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Adultery जब तक है जान

park

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#36

“ये ठीक नहीं देव” बोली नाज

“तो फिर क्या ठीक है ,क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं कर सकता ” मैंने कहा

नाज-प्यार नहीं है ये , हवस को प्यार का नाम कभी नहीं दिया जा सकता

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है फिर ये , करीब आने भी देती हो और रोक भी देती हो

नाज-तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हु

मैं- उफ्फ्फ ये खोखली बाते, बेवफाई भी ईमानदारी से करती हो

नाज- मैं सिर्फ अपने हक़ की बात करती हु

नाज ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ लिए और एक गहरा चुम्बन करने लगी. नाज की लिजलिजी जीभ मेरे मुह में घूम रही थी, अपनी जांघो के बीच मैंने लंड को फूलते हुए पाया और यक़ीनन नाज ने भी अपनी चूत पर उस दबाव को महसूस कर लिया होगा तभी वो उठ गयी मेरी गोद से .

नाज- अभी इतना ही ठीक है

मैं- ठीक है तुम पर दबाव नहीं डालूँगा पर एक बार मैं तुम्हारी चूत को देखना चाहता हु,

नाज- क्या तुम पर इतना विश्वास कर सकती हु मैं

मैं- अपनी बढ़ी धडकनों से पूछ लो

कुछ क्षण नाज मुझे देखती रही और फिर उसने अपना लहंगा ऊपर उठा दिया मेरे सामने ही उसने अपनी गुलाबी कच्छी उतारी और सोफे पर टाँगे खोल बैठ गयी . उफ्फ्फ क्या नजारा था . बुआ की चूत और नाज की चूत में बहुत फर्क था , नाज के गोरे रंग पर थोड़े लम्बे काले बाल , उसकी काली चूत पर चार चाँद लगा रहे थे . मैं सोफे के निचे बैठा अपने हाथो से नाज के पैरो को विपरीत दिशाओ में खोला और जी भर के उसकी चूत को देखने लगा. नाज की चूत की फांके गाढे द्रव से भीगी हुई थी ,जैसे ही मैंने अपना चेहरा नाज की चूत के पास ले गया , मेरी गर्म सांसो ने चूत के सोये अरमानो को चिंगारी दे दी.

“देव ” नाज कसमसाते हुए बोली

“बहुत प्यारी है तेरी चूत मासी , इसकी पप्पी लेना चाहता हु मैं ”

इससे पहले की नाज कुछ कहती मेरे होंठ चूत की फांको से टकरा चुके थे .

खुरदुरी जीभ ने चूत की मुलायम खाल को छुआ तो नाज के बदन का प्रत्येक तार हिल गया. मैंने मजबूती से उसकी जांघो पर पकड़ बनाई और नाज की चूत के दाने पर जीभ रगड़ने लगा.

“देव,” नाज अपनी अधखुली आँखों से बोली और मैं चूत चूसने लगा. नाज की गांड ऊपर होने लगी थी , ऊपर निचे करते हुए चेहरे को मैं नाज की चूत को चूस रहा था , फिर मैंने अपनी जीभ चूत के अन्दर डाली और चूत की फांको को चूसने लगा. अन्दर से बहते नमकीन रस की बूंदे मेरी जीभ पर लिपट रही थी , ना जाने कब ही नाज के दोनों हाथ मेरे सर पर आ गए और उसकी सिस्करिया कमरे में गूंजने लगी.
“दांत मत गडा ” बोली वो

जिन्दगी में पहली बार चूत चूस रहा था और यकीन मानो ये एक बहुत ही शानदार अनुभव था , मेरा मन था की मैं नाज की चूत को चूसता ही रहू पर ठीक तभी नाज का बदन अकड़ा और वो सोफे पर निढाल हो गयी . हल्के से उसकी जांघ की पप्पी लेने के बाद मैंने घाघरे को निचे किया और नाज के पास ही बैठ गया . कुछ देर बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं भी सोने की तयारी करने लगा. सुबह मुझे नाज को लेकर हॉस्पिटल जाना था , वहां पर काफी समय लगा आते आते लघभग शाम ही हो गयी थी . नहाने के बाद मैं चोबारे में गया बुआ वहां पर ही थी.


