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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Shetan

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सास बहू



थोड़ी देर में मैं मेरी सास और मैं हम दोनों पलंग पर थे लेकिन नींद कोसो दूर थी। मेरे मन में इन्ही को लेकर चिंता थी। मुझे पूरा मालूम था की ये एक बार पहुँच गए हैं तो सब कुछ सम्हाल लेंगे। पुलिस, हस्पताल सब. लेकिन मन का क्या करें, मन का काम परेशान होना है, वो हो रहा था. मैं अपने मरद के लिए सासू माँ अपने बेटे और दामाद दोनों के लिए.

मैंने खुद को समझाने के लिए सासू माँ को समझाना शुरू किया,

" माता जी परेशान न होइए, वो पहुंच गए होंगे कभी के, उन्होंने तो पहले ही कहलवा दिया था की वहां से फोन नहीं हो पायेगा, सब ठीक होगा, नन्दोई जी को भी कुछ नहीं होगा, "

" मालूम है मुझे लेकिन क्या करूँ मन का,... बार बार यही सोचती हूँ जब चिंटू आया था कैसी घबड़ाहट हुयी लेकिन तुमने कैसे सम्हाला, बहुत हिम्मत है तुममे "

मुझे बाँहों में भींच के बोलीं वो।



'असल में मेरी एक सास हैं इस घर में और उनके रहते मुझे मालूम है इस घर में कोई अलाय बलाय नहीं आएँगी आने के पहले वो उसकी माँ चोद देंगी, बस उन्ही सासू माँ के चलते मेरे में हिम्मत आ गयी है अब मैं किसी से भी नहीं डरती, न घबड़ाती, मेरी सासू माँ हैं न मेरे साथ "

उन्हें और कस के भींचते हुए मैंने बोला।

" तू पागल है"

ये कह के उन्होंने अपना फैसला सुना दिया, और दुलार से मेरा सर सहलाने लगीं। लेकिन फिर अपनी परेशनी सुना दी,


" पता नहीं क्यों अभी भी एक तो दिल धड़क रहा है, नींद नहीं आ रही "

मैं समझ रही थी उनका टेंशन और मेरी हालत कौन सी अच्छी थी।

" रुकिए माता जी " कह कर मैं इनकी अलमारी के पास गयी और खोला।

पीने के मामले में ये कभी कभार वाले थे लेकिन नन्दोई जी तो पीते ही थे और वो आते तो रोज बोतल खुलती भी ख़तम भी होती। और ये साथ देते ही, इसलिए इनकी अलमारी में दो चार बोतल नयी हरदम ही रहती, और मर्द तो हर घर में लेकिन औरतें भी, होली में,




मेरी इन्ही ननद ने चार पाउच, देसी वाले सीधे, होली का परसाद है कहकर, फिर इतनी चढ़ी मुझे की रंगे पुते अपने सगे समान ममेरे भाई को पटक के जबरदस्ती, देवर समझ के उसके ऊपर चढ़ के चोद दिया, वो चिंचियाता रहा और तो और फिर जब वो मेरे ऊपर चढ़ा था, तो ननदोई जी ने पीछे से उसकी गाँड़ भी मार ली, और मैं समझ रही थी, मेरा देवर है तो उनका साला लगा

अलमारी से बोतल निकाल के मैं ग्लास लेने जा रही थी तो मेरी सास ने टोका,

"कहाँ आधी रात में ग्लास लेने जा रही है , ला सीधे बोतल से ही"




और बिस्तर पर सास के बगल में बैठ के मैंने एकदम छोटी सी घूँट, हल्की सी कड़वी लगी लेकिन मैं घोंट गयी और मेरे मन में आइड्या आ गया की सासू माँ को कैसे पिलाया जाय.

मैं अपनी सास के ऊपर लेटी,

उन्होंने धीरे धीरे खींच के मेरी साड़ी उतार के नीचे और मैं क्यों छोड़ती। थोड़ी देर में सास बहु की साड़ियां एक साथ पलंग के नीचे और सास बहू पलंग पर,

और अबकी बोतल से ढेर सारा मेरे मुंह में, थोड़ी देर मुंह में गोल गोल घुमाती रही, फिर दोनों हाथों से कस के सास के गुलाबी मांसल गाल दबाया, उन्होंने खुद मुंह खोल दिया और मेरे मुंह से शुद्ध दारु, मेरी सासू के मुंह में।

और उसके बाद मेरी जीभ, सासू लंड चूसने में जरूर पक्की होंगी जिस तरह से वो मेरी जीभ चूस रही थी, क्या मस्त।


उसी समय मैंने तय कर लिया जल्द बहुत जल्द अपने सामने सासू के मुंह मोटा लौंड़ा जरूर घुसवाऊँगी, और किसका सासू के पूत का,… मस्त चूसेंगी ये।



और जब तक वो मेरी जीभ, मेरे हाथ, उनके जोबन का रस ले रहे थे, मेरी गुलाबो उनकी चमेली पर घिस्से मार रही थी,




और सिसकते हुए जब उन्होंने मेरे होंठों को छोड़ा, एक बार फिर बोतल मेरे मुंह में और दो पेग के बराबर थोड़ी देर में मेरे मुंह से होते हुए सास के मुंह में, और अबकी मैंने उनके दोनों होंठों को अपने होंठों से दबोच लिया, कस कस के चूसंती रही, जब तक एक एक बूँद दारु की सासू जी के पेट में नहीं उतर गयी।



लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थी,


एक बार मेरी ट्रिक और चली पर चौथी बार,

पहले तो जब बोतल मेरे मुंह में लगी, मैंने पहली की तरह दारू मुंह में डाली, बस सासू जी ने मेरी कलाई पकड़ ली। उनकी पकड़ और सँड़सी मात, और गटर गटर मुंह से मेरे पेट में जाने लगा, कबतक मैं मुंह में रोक के रखती। और जो थोड़ा बहुत बचा था, मेरी सास ने अब अपने होंठ, मेरे होंठों पर चिपका दिए और मेरे मुंह से वो भी मेरे पेट में चला गया.

अब बोतल उनके हाथ और उन्होंने जो किया में सोच भी नहीं सकती थी.


जिन बड़ी बड़ी चूँचियों का दूध पीके मेरा मरद इतना तगड़ा हो गया की उसका खूंटा हाथ बाहर मोटी दीवाल में भी छेद कर दे.


