• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery जब तक है जान

Sanju@

Well-Known Member
4,778
19,334
158
#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
छोटी जाति की महिला की सीट होने के कारण पिस्ता की मां को चुनाव में उठा कर खुद राज करने के लिए चौधरी ने पिस्ता की मां को बुलाया है देव एक बार फिर से उसी जगह पहुंच गया लेकिन अभी तक उसे कोई भी सबूत नहीं मिला कि इतने सारे पैसे किसके थे नाज का क्या चक्कर है पहले देव को मिली नही मिली तब किसी के ख्यालों में खोई हुई कुछ तो झोल झाल है पिस्ता से फिर मुलाकात हो गई पिस्ता ने पकोड़े खाने बुलाया है दोनो के बीच एक बार फिर से चटपटी बातें हुई
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,300
9,040
188
#1



“कड कड कडाक “ बिजली इतना जोर से चीखी की कान के परदे फट ही गए हो. इतनी घनघोर बरसात मैंने आज से पहले कभी नहीं देखि थी . मेरी नजर कभी घडी को देख रही थी तो कभी सामने सडक के उस पार जहाँ अभी अभी शायद बिजली गिरी थी. ऐसा नहीं था की मुझे कोई जल्दी थी आधी से ज्यादा रात तक मैं ढाबे पर ही रहता था पर आज बारिश की वजह से काम धंधा कुछ था नहीं तो बारिश भी सुहावनी नहीं लग रही थी .

“अभी जिन्दा हूँ तो जी लेने दो , भरी बरसात में पी लेने दो ” मैंने रेडियो की आवाज थोड़ी और खोल दी . ये भीगी हुई रात और तन्हा मैं, ऊपर से कुमार सानु के गीत . हाथ में जाम लिए मैं कुछ देर के लिए खो सा गया था पर शायद ये रात मेरे लिए एक नयी कहानी लिखने वाली थी . उस तीखी सी आवाज ने मेरे दो पल के सकूं को बर्बाद कर दिया.

“ओये , खाना लगा हमारे लिए ”

मैंने पलट कर देखा चार पांच लोगो का ग्रुप था. पहनावे से अमीरों की बिगड़ी औलादे लग रही थी . दो लडकिया और तीन लड़के . सबके हाथो में बोतले, लग रहा था की काफी नशे में थे .

“सुना नहीं क्या तूने फटीचर . फटाफट से खाना लगा हमारे लिए ” काली शर्ट वाले लड़के ने कहा .

मैं- ढाबा बंद है आज

“तो खोल दे , मुझे दुबारा कहने की जरूरत न पड़े. ” कजरी आँखों वाली उस लड़की ने अपने बाल बांधते हुए कहा.

एक नजर मैंने उस लड़की को देखा २४-२५ साल की खूबसूरत लड़की पानी से भीगी हुई, उसके बदन को चूमती बरसात की बूंदे जो मस्स्कक्त कर रही थी उसके तन से चिपके रहने को , लाल होंठ , होंठो के निचे एक तिल .गुलाबी टॉप जो उसके सीने से चिपक चूका था और नीली जीन्स जो जांघो पर ऐसे जकड़ी थी की देखने वालो ने कल्पना ही कर ली होगी हुस्न के उस दरिया की गहराई की .



“सुना नहीं क्या तूने कुत्ते ”लड़की की गुर्राहट ने मुझे ख्यालो से धरातल पर ला पटका .

मैं- ढाबा बंद है आज आप लोग कहीं और जाइए .

लड़की- मुझे परवाह नहीं, तू खाना लगा

मैं- मैंने कहा न ढाबा बंद है

लड़की ने गौर से देखा और बोली- जानता है तू किसे ना कह रहा है .

मैं- मैं मना नहीं कर रहा बशर्ते आप लोग मेरी बात समझे तो , सुबह से ही बरसात हो रही है , इस मौसम में ग्राहक नहीं आते , कारीगर नहीं आया इसलिए खाना नहीं है .

“मुझे टुकडो में नहीं जीना है , कतरा कतरा तो नहीं पीना है ”

मैंने जाम को दुबारा से होंठो से लगाया ही था की उस काली शर्ट वाले लड़के ने मुझे ठोकर मारी .

“दो कौड़ी का नौकर हमें न कहने की हिमाकत कर रहा है .साले का नखरा तो देखो ” उसने उपहास उड़ाते हुए कहा.

कांच का गिलास गिर कर चूर हो गया.

“यहाँ से चले जाओ ” मैंने कहा और गिलास के टुकड़े उठाने को झुका ही था की उसने फिर से मेरी पीठ पर लात मारी . अगले ही पल मेरे हाथ उसकी गर्दन पर थे, लड़के की नशे से झूमती आँखे बाहर आने को बेताब थी . ढाबे में चीख पुकार मच गयी.

“क्या समझा है तूने भोसड़ी के, दुनिया तेरे बाप की जागीर है क्या जो तेरे हिसाब से चलेगी , एक बार कह दिया बंद है ढाबा समझ नहीं आता क्या ” मैंने उसके पेट में घुटना मारा और अगले ही पल वो उलटी करने लगा.

“ये तूने ठीक नहीं किया , इसकी सजा मिलेगी तुझे. ” कजरी आँखों वाली लड़की ने अपनी बोतल पटकते हुए कहा .

“जाओ यहाँ से ” मैंने लड़के को बाहर की तरफ फेंक दिया.

“ कल ये ढाबा यहाँ नहीं रहेगा ” लड़की ने गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए कहा .

