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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Shetan

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सास और सास का पूत


और जैसे दस मिनट हुए मैंने इशारा किया, उन्होंने पलटी मारी और सास ने भी साथ दिया ,

सास नीचे सास का बेटा ऊपर।


और फिर तो उनको चौसठों कला आती थी। कोका पंडित ने जितने आसान बनाये थे उससे भी दो चार ज्यादा, पूरा बित्ते भर का मोटा खूंटा अपनी महतारी के बिल में घुसेड़ के जड़ तक, उन्होंने मूसल के बेस से मेरी सास के क्लिट को रगड़ना शुरू किया और अब छटपाने की सिसकने की बारी मेरी सास की थी, लेकिन वो बोल तो सकती नहीं थी, इसलिए मैं उनकी ओर से जले कटे पे नमक छिड़क रही थी।

सास के बेटे के पीछे खड़े हो के उनके पीठ पे कभी अपने जोबन रगड़ती, कभी मेरी उंगलिया जड़ तक धंसे खूंटे के बेस पे जा के बॉल्स को सहलाती और उनसे कहती

" हाँ, ऐसे ही, और जोर से रगड़ो, झाड़ दो साली को "

और जब वो कमर उचका रही थीं, उन्होंने क्या जोरदार आलमोस्ट पूरा बाहर निकाल के तीन चार धक्के ऐसे जोर से मारे की मेरी सास झड़ने लगीं, वो हिचकियाँ भर रही थी, सिसकियाँ ले रही थी , लेकिन उस समय कोई मरद सुनता है क्या ? वो तो और जोर से,




लेकिन मेरी सास भी कम नहीं थी, थोड़ी देर में फिर गरमा गयी,

इत्ते दिनों के बाद मोटे मूसल का स्वाद मिला था, अब मामला दोनों ओर से था, लेकिन दस मिनट हो रहा था ब्लाइंड फोल्ड खोलने का टाइम, मैंने सास को इशारा किया, उन्होंने हाँ भर दिया पर साथ साथ आपै दोनों टांगो से कस के मेरे मरद को भींच के पकड़ लियाऔर बुर भी एकदम टाइट, और एक बार वो टाइट कर लें तो कोई ऊँगली न निकाल पाए अंदर से यहाँ तो मोटा लंड था। मैंने भी उन्हें पीछे से दबोच रखा था, और ब्लाइंडफोल्ड खोल दिया,

वो अपने नीचे दबी अपनी माँ को देख कर एक बार सकपकाए,

लेकिन हम सास बहू की मिली पकड़,... चाह के भी नहीं निकाल सकते थे और मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन सास बड़ी थीं, मोर्चा उन्होंने अपने हाथ में ले लिया और इन्हे हड़काते हुए बोली

" अरे पूरी दुनिया में, ससुराल में , यहाँ , लौंडो को, लौंडियों को , कल की कच्ची कलियों को चोदते रहते हो और मेरी बुर में क्या कांटे लगे हैं। पेल कस के आज देखूंगी तेरी ताकत, अगर निकालने की सोचा भी न "


और सास की बात सुन के मुझे भी जोश आ गया और मैं भी इन्हे हड़काने में जुट गयी,

" निकालने की तो सोचना भी मत बाहर,.... अगर मेरी सास को नहीं चोदोगे तो मेरी भी नहीं मिलेगी, ...स्साले तेरी साली और बहन दोनों नहीं है बस अपना हिलाते रहना। अच्छा चल मेरी सास नहीं अपनी सास समझ के पेल पूरी ताकत से "

और मेरे तरकश में भी अनेक तीर थे,

बस मैंने तर्जनी सास के बेटे की पिछवाड़े की दरार पे रगड़नी शुरू कर दी

और नतीजा तुरंत सामने आया, क्या जबरदस्त धक्का सास के बेटे ने सास की बुरिया में मारा, कोई और होता तो चीड़ता फाड़ता, अंदर तक,




लेकिन मेरी सास मेरी भी सास थीं, उन्होंने तुरंत प्रेम गली को ढीला किया और उसे अँकवार में भर लिया, साथ ही खिंच के बेटे के दोनों हाथ जोबन पे



बस उसके बाद तो न कहने लायक, न लिखने लायक

दस पन्दरह मिनट बाद जब उन्होंने मलाई फेंकी तो उसी समय सास में भी किनारे लग चुकी थीं।

और उसके बाद तो अगली बार निहुरा के





लेकिन सपने में कोई नियम कायदा तो होता नहीं,



सपने में सास मेरी रसोई में झुकी हुयी चावल धो रही थी

और मेरी नींद हलकी सी खुल गयी लेकिन मैंने कस के आँख मींच ली और सपना फिर गतांक से आगे चालू हो गया


ये आये और मैंने मुस्करा के एक बार देखा और बदमाशी से सास का साडी साया ऊपर उठा दिया, बस खेल चालू



मजा तो सास को भी बहुत आ रहा था लेकिन बनावटी गुस्से से बोलीं, " अरे बहू कम से कम रसोई में तो "

" और जब आप का बेटा मुझे रसोई में दिन दहाड़े गौने के तीसरे ही दिन, और आप ने देखा भी लेकिन उलटे पैर चली गयीं " मैंने भी उसी तरह छेड़ते हुए बोला




लेकिन कोई माँ बेटे को दोष देती है क्या और वो भी बहू के सामने, तो मेरी सास ने भी सब दोष मेरे ऊपर धर दिया,

" अरे मेरी बहू है ही इतनी सुन्दर, गर्मागर्म माल, रस की कड़ाही से निकली जलेबी, ....उसे देख के मेरे बेटे का मन डोल जाता था , उस की क्या गलती "

वो मुस्कराते बोलीं और तबतक उनके बेटे ने गली के अंदर दाखिला ले लिया था , दोनों जोबन उसकी मुट्ठी में कस के

मैं कहीं और देख रही थी, इधर उधर और मुझे देसी घी वाला ही डिब्बा दिखा और हथेली पे उसे लुढ़काते हुए मैं बोली

" मेरी सास किसी से कम हैं क्या, जब चूतड़ मटकाते चलती हैं तो आदमी क्या गदहों का खड़ा हो जाता है और जित्ते लौंडो की नेकर सराक एक मारी होगी न, मेरी सास का पिछवाड़ा उससे भी टाइट है "




और सारा का सार हाथ का घी सास के गाँड़ के छेद पे, और जो थोड़ा बहुत निकल रहा था उसे भी अपनी ऊँगली में लपेट के अंदर तक, पहले एक ऊँगली और फिर उसपे चढ़ा के दूसरी ऊँगली और दो ऊँगली भी घी लगी होने पर भी मुश्किल से जा रही थी। लेकिन मेरा वाला तो गाँड़ मारने में एकदम उस्ताद, अपनी कच्ची कोरी दस में पढ़ने वाली साली की खाली थूक लगा के गाँड़ मार दी थी, तो मेरी सास तो

और जब प्रेम गली से खूंटा बाहर निकला तो बस हाथ में लगा सब घी लगा के मैंने कस कस के मुठियाया और उनके सुपाड़े को मेरी सास के पिछवाड़े, गोल छेद को चियार के सटा दिया, और बोली

" मार धक्का "

उधर सास के पिछवाड़े मेरे मरद का जोरदार धक्का पड़ा और मेरी नींद टूट गयी,



बाहर अच्छी खासी धुप निकल आयी थी, मैं बिस्तर पे एकदम उघारे, बस नीचे गिरी साड़ी लपेट ली और बाहर, जहाँ मेरी सास बैठी थीं ।
Wah man gae. Kya seen banaya hai. Full erotic. Sala jab pata chal ki vo ruk gae tab dono hi bole. Rukna nahi. Komaliya ne to mast dhamki de di. Sale ruka to meri bhi nahi milegi. Teri aur meri bahen to hai nahi. Hilate rahena.

