिना की माँ और ठाकुर साहब, सुगना के ससुर का जिक्र भी आया है,

और सबसे बढ़कर सुगना और ससुर जी का असली किस्सा एक लाइन में निपटा दिया " रात को दावत हुयी जम कर "

तो तबियत खराब होने के पहले करीब साल भर के किस्से बस एक लाइन में

नहीं नहीं , अगर आप सब को यह हिस्सा अच्छा लगा तो यह किस्सा खूब विस्तार से सात आठ भाग में जैसे अरविंद और गीता का या रेनू और कमल का किस्सा है उसी तरह आएगा

लेकिन लाइक करना, कमेंट करना ही बताएगा की सुगना और उनके ससुर की का रिश्ता आपको कैसा लगा।
Kafi maza aaya. Bahot hi amezing aur shararat se bhare daylog the. Aapne shasur bahu par to paheli bar likha. Par aapne consept me jo masti aur erotic ko jo mix kiya vo shandar tha. Umid he sugna bhouji ke muh se jo komaliya ke shasurji ke khute ki jo tarif ki esa conversation mazak masti aage ke update me do to maza hi aa jae
Jaruri nahi ki sex seen do. Par aap jo mazakiya andaz ka conversation likhti ho use padhne me bahot maza aata he.
 

Random2022

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भाग २० -

छुटकी की हालचाल



" क्यों ननदोई जी, कैसी लगी मेरी छुटकी बहिनिया,... " और बिना उनके जवाब का इन्तजार किये मुड़ गयी,मेरी पीठ उनकी ओर , और अपने बड़े बड़े चूतड़ उनकी ओर देख के मटका दिए,...



वही असर हुआ जो मैं चाहती थी, खूंटा तन गया और नन्दोई ने कस के मुझे पीछे से दबोच लिया, उनके दोनों हाथ कस के चोली फाड़ते जोबन पे और तनी तलवार सीधे मेरी दरार के बीच, लग रहा था साडी साया फाड़ के यहीं खड़े खड़े मेरी गाँड़ मार लेंगे,... और जोबन का रस लेते बोले,...



" अरे बहुत रसीली है. लेकिन हमको तो बड़की वाली क ज्यादा मन करता है ,सच में इत्ती गाँड़ मारने को मिली लेकिन तोहार अइसन, ... कोई मुकाबला नहीं बोला कहिया मिली,... "


बस एक झटके में पलट के मैं गुस्से से अलफ़, और उन्हें पकड़ के पहले तो दस गाली उनकी बहन महतारी सब को, नाम ले ले के, मादरचोद , तोहरी महतारी पे हमार नन्दोई चढ़ें, उनके सार चढ़ें, सार क सार चढ़ें, और फिर कस के एक चुम्मी, चुम्मी क्या मेरे होंठों ने उनके होंठों को गपुच कर कचकचा के काट लिया , और जब छोड़ा तो मैंने अपना इरादा बता दिया,...

"स्साले ननदोई , अरे तोहार सलहज हूँ , अगर आगे से पूछा न तो मैं ही उलटे तेरी गाँड़ मार लूंगी, अरे जिसकी बहन की लेने के पहले कभी नहीं पूछते हो,... उसकी बीबी से क्या पूछना,... अरे ननदोई राजा जब चाहा, जहाँ चाहा, चाहे हमरी ननद के सामने,... बस पूछना मना है,... "





और पैंट के ऊपर से उनका खड़ा खूंटा मसल के अपने साजन के पास, हाँ नन्दोई को दिखा दिखा के चूतड़ मटकाना मैं नहीं भूली ,

सच में जबरदस्त दीवाने थे , मेरे पिछवाड़े के वो।

मैंने अपने साजन से सिर्फ दो सवाल किये और एक का जवाब हाँ में मिला दूसरे का नहीं में।



कुछ तो बात होती है सलहज में की नन्दोई सब अपनी बीबी, साली भूल के सिर्फ सलहज की बात मानते हैं , एक तो मेरे नन्दोई है जो अपनी सलहज के पीछे, मंडराते रहते हैं, और एक मेरी रीतू भाभी के नन्दोई, ये हैं अपनी सलहज की बात,...



इनकी सलहज ने इनसे एक बात मनवा ली थी जब इनकी सलहज की ननद , इनकी छुटकी साली, मेरी छुटकी बहिनिया, का पिछवाड़ा फटेगा तो एकदम सूखे,... बस ये बात उन्होंने मेरे नन्दोई को बता दी थी , और इसलिए जीजा साली बहला फुसला के मेरी छुटकी को आम की बगिया में, गाँव के एकदम बाहर ले गए थे, उसी की ब्रा पैंटी से कस कस के उसकी मुश्के बांध दी थीं,

की जब सूखे सूखे उस कच्ची कली की गाँड़ फाड़ी जायेगी तो बहुत चोकरेगी वो,... और नैना ने जो बताया था , उसकी आँखों देखी, उसके भइया ने, मेरे साजन ने , अपना मोटा खूंटा नीचे से अपनी साली के मुंह में ठूंस रखा था , हलक तक




