#14
सुबह कुछ शोर से मेरी आँखे खुली तो मैंने निचे आकर देखा श्वेता जोर जोर से मुझे आवाजे दे रही थी .
“इतनी सुबह तुम यहाँ ” मैंने कहा
श्वेता- सोनिया जी के घर को खाली करवा दिया, चाबी देनी थी तुम्हे तो चली आई
मैं- चाबी तो बहाना है जो बात है वो बताओ
श्वेता- कैसे समझ जाते हो तुम जो भी मैं कहना चाहती हूँ खैर, मुझे कुछ और भी मिला है जो यक़ीनन तुमसे ही जुड़ा है शायद इस से तुम्हारी यादे ताजा हो जाये.
श्वेता ने मुझे एक लिफाफा दिया जिसे खोलते ही कुछ तस्वीरे मेरे सामने आ गयी. तस्वीरे पुराणी तो थी पर फिर भी साफ़ थी. ये मेरी तस्वीरे थी पर मेरे अकेले की नहीं मेरे साथ कोई और भी थी उन तस्वीरों में . जाना पहचाना चेहरा जिसे देखते ही मेरे चेहरे पर नूर आ गया, होंठ मुस्कुरा पड़े. ऐसे लगा की बरसो बाद किसी अपने को देखा हो .
“कौन है देव ये ” पुछा श्वेता ने
“जोगन ” दिल के किसी कोने से आवाज आई और बारिश और तेज हो गयी .
सांवला चेहरा, बिल्लोरी आँखे , ठोड़ी पर गोदे गए तीन तिल.कलाई में लाल धागा , केसरिया लहंगा-चोली में क्या खूब लग रही थी वो . उसके गले में वो ही लाकेट था जो पिस्ता ने मुझे दिया था .
“मिले क्या तुम इससे, ” श्वेता ने कहा
मैं- नहीं , अभी तक तो नहीं पर उम्मीद है जल्दी ही मिल पाऊंगा .
और कुछ बातचीत के बाद श्वेता ने मुझे बताया की जल्दी ही वो तमाम प्रॉपर्टी मेरे नाम शिफ्ट करवा देगी , मुनीम के टच में है वो . दोपहर होते होते वो लौट गयी. मैं बस वो तस्वीरे देखता रहा जब तक की नाज ने आकर मुझे टोका नहीं .
“पंचायत होगी शाम को तुम्हे लेकर ” उसने कहा
मैं- क्यों भला
नाज- तुम्हारी वजह से
मैं- मेरी वजह से क्या
नाज- तुम जानते हो
मैं- ये गाँव नहीं जानता , ना तुम जानती हो किन हालातो में मैं वापिस यहाँ लौटा हूँ . मुझे परवाह नहीं पंचायत की
नाज- फिर भी तुम्हे जाना तो होगा वहां हो सकता है कोई बात तुम्हारे भले की ही निकल आये
न चाहते हुए भी शाम को मैं पंचायत में पहुँच ही गया .
“देवा, इस गाँव के लिए ये ख़ुशी की बात है की चौधरी फूल सिंह का वारिस वापिस लौट आया पर अब पहले जैसा न समय रहा है न हालात . तुम्हारे और दुर्जन के बीच जो भी दुश्मनी थी , उसकी मौत से दोनों गाँवो के संबंधो में फर्क आयेगा. दोनों गाँवो के लोग काम धंधे के सिलसिले में आते जाते रहते है ” सरपंच ने गला खंखारते हुए कहा .
मैं- साफ़ साफ बोल सरपंच जो तेरे मन में है
सरपंच- तुम यहाँ से चले जाओ देवा,
मैं- ये गाँव घर है मेरा , सात साल से भटक रहा हूँ अकेला, ले देकर परिवार के नाम पर बुआ ही थी वो भी मारी गयी . यहाँ आकार पता चला की कुछ नहीं बचा, माँ-बाप भी नहीं रहे, मेरे बदन में पांच गोलियों के घाव है और मुझे कुछ नहीं मालूम ये किसने किया, कौन मारना चाहता है मुझे, मेरे बाप को किसने मारा. मेरे साथ क्या हुआ था . नियति ने मुझे मौका दिया है अपने सवालो के जवाब मांगने का वो लिए बिना मैं जाने वाला नहीं .
सरपंच- गाँव का मुखिया होने के नाते मेरी जिम्मेवारी है की मैं गाँव के माहौल को बिगड़ने न दू .
मैं- सरपंच , ये मेरी लड़ाई है . लाला को मैं देख लूँगा वैसे भी मैं गाँव से मदद की मांग नहीं करता. न मेरी गाँव से कोई अपेक्षा है न गाँव मुझसे कोई अपेक्षा करे, पर अगर मुझे मालूम हुआ की मेरे परिवार की बर्बादी में कोई भी गाँव वाले का हाथ है तो फिर मैं जो करूँगा वो करूँगा.
