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Adultery जब तक है जान

Abhishek Kumar98

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#7

पिछले सात साल से मैं अपने वजूद को तलाश रहा था पर पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओ ने मुझे अहसास करवा दिया था की अतीत आसान तो हरगिज नहीं रहा होगा . मैं इतना तो जान गया था की मेरा कोई घर था पर कहाँ ये कौन बताये , सोचते सोचते कब नींद आ गयी क्या मालूम .सुबह हलकी बूंदाबांदी हो रही थी , ढाबे के लिए निकल ही रहा था की रुखसाना आ गयी .

“एक बेहंद जरुरी बात करनी है तुमसे ” उसने कहा

मैं- थोडा जल्दी में हूँ शाम को तसल्ली से मिलूँगा

“सुनो तो सही ” वो बोली

मैं- कहा न अभी नहीं .

पास से निकलते हुए मैंने रुखसाना के हाथ को हलके से सहलाया और आगे बढ़ गया , दरअसल मुझे थानेदार से मिलना था .

“इतनी सुबह सुबह ” थानेदार ने कहा

मैं- कुछ सुराग मिला क्या सोनिया के कातिल का

थानेदार- नहीं पर एक बात मालूम हुई है .कुछ दिन पहले सोनिया तुम्हारी बस्ती में गयी थी

मैं- बस्ती में पर क्यों

थानेदार- शायद तुमसे मिलने

मैं- मैंने आपको बताया न हम एक दुसरे से जायदा नहीं मिलते थे और बस्ती में तो कभी नहीं

थानेदार- तुम्हारे सिवाय बस्ती में और कौन हो सकता है जिससे मिलने वो वहां जाएगी

मैं- मालूम करना पड़ेगा ये तो और उन पैसो का क्या उनके बारे में कुछ सुराग मिला

थानेदार- कोई सुराग नहीं शहर के किसी भी बैंक से इतनी बड़ी रकम नहीं निकाली गयी

मैं-- ताज्जुब है

थानेदार- इतनी बड़ी रकम आई कहाँ से सवाल ये नहीं है बरखुरदार सवाल ये है की वो रकम थी किसलिए.

मैं- जाहिर है दो नंबर के किसी काम के लिए

थानेदार- सही समझे और वो काम चुनाव हो सकता है . क्योंकि कुछ दिनों में वोट गिरने वाले है मैंने हवाला का भी सोचा था पर इलेक्शन की ज्यादा संभंव है क्योंकि सीजन है. और अगर हम ये मान ले तो सोचने की बात ये है की सोनिया वो पैसे किसके लिए ले जा रही थी .

मैं- मुझे पूरी उम्मीद है की आप मालूम कर ही लेंगे और वो दूसरी लड़की कॉल सेंटर वाली उसका क्या हुआ

थानेदार- जांच जारी है

ठाणे से मैं ढाबे पर आ गया पर दिमाग में दो बाते चल रही थी की सोनिया बस्ती में किस से मिलती होगी और हो सकता था की वो पैसे सोनिया एक हो ही न , वो पैसे उस आदमी के हो सकते थे जो मुझे मिला था . जब मैंने गाड़ी के शीशे पर मुक्का मारा था तो मुझे अच्छी तरह से याद था गाड़ी में सोनिया नहीं थी .और अगर वो पैसे उस आदमी के थे तो वो छोड़ कर जायेगा ही क्यों इतनी बड़ी रकम को .

पूरा दिन मैं बस सोच विचार करता रहा रात को मैं हमेशा के जैसे पैदल ही घर जा रहा था आसमान में बादल तो थे पर बारिश की उम्मीद कम ही थी . दिमाग का दही हद से जायदा हो गया तो , घर जाने से पहले मैंने अपने कदम ठेके की तरफ बढ़ा दिए. बोतल और चने खरीद कर मैं कोई शांत जगह चाहता था जहाँ कुछ घूँट लेते हुए मैं अपनी उलझन सुलझा सकूँ. कोना पकड़ कर पेग बनाया ही था की तभी एक जीप ठेके पर आकर रुकी और उसमे से दो लड़के उतरे और तीन बैठे रहे. हो हल्ला करते हुए उन्होंने भी अपनी अपनी बोतले खोल ली और पीने लगे.

पर इस रात भी साला कुछ न कुछ होना था ही , उनमे से एक लड़का उतरा और जिधर मैं था उधर आने लगा.



“तू, तू वही है न दो कौड़ी का ढाबे वाला ”उसने कहा

मैंने उसे देखा तो मुझे याद आया की ये वो ही था जो श्वेता के साथ उस रात ढाबे पर आया था और पिटाई हुई थी इसकी

मैं- उस रात भी तेरे को बोला था कही और जा आज भी कहता हूँ कहीं और जा .मैं परेशान हु , तू अपनी मस्ती कर मुझे मेरा पेग लेने दे.

“ऐसी तैसी तेरे पेग की ” उसने लात मारी और मारी बोतल जमीं पर गिर गयी . अक्सर मैं उलझता नहीं था लोगो से , मैंने इगनोर किया और उठ कर चल दिया .

“भाग रहा है कायर , दम नहीं है क्या मादरचोद उस रात का हिसाब बाकी है मेरा ” भोंका वो

मैं- तेरे बस की बात नहीं लोडू

शायद मेरी बात उसके दिल पर लगी

“आज जिन्दा नहीं जायेगा तू ” उसने पीछे से लात मारी मुझे. झटका लगने से मैं आगे को जा गिरा .

“अरे रॉकी क्या हुआ ” जीप में बैठे लडको ने हमें देख कर कहा

मैं- अभी तो कुछ नहीं हुआ पर अब होगा तुम्हारा ये रोकी आज की मार कभी नहीं भूलेगा.

मैंने रोकी की बांह पकड़ कर मरोड़ी और उसे झुकाते हुए उसकी गांड पर लात मारी . इतने में उसके दोस्त भी आ गए और मार पिटाई शुरू हो गयी . ठेके की रंगीन रात ख़राब होने वाली थी .हाथ में बोतल आई तो मैंने रोकी के एक दोस्त के सर पर दे मारी. चार पांच लोगो से जिस तरह मैं उलझा हुआ था, मेरे दिमाग ने मुझे एक पल सोचने पर मजबूर किया और इसी कमजोर लम्हे में वो मुझ पर भारी पड़ने लगे.

