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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Rajizexy

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Supreme
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भाग 93

नन्दोई, सलहज और सास -जबरदस्त ट्रिपलिंग

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लेकिन असली परेशानी अगले दिन थी जब शाम को ननदोई जी आये, मैं

ने अपनी ननद से वायदा किया था की पांच दिन उन्हें नन्दोई जी की परछाईं से भी बचाऊंगी और वो हर रात मेरे मरद के साथ, जबतक पांच दिन के बाद चेक में उनका गाभिन होना पक्का नहीं हो जाता।

पांच दिन में तीन दिन तो बीत चुके थे, मेरा तो मानना था की मेरे मरद ने पहले दिन ही अपनी सगी बहन को गाभिन कर दिया था, दूसरा दिन ननद अपनी सहेलियों के साथ रहीं, कल फिर भैया बहिनी ने जम कर रात भर कबड्डी खेली, गौने की रात झूठ, एक बार मैं पानी पीने के लिए उठी, तो ये कुतिया बना के रगड़ रगड़ के अपनी बहिनिया को पेल रहे थे, सर मेरी ननद का बिस्तर में धंसा, चूतड़ हवा में और बुर में गपागप, गपागप, ये तो नहीं देख पाए लेकिन मेरी ननद ने देख लिया और ऊँगली से इशारा किया तीन का यानी तीसरी बार वो अपने भाई से चुद रही थीं।



लेकिन आज मामला टेढ़ा था, नन्दोई जी से ननद को बचाने का,

होलिका माई का आर्शीवाद था पांच दिन के अंदर नन्द मेरी गाभिन हो जाएंगी, वो दिन पहला दिन भी हो सकता था और पांचवा भी। आज चौथा दिन था और मैं और मेरी ननद दोनों चाहती थीं की ननद के पेट के अंदर बच्चा मेरे मर्द के बीज का ही हो।

और इसलिए आज की रात भी उन्हें अपने भैया के साथ ही सोना था, लेकिन नन्दोई जी के रहते,….?



नन्दोई जी के आते ही मैंने चाल चलनी शुरू कर दी थी, मेरी सास रसोई में जा रही थीं और ननदोई की निगाह उनके पिछवाड़े,


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गलती मेरे नन्दोई की कत्तई नहीं थी, मेरे सास के चूतड़ थे ही एकदम कसर मसर, जैसे दो तरबूज आधे आधे, खूब बड़े लेकिन उतने ही कड़े, किसी भी मरद का खड़ा हो जाता और मेरे नन्दोई तो पिछवाड़े के जबरदस्त रसिया।

और मैंने उन्हें अपनी सास का पिछवाड़ा देखते ललचाते पकड़ लिया । पीछे से मैंने जकड़ लिया, आँचल ढुलक गया था मेरे जोबन की नोक नन्दोई जी की पीठ में धंस रही थी और मैंने चिढ़ाया,

" क्यों नन्दोई जी, माल है न मस्त, खूब हचक के लेने लायक, ...क्या देख रहे हैं सास का पिछवाड़ा "
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बेचारे शर्मा गए, चोरी पकड़ी गयी। किसी तरह से बोले, नहीं नहीं अरे ऐसा कुछ नहीं है,



" अरे काहें लजा रहे हैं, आप की सास तो मेरी भी सास है , और आप ना ना कर रहे हैं और ये हाँ कर रहा है "

और मैंने उनके पाजामे के ऊपर से खूंटे को पकड़ लिया, फनफना रहा था। ऊपर से मैं रगड़ने लगी और उनसे हाँ बुलवाने की कोशिश करने लगी।

" साफ़ साफ़ बोलिये चाहिए की नहीं , सलहज से ससुराल में सरम करियेगा न तो घाटे में रहिएगा, अच्छा ये बताइये की इनकी बेटी की गांड मारी की नहीं "

" गौना करवा के काहें ले गए थे , इनकी बिटिया को , गौने के चार दिन के अंदर,… बहुत ना ना कर रही थी, लेकिन निहुरा के पटक के पेल दिए , हफ्ते भर के अंदर, आठ दस बार मरवाने के बाद,… आदत पड़ गयी। "ननदोई जी हंस के बोले। अपने साले की तरह वो भी पिछवाड़े के दीवाने थे।
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" और इनकी छोटी बहु की, "



अब मेरा हाथ पजामे के अंदर घुस गया था, एक झटके में मैंने सुपाड़ा खोल दिया था और अब कस के सुपाड़ा रगड़ रही थी, नन्दोई जी का सुपाड़ा था भी खूब मोटा, गांड में घुसते ही गांड फाड़ देता था,


" उह्ह्ह, उह्ह्ह सलहज जी, आप मानेंगी नहीं , मैंने सैकड़ों की गाँड़ मारी होंगे, लड़की लड़के, औरतें लेकिन मेरी सलहज ऐसी, अरे मेरी इस सलहज के आस पास भी किसी की नहीं होगी, "

नन्दोई जी ने कबूल किया और मैं पहले दिन से ही ये जान गयी थी की ये मेरे पिछवाड़े के जबरदस्त रसिया हैं तो मैं ललचाती भी थी, और ऐन होली के दिन ली भी थी उन्होंने,

" चाहिए छोटी सलहज की "
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कस के मुठियाते हुए मैंने उकसाया, और साथ में मेरे बड़े बड़े कड़े जोबन उनकी पीठ पीछे से रगड़ रहे थे,

बेचारे नन्दोई की हालत खराब, इस हालत मैं तो उनकी माँ बहन सब लिखवा लेती तो वो लिख देते, बड़ी मुश्किल से बोले

: सच्ची, अरे उसके लिए तो,...."


और वो आगे बोलते उसके पहले कस के खूंटे को दबा के मैंने बात काट दी,

" उसके लिए मेरी और आपकी दोनों की सास की , ....सच में बोलिये सास की लेने का मन कर रहा है की नहीं , सोच लीजिये अगर झूठ बोला तो न सास मिलेगी न सलहज, अरे मैं बता रही हूँ, सालो से पीछे कुदाल नहीं चली है, एकदम टाइट कसी, और छिनरपना करेगी तो आपकी सलहज रहेगी न साथ में, देह की करेर हूँ, कस के दोनों हाथ पैर दबोच लूंगी और एक बार ये मोटू अंदर घुस गया न मेरे नन्दोई का , फिर तो हमारी आपकी सास लाख चूतड़ पटकें बिना गाँड़ मारे मेरा ननदोई निकलने वाला नहीं। नन्दोई जी मेरा भी मन कर रहा था की बहुत दिन से एक बार मेरी सास की मेरे सामने कोई कस के हचक के गाँड़ कूटे, और एक के साथ एक फ्री वाला ऑफर , सास भी सलहज भी। "



" मन तो मेरा कर रहा है लेकिन, लेकिन आपकी ननद कहीं उन्हें पता चल गया तो, "

बेचारे घबड़ा रहे थे। उन्हें क्या मालूम था सारा चक्कर इसी बात के लिए था की मेरी ननद उनके साले से रात भर कुटवाये,

" नन्दोई जी आप भी न ससुराल में है , सलहज आपके साथ फिर क्या, ननद का इंतजाम मैं कर लुंगी न। लेकिन मन करता है न सास का,…’


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" एकदम सही बोली आप, पिछवाड़े के साथ इतनी बड़ी बची चूँचियाँ और एकदम कड़ी, उनकी चूँची चोदने का भी जबरदस्त मन करता है :