“कैसी हो बुआ ” मैंने कहा

वो- ठीक तू बता आजकल गायब ही रहने लगा है तू तो

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं . तुम्हे तो मालूम ही है की आजकल घर के क्या हालात चल रहे है तो इधर उधर ज्यादा हो रहा है अभी नहाया ही हु आकर

बुआ- सो तो है, न जाने कौन दुश्मन खड़ा हो गया है उम्मीद है की ये सब जल्दी ही खत्म हो जाये

मैं- देर सबेर हो ही जायेगा

कुछ देर बाते करने के बाद बुआ निचे चली गयी . मैं गाना सुनने के लिए रेडियो चला ही रहा था की टेबल पर पड़ी डॉक्टर की पर्ची पर नजर पड़ी, बुआ डॉक्टर से दवाई ले रही थी पर क्यों . लगती तो चंगी थी . इधर बाप हमारा गांड के घोड़े खोल कर भी अपने दुश्मन का पता नहीं कर पा रहा था मुनीम के न होने से बाप के धंधे पर भी फर्क पड़ रहा था. माँ के बताये कुछ काम करने के बाद मैं गाँव की तरफ चला गया . पिस्ता से मिलने की हसरत थी पर मिली नही वो . रात को फिर से नाज के घर सोया .


अगला दिन उम्मीद से ज्यादा हैरान करने वाला था , उठा तो नाज थी नहीं, मैं घर पहुंचा तो पाया की पिताजी गौर से अख़बार पढ़ रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और बोले- जा परमेश्वरी को बुला कर ला

मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ की बाप मुझे खुद पिस्ता के घर भेज रहा है .

“सुना नहीं क्या ” कहा उन्होंने

मैं मुड़ा ही था की माँ बोली- ये नहीं जायेगा, किसी और को भेज दो

माँ को भी अभी पंगा करना था ,

पिताजी- जा ना तू

मैं दौड़ते हुए पिस्ता के घर पहुंचा .

“काकी कहाँ है ”हांफते हुए पुछा मैंने पिस्ता से

“साँस तो ले ले पहले, कौन सी आफत आ गयी ऐसी ” उसने मेरे सीने पर हाथ रखते हुए कहा

मैं- पिताजी ने काकी को बुलाया है फ़ौरन

पिस्ता- क्यों, सब खैरियत तो है न

मैं- लग तो ठीक ही रहा था मुझे तो बस इतना कहा की काकी को बुला ला

पिस्ता- गाँव में गयी है आते ही भेजती हु

मैं अकेली है तू


पिस्ता- ना गाव मोजूद है सारे का सारा

मैंने आव देखा न ताव और पिस्ता को पकड़ लिया .

“छोड़ सुबह सुबह कौन करता है ये ” उसने कहा

मैं- माँ चुदाय दिन रात पप्पी तो लूँगा ही

पिस्ता- जबरदस्ती है क्या

मैं-हक ही मेरा

पिस्ता- हक़ हक़ कह कर मेरी गांड मार लेगा तू एक दिन , जा न दे रही पप्पी निकल यहाँ से

पिस्ता ने मुझे धक्का दिया और किवाड़ मूँद लिया

मैं- किवाड़ खोल दे नहीं

वो- जा ना

मैं- किवाड़ खोल दे छोरी

पिस्ता- चूतिये भाग जा यहाँ से.



उसने किवाड़ नहीं खोला मैं वापिस आ गया और पिताजी को बताया . नाज भी हमारे ही घर पर मोजूद थी .

“क्यों बुलाया है काकी को ” मैंने पुछा


नाज- पता नहीं

मैं चाय पिने ही लगा था की इतनी देर में काकी आ गयी उसने पिताजी के आगे हाथ जोड़े पिताजी ने उसे बैठने को कहा और मुझसे बोले- नाज के साथ खेतो पर चले जा .

बेमन से नाज के साथ मैं खेतो की तरफ चल पड़ा.
Nice and superb update....
 