रोक्की-गलत पंगा लिया है तूने


ठेके पर मोजूद लोग साले बस तमाशा देख रहे थे ,शहरो में बीच बचाव का तो साला सिस्टम ही खत्म हो गया था . मामला जब काबू से बाहर लगने लगा तो मैंने अपनी बेल्ट खोल दी और बिना ये सोचे की कहाँ लगेगी मैं उनको पेलने लगा. तभी उनमे से एक ने गाड़ी में से हॉकी निकाल ली और मेरी पीठ पर मारी . दर्द से दोहरा हो गया मैं पर हार माननी नहीं थी मैंने हॉकी उसके हाथ से छीनी और इसी आपाधापी में वो हो गया जिसका शायद आगे जाकर अफ़सोस होने वाला था .
Ye ladke fir se aa gaya aur ladai bhi start ho gayi ab pata nahi kaunsi musibat aane wali hai
 

Abhishek Kumar98

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#8

हॉकी का वार रॉकी के सर पर जोर से पड़ा और वो अपना सर पकड़ कर चीखते हुए धरती पर बैठ गया, लक लक खून का फव्वारा उसके चेहरे से होते हुए कपड़ो को भिगोने लगा. एक पल के लिए जैसे सब कुछ थम सा गया हो

“ये क्या किया तूने, तू जानता भी है ये कौन है अगर इसे कुछ हुआ न तो ” उस बन्दे की बात अधूरी रह गयी क्योंकि आगे ही पल उसका सर गाड़ी के बोनट से जा टकराया और ऐसा एक बार नहीं बल्कि दो तीन बार हुआ . ठेके पर अजीब सा सन्नाटा पसर गया था जो उस आने वाले तूफ़ान का अंदेशा तो जो जिन्दगी को बदल कर रख देने वाला था .

“तुम में से किसी और की इच्छा है अपनी गांड तुडवाने की तो बताये ”

कोई कुछ नहीं बोला. मैंने हॉकी फेंकी और गाड़ी में पड़ी बोतल को अपने होंठो से लगा ली. रॉकी के दोस्त उसको देखने लगे और हमको जरा भी फर्क नहीं पड़ता था की वो जिन्दा था या मर गया . कम से कम उस वक्त तो जरा भी फर्क नहीं पड़ रहा था .



नशे में चूर लडखडाते हुए मैं बस्ती में पहुंचा . बारिश शुरू हो चुकी थी . सीने में जलन मची हुई थी , पहली बार ऐसा लग रहा था की इस बारिश में मैं अपने दर्द को बहा देना चाहता था . बूंदों के बीच रोशन बल्ब की मोजुदगी में भी मैं उन काली-पीली परछाई से घिरा था जो मुझे न जाने क्या कह रही थी सर फटने को था पर इस से पहले की मैं गिर जाता किसी ने मुझे थाम लिया .

“इतनी भी क्या पीनी जो कदम साथ छोड़ जाये बरखुरदार ” चंगेजी ने मुझे सहारा देते हुए कहा

मैं- पी नहीं है , बस जला रहा हूँ खुद को इस आग में सकून के वास्ते .

चंगेजी- अब कहाँ किसे सकून मिलेगा , इस रात ये बादल नहीं आग बरस रही है और तुझे होश ही कहाँ की इस आग को तू ही सुलगा आया है .

हम दोनों एक रेहड़ी पर बैठ गए .

चंगेजी- जब पहली बार तुझे इस बस्ती में देखा था , तेरी आँखों में बगावत देखि थी ,

मैं- मैं तो बस जीना चाहता हूँ

चंगेजी- हर कमबख्त बस जीना ही तो चाहता है काके. पर ये मादरचोद दुनिया जीने भी कहाँ देती है

मैं- तेरी भी कोई कहानी है क्या मेरे जैसी

चंगेजी- हम जैसो की कोई कहानी नहीं होती , हम लोग नसीब के मारे होते है ज़माने के जुल्मो का हिसाब करते करते हम खत्म हो जायेंगे एक दिन कीड़े मकोडो के जैसे ठेके पर जो आग तू लगा आया है उसमे बस्ती जल जाएगी . ये रात तो बीत जाएगी जैसे तैसे कल का सूरज कहर बन जायेगा. इस आग में तू तो जलेगा ही मैं भी जलूँगा .न जाने क्यों तुझमे मै अपना बचपन देखता हूँ , भला इसमें होगा की तू भाग जा यहाँ से इस शहर से

मैं- जो हुआ मेरी कोई गलती नहीं और अब परवाह भी नहीं .भाग कर जाऊ भी तो जाऊँगा कहाँ , कही और से भाग कर यहाँ आया था यहाँ से भागूँगा तो हमारी साली औकात क्या ही रही

चंगेजी- तू नहीं तेरा नशा बोल रहा है तू जानता ही नहीं जिसको मार कर आया है वो कौन है

मैं- शुरुआत उसने की थी ख़त्म मैं कर आया .

चंगेजी-मंत्री उदय सिंह का बेटा था वो . पूरा सहर गुलाम है तो उसका मैं भी . इसीलिए कहता हूँ निकल जा यहाँ से कम से कम जिन्दा तो रहेगा .

“कल की कल देखेंगे ” मैने आखिरी घूँट भर कर बोतल खत्म की और घर की तरफ बढ़ गया

“तेरी मर्जी ये है तो ये ही सही पर कल मैं मजबूर रहूँगा हाथ बंधे रहेंगे मेरे.आने वाले तूफ़ान की आहट को सुन ” चंगेजी ने कहा

मैं- कल कभी आया नहीं न कल कभी आएगा

घर आने के बाद मैंने अपनी शर्ट उतारी , बदन पर पांच गोलियों के निशान एक बार फिर से मेरा मजाक उड़ाने लगे. जख्मो पर हाथ फेरते हुए मैं गहरी सोच में डूब गया इतनी गहरी सोच में की कब रुखसाना आकर मुझसे लिपट गयी मालूम ही नहीं हुआ .

“तुम यहाँ इस वक्त ”

“अब वक्त से भी इजाजत लेनी पड़ेगी कल वो आ जायेंगे फिर मैं दूर हो जाउंगी तुमसे जितने भी लम्हे बचे है तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ ” उसने मेरे कान को चुमते हुए कहा .

“ये दुरी भी भला कोई दुरी हुई. इस हकीकत को हम दोनों जानते है की जुदाई ही हमारा नसीब है तो फिर क्या घबराना ये सोच के ” मैंने पलट कर उसे अपने सीने से लगाया .

रुखसाना- ना जाने क्यों ये रात बड़ी भारी सी लगती है

मैं- सुनहरी धुप इंतज़ार कर रही है तुम्हारा .

रुखसाना- याद बहुत आओगे तुम

उसकी आँखे भर आई.

मैंने बस उसे अपने आगोश में भर लिया . सुबह से ही बादलो का इश्क चालू था आसमान से . चाय की तलब लगी थी उठ कर मैं बस्ती की थडी पर पहुँच गया चाय का बोला और बैठ कर अखबार देखने लगा. बदन टूट सा रहा था रात भर रुखसाना ने निचोड़ ही लिया था जैसे.