नन्दोई जी ने मन की बात कबूल की

" अरे ननदोई जी आप एक बार कह के देखते,.... आप के लिए तो मैंने अपनी कच्ची कुँवारी दर्जा नौ वाली छुटकी की गाँड़, तो मेरी सास कौन चीज हैं…. तो हो जाय आज रात मेरी और आपकी सास की गाँड़ मरवाई, चूँची चुदवाने का काम, अब आप अगर पीछे हटे तो सलहज को भूल जाइये, अरे ननद की तो रोज लेते हैं आज उनकी भौजाई, महतारी पे नंबर लगाइये।

एक दो दिन में ननद ससुरे जाएंगी फिर तो दिन रात उन्ही के बिल में मूसल चलेगा, और आज आप ने मेरी सास की, ले ली मेरे सामने तो बस, सलहज साले के पहले नन्दोई की, "



कोई आ रहा था और उनको ये लाइफ टाइम ऑफर देकर मैं हट गयी,

हर बार मैं देख रही थी की अब वो सास को नयी नजर से देख रहे थे, और सास भी नजर पहचानती थीं, तो बस दामाद को देखकर उनका आँचल बिना बात के गिर पड़ता था, वो गहराई, उभार,
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Saas ka pichhwada aur ubhar dono pasand a gye nandoi ji ko 👌👌👌
 

Rajizexy

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सास बहू की जुगलबंदी
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वो तो सिसक रहे थे तड़प रहे थे लेकिन जवाब उनकी सास ने दिया, मुझे घूरते हुए

" ऐसे काटते हैं ? "

एक पल के लिए मैं घबड़ा गयी लेकिन सास ने दुबारा बोला तो मैं समझ गयी हम दोनों पैदा ही सास बहू होने के लिए हैं, वो भी एक जनम नहीं सात जनम।


" इतनी हलकी चीख,.... मुश्किल से भरौटी, पठानटोला तक पहुंची होगी, अरे जब तक नन्दोई की चीख उनके मायके तक न पहुंचे और महतारी समझ जाय की उनके लाल की, दुलरुआ की ससुराल में गाँड़ मारी जा रही है हचक हचक के, ....अरे गनीमत मानो ये तुम्हारी ये सलहज नहीं थी तोहरे बियाहे में नहीं तो कोहबर में बिना गाँड़ मारे छोड़ती नहीं "



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" और क्या सलहज का काम ही है कोहबर में नन्दोई की गाँड़ मारना और उसका नेग भी जबरदस्त होता है, ननदोई की कुँवारी बहन। "

मैंने सास जी की बात में हामी भरी लेकिन एक प्रस्ताव भी अपनी ओर से दे दिया, हम तीनों में सबसे बड़ी सास थी, मेरी भी उनकी भी इसलिए उन्ही से पूछा

" तो अब से मार लूँ, अब उस समय नहीं थी, तो नहीं थी,... "



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लेकिन मेरी बात मेरी सास ने काट दी थोड़ा दुलराते थोड़ा हड़काते

" कितनी सोझ बहू है हमारी, अरे ये कोई पूछे की बात है. नन्दोई पूछते हैं का, सलहज की गाँड़ मारने से पहले, ,,,"



ये बात एकदम सही थी की नन्दोई अगर साली सलहज की मारने के पहले पूछें तो रिश्ते की बेइज्जती,

और उन्होंने तो मेरी दर्जा नौ वाली फूल सी कोमल बहन की एकदम कोरी गाँड़ बिना कडुवा तेल लगाए फाड़ दी थी, थूक भी ठीक से नहीं लगाया था, उसकी चीख तो मैंने भी सुनी थी तो मैं क्यों मौका छोडूं , फिर सास का हुकुम,


" दाएं वाले को खूब चूसे हो ज़रा अब बाएं वाले को चूस" और जब तक नन्दोई कुछ समझे उनके मुंहे में मेरी सास की बड़ी बड़ी चूँची,


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और मैं एक बार फिर बिस्तर पर नीचे की ओर



मेरी सास और मेरी जुगलबंदी गजब की थी, बिन बोले हम दोनों समझ जाते थे किसको क्या करना है। अब ननदोई जी का मुंह सास ने अपनी मोटी चूँची से बंद कर दिया था मतलब मुझे लाइसेंस मिल गया था उनकी रगड़ाई करने का, उन्हें गरियाने का।



जैसे गांड मारने की तैयारी की जाती है, एकदम उसी तरह, दो चार मोटी मोटी तकिया मैंने नन्दोई जी के चूतड़ के नीचे लगा के उठा दिया, और प्यार से दोनों नितम्ब सहलाते हुए छेड़ा,

" चलिए कोहबर में तो आपकी गांड बच गयी, आपकी छोटी सलहज अभी आयी नहीं थी, लेकिन अब नहीं बचेगी, और ये मत सोचिये की मैं मारूंगी कैसे, अरे मारने वाली चीज है, चिकनी मक्खन जैसी तो मारी ही जायेगी, और बहुत प्यार से मारी जायेगी, "


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मैंने दो ऊँगली में खूब ढेर सारा थूक लगाया और उनके पिछवाड़े के गोल दरवाजे पे दस्तक दी, बेचारे कुण्डी खटकाते ही छेद दुबक दुबक करने लगा, लेकिन मैंने ऊँगली हटा ली, इरादा मेरा तो अभी उन्हें तड़पाना था, मेरे होंठ मैदान में आ गए, और दोनों नितम्बो पर सैकड़ो चुम्मियों की बरसात होने लगी और धीमे बारिश सीधे सेंटर की ओर, दोनों चूतड़ फैला के एक खूब गीला सा चुम्मा मैंने सीधे गोल दरवाजे पर ले लिया ।

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बेचारे नन्दोई जी, आँखे बंद, हाथ बंधे और मुंह उनके सास के जोबन के नीचे दबा, कुछ कर भी नहीं सकते और जवान सलहज उनके पिछवाड़े के पीछे,


चुम्मा तो शुरआत थी,

मैंने लम्बी सी जीभ निकाली और सीधे पिछवाड़े की दरार पे, आगे पीछे, ऊपर नीचे, जैसे इनके उस स्साले के साथ करती थी जो अभी ननदोई जी की बीबी चोद रहा था।

नन्दोई जी बोल तो नहीं सकते थे लेकिन तड़पते हुए चूतड़ उछाल रहे थे,

थोड़ी देर तक रिम्मिंग करने के बाद मेरे जोबन मैदान में आ गए, और अब वो दोनों कभी नन्दोई जी की चूतड़ पे रगड़ते कभी उस दरार और मैंने जब अपने खड़े निपल उनकी दरार में रगड़ना शरू कर दिया तो अब लगा की मारे जोश के वो दोनों हाथों में बंधे सास और सलहज के पेटीकोट के नाड़े को तोड़ देंगे,

सास ने मुझे इशारा किया, बहुत हो गया अब मजा देने का टाइम आ गया और मैंने बदमाशी बंद कर दी, और जैसे ही सासू जी ने निपल उनके मुंह से बाहर निकाला वो बोले,

" सासु माँ कुछ करिये, न "

सासु ने उनके मुंह पे एक जबरदस्त चुम्मा लिया और बोलीं


मादरचोद,

और उन्होंने मेरी जगह ले ली नीचे खूंटे के पास, मैं नन्दोई जी के सर के पास, और क्या जबरदस्त चुदाई की सास ने मेरी अपनी चूँचियों से नन्दोई जी की।

