बेटा /बेटी किसके
( बाप के /की माँ के ?)
लेकिन फिर गीता का उदास चेहरा देख के माँ ने उसे दुलार से गले लगा लिया और चूमते हुए बोलीं,
" अरे स्साली काहें कुम्हला रही है, तू मेरी कोख से पैदा हुई मेरी बेटी है और तेरा भाई मेरी कोख से जन्मा, मेरा बेटा,... तो तू भाईचोद और तेरा भाई बहनचोद,... "
और माँ ने वो लॉजिक दिया जिसकी काट नहीं थी, दुलराते,चूमते अपनी बिटिया की कच्ची अमिया सहलाते बोलीं,
" अच्छा बता, तुझे दही जमाना है , दूध रखा है लेकिन घर की दही का जामन नहीं बचा, कोई बिल्ली चाट गयी, पर दही जमाना जरूरी है तो का करेगी तू "
" अरी माँ, ये भी कोई बात है , ग्वालिन भौजी या चाची या आस पड़ोस से जामन मांग लूंगी, अरे कटोरी भर भी तो नहीं होता, चम्मच दो चम्मच बहुत है जमाने के लिए "
खिलखिलाते हुए गीता ने जवाब दिया, गाँव की लड़की, दही जमाना रोज का काम।
" अच्छा, सेर भर दही आपन कहतरी में जमाय ली, लेकिन जउने पड़ोसिन से जामन मांग के लायी थी, वो आ जाए और कहे की ये दही तो हमरे जामन का है, कुल दही हमको दो "
माँ ने बड़ी सीरियसली पूछा।
" अरे वाह," तमक के गीता बोली,
" अरे एक चम्मच जामन ले आयी थी दो चम्मच ले लें , कटोरी भर ले ले, ...
कहतरी हमारी, दूध हमार, अंजुली भर जामन से दही उनका, ... ये कैसे "

माँ खिलखिलाने लगी फिर प्यार से उसे चिपका के बोलीं,
" यही तो, तेरे लिए चम्मच भर जामन,चाहे तेरे चाचा का, फूफा का हो, मामा का हो, लेकिन कहतरी तो हमारी है, ... "उस पेट को, सहलाते जिसमे गीता और उसका भाई ९ महीने थीं,... वो बोलीं और जोड़ा दूध भी हमारा, तो जरा सा जामन कहीं से मैं लूँ क्या फर्क पड़ता है "
गीता समझ गयी माँ की लॉजिक और दुलार से उनकी गोद में चिपक गयी, रिश्ता तो माँ का ही है।
माँ ने अब बात और आगे बढ़ाई
" देखो कुछ बातें औरतें ही समझ सकती हैं इसलिए ये सब माँ बेटी की बात हैं किसी भी मरद के दिमाग में नहीं घुसतीं, बिधना उसे बनाये ही नहीं ऐसे, अच्छा चलो एक बात बताओ , जब तू हमरे पेट में आयी तो नौ महीने कहाँ रही "
गीता ने दुलराते हुए माँ के गोरे गोरे चिकने पेट को सहलाते हुए खिलखिला के कहा,
" यहाँ,... "

" और पेट के अंदर से जो लात चलाती थी, कौन सहती थी ? तेरी दादी पेट छू के खूब खुश होक चिढ़ाते बता देती थीं , बहु बिटिया होगी इतना लात चला रही होगी,... बहुते चंचल होगी, कुलच्छिनी "
और मैं हंस के कहती थी हाँ सासू जी एकदम अपनी बुआ पे पड़ेगी। कदम घर में नहीं टिकेगा। इस घर की बेटी, इस घर की बेटी की तरह होगी। और दादी बहुत खुश, हम ननद भौजाई की छेड़छाड़ में वो बहू का ही साथ लेती थीं आखिर वो भी इस गाँव की बहू थीं , मेरी तरह बेटी थोड़ी थीं। अच्छा ये बता की जब तू पैदा हुयी तो दर्द किसको हुआ मुझको या तेरे बाऊ जी को ,... "

" आपको " बड़ी बड़ी आँखों से बेटी ने माँ को देखते हुए कहा।
" और पूरे दो साल चुसूर चुसूर दूध कौन पिलाया , मैं की तोहरे बुआ के खसम तोहार बाऊ " हँसते हुए माँ ने फिर पूछा।
" माँ ने "
तो अब सोच के बताओ , नौ महीने मेरे पेट में रही , दर्द हमको हुआ , दूध हमने पिलाया , और सब बिसरा के माँ नहीं बाउ जी ,... साफ़ साफ़ बोल, किसकी बेटी है माँ की या बाप की,... "
और अब गीता ने माँ को चिपका लिया और कान में बोली माँ की।

