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Adultery जब तक है जान

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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गजब का अपडेट भाई पिस्ता देने को तैयार है देव लेने को तैयार है तो साला दिक्कत कहां आ रही है चूत का चबूतरा बनाने में
बस जल्दी ही सेक्स वाला अपडेट लिखूँगा
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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मुश्किल है दिल के रिश्तों मे उलझना
Bilkul sahi kaha bhai, waise jis jis ne preet ki lau jalai hai, sala ant me kaleja hi jakhmi hota hai uska:verysad:
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Fir to badhiya hai, akelepan ko baatne me madad ho jaati hai👍
वो ग़ज़ब है यार. पर मैं अपनी खुशी के लिए उसकी गृहस्थी बर्बाद नहीं कर सकता. वैसे भी jaatni hai uske sath hi jeena hai
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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वो ग़ज़ब है यार. पर मैं अपनी खुशी के लिए उसकी गृहस्थी बर्बाद नहीं कर सकता. वैसे भी jaatni hai uske sath hi jeena hai
Bilkul sahi kaha aapne, prem ka matlab hi dena hai, leno ko to du iya padi hai😊 aur jaatni ji ke sath jeevan bita hi rahe ho , waise jatni Urvashi bhabhi ko hi bol rahe ho ya koi or ?
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Bilkul sahi kaha bhai, waise jis jis ne preet ki lau jalai hai, sala ant me kaleja hi jakhmi hota hai uska:verysad:
इश्क शर्तो पर नहीं होता भाई , इश्क में आप या तो इस पार होते है या उस पार. इश्क को साथ नहीं रखा जाता इश्क में जिया जाता है बस
Bilkul sahi kaha aapne, prem ka matlab hi dena hai, leno ko to du iya padi hai😊 aur jaatni ji ke sath jeevan bita hi rahe ho , waise jatni Urvashi bhabhi ko hi bol rahe ho ya koi or ?
वो ही है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#36

“ये ठीक नहीं देव” बोली नाज

“तो फिर क्या ठीक है ,क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं कर सकता ” मैंने कहा

नाज-प्यार नहीं है ये , हवस को प्यार का नाम कभी नहीं दिया जा सकता

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है फिर ये , करीब आने भी देती हो और रोक भी देती हो

नाज-तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हु

मैं- उफ्फ्फ ये खोखली बाते, बेवफाई भी ईमानदारी से करती हो

नाज- मैं सिर्फ अपने हक़ की बात करती हु

नाज ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ लिए और एक गहरा चुम्बन करने लगी. नाज की लिजलिजी जीभ मेरे मुह में घूम रही थी, अपनी जांघो के बीच मैंने लंड को फूलते हुए पाया और यक़ीनन नाज ने भी अपनी चूत पर उस दबाव को महसूस कर लिया होगा तभी वो उठ गयी मेरी गोद से .

नाज- अभी इतना ही ठीक है

मैं- ठीक है तुम पर दबाव नहीं डालूँगा पर एक बार मैं तुम्हारी चूत को देखना चाहता हु,

नाज- क्या तुम पर इतना विश्वास कर सकती हु मैं

मैं- अपनी बढ़ी धडकनों से पूछ लो

कुछ क्षण नाज मुझे देखती रही और फिर उसने अपना लहंगा ऊपर उठा दिया मेरे सामने ही उसने अपनी गुलाबी कच्छी उतारी और सोफे पर टाँगे खोल बैठ गयी . उफ्फ्फ क्या नजारा था . बुआ की चूत और नाज की चूत में बहुत फर्क था , नाज के गोरे रंग पर थोड़े लम्बे काले बाल , उसकी काली चूत पर चार चाँद लगा रहे थे . मैं सोफे के निचे बैठा अपने हाथो से नाज के पैरो को विपरीत दिशाओ में खोला और जी भर के उसकी चूत को देखने लगा. नाज की चूत की फांके गाढे द्रव से भीगी हुई थी ,जैसे ही मैंने अपना चेहरा नाज की चूत के पास ले गया , मेरी गर्म सांसो ने चूत के सोये अरमानो को चिंगारी दे दी.

“देव ” नाज कसमसाते हुए बोली

“बहुत प्यारी है तेरी चूत मासी , इसकी पप्पी लेना चाहता हु मैं ”

इससे पहले की नाज कुछ कहती मेरे होंठ चूत की फांको से टकरा चुके थे .

