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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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वाह क्या कामुख सीन लिखा है. सास को अपनी देवरो की मलाई चटाई. किस किस ने घोटा वो कहानी सुनाई. और गरमा दिया. कुछ सास का सीन बनती तो माझा आता. फूफाजी को क्यों नहीं बुलाया. चाचा ससुर कहा है. होता तो माझा आता. चाँदरवा वाला सीन क्या जबरदस्त लिखा है.

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बनेगा बनेगा सास का सीन भी बनेगा

बल्कि पिछला जो सीन पोस्ट किया है मैंने वो सास का ही है, सास, सलहज और ननदोई

जल्द ही पढ़ के अपने कमेंट दीजिये तो फिर सास दामाद का सीन आगे बढे
 

komaalrani

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ओहह क्या बात है. कितनी कितनी दुहाई दे दी. अपनी नांदिया छिनार को उसके भईया से गंभीन करवाने को. वो भी तो यही कहे रही है. जानेगी और फिर मामा काम पापा बनेगी. और ऐसी ही छिनार बेटी जनेगी. देख लो. कही पीछे हटे तो पाप लगेगा. क्या सीन बनाया है. फुल मस्ती और इरोटिक अपडेट.

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आपके कामनेट्स देख कर बहुत अच्छा लगा, अब लास्ट अपडेट पर भी आपके कामनेट्स का इन्तजार है



भाग 93

नन्दोई, सलहज और सास -जबरदस्त ट्रिपलिंग


पृष्ठ 963
 
Last edited:

arushi_dayal

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कोमल जी का पुनः स्वागत है। आपको फिर से उसी जुनून के साथ लिखते हुए देखना बहुत सुखद है। आप इस मंच पर incest पर सर्वश्रेष्ठ महिला लेखिका हैं और मंच पर आपकी अनुपस्थिति सचमुच महसूस की जा रही थी। आपने एक और शानदार अपडेट के साथ अपनी श्रेष्ठता साबित कर दी है। बिल्कुल शानदार
 

Random2022

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भाग 93

नन्दोई, सलहज और सास -जबरदस्त ट्रिपलिंग

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लेकिन असली परेशानी अगले दिन थी जब शाम को ननदोई जी आये, मैं

ने अपनी ननद से वायदा किया था की पांच दिन उन्हें नन्दोई जी की परछाईं से भी बचाऊंगी और वो हर रात मेरे मरद के साथ, जबतक पांच दिन के बाद चेक में उनका गाभिन होना पक्का नहीं हो जाता।

पांच दिन में तीन दिन तो बीत चुके थे, मेरा तो मानना था की मेरे मरद ने पहले दिन ही अपनी सगी बहन को गाभिन कर दिया था, दूसरा दिन ननद अपनी सहेलियों के साथ रहीं, कल फिर भैया बहिनी ने जम कर रात भर कबड्डी खेली, गौने की रात झूठ, एक बार मैं पानी पीने के लिए उठी, तो ये कुतिया बना के रगड़ रगड़ के अपनी बहिनिया को पेल रहे थे, सर मेरी ननद का बिस्तर में धंसा, चूतड़ हवा में और बुर में गपागप, गपागप, ये तो नहीं देख पाए लेकिन मेरी ननद ने देख लिया और ऊँगली से इशारा किया तीन का यानी तीसरी बार वो अपने भाई से चुद रही थीं।



लेकिन आज मामला टेढ़ा था, नन्दोई जी से ननद को बचाने का,

होलिका माई का आर्शीवाद था पांच दिन के अंदर नन्द मेरी गाभिन हो जाएंगी, वो दिन पहला दिन भी हो सकता था और पांचवा भी। आज चौथा दिन था और मैं और मेरी ननद दोनों चाहती थीं की ननद के पेट के अंदर बच्चा मेरे मर्द के बीज का ही हो।

और इसलिए आज की रात भी उन्हें अपने भैया के साथ ही सोना था, लेकिन नन्दोई जी के रहते,….?