मैं- अरे चल

मैंने रेडियो की आवाज ऊँची की और सीधा बोतल को गटकने लगा. बरसात और जोर से बरसने लगी , दिमाग बिलकुल नहीं जानता था क्या करना है , क्या चाहता है दिल. कांपते हाथो से मैंने ढाबे को बंद किया और पैदल ही सडक पर चल दिया. बरसो बाद मैं भीग रहा था . हाथ में बोतल लिए भीगी रात में न जाने मैं कहा जा रहा था , की आँखे रौशनी से चुंधिया गयी . एक पल को लगा की वो गाडी मुझे टक्कर मार देगी पर वो तेजी से मेरे पास से गुजरी

“देख कर नहीं चल सकता क्या बहन के लौड़े ” चिल्लाते हुए मैंने गाली दी . आज का साला दिन ही मनहूस था अमूमन ऐसी तेज रफ़्तार गाडिया राहगीरों की गालियों पर रूकती नहीं पर वो कार रुक गयी. मुझ पर भी सुरूर था .

“बाहर निकल साले ” मैंने गाडी के शीशे पर हाथ मारा. ठीक उसी समय दो बाते हुई झटके से गाडी का दरवाजा खुला और आसमान में बिजली इतने जोर से कडकी की कुछ लम्हों के लिए उजाला सा हो गया. गाड़ी से जो उतरा मैंने उसे और उसने मुझे देखा और हम दोनों ही अतीत के किसी कोने में खो गए .

“भाई जी ” मैंने इतना सुना और पलट कर अँधेरे की तरफ चल दिया.

“भाई जी . आप इस तरह नहीं जा सकते, ये आप ही हो मैंने पहचान लिया है आपको . ” वो चिल्लाते हुए मेरे पीछे आया पर मुझे परवाह कहाँ थी . पर मेरी आँखों में भर आये आंसू तो कुछ और ही कह रहे थे .

“भाई जी रुक जाओ , मुझे मालूम हो गया है की आप इस शहर में हो मैं आपको वापिस घर लेकर ही जाऊँगा. “ उसने मेरा हाथ पकड़ लिया



“तुम्हे कोई गलत फहमी हुई है बरखुरदार, अँधेरी रात में धोखा हुआ है तुमको. मैं वो नहीं जिसे तुम तलाश रहे हो ” मैंने अपना हाथ छुड़ाया और अंधेरो ने मुझे अपने आगोश में भर लिया .

“घर वापिस आना होगा भाई जी ” दूर तक मेरे जेहन में ये शब्द गूंजते रहे .
Bahut jabardast start hai Bhai pehle es barish ki wajah se dhawa band tha customer hi nhai aayenge aur ab ye ameero ki bigdi aulaad bechare hero ki beijjati kar rahe the aur laat bhi Mardi but hero ne acha sabak sikhaya but ye car wala bhai ji keh raha hero ko matlab hero bhi pehle paise wala tha but shayad kisi wajah se usko aise rehna pad raha hai
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,300
9,040
188
#2

सुबह जागा तो पाया की बदन दर्द से टूट रहा था बुखार की वजह से . डॉक्टर के पास जाने से पहले मैंने हाथ मुह धोने का सोचा पर पानी नहीं था .

“रे, चमन फिर से पानी भरना भूल गया क्या तू ” मैंने आवाज दी

“पानी आएगा तो भरूँगा न भैया ” चमन ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा

मैं- यार ये रोज रोज का नाटक हो रहा है बस्ती में पानी नहीं आ रहा कोई जाके शिकायत क्यों नहीं करता

चमन- शिकायत तो हर बार ही करते है पर कार्यवाही तो कोई नहीं होती , हर बार एक ही जवाब होता है की हमारी तरफ से सप्लाई चालू है चंगेज कसाई ने रोका हुआ है पानी ,न जाने कब मरेगा हारामी जीना दुश्वार किया हुआ है बस्ती के लोगो का , लोगो से हफ्ता तो वसूल करने आ जाता है .

चंगेज कसाई, कहने को तो कसाई खाना चलाता था पर इस इलाके का दादा था . पुलिस भी उस पर कार्यवाई नहीं करती थी , और बस्ती के मुर्दा लोग अपनी जुबान कहाँ ही खोलते थे .

मैं- मैं देखूंगा इस पानी वाले मामले को . फिलहाल मैं डाक्टर के पास जा रहा हूँ फिर ढाबे पर जाऊँगा.

मैंने चमन को कुछ हिदायते दी और घर से बाहर निकल गया.



“बड़े दिनों बाद हुजुर हमारे दर पर ” डाक्टर साहिबा ने मुस्कुराते हुए कहा

मैं- रोज रोज डाक्टर लोगो के पास जाना पड़े तो फिर जी लिए हम

“जरुरी नहीं की इलाज ही करवाया जाये हम वैसे भी तो मिल सकते है ” उसने कहा

मैं-बेशक , पर क्या करे आप इधर व्यस्त रहती है मैं अपने काम में

“दुनिया का पेट भरने वाला खुद अपना ख्याल नहीं रख सकता ” डॉक्टर रुखसाना ने मेरा बीपी नापते हुए कहा

मैं चुप रहा .

रुखसाना- कितनी बार कहा है ये चुप्प्पी ही आपकी दुश्मन है . खैर कोई ज्यादा फ़िक्र की बात नहीं बुखार है जल्दी ही उतर जायेगा, दवा टाइम से लीजियेगा और हाँ शाम को खाने पर इंतज़ार करुँगी



मैं- ठीक है फिर मिलते है

रुखसाना मुस्कुराई , उसके खूबसूरत चेहरे को आँखों में उतारते हुए मैं दवाखाने से बाहर निकला और ढाबे पर पहुँच गया . ग्राहकी में न जाने कब दोपहर हो गयी मालूम ही नहीं हुआ, मैं हिसाब किताब देख ही रहा था की तभी पुलिस जीप सडक पर आकर रुकी और उसमे से कुछ पुलिसवाले उतर कर ढाबे में घुस आये,

“ओये, चल . तुझे थानेदार साहब ने बुलाया है ”उनमे से एक ने कहा

मैं- मुझ से क्या काम थानेदार को , मिलना है तो खुद आ जायेगा मेरे धंधे का समय है , निकलो यहाँ से

“चूतिये सुना नहीं हमने क्या कहा ” जो बात कर रहा था उसने अचनाक से मेरा कालर पकड़ लिया .