“कितनी बार कहा है मुझे चीनी ज्यादा लगती है ” मैंने शिकायत की

“इस से ज्यादा मीठा डाला तो चीनी नहीं चाशनी ही लगेगी फिर तो ” चाय वाले ने हँसते हुए कहा .

एक चुस्की भरी ही थी की पीछे से किसी ने न जाने क्या दे मारा मन बेंच से निचे गिर पड़ा. आँखों के आगे अँधेरा सा छा गया और अगले ही पल जैसे बिजली ही गिर पड़ी हो मुझ पर . आँखे खुलती उस से पहले ही मार पड़नी शुरू हो गयी .

“साले, उस दिन बहुत उड़ रहा था मैंने कहा था न जिस दिन मौका लगा तेरी माँ चोद दूंगा ” ये कल्लू था

मैंने उठने की कोशिश की पर साला मौका ही नहीं लग रहा था . जैसे तैसे करके एक दो से बचते हुए मैंने खुद को संभाला पर आज सब बेकार था . एक भी दांव नहीं चला . बेहाल मैं जमीन पर ही पड़ा रहा जब तक की भागते हुए रुखसाना बीच में आकर नहीं पड़ गयी .

“मत मारो इसे कल्लू मत मारो ” हाथ जोड़ने लगी वो .

“दूर हो जा डाक्टरनी , मैं तेरी इज्जत करता हूँ कहीं ऐसा ना हो जाये की इसके साथ तू भी लपेटे में न आ जाये ” कल्लू ने रुखसाना को धक्का दिया .

मैं- रुखसाना तुम घर जाओ

रुखसाना- तुझे ऐसे छोड़ कर जाउंगी तो ये तौहीन होगी अपनी दोस्ती की

मैने कल्लू के एक साथी के पैर पकड़ कर उठने की कोशिश की और बोला- मैंने भी तुझसे कहा था न कल्लू की दुबारा कभी भी ये गुस्ताखी मत करना

कल्लू और हमारे बीच मार पिट शुरू हो गयी . मुर्दा बस्ती के लोग साले तमाशा देखने लगे. पर आज का दिन न जाने कैसा था मेरा जरा भी जोर नहीं चल रहा था . और एक लम्हे के बाद मेरे घुटने टिक गए. समझ नहीं आ रहा था की सर से पानी बह रहा था की खून . एक वक्त ऐसा आता है जाब आपको मार का दर्द महसूस होना बंद हो जाता है . कल्लू मुझे घसीटते हुए चंगेजी के पास ले गया .

“मैंने कहा था न कल मैं मजबूर रहूँगा . कसम से मेरा दिल खून के आंसू पी रहा है पर मैं मजबूर हूँ ” चंगेजी मुझसे कह ही रहा था की तभी एक काली गाडी आकर रुकी. चंगेजी मुझे उस गाडी के पास ले चला और दरवाजा खुलते ही एक लात मेरे सीने पर आ पड़ी. मैं जमीन पर जाकर गिरा.

“उठाओ इसे , हम भी तो देखे इस सहर में किसकी इतनी मजाल हो गयी की हमारे सामने सर उठा सके ” वो आवाज मेरे कानो में पड़ी तो एक बार फिर से अतीत की काली स्याही मेरी आँखों के सामने झिलमिलाने लगी . एक लात मेरे पेट में पड़ी और फिर कल्लू ने उठाया मुझे .

“देख साले, सामने कौन है सहर के भगवन है ये और तू साले इनसे पंगा लेने की जुर्रत करता है ” कल्लू ने कहा

“सांस तो लेने दो यार ” मैंने अपने बालो को सर से हटाते हुए कहा और जैसे ही हम दोनों ने एक दुसरे को देखा, नजरो ने नजरो को समझा.तूफान सा ही आ गया .


“तुम ” उसने टूटी सी आवाज में बस इतना ही कहा और मुझे अपने सीने से लगा लिया . आसमान में बिजली जोर से गरजी और आंसुओ को बरसात ने छिपा कर रुसवा होने से बचा लिया .
Ye bahut jabardast update bhai bahut bada panga ho gaya aur Rukhsana ne bhi aakhiri baar hero ke pal bita liye aur subha hi kallu n bechare hero ko peet diya but lagta hai ye hero ke liye acha hi hua dekhte ye kaun hai hero ka
 

Abhishek Kumar98

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#9

बरसों पहले थामा था उसे ऐसी ही किसी बरसात में ,आज भी ऐसी ही बरसात में मेरे आगोश में थी वो . आँखे बंद किये दुनिया भर के दर्द को भूले अपने सीने से लगाये उसे मैं रोता रहा और शायद वो भी . न जाने कितनी देर वो मेरे सीने से लगे रोती रही फिर अलग हुई और एक थप्पड़ खींच कर मारा उसने मुझे .

“कहाँ चला गया था तू जुल्मी मुझे छोड़ कर ,न खोज न कोई खबर दुनिया कहती रही की मर गया पर मैंने नहीं माना दिल ने हमेशा कहा की कहीं किसी रोज किसी न किसी मोड़ पर तू जरुर मिलेगा और देख मेरी दुआ आज कबूल हुई ” उसने रोते हुए कहा

“मेरी मज़बूरी के अपनी इस दुरी के जितने भी बहाने थे जब झूठे थे सरकार ” मेरे होंठ अपने आप कह उठे .

“अब कही नहीं जाना मुझे छोड़ के ” कहते हुए वो पास आई और अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए .

“ये तो दुश्मन है , अपने रोकी भैया को इसने ही मारा है और आप मालिकिन ” कल्लू के आगे के शब्द उसके मुह में ही दम तोड़ गये और वो जमीन पर जा गिरा

“हरामजादे ,तू जानता ही क्या है इसके बारे में . खाल खींच कर यही लटका दूंगी अगर दुबारा इसकी तरफ नजर भी उठी तो ” उसने कहा

“देव, तुम चलो मेरे साथ ” उसने कहा

मैं- कहाँ चलू, कुछ भी तो नहीं रहा अब मेरा .

“क्या नहीं है तुम्हारा देव, सब कुछ तो है तुम्हारा ये जमीं ये आसमान वो खेत खलिहान वो गाँव जिसे तुम छोड़ ये, वो गलिया वो चोबारे वो तमाम रस्ते जहाँ हमने एक दुसरे का दीदार किया इंतज़ार किया सब कुछ तुम्हारी आज भी राह देख रहा है क्या हुआ जो परदेसी हुए घर लौटने का वक्त आ गया है वनवास ख़त्म हुआ सरकार ” चहकते हुए बोली वो

“घर, गाँव मेरे रस्ते सब कुछ भुला दिया गया है तक़दीर ने अपने आप से जूझ रहा हूँ मैं सात साल बीत गए सिवाय इस नाम के कुछ भी नहीं मेरे पास ” मैं बस इतना ही कह सका

“क्या तुम्हे मैं भी याद नहीं , कहो की तुम झूठ कह रहे हो कहो की तुम्हे पिस्ता याद नहीं , तुम्हारी पिस्ता याद नहीं ” टूट ही तो गयी थी वो जैसे .

