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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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कहानी मे मस्ती होंगी शारारत होंगी. त्यौहार होगा शादी वाला माहोल होगा. लेकिन एक चीज कोमल रनी की कहानियो मे पक्का होंगी. खुशियाँ.

ननद भाभी की जुगलबंधी मन मोह लिया. इस ननंद भोजाई जोड़ी के लिए तो सखी शब्द इस्तमाल करना बनता है.

क्या मेले की रंगत दिखाई हे. ननंद भोजाई का टिल एक्सचेंज वाला आईडिया तो जबरदस्त था.


छिनार नांदिया को मालूम है की कहा डबवाने है. माशालवाने है. तभी तो सकडी गली. और 4 मर्दो से घिए. क्या जोबन और क्या पीछवाडा सब का स्वाद ले लिया ननद रनी ने.

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इसी शादी-ब्याह.. पर्व त्योहार वाले माहौल में तो मस्ती की बहार रहती है..
और इसी मस्ती को पूरी साज सज्जा के साथ एक कहानी में पिरोते हुए पेश करने की कला है कोमल जी में...
 

motaalund

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छिछोरी नंदियाओ को मात देने का माझा कुछ और ही है. वो जितनी चालक बनेगी. उतना ज्यादा रगड़े जाएगी. अब सीधा बहार नहीं आए तो भौजी कैसे बक्श दे. मौका मिलते ही मस्ती की वो सीमा. माझा ला दिया.

आप लास्ट लाइन मे पंच मरती हो. दोस्ती पक्की हो गई. मै एक एक मीनिंग को फील करती हु.


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क्या ननद की ननद को कुछ सिखाया पढ़ाया नहीं जाएगा...
मेरा मतलब है सबक...
 

motaalund

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उफ्फ्फ. दोस्ती पक्की और मेने जो सखी वर्ड कहा गलत नहीं था. सच मुच. दोनों के बिच कन्या नारी रस का जो संगम बनाया है. क्या ही कहना.

और नांदिया ने तो कबूलत पे dastakhat भी कर दिये. तुम्हारे सैया मेरे भैया से.... माझा सा गया.


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सखी क्यों.. बहन..
आखिर कोमल की नकल..
तो बाउजी ने हीं कुछ....
 

Shetan

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आ गए ननद के भइया
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वो आये तो कभी मुझे देखते कभी अपनी गर्मायी मस्तायी बहिनिया को, खूंटा बस टनटनाने लगा, मैंने अपनी ननद को देखा उनकी निगाह भी चोरी छुपे वहीं खड़े होते,


मैंने कस के उन्हें बाँहों में बाँध लिया और अपने जोबन को अपने मरद के चौड़े सीने पे रगडते कस के चुम्मी ले ली, और एक दो नहीं दसों बीसो, अपने होंठ रगड़ती रही उनके मुंह पे,... और उनकी बहन की चूत की जो चासनी मेरे मुंह में लगी थी सब उनके होंठों पे लिथेड़ दी, और उन्होंने भी जीभ निकाल के मेरे होंठ से चाट लिया,...

कौन मर्द होगा जो चूत रस न पहचानता होगा, उसका स्वाद महक न जानता हो. और मेरा मरद तो जबरदस्त चुदक्क्ड़,

मुझे तो इसी काम के लिए मेरी माँ ने उनके साथ भेजा था, लेकिन मेरी माँ बहन भाई किसी को भी नहीं छोड़ा, न अगवाड़ा, न पिछवाड़ा ( न बिस्वास हो तो मेरी इसी कहानी की प्रीक्वेल पढ़ लीजिये, मजा पहली होली का ससुराल में ) और अब मैं उसे उसकी माँ बहन पर चढ़वाने वाली थी, वो भी अपने सामने आज बहन का नंबर कल उनकी माँ का।


चुम्मा चुम्मी के साथ साथ मैं उनका खड़ा होता खूंटा भी खूब कस के रगड़ रही थी, और उन्हें चिढ़ाते बोली,


" रसमलाई की चासनी अच्छी लगी, अरे रसमलाई, अच्छी लगी हो जो सामने खड़ी मुस्करा रही हैं उन्ही की है मांग लीजिये दे देंगी। मेरी ननद बड़ी अच्छी हैं जब से झांटे आयीं किसी को मना नहीं किया तो अपने भैया को काहें मना करेंगी। और मांगने की का जरूरत है आज उनके सैंया भी नहीं है, बस सीधे से ले लीजिये, अच्छा चलिए गले तो मिल लीजिये वरना कहेंगी की भाई बहन के बीच ये बाहर वाली भौजाई आ गयी.