इसका मतलब ये नहीं मैंने कभी चूँची से चोदा नहीं था या देखा नहीं था, इनके मोबाइल में कितनी फ़िल्में थी, और मैं भी हफ्ते में एक दो दिन तो इन्हे ललचाने तड़पाने के लिए,

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लेकिन जिस तरह से मेरी सास मेरे नन्दोई की रगड़ाई अपनी बड़ी बड़ी चूँचियों से कर रही थीं, वैसा मैंने कभी
Very erotic & sexy
saas damad milan
💦💦💦💦
👌👌👌
💯💯
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २५ पृष्ठ ३०८

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Shetan

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भाग ९२ ननद और आश्रम

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" हम को तो लागत है भौजी हम पहलवे दिन गाभिन हो गए, " शरारत भरी मुस्कान से खुश खुश मेरी ननद बोलीं। जो बात मैं मैं कहना चाहती थी, उन्होंने खुद दी। मेरे मरद का बीज खाली नहीं जानेवाला था।

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" लगता तो हमको भी यही है, बनायी दिहु अपने भैया के बाप. लेकिन, ... चला कल तो आराम कर लिया पांच में से दो दिन निकल गए, तीन दिन बचे, लेकिन ये तीन दिन नन्दोई जी की परछाई भी नहीं पड़नी चाहिए। पांचवें दिन के बाद भिन्सारे क जून साथे हम लोग होलिका माइ क नाम ले के चेक करेंगे, पक्का नौ महीने में बिटिया आएगी। "

मैंने अब साफ़ साफ़ बोल दिया।


" भौजी, आज तो कोई दिक्क्त नहीं है, भैया आयी रहे होंगे , और नन्दोई तोहार रात में नर्सों के साथ, लेकिन कल दुपहरिया में सांन्झ तक भी आगए तो तोहार ननद कैसे बचे, " अपनी परेशानी ननद ने बता दी।


बात तो उनकी सही थी, अपने साले की तरह उन्हें भी रोज हलवा पूड़ी चाहिए थी। लेकिन मैंने ये जिम्मेदारी भी अपने कंधे पर ले ली। ननद का गाल चूम के बोली,


" ओकर चिंता जिन करा, आखिर भौजाई सब काहें को होती हैं. कल रात तोहरे परछाई के पास नहीं फटकेंगे, बस जैसे जैसे हम कही,... और बाकी अपने भइया के साथ गपागप, गपागप,..... और एक बूँद बीज क न कही बाहर जाये, न बच्चेदानी के अलावा कहीं और, उनकर गाँड़ मारे क मन भी करे तो बोल दीजियेगा साफ़ साफ़ , की भैया भौजाई क हमरे गाँड़ मार ला, नहीं तो दो तीन दिन रुक जा। "

मेरी बात सुन के ननद हंसने लगी, बोली,' भौजाई हो तो ऐसी , अब हम सोने जा रहे हैं कल रात भर सहेलियों के साथ सब इतनी बदमाश, किसका मरद कैसे करता है, निहुरा के लेता है , गोद में बैठा के पेलता है और वो भी खाली जुबानी नहीं, सब कर कर के आपस में, एक मिनट नहीं सोने दिन। और रात में आपका मरद नहीं सोने देगा।'



तबतक सास की आवाज आयी की वो बाहर जा रही है, ग्वालिन चाची के साथ दूबे भौजी के यहां हम दोनों दरवाजा बंद कर लें।



दरवाजा बंद करने के बाद ननद मुझे अपने कमरे में ले आयी और उन्ही के बिस्तर पर, ….

अपनी सास के बारे में वो बात बताई की मेरे रोंगटे खड़े हो गए।



सास उनकी महा कंटाइन थी ये तो मैं जानती थी,





लेकिन इतनी छिनार होगी मैं भी नहीं सोच सकती थ। साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थी, बच्चे के लिए,

अब हर सास तो मेरी सास की तरह तो हो नहीं सकती थी, मैं जब गौने उतरी थी तो उसके चौथे दिन ही, उन्होंने साफ़ साफ़ मुझसे बोल दिया,

" बच्चे के बारे में न तो तेरे मरद की सास तय करेगी, न तोहार सास, सिर्फ और सिर्फ मेरी छोटी बहू फैसला करेगी, और कोई बोले तो पलट के गरिया के जवाब देना, पेट में तुझको रखना है फैसला तुम करोगी, और सास मेरी खुद मुझे लेके आसा बहू के पास गयीं और तांबे का ताला लगवा दिया, उसी दिन से आसा बहू से मेरी दोस्ती भी हो गयी और सास ने बोल दिया की जब खुलवाना हो ताला तो खुद चली आना, आसा बहू के पास, मुझे बताने की भी जरूरत नहीं है।



लेकिन मेरी ननद की सास, करीब साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थीं,



" तोहरे बाद क गौने से उतरी दो दो निकाल दी, एक कोरा में एक ऊँगली पकड़ के चल रहा है, यहाँ तो अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी। "

और करीब छह महीने पहले जब मेरी ननद की पड़ोस की चचिया देवरानी गाभिन हुयी तब से तो वो अगिया बैताल हो गयी।

ननद ने गोली खानी करीब साल भर पहले से बंद कर दी थी, मरद तो अपनी बीबी के साथ कंडोम कभी लगाते नही। छह महीने पहले वो ननद के कमरे में घुस के बिस्तर के अंदर , दवा के डिब्बे में हर जगह चेक कर के देखा और कुछ पुरानी एक्सपायर्ड गर्भ निरोधक गोलियां थीं, बस वो देख के आग बबूला सब उठा के उन्होंने फेंक दिया और मेरी ननद को साफ़ साफ बोल दिया,

" अब ये नीचे क खूनखच्चर बंद होना चाहिए, और उलटी शुरू करो, अब अगर अगले महीने आयी की पांच दिन रसोई में नहीं आओगी तो जउने दिन बाल धोओगी न ओहि दिन खुला झोंटा पकड़ के गुरु जी के आश्रम में ले जाउंगी, एक से एक बाँझिन को प्रसाद दे दिए हैं जहाँ डाक्टर वैद ओझा फ़क़ीर सब फेल हो गए। "




लेकिन अगले महीने ननद रानी को फिर रसोई से पांच दिन छुट्टी लेनी पड़ी, और सास एकदम अलफ,

' गौर रंग, सुंदर बदन ले के कोई का करे, बहू कोई काहें लाता है, घर पोती पोते से भर दे, बंस चलाये और ये महरानी जी, अरे हमरे जमाने में और अभी भी गौने दुल्हिन जिस दिन उतरती है, ठीक नौ महीने बाद सोहर होता है घर में बच्चे की आवाज सुनाई देती है और ये, दो साल से ऊपर हो गए, अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी, ऐसी बहू ले के कोई का करेगा, रूप जोबन का का फायदा, कोई चाटेगा ,



ननद से तो नहीं लेकिन कोई पड़ोसन आती तो अब उससे साफ़ साफ़ बोलती,

" पता नहीं कहाँ से ये बाँझिन घर आ गयी है, हमरे बेटा क, एक तो बेटा और उसकी बहू, पुराना जमाना होता तो साल भर में बहू कुछ नहीं निकालती तो दूसरी ला के बेटे के सेज पर चढाती, "

और पड़ोसन अगर कहती की साधु बाबा के आश्रम में, तो सास बात काट के कहतीं, मैं तो साल भर से कह रही हूँ, गाँव भर की बहुये जाती है लेकिन यही पाँव में महावर लगा के बैठी हैं, लेकिन महीने दो महीने में बात नहीं बनी तो जबरदस्ती ले जाउंगी , गुरु जी का तो बड़ा , और श्रद्धा से मेरी ननद की सास की आंखे बंद हो जाती,



और अबकी जब मेरी ननद होली में मायके आयीं तो सास ने साफ़ साफ अल्टीमेटम दे दिया,



" लौट आयो मायके से, भौजाई की पहली होली है, इसलिए जाने दे रही हूँ, लेकिन होली के बाद झोंटा पकड़ के ले चलूंगी गुरु जी के भाग ९२ बाँझिन और आश्रम, और गुरु जी के पैरों में पटक दूंगी, बड़ी कृपा है उनकी। बोल दूंगी जब तक आपकी कृपा नहीं बरसेगी, ये यही रहेगी आपका गोड़ दबाएगी, मेरी एकलौती बहू है।"

Wah bhabhi ho to esi. Nandiya ka uske bhiya kam shaiya se rat ka thanka pakka. Mano gambhin karva ke hi manegi.