खुरदुरी जीभ ने चूत की मुलायम खाल को छुआ तो नाज के बदन का प्रत्येक तार हिल गया. मैंने मजबूती से उसकी जांघो पर पकड़ बनाई और नाज की चूत के दाने पर जीभ रगड़ने लगा.

“देव,” नाज अपनी अधखुली आँखों से बोली और मैं चूत चूसने लगा. नाज की गांड ऊपर होने लगी थी , ऊपर निचे करते हुए चेहरे को मैं नाज की चूत को चूस रहा था , फिर मैंने अपनी जीभ चूत के अन्दर डाली और चूत की फांको को चूसने लगा. अन्दर से बहते नमकीन रस की बूंदे मेरी जीभ पर लिपट रही थी , ना जाने कब ही नाज के दोनों हाथ मेरे सर पर आ गए और उसकी सिस्करिया कमरे में गूंजने लगी.
“दांत मत गडा ” बोली वो

जिन्दगी में पहली बार चूत चूस रहा था और यकीन मानो ये एक बहुत ही शानदार अनुभव था , मेरा मन था की मैं नाज की चूत को चूसता ही रहू पर ठीक तभी नाज का बदन अकड़ा और वो सोफे पर निढाल हो गयी . हल्के से उसकी जांघ की पप्पी लेने के बाद मैंने घाघरे को निचे किया और नाज के पास ही बैठ गया . कुछ देर बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं भी सोने की तयारी करने लगा. सुबह मुझे नाज को लेकर हॉस्पिटल जाना था , वहां पर काफी समय लगा आते आते लघभग शाम ही हो गयी थी . नहाने के बाद मैं चोबारे में गया बुआ वहां पर ही थी.


“कैसी हो बुआ ” मैंने कहा

वो- ठीक तू बता आजकल गायब ही रहने लगा है तू तो

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं . तुम्हे तो मालूम ही है की आजकल घर के क्या हालात चल रहे है तो इधर उधर ज्यादा हो रहा है अभी नहाया ही हु आकर

बुआ- सो तो है, न जाने कौन दुश्मन खड़ा हो गया है उम्मीद है की ये सब जल्दी ही खत्म हो जाये

मैं- देर सबेर हो ही जायेगा

कुछ देर बाते करने के बाद बुआ निचे चली गयी . मैं गाना सुनने के लिए रेडियो चला ही रहा था की टेबल पर पड़ी डॉक्टर की पर्ची पर नजर पड़ी, बुआ डॉक्टर से दवाई ले रही थी पर क्यों . लगती तो चंगी थी . इधर बाप हमारा गांड के घोड़े खोल कर भी अपने दुश्मन का पता नहीं कर पा रहा था मुनीम के न होने से बाप के धंधे पर भी फर्क पड़ रहा था. माँ के बताये कुछ काम करने के बाद मैं गाँव की तरफ चला गया . पिस्ता से मिलने की हसरत थी पर मिली नही वो . रात को फिर से नाज के घर सोया .


अगला दिन उम्मीद से ज्यादा हैरान करने वाला था , उठा तो नाज थी नहीं, मैं घर पहुंचा तो पाया की पिताजी गौर से अख़बार पढ़ रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और बोले- जा परमेश्वरी को बुला कर ला

मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ की बाप मुझे खुद पिस्ता के घर भेज रहा है .

“सुना नहीं क्या ” कहा उन्होंने

मैं मुड़ा ही था की माँ बोली- ये नहीं जायेगा, किसी और को भेज दो

माँ को भी अभी पंगा करना था ,

पिताजी- जा ना तू

मैं दौड़ते हुए पिस्ता के घर पहुंचा .

“काकी कहाँ है ”हांफते हुए पुछा मैंने पिस्ता से

“साँस तो ले ले पहले, कौन सी आफत आ गयी ऐसी ” उसने मेरे सीने पर हाथ रखते हुए कहा

मैं- पिताजी ने काकी को बुलाया है फ़ौरन

पिस्ता- क्यों, सब खैरियत तो है न

मैं- लग तो ठीक ही रहा था मुझे तो बस इतना कहा की काकी को बुला ला

पिस्ता- गाँव में गयी है आते ही भेजती हु

मैं अकेली है तू

पिस्ता- ना गाव मोजूद है सारे का सारा

मैंने आव देखा न ताव और पिस्ता को पकड़ लिया .