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कुछ मेरी जोबन की रगड़ाई का असर, कुछ मेरी ननद के जोबन का असर,... थोड़ा वो बढे, ज्यादा वो बढ़ीं, और दोनों एक दूसरे की बांहो में,

खूंटा तो कुछ पहले से देख के खड़ा था, बाकी मैंने रगड़ रगड़ के खड़ा कर दिया था,

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और ननद मेरी पैदायशी छिनार, उसने अपना इरादा साफ़ कर दिया अपनी जाँघों के बीच से खूंटा रगड़ के,


" अरे एक चुम्मा तो ले लो " मैंने चिढ़ाया और किचेन में,... और मुड़ते मुड़ते मैंने देखा पहल ननद ने ही की चुम्मा लेने की, लेकिन हर बार होता शुरू तो औरत करती है लेकिन अंजाम पर मरद पहुंचाता है, और क्या जबरदस्त चुम्मी ली उनके भैया ने और खुल के बहना के जोबन भी दबाना शुरू कर दिया,...

खाना निकालते समय मैंने थोड़ी बेईमानी कर दी,..

दूबे भाभी को मैंने थोड़ा इशारा कर दिया था, और उन्हें तो अंदाजा था ही की आज क्या होना है।

दूबे भाभी के इशारे पर उन्ही के सपोर्ट से मैंने ननद से तीन तिरबाचा भरवाया था की आज और सिर्फ आज नहीं जब कहूँगी तब, मेरे सामने मेरे मरद का उन्हें घोंटना है,.. और दूबे भाभी ने पांच पुड़िया हरे रंग की और पांच लाल रंग की मुझे दे दी थीं अपने जड़ी बूटी के खजाने से निकाल कर,

हरे रंग वाली ननद के लिए,


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ननद क्या किसी भी औरत के लिए, बस आधे घंटे में ऐसी मस्ती चढ़ती थी की भाई, बेटा, सगा पराया कुछ नहीं देखती, खुद ही बिल फैला के चढ़ जाती,... और दस बारह घंटे तक तो चुदवाने के अलावा कुछ सूझता नहीं और बाद में भी बस वही,


लाल पुड़िया मर्द के लिए,


और पहला असर तो वहीं बहन महतारी कुछ नहीं सूझती थी, बस बुर नजर आती थी. वो मना भी करे, टाँगे भी सिकोड़े तो जबरदस्ती बिन पेले नहीं छोड़ने वाला था,...

और दूसरी अगर उसमें एक सांड़ की ताकत हो तो दस सांड़ की, मैंने हंस के पूछा दूबे भौजी से, आपके देवर में तो पहले से ही दस सांड़ की ताकत है,... वो क्यों छोड़तीं, बोलीं तो अच्छा है न आज तोहरी ननद पर रात भर रोलर चलेगा,...


लेकिन असली बात उन्होंने अंत में बताई,...


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वीर्यवर्धक, वीर्य को शक्तिवान बनाने की,... जिसका दो बूँद निकलता है वो भी कटोरी भर मलाई छोड़ेगा,... लेकिन उससे भी बढ़ के, ... अगर उस वीर्य की दो बूँद भी किसी सालों से सूखे पेड़ पर पड़े तो वो हरहरा उठे,... औरत की कोख में तो तुरंत,...


ननद को जो आशिर्बाद मिला था, पांच दिन के अंदर गाभिन होने का वो उन्होंने भी सुना था,...

तो बस हरी वाली ननद की खीर में और लाल वाली पुड़िया ननद के यार और अपने भतार की खीर में,..