नन्दोई जी के आते ही मैंने चाल चलनी शुरू कर दी थी, मेरी सास रसोई में जा रही थीं और ननदोई की निगाह उनके पिछवाड़े,


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गलती मेरे नन्दोई की कत्तई नहीं थी, मेरे सास के चूतड़ थे ही एकदम कसर मसर, जैसे दो तरबूज आधे आधे, खूब बड़े लेकिन उतने ही कड़े, किसी भी मरद का खड़ा हो जाता और मेरे नन्दोई तो पिछवाड़े के जबरदस्त रसिया।

और मैंने उन्हें अपनी सास का पिछवाड़ा देखते ललचाते पकड़ लिया । पीछे से मैंने जकड़ लिया, आँचल ढुलक गया था मेरे जोबन की नोक नन्दोई जी की पीठ में धंस रही थी और मैंने चिढ़ाया,

" क्यों नन्दोई जी, माल है न मस्त, खूब हचक के लेने लायक, ...क्या देख रहे हैं सास का पिछवाड़ा "
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बेचारे शर्मा गए, चोरी पकड़ी गयी। किसी तरह से बोले, नहीं नहीं अरे ऐसा कुछ नहीं है,



" अरे काहें लजा रहे हैं, आप की सास तो मेरी भी सास है , और आप ना ना कर रहे हैं और ये हाँ कर रहा है "

और मैंने उनके पाजामे के ऊपर से खूंटे को पकड़ लिया, फनफना रहा था। ऊपर से मैं रगड़ने लगी और उनसे हाँ बुलवाने की कोशिश करने लगी।

" साफ़ साफ़ बोलिये चाहिए की नहीं , सलहज से ससुराल में सरम करियेगा न तो घाटे में रहिएगा, अच्छा ये बताइये की इनकी बेटी की गांड मारी की नहीं "

" गौना करवा के काहें ले गए थे , इनकी बिटिया को , गौने के चार दिन के अंदर,… बहुत ना ना कर रही थी, लेकिन निहुरा के पटक के पेल दिए , हफ्ते भर के अंदर, आठ दस बार मरवाने के बाद,… आदत पड़ गयी। "ननदोई जी हंस के बोले। अपने साले की तरह वो भी पिछवाड़े के दीवाने थे।
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" और इनकी छोटी बहु की, "



अब मेरा हाथ पजामे के अंदर घुस गया था, एक झटके में मैंने सुपाड़ा खोल दिया था और अब कस के सुपाड़ा रगड़ रही थी, नन्दोई जी का सुपाड़ा था भी खूब मोटा, गांड में घुसते ही गांड फाड़ देता था,


" उह्ह्ह, उह्ह्ह सलहज जी, आप मानेंगी नहीं , मैंने सैकड़ों की गाँड़ मारी होंगे, लड़की लड़के, औरतें लेकिन मेरी सलहज ऐसी, अरे मेरी इस सलहज के आस पास भी किसी की नहीं होगी, "

नन्दोई जी ने कबूल किया और मैं पहले दिन से ही ये जान गयी थी की ये मेरे पिछवाड़े के जबरदस्त रसिया हैं तो मैं ललचाती भी थी, और ऐन होली के दिन ली भी थी उन्होंने,

" चाहिए छोटी सलहज की "
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कस के मुठियाते हुए मैंने उकसाया, और साथ में मेरे बड़े बड़े कड़े जोबन उनकी पीठ पीछे से रगड़ रहे थे,

बेचारे नन्दोई की हालत खराब, इस हालत मैं तो उनकी माँ बहन सब लिखवा लेती तो वो लिख देते, बड़ी मुश्किल से बोले

: सच्ची, अरे उसके लिए तो,...."


और वो आगे बोलते उसके पहले कस के खूंटे को दबा के मैंने बात काट दी,

" उसके लिए मेरी और आपकी दोनों की सास की , ....सच में बोलिये सास की लेने का मन कर रहा है की नहीं , सोच लीजिये अगर झूठ बोला तो न सास मिलेगी न सलहज, अरे मैं बता रही हूँ, सालो से पीछे कुदाल नहीं चली है, एकदम टाइट कसी, और छिनरपना करेगी तो आपकी सलहज रहेगी न साथ में, देह की करेर हूँ, कस के दोनों हाथ पैर दबोच लूंगी और एक बार ये मोटू अंदर घुस गया न मेरे नन्दोई का , फिर तो हमारी आपकी सास लाख चूतड़ पटकें बिना गाँड़ मारे मेरा ननदोई निकलने वाला नहीं। नन्दोई जी मेरा भी मन कर रहा था की बहुत दिन से एक बार मेरी सास की मेरे सामने कोई कस के हचक के गाँड़ कूटे, और एक के साथ एक फ्री वाला ऑफर , सास भी सलहज भी। "



" मन तो मेरा कर रहा है लेकिन, लेकिन आपकी ननद कहीं उन्हें पता चल गया तो, "

