- 22,509
- 58,917
- 259
भाग ९९
ननद की रात -ननदोई के संग
२३,२४,८२५'

ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।
मैं भी मुस्करायी और बोली,
“ ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए,
और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,...

मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले, " हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "
" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, "
मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले
" एडवांस में मंजूर "
" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद " और मैं बाहर निकल गयी।
--
ननद को मैंने आज खूब ढंग से तैयार किया कोहनी तक चूड़ी, पैर में रच रच के महावर, हजार घुंघरू वाली पायल

और सबसे अंत में जो नन्दोई जी से बात हुयी थी उसमे से दो बात बतायी,
एक तो पहले राउंड के बाद मूतने के लिए जरूर निकले,
दो लोटा पानी पी के जाएँ सेज पे और दूसरी जब मूत के आएं तो मैंने एक लड्डू रखा है वो खिला दें अपने साजन को, और उन्हें उकसा उकसा के चुदवाये। हाँ सुबह मैं आउंगी आज की तरह, एकदम भोरे और फिर वही चेक करुँगी ननदोई के सामने स्ट्रिप दिखा के, बाकी का मेरे जिम्मे "
और रात भर खूब घमकच, घमकच, हुमच हुमच के ननद की, उनकी चीखें, सिसकियाँ, पायल के छनकने की, कंगना के खनकने की आवाज, बगल के कमरे में बहन हचक हचक के चुद रही हो तो कोई भी भाई जोश में आ जाएगा, और मैं भी उनसे पांच दिन से दूर तो मैं तो उनसे भी ज्यादा बौराई थी, हाँ पहले राउंड के बाद करीब, एक डेढ़ घंटे के बाद, ननद के कमरे से आवाजें आना बंद हुयी, बस दरवाजा खुलने की हलकी सी आवाज हुयी और मैं भी बाहर।
यहाँ भी इंटरवल चल रहा था, कच्चे आंगन में नाली के पास बैठी ननद, मैं समझ गयी तीर चल गया।
वो एक लड्डू, दूबे भाभी के दिए शिलाजीत से बना, उसने लौंडो को इतना पागल कर दिया था की सब ने ढूंढ ढूंढ कर के अपनी सगी चचेरी बहनो को चोदा, दिन भर चोदा ऐसी ताकत थी उस लड्डू में, और ननदोई जी ने तो दो दो खाये थे।
इन्हे आज फिर गेंहू के खेतो पे जाना था, एकदम मुंह अँधेरे, भोर अभी हुयी भी नहीं थी ठीक से। और आज दिन भर बाहर ही रहना था उन्हें, पहले गेंहूं की कटाई का इंतजाम करना था, फिर मंडी समिति, कुछ शहर में काम था।
बल्कि बहुत रात बाकी थी, लेकिन खेती किसानी का काम, कई बार तो हाड़ कंपाने वाले जाड़े में माघ पूस में रजाई में से निकल के गेंहू में पानी पटाने, कभी जब भी लाइट आये तब भी, लेकिन मुझे अब आदत पड़ गयी थी। और उधार न ये रखते थे न मैं , बचा खुचा राउंड दिन दहाड़े तो आज भी मैं जानती थी कल जब एक बार मेरी ननद विदा हो जाएंगी तो मेरी खैर नहीं,
खैर अभी तो मैं ननद रानी की खैर देखने उनके कमरे के बाहर झाँकने पहुंची। चीख पुकार की आवाज तो मेरे कमरे में भी आ रही थी लेकिन सामने से देखने का मजा और ही है, और अगर नन्द हचक के चोदी जा रही है, रगड़ी जा रही है और उसमे कुल हाथ भौजाई का हो तो देखने का तो बनता है न , और अभी जो हो रहा था वो तो सिर्फ ट्रेलर था। जो दो लड्डू मैंने उन्हें दिए थे उस का असर था, पहला वाला तो तब भी गनीमत था, और उसी में मेरी ननद थेथर हो रही थी।
असल सवाल ये था की नन्दोई को कुछ तो लगना चाहिए था की कुछ अलग हो रहा है जिससे वो मेरी ननद को गाभिन करने में सफल हो रहे हैं ,
चोदू तो वो थे ही औजार भी जबरदस्त था और चोदने का तरीका भी उन्हें मालूम था।
आज सुबह से मेरी सास की गांड चिल्ख रही थी, और उन्हें देख के मैं और नन्दोई मुस्करा रहे थे ।
तो वो जो दोनों लड्डू थे, बस जो दूबे भाभी ने शिलाजीत के लड्डू देवरों के लिए तो बस उसी की डबल डोज और साथ में वीर्य वर्धक भी, लेकिन उस के साथ मैंने कुछ कामोत्तेजक द्रव की बूंदे भी मिला दी थी की
और असर साफ़ था, खुली खड़की से मैं खुला खेल देख रही थी, मरद तो मेरा खेती किसानी के चक्कर में और मैं अपने ननद नन्दोई का हाल,
ननद ने मुझे देखते हुए देख लिया और मुस्करा के ऊँगली से इशारा किया दो राउंड
लेकिन दो राउंड में ही वो थेथर हो गयी थीं और यही मैं चाहती भी थी, लेकिन नन्दोई जी पे थकान का कोई असर नहीं था, उनका मूसल वैसे ही तना खड़ा था और खिलाड़ी तो वो पक्के थे ये मैं कई बार देख चुकी थी।
जानबूझ के वो ननद को गरमा रहे थे,
कभी अपना खुला सुपाड़ा ननद के दोनों निचले होंठो पे रगड़ते, ऊपर दाने पे मसलते तो कभी कस कस के ननद के जोबन को चूसते, कुछ देर में ही वो तड़पने लगीं,