बस वही मस्त चूँची बड़ी बड़ी भी कड़ी कड़ी भी, मेरे खुले होंठों के ऊपर, कभी निपल रगड़ देती कभी उठा लेती,





फिर बूँद बूँद बोतल से मदिरा और जोबन दोनों का नशा मेरे होठों से मुंह में सरकता हुआ और मेरी धमनियों शिराओं से सीधे मेरे तन मन को पागल करता,

लेकिन थोड़ी देर में मैंने बोतल सासू की माँ के हाथ से छीन ली, जवानी की ताकत, और बोली,

" आपके बेटे को ऐसे पिलाती हूँ,..."

मेरी गुलाबो सासू जी के मुंह से सटी हुयी और बोतल से बूँद बूँद पहले मेरी क्लिट को भिगोता, फिर दोनों गुलाबी फूली फूली फांको को गीली करता सासू माँ के खुले मुंह, उन्होंने खुद मुंह खोल रखा था और चुसूर चुसूर पी रही थीं, लेकिन थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, पहले तो जीभ निकाल के उन्होंने उन दारू से भीगी गुलाबी रसीली फांको को छूने की कोशिश की, फिर गरदन उठा के मेरी दोनों फांको को अपने होंठों के बीच में,



मन तो मेरा भी कर रहा था, मैंने भी अपनी रसीली चुनमुनिया रगड़नी शुरू कर दी और सासू जी ने चूसना शुरू किया,




कई बार तो मुझे लगता था की ये जो जबरदस्त चूत चटोरे हैं ये उन्होंने अपनी महतारी से खून में पाया है,

बोतल मैंने नीचे रख दी थी, आधी से ज्यादा खाली कर दी थी हम दोनों ने और हम दोनों पर अब उसका असर चढ़ गया था,

कुछ देर तक तो मैं अपनी बुर सासू जी के मुंह पे रगड़ती रही लेकिन मुझे वो सुरंग दिखी जिसमें से मेरे बालम निकले थे और रोज मेरी सुरंग में बिना नागा घुसते हैं। देख के मेरा मन ललचा गया, और मैं सासू से बोली,


" सासू माँ बहू का काम है सास की सेवा करने और मैं आप से करवा रही हूँ, पहले मैं "
Dilasa dete dete kaha se kaha pahoch gai. Bechari sasumaa kitna ghabda rahi thi. Himmat dene ke lie sharab ki botal wah. Dhire dhire har ghut ka asar huaa. Kamukhta ki to had hi par ho gai. Kanya ras nahi ye nari ras hai. Banaras, kamras aur nari ras. Kya kamukh sabdo se khela hai. Chumban se lekar sharab sevan karvane tak.

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Sasu maa ki harkato se unki bete ki adate saf milti hai. Isi khoon ka diya huaa hai. Chut ke chatore bhi chudakkad bhi.
 

Shetan

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सास की सेवा


और मैं सास की दोनों टांगों के बीच,


जैसे अगर आज नन्दोई जी वाला झंझट नहीं हुआ होता तो सासु का बेटा आज करता,

एकदम उसी तरह पहले उनकी टाँगे फैलायीं, फिर दोनों खूब मांसल जाँघे, दोनों हथेलिया मेरी सरसराती जाँघों को सहलाती रहीं, फिर मैंने दोनों हाथों की उँगलियों सास के भोंसडे को कस के फैलाया, चार बच्चे निकल चुके थे लेकिन अभी भी बहुत कसी थी,


मुझे एक शरारत सूझी, सास के उन खुली फांको के बीच, दारू की बोतल खोल के टप टप,

जैसे ही वो शराब की बूंदे, सासू माँ के खुले फैले भोंसडे की फांको को भिगोती रगड़ती अंदर घुसती, दरार को दरेरती, सास मेरी सिहर जातीं कांपने लगती। फिर मैंने अपनी उँगलियों से दोनों फांको को पकड़ के बंद कर दिया,

दो चार ढक्क्न भर के दारू अंदर, घुलती छनती,


जैसे मेरी सासू माँ के छोटे बेटे के पास,... सांड़ ऐसे लम्बे मोटे मूसल के अलावा भी औरत को पागल करने वाले दर्जन भर हथियार थे, उनकी जीभ, उनके होंठ, उँगलियाँ और सबसे खतरनाक तो आँखे, गौने में बिदाई करा के लौटते हुए, उन्होंने बस तिरछी निगाह से एक बार देख भर लिया और मेरी मेंहदी लगी ऊँगली से उनकी ऊँगली छू भर गयी, बस सीना मेरा ऊपर नीचे होने लगा, चोली फाड़ने लगा, कैसे जल्दी ससुराल पहुंची कब गौने की रात आये और साजन की बांहों में लिपट जाँऊ ,...

तो बस उसी तरह,... मेरी सास की बहू के तरकश में अब बहुत तीर थे ,

सास की बुर की कुप्पी में दारू भरी थी और मैंने हथेली से मसलना शुरू कर दिया और बीच बीच में अंगूठे से क्लिट को रगड़ देती,



बस सासू माँ के मोटे मोटे बड़े बड़े चूतड़ उछल पड़ते।

थोड़ी देर पहले तक तो मैं उन्हें गरम कर रही थी, लेकिन झाड़ नहीं रही थी,


ये सोच के सास का बेटा आएगा तो झाड़ेगा, मादरचोद अपनी माँ को चोद चोद के,

लेकिन वो तो टल गया,

चुदवाउंगी तो जरूर इनको अपने मरद से वो भी अपने सामने आज नहीं तो किसी और दिन.

लेकिन अब बेटा नहीं तो बहु है न, जब तक इन्हे झाड़ूंगी नहीं अच्छी नीद नहीं आएगी इन्हे, और फिर मैंने चूसना शुरू कर दिया,




शुरू से ही कस कस के और बीच बीच में कभी दो ऊँगली कभी तीन ऊँगली,... पूरी ताकत से और साथ में क्लिट भी चूसती, पांच छह मिनट में वो झड़ने के कगार पर आगयीं। लेकिन मैं रुकी नहीं

वह झड़ती रहीं, मैं चूसती रही,


वो लाख कहती रही अपनी समधन को गालियां देती रही, तोरी महतारी क भोंसडे में बाइस पुरवा क कुल मरद समाय, गदहा चोदी,

लेकिन मेरे ऊपर कुछ असर नहीं पड़ा उनकी समधन वो जो चाहे कहें उनका गरियाने का रिश्ता,... एक बार झड़ के जब वो रुकी तो मैं भी रुकी लेकिन फिर जीभ की जगह उँगलियाँ और थोड़ी देर में उसी हालत में वो।

तीन बार झाड़ के मैंने उन्हें थेथर कर दिया लेकिन वो भी

थोड़ी देर में हम दोनों 69 वाली पोजीशन में थे,


वो मेरा चूस रही थीं और मैं उनके भोसड़े से तीन बार के झड़ने के बाद बह रही चाशनी चाट रही थी और सोच रही थी यही चासनी अपने मर्द को चटाउँगी जरूर।