बेचारे घबड़ा रहे थे। उन्हें क्या मालूम था सारा चक्कर इसी बात के लिए था की मेरी ननद उनके साले से रात भर कुटवाये,

" नन्दोई जी आप भी न ससुराल में है , सलहज आपके साथ फिर क्या, ननद का इंतजाम मैं कर लुंगी न। लेकिन मन करता है न सास का,…’


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" एकदम सही बोली आप, पिछवाड़े के साथ इतनी बड़ी बची चूँचियाँ और एकदम कड़ी, उनकी चूँची चोदने का भी जबरदस्त मन करता है :

नन्दोई जी ने मन की बात कबूल की

" अरे ननदोई जी आप एक बार कह के देखते,.... आप के लिए तो मैंने अपनी कच्ची कुँवारी दर्जा नौ वाली छुटकी की गाँड़, तो मेरी सास कौन चीज हैं…. तो हो जाय आज रात मेरी और आपकी सास की गाँड़ मरवाई, चूँची चुदवाने का काम, अब आप अगर पीछे हटे तो सलहज को भूल जाइये, अरे ननद की तो रोज लेते हैं आज उनकी भौजाई, महतारी पे नंबर लगाइये।

एक दो दिन में ननद ससुरे जाएंगी फिर तो दिन रात उन्ही के बिल में मूसल चलेगा, और आज आप ने मेरी सास की, ले ली मेरे सामने तो बस, सलहज साले के पहले नन्दोई की, "



कोई आ रहा था और उनको ये लाइफ टाइम ऑफर देकर मैं हट गयी,

हर बार मैं देख रही थी की अब वो सास को नयी नजर से देख रहे थे, और सास भी नजर पहचानती थीं, तो बस दामाद को देखकर उनका आँचल बिना बात के गिर पड़ता था, वो गहराई, उभार,
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Esi salhaj to kismat walon ko milti hai
 

Random2022

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छिनार ननद का छिनरपन
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लेकिन असली खेल किया ननद ने रात को खाते समय, खाना करीब खतम हो गया था, सास मेरी खीर लाने गयीं थीं


" उह, जबरदस्त सर दर्द हो रहा है " ननद ने जो चेहरा बनाया की एक बार मैं भी घबड़ा गयी, उनके भैया ने भी,

“क्या हुआ कैसा लग रहा”

बार कभी उनका माथा सहलाते कभी चेहरे को देखते,

" उफ़ लगता है माइग्रेन लौट आया, ओह्ह सर फटा जा रहा है " वो बड़ी मुश्किल से बोलीं।

साल डेढ़ साल पहले उन्हें माइग्रेन होता था लेकिन ठीक हो गया था, उनके भैया ने डाकटर को फोन लगाया और ब हाँ , अभी एकदम बोलते रहे, तबतक उनकी माँ भी खीर लेके लौट आयी थीं, वो भी परेशान, अपने बेटे की ओर देख रही थीं।

" डाक्टर ने बोला है , इन्हे अभी तुरंत लेट जाना चाहिए, रौशनी आवाज से एकदम बचें, एक दवा बताई है नींद की वो मेरे पास है, बस वो दे देनी है, कुछ भी कर के छह सात घंटे इसे तुरंत सो जाना चाहिए, और हाँ सुबह उठने पर एक दवा खानी है वो मैं अभी जा के ले आता हूँ ,
मुझे लौटने में घंटे दो घंटे लग जाएंगे, खाना मैंने खा लिया है आप लोग भी, "

और मुझसे बोले

" अपनी ननद को अपने कमरे में ले जाके सुला दो रौशनी आवाज कुछ भी नहीं , और वो दवा खिला देना,… सुबह तक पक्की नींद आ जायेगी , अगर नहीं सोयेगी तो बड़ी परेशानी हो सकती है "

" एकदम मैं अभी ले जाके सुला देती हूँ और बाहर से ताला भी बंद कर दूंगी , "



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ननदोई जी को देखते हुए कुछ चिढ़ाते हुए मैंने नन्द को ले के कमरे में गयी,


और कमरे में उस बिस्तर पर पहुँचते ही जहाँ दो दिन उनके भैया ने बड़ी जालिम चुदाई की थी, ननद मुस्कराने लगीं,

मैंने चुप रहने का इशारा किया, और उनकी साडी पकड़ के खिंच दी

फिर ब्लाउज, पेटीकोट उनके भाई के उतारने के लिए छोड़ दिया,

लेकिन ननद को फिर एक परेशानी याद आयी,

" भैया कैसे, ..."