और मेरी ननद की , नैना के जीजा, मेरे नन्दोई मेरी छुटकी बहिनिया की गाँड़ में चूतड़ पकड़ के पूरी ताकत से अपना मोटा खूंटा पेल रहे थे,



तो मेरा पहला सवाल था की क्या गुड्डो की नन्दोई जी ने इनकी छोटी साली की सूखी ही ली थी जैसा उनकी सलहज ने हुकुम दिया था , उसका जवाब था हाँ।



दूसरा सवाल था की इनकी साली की गाँड़ सिर्फ मेरे नन्दोई ने ही मारी या उन्होंने ने भी मारी, उसका जवाब था नहीं यानी सिर्फ नन्दोई ने मारी।




और उन्होंने जो हाल बताया बस मेरी गाँड़ में कीड़े काटने लगे नन्दोई से गाँड़ मरवाने के लिए, पक्का उन्होंने बचपन में ही अपनी महतारी की गाँड़ मार मार कर गाँड़ मारना सीखा होगा।
Esi salahaj kismat walon ko milti hai
भाग २० -

छुटकी की हालचाल



" क्यों ननदोई जी, कैसी लगी मेरी छुटकी बहिनिया,... " और बिना उनके जवाब का इन्तजार किये मुड़ गयी,मेरी पीठ उनकी ओर , और अपने बड़े बड़े चूतड़ उनकी ओर देख के मटका दिए,...



वही असर हुआ जो मैं चाहती थी, खूंटा तन गया और नन्दोई ने कस के मुझे पीछे से दबोच लिया, उनके दोनों हाथ कस के चोली फाड़ते जोबन पे और तनी तलवार सीधे मेरी दरार के बीच, लग रहा था साडी साया फाड़ के यहीं खड़े खड़े मेरी गाँड़ मार लेंगे,... और जोबन का रस लेते बोले,...



" अरे बहुत रसीली है. लेकिन हमको तो बड़की वाली क ज्यादा मन करता है ,सच में इत्ती गाँड़ मारने को मिली लेकिन तोहार अइसन, ... कोई मुकाबला नहीं बोला कहिया मिली,... "


बस एक झटके में पलट के मैं गुस्से से अलफ़, और उन्हें पकड़ के पहले तो दस गाली उनकी बहन महतारी सब को, नाम ले ले के, मादरचोद , तोहरी महतारी पे हमार नन्दोई चढ़ें, उनके सार चढ़ें, सार क सार चढ़ें, और फिर कस के एक चुम्मी, चुम्मी क्या मेरे होंठों ने उनके होंठों को गपुच कर कचकचा के काट लिया , और जब छोड़ा तो मैंने अपना इरादा बता दिया,...

"स्साले ननदोई , अरे तोहार सलहज हूँ , अगर आगे से पूछा न तो मैं ही उलटे तेरी गाँड़ मार लूंगी, अरे जिसकी बहन की लेने के पहले कभी नहीं पूछते हो,... उसकी बीबी से क्या पूछना,... अरे ननदोई राजा जब चाहा, जहाँ चाहा, चाहे हमरी ननद के सामने,... बस पूछना मना है,... "





और पैंट के ऊपर से उनका खड़ा खूंटा मसल के अपने साजन के पास, हाँ नन्दोई को दिखा दिखा के चूतड़ मटकाना मैं नहीं भूली ,

सच में जबरदस्त दीवाने थे , मेरे पिछवाड़े के वो।

मैंने अपने साजन से सिर्फ दो सवाल किये और एक का जवाब हाँ में मिला दूसरे का नहीं में।



कुछ तो बात होती है सलहज में की नन्दोई सब अपनी बीबी, साली भूल के सिर्फ सलहज की बात मानते हैं , एक तो मेरे नन्दोई है जो अपनी सलहज के पीछे, मंडराते रहते हैं, और एक मेरी रीतू भाभी के नन्दोई, ये हैं अपनी सलहज की बात,...



इनकी सलहज ने इनसे एक बात मनवा ली थी जब इनकी सलहज की ननद , इनकी छुटकी साली, मेरी छुटकी बहिनिया, का पिछवाड़ा फटेगा तो एकदम सूखे,... बस ये बात उन्होंने मेरे नन्दोई को बता दी थी , और इसलिए जीजा साली बहला फुसला के मेरी छुटकी को आम की बगिया में, गाँव के एकदम बाहर ले गए थे, उसी की ब्रा पैंटी से कस कस के उसकी मुश्के बांध दी थीं,

की जब सूखे सूखे उस कच्ची कली की गाँड़ फाड़ी जायेगी तो बहुत चोकरेगी वो,... और नैना ने जो बताया था , उसकी आँखों देखी, उसके भइया ने, मेरे साजन ने , अपना मोटा खूंटा नीचे से अपनी साली के मुंह में ठूंस रखा था , हलक तक




और मेरी ननद की , नैना के जीजा, मेरे नन्दोई मेरी छुटकी बहिनिया की गाँड़ में चूतड़ पकड़ के पूरी ताकत से अपना मोटा खूंटा पेल रहे थे,



तो मेरा पहला सवाल था की क्या गुड्डो की नन्दोई जी ने इनकी छोटी साली की सूखी ही ली थी जैसा उनकी सलहज ने हुकुम दिया था , उसका जवाब था हाँ।