गुस्सा तो बहुत आया था मुझे पर ढाबे पर माहौल नहीं बिगाड़ना चाहता था इसलिए चुपचाप मैं थाणे आ गया.

“इस तरह मुझे यहाँ लाने का क्या मतलब है ” मैंने थानेदार से सवाल किया जो बस घूरे जा रहा था मुझे .

मैं-थानेदार साहब, मैं जानना चाहता हु क्यों लाया गया हु यहाँ क्योंकि जहाँ तक मुझे याद है मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे मेरा पाला पुलिस से पड़े .

थानेदार-कल रात तू कहाँ था

मैं- आधी रात तक ढाबे में और फिर बाकि रात अपने घर पर .

थानेदार ने इशारा किया और कांस्टेबल ने एक लैपटॉप टेबल पर रख दिया मेरी नजरे स्क्रीन पर जम गयी . सीसीटीवी फूटेज में मैंने खुद को देखा कार के दरवाजे पर हाथ मारते हुए

मैं- इतनी सी बात के लिए मुझे यहाँ बुला लिया. अब रोड किसी के बाप का तो है नहीं , हम पैदल चलने वालो का भी रोड पर उतना ही हक़ है जितना गाड़ी वालो का .

थानेदार- तू जानता है गाड़ी में कौन था

मैं- नहीं

थानेदार की नजरे स्क्रीन पर जमी हुई थी . उसने अपना गला खंखारा और बोला- सुनसान सड़क , बेईमान मौसम और आस पास कोई नहीं अपराध करने के लिए आदर्श हालात

मैं- किस अपराध की बात करते हो साहब

थानेदार- यही बात मेरी समझ में नहीं आ रही बरखुदार . गाडी में कोई नहीं मिला पर गाडी की तलाशी में पैसे मिले है ,

मैं- लोग रख लेते है गाडियों में पैसे

थानेदार- पर गाड़ी में कोई भी दस करोड़ रूपये नहीं रखता

मैं- ये तो गाड़ी वाला ही बता सकता है उसने इतनी बड़ी रकम क्यों रखी , कहाँ ले जा रहा था . कहाँ से लाया .

थानेदार ने लैपटॉप पर कुछ बटन दबाये और मेरे सामने कुछ तस्वीरे चलने लगी , तस्वीरों में एक औरत थी जिसके जिस्म की हालत देख कर मुझे उबकाई सी आ गयी .

थानेदार- ये सोनिया मेहरा है . कुछ साल पहले ही नौकरी छोड़ कर यहाँ शहर में शिफ्ट हुई . झुग्गी -झोपडी के बच्चो के उत्थान के लिए काम करती थी . कल रात तेरे ढाबे के पास किसी ने इसका बेरहमी से बलात्कार किया और फिर मार दिया.

मैंने अपनी आँखे बंद कर ली. नहीं चाहता था की कोई और मेरे आंसू देखे.

थानेदार- मेरी दिलचस्पी दो बातो में है पहली की सोनिया के पास इतनी बड़ी रकम कैसे आई और दूसरी बात कातिल ने इतनी बड़ी रकम को कैसे छोड़ दिया.

मैं- जाहिर है उसकी दिलचस्पी सिर्फ सोनिया में थी .

थानेदार- तफ्तीश पूरी होने तक तू शार से बाहर नहीं जायेगा. शक तुझ पर भी है .

मैं- नहीं जाऊंगा बिलकुल भी नहीं जाऊँगा.

मैंने कहा और ठाणे से बाहर आ गया .


“जिसने भी ये किया है मैं उसकी खाल उतार लूँगा मैडम जी ” आस्तीन से आंसू पोंछते हुए मैंने खुद से कहा .
Bechara hero bukhar aa gaya aur ye Rukhsana doctor achi hai aur lagta hai hero ko pasand karti hai ye Kasai bhi bahut bura hai iska bhi intjaam karna padega aur ab hero es ladki ko kaise jaanta hai aur iska rape karke maar bhi diya usko but ye paiso ka kya chakkar hai
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,300
9,040
188
#३

शाम गहराने लगी थी बादलो ने फिर से आसमान पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था किसी भी समय बरसात शहर को भिगो सकती थी पर आग जो दिल में लगी थी उसे बुझना नहीं था . मैं सोनिया के घर में था . हर चीज बड़े सलीके से रखी गयी थी, घर में ख़ामोशी ने कब्ज़ा किया हुआ था . गहनता से तलाशी लेने के बाद मैं सोचने पर मजबूर हो गया की कातिल की दिलचस्पी सोनिया के जिस्म में थी , कातिल ने सोनिया को गाड़ी से खींचा और ढाबे के पास बलात्कार किया . हो सकता है उसे मालूम ही न हो की गाड़ी में रकम रखी थी . इन्सान लालची फितरत का होता है अगर कातिल को मालूम होता पैसो के बार में तो वो हाथ जरुर साफ़ कर देता.

पर जो बात मुझे परेशां किये हुए थी वो थी की गाडी पर जब मैंने मुक्का मारा था तो गाड़ी में मैडम नहीं थी गाड़ी में कोई और था .और वो जो था उससे मिलने का मतलब था अतीत के उस पन्ने को दोहराना जिसे मैंने वक्त की रेत में दबा दिया था .

“कल बुखार हुआ पड़ा था और आज फिर से भीगे हुए हो ” रुखसाना ने मुझे तौलिया देते हुए कहा .

मैं- मैं नहीं ये रात भीगी हुई है .

उसने गहरी नजरो से देखा मुझे और अन्दर चली गयी . मेरी नजर उसके पुष्ट नितम्बो पर कुछ देर जमी रही .

