Shetan
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Dilasa dete dete kaha se kaha pahoch gai. Bechari sasumaa kitna ghabda rahi thi. Himmat dene ke lie sharab ki botal wah. Dhire dhire har ghut ka asar huaa. Kamukhta ki to had hi par ho gai. Kanya ras nahi ye nari ras hai. Banaras, kamras aur nari ras. Kya kamukh sabdo se khela hai. Chumban se lekar sharab sevan karvane tak.सास बहू
थोड़ी देर में मैं मेरी सास और मैं हम दोनों पलंग पर थे लेकिन नींद कोसो दूर थी। मेरे मन में इन्ही को लेकर चिंता थी। मुझे पूरा मालूम था की ये एक बार पहुँच गए हैं तो सब कुछ सम्हाल लेंगे। पुलिस, हस्पताल सब. लेकिन मन का क्या करें, मन का काम परेशान होना है, वो हो रहा था. मैं अपने मरद के लिए सासू माँ अपने बेटे और दामाद दोनों के लिए.
मैंने खुद को समझाने के लिए सासू माँ को समझाना शुरू किया,
" माता जी परेशान न होइए, वो पहुंच गए होंगे कभी के, उन्होंने तो पहले ही कहलवा दिया था की वहां से फोन नहीं हो पायेगा, सब ठीक होगा, नन्दोई जी को भी कुछ नहीं होगा, "
" मालूम है मुझे लेकिन क्या करूँ मन का,... बार बार यही सोचती हूँ जब चिंटू आया था कैसी घबड़ाहट हुयी लेकिन तुमने कैसे सम्हाला, बहुत हिम्मत है तुममे "
मुझे बाँहों में भींच के बोलीं वो।
'असल में मेरी एक सास हैं इस घर में और उनके रहते मुझे मालूम है इस घर में कोई अलाय बलाय नहीं आएँगी आने के पहले वो उसकी माँ चोद देंगी, बस उन्ही सासू माँ के चलते मेरे में हिम्मत आ गयी है अब मैं किसी से भी नहीं डरती, न घबड़ाती, मेरी सासू माँ हैं न मेरे साथ "
उन्हें और कस के भींचते हुए मैंने बोला।
" तू पागल है"
ये कह के उन्होंने अपना फैसला सुना दिया, और दुलार से मेरा सर सहलाने लगीं। लेकिन फिर अपनी परेशनी सुना दी,
" पता नहीं क्यों अभी भी एक तो दिल धड़क रहा है, नींद नहीं आ रही "
मैं समझ रही थी उनका टेंशन और मेरी हालत कौन सी अच्छी थी।
" रुकिए माता जी " कह कर मैं इनकी अलमारी के पास गयी और खोला।
पीने के मामले में ये कभी कभार वाले थे लेकिन नन्दोई जी तो पीते ही थे और वो आते तो रोज बोतल खुलती भी ख़तम भी होती। और ये साथ देते ही, इसलिए इनकी अलमारी में दो चार बोतल नयी हरदम ही रहती, और मर्द तो हर घर में लेकिन औरतें भी, होली में,
मेरी इन्ही ननद ने चार पाउच, देसी वाले सीधे, होली का परसाद है कहकर, फिर इतनी चढ़ी मुझे की रंगे पुते अपने सगे समान ममेरे भाई को पटक के जबरदस्ती, देवर समझ के उसके ऊपर चढ़ के चोद दिया, वो चिंचियाता रहा और तो और फिर जब वो मेरे ऊपर चढ़ा था, तो ननदोई जी ने पीछे से उसकी गाँड़ भी मार ली, और मैं समझ रही थी, मेरा देवर है तो उनका साला लगा
अलमारी से बोतल निकाल के मैं ग्लास लेने जा रही थी तो मेरी सास ने टोका,
"कहाँ आधी रात में ग्लास लेने जा रही है , ला सीधे बोतल से ही"
और बिस्तर पर सास के बगल में बैठ के मैंने एकदम छोटी सी घूँट, हल्की सी कड़वी लगी लेकिन मैं घोंट गयी और मेरे मन में आइड्या आ गया की सासू माँ को कैसे पिलाया जाय.
