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भाग २१
छुटकी पर चढ़ाई -
और जो थोड़ी बहुत उम्मीद बची थी, उसपर मेरी सास ने न सिर्फ दरवाजा बंद कर दिया बल्कि मोटा सा भुन्नासी ताला भी लगा दिया,... ननद की बात के जवाब में छुटकी की ओर से वो बोलीं,
" अरे मेरी छुटकी बेटी को समझती क्या हो, डरती है क्या किसी से.... अभी देखो,... क्यों " और उन्होंने बॉल मेरे पाले में डाल दी.
बेचारी छुटकी कभी मुझे देखती कभी मेरी सास को,...
और मुझे जल्द फैसला लेना था, पहली बात सास की बात, वो भी सबके सामने काटने की मैं सोच भी नहीं सकती थी,
फिर मैंने सोचा सास को अपने साथ मिलाने के बड़े फायदे हैं, पहली बात तो तुरंत ही, कल ननद भौजाई का जो मैच होगा उसमें जज वही होंगी,... और थोड़ा बहुत मैच फिक्सिंग,... फिर अब घर में भी जेठानी और छुटकी ननदिया तो जेठ जी के पास चली गयी हैं साल में कभी कभार छुट्टी छपाटी, लौटेंगी ... और ये ननद नन्दोई भी चार पांच दिन में, ...
फिर तो घर में मैं, मेरी छोटी बहिन, उसके जीजा,... और मेरी सास ही रहेंगी, ... मैं सोच रही थी सास जी के बारे में
और मेरी चमकी, बहुत सी बड़ी उमर की औरतों को कुछ करने करवाने से ज्यादा मज़ा आता है,.. देखने में,.... और जिस पर चढ़ाई हो रही हो , वोएकदम कच्ची उमर वाली, कच्चे टिकोरों वाली हो हो कहना ही क्या,
फिर छुटकी को देख के सबसे ज्यादा आँखे उन्ही की चमकी थी, उसे साथ ले के अपने कमरे में चली गयीं थी,... तो उसकी कच्ची अमिया उनके सामने कुतरी जाए , ये देखने का मन उनका कर रहा होगा
मैंने एक पल ननद जी की और उनके भैया की ओर देखा, और मुझे लगा की अगर आज सबके सामने , अपनी माँ के सामने ये खुल के मेरी बहन की चुदाई करेंगे तो इनकी जो भी झिझक है और ननद जी की भी वो सब निकल जायेगी, फिर एक दो दिन में मैं इनकी बहन के ऊपर इसी घर में अपने सामने चढ़ाउंगी, तब आएगा असली मज़ा. जो मजा ननद के ऊपर भौजाई को अपने सामने ननद के सगे भाई को चढ़ाने में आता है न उसके आगे कोई भी मजा फेल है।
बस ये सब सोच के मैंने अपनी सास का साथ दिया,...
" एकदम, क्यों डरेगी और किससे डरेगी, बड़ी बहादुर है मेरी छुटकी बस अभी थोड़ी देर में,... "
छुटकी ने कुछ बोलने की कोशिश की तो मैंने समझा दिया अरे मैं रहूंगी न तेरे साथ, ... और अबकी मेरी सास ने भी उसका साथ दिया,...
हाँ मैच शुरू होने के पहले मैंने कुछ शर्तें ननद औरसास से मनवा ली, वो क्या थीं, मौके पर बताउंगी।
और एक बात और रीतू भाभी ने जो सूखी गाँड़ मारने की शर्त रखी थी, वो तो सिर्फ पहली बार के लिए थी, फटने के लिए, ...
और फट तो चुकी ही थी उसकी इसलिए अब तो कोई भी चिकनाई उसको लगा सकती थी मैं, दूसरे नन्दोई जी ने जो कटोरी भर मलाई उसकी कच्ची गाँड़ में डाली थी उससे भी तो पिछवाड़े का छेद कुछ कुछ चिकना हो चुका होगा,...
