एकदम,
गलत कुछ भी नहीं है, ख़ास कर के जब साजन की सजनी ही अपने पिया को उकसा रही है, उसे अपनी बहन को सेज पर बुलाने के लिए और खुद खींच के अपनी ननद को सैंया के संग सुलाने के लिए।
सेज तो सजनी की ही होती है, चाहे अपनी बहन को सुलाए या पिया जी की बहिनिया को,
गड़बड़ तब होती है जब साजन चोरी छुपे इधर उधर मुंह मारता है, कई बार देह का रिश्ता मन में भी बदल देता है
लेकिन चाहे जोरू का गुलाम हो या ये कहानी या मोहे रंग दो साजन जो कुछ भी करेगा, सजनी के कहने पर चढाने पर और उसकी सहमति से
फागुन के दिन चार में गुड्डी ने तो अभी सात फेरे भी नहीं लिए लेकिन आनंद बाबू की हिम्मत नहीं गुड्डी तो क्या, गुड्डी की मंम्मी की, बहन की, सहेली की, किसी की बात टाल दें