Shas ke tano se chhuti. Lekin ye guruji ka kya chakkar hai. Jo shradha bhakti ke badle ashirvad me pet de deta hai. Amezing.

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Shetan

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आश्रम







और अबकी जब मेरी ननद होली में मायके आयीं तो सास ने साफ़ साफ अल्टीमेटम दे दिया,



" लौट आयो मायके से, ....भौजाई की पहली होली है, इसलिए जाने दे रही हूँ,... लेकिन होली के बाद झोंटा पकड़ के ले चलूंगी और गुरु जी के पैरों में पटक दूंगी, बड़ी कृपा है उनकी। बोल दूंगी जब तक आपकी कृपा नहीं बरसेगी, ये यही रहेगी आपका गोड़ दबाएगी, मेरी एकलौती बहू है।"


इसलिए ननद की हालत खराब थी, लेकिन ननद हो चिढायी न जाए छेड़ी न जाए, गरियाई न जाये तो ननद कैसी और वो भी मेरी ऐसी भौजाई,



" अरे अच्छा तो है साधु बाबा क हाथ भर क होगा, आपका तो मजा हो हो जाएगा, ....करियेगा सेवा मन भर के और उनके चेले होंगे वो अलग "


लेकिन ननद अलफ, चमक के बोली,

" अरे भौजी, तोहरे मरद अस किसी का न होगा, मिल गया है न हाथ भर का, इसलिए, अरे सात जनम बरत की होंगी तो मेरे भाई जैसा दूल्हा मिला। "




" तो साधुवा क केतना बड़ा है अरे ठीक ठाक होगा, बिना चोदे थोड़े छोड़ता होगा, अरे गाभिन तो करता होगा। " मैंने पूछ लिया।

ननद कुछ देर चुप रही, फिर देर तक हंसती रही, खिलखिलाती रही, फिर अपनी सबसे छोटी ऊँगली, कानी ऊँगली दिखाई, और हसंते हुए बोली, इसकी भी आधी, केचुआ अस।

मेरी ननद को पास के गाँव की उसकी एक सहेली ने सब असली किस्सा सुनाया था।

वैसे तो ननद के गाँव में ही छह सात औरतें जिनके बच्चा नहीं हो रहा था, आश्रम में गयी थीं, महीने दो महीने में सब के पाँव भारी हो गए, लेकिन सब गुरु जी का नाम लेने पर खाली श्रद्धा से हाथ जोड़ लेती। और एक बात ये भी था की ननद की सास भी गुरु जी की साल दो साल से चेली थीं और अब प्रमुख सेविका में थीं, गुरु जी तक उनकी सीधी पहुँच थी। तो शायद इसलिए भी किसी का मुंह नहीं खुला।

लेकिन ननद की सहेली ने सब बात बतायी,




पहली बात तो आश्रम का एक ड्रेस कोड है, एक ही रंग का और एक ही वस्त्र, महिलायें सिर्फ एक साडी पहनती हैं कमर के नीचे लिपटी रहती है और सीना भी उसी से ढंका रहता है ,

पुरुष उसी रंग की एक धोती पहनते है और ऊपर कुछ नही।

जो महिला ' प्रसाद' के लिए जाती है उसे दो दिन रहना रहता है, वो भी दो दिन रही। उसकी सास उसे छोड़ने गयी थी, और सास बहू को ढेर सारे कागजों पर साइन भी करना पड़ता है, और उसके बाद सास को वहीँ से विदा का दिया गया और तीन दिन बाद उन्हें आने को बोला गया।

उसको, ननद की सहेली के पास दो सेविकाएं आयी और उन्होंने उसे, ननद की सहेली को खुद अपने सारे वस्त्र उतारने को कह। वह जगह एक एक आम के घने बाग़ में थीं, एक प्रकोष्ठ था जहाँ एक हवन कुंड था, वो थोड़ा झिझकी, फिर उसे लगा की ये दोनों भी स्त्रियां है और उस इ भी आश्रम का वस्त्र शायद मिले इसलिए, साडी ब्लाउज पेटीकोट तक तो ठीक था, लेकिन ब्रा, पर वो भी उसने उतार दिया। अब वो पूरी तरह निर्वस्त्र थी।


उन दोनों सेविकाओं ने फिर हवन कुंड जलाया और खुद भी अपनी साडी उतार दी और ननद की सहेली को बैठना सिखाया, घुटनों के लेकिन जाँघे पूरी तरह खुली, योनि साफ़ साफ़ दिखनी चाहिए, दोनों स्तन बाहर की ओर उभार कर, सर सीधा लेकिन आँखे झुकी हुईं, कभी भी किसी की आँखों में आँखे डाल कर नहीं देखना है, आँख कंधे से नीचे और गुरु जी या उनके मुख्य शिष्यों के कमर के ऊपर नहीं , और जब बोलने को कहा जाय तभी बोलना है, हाँ वो दोनों उसकी सखियाँ है अगले दो दिन साये की तरह उसके साथ रहेंगी तो उन्हें वो देख भी सकती है बात भी कर सकती है।



और फिर उन दोनों सखियों ने हवन कुंड में कुछ समाग्री डाल कर उसे अग्नि प्रज्वलित करने को कहा, धीरे धीरे ननद की सहेली भी उस माहौल में ढलती जा रही थी, उसने अग्नि जलाई, लेकिन उसके बाद उन दोनों सखियों ने कुछ मंत्र पढ़कर एक नीले रंग का कोई चूर्ण उस हवन कुंड में छोड़ा और तेजी से एक धूम्र रेख निकली, जो बहुत ही मादक, नशीली थी । ननद की सहेली के देह में एकदम वासना की लहर सी दौड़ने लगी,



" अपनी साडी को हवन कुण्ड में डाल दो "

पहली सखी बोली और दूसरी कुछ मंत्र पढ़ रही थी, यंत्रवत ननद की सहेली संजना से अपनी साडी उठाकर हवन कुंड में डाल दी और हवन कुंड भभक उठा।



" पेटीकोट" दूसरी सखी बोली





और संजना ने वो भी अग्नि के हवाले कर दिया।

और पेटीकोट के साथ ही उस दूसरी सखी ने लाल रंग का एक चूर्ण हवन कुंड में डाला, और अबकी जो धुंआ उठा वो पहले से भी ज्यादा नशीला था। वह छोटा सा प्रकोष्ठ पूरी तरह बंद था और सारा धुंआ धीरे धीरे कमरे में फ़ैल रहा था था, लेकिन संजना को बहुत अच्छा लग रहा, खास तौर पर वह धुंआ जब उसकी जाँघों के बीच छू रहा था उसके उरोजों को सहला रहा था,।