बीच आँगन में ननद रानी ने गद्दे बिछा दिया, पर छुटकी बिचक रही थी, पर मैंने उसे बहलाया फुसलाया , चुम्मी ली , उसकी छोटी छोटी चूँचिया दबायी,...
मुझे उसके देह की एक एक बटन मालूम थी , ट्रेन में तो इनके सामने हम दोनों ने खूब लेस्बो सेक्स कर के उसके जीजा को खूब ललचाया था तो बस फिर से वही,
" अरे चल थोड़ी देर हम दोनों मजा लेते है न , उसमें तो नहीं दर्द होगा तुझे न,... "
मैंने समझाया उसे और थोड़ी देर में हम दोनों आंगन में सिक्स्टी नाइन वाली पोज में थे, रीतू भाभी, मिश्राइन भाभी और मोहल्ले की भाभियों ने कब का छुटकी को चूत चूसने की तगड़ी ट्रेनिंग दे दी थी , और हम दोनों एक दूसरे की चूत चूसने में लगे थे , पर झाड़ने की जल्दी न मुझे थी न उसे।
छुटकी की फांके अभी एकदम चिपकी थीं, एक दो बार ही तो उसमें मूसल घुसा था, कस के एक दूसरे को पकडे जैसे सहेलियां बिछुड़ने के डर से गलबहिंया बाँध के बैठी हों, रस तो इतना छलक रहा था की संतरे की फांके झूठ,...
लेकिन मेरी जीभ ने वहां छुआ भी नहीं , बस जाँघों पर उसके आसपास, हाँ मेरे तगड़े हाथों ने कस के उसकी जाँघों को न सिर्फ फैला दिया बल्कि टाँगे उठा भी दी, और मेरी सास जो बगल में ही बैठीं थी, एक दो तकिये छुटकी के चूतड़ के नीचे भी लगा के खूब उठा दिए, मेरी जीभ और उँगलियाँ बस उस कुँवारी के रस कूप के आस पास,
और थोड़ी ही देर में वो रसकूप रस से भर गया, रस छलकने लगा , पर मैंने उसे तड़पने दिया, मैं जानती आज असली हमला तो कहीं और होना है,...
तो बस जीभ की टिप थोड़ा और नीचे,...
गोलकुंडा के गोल गोल दरवाजे पर जो आज ही थोड़ी देर पहले आम की बगिया में खुला था, जहाँ मेरे प्यारे दुलारे ननदोई का मोटा मूसल खूब जम के चला था, और जीभ की टिप नहीं नहीं गोलकुंडा के गोल कुंवे के अंदर नहीं, बस कुंवे के चारो ओर बनी चौड़ी जगत पर, कभी जीभ की टिप छू देती , कभी रगड़ देती कभी बस सहला देती, वो पिछवाड़े वाला छेद अब बुदबुदा रहा था, हलके हलके सिकुड़ता, फैलता,... और जैसे कोई दरवाजे की कुण्डी खटका के बच्चा भाग जाए, बस उसी तरह मेरी जीभ भी, चित्तौड़गढ़ के दरवाजे पर सांकल खटखटा के , एकदम से हट गयी, और फिर छोटे छोटे चुम्मे उस लौंडा छाप चूतड़ों पे,...
नहीं मैंने उस रस कूप को नहीं छोड़ दिया था , मेरी कोमल कोमल उंगलिया,... उस संतरे की रस से भरी फांको पर, कभी हलके हलके रगड़ती रगड़ती, कभी फांकों के बीच में हल्के से दबा के उस दरवाजे को खोलने की कोशिश करती, जिसके अंदर अब तक सिर्फ मेरे साजन को दाखिला मिला था,...
मेरी इन शरारतों से सिर्फ छुटकी की हालत नहीं खराब हो रही थी, मैंने देख लिया था की मेरी सास के साथ सास के दामाद भी, मेरे नन्दोई भी और शॉर्ट्स में उनका खूंटा पूरा तना,
नन्दोई का ख्याल सलहज नहींकरेगी तो क्या ननद की ननद करेगी ? मैंने इशारे से ऊँगली मोड़ के उन्हें पास बुलाया और एक झटके से उनकी शॉर्ट्स को खींच के उतार फेंका, इत्ता मस्त मोटा लंड, ... कैद में रहे, वो भी ससुराल में , मेरे ऐसी सलहज के रहते, ...