मैं क्या ही कहता उसे की तभी एक कार और आकर रुकी वहां और उस से श्वेता उतरी.

“भाभी देव से जो हुआ वो शायद अनजाने में हुआ है आपको उसकी बात एक बार तो सुननी चाहिए गलती रॉकी की थी ” श्वेता ने हांफते हुए कहा

“इसकी ही तो सुनती आई थी और देखो नसीब ये मुझे नहीं पहचानता ” हारी सी बोली वो

श्वेता- आप देव को पहले से जानती है भाभी, कैसे

“राधा अपने श्याम को नहीं जानेगी तो फिर किसे जानेगी पिस्ता ने ही अगर देव को नहीं जाना तो फिर क्या ख़ाक जाना. मेरी उफनती सांसे , ये जलता हुआ दिल,बहकी हुई धड़कने ये जिन्दगी आज जो भी है इसकी बदोलत ही तो है , तुम पूछती हो की मैं इसे कैसे जानती हूँ.ये ना पूछो की मैं इसे कैसे जानती हूँ ये न पूछो की ये मेरा क्या लगता है . बस एक आग है जिसमे हम दोनों जले है और शायद घर भी ” उसने कहा और पास के चबूतरे पर बैठ गयी . आसमान में बादल और जोर से गरजने लगे थे . ना जाने कैसी ये कहानी थी जिसके हम लोग किरदार थे . बड़ी गहरी नजरो से वो मुझे देख रही थी और मैं उसे. सर से बहता खून टप टप करके धरती को चूम रहा था . लहराती हुई फिज़ाओ के दरमियान भीगते हुए सर के दर्द से जूझते हुए मैं अतीत और वर्तमान के बीच अपनी खोयी हुई यादो को तलाश कर रहा था . बिजली की चकाचोंध से मैं कांप सा गया और एक धुंधली सी छाया जैसे मुझे पुकार उठी.

“देव, मेरे लाल ”

आँखे बंद किये मैंने अपनी बाहें फैलाई और मेरे होंठो ने बस इतना कहा

“माँ ” उसके बाद मुझे कुछ भी याद नहीं रहा . होश आया तो मैं रुख्स्साना के घर पर था . बदन पर कुछ पट्टिया बन्धी थी , दर्द था . गला सूख रहा था पानी के लिए हाथ पास रखे जग तक किया ही था की जग निचे गिर गया जोर की आवाज हुई और रुखसाना दौड़ते हुए अन्दर आई .

“देव, आवाज दे सकते थे न ” उसने कहा

मैं- वो कहाँ है

रुखसाना- कौन

मैं- पिस्ता

रुखसाना- एक झलक देखि उसकी और सब कुछ भुला बैठे हो

मैं-वो बात नहीं है , एक वो ही है जो मेरे अतीत से जुडी है मेरी भूली बिसरी यादो का सहारा

रुखसाना- नसीब भी क्या खेल खेलता है न देव, अजीब से हालात हो गए है देखो हम कैसे बिछड़ रहे है , पर ख़ुशी है कोई तो ऐसा मिला तुमको जो तुम्हारे अतीत की धुंध को छांट देगा. कम से कम मुझे ये तो आराम रहेगा की मेरे जाने के बाद कोई तो होगा तुम्हारे साथ .

रुखसाना ने मेरे माथे को चूमा

मैं- कोई रहे न रहे ,दिल के किसी कोने में तुम्हारी जगह जरुर रहेगी . हमेशा रहेगी . जब कभी तुम मुझे याद करके मुस्कुराओगे तो मैं भी हंस पडूंगा . इस शहर का ये तो अहसान है मुझ पर की तुम्हारी जैसी दोस्त मिली .

रुखसाना- और इस पिस्ता का क्या चक्कर है . उसकी आँखों में बहुत कुछ देखा मैंने और जिस तरह से बर्ताव था गहराई से जुडी है वो . कुछ तो राज़ है अतीत में देव इश्क किया तो भी मंत्री की बहु से . पता नहीं मुझे डर है या फ़िक्र

हम बात कर ही रहे थे की तभी श्वेता अन्दर आ गयी .

“”देव,कुछ लाइ हूँ तुम्हारे लिए “ उसने कहा

मैं- क्या

वो कुछ नहीं बोली उसने एक कागज मेरी तरफ किया . मैंने कागज खोला उसमे सिर्फ एक शब्द लिखा था “नसीबपुर ”

इससे पहले मैं और कुछ कहता श्वेता बोल पड़ी -भाभी ने कहा है की जल्दी ही वो तुम्हे मिलेगी , जरुरत का कुछ सामान और गाड़ी बाहर है

श्वेता ने अपने गले से वो लाकेट उतारा और मुझे देते हुए बोली- उस रात पुछा था न तुमने की किसका है ये , ये तुम्हारा है . भाभी पहनती थी इसे कभी फिर मैंने जिद करके ले लिया. अब तुम्हारी अमानत संभालो तुम

“श्वेता, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ रोकी के लिए . मैं हरगिज नहीं चाहता था की वो रात कुछ भी ऐसा हो पर कसम से हालात मेरे काबू से बाहर हो गए ” मैंने कहा

श्वेता- समझती हूँ , कुछ चीजो पर हमारा बस कहा चलता है

अगली सुबह , रुखसाना से विदा लेकर, चमन को अपना ढाबा सौंप कर मैने उस सफ़र की बस पकड़ ली जहाँ मेरा अतीत मेरा इंतज़ार कर रहा था .
Bahut jabardast update bhai kya entry mari hai hamari Pista ne bahut badiya ab hero ke paas uske naam ke sath sath jaane ki raah bhi hai Naseebpur
 

Abhishek Kumar98

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#10

नौ दस घंटे का थकाऊ सफ़र करके मैं उस शहर में था जो कभी हमारा अपना हुआ करता था खैर, अँधेरा हो चूका था चौक पर इक्का दुक्का साधन ही दौड़ रहे थे . एक चाय वाले से नसीबपुर के बारे में पुछा तो मालूम हुआ की कोई सात आठ कोस का रास्ता था वैसे तो टेम्पो वगैरह जाते थे पर चूँकि रात का समय था तो फिलहाल कोई उम्मीद नहीं थी .कडवे पानी से गले को तर करके मैं पैदल ही बताये रस्ते पर चल दिया. रात का सफ़र , अँधेरा और अकेले हम इस से बेहतर भला और क्या हो सकता था .