और उसके बाद ब्लाउज और ब्रा भी हवन कुंड में दहन हो गए,



अब इन वस्त्रों के साथ ही तुम्हारा अतीत भी दहन हो गया, अब तुम आश्रम की हो, जब तक आश्रम में हो और आश्रम के बाहर भी आश्रम की ही हो "



दोनों सखियाँ साथ बोलीं।

और एक कटोरे ऐसा पात्र निकाल कर, एक चषक से आसव उस पात्र में भर के संजना को दिया। संजना ने जब आधा से ज्यादा उस कटोरे को खाली कर दिया तो दायीं ओर बैठी पहली सखी ने संजना से कटोरे को ले कर बचे हुए आसव का थोड़ा सा पान किया फिर दूसरी सखी को और उसने उस कटोरे को खाली कर दिया।

संजना की आँखे मूंदने लगी जोबन भारी पड़ने लगे, योनि की पंखुड़ियां अपने आप खुलने बंद होने लगीं।





उत्तेजना के मारे उसकी बुरी हालत थी। उसके बाद दो बार और उसी कटोरे से अलग अलग तरह के आसव, और दोनों सखियाँ उसी की तरह निर्वस्त्र और पास में एक तालाब था उसी आम के बगीचे के बीच में वहीँ संजना को रगड़ रगड़ के नहलाया, फिर उस तालाब के पास एक और कमरा था वहां उसे अच्छी तरह तैयार किया। एक कोई लेप दोनों ने संजना के जोबन पे लगाया और पांच मिनट में ही संजना को लगा की बस कोई उसकी चूँची मसल दे रगड़ दे, उसी तरह का लेप जाँघों पे और योनि पे लगाया और संजना की हालत खराब, लेकिन तैयारी अभी पूरी नहीं हुयी थी।



एक कोई जड़ी सी उसे उन्होंने ननद की सहेली संजना की बुर की फांको को फैला के उसके बीच ठूंस दिया और बोला की इसे कस के भींचो और बोलो क्या मन कर रहा है,



मन तो संजना का चुदवाने का कर रहा था संजना का चूत में आग लगी थी, लेकिन अभी भी वो बस बोल पायी,... मन कर रहा है

" अरे साफ़ साफ़ बोल न हम तो तेरी सखियाँ है यहाँ पर इसके बारे में बोलने में कोई रोक नहीं है और लंड चाहिए, चुदवाने का मन कर रहा है तो साफ़ साफ बोलना पड़ता है, अगर कोई गुरु शिष्य तुम्हारे पास आएगा तो तुझे खुद उससे बोलना पड़ेगा, मुझे आपका लंड चाहिए, मुझे आपसे चुदना है, मैं चुदवासी हूँ , चुदने आयी हूँ तेरा लंड मेरी बुर को चाहिए तभी वो चोदेगा, और चुदवाती हुए भी बार बार बोलती रहना वरना वो लंड निकाल लेगा और तेरी ये जलन बिना चुदे शांत नहीं होगी,"





और यह कहकर उन्होंने उसकी क्लिट पर भी कोई महलम लगा दिया, श्रृंगार भी पूरा किया था, काजल, देह पर चंदन का लेप,

गुरु जी के पास पहंचने के पहले वो जड़ी संजना की बुर से सखियों ने निकाल दी। संजना को लगा अब उसकी चूत कुंवारियों जैसी हो गयी है । वो शादी के पहले से चुदवा रही थी और एक दो ऊँगली तो आराम से घुसती थी, लेकिन अब एक ऊँगली भी घुसना मुश्किल लग रहा था।

दोपहर के बाद वो गुरूजी के पास गयी, उसी तरह दोनों जाँघे फैला के बैठी और सर झुका के गुरु जी के चरणों में सर रख दिया।



लेकिन मेरी ननद ने संजना से मुद्दे की बात पूछी,

"बड़ा कितना था"



और संजना ने बोला कानी ऊँगली जैसा या उससे भी छोटा, लेकिन वो इतनी चुदवासी थी की उस समय तो सींक भी मूसल जैसी लगती । और बुर उसकी टाइट भी बहुत हो गयी थी। हाँ गुरु जी झड़े नहीं जल्दी लेकिन कोई ज्यादा भी नहीं बस ठीक ठाक सब की तरह पांच सात मिनट।

और शाम को गुरु जी के शिष्यों ने नंबर लगाया, चार एक साथ आये शाम को और रात में फिर चार बारी बारी से , दो दो घण्टे के लिए। उन सबों की साइज ठीक ठाक थी और ताकत भी। अगले दिन फिर उसी तरह से।


लेकिन हर बार संजना को बोलना होता,

"मुझे चोदो , अपनी संजना को चोदो, "और अगर दो तीन मिनट के अंदर वो नहीं बोलती थी तो वो चुदाई रोक देते, संजना खुद मस्ती में पागल थी।


"हे स्साली ये बोल, मजा आया की नहीं, "मेरी ननद ने अपनी उदास सहेली संजना का मन ठीक करने के लिए चिढ़ाते हुए उसकी ठुड्डी उठा के पूछा,

संजना हँसते हुए बोली, ' स्साली छिनार, अरे कोई लड्डू जबरदस्ती भी खिलायेगा तो लगेगा तो मीठा ही न। फिर तोहरे बहनोई छह महीना साल भर में सूरत से आके सूरत दिखाते हैं, और उसपर भी आने के बाद उनकी बहिन महतारी आगे पीछे, और उसमे भी रात को आधे टाइम तो बाहर ही पिचकारी का पानी निकल जाता है, और कभी बड़ी मुश्किल से घुसा भी तो तो, और उन सबों का भी कोई गदहा घोडा अस नहीं, बस ठीक ठाक, लेकिन एक उतरता था तो दूसरा तैयार रहता था चढ़ने को, तो लड्डू तो मीठा था ही, और ऊपर से वो सब छिनार जो पिलाई थीं उसका असर, एकदम गर्मायी थी


]
मेरी ननद ने संजना से पुछा की तुझे ये नहीं पता चलेगा की तेरे बच्चे के बाप गुरु जी है या उनके चेले,




तो संजना हंस के बोली, अरे वो भी नहीं

फिर उस ने असली खेल बताया की जैसे आजकल सांड नहीं है तो कृत्रिम गर्भधान केंद्र में वीर्य गाय में डाल देते है एकदम उसी तरह मैं पलंग पर थी और एक स्टैंड टाइप थी उसी में दोनों सखियों ने मेरी टाँगे फैला के फंसा दिया, उसके बाद एक मोटा सा इंजेक्शन जैसा उसमे बीज भर के मेरी बुर में डाल के और करीब आधे घण्टे तक मेरी दोनों टाँगे ऐसी हवा में लटकी रही, तो दो दिन में तीन बार वो भी हुआ।



लेकिन ननद जिस चीज से घबड़ायी थीं वो उनकी सहेली ने सबसे अंत में बताई।

मेरी ननद की सहेली संजना गाभिन भी हुयी और नौ महीने बाद बियाई भी, लेकिन,
Are wah vese to nandiya apne bhiya ki dewani hai. Use bhiya ka bhi hath bhar ka mil hi gaya. Gambhin hone ki to guarantee hai hi. Magar nandiya ki sasu maa ne dhanki bhi de rakhi hai. Paheli holi hai. Isi lie jane de rahi hu. Aur sasumaa bhi to guruji ki pure 2 sal se cheli hai. Matlab to vo bhi..