और मैंने कनखियों से देखा मेरी सास के चेहरे की ख़ुशी को,
अब मेरा एक हाथ नन्दोई के मोटे फनफनाये लंड को मुठिया रहा था, दूसरा हाथ मेरी छुटकी बहन के कभी जाँघों पे कभी उसकी चिपकी सहेली पर फिसल रहा था,... और होंठ उसी जगह अब चिपके थे जहाँ असली खेल होना था, मेरी छुटकी बहिनिया का पिछवाड़ा,...
खूब चूस रही थी , चाट रही थी , मुंह में ढेर सारा थूक ले के उसी जगह फैला के अंदर तक,...
बेचारे ननदोई , सलहज मुठिया रही थी , सलहज की छुटकी बहिनिया का पिछवाड़ा सामने , एकदम तैयार,...
ऊपर से मैंने आँख मार के उनसे बिन बोले पूछा, " चाहिए ये माल, इसकी कच्ची गाँड़ '
कौन मर्द पागल नहीं हो जाता।
और अब मैंने थोड़ा फास्ट फारवर्ड किया, ..सीधे अब जीभ कसी चूत पर दोनों फांके मेरे होंठों के बीच, कस कस के मैं चूस रही थी , जीभ कभी क्लिट को सहला देती , तो कभी दोनों फांकों को फ़ैलाने की कोशिश करती, और
अब मेरे दोनों हाथ असली काम में जुट गए थे, कस के मेरी बहन के चूतड़ फ़ैलाने में , उसके लौंडा मार्का छोटे छोटे चूतड़ नन्दोई जी को पागल बना रहा थे ,
हाँ मेरे सास की आइडिया थी , मैंने दोनों हाथों की दसों उँगलियों में घर के कोल्हू का कडुवा तेल, अच्छी तरह से एकदम तर कर लिया था,...
और अब वो उँगलियाँ छुटकी की पिछवाड़े की दरार में , दरार के पहले उस दर्रे में , उसके चारों ओर, गाँड़ मरवाते समय न सिर्फ जिस छेद में मूसल घुसता है वहां दर्द होता है, बल्कि उसके अगल बगल भी फटन होती है, और एक बार तो जबरन मंझली ऊँगली , तेल में डूबी दो पोर तक घुसेड़ कर पूरे दो मिनट तक गोल गोल ,
लेकिन सिर्फ बछिया को तैयार करने से नहीं काम चलने वाला था सांड़ को भी तो पागल करना था, बस जो होंठ मेरे बहिनिया की चूत चूस रहे थे वो खुले और नन्दोई का सुपाड़ा, अंदर खूब सटासट, और वो तेल लगी उँगलियाँ उस चर्मदण्ड को तेल से,... बस दोनों पगलाए थे,
एक बार फिर मैंने छुटकी की चूत को खूब कस कस के चूसना शुरू किया, और जीभ अब अंदर घुस गयी थी , बस वो झड़ने के कगार पर थी,
दोनों हाथों ने उसका पिछवाड़ा कस के पहले फैलाया, फिर एक हाथ से मैंने नन्दोई का खूंटा पकड़ के अपनी छुटकी बहिनिया की कसी गाँड़ के छेद पर सटाया,
बहुत ताकत थी मेरे प्यारे नन्दोईया की कमर में , क्या जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने,... और मैं पहले से तैयार थी, छुटकी इतना तेज उछली, ... पर मैंने अपनी पूरी देह का वजन उसके ऊपर डाल रखा था, जैसे कोई बछिया खूंटा छुडाके भागने की कोशिश करे , कोई मछली जाल से पूरी ताकत से उछल के वापस नदी में जाने की कोशिश करे,
पर न बछिया खूंटा छुड़ा के भाग पाती है , मछली बच पाती है,
न छुटकी बची,...