सडक पीछे छूट गयी , खेती का इलाका शुरू हो गया था , नहर का शांत पानी , मचलती हवा अजीब सा इलाका खेत ख़त्म होते ही बनी शुरू हो गयी . जैसा मुझे बताया गया था ये मेरा इलाका था इन फिज़ाओ को दिल शायद महसूस भी करने लगा था . वो कहते है न की उंगलियों से कभी नाखून दूर नहीं हो सकते. कदमो ने अपना रास्ता पहचान लिया था .

जल्दी ही बनी पार हो गयी और बस्ती शुरू हो गयी , घरो में पसरा अँधेरा बता रहा था की बिजली गुल थी .कुछ दूर लालटेन की रौशनी दिखी तो उस तरफ बढ़ा , मालूम हुआ की एक दूकान थी .

“क्या चाहिए जल्दी बोलो दूकान बस बंद होने ही वाली है ” कुछ झल्लाई सी बोली वो .

मैं-जी एक पता चाहिए था

“पता, यहाँ कोई पता नहीं मिलता . ”बोली वो .

लालटेन की रौशनी में उसका रोशन चेहरा अलग ही नूर लिए हुए था . उम्र कोई पच्चीस छब्बीस पर जोबन का भरा पिटारा .

“कहाँ खो गए मुसाफिर, कुछ चाहिए तो बोलो न बरना मैं बंद करुँगी दूकान वैसे भी मौसम बेईमान है . बरसात हुई तो यही रुकना पड़ेगा ” इस बात कुछ तैश थी उसकी आवाज में

मैं- खोया हुआ तो हूँ ही , पर फिलहाल मुझे देव के घर जाना है

“देव, ऐसा तो कोई रहता नहीं इधर , किरायेदारो के यहाँ तो नहीं जाना ” पुछा उसने

मैं क्या कहता उस से मेरे सर में दर्द होने लगा था अचानक से ही .

“पानी मिलेगा क्या थोडा ” मैंने कहा

उसने अजीब नजरो से देखा मुझे फिर मटके से एक गिलास भर के दिया . उसे शुक्रिया कह कर मैं आगे बढ़ते हुए सोच ही रहा था की किस से पूछा जाये क्योंकि एक तो अँधेरा ज्यादा और तक़रीबन घरो के दरवाजे बंद . कुछ आगे जाकर एक बड़ा सा बरगद का पेड़ आया जहाँ से तीन अलग अलग रस्ते जा रहे थे , पेंचो अजीब ही था सब कुछ अब किस तरफ जाया जाये दिन होता तो कोई न कोई मिलता ही .

“अब यूँ खड़े रहोगे तो कहीं नहीं पहुचोगे बेहतर होगा की किसी घर का दरवाजा खड़का लो ” उसी दूकान वाली ने पीछे से आते हुए कहा

मैं- तुमने ही मदद नहीं की तो और कोई क्या करेगा

“भाई जी , तुम्हे घर आना ही होगा ” तभी मेरे मन में उस रात मिले आदमी के शब्द आये

मैं- एक मिनट , गाँव में किसी भाई जी का घर है क्या

“तुम, तुम क्यों पूछ रहे हो भाई जी के घर के बारे में , ” इस बार दूकान वाली की आवाज में कुछ नरमी सी थी

मैं- सुनो जो भी तुम्हारा नाम है तुम मुझे भाई जी के घर पहुंचा सकती हो क्या

उसने लालटेन थोड़ी और ऊँची की और बड़े गौर से मुझे देखा और अपने कंधे उचकाते हुए सर हिलाया . उसके पीछे चलते हुए मेरी नजर उसकी गांड पर पड़ी जो लहंगे में बड़ी प्यारी लग रही थी , न जाने क्यों मुझे रुखसाना की याद आ गयी . कुछ दूर जाने के बाद एक मोड़ आया और मेरे पैर अपने आप रुक गए. गली का वो छोर जहाँ बहुत से झंखाड़, पौधे उगे थे तभी मेरी आँखे अचानक से हुई रौशनी की वजह से बंद सी हो गयी पर जब मैंने देखा, मैंने देखा तमाम घरो के दरमियान एक टूटी भूली बिसरी ईमारत चुपचाप सी खड़ी थी .

“घर ” होंठ अपने आप बुदबुदा उठे. कदम कदम उस जंग खाए दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे कुण्डी खोलने ही वाला था की दूकान वाली ने मुझे टोका- अरे उधर क्या कर रहे हो आओ इधर और चलो मेरे साथ

मैंने उसे लगभग अनसुना किया और सांकल खोल कर अन्दर घुस गया अजीब सी घुटन ने मेरा स्वागत किया जैसे मैं सब कुछ जानता था मेरे हाथ बिजली के बोर्ड तक गए और न जाने कितने अंधेरो में डूबे इस घर को रौशनी ने अपना लिया .न जाने कितनी देर से और कितनी देर तक मैं वहां खड़ा रहता अगर उस आवाज ने मुझे यादो के जंजाल से बाहर नहीं निकाला होता

“देव ,मेरा दिल कहता था तुम किसी दिन जरुर लौट आओगे.” जैसे ही मैं पीछे मुड़ा उसने मुझे सीने से लगा लिया और बोली- मैं जानती थी तुम लौट आओगे जरुर आओगे

“माँ, क्या तुम माँ हो मेरी ” मैं बस इतना ही कह सका .
Chalo aakhirkar hero apne gaon aur ab us dukan wali ki madad se apne ghar pahunch hi gaya
 