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To ab nandiya rani bhi to bahu ban gai. Vo bhi to nadoi aur dewaro ko sambhalegi. Aur ashram me nandiya ki saheli ne bahot kuchh to bata diya. Baba ke ashirwad ko pane ki bhi vidhi hai. Use achhe se vese hi pura karna hoga. Jese nadiya ki saheliyon ne kiya. Amezing erotic update.


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Shetan

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आश्रम का सच



तीसरे दिन सुबह जब उसकी सास लेने आने वाली थीं, और वो सिर्फ एक आश्रम की साडी में इन्तजार कर रही थीं, दोनों सखियाँ उसे छोड़ गयी थीं, उसे उन दोनों ने बोला की वो टीवी तब तक लगा के देखे, अभी उसकी सास को आने में एक दो घंटे का टाइम है,



टीवी खोलते ही उसे जोर का झटका, जोर से लगा।

टीवी में वो खुद थी, एकदम निर्वस्त्र उस तालाब में नहा रही थी , दर्जनों उसकी उसी तरह के चित्र, फिर सेक्स वाले, गुरु जी के साथ का नहीं था, लेकिन जितने गुरु शिष्यों के साथ था सब, हाँ मर्दों का चेहरा किसी में बहुत साफ़ नहीं था, लेकिन उसका चेहरा एकदम साफ़ साफ़ और उस से बढ़ कर उसकी आवाज,

'हाँ चोदो न, अरे पूरा लंड डाल के पेल, प्लीज चोदो, बहुत मजा आ रहा है चुदाने में' और बीच बीच में वो अपना नाम लेकर भी, 'अरे संजना को चोदो न ऐसी चुदवासी तुझे कहीं नहीं मिलेगी, 'करीब घंटे भर .कई में तो दो दो मरद एक साथ उसके ऊपर चढ़े है और वो सब को उकसा रही है,...

बेचारी संजना की ऐसी की तैसी हो गयी । गोरा चेहरा एकदम काला, उस समय तो एकम होश ही नहीं था, सास ने बोला था, जो जो गुरु जी कहें, उनके आश्रम में कहा जाए, तो वो, और फिर ऊपर से वो जो पेय पिलाया था, जानती तो वो भी थी की चोदी जायेगी, लेकिन इस तरह से फोटो बना के, और कहीं उसके मरद, गाँव में कोई, उसके मायके में, फिर तो बस पोखरा ताल भी नहीं मिलेगा,

संजना की बोलती बंद थी




तब तक दरवाजा खुला और एक मुख्य सेविका, थोड़ी भारी बदन की, दो दिन में ही संजना ने समझ लिया था इनसे सब डरते है, अगर वो घूर के भी देखती है तो गुरु शिष्यों के चेहरे पे पसीना आ जाता था।



संजना भी जैसे उसे सिखाया गया था घुटने के बल बैठ गयी। आँखे नीची।


" फिल्म अच्छी लगी न नंबरी चुदककड़ लग रही हो। मुंह में भी कितना मस्त चूसा है। फिल्म तो बहुत लम्बी है लेकिन एडिट कर के छोटा कर दिया है तुहारे देखने के लिए, चाहोगी तो पूरा मिल जाएग। और हाँ रोज रोज भी देखना चाहो तो ये तेरा मोबाइल हमने रखवा लिया था,...बस उसी में है,... संजना नाम का फोल्डर है खोल के देख लो,"




करीब डेढ़ सौ फोटुएं, उसकी हर हालत में चूसते हुए,



खुद मरद के ऊपर चढ़ के चोदते हुए,


कहीं गांड मरवाते,




लेकिन इस में मर्दो को भी चेहरा एकदम साफ़ था,


ज्यादातर में तो उसके मायके के मर्द थे, बीसों तो उसके अपने सगे छोटे भाई के साथ, भाई उससे चार पांच साल छोटा, अभी रेख आ ही रही थी, इंटर में गया था,
और कई उसके ससुराल के, कोई देवर , कोई घर में काम करने वाला, उनके साथ

संजना से न रोया जा रहा था, न आवाज निकल रही थी, बस चेहरा पथराया सा, अगर कहीं ये सब, बस सोच सोच के सर फटा जा रहा था, उसका तो जो होना था, लेकिन कहीं उसको भाई के साथ तो उसके मायके में उस बेचारे की भी ऐसी की तैसी,

फिर वो मुख्य सेविका मुस्करायी, बोली,

' अरे इन मर्दो की फोटो तेरी मोबाइल में ही मिली, तेरे छोटे भाई की तो बहुत थीं, मुझे तो लगा की अभी छोटा है, लेकिन वो तेरी सखी बोली नहीं उसका चेहरा अच्छा जंचेगा, वो एक्सपर्ट है किसी का चेहरा कहीं का कहीं लगाने में, कोई माई का लाल पता नहीं कर सकता, वो तो जिद कर रही थी वो तेरी भाई के साथ वाली, उसके पास भेजने के लिए,... लेकिन मैंने मना किया। "
फिर रुक के वो मुख्य सेविका बोली,

" मैंने बोला, अरे ये माल बहुत मस्त है, हम लोगों की सब बात मानेगी, जब बुलाएँगे दौड़ी आएयेगी, कल एक रात में बारह बारह मरद चढ़े उसके ऊपर, कैसे मस्त होके सबसे चुदवाया, और स्साली जरा भी चूं चपड़ करने की सोचेगी भी तो उसका स्साला वो जो चिकना भाई है,... बुला लेंगे उसको भी पूजा के नाम पे, अभी तो सिर्फ चेहरा उसका है, फिर सच में इसके भाई से चुदवायेंगे, ...और वो स्साला नमकीन, लौण्डेबाज भी बहुत हैं, तो इसके सामने उसकी गाँड़ मरवाएँगे। क्यों अभी कोरा है न, फटेगी तो बहुत चिल्लायेगा, ....लेकिन जरूरत पड़ेगी नहीं "
और एक मोबाइल दिखाते बोलीं

तेरे मोबाइल का सिम और पूरा डाटा हमने क्लोन कर लिया है तो भेज तो अभी भी सकते है,... और जिसको भेजेंगे लगेगा तेरे मोबाइल से ही गया है। एक और वीडियों वाला भी है संजना २ के नाम से, तेरी आवाज बड़ी मस्त और एकदम साफ आयी है।"


संजना को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, बस सुनाई पड़ रही थी उस मुख्य सेविका की आवाज, उस का चेहरा देख के ही उस आश्रम वालियों की मूत निकल जाती थी, तो संजना तो, कभी उसे अपने भाई का भोला भाला चेहरा दिखाई पड़ता तो कभी ताल पोखर,

संजना ने वो भी खोला, उसमे भी १८ गिफ और ६ चार मिनट के वीडियो थे।

मुख्य सेविका समझ रही थी, उसके बात का असर जैसा वो चाह रही थी वैसे ही हो रहा था। चिड़िया जाल में फंस गयी थी, थोड़ा तो फड़फड़ाएगी ही , और इसी फड़फड़ाने को देखने में ही तो बहेलिया को असली मजा मिलता है। वो बोली,

" हमने किसी को भेजा नहीं है, क्यों भेजेंगे,... हां अगर तेरा मन करे तो भेज भी सकते है तेरे ही नंबर से। दोनों तेरी सखियाँ रोज बात करेंगी तुझसे , तुझे ही उन्हें काल करना हो, अगर किसी दिन तेरी काल न आयी तो हम समझ जायेंगे की तो चाहती है की हम भेज दे। और वो फ़ार्म में हमने पहले ही तुझसे और तेरी सास से साइन करा लिया था, की हर पूर्णिमा और अमावस को दो दो के मेडिकल चेकअप के लिए आना होगा । तो बस पांच दिन बाद ही पूर्णिमा है आ जाना। अभी तेरी सास को भी बता दूंगी।