Vo to gachak ke pelne lage. Sala madarchodo. Ye gali erotic lagi muje. Meri taraf se pyar se thi.

Wah sas ke puchhvade ki bari aai to ghee. Man gae. Sas ke lie bhi sahi line boli. Jawan lode mardo ke kachhe dhile kar degi. He bhi to karara mal.

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Shetan

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aapki teeno story me yeh meri fav h. well, jaisa maine socha tha waisa hua ni. Hero drink karke aayega aur komal use nashe me hi apni saas par chadha degi but story changed . lets see dekhte hai age. kya hota hai. Nandoi Ek week tak nahi ayege tab tak bhaiya hi bane rahenge saiya. but is baar saas bhi hai. Ab Nanad ki bhaiya se chudai ki agya uski maa se hi dilwai jaye kyuki saas ko bhi pata hai. abhi ni to kabhi ni. jaisa ashirwad hai. it will be romanchkari. ki uski saas khidki se dekh rahi hai uske dono bachcho ki jabardast chudai. apka kya vichar hai.
Komalji ki kahaniyo me unke consept ek jese kisi ko jarur lagte hai. Magar ek hi jess dikhne vale consept me topic alag alag hote hai. Kahi kawari ladki ki chadhti jawani ko jatana. To kahi shadi shuda mahila ki umango ko darsana. Shadi ke mahol. Var tyohar. Inki kahani me dukh gam nahi. Dard hota bhi hai to vo mittha vala. Jiske dard ka alag hi maza hai. Chadhti jawani aur khila joban.

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russia hd photos
Risto me pyar aur kamukhta banakar khushiyo ko darsati hai ye. Inke likhne ka tarika kuchh kaviyo jesa hai.

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Shetan

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भाग ९१

नया दिन नयी सुबह -सास बहू
19,57,274
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सुबह नींद खुली तो अच्छी खासी धूप निकल आयी थी, गाँव में सुबह सुबह बहुत काम होते हैं, लेकिन मेरी सास ने वो सब काम बिना मुझे जगाये खुद अकेले निपटा दिया था, लेकिन मैं तो भोर का सपना देख रही थी की कैसे मेरा मरद मेरी सास को अपनी महतारी को गपागप, गपागप, और वो चूतड़ उचका उचका के और मैं दोनों को लुहा रही थी। सपना एक बार टूटा भी, नींद भी खुली तो मैंने आँखे बंद कर ली और वहीँ से फिर शुरू। और जब उठी तो धूप खिड़की से घुस के मेरे बिस्तर तक पसर आयी थी।



मैं जब रसोई में पहुंचीं तो वो चाय भी बना चुकी थीं और एक ग्लास में लेके सुड़ुक रही थी, मुझे देख के वही ग्लास उन्होंने बढ़ा दिया मेरी ओर, और मैंने भी जिस जगह उन्होंने होंठ लगाए थे उसी जगह होंठ लगा के उन्हें दिखा के मैं भी पीने लगीं।

मेरी सास गाँव में सगुन बिचारने में, सपने का मतलब बताने में और कोई लक्षण हो तो उसका मतलब समझने, समझाने में सबसे आगे थीं, तो मैंने उनसे मुस्कराते हुए बोला,

" आज सबेरे, एकदम भोर एक बड़ा अच्छा सपना देखा, खूब मीठा मीठा,... उसमें "


सास ने महकती आँखों से मुझे देखा और तुरंत बरज दिया,

" चुप, एकदम चुप, ....भोर का सपना एकदम सच होता है, लेकिन अगर बता दिया तो असर गायब, सबेरे की ओस की तरह थोड़ी देर में उड़ जाता है। "

मैंने आधी पी हुयी चाय का ग्लास पी के उन्हें बढ़ा दिया, सुड़कते हुए उन्होंने पूछा,

" लेकिन सपना रुक के, फिर दुबारा आंख लगने पे वहीँ से तो नहीं शुरू हुआ था ? "

" हाँ एकदम, मैंने सकारा तो वो हंस के बोलीं,

' फिर तो एकदम सच्चा, होनी को कोई रोक नहीं सकता है और ज्यादा दिन नहीं बस हफ्ते दस दिन के अंदर ही, एकदम वैसे ही "

वो बड़ी जोर से मुस्करायीं,


फिर अचानक उनका चेहरा उदास हो गया एकदम झाँवा। आँखे डबडबा आयीं।


मैं समझ सकती थी उनका दुःख। दुःख बांटने से ही कम होता है, लेकिन अगर वो खुद कहें तो ज्यादा अच्छा होगा मन का दुःख आँख से बहने की जगह जुबान से निकल आएगा।

मैं उछल के उनके एकदम बगल में बैठ गयी और उनके गले में हाथ डाल के उनकी ग्लास से एक बार चाय सुड़ुक के उन्हें पकड़ा दिया, और बची खुची चाय उन्होंने एक बार में ख़तम कर दी। लेकिन एक बार फिर वो उसी तरह मुझे देख रही थीं, थोड़ा उदास तो थोड़ा दुलार से, फिर मेरी ठुड्डी पकड़ के बोलीं,


" तू न होतू तो, ...न आती तो, ..."

मैं छमक के हट गयी, उनके सामने बैठ गयी और धमक के बोली,


" काहें न आती, ऊपर से लिखवा के आयी थी। ये जो आप समझती हैं की न आप और आप की बिटिया गयी, देखी, आपका बेटवा गया, बियाह के ले आया, ये सब तो ऐसे ही है, असली खेल तो और है। आपको बता देती हूँ सच सच।


मैंने ऊपर से देखा था, आपके बेटवा को नहीं माँगा था, वहीँ से दिखा के बोला था, वो जिसका हाथ भर का खूंटा है, हाँ वो उन्ही की महतारी, ...बस उन्ही की बहू बनना है। और मेरी जिद्द तो आप जानती है कितनी, ...बिधाता भी हार गए, बोले लिख दो और भेज दो इसको,... वरना जबतक यहां रहेगी, यही रार किये रहेगी, तो बस भेज दिया नीचे. मैं तो पैदा ही इसलिए हुयी। समझ लीजिये। "
--




सास मेरी सुबह की धूप की तरह मुस्करायी और मेरा दिल खिल गया लेकिन मैं रुकी नहीं, फिर बोलना शुरू कर दिया,