दूसरा सवाल था की इनकी साली की गाँड़ सिर्फ मेरे नन्दोई ने ही मारी या उन्होंने ने भी मारी, उसका जवाब था नहीं यानी सिर्फ नन्दोई ने मारी।




और उन्होंने जो हाल बताया बस मेरी गाँड़ में कीड़े काटने लगे नन्दोई से गाँड़ मरवाने के लिए, पक्का उन्होंने बचपन में ही अपनी महतारी की गाँड़ मार मार कर गाँड़ मारना सीखा होगा।
Esi salhar kismat walon ko milti hai
 

Premkumar65

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भाग ८१ - बारी भौजाइयों की

१५,७४, ०८०

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और अब नंदों ने दौड़ा दौड़ा के एक भौजी को पकड़ना शुरू किया।



रज्जो भाभी मौका पाके सटक ली थीं , नंदों ने दो चार छुटकियो को दौड़ाया, कम्मो, बेला, लीना,दीपा सब और रज्जो भौजी पकड़ी गयीं , पास में ही एक पेड़ों के झुण्ड में, ...



" काहो भौजी कउनो मायके का यार आया था का जो ननदो का साथ छोड़ के ,... "

मेरे साथ बैठी रेनू ने वही से चिढ़ाया,


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लीना, चंदा और कम्मो ने उन्हें छाप लिया, हाथ पैर सब पकड़ के,.... और थोड़ी देर में एक देवर रज्जो भाभी पर भी चढ़ा।
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शायद ही कोई भौजाई बची होगी जिस पे दो दो लौंडे न चढ़े हों, असल में भाभियाँ थीं कम देवर थे ज्यादा और फिर अभी ननदें भी अपने भाइयों के साथ साथ,.... जिस भौजाई की टाँगे उठा के कोई देवर पेल रहा था उस के मुंह में कोई ननद चढ़ी अपनी बुर चटा रही थी।

सिवाय दूबे भाभी के, जिनकी अभी जबरदस्त रगड़ाई हुयी और पूरी तरह देवरों की रबड़ी मलाई से नहाई थीं वो,

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और मैं कमल के सिंहासन पे बैठी थी, बगल में रेनू उसकी बहन।


मेरी निगाहें बार बार चमेलिया -गुलबिया की ओर लौट रही थीं, एक की गांड विनोदवा मार रहा था दूसरे की पंकजवा, दोनों ही जबरदस्त लौण्डेबाज लग रहे थे जिस तरह से पिछवाड़े की सेवा कर रहे थे. चमेलिया और गुलबिया दोनों ही दो दो देवर के बीच पिस रही थीं, रगड़ी जा रही थी लेकिन मौके का फायदा उठा के वो धक्के भी मार रही थीं. ननदों को गरिया भी रही थीं समझा भी रही थी।

नीलू और लीला का तीन महीने बाद गौना होना है तो उन दोनों से गुलबिया कह रही थी,


" अरे काहें को खी खी कर रही हो, देखो और सीखो,... पहली होली में ही देवर और ननदोई एक साथ चढ़ेंगे। नयी नयी सलहज हो तो बिना बुलाये नन्दोई ससुराल होली में आते है, असली पिचकारी से होली खेलने। सीख लो दो दो पिचकारी पिचकाने का तरीका। "


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चारो बल्कि सभी ६ चमेलिया और गुलबिया भी साथ साथ झड़े, झड़ते रहे,... और जैसे अखाड़े में थक के पहलवान पड़े रहे जमींन पर आम की उस बगिया में देवर भौजाई चिपके पड़े रहे।


कुछ देर में ही सब भौजाई चुद रही थीं, किसी किसी के ऊपर दो दो देवर एक साथ चढ़े, और जिसके ऊपर सिर्फ एक चढ़ा हो उसको एक साथ दो तीन ननदें छाप लेतीं, यहाँ तक की कच्चे टिकोरे वालियां भी, भौजाइयों के ऊपर चढ़ चढ़ के अपनी चूत चटा रही थीं।

जैसे किसी की नाक कट जाए और वो नक कटी कहे अरे मैं बहुत सुन्दर लग रही हूँ, तुम लोग भी कटवा लो,... मुझे तो स्वर्ग दिख रहा है, और जब तक किसी और की न कटवा ले उसे चैन न मिले, तो वही हालात भौजाइयों की हो रही थी,

जिसपर दो तीन देवर चढ़ते, वो दूसरी भौजाइयों को भी चढाती,... अरे बड़ा मजा आ रहा है , एक छेद का मजा तो रोज ननदी के भैया देते हैं लेकिन अगर एक छेद में इतना मजा तो दो छेद में तो दूना मजा,


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और ननदों को भी उकसाती तो वो सब भी पकड़ लेती और भाई बहिन मिल के भौजाई की चोद देते,...



वैसे भी भौजाइयां कम थी,

हम लोगों की कबड्डी टीम में से ही सिर्फ दूबे भाभी, मैं, रज्जो भाभी, चमेलिया और गुलबिया बची थीं।


मंजू भाभी के ' वो ' शहर से महीने में आते थे दो चार दिन के लिए आते थे और महीने का हिसाब चुकता कर देते थे, सूद के साथ, तो मंजू भाभी मेरे जेठ के साथ अपने घर में और चुन्नू भी यहाँ तो घर में वो और उनके सैंया,...

