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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

malikarman

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सुगना और बंटी




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तो पिछले छह महीने से उपवास ही चल रहा था, तो कल कब्बडी में आयी तो सुगना को जब पता चला की कल देवरों की रगड़ाई होगी, गुलबिया ने एक बार सुगना को बोला तो वो झट से तैयार,...

मैंने सुगना से इशारे से पूछा, कितने देवर कितनी बार चुदी, पांचो ऊँगली फैला दी उसने,...

तभी सुगना की निगाह बंटी पर पड़ी, वो भी पश्चिम पट्टी पड़ोस की,...
जब मैंने सुगना से पूछा कहाँ से आ रही हो भौजी

तो बंटी को सुनाती बोली, " मूत कर के आ रही हूँ, पता नहीं था की ये यहाँ छुपा है नहीं तो ,...
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सुगना की बात मैंने पूरी की तो एकरे मुंह में मूत देती, अरे सुगना भौजी जो लगा हो वही चटा दीजिये, दो चार बूँद बची हो,..."

मेरी बात ख़तम होने के पहले ही सुगना दोनों जाँघे फैला के अपनी बुर अपने देवर बिट्टू के ऊपर चढ़ कर बुर सीधे उसके मुंह के ऊपर,...थोड़ी देर में बंटी खुद ही चाट रहा था,...


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लेकिन मेरी निगाह बंटी की जाँघों के बीच और देखते ही देखते उसका एकदम फिर से खड़ा हो गया, सुगना भी उधर ही देख रही थी, ... मुझे देख के मुस्कराने लगी।



तबतक मेरे कान में रेनू की आवाज पड़ी, " नयकी भौजी "

मैंने आगे का काम सुगना के हवाले कर दिया,... अरे तोहरी पट्टी क है तोहार पड़ोसी, देवर, तो लड़का से मर्द बनाने का काम अब सुगना भौजी तोहरे जिम्मे,
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" एकदम अब किसी दिन नहीं छोडूंगी इसको रोज,... और नयको तू जा रेनुवा चोकर रही है।" सुगना कस कस के अपनी गीली बुर बंटी के मुंह पे रगड़ती बोली।



मैं सुगना को बंटी के पास छोड़ कर रेनू के पास जहाँ बाकी भौजाई ननद और देवर थे, वहां आ गयी

लेकिन रेनू वहां नहीं थी,... किसी ने बोला की आपको ढूंढते बँसवाड़ी की ओर गयी है,... उधर तो बाग़ और गझिन थी, आम के साथ महुआ, पाकड़, और दो चार खूब पुरानी बँसवाड़ी, जल्दी उधर कोई नहीं आता था.

कहीं दिखी नहीं, हाँ उसकी कभी खिलखिलाहट कभी मुझे पुकारने की आवाज हलकी हलकी सुनाई दे रही थी। मैं बँसवाड़ी के झुरमुट के पास तक पहुंच गयी थी, पीछे बहुत घने पुराने दो पाकड़ के चार महुए के बहुत पुरना पेड़, महुए के फूलों की मादक महक आ रही थी, एकदम नशा सा हो रहा था,

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तभी पीछे से मुझे किसी ने दबोच लिया, बड़ी तगड़ी पकड़ थी, महक हलकी सी जानी पहचानी
Awesome update
 

Shetan

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.चार दिन की चांदनी
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खाना खिलाते हुए ससुर जी ने आज साफ़ साफ़ बोल ही दिया,

" तुमने तो मुझे भूखा ही छोड़ दिया "

सुगना ने अपने मन की बात बोल दी, " मेरा भी तो कब से उपवास चल रहा है, घबड़ाइये मत आज रात को दावत होगी, जिमियेगा छक कर.

रात को दावत हुयी। जम कर .


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सुगना को लेकिन सुबह लगा उसके ऊपर से कोई रोड रोलर गुजर गया , असली सुहागरात तो आज ही हुयी, पूरी देह टूट रही थी। एक पल सोने का सवाल ही नहीं था. और जैसा सुहागिन का सिंगार होता है गाल पर , होंठ पर, जोबन पर दांत का निशान, नीचे मलाई छलक रही थी, सुबह ससुर ने ही उठाया, पकड़ कर , खुद चाय बना कर ले आये थे .