" और अब आ ही गयी हूँ तो खूंटा गाड़ के बैठ जाउंगी, लाख ताकत लगा लीजिये अब मेरा खूंटा उखड़ने वाला नहीं है। बस यही आपके साथ रहूंगी और जिस दरवाजे से सुहागिन आयी थी, उसी दरवाजे से,... जो गाँठ जोड़ कर लाया था, वही कंधे पे, ....सुहागिन आयी थी इस घर में, सुहागिन,... "

मेरी आँखे भर आयी थी और मेरी सास ने मुंह बंद करा दिया,


" चुप, चुप अब एक अक्षर आगे मत बोलना, " अपना हाथ मेरे मुंह पर रख दिया उन्होंने और फिर हड़काया,

" सुबह सुबह अच्छी अच्छी बात बोलो,"



एक बार वो फिर उदास हो गयीं, लेकिन मैं चुप होने वाली नहीं थी, फिर से चालू हो गयी,


" अच्छा बताइये, मैं न आती तो रोज कौन आपके सर में तेल लगाता, गोड़ दबाता, वो तो चलिए कोई नाउन कहाईन कर लेती, ...लेकिन कौन आपके गोद में सर रख के गप्प मारता। मैं बता रही हूँ, अब मैं हिलने वाली नहीं, आप धक्का भी लगा ले, रोज सुबह उठूंगी तो आप का मुंह देख के और सोने जाउंगी तो आप का मुंह देख के और दिन भर तंग करुँगी। "

---


" तुम बहू नहीं मेरी बेटी हो " उनकी आँखे डबडबा आयी थीं,



अब उन्हें कौन समझाए, की बेटियां भी, एक बार ससुरार गयीं, तो मायके आती भी हैं तो ढेर सारा ससुरार साथ में ले आती हैं, वही बातें, वही यादें और एक दो बच्चे हो गए, तो फिर, उस का टेस्ट छूट जाएगा, बेटी की म्यूजिक की क्लास है, आने के पहले लौटने का रिजर्वेशन हो जाता है।
Are teri ye to shapna dekha tha. Par suna nahi unki mahtari sasu maa ne kya kaha. Subah ka shapna sach hota hai. Matlab pilcaegi apne bete ke khute se jarur. Aur bar bar tuta shapna vahi se shuru ho to 10 din me hi samzo.

Shas bahu ka pyar bada pyara dikhaya hai. Jahi emotional conversations hue.

0ae6c1342e22cd870d14311083f7f502
 

komaalrani

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Wah man gae. Kya seen banaya hai. Full erotic. Sala jab pata chal ki vo ruk gae tab dono hi bole. Rukna nahi. Komaliya ne to mast dhamki de di. Sale ruka to meri bhi nahi milegi. Teri aur meri bahen to hai nahi. Hilate rahena.

Vo to gachak ke pelne lage. Sala madarchodo. Ye gali erotic lagi muje. Meri taraf se pyar se thi.

Wah sas ke puchhvade ki bari aai to ghee. Man gae. Sas ke lie bhi sahi line boli. Jawan lode mardo ke kachhe dhile kar degi. He bhi to karara mal.

83a093b1421da755dad93ba4d3e96822 a1f04de2da4d1efe8b7d67c5076c95f8 d9a0f5eae4e3f4916ee5c442d416e7ef
Ekdam sapane men hi sahi aane vale dino ka trailer dikh gaya . bahoot bahoot thanks aab aap ke comments aa rahe hain to saari stories speed bhi pakad rahi hain thanks again.
 

komaalrani

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Komalji ki kahaniyo me unke consept ek jese kisi ko jarur lagte hai. Magar ek hi jess dikhne vale consept me topic alag alag hote hai. Kahi kawari ladki ki chadhti jawani ko jatana. To kahi shadi shuda mahila ki umango ko darsana. Shadi ke mahol. Var tyohar. Inki kahani me dukh gam nahi. Dard hota bhi hai to vo mittha vala. Jiske dard ka alag hi maza hai. Chadhti jawani aur khila joban.

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Risto me pyar aur kamukhta banakar khushiyo ko darsati hai ye. Inke likhne ka tarika kuchh kaviyo jesa hai.

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Aapne kahani ki mool bhavana ko smajha , thanks so much.
 

komaalrani

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Are teri ye to shapna dekha tha. Par suna nahi unki mahtari sasu maa ne kya kaha. Subah ka shapna sach hota hai. Matlab pilcaegi apne bete ke khute se jarur. Aur bar bar tuta shapna vahi se shuru ho to 10 din me hi samzo.

Shas bahu ka pyar bada pyara dikhaya hai. Jahi emotional conversations hue.


0ae6c1342e22cd870d14311083f7f502
Is kahaani men saas bahu maa beti ki tarah hai to kabhi saheli ki tarh, sukh dukh baantene vaali, ek dosare ko smjhane vaali Mard to baahar chale jaate ain gaaon men bachti to saas bahu hi hain
 

Shetan

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बहू




" तुम बहू नहीं मेरी बेटी हो " उनकी आँखे डबडबा आयी थीं,

अब उन्हें कौन समझाए, की बेटियां भी, एक बार ससुरार गयीं, तो मायके आती भी हैं तो ढेर सारा ससुरार साथ में ले आती हैं,... वही बातें, वही यादें और एक दो बच्चे हो गए, तो फिर,... उस का टेस्ट छूट जाएगा, बेटी की म्यूजिक की क्लास है. आने के पहले लौटने का रिजर्वेशन हो जाता है।

लेकिन मेरे मुंह में जो आया मैंने बोल दिया,

" बना दिया न मेरे मरद को बहनचोद, मुझे बेटी बना के "

" अरे वो इस गाँव के सब मरद हैं " वो मुस्करा के बोलीं

अब उनके चेहरे पर शरारत आयी, जैसे कमरे के किसी अँधेरे कोने में ढूंढती ढाढ़ती धूप पहुँच जाए, आखिर वो भी तो इस गाँव की बहू थीं, मेरी तरह, उनकी भी ससुराल थी तो मेरी तरह वो भी गाँव के सब मरदों और लड़कियों से मजाक करने का हक लिखवा के लायी थीं।


और उनके चेहरे पे खुशी आयी तो मेरा चेहरा और दमक उठा, और मैं चुहुल करते हुए बोली,

" अभी तो मैंने तंग करना शुरू किया है आपको साल भर हुआ, बस दो तीन साल और, फिर देखिये सांस लेना मुश्किल कर दूंगी, इत्ता परेशान करुँगी, आप खुद कहियेगा, ....कहाँ से ले आयी ऐसी बहू, लेकिन आ गयी हूँ तो हिलूंगी नहीं। "

" का करोगी तुम "थोड़ा समझते, थोड़ा बिना समझे उन्होंने पूछ लिया,

और मैंने बिना बोले पहले एक हाथ का पूरा पंजा खोल दिया, पांच ऊँगली दिखाई और बोलना शुरू कर दिया,