चननिया तो कल ही बोल के चली गयी थी,... उसे कुछ काम था, रमजानिया को भी कहीं जाना था वो आयी तो थी लेकिन दोपहर के पहले ही चली गयी।



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ये तो चार पांच भौजाई कल कबड्डी और उस के बाद की मस्ती देख के आ गयी थीं, इसलिए हम लोगों की टीम में आठ दस,...


पर ननदें अट्ठारह बीस,... आठ दस की झिल्ली ही आज फटी थी, और देवर भी उतने ही, और वो सब मिल के हम भौजाइयों के पीछे पड़ गए थे पर ननदें लालच भी दे रही थीं,

" भैया, आज तो मिल गया लेकिन अगर रोज चाही न तो पहले हचक के गुलबिया भौजी क गाँड़ मारो कस चाकर चूतड़ है, मायके में तो खूब गांड मरवाती थी"
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और भौजाई भी, जो आठ दस आयी थीं उनमे से आधे से ज्यादा के मरद बाहर ही रहते थे, ... दो चार तो पास के शहर में तो कुछ हफ्ते दो हफ्ते में आते थे, पानी निकाल के चले जाते थे और कुछ महीने में,... और बाकी किसी का पंजाब, किसी का बंबई, सूरत, अहमदाबाद,.. साल में एक दो बार छुट्टी मिली ट्रेन का टिकट मिला तो,


गुलबिया को बड़ी उम्मीद थी की उसके ननद का भाई होली में जरूर आएगा, छुट्टी भी मिल गयी थी लेकिन जनरल में भी घुसने की जगह नहीं मिली, एकदम छनछनाई,... तो उन भौजाइयों की दिवाली होली सब हो गयी, एक साथ इतने नए नए लौंडों के साथ

आरती, , दुलारी सविता, सुगना, रीता,
Bahut hi explosive update Komal ji. Babhiyon ki to chut me Barasat ho rahi hai devron ke lund se.
 

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आरती, दुलारी



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और भौजाई भी, जो आठ दस आयी थीं उनमे से आधे से ज्यादा के मरद बाहर ही रहते थे, ... दो चार तो पास के शहर में तो कुछ हफ्ते दो हफ्ते में आते थे, पानी निकाल के चले जाते थे और कुछ महीने में,... और बाकी किसी का पंजाब, किसी का बंबई, सूरत, अहमदाबाद,.. साल में एक दो बार छुट्टी मिली ट्रेन का टिकट मिला तो, गुलबिया को बड़ी उम्मीद थी की उसके ननद का भाई होली में जरूर आएगा, छुट्टी भी मिल गयी थी लेकिन जनरल में भी घुसने की जगह नहीं मिली, एकदम छनछनाई,... तो उन भौजाइयों की दिवाली होली सब हो गयी, एक साथ इतने नए नए लौंडों के साथ

आरती, , दुलारी सविता, सुगना, रीता,
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शादी के पहले जब से तेल हल्दी चढ़ती है तभी से गर्मी चढ़नी शुरू हो जाती है,

जिस बात के लिए टोका टोकी होती थी, दस आँखे देखती रहती थीं, कहाँ गयी,... किधर,... किसके साथ,... अब उसी के लिए सब मज़ाक गारी मस्ती,...

और सुहागन होने के साथ वो गर्मी एकदम पीक पर, गौने की रात मर्द से ज्यादा उसको इन्तजार रहता है,... और एक बार स्वाद लगने के बाद तो उपवास करना बहुत मुश्किल होता है, जैसे गरम तवे के ऊपर कोई दो चार बूंदे पानी की डाल दे और छनछना उठे,...

बस वही हालत जिनके मरद परदेस रहते हैं,... परब त्यौहार पर भी नहीं आते,... वही हालत उनकी होती है,..

और फिर सुबह से ननदों की बार बार मस्त चुदाई देख देख के , नए नए लौंडों के मोटे लम्बे लंड देख के सब भौजाइयों की भी हो रही थी,... और शरम लिहाज का तो आज सवाल ही नहीं था, हमाम में सब एक जैसे,.. कौन चिढ़ाएगा, बोलेगा,... जो ननद आग लगाती वो खुद चार चार पांच लौंडो से अपने सगे चचेरे भाइयों के आगे खुद ही अपना नाड़ा खोल रही थी, सास सब थीं नहीं , देवर भी सब कुंवारे,...

और जो सबसे बड़ी जेठानी थीं, सास लोगों की सहेली,... दूबे भाभी वो खुद नाम ले ले के उकसा रही थी, ...