और उस दिन के बाद कोई दिन नागा नहीं गया, दिन में तो घूंघट काढ़े, ...
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कोई कूटने पीसने वाली, काम वाली होती तो उसके सामने,... एकदम


और जैसे ही अकेले तो बस,...


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पर छह सात महीने पहले परेशानी हो गयी, आंगन में काई लगी थी बारिश का मौसम था, सुगना कही बाहर पड़ोस में गयी थी, लौटी तो ससुर उसके फिसल के गिरे पड़े, सर में कमर में जम कर चोट लगी थी, दो महीने बिस्तर पर रहे, सुगना ने खूब सेवा की,... ठीक कुछ कुछ होगये,.. सहारा लेकर खड़े भी हो जाते हैं, ... अपना काम बाथरूम नहाना कर लेते हैं, पकड़ पकड़ के,...

लेकिन कमर की कोई ऐसी नस दब गयी,... की बस ससुर तो सहारा लेकर खड़े हो जाते हैं वो नहीं हो पाता,

सुगना ने पता किया कोई नीली गोली आती है लेकिन फिर डाकटर ने कहा की इनको ब्लड प्रेसर भी है तो बहुत हुआ तो महीने में एक बार इससे ज्यादा होने पर खतरा हो सकता है,...


तो जिस दिन माहवारी उसकी खतम होती है उस दिन वही नीली गोली खिला के, खुद ऊपर चढ़ के,... एक दो बार पानी निकाल देती है, और जहाँ रोज होता था वहां हफते दस दिन में एक दिन कभी हाथ से पकड़ के कभी मुंह में ले के पानी निकाल देती है।
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ससुर उससे खुद कहते हैं किसी और के साथ,... मन उसका भी करता है लेकिन,... इतनी आसानी से कौन,... और जहाँ नयी नयी लड़कियां टांग फैलाये खड़ी रहती हैं तो कौन लड़का,...




तो पिछले छह महीने से उपवास ही चल रहा था, तो कल कब्बडी में आयी तो सुगना को जब पता चला की कल देवरों की रगड़ाई होगी, गुलबिया ने एक बार सुगना को बोला तो वो झट से तैयार,...

मैंने सुगना से इशारे से पूछा, कितने देवर कितनी बार चुदी, पांचो ऊँगली फैला दी उसने,...



तभी सुगना की निगाह बंटी पर पड़ी, वो भी पश्चिम पट्टी पड़ोस की,...
बहोत जबरदस्त. भले ही बात आगे बढ़ाने काम ही लिखा. पार जबरदस्त. आखिर सुगना ने अपने ससुर को दावत करवा ही दी. पर वो वक्त भी बीत गया. अब नई नवेली दुल्हन भी गदरा ही गई होंगी. अब गांव की प्यासी भाभी फागुन और देवर बंटी.

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Shetan

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सुगना और बंटी




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तो पिछले छह महीने से उपवास ही चल रहा था, तो कल कब्बडी में आयी तो सुगना को जब पता चला की कल देवरों की रगड़ाई होगी, गुलबिया ने एक बार सुगना को बोला तो वो झट से तैयार,...

मैंने सुगना से इशारे से पूछा, कितने देवर कितनी बार चुदी, पांचो ऊँगली फैला दी उसने,...

तभी सुगना की निगाह बंटी पर पड़ी, वो भी पश्चिम पट्टी पड़ोस की,...
जब मैंने सुगना से पूछा कहाँ से आ रही हो भौजी

तो बंटी को सुनाती बोली, " मूत कर के आ रही हूँ, पता नहीं था की ये यहाँ छुपा है नहीं तो ,...
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सुगना की बात मैंने पूरी की तो एकरे मुंह में मूत देती, अरे सुगना भौजी जो लगा हो वही चटा दीजिये, दो चार बूँद बची हो,..."

मेरी बात ख़तम होने के पहले ही सुगना दोनों जाँघे फैला के अपनी बुर अपने देवर बिट्टू के ऊपर चढ़ कर बुर सीधे उसके मुंह के ऊपर,...थोड़ी देर में बंटी खुद ही चाट रहा था,...