लेकिन जबरदस्त चटोरी थी मेरी सास,

पांच मिनट में मैं भी झड़ रही थी, दो बार झड़ने के बाद मैं भी अलग हुयी।

रात बहुत हो चुकी थी,

हम दोनों सास बहू अच्छी तरह झड़ गयी थीं,


मैंने कल रात भी इनके साथ रतजगा किया, भाई अपनी सगी बहन को गपागप चोद रहा हो, वैसा मजेदार सीन छोड़ के किस भौजाई की आँख लगेगी और आज दिन भर भी देवरों के साथ कुश्ती, अपनी सास के लिए गाँव के आठ लौंडो की मलाई अपनी कुप्पी में भर के लायी थी, लेकिन एक बात मन में फांस की तरह चुभ रही थी,



आज इनकी महतारी बच गयी बेटवा क लंड घोंटने से, बहू के सामने।



मैंने सास को कस के अपनी बाहों में भर के दबाते हुए गाल पे चुम्मा ले के कहा,

" आज तो आप बच गयी, लेकिन एक बार मेरी ननद को जाने दीजिये, मेरी सास की कसम,...इसी बिस्तर पे आपके बेटे से न चुदवाया आपको तो,... वो भी अपने सामने"





मेरी सास मुझे बीस नहीं पच्चीस थीं, मजाक और मस्ती दोनों मामले में, कस के मेरे जुबना मीजते हंस के बोली,

" अरे रंडी महतारी क जनि, तू क्या चुदवायेगी, और वो तेरी छिनार महतारी क दामाद वो क्या चोदेगा, ...मैं खुद उसे चोद दूंगी।




हाँ बात तेरी एकदम सही है एक बार अपनी ननद को ससुराल जाने दे, आज तो वो नहीं थी, कोई बात नहीं लेकिन कल से तो, … लेकिन पांच छह दिन की बात और ये बात तोहार एकदम सही है, कुछ भी है, है तो ससुरैतिन, कहीं ससुरारी में केहू के सामने मुंह खुल जाए, या यही पे हमरे तोहरे सामने, तो घबड़ा जिन।

एहमे न तोहार दोस न केहू और का, जो आज क मामला गड़बड़ाय गया,.... हमहुँ तो सब ओकरे पसंद क खाना बनाय के बैठे थे,...हमरो मन एकदम गरमाया था"


मैंने ख़ुशी से सास का मुंह फिर से चूम लिया. जो मैं सोचती थी वही मेरी सास चाहती थीं, दुनिया में ऐसी सास कहाँ मिलेगीं।

अपने बेटे की तरह मेरी सास भी मेरे जुबना की दीवानी थीं। उसे सहलाते हलके हलके दबाते बोली,


"गेंदवा तोहार एकदम तोहरी महतारी पे पड़ा है, बड़ा बड़ा कड़ा, तबे गांव क कुल लौंडा नयकी भौजी, नयकी भौजी करते रहते हैं। "




ये बात सास की मेरी एकदम सही थी और गौने आने के कुछ ही दिन बाद अपनी सास की देखादेखी मैंने ढक्क्न लगाना बंद कर दिया, चोली भी सब एकदम टाइट और लो कट वाली, और फिर इत्ते बड़े बड़े जोबन पे आँचल कहाँ टिकता है, तो सब लौंडे बस एक झलक पाने के लिए और मैं भी, भाई उनका रोज इमरती खाता था, तो देवर कम से कम मिठाई क झलक तो देख लें।



और निप पे एक चुम्मा ले के सास ने एक और बात कही,

" तोहार महतारी चाहे मायके क, बचपन क छिनार हों, खानदानी रंडी हो , जबरदस्त लंड खोर, लेकिन बिटीया तीनो मस्त पैदा कीं, सब एक से एक,... माल।"
Man gae komalji. Abhi tak to sirf dekha to nandiya aur bhouji ka khela dekha. Magar is bar to dono bhari puri mahila. Ek jawan bhabhi aur dusri unki mahtari MLF. Kheli khai experience vali. Chut se madira pine vala seen to la jawab hai. Maza aa gaya. Sas ki chut chatai karte unke bete apne marad se chudvane ka plan bana rahi ho. Maza aa gaya.

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Milind

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आपकी सुविधा क़े लिए में इंडेक्स अब तक का यहाँ भी दे दे रही हूँ , कहानी अगर शुरू से न पढ़ी हो तो जरूर पढियेगा और हर पोस्ट पर लाइक और कमेंट भी


पूर्वाभास - पृष्ठ १ और २

भाग १ -पृष्ठ ५ छुटकी - होली, दीदी की ससुराल में

भाग २
पृष्ठ ८ छुटकी -बंधे हाथ, ट्रेन में

भाग ३ पृष्ठ १३ चाय चाय

भाग ४,
पृष्ठ १९ छुटकी का पिछवाड़ा और नन्दोई जी का इरादा

भाग ५ - पृष्ठ २२ गोलकुंडा पर चढ़ाई- चलती ट्रेन में

भाग ६ --पृष्ठ २९ -३० रात भर ट्रेन में, सटासट,...

भाग ७ पृष्ठ ३५ रेल में धक्क्म पेल

भाग ८ पृष्ठ ४० छुटकी पहुंच गयी जीजा के गाँव


भाग ९ -पृष्ठ ४६ मेरी सास

भाग १० --पृष्ठ ५० ननद, नन्दोई और छुटकी का पिछवाड़ा


भाग ११ - पृष्ठ ५३ सासू , ननदिया ( नैना ) का महाजाल

भाग १२ - पृष्ठ ५८ दो बहेलिये ( सासू और नैना ननदिया)

भाग १३ -पृष्ठ ६२ पूरा गाँव,... जीजा

भाग १४ पृष्ठ ६६ देवर मेरे

भाग १५ पृष्ठ ७२ चंदू देवर

भाग १६ -पृष्ठ ७७ फागुन का पहला दिन- देवर भौजाई

भाग १७ -पृष्ठ ८१ छुटकी - प्यार दुलार और,...