“छोड़ सुबह सुबह कौन करता है ये ” उसने कहा

मैं- माँ चुदाय दिन रात पप्पी तो लूँगा ही

पिस्ता- जबरदस्ती है क्या

मैं-हक ही मेरा

पिस्ता- हक़ हक़ कह कर मेरी गांड मार लेगा तू एक दिन , जा न दे रही पप्पी निकल यहाँ से

पिस्ता ने मुझे धक्का दिया और किवाड़ मूँद लिया

मैं- किवाड़ खोल दे नहीं

वो- जा ना

मैं- किवाड़ खोल दे छोरी

पिस्ता- चूतिये भाग जा यहाँ से.



उसने किवाड़ नहीं खोला मैं वापिस आ गया और पिताजी को बताया . नाज भी हमारे ही घर पर मोजूद थी .

“क्यों बुलाया है काकी को ” मैंने पुछा


नाज- पता नहीं

मैं चाय पिने ही लगा था की इतनी देर में काकी आ गयी उसने पिताजी के आगे हाथ जोड़े पिताजी ने उसे बैठने को कहा और मुझसे बोले- नाज के साथ खेतो पर चले जा .

बेमन से नाज के साथ मैं खेतो की तरफ चल पड़ा.
 
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Sanju@

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#35

कच्ची पगडण्डी से मैं चले जा रहा था की मैंने मुनीम की गाड़ी को खड़े पाया. इसे यहाँ नहीं होना चाहिए था , पर अगर गाडी जंगल में थी तो यकीनन मुनीम के साथ जो भी हुआ इधर ही हुआ होगा. मैंने पाया की गाड़ी के दरवाजे खुले थे , सीट पर खून था जो सूख गया था . देखने से ही लग रहा था की संघर्ष गाडी के अन्दर हुआ था .यानि हमला करने वाला और मुनीम एक दुसरे से परिचित थे. अनजान आदमी को कोई क्यों ही गाड़ी के अन्दर आने देगा. कोई तो खिचड़ी जरुर पक रही थी . पर सूत्रधार कौन था ये कैसे मालुम हो. गाडी में कोई खास सामान नहीं था पर एक लिफाफे ने मेरा ध्यान जरुर खींचा. लिफाफे में एक स्टाम्प पेपर था ,जिस पर कुछ भी नहीं लिखा था सिवाय चौधरी फूल सिंह के हस्ताक्षरों के .

खैर, मैं वापिस मुड गया माँ चुदाये मुनीम ये सोचते हुवे. नाज के घर के पास ही मुझे पिस्ता मिल गयी.

मैं- क्या कर रही है खाली रस्ते पर

पिस्ता- तेरी ही राह देख रही थी .

मैं- क्यों भला.

वो- दिल जो नहीं लगता मेरा तेरे बिना, खसम . रोक नहीं पाती मैं खुद को तेरे दीदार बिना .

मैं- तो किसने रोका है सरकार यही मैं हु यही तुम हो भर ले मुझे अपने आगोश में और गांड जला दे मोहल्ले की
पिस्ता आगे बढ़ी और तुरंत ही अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ बैठी, मैंने उसे अपने से चिपका लिया और मैं अपने हाथो को उसकी गांड को सहलाने से रोक नहीं पाया. अँधेरी रात में रस्ते के बीचोबीच अपनी सरकार संग चुम्बन गुस्ताखी की हद गाँव के ईमान की चौखट पर ठोकर मारने लगी थी .

“होंठ सुजा कर मानेगा क्या ” पिस्ता ने मुझे धक्का देते हुए कहा

मैं- अभी तो ठीक से पिए भी नहीं मैंने

पिस्ता- चूतिये, होंठ है मेरे कोई रूह अह्फ्ज़ा का शरबत नहीं.

मैं- बहन की लौड़ी, इतना मत इतरा जिस दिन तेरी चूत का रस पियूँगा उस दिन नंगी ना भागी तू तो कहना.