" करो न " चूतड़ उठा के वो बोलीं
" क्या करूँ बोल न मेरी छम्कछल्लो " उन्हें छेड़ते नन्दोई जी बोले और कस कस के मेरी ननद की दोनों चूँची मसल दी,
उईईईईई ओह्ह्ह्ह जोर से वो चीखीं और अपने पति की चूम के बोलीं
" मेरे राजा, पेल न अंदर, काहें बाहर से रगड़ रहे हो "
" कहाँ पेलू , क्या पेलू साफ साफ़ बोल न " मुस्करा के बोले और झुक के मेरी ननद की क्लिट कस कस के चूस ली। बस ननद ने क्या चूतड़ उछाले उनका बस चलता तो खुद पकड़ के घोंट लेती अपने अंदर और लगी गरियाने
" स्साले तेरी छिनार माँ तो यहाँ है नहीं न वो कटखनी मेरी ननद है, किसके अंदर पेलोगे, अरे पेलो अपना लंड आग लगी है मेरी बुर में :

और ननदोई ने दुहरा कर के ननद को क्या जबरदस्त पेला, बंद कमरे में भी उन्हें तारे नजर आ गए होंगे। एक धक्के में ही आधा मूसल अंदर था
" उययी ओह्ह्ह नहीं अरे ऐसे नहीं ओह्ह रुक स्साले तेरी माँ की, ओह्ह्ह "
ननद चीख रही थीं चिल्ला रही थीं अपनी सास ननद को गरिया रही थीं लेकिन गाली सुन के तो सब मरद और जोस में आ जाते हैं और जब पूरा लंड अंदर घुस गया तो बस लंड के बेस से उनकी क्लिट रगड़ते हुए कभी कचकचा के उनके गाल काटते तो कभी चूँची पे दांत गड़ाते
ब्याहता मरद औरत की चुदाई का यही तो फायदा है, बुर में पानी डालने के पहले मरद कभी नहीं सोचता कहाँ गिराऊं और मन आने पर कस के गाल, और जोबन दोनों को काटता भी है और नोचता भी है। और औरत भी न लजाती है न शर्माती है न उन निशानों को छिपाती है ,
मैं खुद गौने की रात के अगले दिन सबेरे बड़ी कोशिश की उन निशानों को छुपाने की लेकिन दो तीन दिन में समझ गयी,
फिर मेरी सास ने भी मुझे समझाया, और मैं खूब लो कट चोली पहन के जिससे उनके दांत के नीचाँ साफ़ साफ़ मेरे जोबना पे, होंठ एकदम सूजे सूजे, दोनों गालों पे दांतो के निशान,
मैं समझ गयी थी यह सब तो नयी सुहागन के निशान है,
दिन में ठीक से चला न जाए, जाँघों में बार चिलख हो, बार बार जम्हाई आये, आँखे बारे बारे चोरी छुपे दरवाजे तक दौड़ी दौड़ी जाए की कहीं देवरों नन्दोईयों के झुरमुट में ये दिख जाएँ, बार बार सिकोड़ने पर भी रात की मलाई का कतरा सरक के नीचे,
यही सब तो निशान है रात को मरद ने नयी दुल्हन को कचकचा के प्यार किया है,