भाग १८ - पृष्ठ ८७ चुन्नू की पढ़ाई

भाग १९ - पृष्ठ ९१ ननदों भौजाइयों की रंगभरी कबड्डी

भाग २० -पृष्ठ ९३ छुटकी की हालचाल

भाग २१ - पृष्ठ ९९ छुटकी पर चढ़ाई -

भाग २२ पृष्ठ १०३ रात बाकी

भाग २३ पृष्ठ १०९ नई सुबह

भाग २४ पृष्ठ ११३ देवर भाभी की होली

भाग २५
पृष्ठ १२१ छोटा देवर - कैसे उतरी नथ चुन्नू की


भाग २६
पृष्ठ १२७ पिलानिंग - कच्ची ननदों की लेने की

भाग २७ पृष्ठ १३२ और छुटकी की होली



भाग २८ पृष्ठ १३६ - किस्सा इन्सेस्ट यानी भैया के बहिनिया पर चढ़ने का-
उर्फ़ गीता और उसके भैया अरविन्द का


भाग २९ पृष्ठ - १४५ इन्सेस्ट का किस्सा -तड़पाओगे, तड़पा लो,... हम तड़प तड़प के भी

भाग ३० पृष्ठ १५२ किस्सा इन्सेस्ट का, भैया और बहिनी का -( अरविन्द -गीता ) दूध -मलाई
भाग ३१ पृष्ठ १६५ किस्सा इन्सेस्ट का,-रात बाकी बात बाकी


भाग ३२ पृष्ठ १७८ इन्सेस्ट गाथा अरविन्द और गीता,-
सुबह सबेरे

भाग ३३ पृष्ठ २०० अरविन्द और गीता की इन्सेस्ट गाथा सांझ भई घर आये
भाग ३४ पष्ठ २१४ इन्सेस्ट कथा - चाची ने चांदनी रात में,...
भाग ३५ पृष्ठ २२५ फुलवा

भाग ३६ - पृष्ठ २३६ इन्सेस्ट किस्सा- मस्ती भैया बहिनी उर्फ़ गीता -अरविन्द की

भाग ३७ - पृष्ठ २५० इन्सेस्ट कथा - और माँ आ गयीं
भाग ३८ पृष्ठ २६० मेरे पास माँ है
भाग ३९ - पृष्ठ २७१ माँ, बेटा, बेटी और बरसात की रात
भाग ४० पृष्ठ २८६ इन्सेस्ट गाथा - गोलकुंडा पर चढ़ाई -भाई की माँ के सामने
भाग ४१ पृष्ठ ३०३ इन्सेस्ट कथा - मामला वल्दियत का उर्फ़ किस्से माँ के
भाग ४२ पृष्ठ ३१७ इन्सेस्ट कथा माँ के किस्से,
भाग ४३ पृष्ठ ३२९ इन्सेस्ट कथा- माँ के किस्से, मायके के
भाग ४४ पृष्ठ ३४१ रिश्तों में हसीन बदलाव उर्फ़ मेरे पास माँ है

भाग ४५ पृष्ठ ३४८ गीता चली स्कूल

भाग ४६ पृष्ठ ३६३ तीन सहेलियां खड़ी खड़ी, किस्से सुनाएँ घड़ी घड़ी

भाग ४७ पृष्ठ ३७५ रोपनी

भाग ४८ - पृष्ठ 394 रोपनी -फुलवा की ननद

भाग ४९ पृष्ठ ४२० मस्ती -माँ, अरविन्द और गीता की

भाग ५० पृष्ठ ४३५ माँ का नाइट स्कूल

भाग ५१ पृष्ठ ४५६ भैया के संग अमराई में

भाग ५२ पृष्ठ ४७९ गन्ने के खेत में भैया के संग


भाग ५३ - पृष्ठ ४९ ४ फुलवा की ननद

भाग ५४ पृष्ठ ५०६ स्वाद पिछवाड़े का

भाग ५५ पृष्ठ ५२१ माँ
भाग ५६ - पृष्ठ ५३६ - गीता और खेत खलिहान

भाग ५७- पृष्ठ ५४६ कुश्ती ननद भौजाई की -

भाग ५८ पृष्ठ ५५७ मंजू भाभी, मिश्राइन भाभी और स्ट्रेटजी

भाग ५९ पृष्ठ ५६७ कबड्डी ननद और भौजाई की
भाग ६० पृष्ठ ५७३ कबड्डी राउंड २
भाग ६१ पृष्ठ ५८१ कबड्डी राउंड ३

भाग ६२ पृष्ठ ६०५ कबड्डी फाइनल राउंड

भाग ६३ पृष्ठ ६१६ जीत गयी भौजाइयां

भाग ६४ पृष्ठ ६२४ ननदों की हार भाभियों की मस्ती

भाग ६५ पृष्ठ ६३२ भाभियाँ की जीत का जश्न

भाग ६६ पृष्ठ ६३९ ननदों संग मस्ती -मज़ा कच्ची कली रूपा का


भाग ६७ पृष्ठ ६४३ होलिका माई
भाग ६८ - पृष्ठ ६६२ हो गयी शाम घर की ओर

भाग ६९ पृष्ठ ६७३ पिलानिंग कल की , ननदों की

भाग ७० पृष्ठ ६८४ रेनू और कमल
भाग ७१ पृष्ठ ६९३ किस्सा रेनू और कमल का
भाग ७२ पृष्ठ ७०३ मेरा भाई मेरी जान--किस्से भैया बहिनिया के
भाग ७३ - पृष्ठ ७२१ किस्से भैया बहिनिया के
भाग ७४ पृष्ठ ७३२ मस्ती रेनू और कमल की,
भाग ७५ पृष्ठ ७४४ पठान टोले वाली
भाग ७६ - पृष्ठ ७४९ बुर्के वाली पठान टोले की

भाग ७७ पृष्ठ ७६५ इंटरवल के बाद ननदों की मस्ती
भाग ७८ पृष्ठ ७७९ चंदा का पिछवाड़ा और कमल का खूंटा
भाग ७९ - पृष्ठ ७९५ हिना और दूबे भाभी

भाग ८० पृष्ठ ८०७ चमेलिया -गुलबिया

भाग ८१ पृष्ठ ८१८ बारी भौजाइयों की

भाग ८२ पृष्ठ ८३० सुगना भौजी
भाग ८३ पृष्ठ ८४५ महुआ चुये
भाग ८४ पृष्ठ ८५८ ननद के भैया बने उनके सैंया-

भाग ८५ पृष्ठ ८७० इन्सेस्ट कथा -ननद के भैया बन गए सैंया -

भाग ८६ ----पृष्ठ ८८३ इन्सेस्ट कथा - सैंया बने नन्दोई

भाग ८७ - पृष्ठ ८९७ इन्सेस्ट कथा -इंटरवल और थोड़ा सा फ्लैश बैक

भाग ८८ पृष्ठ ९०९ - इन्सेस्ट कथा - मेरा मरद -मेरी ननद
भाग ८९ - पृष्ठ ९१९ - इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
भाग ९०- पृष्ठ ९३३ - वह रात
भाग ९१ पृष्ठ ९४३ नया दिन नयी सुबह -सास बहू
भाग ९२ पृष्ठ ९५० ननद और आश्रम -
भाग ९३ पृष्ठ ९६३ नन्दोई सलहज और सास
भाग ९४--- पृष्ठ ९७१ मस्ती सास और सलहज के साथ -
बहोत धन्यवाद 🙏🏽
 

komaalrani

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komaalrani

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अरे सासु माँ. तुम्हारी समधन की बिटिया को तो लाया ही पेलने के लिए है. और वो आई भी पेलवाने के लिए ही है. आप बताओ घोटोगी अपनी समधन के दामाद का.