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मैंने खिड़की दिखाई, बाहर की ओर खुलती थी और मुश्किल से दो ढाई फिट ऊँची, पांच दस मिनट ननद के साथ बैठ के समझा के अभी आधे घंटे तक एकदम चुप रहें, बत्ती बंद की, बाहर से ताला बंद किया,

और चाभी अपने उस बेटीचोद साजन को पकड़ा दी और कसम भी धरा दी की आज खूब हचक के ननद की लें,
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Vese jitna khula kula mahol hai ghar ka, nandoi ko shak nhi yakeen hoga ki nanad ne apne bhai se kabhi to masti ki hogi
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २३

गुड्डी, बनारस की गलियां और शॉपिंग पृष्ठ २९९

अपडेट पोस्ट हो गया है, अब बारी आप सब की

पढ़िए, मजे लीजिये और लाइक्स और कमेंट्स करिये
 

motaalund

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Komal ji

Some days back I started a new poem on Ashram . But somehow i stopped in between as i was not sure whether I should write it or not. After reading this update..it just flashed in my mind how similar someone can be our thinking process. I am giving below few lines which i have pen down so far. Please let me know if I should continue this or not. I am sure it won’t stand anywhere in front of your update. It was just a try. One more thing which i am not sure if its a coincidence. Many pics which you have given with this update are similar to what i was planning to post. So i am not posting any pics this time. Waiting for your review comments 🙏🙏🙏