और थोड़ी देर में ननद भी अपने मरद का साथ दे रही थी, खुद अपने जोबन उभार के उनकी छाती में रगड़ रही थीं चूतड़ उछाल रही थीं
लेकिन एक चीज मैं देख रही थी, जो बात मैं अपने मरद से बार बार कहती थी,
जो मुझे दूबे भाभी और आशा बहू ने बार बार सिखाई थी की अगर औरत को पक्का गाभिन करना है चूतड़ उठे रहने चाहिए, जिससे लंड का टोपा सीधे बच्चेदानी के सीध में रहे और गिरे भी तो सब बच्चेदानी में जाए।
चूतड़ उठे रहने पे जैसे नाली में लुढ़कते पुढ़कते पानी जाता है, उसी तरह मरद का पानी भी औरत की बच्चेदानी में जाए और झड़ने के बाद भी कम से कम पांच दस मिनट तक इसी तरह एकदम चिपका के रखो, एक बूँद बीज भी बाहर न आये
और बीस पच्चीस मिनट की चुदाई के बाद जब ननदोई झड़े तो एकदम उसी तरह जैसे कुत्ते की गाँठ अटक जाती है
एकदम उसी तरह से अपनी मेहरारू को चिपकाए रहे
मतलब उन्हें बिस्वास था की आज वो मेरी ननद को गाभिन कर के ही छोड़ेंगे
और अगर छिनारों का कोई कम्टीशन हो तो मेरी ननद दस पांच जिले में टॉप करेंगी।
वैसे तो सब ननदें छिनार होती है लेकिन मेरी ये ननद खानदानी, और ऊपर से मैंने जो सिखा पढ़ा के अपने नन्दोई के पास भेजा था, एकदम वैसे ही, पक्की छिनार की तरह,
" हटो न " उन्हें धक्का देते हुए वो बोलीं,
" क्यों क्या हो गया " और कस के बाहों में भींचते मेरे ननदोई बोले।
" आ रही है " वो छिनार की तरह लजाते शर्माते बोलीं " जाने दो न बस आती हूँ "
और सिखाया पढ़ाया तो मैंने नन्दोई को भी था,
मेरी ननद के बच्चेदानी में सुई धंसी है, सचमुच की नहीं टोना टोटका वाली, इसलिए बच्चा रुकता नहीं बच्चेदानी में, बनने से पहले सुई काट देती है। और इलाज भी मैंने बताया था, ये पहला लड्डू, खा के हचक हचक के चोदिये, आपके बीज में ऐसी ताकत आएगी जो बच्चेदानी में जा के उस सुई को पिघला देगी, फिर ननद को कस के मूतवास लगेगी। अगर दो तीन बार चुदने के बाद उन्हें जोर की मुतवास लगे तो समझिये काम हो गया। और घलघल मूतने के साथ ही वो सुई एकदम पिघल के बाहर आ जाएगी, थोड़ा मूतने में जलन होगी, लेकिन थोड़ी देर बाद ठीक हो जायेगी और उनके लौटने के पहले दूसरा लड्डू खा लीजियेगा, उसमे आशीरबाद है, बस उसके बाद हचक के पेलिएगा और बीज सीधे बच्चेदानी में, सुबह तक पक्की गाभिन।

तो वो भी सोच रहे थे की उनके पेलने का और उस लड्डू का असर हो गया लेकिन आज वो भी चिढ़ा रहे थे, उनका मन भी खुश था की क्या पता बाप बन ही जाएँ
" अरे का आ रही है हमरे सास की बिटिया को " कस के गाल काट के वो बोले,
" हटो न बहुत मोहा रहे हो, अरे मूतवास आ रही है, ओह्ह बहुत जोर से लगी है "
"अरे तो जाके मूतो न, पूछ का रही हो " उठते हुए वो बोले, लेकिन उनके चेहरे से ख़ुशी साफ़ साफ़ लग रही थी
थोड़ी देर में हम ननद भौजाई साथ साथ आँगन में बैठे छुल छुल
ननद की रात -ननदोई के संग
२३,२४,८२५'

ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।
मैं भी मुस्करायी और बोली,
“ ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए,
और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,...

मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले, " हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "
" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, "
मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले
" एडवांस में मंजूर "
" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद " और मैं बाहर निकल गयी।
--
ननद को मैंने आज खूब ढंग से तैयार किया कोहनी तक चूड़ी, पैर में रच रच के महावर, हजार घुंघरू वाली पायल

और सबसे अंत में जो नन्दोई जी से बात हुयी थी उसमे से दो बात बतायी,
एक तो पहले राउंड के बाद मूतने के लिए जरूर निकले,
दो लोटा पानी पी के जाएँ सेज पे और दूसरी जब मूत के आएं तो मैंने एक लड्डू रखा है वो खिला दें अपने साजन को, और उन्हें उकसा उकसा के चुदवाये। हाँ सुबह मैं आउंगी आज की तरह, एकदम भोरे और फिर वही चेक करुँगी ननदोई के सामने स्ट्रिप दिखा के, बाकी का मेरे जिम्मे "
और रात भर खूब घमकच, घमकच, हुमच हुमच के ननद की, उनकी चीखें, सिसकियाँ, पायल के छनकने की, कंगना के खनकने की आवाज, बगल के कमरे में बहन हचक हचक के चुद रही हो तो कोई भी भाई जोश में आ जाएगा, और मैं भी उनसे पांच दिन से दूर तो मैं तो उनसे भी ज्यादा बौराई थी, हाँ पहले राउंड के बाद करीब, एक डेढ़ घंटे के बाद, ननद के कमरे से आवाजें आना बंद हुयी, बस दरवाजा खुलने की हलकी सी आवाज हुयी और मैं भी बाहर।
यहाँ भी इंटरवल चल रहा था, कच्चे आंगन में नाली के पास बैठी ननद, मैं समझ गयी तीर चल गया।
वो एक लड्डू, दूबे भाभी के दिए शिलाजीत से बना, उसने लौंडो को इतना पागल कर दिया था की सब ने ढूंढ ढूंढ कर के अपनी सगी चचेरी बहनो को चोदा, दिन भर चोदा ऐसी ताकत थी उस लड्डू में, और ननदोई जी ने तो दो दो खाये थे।
इन्हे आज फिर गेंहू के खेतो पे जाना था, एकदम मुंह अँधेरे, भोर अभी हुयी भी नहीं थी ठीक से। और आज दिन भर बाहर ही रहना था उन्हें, पहले गेंहूं की कटाई का इंतजाम करना था, फिर मंडी समिति, कुछ शहर में काम था।
बल्कि बहुत रात बाकी थी, लेकिन खेती किसानी का काम, कई बार तो हाड़ कंपाने वाले जाड़े में माघ पूस में रजाई में से निकल के गेंहू में पानी पटाने, कभी जब भी लाइट आये तब भी, लेकिन मुझे अब आदत पड़ गयी थी। और उधार न ये रखते थे न मैं , बचा खुचा राउंड दिन दहाड़े तो आज भी मैं जानती थी कल जब एक बार मेरी ननद विदा हो जाएंगी तो मेरी खैर नहीं,
खैर अभी तो मैं ननद रानी की खैर देखने उनके कमरे के बाहर झाँकने पहुंची। चीख पुकार की आवाज तो मेरे कमरे में भी आ रही थी लेकिन सामने से देखने का मजा और ही है, और अगर नन्द हचक के चोदी जा रही है, रगड़ी जा रही है और उसमे कुल हाथ भौजाई का हो तो देखने का तो बनता है न , और अभी जो हो रहा था वो तो सिर्फ ट्रेलर था। जो दो लड्डू मैंने उन्हें दिए थे उस का असर था, पहला वाला तो तब भी गनीमत था, और उसी में मेरी ननद थेथर हो रही थी।
असल सवाल ये था की नन्दोई को कुछ तो लगना चाहिए था की कुछ अलग हो रहा है जिससे वो मेरी ननद को गाभिन करने में सफल हो रहे हैं ,
चोदू तो वो थे ही औजार भी जबरदस्त था और चोदने का तरीका भी उन्हें मालूम था।
आज सुबह से मेरी सास की गांड चिल्ख रही थी, और उन्हें देख के मैं और नन्दोई मुस्करा रहे थे ।
तो वो जो दोनों लड्डू थे, बस जो दूबे भाभी ने शिलाजीत के लड्डू देवरों के लिए तो बस उसी की डबल डोज और साथ में वीर्य वर्धक भी, लेकिन उस के साथ मैंने कुछ कामोत्तेजक द्रव की बूंदे भी मिला दी थी की
और असर साफ़ था, खुली खड़की से मैं खुला खेल देख रही थी, मरद तो मेरा खेती किसानी के चक्कर में और मैं अपने ननद नन्दोई का हाल,
ननद ने मुझे देखते हुए देख लिया और मुस्करा के ऊँगली से इशारा किया दो राउंड
लेकिन दो राउंड में ही वो थेथर हो गयी थीं और यही मैं चाहती भी थी, लेकिन नन्दोई जी पे थकान का कोई असर नहीं था, उनका मूसल वैसे ही तना खड़ा था और खिलाड़ी तो वो पक्के थे ये मैं कई बार देख चुकी थी।
जानबूझ के वो ननद को गरमा रहे थे,
कभी अपना खुला सुपाड़ा ननद के दोनों निचले होंठो पे रगड़ते, ऊपर दाने पे मसलते तो कभी कस कस के ननद के जोबन को चूसते, कुछ देर में ही वो तड़पने लगीं,