ये चिंटू भईया भी ना. पहले ही शब्द भाभी भैया पुलिस हस्पताल.. उनका बोलना और सासु माँ की गांड फट गई.

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ये तो समज़ादरी सासु माँ के समधन की बेटी का. समज़दारी से काम के लिआ. बहुरिया को भी तब ही चेन आया.

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मौके पे तो सासु माँ की साड़ी निचे तो कर ली. दो उंगकी डाली जो थी. मगर अब चिंटू भैया आए हैं. देवर भी है. और उनके भी तो बिटवा हुए ना. हो जाए एक बार.
आप के कमेंट पढ़ कर लगता है सब मेहनत वसूल हो गयी।

आप न सिर्फ एक एक शब्द पढ़ती हैं बल्कि उस के रस में डूबती उतराती भी हैं और समय की इस किल्लत के बावजूद आप ने आने का अनुग्रह किया कोई भी आभार कम होगा
 

komaalrani

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उनकी तारीफ सुनकर तोहरा सीना फूल जाता है. तो देवर को भी तो अपनी भौजी का फुला सीना देखने को मिल जाता है.

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वैसे बात टेंशन की नहीं है. बस उनके आने मे देरी होंगी. चिंटू को गुजिया पे गुजिया खिलाए जा रही हो. कुछ और भी खिलाओ. देवर है री.
देवर भी है और होली भी एकदम सही कहा आपने
 

komaalrani

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Dilasa dete dete kaha se kaha pahoch gai. Bechari sasumaa kitna ghabda rahi thi. Himmat dene ke lie sharab ki botal wah. Dhire dhire har ghut ka asar huaa. Kamukhta ki to had hi par ho gai. Kanya ras nahi ye nari ras hai. Banaras, kamras aur nari ras. Kya kamukh sabdo se khela hai. Chumban se lekar sharab sevan karvane tak.

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Sasu maa ki harkato se unki bete ki adate saf milti hai. Isi khoon ka diya huaa hai. Chut ke chatore bhi chudakkad bhi.
क्या बात कह दी आपने सासु माँ की हरकतों से उन की बेटे की हरकते साफ़ मिलती हैं,

जबरदस्त आपके कमेंट कहानी में सोने में सुहागा का काम करते हैं, चार चाँद लगा देते हैं

बिना आपके कमेंट्स के कहानी लिखना अधूरा लगता है

धन्यवाद
 

Shetan

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बूआ जी


सास की ये बात भी एकदम सही थी, मेरा मतलब उनकी समधन की बिटियों वाली बात। लेकिन सास ने जो अगली बात कही इनके बारे में तो में चौंक गयी,

" जउन अपनी दादी क बिटिया को नहीं छोड़ा, वो नानी क बिटिया को काहें छोड़ेगा "

दादी की बिटिया मतलब इनकी बूआ, मैं सकते में, क्या सच में मेरे मुंह मुंह से निकल गया और मेरी सास खिलखिलाने लगीं।

" क्यों क्या मेरा बेटा अपनी बूआ नहीं चोद सकता, अरे खाली तोहार ननद छिनार थोड़े ही हैं, हमार ननद कउनो तोहरे ननद से कम थोड़े हैं, सावन से भादों दूबर"
जोर से ठहाका लगाते वो बोलीं।


और मेरी आँख के सामने इनकी बूआ की शक्ल घूम गयी, दुबली पतली, छरहरी, लेकिन असली जगहों पर जरूरत से ज्यादा गदरायी, एकदम टनाटन, और अपनी सास और उनके बीच जो मजाक और खुलापन पहले दिन ही मैंने देखा, मेरा और मेरी ननद के बीच तो कुछ भी नहीं, ....और वो दोनों लोग बोलने से ज्यादा सीधे हाथ पे उतर आती थीं,



सुहाग रात के लिए मेरी ननदे मुझे ले जा रही थीं, कमरे में और पहले मैं सास का पैर छूने के लिए झुकी तो उनके बगल में मेरी मेरा बूआ सास, मुझसे बोलीं,

" अरे बहुत पैर नहीं पैर के बीच में छुओ जहां से तोहार मरद निकला है, उठाय लो लहंगा "

और मैं कुछ बोल तो सकती नहीं थी, हाथ भर का घूंघट काढ़े




लेकिन दिख सब रहा था, और खुद बूआ ने अपनी भौजी का मेरी सास का लहंगा एकदम ऊपर तक,

और मैं समझ गयी की इस घर में फ़ालतू में चड्ढी पहनने का रिवाज नहीं है,... सब दिख गया।


लेकिन मेरी सास कौन कम, उन्होंने अपनी ननद का, लहंगा और ऊपर तक और मुझसे बोलीं

" देख लो, एही कुंए में तोहार ससुर गोता लगाते थे "
मेरी सास की कोई गाँव की जेठानी लगती थीं शायद हिना की माँ, वो अपने देवर की ओर से बोलीं,

" काहें हमरे देवर को दोष धरती हो, यह गाँव क का, पूरे बाईसपुरवा क कुल मरद साले बहनचोद होते हैं और लड़कियां भाइचॉद तो इहो गाँव क रिवाज, "

और जब मैं चलने लगी तो बूआ बोलीं,

" अरे दुल्हन खूब लम्बा मोटा कड़ा मिलेगा, ....रात भर रगड़ के रख देगा, सबेरे दो दो ननदे जाएंगी टांग के लाने के लिए "





फिर मेरी जेठानी से पूछा ,

" तेल पानी कर दिया है न अच्छी तरह से "



बूआ जी की बात पूरी तरह सही हुयी, सुबह सच में दो ननदें टांग के ही ले आयीं, जमीन पे पैर रखते ही वो जोर की चिलख उठती थी। लेकिन अगर पहला दिन नहीं होता तो मैं शायद बूआ जी से पूछ ही लेती

" क्यों बूआ जी, अपने देखा परखा है, ....खाली पकड़ा है की घोंटा भी है।"


बुआ जी से उसी दिन से मेरी खूब अच्छी वाली दोस्ती हो गयी,



पर मैंने सोचा, मामला साफ़ कर लेना चाहिए और मैंने सास से साफ़ पूछ लिया "तो क्या बूआ जी सच में,..."



