raniaayush
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मुझे उम्मीद थी आपका आंखों देखा पढ़ने को मिलेगा लेकिन यहां तो ....धोखा हो गया।
कोई बात नहीं...आपकी कलम दमदार है।
कोई बात नहीं...आपकी कलम दमदार है।
Beautifully explained....!Thanks so much,
Like every day is a new day, every story is a new story. In the previous story , sequel was actually a continuation and that is why in this forum both parts have been presented as a single story and that together even with a lot of comments number of pages have not crossed even 50. Earlier, stories had to be short because it has either to be mailed or there was a strict limit about number of words in a post . Secondly, i started writing from HILMS where one has to write in Baraha font, a bit complicated thing. It was a yahoo group and when i started posting in forums word limits were severe. HILMS had an advantage that they had stored stories in pdf form so if anybody wants to access my story he just have to go the files section. In the present arrangement if your story does not continue even a week, it will soon be relegated to page 50-60 and only very committed readers will be able to ferret it out . stories which are longish and more importantly gets more and regular comments are likely to keep on jumping to first few pages and garner more views and resultantly more comments.
I am neither saying nor justifying about the stretching of stories to the point where they lose there own purpose, and underlying thematic unity. One reason why i closed Mohe Rang de although there was a clamor for its extension. And i gave these details only for historical comparison, how Hindi erotica writing on net grew .
Now coming about this story and two characters Chandu and Chunnu.
basic leit-motif of this story remains Holi and in HOLI there has to be Devar Bhabhi. In the first part too, there were two, One was Sunil a distant relative and his friends and other was Kallu, a very interesting character, living just on the margins and let me repeat the lines from the story
मैं एकदम पास पहुँच के, एक पेड़ की आड़ में खड़े होके देख रही थी|
लेकिन...लग रहा था जैसे होली उन लोगों के घर को बचा के निकल गई थी|
जहाँ चारों ओर फाग की धूम मची थी, वहीं उसके देह पे रंग के एक बूंद का भी निशान नहीं था| चारों ओर रंगों की बरसात और यहाँ एकदम सूखा...होली में तो कोई भेद भाव नहीं होता, कोई छोटा बड़ा नहीं...लेकिन..|
मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं समझ गई|
Now coming back to this story, there are two Devars Chandu and Chunnu, both are different one is very strong, muscular and sexually experience and other is a teenager, shy, inexperienced. but both are challenges to the narrator one has turned celibate dedicating life to wrestling and body building and other is too coy. She is a seductress par excellence . I am not a writer but i avoid creating cut-out cardboard characters, so i have to build them properly provide some background, description and introduction, like Chunnu has been introduced a young shy devar when narrator has first come as a bride.
another issue with this part is that normally my stories are in the first person which makes it very intimate but limits the place where a narrator can be so one has to to take resort to many devices, like somebody else telling something to narrator or a diary etc and secondly Chuutaki is going to play an important role. In the first part of the story, it was narrator and in second part it was hubby but in this , there are both.
I avoid dabbling in stories, ( can't not even read them) where A does with B and then with C and comes D who alsoare does with B and C and so forth with some dialogues and situations thrown in . Nothing wrong in them but it is just not my cup of tea and it reflects on my readers too. Those who painstakingly visit my pages, bear with all my shortcoming they are different .
But you are partially correct, i have lost the art of short story writing and believe me it takes much more effort, creative energy to write a good two page than 200 pages.
कुछ अधूरा सा लगा...नैना ननदिया -आँखों देखा हाल
' और भौजी क्या जबरदस्त आपकी बहना चीखी, आधे सुपाड़े में ही उस की जान निकल गयी " खिलखिलाते हुए नैना बोली।
वो चीख तो मैंने भी सुनी थी लेकिन मैं आगे की बात सुनना चाहती थी,... आगे चीख क्यों नहीं निकली और वो राज नैना ने खोल दिया,
और मेरा इनके ऊपर और प्यार उमड़ पड़ा, सच में इनके ऊपर तो मैं सब कुछ लुटा दूँ, और मैंने मारे ख़ुशी के उनकी बहन महतारी सब गरिया डाली।
हुआ ये था की ननदोई जी लाख कोशिश कर रहे थे घुस नहीं रहा था आगे , और छुटकी जोर जोर से सुबक रही थी , उसके गोरे गोरे गाल आंसू में भीग गए थे, और उन्होंने ही रास्ता निकाला ,
अपनी छुटकी साली के साथ ६९ में, वो ऊपर थी, और ये, एक तो उनका ऐसे ही मोटा बांस, फिर वो नयी उमर वाली, और उन्होंने न सिर्फ हलक तक पेल दिया बल्कि अपने दोनों पैरों से कस के मेरी छुटकी बहिनिया के सर को भी पकड़ के दबोच लिया, अब उनके ,मोटे बांस से ज्यादा मोटी डॉट कौन सी उनकी साली के मुंह में लग सकती थी , चीखे चाहे जितना चीखना चाहे , गों गों से ज्यादा कुछ नहीं निकल पायेगा , और भले ही वो ऊपर थी लेकिन उनके हाथ सँड़सी से भी ज्यादा तगड़े थे बस कस के अपनी छोटी साली के सर को उन्होंने दबोच लिया था , और एक बार हलक तो वो एक बित्ते का लंड घुस गया तो फिर तो ,...