मेरी शादी की गाड़ी को ऐसा मिला है चालक

पांच साल की शादी में हुआ नहीं कोई बालक

जड़ी बूटी टोना टोट का सब हथकंडे अपनाएं

लेकिन ये फिसड्डी निकले कोई काम ना आये

बड़े जोश से रात बिस्तर पर पतिदेव तो आते

मेरी चूत की गर्मी के आगे झट से वो ढह जाते

लाख करो मेहनत खेत में कितना चलाओ हल

जब तक बीज न बोया जाए मिलेगा कैसे फल

सुन के सास के तानो को मैं रहने लगी परेशान

मैं भी जल्दी माँ बन जाउ बस एक यही अरमान

फिर एक दिन सासु माँ भागी सी आई मेरे पास

सुन बहू आज मिली थी रास्ते में पद्मा की सास

यहां पास ही आश्रम में रहते हैं एक बड़े फकीर

सुना बहुत से लोगो की उन होने दूर करी है पीड़

पद्मा ने साधु महाराज की करी एक महीने सेवा

पुत्र रूप में उसे मिला है अब उस सेवा का मेवा

कल तुझको ले जाऊंगी मैं वहां पर अपने साथ

उन्हें मिल के दिलवाऊंगी वहां से उनका प्रसाद

साधु जी कैसे पुत्र देंगे मुझे मन मेरे लिए विचार

अगले दिन उनके दर्शन को मैं होने लगी त्यार

अगले दिन मैं जा पाहुंची अपनी सासुमाँ के संग

बन जाऊँगी जल्दी ही अम्मा दिल में लिये उमंग

पल्लू के अंदर से दिखती थी मेरे चूचो की घाटी

अपनी चूत की झांटे थी मैनेआज सुबह ही काटी

थोड़ी हीदेर में साधु महाराज चेलो के संग पधारे

उनके जयघोष में वहां फ़िर लगाने लगे जयकारे

ऊंचा लंबा कद था उनका चेहरे पर तेज था भारी

बैठे जब वोआसन के ऊपर तकरायी नज़र हमारी

घूर के मुझको महाराज ने भरपुर नज़र इक डाली

देख के उन नज़रों को मैंने अपनी नज़र झुका ली

कुछ समय बाद आई जब हम सास बहू की बारी

पुछे साधुमहाराज बताओ क्या तकलीफ तुम्हारी

पांच साल की शादी में भी बहू को नहीं हुई संतान

मैं पोते का मुँह देखु मैं जल्दी है दिल में ये अरमान

अपनी कृपा से आप महाराज कुछ तो करें उपाय

मेरी लाड़ली बहू की गोद अब जल्दी से भर जाये


ऊपर से नीचे तक देखा मुझको अपनी नज़र उठाकर

बोले फ़िर मेरे कानो में मुझको अपना पास बुलाकर

उपाय तनिक कठिन है तुमको होगी थोड़ी सी दुश्वारी

लेकिन वादा करते हैं जल्दी भर जायेंगे गोद तुम्हारी

आपके पास आये हैं बाबा जी लेकर मन में विश्वास

आपकी सेवा करने से होगी पूरी मेरे मन की हर आस

हमें बताओ बहू कब आई थी पिछली बार महावारी

उस हिसाब से करनी होगी हम को पूजा की त्यारी

पिछले हफ्ते ही ख़तम हुई है महाराज मेरी महावारी

अब कहेंगे जैसा बाबा जी मैं आउंगी करके पूरी त्यारी

पंद्रह दिन तक यहां रहना होगा और करनी होगी सेवा

प्रसन्न हुए हम तुम्हारी सेवा से तो अवश्य मिलेगा मेवा

छोड़ सारी मोह माया को यहां रहना होगा बनके दासी

तन मन से अगर करोगी सेवा तो होगी सब दूर उदासी

अब ये अगले चार दिन अपने पति से संबंध नहीं बनाना

एक जड़ी बूटी हम देंगे तुमको वो रोज़ रात को खाना

आज से ठीक पांचवे दिन आश्रम में आना होगा अकेले

सब कपड़ा गहना नकदी और फोन छोड़ के सारे झमेले

पहले तोयहां आश्रम आते ही तेरा शुद्धिकरण करवाएंगे

फ़िर यहां कैसे रहना होगा वो सब नियम बताये जायेंगे

हाथ जोड़ कर साधु को सासु माँ संग आ गई वापस घर

लेकिन अकेले आश्रम जाने से मुझे लगने लगा था डर

मुझे देख उसकीआँखों में एक अजब चमक जो आई थी

कुछ अनहोनी न हो जाए में ये सोच के मैं धबरायी थी


घर आ बाबा की दी हुई बूटी जब भी सुबह मैं खाती थी

बस खाते ही उसको मेरे बदन में आग सी लग जाती थी

घंटो बैठ के अपने कमरे में उंगली से चूत खूब खुजलाती

जितना उसे खुजाती आग चूत की और भी बढ़ती जाती

दिल चाहता कोई रगड़ के मुझको निचोड़ दे मेरी जवानी

मेरी चूत की आग को ठंडा कर देकर अपने लंड का पानी

आख़िर आश्रम जाने का दिन भी जल्दी ही आया

सासु माँ ने मुझे बड़े प्यार से अपना पास बिठाया

देखो बहु रानी वो साधुमहाराज बहुत बड़े है ज्ञानी

वहां गलती से भी हो ना जाए तुमसे कोई नादानी

उनका कृपा दृष्टि है बस आखिरी उम्मीद हमारी

उनके आशीर्वाद सेही गूँजेगी इस घर में किलकारी

पुरे तन मन से वहां करूंगी सेवा रखे आप विश्वास

ऐसी कोई भी नहीं गलती होगी आप नहीं हो निराश

जीवन में जो लाए खुशियां उस बालक की चाह में

निकल पड़ी थी अपने घर से मैं इक अंजानी राह पे
हर मिठाई का अलग मजा है..
इसलिए अपनी मिठाई को कम न आंकें...

बहुत हीं शानदार...
 

motaalund

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arushi_dayal जी,

आपकी कविता ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। आपके द्वारा लिखी गई यह काव्यात्मक गद्य वास्तव में एक अप्रतिम सृजन है। शब्दों की ऐसी सटीकता और खूबसूरती मैंने बहुत कम देखी है। हर एक पंक्ति में छुपा हुआ सौंदर्य और हर शब्द की गूँज दिल को छू लेने वाली है।

जिस तरह से आपने इस काव्य को गद्य में पिरोया है, वह न केवल अद्वितीय है बल्कि गहराई से जुड़ने वाला भी है। शब्दों का चयन, भावनाओं की अभिव्यक्ति, और कथा को प्रस्तुत करने की शैली इतनी आकर्षक है कि पढ़ने वाला स्वयं को उस संसार का हिस्सा महसूस करता है।

आपकी कविता की लय और तुकबंदी इतनी स्वाभाविक है कि वह पाठक को अपने भीतर बहा ले जाती है। यह काव्यात्मक गद्य नहीं, बल्कि एक अनुभव है जो शब्दों से परे जाकर आत्मा तक पहुंचता है।

आपकी लेखनी की सराहना के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं। आपने सच में कला के एक उच्चतम स्तर को छुआ है।

सस्नेह..
वखारिया
आपको न सिर्फ कहानी लिखने में महारथ हासिल है...
बल्कि गहन विश्लेष्ण भी सटीक होते हैं.
 
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