" पूरे पांच पोती पोते होंगे, कम से कम, समझ लीजिये, ज्यादा भी हो सकते हैं अगर आप पांच के बाद मना नहीं करियेगा तो, ...बस दो तीन साल आराम कर लीजिये। सब दिन भर दादी दादी कर के, अपने चार बच्चे पाल लिए न मेरे भी पालने का काम आप ही के जिम्मे,

बहू को सास से एक हाथ आगे निकलना चाहिए, इसलिए आप के चार तो मेरे कम से कम पांच, और सोयेंगे सब आप ही के पास, एक खूब चौड़ी सी पलंग बनवा लीजिये, और मै उन को आप के पास लिटा के, आप के बेटे के पास।


मुझे क्या करना है बस टाँगे उठा लूँगी, फैला दूंगी,.... आप के बेटे को जो करना होगा करेगा,... और ठीक नौ महीने बाद निकाल दूंगी बाहर। हाँ एक बात और न अस्पताल न मायका, सब के सब यही होंगे, ....सौरी भी आपको रखाना होगा, पिपरी और सोंठ के लड्डू भी बनाना होगा, और जहाँ बरही हुयी , आप का पोता आप के पास और मैं आप के बेटे के पास.

जबतक आप नहीं कहियेगा, बहू बस,... तब तक न आपरेशन करवाउंगी, न गोली खाउंगी। दो तीन साल थोड़ा आराम कर लीजिये बड़े कठिन दिन आने वाले हैं आपके। और हाँ दो चार साल की मुसीबत नहीं है, वो सब के सब, उन को पहले आप को बड़ा करना फिर, अपने बेटा बेटी क बियाह की तो मेरे वाले क कौन करवाएगा ..., सब आप के जिम्मे, दामाद क परछन , बहू उतारना,...

और कम से कम जब तक आप मुझको दादी नहीं बनवा लेतीं, ... सब जिम्मेदारी आपकी,... और मैं ये चौखट डाँक के कहीं नहीं जानेवाली ।




सास एकदम खुश और जब ज्यादा खुश होती तो बस वो एक काम जानती हैं, उन्होंने मुझे अँकवार में भर लिया और बहुत देर तक बोल नहीं पायीं फिर बोला तो बस यही निकला उनके मुंह से,

" तुम पागल हो, एकदम पागल "



थोड़ी देर तक हम दोनों खूब खुश होके चिपक के बैठे रहे, वो बार बार मुझे देखतीं, लेकिन कुछ था जो मुझे नहीं मालूम था, वो फिर उदास होने लगीं, फिर उन्होंने एक सवाल पूछा बल्कि दो सवाल और दोनों के जवाब मेरे पास नहीं थे।

थोड़ी देर तक वो चुप बैठी रहीं, सूनी आँखों से मुझे देखती रहीं, फिर धीमी आवाज में बोली,
Ekdam jabardast. Kya daylog feet kiya hai. Beti banakar bana diya na apne bete ko bahan chod. Amezing.

Bat sahi hai. Sas bhi kabhi is gav ki bahu thi. Aur sare mazak uspar bhi lagu hote hai.
Jab tak kawari Kanya thi to sirf mayke ki jimmedari thi. Bahu bani nahi ki sasural aur mayka dono. Apne gav ke bhaiya bhi to jija bhi. Vahi sasural me to dewaro ki line lagi raheti hai. Fir nandoi alag. Aur khud ka marda alag.

Sasu maa se kya mazak vala seen banaya hai. Muje kya karna hai. Bas tange utthani hai. Dono tange khol dungi. Aur bada sa bad banva lo. Sare bache tumhare pas. Aur me apne marad ke....

Bahot maza aaya.

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Shetan

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बहू




" तुम बहू नहीं मेरी बेटी हो " उनकी आँखे डबडबा आयी थीं,

अब उन्हें कौन समझाए, की बेटियां भी, एक बार ससुरार गयीं, तो मायके आती भी हैं तो ढेर सारा ससुरार साथ में ले आती हैं,... वही बातें, वही यादें और एक दो बच्चे हो गए, तो फिर,... उस का टेस्ट छूट जाएगा, बेटी की म्यूजिक की क्लास है. आने के पहले लौटने का रिजर्वेशन हो जाता है।

लेकिन मेरे मुंह में जो आया मैंने बोल दिया,

" बना दिया न मेरे मरद को बहनचोद, मुझे बेटी बना के "

" अरे वो इस गाँव के सब मरद हैं " वो मुस्करा के बोलीं

अब उनके चेहरे पर शरारत आयी, जैसे कमरे के किसी अँधेरे कोने में ढूंढती ढाढ़ती धूप पहुँच जाए, आखिर वो भी तो इस गाँव की बहू थीं, मेरी तरह, उनकी भी ससुराल थी तो मेरी तरह वो भी गाँव के सब मरदों और लड़कियों से मजाक करने का हक लिखवा के लायी थीं।


और उनके चेहरे पे खुशी आयी तो मेरा चेहरा और दमक उठा, और मैं चुहुल करते हुए बोली,

" अभी तो मैंने तंग करना शुरू किया है आपको साल भर हुआ, बस दो तीन साल और, फिर देखिये सांस लेना मुश्किल कर दूंगी, इत्ता परेशान करुँगी, आप खुद कहियेगा, ....कहाँ से ले आयी ऐसी बहू, लेकिन आ गयी हूँ तो हिलूंगी नहीं। "

" का करोगी तुम "थोड़ा समझते, थोड़ा बिना समझे उन्होंने पूछ लिया,

और मैंने बिना बोले पहले एक हाथ का पूरा पंजा खोल दिया, पांच ऊँगली दिखाई और बोलना शुरू कर दिया,

" पूरे पांच पोती पोते होंगे, कम से कम, समझ लीजिये, ज्यादा भी हो सकते हैं अगर आप पांच के बाद मना नहीं करियेगा तो, ...बस दो तीन साल आराम कर लीजिये। सब दिन भर दादी दादी कर के, अपने चार बच्चे पाल लिए न मेरे भी पालने का काम आप ही के जिम्मे,

बहू को सास से एक हाथ आगे निकलना चाहिए, इसलिए आप के चार तो मेरे कम से कम पांच, और सोयेंगे सब आप ही के पास, एक खूब चौड़ी सी पलंग बनवा लीजिये, और मै उन को आप के पास लिटा के, आप के बेटे के पास।


मुझे क्या करना है बस टाँगे उठा लूँगी, फैला दूंगी,.... आप के बेटे को जो करना होगा करेगा,... और ठीक नौ महीने बाद निकाल दूंगी बाहर। हाँ एक बात और न अस्पताल न मायका, सब के सब यही होंगे, ....सौरी भी आपको रखाना होगा, पिपरी और सोंठ के लड्डू भी बनाना होगा, और जहाँ बरही हुयी , आप का पोता आप के पास और मैं आप के बेटे के पास.