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"हे चुम्मा चाटी हो गयी हो तो खाना खा लीजिये, आज हमारी ननद ने जबरदस्त खीर बनायी है, "

मैंने आवाज दी


और खाने के समय भी नजरों के तीर और ननद के साथ अच्छे वाले मजाक चालू रहे,

बेचारे उनकी हालत खराब थी कभी साड़ी में टाइट बंधे मेरे उभार पर निगाह लुढ़कती तो कभी अपनी बहन को कड़े कड़े गदराये जोबन पे फिसलती जिसे उन्होंने कच्ची अमिया से गदराते देखा था


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" अरे इत्ता ललचा रहे हो तो खोल के दिखा देती हूँ,... "

और मैंने उनकी बहन के जोबन पर से साड़ी हटा दी,... दो पूनो के चाँद एक साथ आसमान में निकल आये, गोरी तो मेरी ननद थीं ही खूब जोबन भी गद्दर भी कड़े भी, और मस्ती से निपल टनटनाये भी,...


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" बस थोड़ी देर इन्तजार करो, मिलेगा, हम दोनों रसोई समेट के आ रहे हैं " मैं बोली और धक्का देकर उन्हें उनके बिस्तर पर,



और हम ननद भौजाई रसोई में, बरतन पोंछा,... जो काम पौन घण्टे में होता था रोज आज बीस मिनट में मुझसे ज्यादा मेरी ननद को जल्दी थी।



और हम दोनों उनके पास कमरे में
मस्ती के इस सागर मे क्या क्या लू और क्या छोड़ू. मै सायद पूरा बता भी नहीं पाऊँगी.

1) प्रेम भरे वो शब्द जो सजनी बोलते ही गद गदा जाती है.

मैंने कस के उन्हें बाँहों में बाँध लिया और अपने जोबन को अपने मरद के चौड़े सीने पे रगडते कस के चुम्मी ले ली
2) पर उसके तुरंत ही बाद आगे की लाइन मे शारारत और वासना से भरी लाइन. जिसे पढ़ते हसीं और बहोत कुछ महसूस हुआ. जो बताया नहीं जाएगा.
और एक दो नहीं दसों बीसो, अपने होंठ रगड़ती रही उनके मुंह पे,... और उनकी बहन की चूत की जो चासनी मेरे मुंह में लगी थी सब उनके होंठों पे लिथेड़ दी, और उन्होंने भी जीभ निकाल के मेरे होंठ से चाट लिया,...
3) अब अपने साजन की और क्या तारीफ करें. वो तो हे ही.
कौन मर्द होगा जो चूत रस न पहचानता होगा, उसका स्वाद महक न जानता हो. और मेरा मरद तो जबरदस्त चुदक्क्ड़
मे उनकी तारीफ ऐसे कैसे छोड़ दू. इस लाइन के लिए मुजे फिर back होना पड़ा.
वो आये तो कभी मुझे देखते कभी अपनी गर्मायी मस्तायी बहिनिया को, खूंटा बस टनटनाने लगा,
4)
अब मैं उसे उसकी माँ बहन पर चढ़वाने वाली थी, वो भी अपने सामने आज बहन का नंबर कल उनकी माँ का।
अब ये तो भौजी धरम है. उसे कैसे छोड़ा जा सकता हे. पाप लगेगा एक भी ससुराल वाली बची तो. क्यों मायके वलियो को समर्पित नहीं किया. उनकी सेवा मे.

5) अब नांदिया हो तो ऐसी ही हो. जिला टॉप जल्दी बनेगी. फर्क नहीं करेंगी के भईया उसका है. या उसकी भौजी का.

और ननद मेरी पैदायशी छिनार,

6) वह डूबे भौजी. मान गए. साजन जगे रात भर और गचक के नांदिया की.

बहोत कुछ बताना था. पर भूल भी गई.

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Shetan

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खेला शुरू

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वो सिर्फ शार्ट में तम्बू तना हुआ,... कभी मुझे अपनी बहन को,...

मैंने उनकी बहन को उन्हें दिखा के कस के चूम लिया, और चिढ़ाया,



" मन कर रहा है, अरे दिलवा दूंगी। "
वो ना में सर हिलाते मना करते उसके पहले मैंने हड़का लिया,

" अबे स्साले, तुझे आम खाने से मतलब है या ये जानने से किस पेड़ का आम है. बोला न मिलेगा, बस मुंह मत खोलना "