लेकिन माँ का एक सवाल बचा था , और उन्होंने वो पूछ लिया,
" और तीन साल पहले जो तुझे खून खच्चर चालू हुआ,... तो रोती घबड़ाती किसके पास आयी "
" माँ आप के पास " अब गीता एकदम माँ की गोद में आ गयी थी , ...
और माँ उसे समझा रही थी, सुन कुछ बातें ऐसी होती हैं , औरतों के तन मन की बात जो सिर्फ और सिर्फ औरतें ही समझ पाती हैं एक दूसरे से सुख दुःख कह पाती हैं,

लेकिन माँ को लगा बड़ी सीरियस बातें हो गयी और उन्होंने ट्रैक बदला
माँ ने अब छेड़ते हुए गीता के गाल पे चिकोटी काट के चिढ़ाया,
" समझी छिनरो, चूतमरानो ,.... तुम और तेरा भाई इसी कोख में से निकला है , इसलिए तुम दोनों सगे हो, बाप चाहे जो हो. और इसलिए, तेरा भाई अपनी बहन को चोद के बहन चोद है और तू अपने भाई से चुदवा चुदवा के पक्की भाईचोद हो। "
गीता भी तो उन्ही की बेटी थी, माँ को चूमते बोलीं,...
" हे मेरे भाई को कुछ मत बोलना, जल्द ही मादरचोद भी बन जायेगा, घबड़ा काहें रही है तू। "
माँ ने चुम्मी का जवाब और कस के गाल काटते बोला,
" उस स्साले, तेरे बहनचोद भाई की हिम्मत ही नहीं है, मादरचोद बनने की।"
" अरे इस का दीवाना है वो "
गीता ने माँ के आँचल को ढलकाते हुए कहा, ...
" मुझे मालूम है, .. जिस तरह से चोरी से छिप छिप के देखता है , कित्ती बार मैंने देखा है और उसका पजामे में खूंटा खड़ा हो जाता है , लेकिन स्साले की हिम्मत ही नहीं है सिवाय मेरी बेटी को चोदने की,... "
" अरे माँ, बेटी तुम्हारी है तुम पे गयी है , तुम भी तो कुंवारेपन में मामा से ही फड़वायी थी,... तो,…
लेकिन मेरा भाई देखिये जल्द ही बहनचोद से मादरचोद बनेगा , "
माँ ने बात बदलने की कोशिश की की मुंह से क्या निकल जाये और कहने लगी तू कह रही थी न जब तू पेट में आयी होली की रात तो उस दिन मेरी बड़ी रगड़ाई हुयी थी , लेकिन असली रगड़ाई तो एक साल पहले मायके की होली में हो चुकी थी। "
गीता ने उत्सुकता से पूछा और माँ ने शादी के बाद की दूसरी होली का जिक्र शुरू कर दिया था। पहली होली में तो वो सौरी में थी , छट्टी भी नहीं हुयी थी, बेटा हुआ था, इसलिए वो देवरों से बची रहीं। और दूसरी होली में रस्म के मुताबिक़ अपने मायके में थी,
और माँ ने शुरू किया होली का किस्सा
“" हे मेरे भाई को कुछ मत बोलना, जल्द ही मादरचोद भी बन जायेगा, घबड़ा काहें रही है तू। "
माँ ने चुम्मी का जवाब और कस के गाल काटते बोला,
" उस स्साले, तेरे बहनचोद भाई की हिम्मत ही नहीं है, मादरचोद बनने की।"
" अरे इस का दीवाना है वो "
गीता ने माँ के आँचल को ढलकाते हुए कहा, ...
" मुझे मालूम है, .. जिस तरह से चोरी से छिप छिप के देखता है , कित्ती बार मैंने देखा है और उसका पजामे में खूंटा खड़ा हो जाता है , लेकिन स्साले की हिम्मत ही नहीं है सिवाय मेरी बेटी को चोदने की,... "”
अरे लंड तो लगा ही दिया है चूचियों पर, अब गीतवा अपने भैया को मदर…. बनाने की विनती कर रही है कोमल जी से