जबतक आप नहीं कहियेगा, बहू बस,... तब तक न आपरेशन करवाउंगी, न गोली खाउंगी। दो तीन साल थोड़ा आराम कर लीजिये बड़े कठिन दिन आने वाले हैं आपके। और हाँ दो चार साल की मुसीबत नहीं है, वो सब के सब, उन को पहले आप को बड़ा करना फिर, अपने बेटा बेटी क बियाह की तो मेरे वाले क कौन करवाएगा ..., सब आप के जिम्मे, दामाद क परछन , बहू उतारना,...

और कम से कम जब तक आप मुझको दादी नहीं बनवा लेतीं, ... सब जिम्मेदारी आपकी,... और मैं ये चौखट डाँक के कहीं नहीं जानेवाली ।




सास एकदम खुश और जब ज्यादा खुश होती तो बस वो एक काम जानती हैं, उन्होंने मुझे अँकवार में भर लिया और बहुत देर तक बोल नहीं पायीं फिर बोला तो बस यही निकला उनके मुंह से,

" तुम पागल हो, एकदम पागल "



थोड़ी देर तक हम दोनों खूब खुश होके चिपक के बैठे रहे, वो बार बार मुझे देखतीं, लेकिन कुछ था जो मुझे नहीं मालूम था, वो फिर उदास होने लगीं, फिर उन्होंने एक सवाल पूछा बल्कि दो सवाल और दोनों के जवाब मेरे पास नहीं थे।

थोड़ी देर तक वो चुप बैठी रहीं, सूनी आँखों से मुझे देखती रहीं, फिर धीमी आवाज में बोली,
Ekdam jabardast. Kya daylog feet kiya hai. Beti banakar bana diya na apne bete ko bahan chod. Amezing.

Bat sahi hai. Sas bhi kabhi is gav ki bahu thi. Aur sare mazak uspar bhi lagu hote hai.
Jab tak kawari Kanya thi to sirf mayke ki jimmedari thi. Bahu bani nahi ki sasural aur mayka dono. Apne gav ke bhaiya bhi to jija bhi. Vahi sasural me to dewaro ki line lagi raheti hai. Fir nandoi alag. Aur khud ka marda alag.

Sasu maa se kya mazak vala seen banaya hai. Muje kya karna hai. Bas tange utthani hai. Dono tange khol dungi. Aur bada sa bad banva lo. Sare bache tumhare pas. Aur me apne marad ke....


Bahot maza aaya.

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बंबई सहर


" तू तो पढ़ी लिखी हो, बहू, बम्बई जानत हो ?"

मैं क्या बोलती। चुप रही।


" ई बंबई सहर है कउनो की राक्षस " , बड़ी हलकी सी आवाज मेरी सास की निकली।




उन्होंने जिस तरह अपना चेहरा ऊपर करके मुझसे पूछा, मैं हिल गयी.

अब मेरी जवाब देने की हालत नहीं थी, थोड़ी देर पहला उनका हँसता खिला चेहरा एक बार फिर बुझा बुझा, मुझसे देखा नहीं जा रहा था।

जवाब उन्होंने खुद दिया और एक पुराना किस्सा भी सुनाया, बोली

" का पता सहर हो लेकिन ओहमें राक्षस,... "

फिर उन्होंने एक किस्सा सुनाया, बोली,


हम लोग छोट थे तो माई एक किस्सा सुनाती थीं,.एक राक्षस था खूब बड़ा जो बड़का नीम का पेड़ है ओहु से दूना बड़ा, चलता तो धरती कांपती, थर थर, बरगद क पेड़ अइसन टाँगे, जहाँ जाए तो बस्ती क बस्ती साफ़ दुनो हाथ से पकड़ के दर्जन भर मनई, गाय गोरु इकट्ठे चबाय लेता था।

तो सब लोग गए हाथ जोड़े, तय हुआ की रोज एक कउनो जाएगा, बस राक्षस क भोजन बन के, फिर और कोई को तंग नहीं करेगा , आखिर उहो में जान थी, भूख लगती थी। ओकर भोजन आदमी, ...तो वही खाता था। सबकर आपन आपन भोजन, जैसा बनावे वाला बनावे,


और सास मेरी चुप हो गयीं, मेरी ओर देखने लगीं,




फिर गहरी सांस लेकर बोली,


" हम सोच रहे थे वैसे बंबईयो के लिए जो ट्रेनवा प ट्रेनवा, गोदान, पवनवा, आदमी भर भर के लाद लाद के, ... ला खा, हूरा, टरेन भर के भोजन, ...और उ डकार लेत होइ, तो दस पांच कोस में सुनाई पड़ता होगा, और अगले दिन फिर टरेन भर भर के, ला खा, हूरा, भखा, ...

लेकिन जउन ये सब इंतजाम करत हैं, उहो ठीके सोचते हैं , इतना आदमी महामारी, लड़ाई, दंगा, भूख में मरत है तो चला,.... कुछ राक्षस क भोजन में ही,"

मैंने उनका हाथ पकड़ लिया, एकदम ठंडा, हलके हलके मैं सहलाती रही, कुछ देर तक तो वो चुप रहीं, फिर बोली

" ई बतावा तो एतना टरनेवा जो रोज जातीं है वो तो लौटती भी होंगी न "


" हाँ एकदम, रोज,... " अबकी मैंने जवाब दिया

हलके से मुस्करा के वो बोलीं,

" तो जो जो जाते हैं वो काहे नाही लौटते,... अरे आखिर यहाँ गाँव से मनई शहर जाते हैं,.... बजार, कोरट, कचहरी, ...सांझी को लौट आते हैं, बहुत हुआ तो अगले दिन, लेकिन जो जो बम्बई वाली टरैनिया पे जाते हैं वो,... अगोरत अगोरत, आँख पिराई लागत है। पहले तोहार जेठ, .... फिर अब जेठानी और तोहार छोटकी ननद, "



एक बार फिर उनकी आँखों में आंसू नाच रहे थे।



धीरे धीरे पता चला की मेरे जेठानी का फोन आया था सबेरे,… जेठानी बहुत खुश थीं।
Sas ke man ki bat kuchh alag thi. Kuchh na samzi kuchh anjani. Par maza aaya. Vo raxaa vali kahani use jab tak bhoj nahi milta. Tab tak vo shant nahi hota. Esa ek to tumhare ghar me bhi hai. Amezing.