मेरी सास खिलखिलाने लगी,

" तू भी न पागल, अब ये सब चीज कोई देखता है, अगर तू कहे की मैंने तेरे मरद को उसकी बूआ की टांग उठाते,... घुसाते, पेलते देखा है.... तो नहीं, लेकिन ये सब अंदाज लग जाता है, और उसकी बूआ बचपन की लटपटिया, मुन्ना को ( मेरी सास इन्हे मुन्ना ही कहती थीं ) देख देख के, ....और ५-६ साल का ही तो फरक होगा,"

और सास मेरी घडी की सूई पीछे घुमा के इनके बचपन में पहुँच गयीं,


" जब मैं इसकी नूनी खोल के तेल लगाती थी,"


और मैं सोचने लगी ये कौन बड़ी बात है हर माँ करती हैं, जिससे सुपाड़े की चमड़ी चिपके नहीं

लेकिन जो मेरी सास ने बात बताई तो मैं समझ गयी बूआ जी को, वो बोली

तो उसी समय कहीं भी हों वो, उछल के आ जाती थीं, , और उछलता भी था बहुत वो उस समय, लेकिन थोड़ा बड़ा भी हो गया था, और मैं खूब चिढ़ाती थी,
"अरे बूआ भतीजे में तो चलता है, देख लो बड़े होने पे,..."

और वो मुन्ना को छेड़ती भी खूब थीं और वो चिढ़ता भी बहुत था, वो नौवे या दसवे में था, बूआ उसकी स्कूल से आयीं, मुन्ना नेकर पहनता था बस ऊपर से पकड़ के, चिढ़ाते हुए बोलीं,



" क्यों फड़फड़ाता है बहुत जोर से, ....सफ़ेद सफ़ेद निकलता है की नहीं "





उस समय, अरे वही गुलबिया की सास, बड़की नउनिया, मुन्ना की बूआ की तो भौजी ही लगी, ....जबरदस्त मुंहफट, बिना ननदो को गरियाये , तो वो बोली तोहरे मरद से,

" अरे भैया छोड़ा मत, बहुत तोहार बूआ छौंछियान हई, सफेदा उनके अंदर निकाला, ....अरे जेकर भाई तोहरे महतारी पे चढ़त है, ओकरी बहिन को तो जरूर पेलना चाहिए "


और ओहि साल, बूआ क बियाह हो गया। दो साल बाद, मुन्ना इंटर में था, गरमी क छुट्टी, तो यही बूआ का फोन आया की फूफा कहीं महीने भर के लिए जा रहे हैं वो अकेले रहेंगी, तो मुन्ना को भेज दूँ ।


मैंने चिढ़ाया भी उन्हें की, "ननदोई जी वाला काम करवाना है का" तो वो नंबरी छिनार बोलीं,

" हमार भतीजा,... चाहे जो करवाई। "

और गरमी क छुट्टी में कौन लड़का घर रहना चाहता है तो मैंने भेज दिया। जब वो लौट के आया तो मैंने भी चिढ़ा के पूछा, बूआ के साथ मजा आया, ख्याल रखा बूआ ने, ....तो जो शरमाया वो, "

सास की बात काट के मैं बोली,

"जैसे बिल्ली ने छींके का दही खा लिया हो."




सास मेरी मुस्करायीं बोलीं " एकदम " तो बस मैं समझ गयी।

"अच्छा चलो बहुत रात हो गयी है सो जाओ।" वो बोलीं और दुबका के मुझे कस के सो गयी और थोड़ी देर में मैं भी, ...

उसके पहले मैं सोच रही थी,

मन तो मेरा बहुत था आज ये अपनी महतारी पे, लेकिन चलिए आज नहीं तो पांच छह दिन बाद, और मेरी सास भी खुदे गर्मायी हैं हमरे भतार का लंड खाने के लिए तो इनको तो मैं मादरचोद बना के रहूंगी आज नहीं तो पांच छह दिन बाद,

असल में एक बात और थी।

होलिका माई बोलीं थीं, ... ननद हमर पांच दिन के अंदर गाभिन होंगी और हमको तो लग रहा था कल उनके भैया जस हचक के पेले हैं छह बार आपन बीज अपनी बहन की बुरिया में, ...लेकिन बात तो पांच दिन की थी, तो क्या पता कौन दिन ? अब दो दिन तो निकल गया। पहले दिन तो ननद हमर अपने सगे भैया की सेज पे और और आज तो चलिए सहेलियों के साथ तो कउनो खतरा नहीं है। लेकिन बाकी के तीन दिन भी मैं यही सोचती हूँ , कुछ भी कर के,... एक चीज तो ये जरूरी है मेरी ननद रोज अपने भैया क बीज घोंटे, तो जिस दिन भी गाभिन होने का संयोग हो, हमरे मरद के बीज से गाभिन हों,

दूसरे ये तीन दिन उन्हें ननदोई की परछाई से भी दूर रखना होगा। बस तीन दिन और खाली हमार मरद और उनकी बहिनिया, और कुल बीज बच्चेदानी में ,



जेठानी तो जिस तरह से गयीं है छुटकी ननद को लेकर ये पक्का है अब वो बम्बई वाली हो गयीं, साल दो साल में कभी दिवाली, कभी होली और ये ननद भी गाभिन हो गयी तो इनका आना जाना भी तो,... बस मैं, मेरा मरद और मेरी सास, और एक बार मेरी सास को मेरे मरद के खूंटे क स्वाद लग गया न तो,

बस पांच छह दिन और,...उसजे बाद तो फिर न य बच सकते हैं अपनी महतारी पे चढ़े बिना और इनकी महतारी तो खुदे गर्मायी हैं ।



और सास को पकड़ के मैं भी सो गयी


एक दूसरे को पकड़ के क्या माँ बेटी सोती होंगी, जिस तरह हम दोनों सोये।
Wah man gae. Jo khel komaliya apni nandiyao se khelti hai. Vo sas unki mahtari apni nandiya matlab unki buaa ke sath khel chuki hai. Aur vo bhi unke bachpan ka pura kissa hi suna dala. Wah daylog to ek se badhkar ek hai.

Jo apni dadi ki beti ko nahi chhoda vo nani ki beti ko kahe.....

Aur sas aur buaa ji ke buch naiki dulhaniya vala seen to kamal likha hai.

Dekh lo bahu yaha se tumhara marad nikla hai.

Dekh lo bahu yahi tumhare sasur gote lagate hai.