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लेकिन मेरी निगाह बंटी की जाँघों के बीच और देखते ही देखते उसका एकदम फिर से खड़ा हो गया, सुगना भी उधर ही देख रही थी, ... मुझे देख के मुस्कराने लगी।



तबतक मेरे कान में रेनू की आवाज पड़ी, " नयकी भौजी "

मैंने आगे का काम सुगना के हवाले कर दिया,... अरे तोहरी पट्टी क है तोहार पड़ोसी, देवर, तो लड़का से मर्द बनाने का काम अब सुगना भौजी तोहरे जिम्मे,
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" एकदम अब किसी दिन नहीं छोडूंगी इसको रोज,... और नयको तू जा रेनुवा चोकर रही है।" सुगना कस कस के अपनी गीली बुर बंटी के मुंह पे रगड़ती बोली।



मैं सुगना को बंटी के पास छोड़ कर रेनू के पास जहाँ बाकी भौजाई ननद और देवर थे, वहां आ गयी

लेकिन रेनू वहां नहीं थी,... किसी ने बोला की आपको ढूंढते बँसवाड़ी की ओर गयी है,... उधर तो बाग़ और गझिन थी, आम के साथ महुआ, पाकड़, और दो चार खूब पुरानी बँसवाड़ी, जल्दी उधर कोई नहीं आता था.

कहीं दिखी नहीं, हाँ उसकी कभी खिलखिलाहट कभी मुझे पुकारने की आवाज हलकी हलकी सुनाई दे रही थी। मैं बँसवाड़ी के झुरमुट के पास तक पहुंच गयी थी, पीछे बहुत घने पुराने दो पाकड़ के चार महुए के बहुत पुरना पेड़, महुए के फूलों की मादक महक आ रही थी, एकदम नशा सा हो रहा था,

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तभी पीछे से मुझे किसी ने दबोच लिया, बड़ी तगड़ी पकड़ थी, महक हलकी सी जानी पहचानी
वाह माझा ही आ गया. फागुन आया नहीं की उपवास ख़तम. अब चाहे कोई देवर बड़ा हो या छोटा. नथ तो भौजी ही उतारेगी. आखरी बून्द भी चाटवा दी बंटी को. माझा आ गया कोमलजी.

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komaalrani

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भाग ८२ सुगना भौजी अपडेट पोस्टेड

पृष्ठ ८३०



कृपया पढ़ें, पसंद करें, लाइक करें और कमेंट अवश्य करें
 
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komaalrani

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यह पोस्ट सुगना भौजी ,

आरुषि जी की कविता ससुर और बहू से अनुप्राणित है और आरुषि जी को ट्रिब्यूट के तौर पर समर्पित है।

कंचन और ससुर कहानी का आरुषि जी ने एक काव्य रूपांतर प्रस्तुत किया था, मेरी कहानी जोरू के गुलाम में कई भागो में। यह कविता पृष्ठ ११९५ ( पोस्ट ११९५० ) से शुरू हुयी थी जिसमे आरुषि जी ने कहा था,

"आज एक नई कविता शुरू कर रही हूं जो एक कहानी से प्रेरित है जो मैंने यहां ससुर और बहू (कंचन और ससुर) के बीच यौन संबंधों पर पढ़ी है।"


और मैंने उनकी पंक्तियों से प्रभावित होकर लिखा था

" अब जो आपने ससुर बहु का यह प्रंसग यहाँ दिखाया है, तो मुझे लग रहा है की आपकी इस कविता के ट्रिब्यूट के तौर पर छुटकी होली दीदी की ससुराल में एक छोटा ही प्रसंग, बहू और ससुर के बारे में लिखने का प्रयास करूँ, जो आपकी कविता की प्रतिछाया भी नहीं होगी पर मेरी ओर से एक छोटा सा ट्रिब्यूट होगा इस कविता को, : ( जोरू का गुलाम -पृष्ठ ११९६)

तो बस वही छोटी सी कोशिश है सुगना और ससुर के रूप में

हाँ एक बात और

इस भाग में सवाल ज्यादा उपजे हैं

क्या सुगना के ससुर ठीक हो पाए ?