Napster

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“ये ठीक नहीं देव” बोली नाज

“तो फिर क्या ठीक है ,क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं कर सकता ” मैंने कहा

नाज-प्यार नहीं है ये , हवस को प्यार का नाम कभी नहीं दिया जा सकता

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है फिर ये , करीब आने भी देती हो और रोक भी देती हो

नाज-तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हु

मैं- उफ्फ्फ ये खोखली बाते, बेवफाई भी ईमानदारी से करती हो

नाज- मैं सिर्फ अपने हक़ की बात करती हु

नाज ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ लिए और एक गहरा चुम्बन करने लगी. नाज की लिजलिजी जीभ मेरे मुह में घूम रही थी, अपनी जांघो के बीच मैंने लंड को फूलते हुए पाया और यक़ीनन नाज ने भी अपनी चूत पर उस दबाव को महसूस कर लिया होगा तभी वो उठ गयी मेरी गोद से .

नाज- अभी इतना ही ठीक है

मैं- ठीक है तुम पर दबाव नहीं डालूँगा पर एक बार मैं तुम्हारी चूत को देखना चाहता हु,

नाज- क्या तुम पर इतना विश्वास कर सकती हु मैं

मैं- अपनी बढ़ी धडकनों से पूछ लो

कुछ क्षण नाज मुझे देखती रही और फिर उसने अपना लहंगा ऊपर उठा दिया मेरे सामने ही उसने अपनी गुलाबी कच्छी उतारी और सोफे पर टाँगे खोल बैठ गयी . उफ्फ्फ क्या नजारा था . बुआ की चूत और नाज की चूत में बहुत फर्क था , नाज के गोरे रंग पर थोड़े लम्बे काले बाल , उसकी काली चूत पर चार चाँद लगा रहे थे . मैं सोफे के निचे बैठा अपने हाथो से नाज के पैरो को विपरीत दिशाओ में खोला और जी भर के उसकी चूत को देखने लगा. नाज की चूत की फांके गाढे द्रव से भीगी हुई थी ,जैसे ही मैंने अपना चेहरा नाज की चूत के पास ले गया , मेरी गर्म सांसो ने चूत के सोये अरमानो को चिंगारी दे दी.

“देव ” नाज कसमसाते हुए बोली

“बहुत प्यारी है तेरी चूत मासी , इसकी पप्पी लेना चाहता हु मैं ”

इससे पहले की नाज कुछ कहती मेरे होंठ चूत की फांको से टकरा चुके थे .

खुरदुरी जीभ ने चूत की मुलायम खाल को छुआ तो नाज के बदन का प्रत्येक तार हिल गया. मैंने मजबूती से उसकी जांघो पर पकड़ बनाई और नाज की चूत के दाने पर जीभ रगड़ने लगा.

“देव,” नाज अपनी अधखुली आँखों से बोली और मैं चूत चूसने लगा. नाज की गांड ऊपर होने लगी थी , ऊपर निचे करते हुए चेहरे को मैं नाज की चूत को चूस रहा था , फिर मैंने अपनी जीभ चूत के अन्दर डाली और चूत की फांको को चूसने लगा. अन्दर से बहते नमकीन रस की बूंदे मेरी जीभ पर लिपट रही थी , ना जाने कब ही नाज के दोनों हाथ मेरे सर पर आ गए और उसकी सिस्करिया कमरे में गूंजने लगी.
“दांत मत गडा ” बोली वो

जिन्दगी में पहली बार चूत चूस रहा था और यकीन मानो ये एक बहुत ही शानदार अनुभव था , मेरा मन था की मैं नाज की चूत को चूसता ही रहू पर ठीक तभी नाज का बदन अकड़ा और वो सोफे पर निढाल हो गयी . हल्के से उसकी जांघ की पप्पी लेने के बाद मैंने घाघरे को निचे किया और नाज के पास ही बैठ गया . कुछ देर बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं भी सोने की तयारी करने लगा. सुबह मुझे नाज को लेकर हॉस्पिटल जाना था , वहां पर काफी समय लगा आते आते लघभग शाम ही हो गयी थी . नहाने के बाद मैं चोबारे में गया बुआ वहां पर ही थी.