Baki jo unke bachpan ka kissa to kya jabardast likha hai. Batije aur buaa vala to maza hi aa gaya. Love IT. Jitna erotic conversation us se jyada romanchak

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Shetan

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भोर का सपना



मैं और सास रसोई में बैठी मस्ती कर रहे थे, मैं कभी सासू के गोरे गुलाबी भरे भरे गाल मींज देती तो कभी चोली फाड़ते जोबन दबा देती, और छेड़ती



" आ रहा होगा अभी मेरा भतार, बायीं आँख फड़क रही है, आपके भोंसडे को ताल पोखर बना देगा, तैयार रहिये "


" डरती हूँ क्या मैं, " हँसते, मुझे दुलराते वो बोलीं। फिर मुझे छेड़ा,

" तू अपने मायके से चल के,... स्साली चुदवाने के लिए आयी, एकदम कच्ची कोरी, इंटर भी नहीं पास किया था, और धड़ धड़ कर के सेज पे चढ़ गयी, पूरा लम्बा मोटा घोंटने के लिए, जड़ तक, ... और मैं, जिसके भोंसडे से वो निकला है ,... जिसकी नूनी पे तेल लगा लगा के मोटा खम्भा बनाया है, वो मैं डरूंगी।
आने दे तोहरी महतारी के भतार को, वो क्या चढ़ेगा मेरे ऊपर, मैं चढूँगी उसके ऊपर और देखना तेरे सामने पूरा घोंट लूंगी, "


मेरी और मेरी सास में पक्की दोस्ती हो गयी थी, एकदम सच्ची मुच्ची वाली सहेलियों की तरह, माँ को लेकर तो वो बिना गाली के बात नहीं करती थी लेकिन अब मैं भी,...





थोड़ी देर में ये आने वाले थे, छुटकी को छोड़ने गए थे, मेरे मायके ही नहीं सीधे लखनऊ।



मेरी ननद जिस दिन अपने भैया से गाभिन हो के खुश खुश अपने ससुराल गयीं, उसी दिन शाम को छुटकी आ गयी। आ क्या गयी, उसे मैंने बुलवा भेजा, घर से माँ का फोन था, मारे ख़ुशी के उनसे बोला नहीं जा रहा था।



छुटकी का कबड्डी की स्टेट टीम में सेलेक्शन हो गया था।

अभी थोड़ी देर पहले स्कूल से खबर आयी थी, फिर लखनऊ से भी और उसके बाद तो फोन पे फ़ोन। लेकिन चक्कर ये था की दो दिन के अंदर उसे लखनऊ पहुंचना था, वहां पंद्रह दिन का कैम्प था, के डी सिंह बाबू स्टेडियम में और स्पोर्ट्स हॉस्टल में ही रहना,... खाना। और उसके बाद टीम को बंगलौर जाना था इंटर स्टेट कैम्प के लिए।




और वहां फिर इंटर स्टेट के बाद एक और सेलेक्शन होना। नहीं नहीं, नेशनल टीम का नहीं। वो लोग यंग टैलेंट्स, मतलब जिनकी एज कम हों, कभी नेशनल में न रही हों , फर्स्ट या सेकेण्ड टाईम इंटरस्टेट खेल रही हों वैसी २४ लड़कियां चुनते, और उनको ग्रूम करते। अभी नहीं, लेकिन दो चार महीने बाद पटियाला में एक दो तीन महीने की ट्रेनिंग, फिर कई मैच, मतलब वो स्पोर्ट आथारिटी की ही जिम्मेदारी में,


ये सब बात मुझे छुटकी ने बताई, वो जैसे ही आयी उसके पास भी फोन पे फोन ।

लखनऊ में एक कोई जूनियर कोच थीं, रीजनल में छुटकी से मिली थी बहुत इम्प्रेस थीं, उनका फोन था। और ये भी की इंटर स्टेट में प्रो कबड्डी लीग वालों के स्काउट भी आते हैं चुनने के लिए , और अभी लड़कियों की भी एक प्रो कबड्डी लीग चालू होने वाली है तो वो लोग भी यंग लड़कियों के चक्कर में रहेंगे, एक बार उनकी निगाह में जो चढ़ गयी तो उसे भी कॉन्ट्रेट मिल सकता है।

वो तो जोश में थी, लेकिन माँ घबड़ायी थी,

पहली बात लखनऊ अकेले कैसे जायेगी,

चलिए लखनऊ से तो सब टीम वाले, लेकिन यहाँ से लखनऊ,.... मंझली को अकेले छोड़ के माँ भी नहीं जा सकती थी। दूसरे हर माँ की तरह,.... अभी छोटी है, और मोर्चा सम्हाला छुटकी के जीजा ने ने , इन्होने।

वो बोले की देखिये, सचिन तेंदुलकर कितने साल के थे जब इण्डिया की ओर से खेले, तो अपनी छुटकी भी कब्बड्डी की सचिन बनेगी, जल्द नेशनल टीम में आएगी और जहाँ तक लखनऊ जाने का सवाल है , आप क्यों परेशान हैं, मैं हूँ न। मैं ले जाऊँगा साथ।



तो अगले दिन सुबह ये छुटकी को ले के मेरे घर और एक दिन बाद लखनऊ और अब लखनऊ से आ रहे थे , थोड़ी ही देर में पहुँचने वाले थे

सपनों में सब कुछ क्रम से तो होता नहीं,



ये पलंग पर बंधे छने, आंख पे मोटी पट्टी बंधी, काली।






मैंने इन्हे समझा रखा था, ' कच्ची कलियों की तो बहुत फाड़ा तूने, जवान फूलों का भी रस लिया, आज तुझे एक खूब रसीले भोसड़े का रस दिलवाऊंगी, है मेरी एक खास, लेकिन दो शर्त है, एक तो तुझे आँख पे पट्टी बंधवानी होगी, और दूसरे तो तुझे पहले ऊपर चढ़ के चोदेगी, पूरे दस मिनट अगर तुम झड़ गए तो समझ लेना, और अगर नहीं झड़े तो पलट के उन्हें पेल देना, लेकिन झड़ने के पहले उन्हें झाड़ना होगा। "



उनके ऐसे गब्बर मर्द के लिए तो ये कौन बड़ी बात थी, लेकिन सुन के वो छनक गए, बोले

" ले आओ भौंसड़ी वाली को,... फाड़ के चीथड़े चीथड़े न कर दिया, ...पता चलेगा किसी मरद का लौंड़ा घोंट रही है। "

और छनकने के बात ही थी, कच्ची से कच्ची कलियों को भी तीन बार झाड़ने के बाद ही झड़ते थे वो।