मेरी ननद का भी चेहरा एकदम बुझ गया था, बता वो अपनी सहेली संजना की बात रही थीं, लेकिन वो जानती थीं अगर वो आश्रम गयी तो उनके साथ भी यही सब, बड़ी मुश्किल से बोलीं

संजना बोली बस समझो रंडी बना के,

लेकिन
संजना की सास बहुत खुश , जब उन्हें बताया गया की पूजा बहुत सफल रही, गुरु जी बहुत खुश थे उनकी बहू की भक्ति से। डिलीवरी का भी सारा खर्चा आश्रम उठाएगा, हाँ उस के गर्भ पर एक दुष्ट छाया थी जो अब करीब करीब हट गयी है लेकिन पूर्णिञा और अमावस्या को वो प्रबल हो उठती है, इसलिए बहू और उसके गर्भ की रक्षा के लिए बहू को अगले पांच महीने तक पूर्णिमा और अमावस्या को दो दो दिन के लिए, लेकिन ये पूरी तरह से बहू और सास की मर्जी है, हाँ उसके बाद बहू और होने वाले बच्चे को कुछ हुआ तो गरू जी की जिम्मेदारी नहीं होगी, क्योंकि आश्रम की पुण्य भूमि में तो बुरी शक्तियां नहीं घुस सकती लेकिन आश्रम के बाहर की वो जिम्मेदारी हम नहीं ले सकते।



संजना की सास तो उस प्रधान सेविका के आगे दंडवत हो गयी और गर्दन पकड़ के बहू को भी, और बोलीं

" गुरु जी के लिए जिंदगी हाजिर है। अरे दो दिन का जितना दिन चाहे,.... पांच दिन बाद पूर्णिमा है,... मैं खुद चौथे दिन उसको ला के छोड़ जाउंगी।




" तो क्या ब्लैकमेल का डर दिखा के वो लोग, संजना बीबी को,.... "


मेरी बात पूरी नहीं हुयी थी की मेरी ननद ने काट दी और बोली,

" अरे नहीं भौजी चार आने का खेल तो अभी बाकी था, असली जो परेशानी हुयी बेचारी को। "

हुआ ये की पूर्णिमा के दिन एक महा उत्सव होता था जिसमे बाहर के शहरों से भी गुरु जी के शिष्य आते थे,

और बस उन के साथ, वो जो सखियाँ थी वो ही संजना को बताती थी, किसके साथ,
और हर दिन चार पांच मरदों के साथ,




उसी तरह अमावस्या को भी दिन , लेकिन अगली पूर्णिमा को संजना के पाँव से ज़मीन खिसक गयी।

उस दिन सखी ने उसे जिस मर्द के साथ भेजा था उसके साथ उसे पूरे दिन और रात को रहना था, यंग लड़का था खूब पैसेवाला, पेलने में भी मस्त, बात करने में भी, कमरे के अलावा रात में आम की बाग़ में भी दो बार चुदवाया उससे संजना ने,

लेकिन जब उसने बोला की संजना को उसने कैसे पसंद किया तो,


वो कोई गुरु जी का शिष्य नहीं था, एक एन आर आयी था जो तीन महीने के लिए हिन्दुस्तान आया था, वहीँ महीने भर पहले उसने एक एस्कॉर्ट साइट पर संजना की फोटो देखी, लिखा था , पूर्णिमा की रात को इंडियन विलेज वोमेन इन इंडियन विलेज, बस उसने बुक कर लिया,


और हर बार पूर्णिमा और अमावस को भी आयी हुयी लड़कियों की पूरी रिकार्डिंग होती और वो उनके मोबाइल में, यहाँ तक की ब्ल्यू फिल्म भी कुछ बनाने वालों को, ऐसी लड़कियां जो खुल के हिंदी में देसी जुबान में बोल सके, ....और कोई देसी बैंग करके साइट है वहां पे चार फिल्मे भी,

हाँ संजना ने बोला, की शुरू में तो ताल पोखर सोचती थी, लेकिन उसकी सास छाया की तरह और जब महीना नहीं हुआ, उसके बाद एक बार वो गयी भी, पर उसे लगा अब वो एक नहीं दो जन है और बच्चे की जान लेने का, बस वो वापस आ गयी और उसकी सास खुश मरद खुश तो लेकिन उसके पति भी कुछ ख़ास नहीं थे और एक बार जब उसकी माहवारी रुक गयी तो वो भी काम पर सूरत चले गए,
Wah guruji ka to bahot bada scandal hai. Sanjna ka to itihaas khol diya. Uska bhai aur uske mayke valo ke sath sab kuchh. Ab to vo man hi jaegi. Guruji ke sisyo ka grup sab sambhal lega. Amezing erotic update. Aabhi to khud guruji baki hai.,

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komaalrani

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Pichhle update ka matlab ab samaz aaya. Train jati raxas ke pet me. Matlab sasu maa ki vedna. Unka bada bete ko Mumbai ka raxas kha gaya. Vo samazna bhi mushkil hai aur sahna bhi mushkil hai. Aap amezing ho. Aaj tak is vedna ko is forum par kisi ne nahi likha.


Aur is update me to aap ne puri kahani flashback me hi dikha di. Geeta se lekar nandoi aur fir dewaro ki foj sath me chachera bhai chunnu. Maza aa gaya.


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photo host
आपके कमेंट्स के लिए कितना भी आभार व्यक्त करूँ कम ही होगा।

लेकिन यह कुछ बातें मेरी दो पोस्टों बम्बई सहर और उसके बाद की पोस्ट जेठ जेठानी के बारें और उस पर आपके कमेंट के बारे में

आपने एक बात एकदम सही कही, वेदना के बारे में। और जो बात आप ने कही, " उस वेदना को समझना मुश्किल है और सहना और मुश्किल है "
लेकिन उसे कहे बिना रहा भी जाता। पूर्वांचल की माटी की महक मेरी कहानियों में अक्सर आती रहती है इसलिए कभी कभार दुःख, छुप हुए आंसू जो आँखों से ढलकने के पहले ही नैन पी जाते हैं, वो दुःख भी छलक जाता है।

मैं मानती हूँ कहानी तब ही कहना चाहिए जब पास में कुछ कहने को हो। और कहानी एक माध्यम भी हो मन का दुःख बांटने का। फंतासी, वो सुख जो हम चाहते हैं, वो अतीत जो कभी रहा नहीं पर कल्पना की दुनिया में हम उसे कहानी में रचते हैं या और भी फंतासियां, लेकिन मैं मानती हूँ कहानी को हमें कॉमोडिटी नहीं बनने देना चाहिए, वयस्क कहानियों की दुनिया में भी नहीं। यह बात सही है किसी लिखने वाले को कुछ नहीं मिलता, लेकिन अगर हम कहानी को सिर्फ इस तरह से पेश करें की देखने वाले ज्यादा हों, व्यूज और लाइक्स ज्यादा हो तो शायद ये काम आर्टिफिशल इंटेलीजेन्स भी कर सकता है।
इस मामले में आप सब से अलग हैं, हॉरर ऐसी विधा आपने चुनी जिसमे व्यूज और लाइक शायद काफी कम हैं आपने तब भी उसमे एक मुकाम हासिल किया, इसलिए आप इस को समझती हैं