“क्या बात है परेशान से लगते हो ” रुखसाना ने खाना परोसते हुए कहा

मैं- थकान है थोड़ी

“देख रही हूँ पिछले कुछ दिनों से बड़े परेशान हो . क्या बात है जो छिपा रहे हो तुम ” रुखसाना ने कहा

मैं- नहीं जानता . जानने की कोशिश कर रहा हूँ पर नहीं जानता. तुम्हे तो पता है मेरे हालात कुछ याद रहता है कुछ नहीं . कुछ धुंधली छाया परेशान करती है जिन्हें समझने की तमाम कोशिशे नाकाम ही हुई है .

रुखसाना- वक्त के साथ साथ तुम्हारी यादे भी लौट आएँगी मुझे पूरा विश्वास है .

मैं हलके से मुस्कुरा दिया. बारिश के मौसम में रुखसाना का हुस्न मुझ को बेईमानी करने को मजबूर कर रहा था पर दिमाग में सोनिया मेहरा उलझी थी . मेरी और मेरी यादो के बीच सोनिया ही एक कड़ी थी . सात साल पहले जब मेरी आँखे हॉस्पिटल में खुली तो सबसे पहले मैंने उसे ही देखा था . उसी ने मेरा इलाज करवाया था. बीते सात सालो से मैं खुद में ही उलझा था .

“भाई जी , आपको वापिस आना ही होगा ” कौन था वो आदमी जो मुझे पुकार रहा था . मुझे खुद पर गुस्सा बहुत आ रहा था क्यों मैंने उसे जाने दिया . कभी कभी मुझे अपनी नशे की आदत से बड़ी कोफ़्त होती थी . अब चूँकि ये बात भी पक्की थी की वो आदमी सोनिया के साथ था क्योंकि गाडी से वो बाहर आया था और दस करोड़ का क्या लेना देना था ये भी सुलझाना जरुरी था . पर जैसा मैंने कहा ये तो शुरुआत थी वक्त के करवट लेने की इस शहर में भी जीना भला कहाँ आसान था .



कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए थे मैं ढाबा बंद करके घर जा ही रहा था की मैंने देखा सडक के बीचो बिच कोई बैठा है . ये साली जनता भी अजीब किस्म के चुतियापे करने में माहिर थी ,अभी कोई गाड़ी वाला चिपका जायेगा रोड पर .

“अरे, रोड पर क्यों बैठे हो . कोई गाड़ी वाला पेल जायेगा ” मैंने कहा

“तू अपना काम कर लौड़े ” आवाज से समझ गया की कोई लड़की थी .

मैं- अपना काम ही कर रहा हूँ और ये क्या तरीका है बात करने का .

लड़की खड़ी हुई और मेरे पास आई तो मैंने उसे देखा ये वो ही कजरी आँखों वाली थी जो कुछ दिन पहले मेरे ढाबे पर आई थी . आज भी उसके हाथ में बोतल थी . और हम दोनों ने ही एक दुसरे को पहचान लिया था .एक अकेली लड़की रात में सुनसान सड़क पर मेरे दिमाग में सोनिया का चेहरा आ गया.

मैं- इतनी रात को ऐसे अकेले घूमना सुरक्षित नहीं है

वो- तुझे क्या लेना देना

मैं- कोई मतलब नहीं ,बस फ़िक्र है इसलिए कहा

लड़की- जो इन्सान भूखो को खाना न दे सके वो फ़िक्र की बात करता है

उसने जमीन पर थूका

मैं- कायदे से आती तो मेहमाननवाजी करता .



“आज का दिन ही मनहूस है पहले दोस्तों से झगडा हुआ अब तू मिल गया . निकल अपने रस्ते मैं अपना देख लुंगी ” उसने कहा

मैं चाहता तो उसे उसके हाल में छोड़ कर जा सकता था पर अन्दर का इन्सान नहीं माना .

मैं- तुम्हारी हालत ठीक नहीं है हो सकता है की तुम परेशान हो , चाहो तो अपनी भड़ास मुझ पर निकाल लेना पर इतनी रात को अकेले भटकना ठीक नहीं . मैं तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ .

कुछ देर वो मुझे घूरती रही फिर उसने अपने कंधे उचका दिए.हम लोग चल दिए.

“घर कहा है तुम्हारा ” मैंने ख़ामोशी तोड़ते हुए पुछा.

“मेरा कोई घर नहीं ” उसने दो घूँट भरते हुए कहा

मैं- तो फिर कहा छोडू तुम्हे

वो- जहाँ तुम्हारा दिल करे.

मैंने एक नजर आसमान पर डाली. बदल गरजने लगे थे बरसात आती तो और परेशानी बढती .

“देखो रात बहुत हुई है मुझे भी अपने घर जाना होगा ” मैंने कहा

वो शायद मेरी बात समझी और मुझे रास्ता बताया कुछ देर बाद हम लोग एक बड़े से बंगले के सामने थे .


“यहाँ से आगे मैं चली जाउंगी. ” उसने कहा . उसने दारू की बोतल सडक पर ही फेंकी और उस बड़े बंगले की तरफ कदम बाधा दिए. मेरी नजर उसकी मटकती गांड पर जम गयी . पर अचानक ही वो पलटी और मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी . मैं कुछ समझता इस से पहले उसने मेरे गाल को हलके से चूम लिया इसी बीच जब वो अलग हो रही थी उसकी चान्दी की चेन मेरे बटन में उलझ गयी और जब मेरी नजर उस चेन में लगी लाकेट पर पड़ी तो न जाने क्यों मेरे सर में जोर से दर्द सा हो गया . ठीक उसी पल जोर से बिजली कडकी और वो मोहतरमा मेरे सीने से लग गयी .
Hero bhi pareshan hai uski yaddast chali gayi hai aur ab ye ladki use dubara mil gayi acha hua Jo hero use ghar chhodne aa gaya but iske gale me pade locket me aisa kya hai jo hero ko dard hone laga shayad hero ka isse kuch connection hai isliye uske dimag me ye locket trigger kae gaya aur es ladki ne hero ke gaal par kiss kyu ki aur dar ki wajah se gale bhi lag gayi Soniya hero ke liye bahut mayne rakhti thi aur abhi hai kyunki jab hero sab kuch bhul Gaya tha tab usi ne hero ki madad kari thi dekhte hai aage kya hota hai
 
Last edited:

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
42,480
110,066
304
Waiting for next update :waiting1:
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,300
9,040
188
#४

हलकी बूंदों के दरमियान एक हसीना मेरी मजबूत बाँहों में समाई हुई थी. बेशक मेरे हाथ लगभग उसके नितम्बो पर पहुँच गए थे पर अँधेरे में भी मेरी आँखे उस लाकेट की चमकती चांदी पर थी . ढाई-तीन इंच का वो लाकेट बहुत खूबसूरत था.सर्पीली चांदी के दरमियान हरा नग जड़ा हुआ बहुत ही खूबसूरत, बहुत ही जुदा.