हिना की माँ और ठाकुर साहब, सुगना के ससुर का जिक्र भी आया है,

और सबसे बढ़कर सुगना और ससुर जी का असली किस्सा एक लाइन में निपटा दिया " रात को दावत हुयी जम कर "

तो तबियत खराब होने के पहले करीब साल भर के किस्से बस एक लाइन में

नहीं नहीं , अगर आप सब को यह हिस्सा अच्छा लगा तो यह किस्सा खूब विस्तार से सात आठ भाग में जैसे अरविंद और गीता का या रेनू और कमल का किस्सा है उसी तरह आएगा

लेकिन लाइक करना, कमेंट करना ही बताएगा की सुगना और उनके ससुर की का रिश्ता आपको कैसा लगा।
 

Random2022

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सुगना की मालिश का जादू


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जवान औरत की देह बहुत दिन बाद छू रही थी, देह उसके ससुर की गिनगीना रही थी, अब सुगना को तो कुछ बोल नहीं सकते थे अपनी समधिन का नाम लेकर सुगना की महतारी को इशारा करके छेड़ा,..

" हमार समधिन लगता है कौन नाऊ के साथ सोई थीं जब गाभिन हुयी, तू पेट में आयी, तब ही इतनी बढ़िया मालिश सीखी हो "

सुगना काहें चुप रहती उसने भी अपनी महतारी के कंधे पर रख कर बंदूक चला दी,...

" अरे आपकी समधन होतीं तो जवाब देतीं, अपने दामाद की दादी और बुआ दोनों का हाल सुना देतीं की वो लोग किसके किसके साथ टांग उठाये हैं, की कहीं आपके समधिन के समधी के साथ ही तो नहीं,... "
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और साथ ही में हाथ सरक के जाँघों के ऊपर कच्छे के अंदर

लेकिन उसके नाखूनों ने बॉल्स को बस छू लिया और अब सुगना गिनगीना गयी।


उसकी माँ ने जब सुगना के जोबन आने ही शुरू हुए थे उसकी चोटी करते हुए अपनी बेटी को समझा दिया,

" लंबा मोटा से भी ज्यादा जरूरी है, मरद का चोदू होना, रगड़ रगड़ के चोदे, लड़की को बिना झाड़े फेचकुर न फेंके, और उसके लिए पता चलेगा उसके पेल्हड़ से दोनों रसगुल्लों से,... "
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" अरे कहीं लंबा मोटा भी हो साथ में तो,... " चोटी करवाते हुए सुगना ने अपनी माँ से पूछा। "


" अरे फिर तो कुछ भी करो, उसे छोड़ना नहीं चाहिए, कुछ भी करके पटाओ, मनाओ,... लेकिन कउनो मरद हो बहिन महतारी की गारी जरूर अच्छी लगती है, और उहो मेहरारू के मुंह से, देखो सादी बियाह में जब तक बरतीयंन क नाम ले लेके बहिन महतारी न गरियाओ,... "

माँ ने एक और गुर बताया,...

" अरे माँ सब के सब अपनी बहिन महतारी चोदना चाहते हैं तो सच में न सही तो गारिये में,... " खिलखिलाते हुए सुगना बोली।


अगली बार सुगना के नाख़ून ने बॉल्स को खरोच भी दिया और अब जैसे माँ ने बताया था वैसे ही बल्कि उससे भी दो हाथ आगे,... सुगना को अपने ससुर के नंबरी चोदू होने का अब बिसवास हो गया था. तेल लगी उँगलियों से सिर्फ बॉल्स को वो सहला रही थी, कभी हलके से चिकोटी भी काट लेती, और असर अब उसका मूसल पर भी हो रहा था, कच्छा तन रहा था,... और सुगना की आँखे फटी की फटी रह गयीं,...

तम्बू में बम्बू,...बड़ा कितना था, इमरतिया सही कहती थी, बित्ते से भी बड़ा, और उससे ज्यादा मोटा, सुगना के कलाई के बराबर या शायद ज्यादा ही हो


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ये बात सही थी की सुगना ने अपने मर्द के अलावा किसी और का नहीं देखा था,

लेकिन सबसे पहले उसकी माँ ने फिर मौसियों ने, भौजाइयों ने,...

हर ननद भौजाई से गौने की रात के बाद यही पूछती, और हर भौजाई ससुराल से गौने के बाद पहली बार मायके लड़की ननद से, कितना बड़ा,... लेकिन किसी ने भी ऐसा बड़ा,...

पर सुगना ने कच्छा नहीं खोला, हाँ अब तेल लगी उंगलिया कभी उस मूसल के बेस पर तेल लगातीं तो कभी अंगूठे से पकड़ के दबा देती, तो कभी अंगूठे को वहीँ बेस पे रगड़ देती। फिर एक ऊँगली सहलाते हुए असली चीज,...

कितना मोटा, जाएगा कैसे अंदर,... मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा था, ... और फिर सुगना को अपनी माँ की बचपन में दी गयी सीख याद आयी
छोटी थी पहली बार माहवारी हुयी थी तभी माँ ने समझाया था सुगना को,

" अरे मोटा पतला मत देखना, ... खाली पूरी ताकत से जांघ फैला देना, हाथ से पलंग क पाटी, जो भी पकड़ में आये पकड़ लेना,... आँख बंद,... बस पेलना मरद का काम है धकेलेगा, ठेलेगा, कोई मरद सामने छेद हो बिना घुसेड़े छोड़ता नहीं, स्कूल के लौंडो को तो छोड़ते नहीं,... आखिर एही हमरी बुरिया से तू निकली थी की नहीं, और तोहरे बिलिया से हमार नाती नतिनी सब निकलेंगे, कम से कम पांच,... तो कौन लंड केतनो मोट हो बच्चे से तो पतला ही होगा, तो जउन बुरिया से पूरी दुनिया निकली ओके मोट पातर से कौन डरे की जरूरत, हाँ मोट होगा कड़ा होगा लम्बा होगा तो मजा बहुत आएगा, लेकिन घुस सब जाते हैं अंदर। :"
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एक पल के लिए हदस गयी थी सुगना लेकिन माँ की बात यादे आते ही सिर्फ ऊँगली की टिप से वहां भी कभी तेल लगा देती जैसे कोई टीक रहा हो, फिर ऊँगली उस छेद पर जैसे गलती से छू गयी जिसके पानी के लिए हर औरत पागल रहती है,

पागल उसके ससुर भी हो रहे थे, इमरतिया ने कितनी बार हाथ लगाया था, लेकिन जवान दुल्हिन के हाथ का असर ही अलग है,.. और फिर जिस तरह से वो छू के ऊँगली हटा ले रही थी,...बस जान नहीं निकल रही थी,... लग रहा था फट जायेगा, इतने दिनों का रुका सब माल निकल जाएगा,... कोई और होता तो अबतक पटक के निहुरा के

सुगना ने अब रास्ता बदला, एक हाथ तो कच्छे के अंदर नीचे से सेंध लगा रहा था दूसरे ने ऊपर से,

और अबकी हिम्मत कर मुट्ठी में,... मुट्ठी में आ ही नहीं रहा था इतना फूला,...

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पलट जाइये, पेट के बल ,... पीछे कमर पर भी लगा देती हूँ,...

और अब बदमाशी बंद कर के उसके दोनों हाथो एकदम कुशल मालिश वाली की तरह दोनों कंधे पर से रगड़ते हुए रीढ़ की हड्डी के अंत तक बार बार, ... अब सच में रिलैक्स हो रहे थे वो क्या हाथ है,

लेकिन तभी उनके सर को थोड़ा और ऊपर उठा के बोली,

" ये भी लगा लीजिये सर में गड़ रहा होगा,... "

और सुगना के ब्लाउज की महक उनके नथुनों में भर गयी.

मतलब,... वो समझ नहीं पा रहे थे,...

लेकिन थोड़ी देर बाद खुद ही पता चल गया, सुगना झुक के पीठ पर तेल लगा रही थी जाने अनजाने उसके दूध के कटोरे,...




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पूरे नहीं बल्कि सिर्फ निपल उसके ससुर की पीठ को कभी कभी छू दे रहे थे, एकदम कड़े पत्थर से, और अब सुगना ने धीरे धीरे कच्छे को पीछे से सरकाना शुरू कर दिया, और तेल लगे हाथ जैसे अपने आप सरक के ससुर के दोनों नितम्बो पर, एकदम टाइट कड़े कड़े,...



उस दिन सुगना की चोटी करते हुए उसकी महतारी ने ये भी बताया था, सुन, मरद की कमर की ताकत का पता कैसे लगेगा, धक्का कितना जबरदस्त मारता है ,... और खुद ही बस आ रहे छोटे छोटे टिकोरों वाली अपनी एकलौती बेटी को, समझाया, मरद के चूतड़ से,...
और एकदम उसी तरह का चूतड़ था जैसे माई ने बताया था,... सुगना का रोम रोम सिहर उठा,... मरद चाहे जैसा रहा हो, अच्छा हुआ चला गया, अब असली मरद,... तो यही है, और एक बार कटोरी में तेल में तर्जनी बाएं हाथ की सुगना ने डुबोई अच्छी तरह,.. और नितम्बो की बस रीढ़ की हड्डी की जड़ से सरकते हुए सीधे नितम्बों के बीच की दरार में, ... जैसे गलती से छू गया हो,... लेकिन फिर दो बार तीन बार चार दरेरते, रगड़ते,...


और अब सुगना के जोबन खुल के उन की पीठ पे सरक रहे थे रगड़ रहे थे,...


जिन गोलाइयों को जब सुगना को पहली बार देखा था उन्होंने तभी से तोपे ढके ब्लाउज और अच्छे से ओढ़े गए आँचल के अंदर से भी, सोच के उनकी हालत खराब थी और वो आज एकदम खुल के उनकी पीठ पर रगड़ रहे थे,... अब वो सिसक रहे थे, देह कसमसा रहे थे,


सुगना ससुर की ये हालत देखकर मुस्करा रही थी. उसकी बाएं हाथ की ऊँगली जो पिछवाड़े की दरार के बीच दरेर रही थी,... कलाई की पूरी ताकत लगा के उसने ठेल दिया,... और एक पोर भी नहीं, मुश्किल से नाख़ून भर अंदर पिछवाड़े, और उसी के साथ दांया हाथ, सरक कर कच्छे के अंदर और अबकी खुल के सुगना ने ससुर के मूसल चंद को मुट्ठी में दबोच लिया, अंगूठे से कभी सुपाड़े को सहलाती कभी दबाती,... कभी बस रगड़ देती,...



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वो पेट के बल लेटे थे,...सुगना उनकी पीठ पर, कभी देह से देह सटा देती कभी हटा लेती,... और चिढ़ाते हुए बोली,

" आपकी समधिन तो पता नहीं का कहतीं, लेकिन एक बात मैं बोल सकती हूँ आपकी समधिन की ओर से,.. आपकी समधिन के एकलौते समधी की महतारी,... जरूर किसी गदहे घोडे के संग सोई होंगी, ... जो हमरे ससुर,... या पता नहीं कउनो पंचायत गर्भ केंद्र वाले सांड़ के पास,... "

और ये कहके सुगना ने मुठियाया तो नहीं लेकिन कभी पूरी ताकत से कस के दबा देती तो कभी ढीला छोड़ देती उस मूसल को, सुगना की कलाई से चौड़ा ही रहा होगा,...



थोड़ी देर बाद सुगना ने उन्हें सीधा किया, कच्छा भी ठीक किया, एकदम बांस की तरह खड़ा था तना, कच्छे के ऊपर से एक बार होंठ से फिर अपने दोनों जोबन से हलके से सहला के सुगना उठ गयी और बोली,


बस आप ऐसे ही रहिये, थोड़ी देर में तेल सूख जाएगा,... तबतक मैं खाना बना लेती हूँ,



खाना खिलाते हुए ससुर जी ने आज साफ़ साफ़ बोल ही दिया,

" तुमने तो मुझे भूखा ही छोड़ दिया "



सुगना ने अपने मन की बात बोल दी, " मेरा भी तो कब से उपवास चल रहा है, घबड़ाइये मत आज रात को दावत होगी, जिमियेगा छक कर.



रात को दावत हुयी। जम कर हुयी,
Dawat me kya kya hua yeh bhi to bataiye
 

Random2022

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तो पिछले छह महीने से उपवास ही चल रहा था, तो कल कब्बडी में आयी तो सुगना को जब पता चला की कल देवरों की रगड़ाई होगी, गुलबिया ने एक बार सुगना को बोला तो वो झट से तैयार,...

मैंने सुगना से इशारे से पूछा, कितने देवर कितनी बार चुदी, पांचो ऊँगली फैला दी उसने,...

तभी सुगना की निगाह बंटी पर पड़ी, वो भी पश्चिम पट्टी पड़ोस की,...
जब मैंने सुगना से पूछा कहाँ से आ रही हो भौजी

तो बंटी को सुनाती बोली, " मूत कर के आ रही हूँ, पता नहीं था की ये यहाँ छुपा है नहीं तो ,...
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सुगना की बात मैंने पूरी की तो एकरे मुंह में मूत देती, अरे सुगना भौजी जो लगा हो वही चटा दीजिये, दो चार बूँद बची हो,..."

मेरी बात ख़तम होने के पहले ही सुगना दोनों जाँघे फैला के अपनी बुर अपने देवर बिट्टू के ऊपर चढ़ कर बुर सीधे उसके मुंह के ऊपर,...थोड़ी देर में बंटी खुद ही चाट रहा था,...


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लेकिन मेरी निगाह बंटी की जाँघों के बीच और देखते ही देखते उसका एकदम फिर से खड़ा हो गया, सुगना भी उधर ही देख रही थी, ... मुझे देख के मुस्कराने लगी।



तबतक मेरे कान में रेनू की आवाज पड़ी, " नयकी भौजी "

मैंने आगे का काम सुगना के हवाले कर दिया,... अरे तोहरी पट्टी क है तोहार पड़ोसी, देवर, तो लड़का से मर्द बनाने का काम अब सुगना भौजी तोहरे जिम्मे,
Teej-Chandrika-Desai.png


" एकदम अब किसी दिन नहीं छोडूंगी इसको रोज,... और नयको तू जा रेनुवा चोकर रही है।" सुगना कस कस के अपनी गीली बुर बंटी के मुंह पे रगड़ती बोली।



मैं सुगना को बंटी के पास छोड़ कर रेनू के पास जहाँ बाकी भौजाई ननद और देवर थे, वहां आ गयी

लेकिन रेनू वहां नहीं थी,... किसी ने बोला की आपको ढूंढते बँसवाड़ी की ओर गयी है,... उधर तो बाग़ और गझिन थी, आम के साथ महुआ, पाकड़, और दो चार खूब पुरानी बँसवाड़ी, जल्दी उधर कोई नहीं आता था.

कहीं दिखी नहीं, हाँ उसकी कभी खिलखिलाहट कभी मुझे पुकारने की आवाज हलकी हलकी सुनाई दे रही थी। मैं बँसवाड़ी के झुरमुट के पास तक पहुंच गयी थी, पीछे बहुत घने पुराने दो पाकड़ के चार महुए के बहुत पुरना पेड़, महुए के फूलों की मादक महक आ रही थी, एकदम नशा सा हो रहा था,

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तभी पीछे से मुझे किसी ने दबोच लिया, बड़ी तगड़ी पकड़ थी, महक हलकी सी जानी पहचानी
Kisne daboch liye komal bhabhi ko. Wo kushti wala pahalwan to nhi
 

Random2022

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यह पोस्ट सुगना भौजी ,

आरुषि जी की कविता ससुर और बहू से अनुप्राणित है और आरुषि जी को ट्रिब्यूट के तौर पर समर्पित है।

कंचन और ससुर कहानी का आरुषि जी ने एक काव्य रूपांतर प्रस्तुत किया था, मेरी कहानी जोरू के गुलाम में कई भागो में। यह कविता पृष्ठ ११९५ ( पोस्ट ११९५० ) से शुरू हुयी थी जिसमे आरुषि जी ने कहा था,

"आज एक नई कविता शुरू कर रही हूं जो एक कहानी से प्रेरित है जो मैंने यहां ससुर और बहू (कंचन और ससुर) के बीच यौन संबंधों पर पढ़ी है।"


और मैंने उनकी पंक्तियों से प्रभावित होकर लिखा था

" अब जो आपने ससुर बहु का यह प्रंसग यहाँ दिखाया है, तो मुझे लग रहा है की आपकी इस कविता के ट्रिब्यूट के तौर पर छुटकी होली दीदी की ससुराल में एक छोटा ही प्रसंग, बहू और ससुर के बारे में लिखने का प्रयास करूँ, जो आपकी कविता की प्रतिछाया भी नहीं होगी पर मेरी ओर से एक छोटा सा ट्रिब्यूट होगा इस कविता को, : ( जोरू का गुलाम -पृष्ठ ११९६)

तो बस वही छोटी सी कोशिश है सुगना और ससुर के रूप में

हाँ एक बात और

इस भाग में सवाल ज्यादा उपजे हैं

क्या सुगना के ससुर ठीक हो पाए ?