“हाय रे बेशरम,” उसने मेरे सीने में मुक्का मारा

मैं- बता क्या कर रही थी इधर . इतना भी ना हुआ हु मैं की तू इस तरह राह देखे मेरी

पिस्ता- समझ गया तू , अरे कुछ ना, माँ नाज चाची के यहाँ गयी थी मुनीम का हाल पूछने उसे ही बुलाने जा रही थी

मैं- मैं भी वही जा रहा था आजा साथ चलते है

पिस्ता- मेरे साथ चलेगा , कितनो की गांड जलेगी

मैं- गांड जला सकती है पर मुझे नहीं देनी

पिस्ता- मैं तो कबसे हूँ तैयार, पर तू लेता ही नहीं

मैं- देखो कौन बोल रहा है . आज तक दिखाई नहीं देगी क्या ख़ाक तू

पिस्ता- देखो नया नया आशिक लेने-देने की बात कर रहा है जिसे लेनी होती है न वो देखने की बात नहीं करते . जब लेगा तो देख तो लेगा ही न


मैं- रहने दे तेरे नाटक जानता हु

पिस्ता- अच्छा जी , हमें ही देनी और हमारे ही नाटक

चुहलबाजी करते हुए हम नाज के घर आ गए. पिस्ता अन्दर चली गयी मैं हाथ-मुह धोने लगा. अन्दर जाके मैंने नाज से मेरी पीठ पर दवाई लगाने को कहा .

“मैं लगा देती हु , ” पिस्ता ने नाज से दवाई ले ली और मेरी पीठ पर लगाने लगी. मैंने पाया की नाज की नजरे मुआयना कर रही थी मेरी . खैर पिस्ता और उसकी माँ के जाने के बाद मैं बिस्तर लगा रहा था की नाज दूध ले आई.

“आजकल चर्चे हो रहे है तुम्हारे ” उसने कहा

मैं- किसलिए भला

नाज- लड़का इश्क जो करते फिर रहा है गलियों में

मैं- बढ़िया है फिर तो . वैसे भी वो इश्क ही क्या जिसमे चर्चे ना हो

नाज- आग से खेल रहे हो तुम. वैसे भी जिसके चक्करों में पड़े हो वो लड़की अच्छी नहीं

मैं- क्या अच्छा क्या बुआ मासी . तुम, मेरे मा बाप. ये गाँव- मोहल्ला ये दुनिया कोई भी नहीं समझ पायेगा ना उसे ना मुझे. हम लोग बस दोस्त है , समझते है एक दुसरे को बात करते है एकदूसरे से. इसके सिवाय कोई पाप नहीं हमारा. हाँ गलती तो हुई है , पर गलती ये नहीं की हमने एक दुसरे का साथ किया. गलती ये है की उसने एक लड़की होकर एक लड़के से दोस्ती की है वो भी समाज को जुती की नोक पर रख कर. गाँव- बसती को हमारी दोस्ती से दिक्कत नहीं है दिक्कत है की हमने समाज की शान में गुस्ताखी की है , और फिर हम अकेले ही तो गलत नहीं . ऐसी गलतिया तो गाँव में बहुत लोग कर रहे है , माना मैं गलत हूँ पिस्ता गलत है तो तुम भी तो गलत हो न मासी .


नाज- काश मैं इतनी दिलेर होती की बेशर्मी से अपनी गलतिया यु कबूल पाती .

मैं- बेशर्मी , किस बेशर्मी की बात करती हो मासी. मैं तुम्हे गलत नहीं ठहरा रहा खास कर उस बात के लिए जब मैंने तुम्हे चुदते देखा था . वो तुम्हारी जिन्दगी है और सबको अपनी जिन्दगी जीने का पूरा अधिकार है . तुम्हारी चूत किसे देनी किसे नहीं देनी ये तुम्हारी मर्जी होनी चाहिए

मैंने चूत शब्द पर कुछ ज्यादा जोर दिया इतना की नाज के गाल सुर्ख हो गए.

“ मासी के सामने सीधे बोलता है ऐसे शब्द ” नाज ने कहा

मैं- मासी है ही इतनी प्यारी की मैं सोचता हु मासी की चूत कितनी प्यारी होगी .

नाज- चुप कर जा मारूंगी नहीं तो

मैं- मार लो पर मार लेने दो

नाज मेरी इस बात पर हंस पड़ी .

“बदमाश है तू बहुत ” उसने मेरे सर पर चपत मारी और मैंने उसका हाथ पकड़ अपनी गोद में खींच लिया

“मत करो देव ” उसने हौले से कहा

मैं- इतना तो हक़ दो मुझे .