“अब छोड़ भी दो ,फीलिंग इतनी भी ना लो ” उस शोख हसीना ने कसमसाते हुए कहा .

मैंने उसे अपने आगोश से आजाद किया और बोला- ये लाकेट , कहाँ से लिया तुमने

वो- अरे ये तो यूँ ही है. ऐसे ही पड़ा था मैंने पहन लिया .

“कहाँ से मिला ये लाकेट तुम्हे ” मैंने फिर से पुछा

“तुम्हे क्या पड़ी है इसकी .मामूली से लाकेट के लिए क्यों इतना फिक्रमंद हो रहे हो ” उसने हौले से कहा .आसमान में काले बादलो के कालजे को बिजिलियो ने चीरना शुरू कर दिया था. ठीक तभी इलाके की बत्ती गुल हो गयी . गहरे अँधेरे में गिरती बूंदों के बीच हम दोनों के सांसे शोर सा मचा रही थी .

“मुझे चलना चाहिए ” वो अपने बंगले की तरफ बढ़ी .

“इसे हमेशा पहने रहना , तेरी हिफाजत करेगा ये और मेरी भी. हमारे प्यार की निशानी है ये . हम रहे न रहे हमारी कहानी जरुर रहेगी . ” सर को झटका सा लगा और मेरे जेहन में ये शब्द गूँज उठे. एक बार फिर से मैं अपनी यादो की काली छाया से जूझने लगा.

“क्या हो रहा है तुम्हे, ठीक तो हो न ” मुझे सडक पर गिरा देख कर वो मेरे पास आ गयी .

“ठीक हूँ ” मैंने उलटी करते हुए कहा



“पी मैने हुई है और हाल तुम्हारा ख़राब है ” वो बोली

मैं- कभी कभी होता है ऐसा , तुम जाओ मैं बेहतर हो जाऊंगा थोड़ी देर में .

वापसी में मेरे जेहन में सिर्फ वो लाकेट था.इस बेगाने शहर में जहाँ मैं अकेल्ला था किस्मत न जाने मेरी तक़दीर का कौन सा पन्ना पलटने को बेताब थी . बस्ती में घुसा ही था की देखा सड़क पर चंगेजी के लोग दारू की बोतले खोले बारिश में नहा रहे थे . एक दुसरे को गालिया देते हुए बकचोदी जारी थी ,

“ओये ढाबे वाले ”

मैंने नजरंदाज किया और अपने रस्ते चलता रहा.

“सुना नहीं भोसड़ी के ”

इस बार मैं रुका.

“बहन के लंड , सुना नहीं तूने बोल रहे है तो आ न ” उनमे से एक जिसका नाम कल्लू था उसने मेरा कालर पकड़ कर घसीटा मुझे .



“कल्लू अपनी हद में रह , ” मैंने रोकना चाहा उसे

कल्लू- साले, मुझ से ऊंची आवाज में बात करता है

“कल्लू , मैं बहुत थका हुआ हूँ जाने दे मुझे खामखा बात बढ़ जाएगी ” मैं मुह नहीं लगना चाहता था कल्लू के

कल्लू- मुझे धमकी देता है जानता है न मैं कौन हु

“भाई एक चुतिया आपको इतना बोल गया, बस्ती के लोगो को मालूम होगा तो आपकी इज्जत के वांदे लग जायेंगे ” कल्लू के पास खड़े लड़के ने कहा तो कल्लू जोश में आ गया .

“ये तो तू सही बोला, अपना तो खौफ कम हो गया , करना पड़ेगा ढाबे वाले का कुछ तो करना पड़ेगा ” कल्लू ने मेरे सीने पर हाथ मारा

“क्या रे क्या चिल्लम चिल्ली मचा रहे हो चुतिया लोग ” मैंने देखा चंगेजी अपनी झुग्गी से बाहर आ गया था . बदन पर सिर्फ एक कच्छा और बाँहों में बस्ती की एक औरत जिसकी इज्जत आज रात तार तार हुई होगी. मेरी नजरे उस औरत से मिली और नहीं जानता हम दोनों में से किसकी आँखों में शर्मिंदगी थी.

“भाई कुछ नहीं बस्ती का एक चुतिया है उसी को खोपचे में ले रहा हूँ ” कल्लू ने शेखी बखारते हुए कहा

चंगेजी- कुछ भी कर मेरा मजा ख़राब मत कर

चंगेजी ने औरत की चूची को कस का भींचा वो दर्द से बिलख सी पड़ी उसकी आँखे बेबस थी .

“चंगेजी , औरत को छोड़ ” मैंने कहा

चंगेजी- क्या बोला ये चुतिया

मैं- सुना नहीं तूने, मैंने कहा औरत को छोड़

चंगेजी ने औरत को अपने आगोश में से आजाद किया और बोला- ले छोड़ दिया, पर क्या ये जाएगी . एक कदम भी नहीं बढ़ा सकती ये मेरी मर्जी के बिना. पूछ कर देख तो सही क्या ये जाएगी

“अपने घर जाओ ” मैंने कहा पर वो जरा भी नहीं हिली

चंगेजी मेरे पास आया और बोला- ये बस्ती मेरी गुलाम है , दूसरी बात हक़ की बात उन लोगो के लिए की जाती है जिनकी रीढ़ में दम हो , ये मुर्दा लोगो की बस्ती है . जितनी जल्दी तू इस बात को समझेगा जीना आसान होगा तेरे लिए . रात बहुत हुई जा जाकर सो जा . मेरा मन भरेगा तो इसे भी इसके घर पहुंचा दिया जायेगा.