" अरे आरती, एक से का होगा, ... अरे जिन कहो हमार देवर गाँड़ नहीं मारे हैं, हे रुपवा का देख रही है आरती भौजी क गाँड़,... "
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और रूपा और सोना मिल के भौजी क गाँड़ कस के चियार देतीं और मारने वालों की कमी तो थी नहीं,... ऊपर दे दोनों बदमाश दूबे भाभी को अहसान जताते बोल रही थीं,

" एकदम बड़की भौजी, भौजी क बात हुकुम है "

और का हचक के आरती भौजी की गाँड़ मारी गयी,... उनकी उम्र मुझसे चार पांच साल बड़ी रही होगी,
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सबसे छोटी तो मैं ही, इंटर का इम्तहान होने वाला था की शादी हो गयी,... बोर्ड का इम्तहान का माँ ने कई बार जिद्द की लेकिन देखने के बाद मेरी सास मानी नहीं, कही गरमी में लगन नहीं है दिसंबर में साइत अच्छी निकली है, और इम्तहान का इतना है तो गौना रख लीजियेगा, इम्तहान के बाद,... चैत में गौने की साइत है,... बोर्ड का इम्तहान होली हरदम बीच में पड़ती है,..
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.मैं झूठ मूठ का बोलती थी नहीं गौना इंटर का रिजल्ट के बाद,...
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लेकिन शादी होने के बाद कौन इन्तजार करता है , बस जिस दिन इम्तहान ख़तम हुआ, हफ्ते भर के अंदर गौना करा के,.... होली के बीस पच्चीस दिन बाद,...
इंटर का इम्तहान खतम हुआ ही था की ससुराल वाले गौना कराने आ गए, इंटर का रिजल्ट तो मेरे ससुराल आने के चार महीने बाद निकला, ... अभी साल भर मुश्किल से हुआ


और बाकी भौजाई भी बीस बाइस से लेकर सत्ताईस अट्ठाइस,...


सबसे बड़ी दुलारी भौजी थीं,
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लेकिन वो भी लड़कोर नहीं थी, कल उनको आसीर्बाद मिला था की इस बार कोख हरी होगी . और होती भी कैसे मुंह दिखाई में ही आसा बहू ने कबूल करवा लिया, तीन साल तक कुछ नहीं खाली मौज मस्ती,... रोज दिन रात चक्की चलती थी, पर उसके बाद मर्द उनके दुबई चले गए, वही दो साल में एक बार की छुट्टी पन्दरह दिन की,... पहले से दुलारी भौजी पिलानिंग करके रखी थीं अबकी पक्का गाभिन होना है, लेकिन उसी समय माहवारी आ गयी चार पांच दिन उसमे फिर घर में कोई गमी हो गयी,...

उसके बाद फिर दो साल,... और कोई लड़ाई होगी तो छुट्टी भी टल गयी,... तो सबसे ज्यादा वही गरमाई थी.

और दुलारी भौजी की चुदाई हुयी भी जबरदस्त, सबरे से गर्मायी थी,

दूबे भाभी के साथ चमेलिया और गुलबिया ने भी नंदों को इशारा किया,... और चंदा ननदिया ने जिससे गाँव का कोई लड़का बचा नहीं था, चुनके सबसे जबरदस्त चोदू तीन चार लौंडो को,

दो चार ननदों ने दुलारी भौजी को पकड़ के आम की मोटी डाल को को पकड़ा के निहुरा दिया, भौजी ने खुद टाँगे फैला दी, और देवर ने दोनों जोबना पकड़ के ऐसा धक्का मारा की भौजी भैया को भुला गयी


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लेकिन थोड़ी देर में वो भी पीछे से धक्का मार मार के लंड घोंट रही थी, और नीलू रूपा लीला तीनो उन्हें घेर के जबरदस्त गरिया रही थीं हर धक्के के साथ,

लेकिन वो तो शुरुआत थी उसके झड़ते ही एक ने खूंटा खड़ा किया हुआ था और दो नंदों ने पकड़ के दुलारी भौजी को उसके ऊपर बैठा दिया, और उस लौंडे ने भौजी को खींच के,... नीचे से पेलना शुरू कर दिया और दूसरा पीछे से तैयार खड़ा था और उसने गांड में ठोंक दिया।

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कोई भौजाई नहीं बची थी, जिसके साथ दो तीन राउंड डबलिंग न हुयी हो,...
Bhabhiyon ki mast ragdai ho rahi hai.
 

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सविता भौजी
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मस्त भी और सबको पस्त भी कर देनेवाली, ...उमर में मुझसे ५-६ साल बड़ी २३-२४ के आसपास की लेकिन पक्की सहेली ऐसी जैसे समौरिया हों, लहीम शहीम, अच्छी खासी लम्बी, साढ़े पांच से ज्यादा ही लेकिन तन्वंगी, सारा मांस खींचकर बनाने वाले ने दो ही जगह रख दिया था,


कमर के ऊपर और कमर के नीचे, कूल्हे इत्ते बड़े की हम सब चिढ़ाते की लगता है धक्के फौजी भौजी ही ऊपर चढ़के मारती होंगी।
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रहने वाली एक दूर के शहर की पर यूनिफार्म और फौजी के दम्बूक पर दिल दे बैठीं।