और यह प्रंसग भी माइग्रेशन के दर्द को कहने की कोशिश करता है और इसे एक नारी अपने जीवन के हर पड़ाव पे झेलती है, जब पति कमाने जाता है, पूर्वी उत्तरप्रदेश के कई जिलों में, जौनपुर, आजमगढ़, देवरिया ऐसे जिलों में महिलायें पुरुषों से ज्यादा हैं और कारण यही है खेती किसानी से अब काम नहीं चलता तो माइग्रेशन, यु पी के अंदर ही, नोयडा गाजियाबाद ऐसे इलाकों में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में बहुत ज्यादा है। और बाहर देश के अंदर, मुंबई, सूरत और पंजाब से लेकर बाहर भी।

लेकिन यह दर्द सिर्फ गाँवों का नहीं हैं नगरों और महानगरों में भी पैरेंट्स का दर्द, जब बच्चे अमेरिका, कनाडा और दूर दूर, बढ़ते वृद्धाश्रम, ताला लटके घर, जीवन की साँझ में जब अँधेरा होने का इन्तजार कर रहे, बुढ़ाते पैरेंट बच्चों के पॅकेज का बात कर मन बहलाते हैं लेकिन मन के पीछे यह डर रहता है की कहीं अचानक किसी दिन

इस भाग की पोस्टो में वह डर है सास के मन में की कही अगर बड़ी बहु की तरह छोटी बहु भी तो बस वो उम्र के आखिरी पल सूने आंगन को तकते गुजारेंगी

और यह कई संवादों में आया है और बात में इस कहानी में

" और अब आ ही गयी हूँ तो खूंटा गाड़ के बैठ जाउंगी, लाख ताकत लगा लीजिये अब मेरा खूंटा उखड़ने वाला नहीं है। बस यही आपके साथ रहूंगी और जिस दरवाजे से सुहागिन आयी थी, उसी दरवाजे से,... जो गाँठ जोड़ कर लाया था, वही कंधे पे, ....सुहागिन आयी थी इस घर में, सुहागिन,... "

मेरी आँखे भर आयी थी और मेरी सास ने मुंह बंद करा दिया,

" चुप, चुप अब एक अक्षर आगे मत बोलना, " अपना हाथ मेरे मुंह पर रख दिया उन्होंने और फिर हड़काया,

" सुबह सुबह अच्छी अच्छी बात बोलो,"



एक बार वो फिर उदास हो गयीं,

जीवन के उस पक्ष की ओर इशारा करता है जिसके बारे में कोई बोलना नहीं चाहता

----


मैं उन का दुःख अब समझ सकती थी।

बात इस जेठ की नहीं थी।

अब हरदम के लिए थी, उन्हें लग रहा था इतना बड़ा घर अब सूना लगेगा।
 

komaalrani

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Are wah vese to nandiya apne bhiya ki dewani hai. Use bhiya ka bhi hath bhar ka mil hi gaya. Gambhin hone ki to guarantee hai hi. Magar nandiya ki sasu maa ne dhanki bhi de rakhi hai. Paheli holi hai. Isi lie jane de rahi hu. Aur sasumaa bhi to guruji ki pure 2 sal se cheli hai. Matlab to vo bhi..

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To ab nandiya rani bhi to bahu ban gai. Vo bhi to nadoi aur dewaro ko sambhalegi. Aur ashram me nandiya ki saheli ne bahot kuchh to bata diya. Baba ke ashirwad ko pane ki bhi vidhi hai. Use achhe se vese hi pura karna hoga. Jese nadiya ki saheliyon ne kiya. Amezing erotic update.


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Thanks so much
 

komaalrani

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Very erotic & sexy
saas damad milan
💦💦💦💦
👌👌👌
💯💯
Thanks so much, Your presence encourages me. updates have come on my other stories too.

Thanks again

:thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २५ रंग पृष्ठ ३०८
एक मेगा अपडेट पोस्टेड
कृपया, पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें


अपडेट की कुछ बानगी

पलक झपकते मैंने चेन भी उठा ली। ये आर्डिनरी चेन नहीं थी, चेन का एक फेस बहुत पतला, शार्प लेकिन मजबूत था। गिटार के तार की तरह,.... ये चेन गैरोटिंग के लिए भी डिजाइन थी। दूर से चेन की तरह और नजदीक आ जाए तो गर्दन पे लगाकर। गैरोटिंग का तरीका माफिया ने बहुत चर्चित किया लेकिन पिंडारी ठग वही काम रुमाल से करते थे।

प्रैक्टिस, सही जगह तार का लगना और बहुत फास्ट रिएक्शन तीनों जरूरी थे।


पनद्रह बीस सेकंड के अन्दर ही वो अपने पैरों पे था

और बिजली की तेजी से अपने वेस्ट बैंड होल्स्टर से उसने स्मिथ एंड वेसन निकाली, माडल 640।

मैं जानता था की इसका निशाना इस दूरी पे बहुत एक्युरेट।

इसमें 5 शाट्स थे। लेकिन एक ही काफी था। उसने पहले मुझे सामने खोजा, फिर गुड्डी की ओर।

तब तक तार उसके गले पे।

पहले ही लूप बनाकर मैंने एक मुट्ठी में पकड़ लिया था और तार का दूसरा सिरा दूसरे हाथ में, तार सीधे उसके ट्रैकिया के नीचे।

छुड़ाने के लिए जितना उसने जोर लगाया तार हल्का सा उसके गले में धंस गया। वो इस पेशे में इतना पुराना था की समझ गया था की जरा सा जोर और,...

लेकिन मैं उसे गैरोट नहीं करना चाहता था।

मेरे पैर के पंजे का अगला हिस्सा सीधे उसके घुटने के पिछले हिस्से पे पूरी तेजी से, और घुटना मुड़ गया। और दूसरी किक दूसरे घुटने पे। वो घुटनों के बल हो गया। लेकिन रिवालवर पर अब भी उसकी ग्रिप थी, और तार गले में फँसा हुआ था।

मैंने उसके कान में बोला- “मैं पांच तक गिनूंगा गिनती और अगर तब तक रिवाल्वर ना फेंकी…”

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धड़धड़ाती हुई जीप की आवाज सुनाई पड़ी। सबके चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के। दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे। ब्राउन जूते और जोरदार गालियों के साथ-

“कौन साल्ला है। गाण्ड में डंडा डालकर मुँह से निकाल लेंगे, झोंटा पकड़कर खींच साली को डाल दे गाड़ी में पीछे…”

गुड्डी की ओर देखकर वो बोला।

और पीछे से थानेदार साहब।

पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद। सबसे पहले उन्होंने ‘छोटा चेतन’ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर।

“साल्ला मच्छर…”

बोलकर उसने वहीं दुकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी के ऊपर डाली, बल्की सही बोलूं तो दृष्टिपात किया। धीरे-धीरे, ऊपर से नीचे तक रीति कालीन जमाने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे। और कहा-

“माल तो अच्छा है। ले चलो दोनों को,... लेकिन पहले साहब चले जाएं। डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…” उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पूछा।

“नहीं साहब। बिना आपकी इजाजत के। अब इस साले को ले चलेंगे तो किडनैपिंग और लड़की को नाबालिग करके। ये उससे धंधा करवाता था। तो वो…”

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तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।



क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।

सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।

खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।



एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।


सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-

“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।



Please do read latest action filled update of Phagun ke din chaar
 
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