चंगेजी ने गलत होते हुए भी इस दुनिया का ऐसा आइना दिखाया मुझे जिसकी सच्चाई झुठलाना आसान था नहीं. बाकी रात मुझे नींद नहीं आई. अगले रोज़ फिर से मैं ढाबे पर था की थानेदार वहां पर आ गया.



“कल रात इसी इलाके में एक और क़त्ल हुआ है , एक लड़की काल सेंटर से घर जाते समय मारी गयी, तक़रीबन हालात सोनिया महरा जैसे ही है बस इस बार लूटपाट भी हुई है . ” थानेदार बोला

मैं-इस इलाके में गश्त क्यों नहीं बढ़ाते आप

थानेदार- कल रात बारिश बहुत जोर से हो रही थी इसी का फायदा उठाया कातिल ने .

मैं- मेरे से क्या चाहते है

थानेदार- यही की इन सब के पीछे कौन है

मैं- मुझ पर शक

थानेदार- कह सकते हो वैसे सीसीटीवी फूटेज मिल सकती है क्या तुम्हारे ढाबे से

मैं- यहाँ तो कैमरा है ही नहीं पर लगता है की लगवाना पड़ेगा.

थानेदार- खैर, मेरा तुमसे मिलने का मकसद कुछ और है , हमें सोनिया की विल मिली है मुझे लगता है की तुम्हे पढना चाहिए इसे .

थानेदार ने मुझे पैकेट दिया

“पर ये कैसे हो सकता है ” मैंने कहा

थानेदार- मुझे तुमसे ज्यादा उत्सुकता है , कुछ तो रिश्ता है तुम्हारा सोनिया के साथ

मैं- मुझे याद नहीं साहब, मेरा अतीत मुझे याद नहीं .

थानेदार-मेहरा का कोई वकील है वो उसने ही ये विल थाने भेजी थी तुम चाहो तो उस से मिल लो . उसका नम्बर बताता हूँ .

थानेदार चला गया था पर मैं अपने अतीत और वर्तमान में उलझा हुआ था .सोनिया अपना घर मेरे नाम कर गयी थी पर जिस घर में वो रहती थी वो किराये का था .खैर मैने उसके वकील से मिलने का सोचा और नम्बर डायल किया .

“ट्रिंग ट्रिंग , ” घंटी जाने लगी .

“हेल्लो, श्वेता चौधरी फ्रॉम थिस साइड ” उधर से एक आवाज आई

मैं- जी सोनिया मेहरा की विल आपने बनाई थी

“तुम कौन हो ” उधर से आई आवाज में सुर्खी बढ़ सी गयी .


“वही जिसका नाम विल में लिखा है ” मैंने कांपते हुए कहा .
Es ladki ke sath kya rishta ho sakta hai hero ka Jo usne baat kahi ye hamre pyar ki nishani hai ye hamari hifajat karega aur ab ye Changezi ke chamcho se bhi samna ho gaya but ye Soniya ne apna ghar hero ko kyu de diya dekhte hai aage kya hota hai
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,300
9,040
188
#५



कुछ देर फ़ोन पर ख़ामोशी छाई रही, अजीब सी बेचैनी . माथे पर पसीने को बहते महसूस किया मैंने .

“बीस मिनट में मैं सन प्लाजा में पहुँच रही हूँ मिलो वहां पर ” उसने फोन काट दिया.

धुंधली यादो के अँधेरे में रौशनी की किरण खोजते हुए मैं सन प्लाजा पहुँच गया और मेरी हैरानी तब और बढ़ गयी जब सोनिया मेहरा की वकील कोई और नहीं बल्कि वो कजरारी आंखो वाली लड़की थी जिस से पिछले कुछ दिनों में बार बार मिला था . ब्लू जीन्स और और सफ़ेद शर्ट में क्या ही खूबसूरत लग रही थी वो. उसकी गदराई जांघे, सुडौल नितम्ब जीन्स में और भी खूबसूरत लगते थे. न जाने क्यों ये मेरा मानना था की इस लड़की की जांघे बहुत ही गदराई थी .



“तुम ” हम दोनों में मुह से लगभग साथ ही ये शब्द निकला.

“तुम सोनिया जी को कैसे जानते हो ” उसने कहा

मैं- कोई तो नाता रहा ही होगा .

उसकी नजरे बहुत गहराई से मुझे परख रही थी .

“सोनिया जी अपनी विल में तुम्हारा नाम क्यों डलवाया होंगी ” उसने कहा

मैं-मैं भी बड़ी शिद्दत से ये जानना चाहता हूँ और तुम्हे मेरी मदद करनी होगी क्योंकि मैं नहीं जानता मैं कौन हूँ कहाँ से आया हूँ .श्वेता मदद करो मेरी

“समझ नहीं आ रहा कैसे मदद करू तुम्हारी ” श्वेता ने धीरे से कहा.

मैं- तुम नहीं तो कौन ,इस शहर में सोनिया जी को तुम से जायदा कौन जानता होगा.

श्वेता- सच कहूँ तो उन्हें कोई नहीं जानता था , मेरा मतलब बहुत ज्यादा लोगो से उठना बैठना नहीं था उनका, जायदातर समय अनाथ बच्चो के लिए खाने-पढाई की वयवस्था में ही जाता था उनका, ऐसे ही किसी कार्यक्रम में मिली थी मैं उन्हें.