साथ साथ उनके मूसल से कम करामाती उनकी जीभ नहीं थी, वो सुरसुराती हुयी साली की कसी बिल में और उनकी दोनों उँगलियाँ उसकी जादू के बटन पे कभीसहला देते तो कभी वो मस्ती से पागल हो जाती और कभी नाख़ून से क्लिट नोच लेते तो दर्द से दुहरी,...
कभी वो कस कस के संतरे की फांको सी रसीली अपनी साली की फांके चूसते तो कभी क्लिट तो कभी जीभ प्रेम गली में घुस के सुरसुराती , सहलाती थोड़ी देर में ही छुटकी की कसी चूत पानी फेंकने लगी , गाँड़ में घुसे मोटे सुपाड़े को भूल जीभ का मजा लेने लगी
नैना खूब खुश हो रही थी सुनाते सुनाते, बोली
" भौजी, भैया और जीजू ने मिल के क्या जबरदस्त गाँड़ मारी साली की,... अब वो चीख सकती नहीं थी , फिर जब वो क्लिट सहलाते तो पिछवाड़े से उसका ध्यान हट जाता,.. बस उसी समय जीजू दोनों हाथों से चूतड़ पकड़ के जोर से हलब्बी धक्का मारते, बस चार पांच धक्के में एक बार पूरा सुपाड़ा घुस गया तो वो रुक गए , फिर भैया ने आपकी छुटकी बहिनिया को चूस चूस के थेथर कर दिया , चार पांच बार तो झड़ी ही होगी वो,...
मैं बहुत खुश छुटकी पर भी लेकिन छुटकी से बढ़ के उसके जीजू पर भी, क्या ट्रिक निकाली अपनी छोटी साली की कुँवारी गाँड़ फड़वाने की , अच्छा हुआ दोनों लोग साथ गए थे और उनको तो छुटकी पर चढ़ने का एक्सपीरियंस भी था, ... लेकिन मैंने नैना ननदिया को हड़का लिया कौन भौजाईननद की गलती निकालने की हड़काने का मौका छोड़ती है ,
" हे बार बार आपकी बहिनिया , आपकी बहिनिया कह रही हो ,... तुम्हारी कुछ नहीं लगती क्या "
" गलती हो गयी नयकी भौजी ( गांव में सब मुझे नयकी भौजी और सासें नयकी या नयको ही कहती थीं ). एकदम लगती है , मेरी छिनार , रंडी मेरे सब भाइयों की रखैल , छुटकी भौजी है। "
फिर उसने आगे का हाल सुनाना जारी रखा।
और उसके बाद आपके नन्दोई ने क्या पेलगाडी चलाई, पूरा अंदर तक पेल के ही रुके, बेचारी टसुए बहा रही थी , चुत्तड़ पटक रही थी, लेकिन ऐसा माल कौन छोड़ता, और मेरे जीजू तो एकदम कमीने हैं, बस गाँड़ की महक लग जाए , फिर कोरी,...
लेकिन भौजी बिना बेरहमी के गाँड़ न मारी जाए, न उसके बिना गाँड़ मारने वाले को मजा न मरवाने वाली को,...
इस मामले में नैना ननद की बात से मैं पूरी तरह सहमत थी, जबतक चीख पुकार न हो रोई रोहट न , दो दिन तक जिसकी मारी जाए वो टांग फैला के न चले,... पूरे गाँव जवार को मालूम न पड़ जाए की आज पिछवाड़े कुदाल चली है,... और इनकी और नन्दोई जी की तो पूरी जे सी बी थी,...
और अब ये पता चल गया की आगे की चीख क्यों नहीं सुनाई पड़ी ,...
नैना ने पूरा हाल खूब रस ले ले के सुनाया , कैसे मेरे नन्दोई ने धक्के पर धक्के मार के पहले आधा लंड पेल दिया , फिर थोड़ी देर बाद जब गाँड़ को लंड की आदत पड़ गयी तो हल्का हल्का पुश कर के पूरा लंड जड़ तक ,... उसके बाद इन्होने भी अपना लंड साली के मुंह से निकाल लिया , नन्दोई जी कभी हलके हलके अंदर बाहर करते तो कभी हचक के ,... एक बार में पूरा तो नहीं लेकिन आधा ठेल देते,...