“कैसी हो बुआ ” मैंने कहा

वो- ठीक तू बता आजकल गायब ही रहने लगा है तू तो

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं . तुम्हे तो मालूम ही है की आजकल घर के क्या हालात चल रहे है तो इधर उधर ज्यादा हो रहा है अभी नहाया ही हु आकर

बुआ- सो तो है, न जाने कौन दुश्मन खड़ा हो गया है उम्मीद है की ये सब जल्दी ही खत्म हो जाये

मैं- देर सबेर हो ही जायेगा

कुछ देर बाते करने के बाद बुआ निचे चली गयी . मैं गाना सुनने के लिए रेडियो चला ही रहा था की टेबल पर पड़ी डॉक्टर की पर्ची पर नजर पड़ी, बुआ डॉक्टर से दवाई ले रही थी पर क्यों . लगती तो चंगी थी . इधर बाप हमारा गांड के घोड़े खोल कर भी अपने दुश्मन का पता नहीं कर पा रहा था मुनीम के न होने से बाप के धंधे पर भी फर्क पड़ रहा था. माँ के बताये कुछ काम करने के बाद मैं गाँव की तरफ चला गया . पिस्ता से मिलने की हसरत थी पर मिली नही वो . रात को फिर से नाज के घर सोया .


अगला दिन उम्मीद से ज्यादा हैरान करने वाला था , उठा तो नाज थी नहीं, मैं घर पहुंचा तो पाया की पिताजी गौर से अख़बार पढ़ रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और बोले- जा परमेश्वरी को बुला कर ला

मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ की बाप मुझे खुद पिस्ता के घर भेज रहा है .

“सुना नहीं क्या ” कहा उन्होंने

मैं मुड़ा ही था की माँ बोली- ये नहीं जायेगा, किसी और को भेज दो

माँ को भी अभी पंगा करना था ,

पिताजी- जा ना तू

मैं दौड़ते हुए पिस्ता के घर पहुंचा .

“काकी कहाँ है ”हांफते हुए पुछा मैंने पिस्ता से

“साँस तो ले ले पहले, कौन सी आफत आ गयी ऐसी ” उसने मेरे सीने पर हाथ रखते हुए कहा

मैं- पिताजी ने काकी को बुलाया है फ़ौरन

पिस्ता- क्यों, सब खैरियत तो है न

मैं- लग तो ठीक ही रहा था मुझे तो बस इतना कहा की काकी को बुला ला

पिस्ता- गाँव में गयी है आते ही भेजती हु

मैं अकेली है तू


पिस्ता- ना गाव मोजूद है सारे का सारा

मैंने आव देखा न ताव और पिस्ता को पकड़ लिया .

“छोड़ सुबह सुबह कौन करता है ये ” उसने कहा

मैं- माँ चुदाय दिन रात पप्पी तो लूँगा ही

पिस्ता- जबरदस्ती है क्या

मैं-हक ही मेरा

पिस्ता- हक़ हक़ कह कर मेरी गांड मार लेगा तू एक दिन , जा न दे रही पप्पी निकल यहाँ से

पिस्ता ने मुझे धक्का दिया और किवाड़ मूँद लिया

मैं- किवाड़ खोल दे नहीं

वो- जा ना

मैं- किवाड़ खोल दे छोरी

पिस्ता- चूतिये भाग जा यहाँ से.



उसने किवाड़ नहीं खोला मैं वापिस आ गया और पिताजी को बताया . नाज भी हमारे ही घर पर मोजूद थी .

“क्यों बुलाया है काकी को ” मैंने पुछा


नाज- पता नहीं

मैं चाय पिने ही लगा था की इतनी देर में काकी आ गयी उसने पिताजी के आगे हाथ जोड़े पिताजी ने उसे बैठने को कहा और मुझसे बोले- नाज के साथ खेतो पर चले जा .

बेमन से नाज के साथ मैं खेतो की तरफ चल पड़ा.
बहुत ही मस्त और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Sanju@

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“ये ठीक नहीं देव” बोली नाज

“तो फिर क्या ठीक है ,क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं कर सकता ” मैंने कहा

नाज-प्यार नहीं है ये , हवस को प्यार का नाम कभी नहीं दिया जा सकता

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है फिर ये , करीब आने भी देती हो और रोक भी देती हो

नाज-तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हु

मैं- उफ्फ्फ ये खोखली बाते, बेवफाई भी ईमानदारी से करती हो

नाज- मैं सिर्फ अपने हक़ की बात करती हु

नाज ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ लिए और एक गहरा चुम्बन करने लगी. नाज की लिजलिजी जीभ मेरे मुह में घूम रही थी, अपनी जांघो के बीच मैंने लंड को फूलते हुए पाया और यक़ीनन नाज ने भी अपनी चूत पर उस दबाव को महसूस कर लिया होगा तभी वो उठ गयी मेरी गोद से .