छुटकी पर चढ़ाई -
और जो थोड़ी बहुत उम्मीद बची थी, उसपर मेरी सास ने न सिर्फ दरवाजा बंद कर दिया बल्कि मोटा सा भुन्नासी ताला भी लगा दिया,... ननद की बात के जवाब में छुटकी की ओर से वो बोलीं,
" अरे मेरी छुटकी बेटी को समझती क्या हो, डरती है क्या किसी से.... अभी देखो,... क्यों " और उन्होंने बॉल मेरे पाले में डाल दी.
बेचारी छुटकी कभी मुझे देखती कभी मेरी सास को,...
और मुझे जल्द फैसला लेना था, पहली बात सास की बात, वो भी सबके सामने काटने की मैं सोच भी नहीं सकती थी,
फिर मैंने सोचा सास को अपने साथ मिलाने के बड़े फायदे हैं, पहली बात तो तुरंत ही, कल ननद भौजाई का जो मैच होगा उसमें जज वही होंगी,... और थोड़ा बहुत मैच फिक्सिंग,... फिर अब घर में भी जेठानी और छुटकी ननदिया तो जेठ जी के पास चली गयी हैं साल में कभी कभार छुट्टी छपाटी, लौटेंगी ... और ये ननद नन्दोई भी चार पांच दिन में, ...
फिर तो घर में मैं, मेरी छोटी बहिन, उसके जीजा,... और मेरी सास ही रहेंगी, ... मैं सोच रही थी सास जी के बारे में
और मेरी चमकी, बहुत सी बड़ी उमर की औरतों को कुछ करने करवाने से ज्यादा मज़ा आता है,.. देखने में,.... और जिस पर चढ़ाई हो रही हो , वोएकदम कच्ची उमर वाली, कच्चे टिकोरों वाली हो हो कहना ही क्या,
फिर छुटकी को देख के सबसे ज्यादा आँखे उन्ही की चमकी थी, उसे साथ ले के अपने कमरे में चली गयीं थी,... तो उसकी कच्ची अमिया उनके सामने कुतरी जाए , ये देखने का मन उनका कर रहा होगा
मैंने एक पल ननद जी की और उनके भैया की ओर देखा, और मुझे लगा की अगर आज सबके सामने , अपनी माँ के सामने ये खुल के मेरी बहन की चुदाई करेंगे तो इनकी जो भी झिझक है और ननद जी की भी वो सब निकल जायेगी, फिर एक दो दिन में मैं इनकी बहन के ऊपर इसी घर में अपने सामने चढ़ाउंगी, तब आएगा असली मज़ा. जो मजा ननद के ऊपर भौजाई को अपने सामने ननद के सगे भाई को चढ़ाने में आता है न उसके आगे कोई भी मजा फेल है।
बस ये सब सोच के मैंने अपनी सास का साथ दिया,...
" एकदम, क्यों डरेगी और किससे डरेगी, बड़ी बहादुर है मेरी छुटकी बस अभी थोड़ी देर में,... "
छुटकी ने कुछ बोलने की कोशिश की तो मैंने समझा दिया अरे मैं रहूंगी न तेरे साथ, ... और अबकी मेरी सास ने भी उसका साथ दिया,...
हाँ मैच शुरू होने के पहले मैंने कुछ शर्तें ननद औरसास से मनवा ली, वो क्या थीं, मौके पर बताउंगी।
और एक बात और रीतू भाभी ने जो सूखी गाँड़ मारने की शर्त रखी थी, वो तो सिर्फ पहली बार के लिए थी, फटने के लिए, ...
और फट तो चुकी ही थी उसकी इसलिए अब तो कोई भी चिकनाई उसको लगा सकती थी मैं, दूसरे नन्दोई जी ने जो कटोरी भर मलाई उसकी कच्ची गाँड़ में डाली थी उससे भी तो पिछवाड़े का छेद कुछ कुछ चिकना हो चुका होगा,...