मैं अपनी सास के ऊपर लेटी,
उन्होंने धीरे धीरे खींच के मेरी साड़ी उतार के नीचे और मैं क्यों छोड़ती। थोड़ी देर में सास बहु की साड़ियां एक साथ पलंग के नीचे और सास बहू पलंग पर,
और अबकी बोतल से ढेर सारा मेरे मुंह में, थोड़ी देर मुंह में गोल गोल घुमाती रही, फिर दोनों हाथों से कस के सास के गुलाबी मांसल गाल दबाया, उन्होंने खुद मुंह खोल दिया और मेरे मुंह से शुद्ध दारु, मेरी सासू के मुंह में।
और उसके बाद मेरी जीभ, सासू लंड चूसने में जरूर पक्की होंगी जिस तरह से वो मेरी जीभ चूस रही थी, क्या मस्त।
उसी समय मैंने तय कर लिया जल्द बहुत जल्द अपने सामने सासू के मुंह मोटा लौंड़ा जरूर घुसवाऊँगी, और किसका सासू के पूत का,… मस्त चूसेंगी ये।
और जब तक वो मेरी जीभ, मेरे हाथ, उनके जोबन का रस ले रहे थे, मेरी गुलाबो उनकी चमेली पर घिस्से मार रही थी,
और सिसकते हुए जब उन्होंने मेरे होंठों को छोड़ा, एक बार फिर बोतल मेरे मुंह में और दो पेग के बराबर थोड़ी देर में मेरे मुंह से होते हुए सास के मुंह में, और अबकी मैंने उनके दोनों होंठों को अपने होंठों से दबोच लिया, कस कस के चूसंती रही, जब तक एक एक बूँद दारु की सासू जी के पेट में नहीं उतर गयी।
लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थी,
एक बार मेरी ट्रिक और चली पर चौथी बार,
पहले तो जब बोतल मेरे मुंह में लगी, मैंने पहली की तरह दारू मुंह में डाली, बस सासू जी ने मेरी कलाई पकड़ ली। उनकी पकड़ और सँड़सी मात, और गटर गटर मुंह से मेरे पेट में जाने लगा, कबतक मैं मुंह में रोक के रखती। और जो थोड़ा बहुत बचा था, मेरी सास ने अब अपने होंठ, मेरे होंठों पर चिपका दिए और मेरे मुंह से वो भी मेरे पेट में चला गया.
अब बोतल उनके हाथ और उन्होंने जो किया में सोच भी नहीं सकती थी.
जिन बड़ी बड़ी चूँचियों का दूध पीके मेरा मरद इतना तगड़ा हो गया की उसका खूंटा हाथ बाहर मोटी दीवाल में भी छेद कर दे.
बस वही मस्त चूँची बड़ी बड़ी भी कड़ी कड़ी भी, मेरे खुले होंठों के ऊपर, कभी निपल रगड़ देती कभी उठा लेती,
फिर बूँद बूँद बोतल से मदिरा और जोबन दोनों का नशा मेरे होठों से मुंह में सरकता हुआ और मेरी धमनियों शिराओं से सीधे मेरे तन मन को पागल करता,
लेकिन थोड़ी देर में मैंने बोतल सासू की माँ के हाथ से छीन ली, जवानी की ताकत, और बोली,
" आपके बेटे को ऐसे पिलाती हूँ,..."
मेरी गुलाबो सासू जी के मुंह से सटी हुयी और बोतल से बूँद बूँद पहले मेरी क्लिट को भिगोता, फिर दोनों गुलाबी फूली फूली फांको को गीली करता सासू माँ के खुले मुंह, उन्होंने खुद मुंह खोल रखा था और चुसूर चुसूर पी रही थीं, लेकिन थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, पहले तो जीभ निकाल के उन्होंने उन दारू से भीगी गुलाबी रसीली फांको को छूने की कोशिश की, फिर गरदन उठा के मेरी दोनों फांको को अपने होंठों के बीच में,
मन तो मेरा भी कर रहा था, मैंने भी अपनी रसीली चुनमुनिया रगड़नी शुरू कर दी और सासू जी ने चूसना शुरू किया,
कई बार तो मुझे लगता था की ये जो जबरदस्त चूत चटोरे हैं ये उन्होंने अपनी महतारी से खून में पाया है,
बोतल मैंने नीचे रख दी थी, आधी से ज्यादा खाली कर दी थी हम दोनों ने और हम दोनों पर अब उसका असर चढ़ गया था,
कुछ देर तक तो मैं अपनी बुर सासू जी के मुंह पे रगड़ती रही लेकिन मुझे वो सुरंग दिखी जिसमें से मेरे बालम निकले थे और रोज मेरी सुरंग में बिना नागा घुसते हैं। देख के मेरा मन ललचा गया, और मैं सासू से बोली,
" सासू माँ बहू का काम है सास की सेवा करने और मैं आप से करवा रही हूँ, पहले मैं "
Sasu maa ki harkato se unki bete ki adate saf milti hai. Isi khoon ka diya huaa hai. Chut ke chatore bhi chudakkad bhi.