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Shetan

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जेठ जेठानी
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जेठ जी तो बंबई में ही रहते थे थाने के पास कहीं, ....उनका काम बड़ा था, बहुत दिन से,

मेरी शादी और गौने में आये थे, उसके बाद भी एक दो बार और,... हां जेठानी गाँव में रहती थीं, बीच बीच में हफ्ता दस दिन के लिए जाती रहती थीं, जेठ जी के पास,

अब हमको गौना उतरे साल भर हो गया था तो होली के अगले दिन जब मैं मायके गयी थी दो दिन के लिए इनके साथ तो जेठानी जी बंबई गयीं, और साथ में मेरी छोटी ननद को भी ले गयीं।


छुटकी से चार पांच महीने बड़ी , गीता नाम है।


असल में होली के दिन तक तो, कम से कम मुझको अंदाजा नहीं था की जेठानी जी का कुछ प्रोग्राम, लेकिन शायद कुछ जेठ जेठानी में फोन पे गुपचुप, गुपचुप कुछ खिचड़ी पक रही हो, और जो दो दिन के लिए होली में इनके साथ मायके गयी, बस उसी में, जेठानी खुद तो गयीं ही मेरी छोटी ननद को भी लिवा ले गयी। बोलीं, "

वहां अप्रेल में स्कूल में एडमिशन हो जाता है, लेट हुआ तो बंबई में एडमिशन नहीं हो पाएगा। "

सास ने दबी जुबान से बोला भी की अरे यहाँ भी तो स्कूल है ही, लड़कियों का अलग से, गाँव की सब लड़कियां पढ़ती ही हैं, तो जेठानी ने समझा दिया की

"अरे इसका बड़ा भाई बंबई में है, मौका है सबको मौका थोड़े मिलता है। और वहां आगे की पढ़ाई भी, और कौन लम्बा जा रही है, दस पन्दरह दिन पढ़ा के स्कूल बंद हो जाएगा, तो आ जाएंगी दोनों जने।"





पता चला की जेठ जी का फोन आया था, उनकी कुछ तबियत नहीं ठीक थी, उन्होंने जेठानी जी का और ननद का टिकट भी भेज दिया था। पक्का रिजरवेशन था।

सास शायद सोचती थीं की शायद कुछ दिन बाद, कम से कम जेठ में छुट्टी होगी तो,...


लेकिन जेठानी जी ने बोला की गीता का वहां एडमिशन हो गया है, और देहात के स्कूल में थी तो अंग्रेजी जरा कमजोर है, इसलिए स्कूल वालों ने बोला है की छुट्टी में किसी कोचिंग में तो अप्रेल से जून तक उसकी कोचिंग होगी अंग्रेजी की और गणित की, फिर थोड़ा और भी, इसलिए गरमी की छुट्टी में तो आना मुश्किल है, हां दिवाली में अगर गीता क स्कूल क छुट्टी हुयी और जेठ जी को भी छुट्टी मिली तो कोशिश करेंगी।

हाँ और बहुत दिन से जेठानी मायके नहीं गयी हैं तो अबकी सावन में वहीँ बंबई से चार पांच दिन के लिए, और गीता की छुट्टी तो होगी नहीं तो वो रहेगी और अपने भैया का भी खाने पीने का ख्याल रखेगी,

एक बात और उन्होंने बतायी की गीता के भैया की जान पहचान है तो डोम्बिवली ईस्ट में एक कोई का कहते हैं,... टू बी एच के मिल जाएगा, बुकिंग होगयी है,... दिवाली के बाद तो अगर सास जी चाहेंगी तो वो भीदो चार दिन को आ जाएँ,... बम्बई घूम जाएँ ,



सास ने साफ़ मना कर दिया,


मैं उन का दुःख अब समझ सकती थी।


बात इस जेठ की नहीं थी।

अब हरदम के लिए थी, उन्हें लग रहा था इतना बड़ा घर अब सूना लगेगा। और उनसे मैं सोच रही थी, जब साल भर पहले मैं गौने उतरी थी और इस होली में भी,... हफ्ता भर तो न हुआ, ...मेरी बड़ी ननद, छोटी ननद मेरी जेठानी, मैं,.... खूब छेड़खानी एकदम खुले अच्छे वाले मजाक और ननदें भी, यहाँ तक की वो छोटी वाली, गीता,




बात ये अटकी थीं की मेरी बहने चाहतीं थी की उनके जीजू अपनी पहली होली ससुराल में मनाएं, और मन ही मन ये भी चाहते थे, कच्ची उमर की बारी कुँवारी दर्जा दस और नौ वाली दो दो चुलबुली सालियाँ, और आसपास की मोहल्ले की सलहजें, किस का मन नहीं लहकेगा

और मैं चाहती थी की मैं होली अपने ससुराल में मनाऊं, मेरी ननद आयी थी और ननद के साथ ननदोई, मेरे ऊपर लहालोट, और देवरों की फ़ौज सगे नहीं तो रिश्ते के गाँव के, और सब के सब फागुन लगते है बौराये हुए थे, तो कौन बहू ननद नन्दोई देवर को होली में छोड़ के,


होली दो दिन की पड़ गयी, एक दिन इनके मायके में थी और अगले दिन मेरे मायके में और मेरी बहनों के जीजा का भी मन रह गया और मेरा भी

मम्मी ने फिर ये प्लान बनाया कि मेरा ममेरा भाई, चुन्नू, जो 11वीं में पढ़ता था, वही होली के एक दिन पहले आ के ले जायेगा. उस दिन मेरी ससुराल में होली थी , मायके में होली अगले दिन थी।



"चुन्नू कि चुन्नी..." मेरी छोटी ननद, नौवीं में पढ़ने वाली गीता ने छेड़ा.


“अरे आएगा तो खोल के देख लेना क्या है, अंदर हिम्मत हो तो...हाँ, पता चल जायेगा कि... नुन्नी है या लंड” मेरी जेठानी ने मेरा साथ दिया.



होली के पहले वाली शाम को वो (मेरा ममेरा भाई) आया........

पतला, गोरा, छरहरा किशोर, अभी रेख आई नहीं थी. सबसे पहले मेरी छोटी ननद मिली और उसे देखते हीं वो चालू हो गई,

‘चिकना’

वो भी बोला “चिकनी...” और उसके उभरते उभारों को देख के बोला, “बड़ी हो गई है.”


मैंने अपनी ननद से कहा, “अरे कुछ पानी-वानी भी पिलाओगी बेचारे को या छेड़ती हीं रहोगी?”

वो हँस के बोली, “ अब भाभी इसकी चिंता मेरे ऊपर छोड़ दीजिए.” और गिलास दिखाते हुए कहा, “देखिये इस साले के लिये खास पानी है.”

जब मेरे भाई ने हाथ बढ़ाया तो उसने हँस के ग्लास का सारा पानी, जो गाढा लाल रंग था, उसके ऊपर उड़ेल दिया.

बेचारे की सफ़ेद शर्ट...

पर वो भी छोड़ने वाला नहीं था. उसने उसे पकड़ के अपने कपड़े पे लगा रंग उसकी फ्रॉक पे रगड़ने लगा और बोला, “अभी जब मैं डालूँगा ना अपनी पिचकारी से रंग तो चिल्लाओगी” वो छुड़ाते हुए बोली, “

"एकदम नहीं चिल्लाउंगी, लेकिन तुम्हारी पिचकारी में कुछ रंग है भी कि सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गए हो?”"


वो बोला कि सारा रंग तेरे लिये बचा के लाया हूँ, एकदम गाढ़ा सफ़ेद..."
और अगले दिन मैंने खुद देखा मेरी छोटी दर्जा नौ वाली ननद और मेरे ममेरे भाई में जबरदस्त होली हुयी,



उसने अपनी पिचकारी का सारा गाढ़ा सफ़ेद रंग मेरी कुँवारी ननद की बाल्टी में उड़ेल दिया



पूरा घर गुलजार रहता था , लेकिन अब जेठानी तो गयी हूँ , साथ में मेरी छोटी ननद को भी ले गयीं और अब लौटने का कोई सवाल नहीं था, न जेठानी का न ननद का.