“मासी हु तेरी ” उसने कहा

मैं- तभी तो हक माँगा, कोई और होती न जाने क्या कर देता

मैंने नाज के चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसके सुर्ख होंठो पर अपने लब चिपका दिए. कुछ देर पहले ही मैंने पिस्ता को चूमा था और एक लम्हा नहीं लगा मुझे ये समझने में की नाज में कुछ अलग ही बात थी . मेरी गोदी में बैठी नाज ने मुझे पूरी शिद्दत से आजादी दी उसके लबो को चूमने में . लिपस्टिक का हल्का स्वाद मुझे अपनी सांसो में घुलते हुए महसूस हो रहा था . मैंने नाज की मांसल जांघ को घाघरे के ऊपर से ही दबाया की उसने मेरा हाथ पकड़ लिया......................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
 

Rekha rani

Well-Known Member
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#36

“ये ठीक नहीं देव” बोली नाज

“तो फिर क्या ठीक है ,क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं कर सकता ” मैंने कहा

नाज-प्यार नहीं है ये , हवस को प्यार का नाम कभी नहीं दिया जा सकता

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है फिर ये , करीब आने भी देती हो और रोक भी देती हो

नाज-तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हु

मैं- उफ्फ्फ ये खोखली बाते, बेवफाई भी ईमानदारी से करती हो

नाज- मैं सिर्फ अपने हक़ की बात करती हु

नाज ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ लिए और एक गहरा चुम्बन करने लगी. नाज की लिजलिजी जीभ मेरे मुह में घूम रही थी, अपनी जांघो के बीच मैंने लंड को फूलते हुए पाया और यक़ीनन नाज ने भी अपनी चूत पर उस दबाव को महसूस कर लिया होगा तभी वो उठ गयी मेरी गोद से .

नाज- अभी इतना ही ठीक है

मैं- ठीक है तुम पर दबाव नहीं डालूँगा पर एक बार मैं तुम्हारी चूत को देखना चाहता हु,

नाज- क्या तुम पर इतना विश्वास कर सकती हु मैं

मैं- अपनी बढ़ी धडकनों से पूछ लो

कुछ क्षण नाज मुझे देखती रही और फिर उसने अपना लहंगा ऊपर उठा दिया मेरे सामने ही उसने अपनी गुलाबी कच्छी उतारी और सोफे पर टाँगे खोल बैठ गयी . उफ्फ्फ क्या नजारा था . बुआ की चूत और नाज की चूत में बहुत फर्क था , नाज के गोरे रंग पर थोड़े लम्बे काले बाल , उसकी काली चूत पर चार चाँद लगा रहे थे . मैं सोफे के निचे बैठा अपने हाथो से नाज के पैरो को विपरीत दिशाओ में खोला और जी भर के उसकी चूत को देखने लगा. नाज की चूत की फांके गाढे द्रव से भीगी हुई थी ,जैसे ही मैंने अपना चेहरा नाज की चूत के पास ले गया , मेरी गर्म सांसो ने चूत के सोये अरमानो को चिंगारी दे दी.

“देव ” नाज कसमसाते हुए बोली

“बहुत प्यारी है तेरी चूत मासी , इसकी पप्पी लेना चाहता हु मैं ”

इससे पहले की नाज कुछ कहती मेरे होंठ चूत की फांको से टकरा चुके थे .

खुरदुरी जीभ ने चूत की मुलायम खाल को छुआ तो नाज के बदन का प्रत्येक तार हिल गया. मैंने मजबूती से उसकी जांघो पर पकड़ बनाई और नाज की चूत के दाने पर जीभ रगड़ने लगा.

“देव,” नाज अपनी अधखुली आँखों से बोली और मैं चूत चूसने लगा. नाज की गांड ऊपर होने लगी थी , ऊपर निचे करते हुए चेहरे को मैं नाज की चूत को चूस रहा था , फिर मैंने अपनी जीभ चूत के अन्दर डाली और चूत की फांको को चूसने लगा. अन्दर से बहते नमकीन रस की बूंदे मेरी जीभ पर लिपट रही थी , ना जाने कब ही नाज के दोनों हाथ मेरे सर पर आ गए और उसकी सिस्करिया कमरे में गूंजने लगी.
“दांत मत गडा ” बोली वो


जिन्दगी में पहली बार चूत चूस रहा था और यकीन मानो ये एक बहुत ही शानदार अनुभव था , मेरा मन था की मैं नाज की चूत को चूसता ही रहू पर ठीक तभी नाज का बदन अकड़ा और वो सोफे पर निढाल हो गयी . हल्के से उसकी जांघ की पप्पी लेने के बाद मैंने घाघरे को निचे किया और नाज के पास ही बैठ गया . कुछ देर बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं भी सोने की तयारी करने लगा. सुबह मुझे नाज को लेकर हॉस्पिटल जाना था , वहां पर काफी समय लगा आते आते लघभग शाम ही हो गयी थी . नहाने के बाद मैं चोबारे में गया बुआ वहां पर ही थी.