लेकिन पति उनके असली फौजी नहीं थे बी एस एफ में थे, लेकिन यूनिफार्म तो थी और सीमा पे तैनाती भी,... पता चला की ससुराल गाँव देहात में होगी, वो पश्चिम की, ये पूरबिया,... लेकिन जिसकी जहाँ लिखी रहती थी, शादी हुयी, गौना हुआ और आ गयीं। हाँ ससुराल कम ही रहती थीं मतलब गाँव में, लेकिन आतीं तो लम्बा रहतीं और कोई कह नहीं सकता था की भौजी गाँव की नहीं है, चाहे रोपनी में जाना हो, चाहे गाँव के मेले हों, रतजगा हो।

खेल ये था की जबतक फौजी फेमली स्टेशन पर रहता था तो भौजी साथ में और सीमा पर बन्दूक चले न चले, शान्ति हो पर घर में रोजाना, दिन भी रात भी।

पर कभी कभी नान फेमली स्टेशन पर जब पोस्टिंग होती तो वहां तो सविता भाभी जा नहीं सकती थी और अकेले क्वार्टर उन्हें सालता था तो उनके पति यहाँ छोड़ जाते थे, महीना दो महीना कभी कभी छह महीना भी जैसा हो फिर वो एकदम गाँव वाली। तो इस बार यही हुआ. कोई अर्जेन्ट आपरेशन था होली के पांच दिन बाद से , तो होली तो उन्होंने पिया के साथ मनाई लेकिन उन्हें भी मालूम था की गाँव में ८-१० दिन और तो कल शाम को जब कबड्डी ख़तम हुयी उसके थोड़ी देर बाद वो आयीं और भिन्सारे एक गाडी थी उससे उनके पति वापस।

और रज्जो भौजी उन्हें अपने साथ ले आयी थीं।
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बस मैं यही सोच रही थी की अगर कल सविता भौजी हमारे साथ रहतीं तो कबड्डी का मैच हम लोग जीत तो गए, लेकिन और आसानी से जीत जाते। सविता भौजी की पकड़ सँड़सी से भी कड़ी थी, जिसको पकड़ लिया वो छुड़ा नहीं नहीं सकता था और फौजी के साथ रह के भौजी बहुत दांव पेंच भी सीख गयी थीं।

आज सुबह जो दूबे भाभी ने काम बांटा था, तो मेरे जिम्मे रेनू और कमल के साथ कच्ची कलिया थी और

कुछ नयी कोरी ननदें सुगना भौजी के जिम्मे लेकिन हिना के आने के बाद, पहले हिना को फिर पठानटोली वालों को पटाने की टेढ़ी जिम्मेदारी सुगना भौजी के ऊपर आ गयी।

सविता भौजी के आते ही, जो खेली खायी ननदें थीं, अभी इंटर में पहुंची थी लेकिन इंटरकोर्स पहले ही करवा चुकी थी, पहले नहीं बहुत पहले, उनकी जिम्मेदारी सविता भाभी के ऊपर .

सविता भाभी से उन सबकी पटती भी थी और फटती भी थी। कभी बरात के जाने के बाद रतजगा में अगर उस समय फौजी भौजी गाँव में हुयी तो बस उन नन्दो की शलवार का नाड़ा खोलने की जिम्मेदारी सविता भौजी की थी।



लेकिन अब जब ब्रेक के बाद भौजियों की रगड़ाई शुरू हो गयी तो फौजी भौजी का नंबर लगना ही था,...
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लेकिन उनके साथ कोई जबरदस्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी, वो खुद ही गरमाई थीं। पूरे दो महीने का उपवास था चुनमुनिया का, जो रोज दावत उड़ाती हो, तीन तीन चार चार बार भोग लगाती हो , अगर उसे उपवास करना पड़े,... और अब जब सामने थाल सजा था, उनकी सारी देवरानी जेठानी छक के जीम रही थीं, तो सविता भाभी क्यों भूखी रहतीं। हाँ उन्होंने दो बातें बोल दी नंदों को



अपना जोड़ी दार वो खुद तय करेंगी और कैसे पेली जाएंगी वो भी,

चुना उन्होंने मुन्ना को, जो कमल और बिट्टू की ही उमर का था, कसरती जवान,.. लेकिन खूब गोरा चिकना ,... सब भौजाइयां उसे चिढ़ातीं, " देवर है की ननद "

और काम उन्होंने सौंप दिया, मुन्ना को

" जैसे हमरे देवरानी के साथ करोगे वैसे ही एकदम, अगर सही सही किये तो मैं खुद छह महीने में अपने लिए देवरानी ले आउंगी, ... एकदम तेरी पंसद की कच्ची कोरी , और अगर गड़बड़ा गए तो यही बगिया में मुट्ठी से तेरी गाँड़ मारूंगी,... और देवरानी तो भूल जा मेरी ननद भी नहीं मिलेगी।"
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Wah Savita bhauji to kamaal ki nikli.
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार - (१ ) भाग चार- चंदा भाभी और होली का राशिफल ८ मार्च (२) भाग पांच -चंदा भाभी की पाठशाला १५ मार्च (३) भाग ६ चंदा भाभी -अनाड़ी बना खिलाड़ी २२ मार्च (४) भाग ७ गुड्डी -गुड मॉर्निंग २९ मार्च

छुटकी होली दीदी की ससुराल में - (१) भाग ८० - चमेलिया गुलबिया - ४ मार्च (२) भाग ८१ - मस्ती भौजाइयों की १४ मार्च ( ३) भाग ८२ -सुगना भौजी २८ मार्च