सरपंच- ठीक है फिर, पंचायत फैसला करती है की चौधरी फूल सिंह का लड़का जिए या मरे गाँव का कोई भी व्यक्ति इस से सम्बन्ध नहीं रखेगा . देव से कोई भी किसी भी परकार का लेनदेन नहीं करेगा. अब तक मुनीम की सरपरस्ती में गाँव के लोग इसकी जमीनों पर काम करते थे अब नहीं करेंगे, दुकान वाला इसे कोई कोई सामान नहीं देगा. हम सब लाला के पास जायेंगे और माफ़ी मानेंगे साथ ही बताएँगे की इस लड़के से हमारा कोई लेना देना नहीं है . और जो भी पंचायत के इस फैसले को नहीं मानेगा उसका भी हुक्का-पानी बंद कर दिया जायेगा साथ ही कड़ी सजा दी जाएगी
“और वो कड़ी सजा क्या होगी सरपंचा ” जैसे ही मेरे कानो में ये आवाज आई मैंने पलट कर देखा पीछे से पिस्ता चली आ रही थी गुलाबी सूट आँखों पर काला चश्मा लगाये .दुपट्टे की कहाँ परवाह थी उसे.
“मैंने पुछा की वो कड़ी सजा क्या होगी सरपंचा ” किसी जहरीली नागिन सी फुफकारी वो ..
“तू बीच में मत पड़ पिस्ता , ”एक गाँव वाले ने कहा
“क्यों न पडू बीच में, मैं भी इसी गाँव की हूँ ” पिस्ता ने कहा
“गाँव की थी तू भी तो छोड़ गयी ये गाँव , इतनी बड़ी हो गयी , विधायक हो गयी कभी मुड कर देखा इस गाँव को और लौटी भी तो इसके लिए, ” सरपंच ने हिकारत से थूका.
पिस्ता- हम सब के अपने अपने कारन है
सरपंच- फ़िलहाल तो मुझे अपने कारणों की चिंता है , अपने लोगो की चिंता है
“अगर तुम्हारी रगों में खून की जगह पानी बहने लगा है तो धिक्कार है तुम लोगो पर , चौधरी साहब के कितने अहसान रहे है इस गाँव पर और तुम साले कायर लोग . उतार कर फेंक दो ये पगड़िया और सलवार पहन लो . भूल गए तुम लोग वो दिन जब चौधरी के दर पर हाथ जोड़े खड़े रहते थे मदद के वास्ते ” पिस्ता ने कहा
“जुबान पर लगाम रख छोरी , गाँव की बहन बेटी है ख्याल रख कहीं ऐसा न हो की मर्यादा की रेखा पार हो जाये. वर्ना आज भी गाँव भुला नहीं है की तू क्या थी , सब जानते है की जिसकी सपोर्ट तू कर रही है क्या रिश्ता था या आज भी है उसके साथ तेरा . शुक्र था तू इतने साल नहीं आई, तेरे साए से गाँव की औरते दूर रही वर्ना उन पर न जाने क्या असर पड़ता ” पंचायत में से एक आदमी ने कहा
पिस्ता- मैं क्या थी क्या हूँ उसकी फ़िक्र मत कर सुरता, देव की सपोर्ट की बात नहीं है बात है कायदे की , उसूलो की . पर तुम जैसे चूतिये क्या जाने की रिश्ते क्या होते है . और मुझे तो ये पंचायत तमाम झूठी आन बाण के किस्से ना ही सुनाये तो बेहतर होगा. इस गाँव की क्या औकात है है मैं तब भी जानती थी आज भी जानती हूँ. देव यही रहेगा और हक़ से रहेगा मंजूर है तो ठीक नहीं तो अपनी माँ चुदाये ये पंचायत और सरपंच.
पिस्ता की बात सुन कर मुझे हंसी आ गयी .
“छोरी, इस बात का गुरूर मत कर की तू विधायक है , होगी तेरे पास सियासी ताकत पर पंचायत भी किसी तरह से कम नहीं है . हमारा फैसला अडिग रहेगा. ” सरपंच ने तल्खी से कहा
“तो फिर ठीक है देखते है , तुम अपनी जिद रख लो मैं अपना हक़ रखता हूँ ” मैंने कहा
“चल देव यहाँ से , चुतियो की बसती में क्या ही रखा है ” पिस्ता ने अपना चश्मा सीधा किया और मेरा हाथ पकड़ कर हम लोग गाँव से बाहर की तरफ बढ़ गए....................