नैना सुना तो मेरी छुटकी बहिनिया के बारे में रही थी लेकिन मुझे अपना याद आ रहा था किस तरह नन्दोई जी ने ऐन होली , ननद और अपने दोस्त के सामने मुझे हचक के , क्या गाँड़ मारी थी मेरी ,... मेरे पिछवाड़े के तो दीवाने हैं वो,...
तूने पूरा देखा क्या ,... मैंने नैना से पूछा तो वो बोली
नहीं भौजी ,... अरे जो आपका देवर मेरे ऊपर चढ़ा था पेड़ पे उसने फेचकुर फेंक दिया ,... और मुझको भी कई जगह जाना था , लेकिन फटते हुए तो अपनी आँख से देखा ,... पर मैं अपने जीजा ( मेरे नन्दोई उसके जीजा ही तो लगे ) को जानती हूँ बना दुबारा पेल गाड़ी चलाये उन्होंने नहीं छोड़ा होगा ,...
नैना को और दो चार घर जाना था कल की होली के लिए,... और मेरा घर भी आ गया था,
वो बोली कल सुबह सात बजे तक आ जाएगी, और मैं घर में घुस गयी।
Wow,soooooo hotttttt, the best sex chunnu aur chhutki se ,Chunnu ka jabardasti agge se nikal Iiya aur chhutki ke jabadasti pichhwade me dal diya. What an update! mesmerizingनैना ननदिया -आँखों देखा हाल
' और भौजी क्या जबरदस्त आपकी बहना चीखी, आधे सुपाड़े में ही उस की जान निकल गयी " खिलखिलाते हुए नैना बोली।
वो चीख तो मैंने भी सुनी थी लेकिन मैं आगे की बात सुनना चाहती थी,... आगे चीख क्यों नहीं निकली और वो राज नैना ने खोल दिया,
और मेरा इनके ऊपर और प्यार उमड़ पड़ा, सच में इनके ऊपर तो मैं सब कुछ लुटा दूँ, और मैंने मारे ख़ुशी के उनकी बहन महतारी सब गरिया डाली।
हुआ ये था की ननदोई जी लाख कोशिश कर रहे थे घुस नहीं रहा था आगे , और छुटकी जोर जोर से सुबक रही थी , उसके गोरे गोरे गाल आंसू में भीग गए थे, और उन्होंने ही रास्ता निकाला ,
अपनी छुटकी साली के साथ ६९ में, वो ऊपर थी, और ये, एक तो उनका ऐसे ही मोटा बांस, फिर वो नयी उमर वाली, और उन्होंने न सिर्फ हलक तक पेल दिया बल्कि अपने दोनों पैरों से कस के मेरी छुटकी बहिनिया के सर को भी पकड़ के दबोच लिया, अब उनके ,मोटे बांस से ज्यादा मोटी डॉट कौन सी उनकी साली के मुंह में लग सकती थी , चीखे चाहे जितना चीखना चाहे , गों गों से ज्यादा कुछ नहीं निकल पायेगा , और भले ही वो ऊपर थी लेकिन उनके हाथ सँड़सी से भी ज्यादा तगड़े थे बस कस के अपनी छोटी साली के सर को उन्होंने दबोच लिया था , और एक बार हलक तो वो एक बित्ते का लंड घुस गया तो फिर तो ,...
साथ साथ उनके मूसल से कम करामाती उनकी जीभ नहीं थी, वो सुरसुराती हुयी साली की कसी बिल में और उनकी दोनों उँगलियाँ उसकी जादू के बटन पे कभीसहला देते तो कभी वो मस्ती से पागल हो जाती और कभी नाख़ून से क्लिट नोच लेते तो दर्द से दुहरी,...
कभी वो कस कस के संतरे की फांको सी रसीली अपनी साली की फांके चूसते तो कभी क्लिट तो कभी जीभ प्रेम गली में घुस के सुरसुराती , सहलाती थोड़ी देर में ही छुटकी की कसी चूत पानी फेंकने लगी , गाँड़ में घुसे मोटे सुपाड़े को भूल जीभ का मजा लेने लगी
नैना खूब खुश हो रही थी सुनाते सुनाते, बोली
" भौजी, भैया और जीजू ने मिल के क्या जबरदस्त गाँड़ मारी साली की,... अब वो चीख सकती नहीं थी , फिर जब वो क्लिट सहलाते तो पिछवाड़े से उसका ध्यान हट जाता,.. बस उसी समय जीजू दोनों हाथों से चूतड़ पकड़ के जोर से हलब्बी धक्का मारते, बस चार पांच धक्के में एक बार पूरा सुपाड़ा घुस गया तो वो रुक गए , फिर भैया ने आपकी छुटकी बहिनिया को चूस चूस के थेथर कर दिया , चार पांच बार तो झड़ी ही होगी वो,...