जोरू का गुलाम (१) भाग २१९ -डिनर - मार्च ६ (२) भाग २२० - गेम टाइम - २४ मार्च

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Congratulations for this tremendous consistency Madam. Well done!!

komaalrani
 

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बंटी



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तभी मुझे बंटी दिख गया, और मैंने दौड़ के उसे दबोच लिया, मेरा सबसे कम उमर वाला देवर, बताया तो था उसके बारे में

चलिए फिर से याद दिला देती हूँ।

मिश्राइन भाभी के यहाँ से हम लोग होली खेल के लौट रहे थे, होली की मस्ती, भांग, ठंडाई सब भौजाई बौराई थी, रस्ते में कोई मिले उसकी रगड़ाई तय, और हम सबकी नेता थीं यही दूबे भाभी
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यहाँ तक की भाभी लड़कों को भी नहीं बख्शती थीं| एक छोटा लड़का पकड़ में आया तो मुझसे बोलीं,

“खोल दे, इस साल्ले का पजामा|”

मैं जरा सा झिझकी तो बोलीं,

“अरे तेरा देवर लगेगा, जरा देख अभी नूनी है कि लंड हो गया| चेक कर के बता, इसने अभी गांड़ मरवानी शुरू की या नहीं, वरना तू हीं नथ उतार दे साल्ले की|”



वो बेचारा भागने लगा, लेकिन हम लोगों की पकड़ से कहाँ बच सकता था|

मैंने आराम से उसके पजामे का नाड़ा खोला, और लंड में, टट्टे में खूब जम के तो रंग लगाया हीं, उसकी गांड़ में उंगली भी की और गुलाल भरे कंडोम से गांड़ भी मार के बोला,

“जा जा, अपनी बहन से चटवा के साफ करवा लेना|”
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तबतक रज्जो भौजी ने आवाज लगायी,

"अरे नयको जरा हैंडपंप चला के देख पानी वानी निकलता है की नहीं
मैं उन देवरानियों में नहीं थी जो जेठानी की बात न माने, वो लाख छटपटाता रहा लेकिन पहले तो मैंने एक झटके में चमड़ा खींच के सुपाड़ा खोला और उसे छेड़ा,

"अभी मुट्ठ मारना शुरू किये की नहीं अरे जवान बहिन सुशीला घर में है, कुछ सिखाती नहीं ,"
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मिनट भर भी नहीं लगा होगा की फनफना के खड़ा हो गया और पांच सात मिनट में पानी फेंक दिया, सब मेरी हथेली पे, ... वही उसके मुंह पे पोत के बोली, अपनी बहिनिया से चटवाना, एकदम नया स्वाद मिलेगा उसको,...

तो वही बंटी

सुबह तो मैंने उसकी नथ उतारी थी, स्साला क्या नखड़ा पेल रहा था, इत्ता तो जिन कुंवारियों की झिल्ली फटी थी उनके साथ जोर जबरदस्ती नहीं करनी पड़ी जित्ता मुझे बंटी के साथ थोड़ा दूबे भाभी की गोली का भी असर था, खड़ा तो टनाटन होगया,

आखिर में मैंने उसके ऊपर चढ़ के एक हाथ से उसकी दोनों कलाईयां पकड़ के दबोची, दूसरे से उसकी कमर पकड़ के सेट किया, अपने को और खूब करारा धक्का मारा, रोया तो वो नहीं लेकिन तड़पना, छटकना उसका एकदम गाँव की उसकी छिनार बहनों जैसे ही था, जबतक मैं ऊपर चढ़ी रही खुद धक्के मारते रही तब तक तो ठीक था


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लेकिन जब पलट के उसे ऊपर किया तो फिर वही नखड़ा, मुझे हड़काना पड़ा

" चुप्प स्साले, मार सीधे से धक्का, एक धक्का भी हल्का हुआ न तो ये मुट्ठी देख रहे हो सीधे तेरी गाँड़ में जायेगी जड़ तक सोच ले. मारना है की मरवाना। "

तब जाके वो कुछ सहज हुआ, उसका हाथ भी खींच के मैंने जोबन पर रखा, फिर उसने हलके हलके,... हाँ झड़ने में आज सात आठ मिनट से ज्यादा ही लगा।

लेकिन दिन भर दो चार भौजाइयों ने और उस पर हाथ साफ़ कर लिया था, जैसे कच्चे टिकोरों के सब लौंडे दीवाने होते हैं वैसे ही कमसिन लौंडे के लिए खेली खायी भौजाई सब भी।

तो वही दिख गया,
Sari bhabhiyan Kamsin laundon se masti le rahi hain. Komal ji gajjjaaaabbbb.
 