" करो न " चूतड़ उठा के वो बोलीं
" क्या करूँ बोल न मेरी छम्कछल्लो " उन्हें छेड़ते नन्दोई जी बोले और कस कस के मेरी ननद की दोनों चूँची मसल दी,
उईईईईई ओह्ह्ह्ह जोर से वो चीखीं और अपने पति की चूम के बोलीं
" मेरे राजा, पेल न अंदर, काहें बाहर से रगड़ रहे हो "
" कहाँ पेलू , क्या पेलू साफ साफ़ बोल न " मुस्करा के बोले और झुक के मेरी ननद की क्लिट कस कस के चूस ली। बस ननद ने क्या चूतड़ उछाले उनका बस चलता तो खुद पकड़ के घोंट लेती अपने अंदर और लगी गरियाने
" स्साले तेरी छिनार माँ तो यहाँ है नहीं न वो कटखनी मेरी ननद है, किसके अंदर पेलोगे, अरे पेलो अपना लंड आग लगी है मेरी बुर में :

और ननदोई ने दुहरा कर के ननद को क्या जबरदस्त पेला, बंद कमरे में भी उन्हें तारे नजर आ गए होंगे। एक धक्के में ही आधा मूसल अंदर था
" उययी ओह्ह्ह नहीं अरे ऐसे नहीं ओह्ह रुक स्साले तेरी माँ की, ओह्ह्ह "
ननद चीख रही थीं चिल्ला रही थीं अपनी सास ननद को गरिया रही थीं लेकिन गाली सुन के तो सब मरद और जोस में आ जाते हैं और जब पूरा लंड अंदर घुस गया तो बस लंड के बेस से उनकी क्लिट रगड़ते हुए कभी कचकचा के उनके गाल काटते तो कभी चूँची पे दांत गड़ाते
ब्याहता मरद औरत की चुदाई का यही तो फायदा है, बुर में पानी डालने के पहले मरद कभी नहीं सोचता कहाँ गिराऊं और मन आने पर कस के गाल, और जोबन दोनों को काटता भी है और नोचता भी है। और औरत भी न लजाती है न शर्माती है न उन निशानों को छिपाती है ,
मैं खुद गौने की रात के अगले दिन सबेरे बड़ी कोशिश की उन निशानों को छुपाने की लेकिन दो तीन दिन में समझ गयी,
फिर मेरी सास ने भी मुझे समझाया, और मैं खूब लो कट चोली पहन के जिससे उनके दांत के नीचाँ साफ़ साफ़ मेरे जोबना पे, होंठ एकदम सूजे सूजे, दोनों गालों पे दांतो के निशान,
मैं समझ गयी थी यह सब तो नयी सुहागन के निशान है,
दिन में ठीक से चला न जाए, जाँघों में बार चिलख हो, बार बार जम्हाई आये, आँखे बारे बारे चोरी छुपे दरवाजे तक दौड़ी दौड़ी जाए की कहीं देवरों नन्दोईयों के झुरमुट में ये दिख जाएँ, बार बार सिकोड़ने पर भी रात की मलाई का कतरा सरक के नीचे,
यही सब तो निशान है रात को मरद ने नयी दुल्हन को कचकचा के प्यार किया है,