मैं- इतना सब कुछ मात्र संयोग नहीं हो सकता हैं न

श्वेता - मैंने भी सोचा इस बारे में , सोनिया जी ने मुझे मोहरा बनाया है तुम्हारे और उनके बीच में

श्वेता की बात से मैं और परेशान हो गया क्योंकि सोनिया मेहरा जब भी मुझसे मिलती थी नार्मल ही रहती थी कभी भी उसने ऐसी कोई भी बात नहीं की थी जिस से ये लगे की मेरा कोई गहरा सम्बन्ध होगा उस से. बस वो हाल चाल ही पूछती थी . पर अब जब वो अपना वो घर मेरे नाम कर गयी थी जो किराये का था , या फिर उनका असली घर कहीं और था . और अब यही मुझे मालूम करना था .

“उस रात की मार पिट के लिए मैं शर्मिंदा हूँ ” मैंने श्वेता से कहा

“मैं भी , दरअसल गलती हमारी ही थी , नशा कुछ ज्यादा ही था ” उसने मुस्कुराते हुए कहा .

“आदमी चाहे जहाँ भी रहे उसके दिल में अपने मूल स्थान की यादे बहुत गहरी बसी होती है , खासकर परदेसियो के जो अपना घर छोड़ आते है , सोनिया जी के घर की तलाशी में कोई न कोई ऐसा सुराग जरुर मिलेगा ” उसने कहा

अब उस से क्या कहता की मैंने पहले ही तलाशी ले ली है .श्वेता के कहने पर हम लोग उस मकान में आ गए.

“भाई जी , आपको वापिस आना होगा . लौट कर आना होगा ” मेरे दिमाग में बस ये ही शब्द गूँज रहे थे .

“कहाँ खो गए ” उसने पूछा

मैं- खोया हुआ ही तो हूँ न जाने कब से

हमने तलाशी लेनी शुरू की , मेरे लिए ही निरर्थक थी क्योंकि मैं ये काम पहले ही कर चूका था पर श्वेता लगी हुई थी . ऐसे ही सामान को टटोलते हुए मुझे बनाई गयी कुछ तस्वीरे मिली जिनमे एक तस्वीर पर मेरा ध्यान गया उसमे एक हाथ ने दुसरे हाथ को थामा हुआ था . अजीब सी बात थी . मैं परेशान था क्योंकि मैं अपने अतीत को तलाश रहा था और सोनिया ने अपना अतीत मिटा दिया था .

“वकील साहिबा, तुमने पुछा तो होता की ऐसी वसीयत क्यों बनवा रही थी सोनिया जिसमे कोई ओर छोर ही नहीं ” मैंने कहा

श्वेता- तुम्हे क्या लगता है मैं इतनी बचकानी वसीयत यूँ ही बना देती . मैंने पुछा था और जानते हो उनका जवाब क्या था, वो बोली- वो अपने आप पहुँच जायेगा घर .

“पर कहाँ है होगा घर , मेरा घर ” हताशा में डूबा मैं इतना ही कह सका

श्वेता- क्या तुम्हे सच में कुछ भी याद नहीं

मैं- कुछ धुंधली परछाई सी याद है, कभी कभी सर में दर्द होता है और मैं गिर पड़ता हूँ तब कुछ शब्द गूंजते है जेहन में .



रात को एक बार फिर मैं रुखसाना के साथ था .

“शेख साहब का टेलीफोन आया था , हफ्ते भर बाद वो लौट रहे है ” उसने कहा

मैं- बढ़िया बात है ये तो

रुखसाना- कह रहे थे इस बार साथ ले जायेंगे मुझे

मैं- ये तो और बढ़िया बात है

रुखसाना- क्या तुम्हे मेरी याद नहीं आएगी .

मैं- यादो का क्या है , यादे भी पराई होती है वैसे भी तुम किसी और की अमानत हो . हम दोनों जानते है की हम , हमसफर नहीं हो सकते .

रुखसाना- जानती हूँ पर तुम जैसा दोस्त कहाँ मिलेगा

मैं- हम रहे न रहे दोस्ती तो रहेगी, जब कभी तुम याद करोगी तो तुम्हारे होंठ मुस्कुरा पड़ेंगे . ये चुडिया बजने लगेंगी .


रुखसाना ने अपने बालो को पीछे किया अपने दहकते होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. मेरे हाथ उसकी पीठ पर कस गये पर इस से पहले की बात कुछ आगे बढ़ पाती. बाहर से कोई दरवाजा पीटने लगा..............
Kya ittefaq hai ye ladki wahi hai jo nashedi hai aur Soniya ki wakil bhi jarur koi bahut purana naata raha hoga hero aur Soniya ka aur usne Sweta se kaha wo apne ghar pahunch jayega aur ab Doctor sahiba bhi jaane wali hai dekhte hai darwaje par kaun hai
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,300
9,040
188
#6

“भाई काण्ड हो गया जल्दी चलो ” चमन लगातार दरवाजा पीट रहा था .

“क्या हुआ ” झुंझलाते हुए मैंने दरवाजा खोला

चमन- वो दरजी , दरजी ने फांसी लगा ली

मैं गहरी साँस ली और चमन के साथ दरजी के घर गया. बस्ती के और लोग भी जमा थे वहां पर . दरजी की घरवाली बुत बनी खम्बे के सहारे बैठी थी उसकी आँखों में वो ही बेबसी थी जो मैंने उस रात को देखि थी जब चंगेजी उसके बदन को निचोड़ रहा था . कहने को कुछ नहीं था करने को कुछ नहीं था . आदमी की जान इस दुनिया की सबसे सस्ती चीज थी जिसका कोई भी मोल नहीं था.



दोपहर को ढाबे पर बैठे हुए मैं वसीयत के उस पन्ने को देख रहा था जिसमे घर का जिक्र था , कौन सा घर किसका घर . कभी कभी मुझे खुद पर इतना गुस्सा आता था , कभी कभी मैं भी खुद को दरजी की बीवी जैसा बेबस पाता था . रात को मौसम साफ़ था बेशक कुछ नमी थी पर बारिश नहीं थी . अँधेरे मोड़ पर मैंने कल्लू को देखा जो कुछ घबराया सा था और शायद कुछ तलाश कर रहा था .