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मस्ती बंटी संग


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लेकिन दिन भर दो चार भौजाइयों ने और उस पर हाथ साफ़ कर लिया था, जैसे कच्चे टिकोरों के सब लौंडे दीवाने होते हैं वैसे ही कमसिन लौंडे के लिए खेली खायी भौजाई सब भी।

तो वही दिख गया,

मुझे देखकर वो आम के एक चौड़े पेड़ के पीछे छुपने लगा, मैं उसे अनदेखा करके बाग़ के अंदर जिधर बाग़ और गझिन थी, उधर घुस गयी,

बेचारे बंटी ने चैन की साँस ली,.. वो भी जिधर भौजाइयां रगड़ी जा रही थी, किसी पे दो किसी पे तीन चढ़े हुए,... किसी किसी के ऊपर ननदें चढ़ी अपनी बुर चटवाती, उसे क्या मालूम खतरा टला नहीं है,

बस पीछे से मैंने उसे धर दबोचा, और हड़का लिया,

" अबे स्साले क्या लौंडिया की तरह छुपा है? और छुपने छुपाने से काईन लौंडिया बची है आज तक, जो रहरिया में गन्ने के खेत में जा के छुपती हैं उनकी वहीँ ले ली जाती है। और आज के दिन भौजाई से न कोई ननद बचती है न देवर, "
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जबतक वो समझ पाता, खींच के मैं उसे थोड़ा और अंदर, जहाँ बाग़ और गझिन हो गया था, दिन में भी अँधेरा रहता था,...

देवर भाभियों की मस्ती देखकर उसका भी टनटना रहा था,... उसे पकड़ के मैंने थोड़ा और मुठियाया,... फिर एक झटके में खींच के सुपाड़े के ऊपर का चमड़ा खोल दिया, और गरियाया,

" तोर बहिन महतारी समझायी नहीं की अब इसको खुला ही रखो,... रगड़ खा खा के ही पत्थर होगा , टनटना रहा है, अबे स्साले ये समझ ले की पहले बुर रानी को मनाना पड़ता है चाहे लौंडिया हो या मेहरारू। चल चाट , कबो तोर बहिनिया चटाई है की नहीं , आज स्साली है नहीं वरना अपने सामने तुमसे चटवाती, चलो बहिन न सही भौजाई"

घास पर मैं लेटी, ... जाँघे फैलाये,... स्लेटी अँधियारा, गलबाँही डाले बड़े बड़े पुराने पेड़, जिन्होंने न जाने कितनो की प्रेम लीला देखी होगी अपने नीचे,... और जाँघों के बीच में वो नौसिखिया चटोरा,...

आज चाहे कोई ननद हो या भौजाई, किसी की बुर ऐसी नहीं थी जिसमें दो चार कटोरी मलाई न बजबजा रही हो, मेरी कैसे बची रहती मेरी कटोरी में भी खीर छलक रही थी,...
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बस जैसे उसकी जीभ वहां लगी वो जोर से गिनगिनाया, पर मुझे मालूम था ये होगा इसलिए मैं पहले से तैयार थी, मैंने झट से अपनी जाँघों के बीच उसके सर को दबोच लिया, लाख कोशिश करे वो हिल नहीं सकता था, बिन चाटे भौजाई की बुर छूट नहीं थी , मरद चोदने के बाद तो जल्दी अपनी मेहरारू की नहीं चाटता, भले वो झड़ी हो न झड़ी हो, ...


तो मालूम हो की न जाने किसकी मलाई अंदर से छलक रही है, फिर कोई भी झिझकेगा ही,... लेकिन इसी झिझक का ही तो इलाज करना ही था,..

कमर उठा के मैंने बुर उसके मुंह में लगा दिया और हड़काया,

" चाट साले, जब तेरी बहन यारन से चुदवा के लौटती है तो शलवार खोल के चटवाती है की नहीं, चाट मेरे भैया तेरे आज के बहनोई का माल है,... कल दुसरे बहनोई का माल ले आउंगी,.. अब छोड़ना मत, चाहे स्कूल से आये चाहे खेत से बोलना दीदी जरा सा मलाई चटवा दो , देखना जरूर चटवायेगी अपने छोटे भैया को, ... चाट स्साले कस कस के एक बूँद मत छोड़ना, एक दम साफ़ हो जाएगी तब दूंगी,... "
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कुछ देर में वो खुद जीभ बिल में डाल के मलाई का स्वाद ले रहा था और असर वही हुआ जो मैं सोच रही थी पहले से टनटनाया खूंटा अब और पागल हो गया,...

और इस बार उसके धक्के में तेजी भी थी और ताकत भी, थोड़ा बहुत जोबन का रस लेना भी सीख गया था. मैं शरारत से कभी अपनी बुर निचोड़ लेती, उसके औजार को दबोच लेती और उस बेचारे की हालत खराब हो जाती, ... थोड़ी देर में उसने मुझे दुहरा कर दिया था और लम्बे लम्बेशॉट लगा रहा था,... मैंने भी रोका नहीं ,... और थोड़ी देर में उसने सब अपनी ताकत मेरी बिल में उंडेल दी और कटे पेड़ की तरह मेरे ऊपर,...

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वो अलग होकर मेरे बगल में लेटा ही था की एक झाडी के पास से उठ के आती हुयी सुगना दिखी,... आज भौजाइयों में सबसे ज्यादा वही गरमाई थी, कोई सगा देवर था नहीं , मरद साढ़े तीन साल हो गए क़तर गया था। पच्छिम पट्टी की,...
Mastai hui hai sari bhabhiyan.
 
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