“कैसी हो बुआ ” मैंने कहा

वो- ठीक तू बता आजकल गायब ही रहने लगा है तू तो

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं . तुम्हे तो मालूम ही है की आजकल घर के क्या हालात चल रहे है तो इधर उधर ज्यादा हो रहा है अभी नहाया ही हु आकर

बुआ- सो तो है, न जाने कौन दुश्मन खड़ा हो गया है उम्मीद है की ये सब जल्दी ही खत्म हो जाये

मैं- देर सबेर हो ही जायेगा

कुछ देर बाते करने के बाद बुआ निचे चली गयी . मैं गाना सुनने के लिए रेडियो चला ही रहा था की टेबल पर पड़ी डॉक्टर की पर्ची पर नजर पड़ी, बुआ डॉक्टर से दवाई ले रही थी पर क्यों . लगती तो चंगी थी . इधर बाप हमारा गांड के घोड़े खोल कर भी अपने दुश्मन का पता नहीं कर पा रहा था मुनीम के न होने से बाप के धंधे पर भी फर्क पड़ रहा था. माँ के बताये कुछ काम करने के बाद मैं गाँव की तरफ चला गया . पिस्ता से मिलने की हसरत थी पर मिली नही वो . रात को फिर से नाज के घर सोया .

अगला दिन उम्मीद से ज्यादा हैरान करने वाला था , उठा तो नाज थी नहीं, मैं घर पहुंचा तो पाया की पिताजी गौर से अख़बार पढ़ रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और बोले- जा परमेश्वरी को बुला कर ला

मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ की बाप मुझे खुद पिस्ता के घर भेज रहा है .

“सुना नहीं क्या ” कहा उन्होंने

मैं मुड़ा ही था की माँ बोली- ये नहीं जायेगा, किसी और को भेज दो

माँ को भी अभी पंगा करना था ,

पिताजी- जा ना तू

मैं दौड़ते हुए पिस्ता के घर पहुंचा .

“काकी कहाँ है ”हांफते हुए पुछा मैंने पिस्ता से

“साँस तो ले ले पहले, कौन सी आफत आ गयी ऐसी ” उसने मेरे सीने पर हाथ रखते हुए कहा

मैं- पिताजी ने काकी को बुलाया है फ़ौरन

पिस्ता- क्यों, सब खैरियत तो है न

मैं- लग तो ठीक ही रहा था मुझे तो बस इतना कहा की काकी को बुला ला

पिस्ता- गाँव में गयी है आते ही भेजती हु

मैं अकेली है तू

पिस्ता- ना गाव मोजूद है सारे का सारा

मैंने आव देखा न ताव और पिस्ता को पकड़ लिया .

“छोड़ सुबह सुबह कौन करता है ये ” उसने कहा

मैं- माँ चुदाय दिन रात पप्पी तो लूँगा ही

पिस्ता- जबरदस्ती है क्या

मैं-हक ही मेरा

पिस्ता- हक़ हक़ कह कर मेरी गांड मार लेगा तू एक दिन , जा न दे रही पप्पी निकल यहाँ से

पिस्ता ने मुझे धक्का दिया और किवाड़ मूँद लिया

मैं- किवाड़ खोल दे नहीं

वो- जा ना

मैं- किवाड़ खोल दे छोरी

पिस्ता- चूतिये भाग जा यहाँ से.


उसने किवाड़ नहीं खोला मैं वापिस आ गया और पिताजी को बताया . नाज भी हमारे ही घर पर मोजूद थी .

“क्यों बुलाया है काकी को ” मैंने पुछा


नाज- पता नहीं

मैं चाय पिने ही लगा था की इतनी देर में काकी आ गयी उसने पिताजी के आगे हाथ जोड़े पिताजी ने उसे बैठने को कहा और मुझसे बोले- नाज के साथ खेतो पर चले जा .

बेमन से नाज के साथ मैं खेतो की तरफ चल पड़ा.
Superb update
 
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