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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

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motaalund

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वाह री कोमलिया मान गए. बचपन के माल के राज़ खुलवा दिये. अपनी ही जवान बहेनिया की ब्रा मै खूब माल गिराई. क्या क्या कल्पना कर कर के हिला रहे होंगे. अच्छा हुआ तूने मिलन करवा दिया.
और उनकी रंडी बहेना भी सब जानती थी. उसे पता था की उसकी ब्रा की कटोरियों मै कौन मलाई भर रहा है. मलाई से भरी कटोरियों को सीने से लगाकर अपनी ब्रा पहेन लेती. और चली जाती कॉलेज. अशली रंडी नांदिया मिली है तुझे.

पर ये तो बिलकुल अशली वाले मदरचोद भी है. अपनी महतरी की ब्रा कच्छी भी नहीं छोडी. अशली रंडी ससुराल मिला है तुझे.

बुलवा भी दिया. भाभी तुम पहले आ गई होती तो कब से तुम्हारी सौतन बन गई होती. बिना ब्याहे ही पेट फूलवा के कई सारे जन दी होती. अरे ससुराल रंडियो का है तो बिना ब्याहे सब चलता है.

खीर की बुँदे बिलकुल सही जगह टिप टीपाई है. अशली खेला शुरू हो गया. देखा भौजी का आशीर्वाद. सादा रंडी पाना करो. अपने भैया से और सब के भाइयो से पेट फूलवाती रहो..


दिल कर रहा था. थोडा और कन्वजशन हो. बहोत माझा आ रहा था.

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अब भाई अपना खीर बहन के अंदर डालेगा....
 

motaalund

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जबरदस्त. मान गए. फुल इरोटिक मस्ती.

अपनी ननंद को उसके भईया अपने सैया के साथ देख कर अपनी पहली रात याद आ गई. सिर्फ रात ही नहीं. अगले कई दिन कई जगह याद आ गई. डाक्टर भाभी ने तो 4 महीने की छूट दे ही रखी थी. फिर वो गाना है ना.

सुबह से लेकर शाम तक. शाम से लेकर सुबह तक मुजे प्यार करो.

अरे नवेली दुल्हन को कोनसा दूल्हा छोड़ता है यार. उपर से कोमलिया. जिसकी कुंडली मे ही सितारे जडे हुए हो.

पर अपनी ननंद को लेकर तो माझा बड़ा ले रही हे. वो डालने को तरस रहे है. और नांदिया छिनार डलवाने को तरस रही है.

कुछ डायलॉग जबरदस्त जबरदस्त है. ऐसे वर्ड्स पढ़ने मे बड़ा माझा देते है.

1) इस लड़के ने मुझे पागल कर के रख दिया था, और रात क्यों दिन में,

2) हर बहन अपने भाई के पाजामे के अंदर के नाग को देखने के लिए छूने के लिए पकड़ने के लिए दीवानी रहती है।

3) क्यों भैया बहुत चोद रहे थे अपनी बहिनिया को न, अब बहन चोदेगी भाई को "

4) एकदम अब चल हम ननद भाभी मिल के इनकी रगड़ाई करते हैं, इस स्साले की माँ चोद देते हैं

(ननद को भी अपने पाले मे लिया. चोद दो साले की मैया. बड़ा चपर चपर करती है.)


वाह अपने सैया के पिछवाड़े से खिलवा रही थी. चक्कर मे तो कोमलिया उसके भईया से नांदिया के गोलकोंडा को खुलवाने को थी. पर अपना गोलकोंडा बचा नहीं पाई.

वाओ जबरदस्त इरोटिक अपडेट माझा आ गया.

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दोनों अपनी अपनी यादों में विचर रही हैं...
लेकिन भाई भी तो अपनी यादों का उदगार करे....
 
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motaalund

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उसके भईया के सामने नांदिया का मुँह तो खुलवाओ. उन्हें भी तो पता चले की उनकी बहेनिया ने कहा कहा मुँह मारा है. स्कूल के टीचर से चपरासी से भैया के दोस्त से. भाभी के भैया से.

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बहिनी के राज..
भाई का बहन के प्रति बचपन के अरमान ...
सब पता चलना चाहिए...
 
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motaalund

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हल्दी की रसम डाक्टर भौजी

" भौजी हँसते हुए बोलीं

“अरे मैं अपने लिए पूछ रही थी, हल्दी चुमावन सब रस्म होगी न, तो भौजाई हूँ तो जब हल्दी लगाउंगी, बिना ननद की चुनमुनिया में अच्छी तरह हल्दी पोते कहीं भौजाई की हल्दी की रस्म होती है। “



माँ को लग रहा था की डाकटर भौजी ऐसे ही, …जो इतनी बिजी हैं, सुबह से लेकर रात तक, दस दिन का अप्वाइंटमेंट मिलता है वो कहाँ गाँव वाली रस्म में

लेकिन डाक्टर भौजी आयीं न सिर्फ हल्दी और चुमावन में बल्कि माटी कोड़ने और बाकी रस्म में और रात में गाने में भी कई दिन सीधे क्लिनिक से,

हल्दी की रसम में भी मैं एक पियरी सिर्फ पहन के, कस के पकड़ के बैठी थी, पीछे नाउन की नयी नयी बहुरिया, मुझे पकड़ के, और सब भौजाई कोशिश तो कर ही रही थीं की हाथ पैर और गाल पे हल्दी लगाने क बाद साडी के अंदर हाथ डालने की, लेकिन मैं खूब कस के दबोच के बैठी थी, लेकिन डाक्टर भौजी तो,

गाल पर हल्दी लगाते हुए, मुझसे बोलीं, वो देख ऊपर कौन सी चिड़िया बैठी है, और जैसे ही मेरी नजर ऊपर, उनके हाथ साड़ी के अंदर दोनों जोबन पे और पूरी आधी कटोरी दोनों उभारों पर मलती बोलीं,

" छिनार, ननदोई से तो खूब हंस हंस के मिजवायेगी और हम भौजाइयों से छिपा रही है, यहाँ तो हल्दी लगाना सबसे जरूरी है।"


हल्दी के कुछ वीडियो मैंने प्रस्तुत किये ऊपर की दो पोस्टों में सिर्फ इस बात को बताने के लिए वो पुरानी परम्पराएं आंशिक रूप से ही सही जीवित है और रीत रिवाज निभाए भी जाते हैं

पहले जो रसम होती थी यानि करने का तरीका एक सामजिक मान्यता और परम्परा अब वह इवेंट में तब्दील हो गयी है और जो काम नाउन करती थी, घर की बुजुर्ग औरतें, बुआ और दादी करती थीं, भाभियाँ करती थी अब वह इवेंट मैनेजर करते हैं।

बस एक बात और इन वीडियों में एक बात और हम देख सकते हैं करीब करीब महिलाये ही हैं और असली बात है हल्दी पूरी देह पर लगनी चाहिए, और कुछ जगहों पर कैमरा भी थोड़ा सा लिहाज करता है यह दिखाते हुए की ये वॉयरिस्टिक डिलाइट नहीं है बल्कि रीत रिवाजों को जिन्दा रखने की एक भरपूर कोशिश है

हाँ लेकिन उसी में मजा भी छेड़छाड़ भी है, चिढ़ाना भी है और थोड़ा बहुत देह सुख भी, और फिर ननद भाभियाँ होगीं, ननद की हल्दी होगी तो भाभियाँ बिना छेड़े छोड़ेंगी थोड़े
गाँवो में तो फिर कुछ हद तक रस्में निभाई जाती है...
लेकिन ये सच है कि शहरों में अब ये एक इवेंट बन गया है..
 
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