ये ननद भी होली के लिए आयी थीं अब दो चार दिन बाद ये भी चली जाएंगी।

जहां कुछ दिन पहले मेरी सास की दो दो बेटियां, दो बहुये, अब सिर्फ वो और मैं, ....इतने बड़े घर में। और मरद का क्या, एक पैर तो बाहर ही रहता है, घर का सिंगार तो बहू बेटियां ही है, तीज त्यौहार, सब और जब कोई बचे ही नहीं घर में,...

मैं धीरे धीरे सास का हाथ दबा रही थी, सहला रही थी और कुछ देर में वो नार्मल हो गयीं फिर कुछ सोच के बोलीं,



" और छुटकी का भी कुछ दिन में जाने का टाइम हो जाएगा " पर मैंने अबकी पलट के जवाब दिया,

" आप भी न पहले मुझे भेजने के चक्कर में थी अब मैं नहीं जा रही हूँ बोल दिया जबतक आप अपने पोते क दुल्हन न उतार लें, तबतक मैं चौखट न डाकुंगी कहीं जाने के लिए, और अब आप मेरी बहन को भेजने के चक्कर में पड़ी हैं, नहीं जाएगी वो भी। हम दोनों बहने मिल के आप को तंग करेंगी। "

अब वो बहुत देर बाद खिलखिलायीं, लगा जैसे पूरा कमरा धूप से नहा गया। फिर मुझे समझाती बोली,

" अरे उस का सालाना इम्तहान होगा अप्रेल मई में तो जाना होगा न "

अब मेरी हंसने की बारी थी, " मेरी बहन बहुत चालाक है, अपनी भौजी को पटा के, उहे स्कूल में वाइस प्रिंसिपल हैं वो बोलीं की छमाही के नंबर पे हो जाएगा, कौन बोर्ड का इम्तहान है, कउनो अर्जी वरजी लगती है वो लगवा देंगीं। गरमी में आम खा के जाएगी। तो तीन महीना तो पक्का, जुलाई में स्कूल खुलते कौन पढ़ाई चालू हो जायेगी। तो ज़रा गाँव में सावन क मजा ले ले , झलुआ झूल ले , रोपनी देख ले फिर। "

सपने वाली बात बतानी तो उन्होंने खुद मना कर दी थी और सास का ये दुःख , ये अकेलापन मुझसे नहीं देखा जा रहा था।



उन्होंने संतोष की साँस ली, चेहरे पे मुस्कान दमकने लगी, फिर बोली,

"जब से छुटकी आयी है तो लगता है आंगन में गौरैया चहकने लगी है,... तो जब सावन वाली तीज में तुम जाओगी तो तुम्हारे साथ, जायेगी वो ".


" आप भी नहीं, वही एक रट , बहू को मायके भेजने के चक्कर में, सावन में क्या दस पांच यार बुलाने हैं आपको, और वो है तो अभी से बता दीजिये, हम दोनों लोगो मिल के मजा ले ले लेंगे, इनको दो तीन दिन के लिए भेज दूंगी। क्यों जाऊं सावन में, यहाँ मेरी ननदें आएँगी, निलुवा और लीलवा गौने के बाद सावन में तो उनकी मोट मोट चूँची दबा के गवने क रात क हाल पूछूँगी। वहां किसके साथ झूला झूलूँगी आपके समधिन के साथ ? और यहाँ रोपनी कौन कराएगा, आपकी समधन। अबकी होलिका माई बोली हैं फसल डबल होगी तो काम भी तो डबल होगा। और अगर जाना ही है तो आप को साथ ले जाउंगी,आपके साथ आउंगी आपके समधियाने से । "


मैंने अपना पक्का फैसला सुना दिया।

हँसते हुए उन्होंने मुझे गले लगा लिया, और मैं कुछ रुक के उन्हें समझाने लगी,


" देखिये जेठानी जी की मज़बूरी, यहाँ देखती थीं रोज देवरानी रात भर गपागप घोंटती है कितनी बार देवर दिन दहाड़े भी नंबर लगा देता है, हमसे दो चार साल ही तो बड़ी है उनकी चुनमुनिया में भी खुजली मचती होगीं। और उधर जेठ जी भी, दिन भर के काम के बाद मरद आता है तो, कोई तो चाहिए रात में।

और जेठानी जी ने ठीक किया छोटी ननद को ले गयीं। आखिर जेठानी जी की भी तो पांच दिन की छुट्टी होगी तो अगर मरद को रोज रोज हलवा पूड़ी खाने की आदत लग जाए तो एक दिन का उपवास नहीं होता, पांच दिन का निर्जला तो भूल जाइये तो हर भौजाई एक ननद इसी लिए चाहती है की गाहे बगाहे तबियत न ठीक हो, मायके से कोई आ जाए तो, उसकी सेवा देखभाल करने के लिए, और आप खुद कहतीं है इस गांव सब मरद बहनचोद हैं, मेरा वाला तो पक्का है , भाई बहिन चोदेगा तो बड़ा भाई भी ओही पेट से निकला है। "



सास खिलखिलाने लगी, सब उनके मन का दुःख उड़ गया था।
Pichhle update ka matlab ab samaz aaya. Train jati raxas ke pet me. Matlab sasu maa ki vedna. Unka bada bete ko Mumbai ka raxas kha gaya. Vo samazna bhi mushkil hai aur sahna bhi mushkil hai. Aap amezing ho. Aaj tak is vedna ko is forum par kisi ne nahi likha.


Aur is update me to aap ne puri kahani flashback me hi dikha di. Geeta se lekar nandoi aur fir dewaro ki foj sath me chachera bhai chunnu. Maza aa gaya.

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Shetan

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ननद



" और एक बात मेरा वाला खाली बहनचोद नहीं है कल मादरचोद होते होते रह गया लेकिन एक बार ननद रानी को जाने दीजिये फिर उनकी महतारी को अपने मरद से न चोदवाया, घर में खाली हमी लोग रहेंगे बस सोच लीजिये अगवाड़ा के साथ पिछवाड़ा भी। ऐसा सांड़ पैदा की हैं, अकेले मेरे बस का है नहीं वो , ननद भी दोनों गायब तो आप ही को आना पडेगा मैदान में। "

" डरती हूँ का तेरे मरद से, तेरी छिनार महतारी के बहनचोद दामाद, वो क्या चोदेगा मैं उसे पटक के चोद दूंगी, लेकिन बात तेरी है , सबका ढांकने तोपने पर जुटी रहती है, "


सास मेरी दुलार से मेरा गाल सहलाते बोलीं ,




लेकिन मैंने अपनी बात रोकी नहीं।

" और जो आँगन क बात कर रही है तो पोती पोता तो तीन साल इन्तजार होगा,…. नौ महीने बाद नतिनी आ जाएगी, खेलाइयेगा मन भर। चाय बनाने जा रही हूँ पीजिएगा, "