Abhishek Kumar98

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#11
“क्या तुम मेरी माँ हो ” मैंने पुछा
“माँ तो नहीं पर माँ सी जरुर थी कभी ” उसने भार्र्ये गले से कहा
“माँ कहाँ है , घर वाले कहा है ” एक सांस में मैंने बहुत से सवाल कर डाले उस औरत से.
“कुछ भी बाकी नहीं रहा देव ,ये घर अब घर नहीं रहा . तू क्या गया तेरे साथ खुशिया भी चली गयी ” बोली वो
मैं- क्या हुआ था बताओ मुझे
इस से पहले की वो औरत कुछ भी कह पाती दरवाजे पर हुई दस्तक ने हमारा ध्यान खींच लिया
“मैंने कहा था न तुमको वापिस आना ही होगा भाई जी ” ये वो ही आदमी था जो मुझे शहर में मिला था .
“सोनिया के साथ क्या किया तुमने ” मैंने गुस्से में उस आदमी का गिरेबान पकड़ लिया
“मैंने कुछ नहीं किया भाई जी , मैं तो उसके बुलावे पर गया था शहर ” दबी सांसो में कहा उसने
मैं- क्यों बुलाया था उसने तुमको सच सच बताना वर्ना ठीक नहीं होगा तुम्हारे साथ
“उस रात जब मैं तुमसे टकराया था उस से ठीक एक दिन पहले ही सोनिया का फोन आया था उसने बस इतना कहा की जल्दी से शहर आ जाओ ये देव के बारे में है” उसने कहा
मैं-और इतेफाक से ठीक उसी समय सोनिया की हत्या कर दी जाती है जब तुम उसके साथ थे . गाडी में करोडो रूपये थे पर कातिल की दिलचस्पी सिर्फ सोनिया की जान में थी , अब ये न कहना की तुम्हे कुछ नहीं पता
“वो रकम मैं ही लेकर गया था सोनिया के पास .उसके कहने पर ही , उसने कहा था की समय आ गया है ” उसने जवाब दिया
मैं ये सुनकर हैरान रह गया वो पैसा सोनिया का था
“इतना पैसा सोनिया के पास आया कहा से , और किस चीज का वक्त आ गया था ” मैंने सवाल किया
“सोनिया ने बस इतना कहा था की वक्त आ गया है देव की यादो को वर्तमान से मिलाने का . पैसे का क्या करने वाली थी मैं नहीं जानता ,मेरा काम था सोनिया के पैसे को उस तक पहुँचाना ” उसने दबी सी आवाज में कहा क्योंकि उसका गला मैंने अभी तक पकड़ा हुआ था .
“सोनिया के पास इतना पैसा कहा से आया ”मैंने गुर्राते हुए पुछा
“ये तुम पूछ रहे हो भाई जी तुम्हे सोनिया याद है पर ये याद नहीं की वो कौन थी ” उसने जैसे मुझ पर व्यंग सा किया .
मैंने उसे छोड़ा और अपनी सांसो को काबू में करते हुए कहा “यही तो मेरी उलझन है मेरी यादे ही तो मेरी नहीं कुछ भी , कुछ भी याद नहीं मुझे ” दिवार पर मुक्का मारते हुए मैंने कहा .


“सोनिया तुम्हारी बुआ थी देव, ” उस औरत ने घुटी सी आवाज में कहा और रो पड़ी . मैंने दुःख से अपनी आँखों को मूँद लिया . पर आंसुओ को बहने से रोक न पाया कलेजे में आग सी लग गयी थी जिसे मैंने पव्वे की कुछ बची घूंटो को हलक से निचे उतार कर और भड़का दिया .
“कुछ देर अकेले रहना चाहता हूँ मैं ” मैंने उन लोगो से कहा
“बेशक देव,” सुबह मिलूंगी मैं तुम्हे. उसने उस आदमी का हाथ पकड़ा और घर से बाहर निकल गयी . रात अभी आधी बाकी थी और मेरे सवाल भी . सोनिया मेरी बुआ थी जिसने भी उसे मारा था उसकी तलाश ही मेरा मकसद था . अगले दिन आँख खुली थी शायद दोपहर हुई पड़ी थी .मैं गाँव में निकल गया पर तक़रीबन घरो के दरवाजे बंद से थे , इक्का दुक्का लोगो के अलावा कोई मिला नहीं घूमते घूमते मैं गाँव से बाहर कच्चे रस्ते पर आ गया यहाँ से दो रस्ते जाते थे एक तरफ जंगल था और दूसरी तरफ खेत.
“अपनी ही मिटटी में अजनबी हुए पड़े है ” मैंने खुद से कहा और खेतो की तरफ देखते हुए जंगल की तरफ बढ़ गया . कुछ दुरी पर एक पानी की टंकी और खेली बनी थी मैंने पानी पिया और हाथ मुह धोये . तभी मेरी नजर उस बरगद के पेड़ पर पड़ी जिसकी शाखाये धरती में गड चुकी थी बहुत बड़ा पेड़ था वो . आधा चबूतरा साबुत और आधा टुटा हुआ , शायद अब लोगो ने यहाँ बैठना छोड़ दिया था . जूते उतार कर मैंने कमर को चबूतरे पर टिकाया और लेट सा गया . अजीब सा सकूं था इस जगह पर निराली सी हवा थी . पत्तो से छन कर आती धुप की किसी किरण ने मुझे ख्यालो से बाहर लाया तो मेरी नजर थोडा सा ऊपर एक डाली पर पड़ी जहाँ पर एक दिल में तीर बनाया हुआ था और सूखी हुई लिखाई में देव पिस्ता लिखा था . दिल अचानक ही बहुत जोर से धडक उठा, कुछ तो गुल खिलाये गए थे इस गाँव में देव तुमने मैंने खुद से कहा अपने होंठो पर उस चुम्बन को महसूस करने लगा जो उस रात पिस्ता ने किया था .
“कोई तो होगा जो मुझे मेरे अतीत से रूबरू करवा दे ”अपने आप से बाते करते हुए मैं गाँव की तरफ मुड गया , गाँव की गलियों को पांव महसूस तो कर रहे थे पर मन बेगाना था . वापिस लौटने के बाद मैं फिर से अपने अतीत को इस घर में तलाशने लगा पर जाहिर था की परिवार के बर्बाद होने के बाद यहाँ से काफी कुछ हटा दिया गया था
“लौट आये तुम ,खाना लाइ हूँ ”उसी औरत ने अन्दर आते हुए कहा
मैं- नाम क्या है तुम्हारा
वो- क्या मैं तुम्हे सच में याद नहीं
मैं- कोई शक है तुम्हे
वो- सहनाज है पर तुम मुझे नाज मौसी कहते थे
मैने उसके हाथ से थाली ली और खाना खाने लगा.
मैं-ऐसा क्या हुआ था जो इस घर की खुशिया ख़ाक हो गयी
इस से पहले की नाज कुछ कह पाती दरवाजे का पल्ला जोर से खुला और धडधडाते हुए कुछ लोग अन्दर घुस आये और मेरा गिरेबान पकड़ लिया .............................
Bahut jabardast update bahut takleef sehkar update di bahut acha laga but usse jyada jab acha laga tha jab pata chala aap thik ho Soniya hero ki bua thi Pista aur hero ki prem kahani yahin isi gaon se shuru huyi thi but Soniya ne yahi waqt kyu chuna tha hero ko wapis lane ka aur un paiso ka karne wali thi wo aur ye kaun aa gaya jisne hero ka girebaan pakad liya hai
 