बीच आँगन में ननद रानी ने गद्दे बिछा दिया, पर छुटकी बिचक रही थी, पर मैंने उसे बहलाया फुसलाया , चुम्मी ली , उसकी छोटी छोटी चूँचिया दबायी,...
मुझे उसके देह की एक एक बटन मालूम थी , ट्रेन में तो इनके सामने हम दोनों ने खूब लेस्बो सेक्स कर के उसके जीजा को खूब ललचाया था तो बस फिर से वही,
" अरे चल थोड़ी देर हम दोनों मजा लेते है न , उसमें तो नहीं दर्द होगा तुझे न,... "
मैंने समझाया उसे और थोड़ी देर में हम दोनों आंगन में सिक्स्टी नाइन वाली पोज में थे, रीतू भाभी, मिश्राइन भाभी और मोहल्ले की भाभियों ने कब का छुटकी को चूत चूसने की तगड़ी ट्रेनिंग दे दी थी , और हम दोनों एक दूसरे की चूत चूसने में लगे थे , पर झाड़ने की जल्दी न मुझे थी न उसे।
छुटकी की फांके अभी एकदम चिपकी थीं, एक दो बार ही तो उसमें मूसल घुसा था, कस के एक दूसरे को पकडे जैसे सहेलियां बिछुड़ने के डर से गलबहिंया बाँध के बैठी हों, रस तो इतना छलक रहा था की संतरे की फांके झूठ,...
लेकिन मेरी जीभ ने वहां छुआ भी नहीं , बस जाँघों पर उसके आसपास, हाँ मेरे तगड़े हाथों ने कस के उसकी जाँघों को न सिर्फ फैला दिया बल्कि टाँगे उठा भी दी, और मेरी सास जो बगल में ही बैठीं थी, एक दो तकिये छुटकी के चूतड़ के नीचे भी लगा के खूब उठा दिए, मेरी जीभ और उँगलियाँ बस उस कुँवारी के रस कूप के आस पास,
और थोड़ी ही देर में वो रसकूप रस से भर गया, रस छलकने लगा , पर मैंने उसे तड़पने दिया, मैं जानती आज असली हमला तो कहीं और होना है,...
तो बस जीभ की टिप थोड़ा और नीचे,...
गोलकुंडा के गोल गोल दरवाजे पर जो आज ही थोड़ी देर पहले आम की बगिया में खुला था, जहाँ मेरे प्यारे दुलारे ननदोई का मोटा मूसल खूब जम के चला था, और जीभ की टिप नहीं नहीं गोलकुंडा के गोल कुंवे के अंदर नहीं, बस कुंवे के चारो ओर बनी चौड़ी जगत पर, कभी जीभ की टिप छू देती , कभी रगड़ देती कभी बस सहला देती, वो पिछवाड़े वाला छेद अब बुदबुदा रहा था, हलके हलके सिकुड़ता, फैलता,... और जैसे कोई दरवाजे की कुण्डी खटका के बच्चा भाग जाए, बस उसी तरह मेरी जीभ भी, चित्तौड़गढ़ के दरवाजे पर सांकल खटखटा के , एकदम से हट गयी, और फिर छोटे छोटे चुम्मे उस लौंडा छाप चूतड़ों पे,...
नहीं मैंने उस रस कूप को नहीं छोड़ दिया था , मेरी कोमल कोमल उंगलिया,... उस संतरे की रस से भरी फांको पर, कभी हलके हलके रगड़ती रगड़ती, कभी फांकों के बीच में हल्के से दबा के उस दरवाजे को खोलने की कोशिश करती, जिसके अंदर अब तक सिर्फ मेरे साजन को दाखिला मिला था,...
मेरी इन शरारतों से सिर्फ छुटकी की हालत नहीं खराब हो रही थी, मैंने देख लिया था की मेरी सास के साथ सास के दामाद भी, मेरे नन्दोई भी और शॉर्ट्स में उनका खूंटा पूरा तना,
नन्दोई का ख्याल सलहज नहींकरेगी तो क्या ननद की ननद करेगी ? मैंने इशारे से ऊँगली मोड़ के उन्हें पास बुलाया और एक झटके से उनकी शॉर्ट्स को खींच के उतार फेंका, इत्ता मस्त मोटा लंड, ... कैद में रहे, वो भी ससुराल में , मेरे ऐसी सलहज के रहते, ...