नाज- अभी इतना ही ठीक है

मैं- ठीक है तुम पर दबाव नहीं डालूँगा पर एक बार मैं तुम्हारी चूत को देखना चाहता हु,

नाज- क्या तुम पर इतना विश्वास कर सकती हु मैं

मैं- अपनी बढ़ी धडकनों से पूछ लो

कुछ क्षण नाज मुझे देखती रही और फिर उसने अपना लहंगा ऊपर उठा दिया मेरे सामने ही उसने अपनी गुलाबी कच्छी उतारी और सोफे पर टाँगे खोल बैठ गयी . उफ्फ्फ क्या नजारा था . बुआ की चूत और नाज की चूत में बहुत फर्क था , नाज के गोरे रंग पर थोड़े लम्बे काले बाल , उसकी काली चूत पर चार चाँद लगा रहे थे . मैं सोफे के निचे बैठा अपने हाथो से नाज के पैरो को विपरीत दिशाओ में खोला और जी भर के उसकी चूत को देखने लगा. नाज की चूत की फांके गाढे द्रव से भीगी हुई थी ,जैसे ही मैंने अपना चेहरा नाज की चूत के पास ले गया , मेरी गर्म सांसो ने चूत के सोये अरमानो को चिंगारी दे दी.

“देव ” नाज कसमसाते हुए बोली

“बहुत प्यारी है तेरी चूत मासी , इसकी पप्पी लेना चाहता हु मैं ”

इससे पहले की नाज कुछ कहती मेरे होंठ चूत की फांको से टकरा चुके थे .

खुरदुरी जीभ ने चूत की मुलायम खाल को छुआ तो नाज के बदन का प्रत्येक तार हिल गया. मैंने मजबूती से उसकी जांघो पर पकड़ बनाई और नाज की चूत के दाने पर जीभ रगड़ने लगा.

“देव,” नाज अपनी अधखुली आँखों से बोली और मैं चूत चूसने लगा. नाज की गांड ऊपर होने लगी थी , ऊपर निचे करते हुए चेहरे को मैं नाज की चूत को चूस रहा था , फिर मैंने अपनी जीभ चूत के अन्दर डाली और चूत की फांको को चूसने लगा. अन्दर से बहते नमकीन रस की बूंदे मेरी जीभ पर लिपट रही थी , ना जाने कब ही नाज के दोनों हाथ मेरे सर पर आ गए और उसकी सिस्करिया कमरे में गूंजने लगी.
“दांत मत गडा ” बोली वो

जिन्दगी में पहली बार चूत चूस रहा था और यकीन मानो ये एक बहुत ही शानदार अनुभव था , मेरा मन था की मैं नाज की चूत को चूसता ही रहू पर ठीक तभी नाज का बदन अकड़ा और वो सोफे पर निढाल हो गयी . हल्के से उसकी जांघ की पप्पी लेने के बाद मैंने घाघरे को निचे किया और नाज के पास ही बैठ गया . कुछ देर बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं भी सोने की तयारी करने लगा. सुबह मुझे नाज को लेकर हॉस्पिटल जाना था , वहां पर काफी समय लगा आते आते लघभग शाम ही हो गयी थी . नहाने के बाद मैं चोबारे में गया बुआ वहां पर ही थी.


“कैसी हो बुआ ” मैंने कहा

वो- ठीक तू बता आजकल गायब ही रहने लगा है तू तो

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं . तुम्हे तो मालूम ही है की आजकल घर के क्या हालात चल रहे है तो इधर उधर ज्यादा हो रहा है अभी नहाया ही हु आकर

बुआ- सो तो है, न जाने कौन दुश्मन खड़ा हो गया है उम्मीद है की ये सब जल्दी ही खत्म हो जाये

मैं- देर सबेर हो ही जायेगा

कुछ देर बाते करने के बाद बुआ निचे चली गयी . मैं गाना सुनने के लिए रेडियो चला ही रहा था की टेबल पर पड़ी डॉक्टर की पर्ची पर नजर पड़ी, बुआ डॉक्टर से दवाई ले रही थी पर क्यों . लगती तो चंगी थी . इधर बाप हमारा गांड के घोड़े खोल कर भी अपने दुश्मन का पता नहीं कर पा रहा था मुनीम के न होने से बाप के धंधे पर भी फर्क पड़ रहा था. माँ के बताये कुछ काम करने के बाद मैं गाँव की तरफ चला गया . पिस्ता से मिलने की हसरत थी पर मिली नही वो . रात को फिर से नाज के घर सोया .


अगला दिन उम्मीद से ज्यादा हैरान करने वाला था , उठा तो नाज थी नहीं, मैं घर पहुंचा तो पाया की पिताजी गौर से अख़बार पढ़ रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और बोले- जा परमेश्वरी को बुला कर ला

मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ की बाप मुझे खुद पिस्ता के घर भेज रहा है .

“सुना नहीं क्या ” कहा उन्होंने

मैं मुड़ा ही था की माँ बोली- ये नहीं जायेगा, किसी और को भेज दो

माँ को भी अभी पंगा करना था ,

पिताजी- जा ना तू

मैं दौड़ते हुए पिस्ता के घर पहुंचा .

“काकी कहाँ है ”हांफते हुए पुछा मैंने पिस्ता से

“साँस तो ले ले पहले, कौन सी आफत आ गयी ऐसी ” उसने मेरे सीने पर हाथ रखते हुए कहा

मैं- पिताजी ने काकी को बुलाया है फ़ौरन

पिस्ता- क्यों, सब खैरियत तो है न

मैं- लग तो ठीक ही रहा था मुझे तो बस इतना कहा की काकी को बुला ला

पिस्ता- गाँव में गयी है आते ही भेजती हु

मैं अकेली है तू


पिस्ता- ना गाव मोजूद है सारे का सारा

मैंने आव देखा न ताव और पिस्ता को पकड़ लिया .

“छोड़ सुबह सुबह कौन करता है ये ” उसने कहा

मैं- माँ चुदाय दिन रात पप्पी तो लूँगा ही

पिस्ता- जबरदस्ती है क्या

मैं-हक ही मेरा

पिस्ता- हक़ हक़ कह कर मेरी गांड मार लेगा तू एक दिन , जा न दे रही पप्पी निकल यहाँ से

पिस्ता ने मुझे धक्का दिया और किवाड़ मूँद लिया

मैं- किवाड़ खोल दे नहीं

वो- जा ना

मैं- किवाड़ खोल दे छोरी

पिस्ता- चूतिये भाग जा यहाँ से.



उसने किवाड़ नहीं खोला मैं वापिस आ गया और पिताजी को बताया . नाज भी हमारे ही घर पर मोजूद थी .

“क्यों बुलाया है काकी को ” मैंने पुछा


नाज- पता नहीं

मैं चाय पिने ही लगा था की इतनी देर में काकी आ गयी उसने पिताजी के आगे हाथ जोड़े पिताजी ने उसे बैठने को कहा और मुझसे बोले- नाज के साथ खेतो पर चले जा .

बेमन से नाज के साथ मैं खेतो की तरफ चल पड़ा.
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है नाज ने तो देव के खड़े अरमान पर पानी फेर दिया। पूरी बोतल न सही कुछ कतरा पीने को मिल गया।बुआ का कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि बुआ का क्या चक्कर है अब चौधरी ने पिस्ता की मां को क्यों बुलाया है क्या दोनो को शहर में एक साथ हाथ में हाथ डाले देखा था उसके लिए या बात कुछ और है
 

S M H R

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“ये ठीक नहीं देव” बोली नाज

“तो फिर क्या ठीक है ,क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं कर सकता ” मैंने कहा

नाज-प्यार नहीं है ये , हवस को प्यार का नाम कभी नहीं दिया जा सकता

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है फिर ये , करीब आने भी देती हो और रोक भी देती हो

नाज-तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हु

मैं- उफ्फ्फ ये खोखली बाते, बेवफाई भी ईमानदारी से करती हो

नाज- मैं सिर्फ अपने हक़ की बात करती हु

नाज ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ लिए और एक गहरा चुम्बन करने लगी. नाज की लिजलिजी जीभ मेरे मुह में घूम रही थी, अपनी जांघो के बीच मैंने लंड को फूलते हुए पाया और यक़ीनन नाज ने भी अपनी चूत पर उस दबाव को महसूस कर लिया होगा तभी वो उठ गयी मेरी गोद से .

नाज- अभी इतना ही ठीक है

मैं- ठीक है तुम पर दबाव नहीं डालूँगा पर एक बार मैं तुम्हारी चूत को देखना चाहता हु,

नाज- क्या तुम पर इतना विश्वास कर सकती हु मैं

मैं- अपनी बढ़ी धडकनों से पूछ लो

कुछ क्षण नाज मुझे देखती रही और फिर उसने अपना लहंगा ऊपर उठा दिया मेरे सामने ही उसने अपनी गुलाबी कच्छी उतारी और सोफे पर टाँगे खोल बैठ गयी . उफ्फ्फ क्या नजारा था . बुआ की चूत और नाज की चूत में बहुत फर्क था , नाज के गोरे रंग पर थोड़े लम्बे काले बाल , उसकी काली चूत पर चार चाँद लगा रहे थे . मैं सोफे के निचे बैठा अपने हाथो से नाज के पैरो को विपरीत दिशाओ में खोला और जी भर के उसकी चूत को देखने लगा. नाज की चूत की फांके गाढे द्रव से भीगी हुई थी ,जैसे ही मैंने अपना चेहरा नाज की चूत के पास ले गया , मेरी गर्म सांसो ने चूत के सोये अरमानो को चिंगारी दे दी.

“देव ” नाज कसमसाते हुए बोली

“बहुत प्यारी है तेरी चूत मासी , इसकी पप्पी लेना चाहता हु मैं ”

इससे पहले की नाज कुछ कहती मेरे होंठ चूत की फांको से टकरा चुके थे .

खुरदुरी जीभ ने चूत की मुलायम खाल को छुआ तो नाज के बदन का प्रत्येक तार हिल गया. मैंने मजबूती से उसकी जांघो पर पकड़ बनाई और नाज की चूत के दाने पर जीभ रगड़ने लगा.

“देव,” नाज अपनी अधखुली आँखों से बोली और मैं चूत चूसने लगा. नाज की गांड ऊपर होने लगी थी , ऊपर निचे करते हुए चेहरे को मैं नाज की चूत को चूस रहा था , फिर मैंने अपनी जीभ चूत के अन्दर डाली और चूत की फांको को चूसने लगा. अन्दर से बहते नमकीन रस की बूंदे मेरी जीभ पर लिपट रही थी , ना जाने कब ही नाज के दोनों हाथ मेरे सर पर आ गए और उसकी सिस्करिया कमरे में गूंजने लगी.
“दांत मत गडा ” बोली वो

जिन्दगी में पहली बार चूत चूस रहा था और यकीन मानो ये एक बहुत ही शानदार अनुभव था , मेरा मन था की मैं नाज की चूत को चूसता ही रहू पर ठीक तभी नाज का बदन अकड़ा और वो सोफे पर निढाल हो गयी . हल्के से उसकी जांघ की पप्पी लेने के बाद मैंने घाघरे को निचे किया और नाज के पास ही बैठ गया . कुछ देर बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं भी सोने की तयारी करने लगा. सुबह मुझे नाज को लेकर हॉस्पिटल जाना था , वहां पर काफी समय लगा आते आते लघभग शाम ही हो गयी थी . नहाने के बाद मैं चोबारे में गया बुआ वहां पर ही थी.


“कैसी हो बुआ ” मैंने कहा

वो- ठीक तू बता आजकल गायब ही रहने लगा है तू तो

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं . तुम्हे तो मालूम ही है की आजकल घर के क्या हालात चल रहे है तो इधर उधर ज्यादा हो रहा है अभी नहाया ही हु आकर

बुआ- सो तो है, न जाने कौन दुश्मन खड़ा हो गया है उम्मीद है की ये सब जल्दी ही खत्म हो जाये

मैं- देर सबेर हो ही जायेगा

कुछ देर बाते करने के बाद बुआ निचे चली गयी . मैं गाना सुनने के लिए रेडियो चला ही रहा था की टेबल पर पड़ी डॉक्टर की पर्ची पर नजर पड़ी, बुआ डॉक्टर से दवाई ले रही थी पर क्यों . लगती तो चंगी थी . इधर बाप हमारा गांड के घोड़े खोल कर भी अपने दुश्मन का पता नहीं कर पा रहा था मुनीम के न होने से बाप के धंधे पर भी फर्क पड़ रहा था. माँ के बताये कुछ काम करने के बाद मैं गाँव की तरफ चला गया . पिस्ता से मिलने की हसरत थी पर मिली नही वो . रात को फिर से नाज के घर सोया .