“ओये, चूतिये . क्या कर रहा है तू उधर ” मैंने उसे पुकारा

कल्लू की नजर मुझ पर पड़ी और वो बदहवास सा हो गया

“तू यहाँ क्या कर रहा है , चल निकल यहाँ से ” थूक गटकते हुए बोला वो

कुछ दिन पहले हुई दो हत्याए और अंधेरी रात में कल्लू जैसे अपराधी का घटनास्थल के आस पास होना मेरे मन में शक का बीज बो गया .

“मैंने पुछा , क्या कर रहा है तू इधर ” मैंने हाथ पकड़ लिया कल्लू का

कल्लू- औकात में रह ढाबे वाले, कहीं ऐसा न हो की पड़ी लकड़ी गांड में घुस जाये तेरी

मैं- पिछले हफ्ते दो क़त्ल हुए है यहाँ , क्या लेना देना है तेरा इधर

कल्लू- मुझे क्या मालूम

मैंने एक मुक्का उसके मुह पर मारा और बोला- साले, तेरा लेना देना नहीं तो इतनी रात या माँ चुदाने आया है

कल्लू- दो क़त्ल हुए है न तो एक और सही, साले जानता नहीं मैं कौन हूँ.

कल्लू और मेरी हाथापाई शुरू हो गयी. कुछ पुराणी खुंदक और कुछ ये हादसे मैंने कल्लू को बुरी तरह से मारा .

“बता भोसड़ी के , क्या कर रहा था तू यहाँ पर और दो कत्लो से तेरा क्या वास्ता है ” मैंने कहा

कल्लू- नहीं जानता

मैं- तो क्या कर रहा था यहाँ पर क्या तलाश रहा था तू

कल्लू-चंगेजी के पैसे थे, यही कहीं गिर गए कल मुझसे नशे में . वसूली के थे उसे न दिए तो गांड मार लेगा मेरी .

मैं- मुझे यकीन नहीं तेरी बात का

कल्लू- तो गांड मरा अपनी

मैंने कल्लू को फिर से मारा और बोला- ठीक है दोनों तलाशी करते है पैसे मिल गए तो तू बच गया वर्ना एक लाश और सही .

पर किस्मत बहन की लौड़ी , कल्लू को जल्दी ही एक पकेट मिल गया जिसमे गड्डी थी . मतलब वो सच कह रहा था .

“इस रात की बात को मैं भूलूंगा नहीं और तुझे भी नहीं भूलने दूंगा.” जाते हुए उसने कहा.

दिमाग साला फटने को हो गया था .घर जाने से पहले मैं दरजी के घर गया . रात ज्यादा हो गयी थी सोचा कुण्डी खडकाना उचित रहेगा या नहीं . इसी उधेड़बुन में था की अन्दर से आई आवाज ने मेरा ध्यान खींचा. ये आवाज चंगेजी की थी , दरवाजे की झिर्खी से मैंने देखा की दरजी की बीवी और चंगेजी खड़े थे. चंगेजी ने जेब से नोटों की दो गड्डी निकाल कर दरजी की बीवी को दी और बोला- अपना और बच्चो अ ख्याल रख, उनकी पढाई लिखाई में रुकावट ना आये. राशन पानी के लिए मैंने बनिए को बोल दिया है जो भी चाहिए होगा बेझिझक ले आना.

“और इसकी कीमत मुझसे वसूलोगे फिर तुम ” दरजी की बीवी बोली

चंगेजी कुछ नहीं बोला.

“तुम अगर हमारी गृहस्थी में आग नहीं लगाते तो आज मेरा आदमी जिन्दा होता. तूने मेरी ली.इसी बेइज्जती की वजह से मरा वो ” दरजी की बीवी ने कहा

चंगेजी- कोई किसी की वजह से नहीं मरता, और तू जानती ही क्या थी अपने पति के बारे में .कहने को दरजी था पर साला एक नम्बर का चोर था . जुवे में पैसे हार कर बैठा था वो और तुझे क्या लगता है मैंने जबरदस्ती चोदा तुझे, तेरा पति खुद आया था मेरे पास पैसो के लिए पुरे तीन लाख लेकर गया था तेरी चूत के बदले. माना की मैं लाख नीच किस्म का आदमी हूँ पर थोड़ी बहुत इमानदारी हमारे हिस्से की भी तो होगी

इतना सुनकर मैंने अपने कदम आगे बढ़ा दिए, ये दुनिया उतनी मादरचोद नहीं थी जितना मैं समझता था ये दुनिया उस से दुगुनी मादरचोद थी . रुखसाना के घर के आगे से गुजरते हुए मेरे कदम रुक से गए. बस कुछ दिन की बात थी फिर वो चली जानी थी एक नयी दुनिया में , नए सपने बसाने को .मुस्कुराते हुए मैं अपने घर की तरफ बढ़ गया दरवाजा खुला पड़ा था मतलब चमन मोजूद नहीं था . टीवी चलाया , एक चैनल पर ऋषिकपूर और माधुरी का गीत ब
“जोगन में जोबन आया, जोगन ने ली अंगड़ाई . दिल देनेकी रुत आई दिल लेने की रुत आई ”



“तेरे इश्क का जोग लिया है मैंने .अब ज़माने का जहर पीना भी पड़े तो क्या .तुझसे नाता जोड़ा है सारे बंधन तोड़ के ” अचानक ही मेरे होंठो पर ये शब्द आ गए और जेहन में एक परछाई . लहराती जुल्फे, खुली हुई बाहे .बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी


“देव ” ऐसा लगा किसी ने मेरे कानो को चूम सा लिया हो .
Chalo apne hero ka naam toh malum pada Dev aur ye Darji bhi mar gaya khud ki biwi Changzi ko be di but ye acha kiya Changezi ab darji ki biwi ki madad kar raha hai but gahr kaise dhunega hero
 
Top