Abhishek Kumar98

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#12
इस से पहले की नाज कुछ कह पाती दरवाजे का पल्ला जोर से खुला और धडधडाते हुए कुछ लोग अन्दर घुस आये और मेरा गिरेबान पकड़ लिया ...
“कहाँ है वो, ” काली दाढ़ी वाले आदमी ने मुझे बाहर घसीटते हुए कहा
मैं- कौन कहा है किसकी बात कर रहे हो तुम .
“तू अच्छी तरह से जानता है की मैं किसकी बात कर रहा हूँ हरामजादे ” उसने मेरे मुह पर मुक्का मारा.
अचानक शुरू हुई मार पीट से मेरा दिमाग सुन्न हो गया. एक तो मैं अपनी याददास्त से परेशान था ऊपर से अतीत के चुतियापे सामने आकर खड़े हो गए थे.
“सांस तो लेने दो बहनचोद ” पसलियों पर पड़ी लात के दर्द से दो चार होते हुए मैंने कहा .
“सात बरस बीत गए कुत्ते,हर दिल हर पल बस इसी इन्त्ज्जार में गुजरा की कब तू मिले और देख वो कहावत सही ही सुनी थी की जब कुत्ते की मौत आती है तो वो गाँव की तरफ भागता है . इतने सालो से तू अपनी गांड छुपाये हुए था पर आज हमारे हत्थे चढ़ ही गया . बता कहा है वो ” उसने फिर से मारा मुझे .
मैं- किसकी बात कर रहे हो तुम कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे .
“जोगन की बात कर रहा हूँ मैं ,उस हरामजादी की वजह से मेरा भाई आज तक कोमा में पड़ा है , जब जब उसे देखता हूँ मेरा खून जलता है बता कहाँ छुपा कर रखा है उसे तूने . ” उसने फिर से मेरे मुह पर मारा


“पहली बात तो मुझे पता नहीं दूसरी अगर मालूम होता तो भी नहीं बताता और तेरा भाई अगर इस हालत में है तो जरुर उसने कोई बुरा कर्म किया होगा जिसकी उसे सजा मिली ” मैंने उस के मुह पर हिकारत से थूक दिया
“साले, तेरी इतनी औकात दुर्जन पर थूकता है ” गुस्से से उसने फिर से प्रहार करना चाहा पर इस बार मैंने उसकी लात पकड़ ली और उसे हवा में उछाल दिया.
“बस बहुत हुआ अबकी बार किसी ने भी हाथ लगाया न तो उसके काँधे पर वो हाथ नहीं रहेगा ” मैंने कहा ही था की मार पीट शुरू हो गयी . दिमाग में हजारो सवाल घुमने लगे थे पर फिलहाल दुर्जन और उसके गुंडों से जान छुडानी थी . आस पास के लोग इकठ्ठा होने लगे थे कभी मैं भारी तो कभी दुर्जन .
“चाहे मेरी जान ले लो पर छोड़ दो इसे, जाने दो इसे, दुश्मनी मुझ से है मेरे से निभाओ जाने दो इसे ”
“देव, देव. aaahhhhhhhhhhh ” ख्यालो में एक चीख सी गूंजी .एक धमाका सा हुआ और मैंने एक छाया को गिरते हुए देखा .
“नहीईईइ ” अगले ही पल मैंने दुर्जन की गर्दन को मरोड़ दिया. सारा तमाशा अचानक से रुक गया. चीख-पुकार सी मच गयी .
“जोगन ” चीखते हुए मैं जोर जोर से रोने लगा. आसमान में दूर कहीं बिजली गिरी और बरसात शुरू हो गयी .
“तुम वापिस लौट जाओ देव ” नाज ने मेरे कंधे पर सर रखते हुए कहा
“वापिस लौट जाओ देव ,यहाँ कुछ नहीं है अब कम से कम जिन्दा रहोगे
” उसने कहा
मैं- कौन था ये दुर्जन और क्यों मारना चाहता था मुझे और ये जोगन कौन है .
नाज-आज का तो पता नहीं पर किसी जमाने में आग थी वो जिस से खेलते हुए झुलस गए तुम,ये खंडहर जो कभी घर होता था इसकी दीवारे तुमसे चीख चीख कर अपनी खुशियों का हिसाब मांग रही है जो तुमने बर्बाद कर दी . सब कुछ तो खा गए तुम अब आते ही दुर्जन को मार दिया ये भी ना सोचा की इसकी कीमत कौन चुकाएगा .
“मैंने लड़ाई शुरू नहीं की वो खुद आया था मुझ पर हमला करने ” मैंने कहा
नाज- उसके लिए भी तो तुम ही जिम्मेदार हो . तुमने अगर उसके भाई को कोमा में न पहुँचाया होता तो आज ये सब नहीं होता .
मैं- मुझे याद नहीं की क्या हुआ था अतीत में
नाज- याद नहीं तो फिर क्यों आये तुम . जहाँ भी थे कम से कम चैन से तो थे
मैं- पिस्ता ने मुझे यहाँ भेजा तो जरुर कोई बात होगी
“उस रंडी को अब भी चैन नही आया मैंने बरसो पहले भी कहा था वो तुम्हे बर्बाद कर देगी और आज भी कहती हूँ ” नाज ने जमीन पर थूकते हुए कहा .
मैं- ऐसा क्यों कहती हो
नाज ने मुझे कोई जवाब नहीं दिया और घर के अन्दर चली गयी . मैं उसके पीछे पीछे गया और उसका हाथ पकड़ कर बोला- बताती क्यों नहीं मुझे मेरे अतीत के बारे में .
नाज- कोई नहीं जानता देव तुम्हारे अतीत के बारे में सिवाय इसके की पिस्ता से तुम्हारे ताल्लुकात कुछ ऐसे थे जो गाँव समाज को पसंद नहीं थे और जोगन के लिए तुमने दुर्जन के भाई से दुश्मनी मोल ली थी .
मैं- दुर्जन कौन है
नाज- पडोसी गाँव के लाला हरदयाल का सबसे बड़ा बेटा
मैं- जोगन कहाँ मिलेगी
नाज- ये तो तुम जानो
मैं- मेरा मतलब वो कहाँ रहती थी .
नाज- तालाब के पार पुराना मंदिर है उसी के पास कुटिया थी उसकी.
मैंने और कुछ नहीं पुछा और सीधा घर से बाहर निकल गया न जाने क्यों मेरे कदम जानते थे की मुझे कहाँ जाना था .
Ek aur aafat gale pad gayi hero ke uske hatho durjan mar gaya ab ye Jogan bhi aa gayi
 

Abhishek Kumar98

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#13
यादो की आन्धशिशी में जूझते हुए मेरे कदमो को बरसात भी नहीं थाम सकती थी . जल्दी ही मैं उस जगह था जहाँ कभी गाँव का मंदिर होता था. टूटी दीवारे, उखड़े पत्थर. सीढियों पर जमी काई बता रही थी की शायद इसे भी भुला दिया गया था मेरी यादो की ही तरह. मनदिर अब आबाद नहीं था . मैंने देखा की माता की मूर्ति पर जाले चढ़े थे . सीलन थी अजीब सी बदबू थी शायद उग आई घासफूस की वजह से .जाले उतारने के बाद मैंने अपने शीश नवाया और बगल से होते हुए तालाब की तरफ चल दिया

तालाब की तरफ जाती कच्चे पत्थरों की सीढियों का भी हाल बुरा ही था . बरसात की बूंदे जब तालाब के पानी पर गिरती तो उस शोर में भी मैंने सकून को महसूस किया .तभी मेरी नजर उस नीम के पेड़ पर पड़ी जो आज भी शान से खड़ा अपने होने के किस्से सूना रहा था लगभग दौड़ते हुए मैं उसके पास पहुंचा और जो देखा देख कर दिल साला थोडा सा रो ही पड़ा . कुटिया बस नाम ही की बची थी एक तरफ की दिवार मौसमो की मार नहीं सह सकी थी दरवाजे की आधी लकड़ी दीमक खा चुकी थी अन्दर जाकर देखा, छप्पर एक कोने से गिर गया था . मालूम होता था की बरसो से कोई नहीं आया इधर सिवाय कुछ कुत्ते-बिल्लियों के.