अगला दिन उम्मीद से ज्यादा हैरान करने वाला था , उठा तो नाज थी नहीं, मैं घर पहुंचा तो पाया की पिताजी गौर से अख़बार पढ़ रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और बोले- जा परमेश्वरी को बुला कर ला

मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ की बाप मुझे खुद पिस्ता के घर भेज रहा है .

“सुना नहीं क्या ” कहा उन्होंने

मैं मुड़ा ही था की माँ बोली- ये नहीं जायेगा, किसी और को भेज दो

माँ को भी अभी पंगा करना था ,

पिताजी- जा ना तू

मैं दौड़ते हुए पिस्ता के घर पहुंचा .

“काकी कहाँ है ”हांफते हुए पुछा मैंने पिस्ता से

“साँस तो ले ले पहले, कौन सी आफत आ गयी ऐसी ” उसने मेरे सीने पर हाथ रखते हुए कहा

मैं- पिताजी ने काकी को बुलाया है फ़ौरन

पिस्ता- क्यों, सब खैरियत तो है न

मैं- लग तो ठीक ही रहा था मुझे तो बस इतना कहा की काकी को बुला ला

पिस्ता- गाँव में गयी है आते ही भेजती हु

मैं अकेली है तू


पिस्ता- ना गाव मोजूद है सारे का सारा

मैंने आव देखा न ताव और पिस्ता को पकड़ लिया .

“छोड़ सुबह सुबह कौन करता है ये ” उसने कहा

मैं- माँ चुदाय दिन रात पप्पी तो लूँगा ही

पिस्ता- जबरदस्ती है क्या

मैं-हक ही मेरा

पिस्ता- हक़ हक़ कह कर मेरी गांड मार लेगा तू एक दिन , जा न दे रही पप्पी निकल यहाँ से

पिस्ता ने मुझे धक्का दिया और किवाड़ मूँद लिया

मैं- किवाड़ खोल दे नहीं

वो- जा ना

मैं- किवाड़ खोल दे छोरी

पिस्ता- चूतिये भाग जा यहाँ से.



उसने किवाड़ नहीं खोला मैं वापिस आ गया और पिताजी को बताया . नाज भी हमारे ही घर पर मोजूद थी .

“क्यों बुलाया है काकी को ” मैंने पुछा


नाज- पता नहीं

मैं चाय पिने ही लगा था की इतनी देर में काकी आ गयी उसने पिताजी के आगे हाथ जोड़े पिताजी ने उसे बैठने को कहा और मुझसे बोले- नाज के साथ खेतो पर चले जा .

बेमन से नाज के साथ मैं खेतो की तरफ चल पड़ा.
Nice update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
 
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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
बोहोत बढिया अपडेट भाई, 👌🏻👌🏻नाज की बात सुनकर ओर माहोल को महसूस कर के यही लग रहा है कि वह झूठ बोल रही है, जरुर कुछ हुआ है, जो वह बताना नही चाहती, उधर पिस्ता कि माहोल को सरपंच बनाने की कवायद सुरु हो गई है।,सही भी है, अगर वह सरपंच बनती है तो चौधरी की ही चलेगी👍 वैसे पिस्ता ने न्योता दिया है, क्या विचार है :what3: निपटा दो:declare:,
एक बार फिर से मनभावन अपडेट भाई
👌🏻👌🏻👌🏻✨✨✨💥💥💥💥👌🏻👌🏻
 

Raj_sharma

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मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
बोहोत बढिया अपडेट भाई, 👌🏻👌🏻नाज की बात सुनकर ओर माहोल को महसूस कर के यही लग रहा है कि वह झूठ बोल रही है, जरुर कुछ हुआ है, जो वह बताना नही चाहती, उधर पिस्ता कि माहोल को सरपंच बनाने की कवायद सुरु हो गई है।,सही भी है, अगर वह सरपंच बनती है तो चौधरी की ही चलेगी👍 वैसे पिस्ता ने न्योता दिया है, क्या विचार है :what3: निपटा दो:declare:,
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