मेरी ननद भी मूड में थीं, मेरी तरफ से बोली,... " अरे भाभी, मैं बचपन से जानती हूँ इसे नंबरी बदमाश, इसकी आँख बंद करनी पड़ेगी वरना ये ऐसे ही ललचाता रहेगा। "
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" एकदम सही कहा और आँख बंद करने के लिए इनकी बहन की साड़ी से बढ़िया क्या होगा" और मैंने झट से ननद की साड़ी खोल दी, और उसी साड़ी से मैंने और उनकी बहन ने मिल के आँखे कस के बंद कर दी, अब लाख कोशिश करें कुछ नहीं दिखाई पड़ने वाला था,

" तो आपकी साड़ी बचेगी क्या " ननद हंस के बोली,

और बचाना भी कौन चाहता था, ननद भौजाई एक ही हालत में, तो फिर ननद के भाई को मैं काहें छोड़ देती, एक झटके में मैंने शार्ट खींच लिया और ननद की आँखे फैली रही गयीं, जैसे कह रही हों वाह कितना मस्त, कितना मोटा और कितना कड़ा,

मैंने ननद की टनटनायी घुंडी घुमाते कान में चिढ़ाया, ...

" अभी बिल में अंदर घुसेगा तब पता चलेगा,... और चढ़ के लेना होगा "



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उनकी आँखों ने कह दिया की वो एकदम तैयार है, ...

लेकिन मुझे अपने मर्द को और तैयार करना था एकदम पागल, आखिर पहली बार अपनी बहन को मेरे सामने चोदने वाले थे वो, मेरी नाक का सवाल था, जब तक फाड़ के चीथड़े न कर दे मेरी सगी ननद की मेरा साजन,...

तैयार तो वो थे लेकिन बिना तड़पाये कौन लड़की देती है और आज ये मोटू मेरी ननद की बिल में मेरे सामने घुसने वाला था,...

मैंने पहले छोटे छोटे चुम्मे लिए सुपाड़े से लेकर खूंटे के बेस तक, फिर सिर्फ जीभ निकाल के नीचे से ऊपर तक लिक कर के, कभी जीभ की नोक उनके सुपाड़े के मूत वाले छेद पे बस छेड़ देती


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और फिर सपड़ सपड़ जीभ से सुपाड़े को,... बार बार,... बस सिर्फ जीभ, होठ भी नहीं,...

और एक झटके में जीभ एकदम नीचे दोनों बॉल्स, रसगुल्लों पर, ... उन दोनों की चमचागिरी करना तो बहुत जरूरी था, वहीँ तो वो अमृत बनता है जो मेरी ननद को गाभिन करेगा,...
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उनसे नहीं रहा जा रहा था, वो तड़प रहे थे, कभी चूतड़ पटकते थे कभी सिसकते थे, कसमसा रहे थे,

लेकिन मजा तो मुझे उनकी यही हालत देख कर होती थी, पर अब मुझसे भी बिना चूसे नहीं रहा जा रहा था, मैंने दोनों बॉल्स एक साथ मुंह में भर ली और लगी चूसने,



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और मेरी तर्जनी बस एक लाइन सी खींच रही थी लम्बे नाख़ून से सैयां के लंड पे नीचे से ऊपर तक,... कभी उसी तर्जनी से सुपाड़े को रगड़ दे रही थी और मना रही थी, उस बांस को,

"आज मेरी ननद के चिथड़े चिथड़े कर देना,... अगर कल ननद बिस्तर से उठने के लायक न रही न तो बस तुझे तेरी महतारी, ... तेरे मायके वाली सब औरतों लड़कियों की दिलवाऊंगी। कुँवारी भोंसडे वाली बच्चों वाली सब की बिल में घुसवाऊँगी अगर आज मेरी ननद की,"


मेरी ननद की हालत भी बहुत खराब थी. बेचारी की बुर रानी नौ नौ आंसू रो रही थीं, इत्ता मस्त खूंटा सामने और मिल नहीं रहा था,...

अब ननद का ख्याल भौजाई नहीं रखेगी तो कौन रखेगा, उसकी खराब हालत को और खराब करने की जिम्मेदारी तो भौजाई की है, बस मैं ननद की दोनों गीली फांकों को एक हाथ से पकड़ा कर कस कस के रगड़ने लगी, थोड़ी देर में एक तार की चासनी निकलने लगी.

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मुड़ के मैंने ननद का एक खूब गीला चुम्मा लिया और उसी भीगे होंठ से सीधे ननद के भैया के खुले सुपाड़े को चूम लिया,... और गप्पांक एक झटके में पूरा नहीं आधा सुपाड़ा गप्प, ननद को दिखा दिखा के चूस रही थी और थूक के सहारे, गीले होंठों के सहारे पूरा सुपाड़ा गप,
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और इशारे में ननद से पूछा चाहिए, उसने जोर से सर हाँ में हिलाया,...

बस मैं हट गयी और उनकी बहन अपनी गीली बुर की दोनों फांको को फैला के अपने भैया के मोटे सुपाड़े के ऊपर, बस किसी तरह फंसा दिया,...


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नीचे से बहन के भैया ने धक्का मारा,

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वाह क्या नांदिया छिनार है. और साजन मरदवा तो उस से भी बढ़कर. क्या शारारत से भरा इरोटिक सीन दिया है. ऐसा लग ही नहीं रहा की नांदिया को फसाया है. बल्कि प्रेम और मस्ती भरा माझा आ गया.

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komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २२३

रात अभी बाकी है

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर दें
 

komaalrani

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कोमल मैम

" लेकिन मैं भी न बात कहाँ से शुरू करती हूँ कहाँ पहुंचा देती हूँ इसलिए तो ऐसी कहानियों को न कोई पढता है न कमेंट करता है,"

अब ये तो इमोशनल ब्लैकमेलिंग है। यहां हम अपडेट का इंतजार करते - करते थेथर हुए पड़े रहते ओर आप है कि छेड़े बिना मानती नहीं है।

बिलकुल नशेड़ियों जैसी हालत कर दी है आपने। आपकी पुड़िया जैसा माल किसी थ्रेड पर नहीं मिलता, कसम से।

सादर
देखिये इस कमेंट का दो असर तो हुआ

एक तो आपने कमेंट कर दिया, और मुझे इस बात का विश्वास हुआ की कुछ लोग तो हैं ऐसे, जो पोस्ट्स का इन्तजार करते हैं,

दूसरे आपके कमेंट के बाद, पहला कमेंट पोस्ट के पोस्ट होने के करीब दो दिन बाद, मेरी मित्र लेखिका का आया, जो मेरे सूत्रों की अभिन्नं अंग है।

हाँ, अगर इस पुड़िया का असर ऐसा है जैसा आपने कहा तो मुझे उत्पादन और वितरण में सुधार करना चाहिए और मैंने आज जोरू का गुलाम में भी पुड़िया दे दी है और कोशिश करुँगी की फागुन के दिन चार में भी कल पोस्ट कर दूँ।

एक बार फिर से धन्यवाद, आप ऐसे थोड़े भी पाठक हों तो लिखना सार्थक हो जाता है जो एक एक लाइन पढ़ें और उसपर प्रतिक्रया दें

आभार।
 

komaalrani

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Sutradhar

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देखिये इस कमेंट का दो असर तो हुआ

एक तो आपने कमेंट कर दिया, और मुझे इस बात का विश्वास हुआ की कुछ लोग तो हैं ऐसे, जो पोस्ट्स का इन्तजार करते हैं,

दूसरे आपके कमेंट के बाद, पहला कमेंट पोस्ट के पोस्ट होने के करीब दो दिन बाद, मेरी मित्र लेखिका का आया, जो मेरे सूत्रों की अभिन्नं अंग है।

हाँ, अगर इस पुड़िया का असर ऐसा है जैसा आपने कहा तो मुझे उत्पादन और वितरण में सुधार करना चाहिए और मैंने आज जोरू का गुलाम में भी पुड़िया दे दी है और कोशिश करुँगी की फागुन के दिन चार में भी कल पोस्ट कर दूँ।

एक बार फिर से धन्यवाद, आप ऐसे थोड़े भी पाठक हों तो लिखना सार्थक हो जाता है जो एक एक लाइन पढ़ें और उसपर प्रतिक्रया दें

आभार।
बहुत - बहुत धन्यवाद कोमल जी







अब आपने एक - एक लाइन की बात कर ही दी है तो ये लाइनें मैने सबसे पहले आपकी कालजयी रचना "मोहे रंग दे" में पढ़ी थी।

इसे स्मगलिंग (इधर का माल उधर ) भी कह सकते हैं। :tongue: :tongue: :tongue:

आपको छेड़ने का हक हमारा भी हैं।

ऐसे ही स्नेह बनाए रखें।

सादर
 
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