और थोड़ी देर में ननद भी अपने मरद का साथ दे रही थी, खुद अपने जोबन उभार के उनकी छाती में रगड़ रही थीं चूतड़ उछाल रही थीं
लेकिन एक चीज मैं देख रही थी, जो बात मैं अपने मरद से बार बार कहती थी,
जो मुझे दूबे भाभी और आशा बहू ने बार बार सिखाई थी की अगर औरत को पक्का गाभिन करना है चूतड़ उठे रहने चाहिए, जिससे लंड का टोपा सीधे बच्चेदानी के सीध में रहे और गिरे भी तो सब बच्चेदानी में जाए।
चूतड़ उठे रहने पे जैसे नाली में लुढ़कते पुढ़कते पानी जाता है, उसी तरह मरद का पानी भी औरत की बच्चेदानी में जाए और झड़ने के बाद भी कम से कम पांच दस मिनट तक इसी तरह एकदम चिपका के रखो, एक बूँद बीज भी बाहर न आये
और बीस पच्चीस मिनट की चुदाई के बाद जब ननदोई झड़े तो एकदम उसी तरह जैसे कुत्ते की गाँठ अटक जाती है
एकदम उसी तरह से अपनी मेहरारू को चिपकाए रहे
मतलब उन्हें बिस्वास था की आज वो मेरी ननद को गाभिन कर के ही छोड़ेंगे
और अगर छिनारों का कोई कम्टीशन हो तो मेरी ननद दस पांच जिले में टॉप करेंगी।
वैसे तो सब ननदें छिनार होती है लेकिन मेरी ये ननद खानदानी, और ऊपर से मैंने जो सिखा पढ़ा के अपने नन्दोई के पास भेजा था, एकदम वैसे ही, पक्की छिनार की तरह,
" हटो न " उन्हें धक्का देते हुए वो बोलीं,
" क्यों क्या हो गया " और कस के बाहों में भींचते मेरे ननदोई बोले।
" आ रही है " वो छिनार की तरह लजाते शर्माते बोलीं " जाने दो न बस आती हूँ "
और सिखाया पढ़ाया तो मैंने नन्दोई को भी था,
मेरी ननद के बच्चेदानी में सुई धंसी है, सचमुच की नहीं टोना टोटका वाली, इसलिए बच्चा रुकता नहीं बच्चेदानी में, बनने से पहले सुई काट देती है। और इलाज भी मैंने बताया था, ये पहला लड्डू, खा के हचक हचक के चोदिये, आपके बीज में ऐसी ताकत आएगी जो बच्चेदानी में जा के उस सुई को पिघला देगी, फिर ननद को कस के मूतवास लगेगी। अगर दो तीन बार चुदने के बाद उन्हें जोर की मुतवास लगे तो समझिये काम हो गया। और घलघल मूतने के साथ ही वो सुई एकदम पिघल के बाहर आ जाएगी, थोड़ा मूतने में जलन होगी, लेकिन थोड़ी देर बाद ठीक हो जायेगी और उनके लौटने के पहले दूसरा लड्डू खा लीजियेगा, उसमे आशीरबाद है, बस उसके बाद हचक के पेलिएगा और बीज सीधे बच्चेदानी में, सुबह तक पक्की गाभिन।

तो वो भी सोच रहे थे की उनके पेलने का और उस लड्डू का असर हो गया लेकिन आज वो भी चिढ़ा रहे थे, उनका मन भी खुश था की क्या पता बाप बन ही जाएँ
" अरे का आ रही है हमरे सास की बिटिया को " कस के गाल काट के वो बोले,
" हटो न बहुत मोहा रहे हो, अरे मूतवास आ रही है, ओह्ह बहुत जोर से लगी है "
"अरे तो जाके मूतो न, पूछ का रही हो " उठते हुए वो बोले, लेकिन उनके चेहरे से ख़ुशी साफ़ साफ़ लग रही थी
थोड़ी देर में हम ननद भौजाई साथ साथ आँगन में बैठे छुल छुल
Last edited: