Premkumar65
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Wah suguna bhauji apne sasur par hi chadhne ki tayyari kar rahi hai.भाग ८२ -सुगना भौजी
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बंटी अलग होकर मेरे बगल में लेटा ही था की एक झाडी के पास से उठ के आती हुयी सुगना दिखी,... आज भौजाइयों में सबसे ज्यादा वही गरमाई थी, कोई सगा देवर था नहीं , मरद क़तर गया था,
गौने के कुछ दिन बाद ही तब से लौटा नहीं। पच्छिम पट्टी की,...
सुगना एकदम रस की जलेबी, वो भी चोटहिया, गुड़ की जलेबी, हरदम रस छलकता रहता, डेढ़ दो साल पहले ही गौने उतरी थी, जोबन कसमसाता रहता, चोली के भीतर जैसे अंगारे दहकते रहते, जैसी टाइट लो कट चोली पहनती सुगना भौजी, सीना उभार के चलतीं, जवान बूढ़ सब का फनफना जाता था, ... गौना उतरने के कुछ दिन बाद ही मरद कमाने चला गया, क़तर, दुबई कहीं, सास थीं नहीं। ननद बियाहिता। घर में खाली सुगना और उसके ससुर।
गौने में दुल्हिन उतारने, परछन करने भी, वही हिना क महतारी, और मेरी सास, पठान टोली एकदम पच्छिम पट्टी से चिपकी, और हिना की महतारी तो सुगना के ससुर की मुंहबोली भौजी, सगी भौजी से बढ़कर,
तो बस वो, मेरी सास और एक दो औरतें और गाँव की गयी थीं दुल्हिन उतारने।
, , गोरी अँजोरिया अस नमक जबरदस्त और जबान में वैसे ही जबरदस्त,... जोबन का तो पूछना नहीं,...सुगना
लोग कहते हैं, लोग क्या हमारी सास खुदे कहती है , ... बाबू सूरजबली सिंह, सुगना के ससुर,... एकदम लहीम सहिम, जबरदस्त मर्द उमर तो पचास पार कर गयी थी लेकिन ताकत में जवान मात,.. सुगना की सास सुगना के गौने उतरने के साल भर पहले ही ऊपर चली गयी थी,.. लेकिन बाबू साहेब का नागा नहीं होता था, ... खेत बाड़ी, पुरानी जमींदारी,...
अरे गुलबिया की चचिया सास ,.. उनके घर की नाउन, कभी तेल लगाने तो कभी गोड़ मींजने, इमरती नाम था,... और सब को मालूम था था की तेल कहाँ कहाँ लगता था,... और वो मुंह खोल के बताती भी थी, एक दिन में मेरी सास ने मजाक में मेरे सामने पूछ भी लिया हँसते हुए ओह बड़का औजार में तेल आज कल लगता है की नहीं, केतना बड़ा है,... तो जिस तरह बित्ता फैला के इमरतिया बोली की मेरा और मेरी सास दोनों का मुंह खुला रहा गया.
और साथ में हंस के साफ़ भी कर दिया अरे मोटा कड़ियल काला नाग है सब बिल के बस का नहीं है।
तो जब सुगना गौने उतरी, तो एक दो रिश्ते की सूरजबली सिंह की भौजाईयो ने मजाक में पूछा भी,
" ये उजरिया अस बहुरिया केकरे लिए लाये हो अपने लिए की बेटवा के लिए. "
और कौन वही हिना क महतारी, सबसे ज्यादा मजाक वही करती थीं सुगना के ससुर से, वो भी एकदम खुल कर, और ख्याल भी करतीं थी, सुगना के सास के जाने के बाद से तो और
" अरे भौजी तू तो भैया में ही उरझायी रहती हो, अब हमरो उमर हो गयी है,... तो बुढ़ापे के कोई तो ख्याल रखे, लड़का तो कमाए खाये जाएगा ही बाहर अब खेती में का रखा है, फिर पढाई लिखाई क का फायदा अगर,... " बाबू साहेब ने भी उसी तरह जवाब दिया,...
सुगना हाथ भर का घूंघट काढ़े थी, लेकिन डोली उतरती दुल्हिन के दस कान होते हैं, वरना ससुराल में एक दिन न निबट पाए। सुन भी लिया,.. समझ भी लिया ,... पूरा नहीं तो आधा तीहा।
और थोड़ा बहुत जो बचा था सुहाग की सेज चढ़ते उतरते,... कमरे में जाने के पहले सास क्या वही इमरतिया नाउन बोली,
" बहू सास तो हैं नहीं अब जो हैं तोहार ससुर है तो उन्ही क गोड़ छू के,... '
सजी धजी सुगना जब गोड़ छूने गयी तो उसको उठा के, हल्का सा घूंघट उठा के ससुर बोले,...
" बहु कुछ परेशानी हो तो बिना झिझक हमें बताना अब तोहार सास तो है नहीं जो हैं हम है कोई कमी बेस हो, किसी चीज की जरूरत हो बस इशारा कर देना, मैं हूँ न,... "
गौने की रात भी बस वैसी रही,... कुछ खास नहीं।
जो होता है वो हुआ, लेकिन दूल्हे को दुल्हिन से ज्यादा इस बात बताने में दिलचस्पी थी की उसे क़तर में बढ़िया नौकरी मिल गयी है, और कुछ दिन बाद ही उसे बंबई जाना है कागज बनवाने,... "
सुगना जब सबेरे कमरे से निकली, ... सबसे पहले ससुर दिखे और उन्होंने बहुरिया की आँखों में वो थकान नहीं देखी जो गौने के रात के बाद की होती है,... और खुद ही रोक के समझाते बोले,
" बहू कम बेसी होता है, सबके साथ,... लेकिन बस ये याद रखना मैं हूँ न, ... कोई चीज की जरूरत हो, कोई भी,... निसंकोच,.. कहने की भी जरूरत नहीं, बस इशारा काफी है, और ये घूंघट वून्घट हमसे नहीं अब तो तुझे मेरा ख्याल रखना है और मुझे तेरा "
सुगना समझ तो गयी, लेकिन गाँव भर की बड़ी, रिश्ते की सास,... काम वाली, पूरे गाँव में बांटती,... इसलिए ससुर के सामने अभी भी हाथ भर का घूंघट काढती, पर्दा करती, परछाईं तक बेराती। घर में एक काम वालियां रहती हीं, कूटना, पीसना, सबके सामने बहुत सम्हल कर, गांव क रीत रिवाज, तुरंत क गौने उतरी बहुरिया,
लेकिन अब ससुर के सामने वो किसी न किसी बहाने, भले ही परदे में,...
कभी चूड़ी खनकाती, कभी पायल झनकाती, कभी कभी आँचल लहराती।
अंगिया भी उसी डारे पर सूखने के लिए डालती जहाँ ससुर बैठते, और टांगती उतारती भी तभी जब ससुर जी आस पास ही हों.
लेकिन सबसे खतरनाक काम उसने किया अपने मरद के जाते ही इमरतिया का घर में आना जाना बंद कर दिया,...
डांट के हड़का के नहीं,... बल्कि प्यार से समझा के की अगल बगल की सास लोग पता नहीं का का कहती हैं वो भी उसकी सास की तरह ही है, लेकिन,..और एक बात जो कटाई में चार कट्टा, त्यौहार में साल में दो साड़ी, वो सब उसे उसी तरह मिलता रहेगा। बस एक बार लोगो का मुंह बंद हो जाये फिर,... इमरतिया ने ही उसे ससुर के बारे में सब कुछ बताया था, तो सुगना को ये भी लगता था की सब बातें ये घर घर जाके बांटेगी।
और असली चीज ससुर की भूख बढ़ेगी तो खुद ही बहू से मांगेगें, इमरतिया रहती है तो उनका काम चल जाता है. वो नहीं मिलेगी तो फिर फड़फड़ायेंगे और एक दिन सुगना के पास ही,...
और ससुर को खाने खिलाते उनका दिल भी टटोलती, आग लगाती, उकसाती,...
" भूखे मत रह जाइयेगा, वरना सोचियेगा की कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा। "
और उसके बाद अँजोरिया अस चेहरा और दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखे उठा के देखती तो ससुर जी का टनटना उठता। एक दिन उनके मुंह से निकल गया,
" अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी ".
" अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, ..." हँसते हुए कटोरी में दही डालते वो बोली।