और मैंने कनखियों से देखा मेरी सास के चेहरे की ख़ुशी को,
अब मेरा एक हाथ नन्दोई के मोटे फनफनाये लंड को मुठिया रहा था, दूसरा हाथ मेरी छुटकी बहन के कभी जाँघों पे कभी उसकी चिपकी सहेली पर फिसल रहा था,... और होंठ उसी जगह अब चिपके थे जहाँ असली खेल होना था, मेरी छुटकी बहिनिया का पिछवाड़ा,...
खूब चूस रही थी , चाट रही थी , मुंह में ढेर सारा थूक ले के उसी जगह फैला के अंदर तक,...
बेचारे ननदोई , सलहज मुठिया रही थी , सलहज की छुटकी बहिनिया का पिछवाड़ा सामने , एकदम तैयार,...
ऊपर से मैंने आँख मार के उनसे बिन बोले पूछा, " चाहिए ये माल, इसकी कच्ची गाँड़ '
कौन मर्द पागल नहीं हो जाता।
और अब मैंने थोड़ा फास्ट फारवर्ड किया, ..सीधे अब जीभ कसी चूत पर दोनों फांके मेरे होंठों के बीच, कस कस के मैं चूस रही थी , जीभ कभी क्लिट को सहला देती , तो कभी दोनों फांकों को फ़ैलाने की कोशिश करती, और
अब मेरे दोनों हाथ असली काम में जुट गए थे, कस के मेरी बहन के चूतड़ फ़ैलाने में , उसके लौंडा मार्का छोटे छोटे चूतड़ नन्दोई जी को पागल बना रहा थे ,
हाँ मेरे सास की आइडिया थी , मैंने दोनों हाथों की दसों उँगलियों में घर के कोल्हू का कडुवा तेल, अच्छी तरह से एकदम तर कर लिया था,...
और अब वो उँगलियाँ छुटकी की पिछवाड़े की दरार में , दरार के पहले उस दर्रे में , उसके चारों ओर, गाँड़ मरवाते समय न सिर्फ जिस छेद में मूसल घुसता है वहां दर्द होता है, बल्कि उसके अगल बगल भी फटन होती है, और एक बार तो जबरन मंझली ऊँगली , तेल में डूबी दो पोर तक घुसेड़ कर पूरे दो मिनट तक गोल गोल ,
लेकिन सिर्फ बछिया को तैयार करने से नहीं काम चलने वाला था सांड़ को भी तो पागल करना था, बस जो होंठ मेरे बहिनिया की चूत चूस रहे थे वो खुले और नन्दोई का सुपाड़ा, अंदर खूब सटासट, और वो तेल लगी उँगलियाँ उस चर्मदण्ड को तेल से,... बस दोनों पगलाए थे,
एक बार फिर मैंने छुटकी की चूत को खूब कस कस के चूसना शुरू किया, और जीभ अब अंदर घुस गयी थी , बस वो झड़ने के कगार पर थी,
दोनों हाथों ने उसका पिछवाड़ा कस के पहले फैलाया, फिर एक हाथ से मैंने नन्दोई का खूंटा पकड़ के अपनी छुटकी बहिनिया की कसी गाँड़ के छेद पर सटाया,
बहुत ताकत थी मेरे प्यारे नन्दोईया की कमर में , क्या जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने,... और मैं पहले से तैयार थी, छुटकी इतना तेज उछली, ... पर मैंने अपनी पूरी देह का वजन उसके ऊपर डाल रखा था, जैसे कोई बछिया खूंटा छुडाके भागने की कोशिश करे , कोई मछली जाल से पूरी ताकत से उछल के वापस नदी में जाने की कोशिश करे,
पर न बछिया खूंटा छुड़ा के भाग पाती है , मछली बच पाती है,
न छुटकी बची,...