मैं बहुत खुश छुटकी पर भी लेकिन छुटकी से बढ़ के उसके जीजू पर भी, क्या ट्रिक निकाली अपनी छोटी साली की कुँवारी गाँड़ फड़वाने की , अच्छा हुआ दोनों लोग साथ गए थे और उनको तो छुटकी पर चढ़ने का एक्सपीरियंस भी था, ... लेकिन मैंने नैना ननदिया को हड़का लिया कौन भौजाईननद की गलती निकालने की हड़काने का मौका छोड़ती है ,
" हे बार बार आपकी बहिनिया , आपकी बहिनिया कह रही हो ,... तुम्हारी कुछ नहीं लगती क्या "
" गलती हो गयी नयकी भौजी ( गांव में सब मुझे नयकी भौजी और सासें नयकी या नयको ही कहती थीं ). एकदम लगती है , मेरी छिनार , रंडी मेरे सब भाइयों की रखैल , छुटकी भौजी है। "
फिर उसने आगे का हाल सुनाना जारी रखा।
और उसके बाद आपके नन्दोई ने क्या पेलगाडी चलाई, पूरा अंदर तक पेल के ही रुके, बेचारी टसुए बहा रही थी , चुत्तड़ पटक रही थी, लेकिन ऐसा माल कौन छोड़ता, और मेरे जीजू तो एकदम कमीने हैं, बस गाँड़ की महक लग जाए , फिर कोरी,...
लेकिन भौजी बिना बेरहमी के गाँड़ न मारी जाए, न उसके बिना गाँड़ मारने वाले को मजा न मरवाने वाली को,...
इस मामले में नैना ननद की बात से मैं पूरी तरह सहमत थी, जबतक चीख पुकार न हो रोई रोहट न , दो दिन तक जिसकी मारी जाए वो टांग फैला के न चले,... पूरे गाँव जवार को मालूम न पड़ जाए की आज पिछवाड़े कुदाल चली है,... और इनकी और नन्दोई जी की तो पूरी जे सी बी थी,...
और अब ये पता चल गया की आगे की चीख क्यों नहीं सुनाई पड़ी ,...
नैना ने पूरा हाल खूब रस ले ले के सुनाया , कैसे मेरे नन्दोई ने धक्के पर धक्के मार के पहले आधा लंड पेल दिया , फिर थोड़ी देर बाद जब गाँड़ को लंड की आदत पड़ गयी तो हल्का हल्का पुश कर के पूरा लंड जड़ तक ,... उसके बाद इन्होने भी अपना लंड साली के मुंह से निकाल लिया , नन्दोई जी कभी हलके हलके अंदर बाहर करते तो कभी हचक के ,... एक बार में पूरा तो नहीं लेकिन आधा ठेल देते,...
नैना सुना तो मेरी छुटकी बहिनिया के बारे में रही थी लेकिन मुझे अपना याद आ रहा था किस तरह नन्दोई जी ने ऐन होली , ननद और अपने दोस्त के सामने मुझे हचक के , क्या गाँड़ मारी थी मेरी ,... मेरे पिछवाड़े के तो दीवाने हैं वो,...
तूने पूरा देखा क्या ,... मैंने नैना से पूछा तो वो बोली
नहीं भौजी ,... अरे जो आपका देवर मेरे ऊपर चढ़ा था पेड़ पे उसने फेचकुर फेंक दिया ,... और मुझको भी कई जगह जाना था , लेकिन फटते हुए तो अपनी आँख से देखा ,... पर मैं अपने जीजा ( मेरे नन्दोई उसके जीजा ही तो लगे ) को जानती हूँ बना दुबारा पेल गाड़ी चलाये उन्होंने नहीं छोड़ा होगा ,...
नैना को और दो चार घर जाना था कल की होली के लिए,... और मेरा घर भी आ गया था,
वो बोली कल सुबह सात बजे तक आ जाएगी, और मैं घर में घुस गयी।
कहानी अभी बाकी है , छुटकी के पिछवाड़े की ,मुझे उम्मीद थी आपका आंखों देखा पढ़ने को मिलेगा लेकिन यहां तो ....धोखा हो गया।
कोई बात नहीं...आपकी कलम दमदार है।
Thanks so much, new updates have been posted in the JKG too, do have a lookBeautifully explained....!