मैं खड़ी होके चाय का पानी भर रही थी की ग्वालिन चाची आ गयीं और सास मेरी उनकी ओर चली गयीं और बोलीं की " मैं तो नहीं पीऊँगी लेकिन तेरी ननद आ रही होगी। "

" ननदों के लिए तो मैं खास पानी का इंतजाम रखती हूँ " हँसते हुए मैंने सास से बोला और पानी चढ़ा दिया,

तबतक ननद मेरी घर में दाखिल हुयी, बात मेरी उन्होंने सुन ली थी, हँसते हुए बोलीं

" कौन मेरा नाम ले रहा है " . उन्होंने देखा की मैं रसोई में चाय चढ़ा रही हूँ तो बोली, मेरे लिए भी पानी बढ़ा दीजियेगा।


" छिनार का नाम लो छिनार हाजिर " मैंने ननद को चिढ़ाते हुए चाय में थोड़ा और पानी बढ़ा दिया।


ननद कौन कम शैतान, पक्की मेरी मरद की बहन तर ऊपर वाली। मुझे गले लगाती हुयी हंस के जवाब दिया,

" अरे छिनार भौजाई क ननद तो छिनार होगी ही "

और पहले तो ननद रानी ने अपनी बड़ी बड़ी चूँचियों से मेरी चूँचियाँ दबायीं, फिर एक हाथ सीधा ब्लाउज के ऊपर से खुल के खेलने लगा। वो भौजाई क्या जो ननद से एक हाथ आगे न हो. और मैं कभी भी अपने और ननदों के बीच में कपड़े को नहीं आने देती। तो मेरा हाथ सीधे ननद के ब्लाउज के अंदर, और अंदर ढक्कन वो लगाती नहीं, न वो न मेरी सास,... और सीधे कस के दबोच लिया।




ननदों की चूँची पर वैसे ही पहला हक भौजाइयों का होता है.

छोटी ननद है तो दबा के, मीस के,रगड़ -मसल के बड़ा करने का, और बड़ी ननद है तो देखने का की कहाँ कहाँ दांत क निशान है, कहाँ कहाँ नाख़ून का।



लेकिन तबतक मुझे नन्दोई जी की याद आ गयी, कल की बात, पुलिस और हस्पताल का चक्कर, और मैंने थोड़ा सीरियस हो के ननद से बोला,



" हे कल रात ननदोई जी , तोहरे भैया,... "

लेकिन ननद की हंसी चालू हो गयी , हंसती रही, फिर हंसी रोक के बोली,


" हमार भौजी बहुत सोझ हैं, " और फिर हंसी चालू। और अब जो हंसी रुकी तो ननद बोलीं,

" आया था आपके नन्दोई का फोन थोड़ी देर पहले, कहीं बाहर निकले थे, वो मोटरसाइकल वाले मिस्त्री के यहाँ, ... "

और फिर हंसी और अबकी एक बार फिर कस के मुझे गले लगा के ननद बोली,

" जितनी हरामी, छिनार सलहज, उतना ही हरामी, छिनरा उनका नन्दोई "





चाय उबल रही थी मैंने छान कर उनको दी खुद ली और तब ननद जी ने बताया की नन्दोई जी ने फोन पर क्या हाल चाल बताया। वो चाय पीते बोलीं,

" आप के नन्दोई पूरे अस्पताल के बहनोई बने हैं। कह रहे थे एकदम ससुराल जैसी खातिर हो रही है और वैसे ही लग रहा था। जो हस्पताल के मालिक फोन आया था सबके पास की उनके बहनोई हैं , पूरा ख्याल रखना है, उनकी हर बात कहने के पहले पूरी होनी चाहिए, किसी ने जरा भी ना नुकुर की तो कल से दूसरी नौकरी ढूंढे और उसकी बहन चोद दी जायेगी वो अलग।

मैनेजर जिसके कमरे के आगे लोग लाइन लगा के खड़े रहते हैं , वो खुद इनके साथ जीजा जी , जीजा जी करता घूम रहा है।

यहाँ तक तो छोडो जो नर्से हैं, अपने नन्दोई की हालत तो जानती हो, बिना मजाक किये, बिना हाथ फेरे रहा नहीं जाता। तो नर्सें भी जो शादी शुदा है वो सलहज और जो कुँवारी हैं वो साली, और खुद अपनी ओर से, एक नर्स आयी थी इनके दोस्त को इंजेक्शन लगाने , उसके चूतड़ थोड़े भारी भारी,




उससे ये पूछ बैठे,



" आप खाली लगाती हैं या लगवाती भी हैं "

वो पलट के हंस के इन्हे चिढ़ाते बोली,

" मैं पहले ऐसे जीजा को देख रही जो पूछ रहा है , साली हो या सलहज, जीजू पहले लगा देते हैं, पूछते बाद में हैं हाँ अगर आपको लगवाने का शौक हो, तो उसका भी इंतजाम करवा दूंगी " और जाते जाते कस के इनके चूतड़ में चिकोटी काट गयी, ठीक सेंटर में। "

" और जिनको चोट लगी थी उनके साथ कौन है " मैंने पूछा।

" आपके पतिदेव हैं न, जब साला एक बार पहुँच जाए तो बहनोई का काम ख़तम आपके ननदोई वो वाले हैं, . लेकिन आपके नन्दोई बता रहे थे टेस्ट वेस्ट सब हो गया है, आज शाम को एक प्लास्टर लगेगा, परसों शाम तक या उसके अगले दिन सुबह छुट्टी हो जायेगी। कल शाम को हो सकता है वोआएं लेकिन फिर अगले दिन जाएंगे अपने दोस्त को डिस्चार्ज करवाने। "

ननद ने हाल खुलासा बयान किया फिर मुस्कराते हुए मेरा हाथ खींच के अपने गोरे गोरे चिकने पेट पर रख दिया और पूछा,

" देखिये भौजी आपके मरद की बिटिया उछल कूद तो नहीं कर रही है "


ननद का चिकना पेट सहलाते हुए मैंने चिढ़ाया,

" अरे इतनी जल्दी, वैसे लड़कियां ज्यादा बदमाशी नहीं करतीं पेट में लड़के ज्यादा उछल कूद मचाते हैं , खट्टा खाने का मन तो नहीं कर रहा "




" बहुत भौजी " हँसते हुए ननद बोली, लेकिन फिर उनका चेहरा सीरियस हो गया, धीमे से बोलीं बहुत सहम कर

" भौजी, एक बात क बहुत डर लगता है," चेहरा उनका एकदम सहमा हुआ, किसी तरह बोलीं,
Mitthi gariya. Jo sun ne me bhi maza aae. Chhinar ka name lo. Chhinar hazir. Lo chhinar nandiya bhi aap gai.

Vese vo bhi marad ki ashli bahen hai. 100% khari chudakad. Maza aa gaya. Par hospital ki kahani sun ne ke bad to najriya hi badal gaya. Nandoi ji ke lie vese sahi gali likhi hai.

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