लेकिन मान गयी मैं अपनी सास को,

बातचीत में तो बहुत सीखा था मैंने सब मर्दों के साथ वाले दांव पेंच, और मुझे भी घमंड था ऊपर चढ़ के चोदने में मेरा मुकाबला नहीं, इनको और नन्दोई जी के तो ऊपर कितनी बार, फिर नए नए देवरों के साथ भी, लेकिन जब मैंने सास को देखा तब मैं समझी घुड़सवारी के असली गुर। कैसे घोड़े को सहला के, फुसला के कब्जे में किया जाता है, फिर चैलेन्ज, और सास की कलाई में भी अपने बेटे से कम ताकत नहीं थी।

पहले तो ललचाया, सास ने मेरी इनकी कलाई पकड़ी दोनों और बस अपने दोनों निचले होंठों से इनके फनफनाये सुपाड़े को देर तक छुअति रहीं, सहलाती रहीं,




जैसे बदमाश मरद होते हैं, सुपाड़े को रसीली भीगी फुद्दी की फांको पे रगड़ते रहते हैं, औरत को पागल करते रहे हैं पिघलाते रहते हैं लेकिन पेलते नहीं, जब तक औरत खुद चूतड़ न उचकाने लगे, सिसक के पागल न हो जाए, एकदम उसी तरह लेकिन औरतों के पास तो मर्दों से दस गुना ज्यादा हथियार होते हैं। सावन के झूले की तरह वो झोंटा मारती थीं, मजाल है की कमर जरा भी हिले लेकिन उनके बड़े बड़े कड़े जोबना मेरे मर्द की चौड़ी छाती से रगड़ जा रहे थे।



बस थोड़ी देर में उनसे नहीं रहा गया, नीचे से उन्होंने चूतड़ उछाल के धक्का मारा, मेरी सास से तो वो नहीं पार पा सकते थे लेकिन मैंने भी उन्हें कस के गरियाया,

" स्साले, तेरी माँ बहन का भोंसड़ा मारुं, क्या बोला था चुपचाप दस मिनट चुदवाने को, स्साले तेरी माँ का भोंसड़ा है क्या जो ऐसे नीचे से धक्का मार के घुस जाओगे" "




वो बेचारे, जस के तस, लेकिन माँ का दिल, मेरी सास को दया आ गयी,

जरा सी चीज के लिए बच्चे का मन, कहने को तो उनका चार चार बच्चो का निकाल चुका भोंसड़ा था, लेकिन मैं जानती थी उस गुफा की हालत, गुफा नहीं बिल थी, वो भी सांप और चूहे की नहीं, चींटी की। एकदम बढ़िया रखरखाव, कसरत के साथ बरसों से एक दो ऊँगली से ज्यादा उसमे घुसी नहीं थी, हाँ बेचारी कन्या रस से काम चलाती थीं , न जाने कितने देने बाद प्रेमगली को आहार मिला था,

तो मेरी सास ने अपने भोसड़े की दोनों फांको को ऊँगली से फैला के दुलरुवा बेटे के मोठे सुपाड़े को फंसा लिया और बस हलके हलके दबाने लगीं।






बेचारे नीचे से मचल रहे थे तड़प रहे थे और उनके ऊपर चढ़ी महतारी कभी कस के भींच के कभी ढील दे के , लेकिन अब मुझसे भी नहीं रहा गया, आखिर मरद तो मेरा ही न। मैंने अपनी सास से धीरे से कान में सिफारिश लगायी, " दे दीजिये न बेचारे को , तड़प रहे हैं "

और क्या धक्का मारा मेरी सास ने ऊपर से, अगर वो मरद होतीं तो पहली रात में नहीं पहले धक्के में ही कुँवारी कोरी कन्या की झिल्ली तोड़ के खून खच्चर कर देतीं और तब भी न रुकती।

गप्प, सुपाड़ा पूरा अंदर,

उनके ऊपर चढ़ के मैं भी विहार करती थी लेकिन कभी दो तीन धक्के से कम में अपने उनका एक बार में सुपाड़ा नहीं ले पायी , और यहाँ तो मेरी सास ने एक धक्के में गप्प कर लिए कभी वो उस सुपाड़े का रस लेती अपने भोसड़े में उसे दबा के, भींच के, कभी उस मोटू की ताकत का अंदाज लगातीं,

और नीचे से सासू का बेटा सिसक रहा था, बेटे की तो आँखे बंद थी लेकिन माँ खूब मस्ती से देख रही थी, कभी उनको तो कभी मुझको .

जैसे सास मुझे अपनी बात याद दिला रही थीं, " देख तू बेकार में घबड़ा रही थी, मैं कह रही थी चढ़ के चोदूगी इसे, अरे तूने कह दिया बस अब हम दोनों मिल के इसे स्साले को पक्का मादरचोद बना देंगी "

लेकिन अब सास से भी नहीं रहा गया और उनके धक्के की रफ़्तार तेज हो गयी, और पांच छह धक्को के अंदर वो बेटे का भाला माँ की बिल के अंदर एकदम जड़ तक,




सास के चेहरे पे मैं जो सुख इस समय देख रही थी वो मैंने आज तक नहीं देखा था, जबसे गौने उतरी थी में तबसे आज तक, जैसे कोई सूखी खेती लहलहा गयी हो, और वो एकदम रुक के बेटे के मोटे लम्बे मूसल को अंदर तक महसूस कर रही थी,


और उनसे ज्यादा किसी को मजा मिला रहा था तो वो मेरे मरद को, हर तरह के छेद का सुख वो ले रहे थे जो इस तरह का सुख होता है वो पहली बार


और सास और उनके बेटे से भी ज्यादा सुख हो रहा था, मुझे।

मेरा मरद खुश रहे, मेरी सास खुश रहे, उससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए।



लेकिन अब टक्कर बराबर की होगयी थी, वो भी जोश में उनकी माँ भी।

भले ही मेरे मरद की आँख पे पट्टी बंधी थी लेकिन न उनके चूतड़ के जोर में कमी न न कमर के जोर में और मेरी सास भी कभी कस कस के धक्के मारतीं , तो कभी बस गोल गोल चक्की की तरह कमर घुमाती तो कभी बस दबोच के खूंटे को निचोड़तीं,
Aa gai meri pyari gudiya. Muje isi ka to intjar tha. Magar please meri pyari gudiya story se jani nahi chahiye

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Are chhutki ka junior team me selection ho gaya wah maza aa gaya. Are ye to komaliya ka trump card thi. Barso se har rahi bhouji party ko paheli bar kisi ne jit dilai to vo thi pyari chhutki. Khel khoi ho sab me champion

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Are khiladi hai kheladi hamari chhutki.

Magar ye kya game khela hai Komal ji. Unki ankho pe patti bandh kar unki mahtari ko chadhva diya. Das minat tak vo ghotegi. Aur fir batana kon hai. Man gae kya erotic khela kiya hai. Jabardast.


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