हिना की माँ और ठाकुर साहब, सुगना के ससुर का जिक्र भी आया है,

और सबसे बढ़कर सुगना और ससुर जी का असली किस्सा एक लाइन में निपटा दिया " रात को दावत हुयी जम कर "

तो तबियत खराब होने के पहले करीब साल भर के किस्से बस एक लाइन में

नहीं नहीं , अगर आप सब को यह हिस्सा अच्छा लगा तो यह किस्सा खूब विस्तार से सात आठ भाग में जैसे अरविंद और गीता का या रेनू और कमल का किस्सा है उसी तरह आएगा

लेकिन लाइक करना, कमेंट करना ही बताएगा की सुगना और उनके ससुर की का रिश्ता आपको कैसा लगा।
2 min ka mja kisi or achha nhi lgta , chahe xxx ho ya story.
 

Sutradhar

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यह पोस्ट सुगना भौजी ,

आरुषि जी की कविता ससुर और बहू से अनुप्राणित है और आरुषि जी को ट्रिब्यूट के तौर पर समर्पित है।

कंचन और ससुर कहानी का आरुषि जी ने एक काव्य रूपांतर प्रस्तुत किया था, मेरी कहानी जोरू के गुलाम में कई भागो में। यह कविता पृष्ठ ११९५ ( पोस्ट ११९५० ) से शुरू हुयी थी जिसमे आरुषि जी ने कहा था,

"आज एक नई कविता शुरू कर रही हूं जो एक कहानी से प्रेरित है जो मैंने यहां ससुर और बहू (कंचन और ससुर) के बीच यौन संबंधों पर पढ़ी है।"


और मैंने उनकी पंक्तियों से प्रभावित होकर लिखा था

" अब जो आपने ससुर बहु का यह प्रंसग यहाँ दिखाया है, तो मुझे लग रहा है की आपकी इस कविता के ट्रिब्यूट के तौर पर छुटकी होली दीदी की ससुराल में एक छोटा ही प्रसंग, बहू और ससुर के बारे में लिखने का प्रयास करूँ, जो आपकी कविता की प्रतिछाया भी नहीं होगी पर मेरी ओर से एक छोटा सा ट्रिब्यूट होगा इस कविता को, : ( जोरू का गुलाम -पृष्ठ ११९६)

तो बस वही छोटी सी कोशिश है सुगना और ससुर के रूप में

हाँ एक बात और

इस भाग में सवाल ज्यादा उपजे हैं

क्या सुगना के ससुर ठीक हो पाए ?

हिना की माँ और ठाकुर साहब, सुगना के ससुर का जिक्र भी आया है,

और सबसे बढ़कर सुगना और ससुर जी का असली किस्सा एक लाइन में निपटा दिया " रात को दावत हुयी जम कर "

तो तबियत खराब होने के पहले करीब साल भर के किस्से बस एक लाइन में

नहीं नहीं , अगर आप सब को यह हिस्सा अच्छा लगा तो यह किस्सा खूब विस्तार से सात आठ भाग में जैसे अरविंद और गीता का या रेनू और कमल का किस्सा है उसी तरह आएगा

लेकिन लाइक करना, कमेंट करना ही बताएगा की सुगना और उनके ससुर की का रिश्ता आपको कैसा लगा।

बहुत अच्छा लगा कोमल जी

"लाला, तुम अनाड़ी भले ना हो लेकिन सीधे बहुत हो। अरे अगर तुम ऐसे किसी लौंडिया से पूछोगे तो क्या वो हाँ कहेगी? अरे बस चढ़ जाना चाहिये उसके ऊपर और जब तक वो सोचे समझे अपना खूंटा ठूंस दो उसके अन्दर…”

उक्तानुसार आपके आगामी अपडेट के लिए एक सुझाव, "फागुन के दिन चार" से।

पूछिए मत बस अपडेट दे दीजिए। :tongue: :tongue::tongue:


सादर
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार - भाग ७ -गुड्डी -गुड मॉर्निंग

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