एक पानी का मटका कोने में जरुर था . एक चारपाई और कुछ गठड़िया बस यही सब तो था वहां पर .

“तुम फिर आ गए ” जेहन में एक आवाज ही गूंजी .

“यहाँ नहीं आऊंगा तो फिर कहाँ जाऊंगा ” होंठ अपने आप बुदबुदा उठे

मैंने गठड़ी खोली, दो चार जोड़ी कपडे भर थे . धुल झाडी तो एक तस्वीर उनमे से गिरी मैंने देखा दो लोगो की तस्वीर थी पर कागज़ पीला पड़ गया था और कुछ भी नही था तो मैं वापिस हो लिया.

“क्या थी तुम, क्या रिश्ता था हमारा जोगन ” सोचते हुए मैं कच्ची सड़क तक पहुंचा ही था की तभी मुनीम से सामना हो गया .

“भाई जी, मुझे नाज ने बताया की क्या काण्ड हुआ ” उसने जीप से उतरते हुए कहा .

मै कुछ नहीं बोला और साइड में बैठ गया

“भाई जी , दुर्जन की मौत से मामला थोडा नाजुक हो गया है मैं आप की सुरक्षा के लिए व्यवस्था कर रहा हूँ . मामला ठंडा होगा तो फिर से आ जाना ” उसने एक सांस में कहा

मैं- बरसो पहले दुर्जन के भाई से दुश्मनी हुई थी , अब आया तो दुर्जन मारा गया अभी भाग कर जाऊंगा फिर लौटने पर कोई और आ खड़ा होगा. अभी यही रहूँगा , नियति अगर फिर से मुझे गाँव लाइ है तो कोई तो अधूरी कहानी रही ही होगी पूरी होने के लिए . फिलहाल मैं जानना चाहता हु की सात साल पहले ऐसा क्या हुआ था की सब कुछ बर्बाद हो गया . हमारी दुश्मनी किस से थी , अब कौन दुश्मन है और जोगन कहाँ है अब . लाला हरदयाल का क्या रोल है इस कहानी में और सबसे बड़ी बात हमारे पास इतनी बड़ी रकम कैसे आई .


मुनीम- रकम तो कोई बड़ी बात नहीं भाई जी, आपके पिता बड़े जमींदार थे इस गाँव के . तक़रीबन १०० बीघा जमीन के मालिक है आप और उसके आलावा एक शराब फक्ट्री , कुछ छोटे मोटे धंधे . रही बात लाला से दुश्मनी की तो उसकी शुरुआत आपने ही की थी उसके बड़े बेटे सुलतान को कोमा में पहुंचा कर .

मैं- ऐसा क्या हुआ था

मुनीम- ये तो सुलतान जाने या आप . आज मालूम हुआ की सुलतान से हुए झगडे की वजह जोगन थी .

मैं- और कौन है ये जोग.

मुनीम- जोगन को भी भुला दिया आपने.

मैं- ताना मत मारो, बताओ उसके बारे में मुझे

मुनीम- समय समय की बात है भाई जी, वर्ना जो उसके बारे में सबसे जायदा जानता था जिसके मन में बसती थी, जिसके लिए अपने बाप से , इस गाँव से जो लड़ गया वो मुझसे जोगन के बारे में पूछता है . नियति ने कैसा खेल खेला है ये भाई जी .


मैं- हुआ क्या था .

मुनीम- जोगन कहाँ से आई थी , कौन थी ये तो कोई नहीं जानता था पर बरसो पहले वो इस मंदिर में आई तो फिर यही रह गयी . लोगो का हाथ देखती थी उनके सुख-दुःख का बताती थी . रुखा सुखा कोई जो भी दे देता काम चला लेती थी . उसके यहाँ रहने से मंदिर की साख भी बढ़ने लगी थी आस पास के लोग भी दर्शन को आने लगे थे और फिर एक दिन आया जब यहाँ पर मेला लगा था उसी मेले में आपकी और आपके पिता चौधरी फूल सिंह की बहस हुई थी , उसके बाद आपने घर छोड़ दिया . और कुछ दिन बाद पिस्ता के ब्याह की रात हम सब की दुनिया बदल गयी . उस रात के बाद आपको और जोगन को किसी ने नहीं देखा. चौधरी साहब नहीं रहे हवेली खाली हो गयी .

मैं- क्या हुआ था पिताजी को

मुनीम- किसी ने जंगल में गोली मार दी उनको .

मेरी आँखों से कुछ बूंदे बह चली.

मैं- कल तक मुझे हर उस इन्सान को नाम चाहिए जिस से हमारी दुश्मनी हो सकती है , दुश्मनी थी . और परिवार में अब कौन बचा है कोई भी चाचा-ताऊ सगे सम्बन्धी .

मुनीम- अब सिर्फ आप बचे है भाई जी.

मैं- बुआ उन पैसो का क्या करने वाली थी

मुनीम- काश मुझे मालूम होता .अचानक एक रात उन्होंने मुझसे संपर्क किया और पैसे मंगवाए

मैं- बुआ ने शादी नहीं की थी क्यों

मुनीम -की थी शादी उनका पति मर गया था तो चौधरी साहब उन्हें वापिस ले आये थे .


रात घिरने लगी थी बरसात की वजह से अँधेरा औरगहरा हो गया था . मैं मुनीम के साथ गाँव आ गया. दुर्जन की मौत के बाद लाला चुप तो रहे वाला नहीं था ये बात मैं समझ रहा था . मुनीम मेरे साथ रुकना चाहता था पर मैंने उसे जाने का कहा जाने से पहले वो एक बन्दूक मुझे दे गया . मैंने दो चार पेग लिए और चादर ओढ़ कर बरसात को देखते हुए चारपाई पर लेट गया. सुबह कुछ शोर से मेरी आँखे खुली तो मैंने निचे आकर देखा...........................
Waha us kutiya me kuch nahi bacha aur Munim se kafi kuch pata chal gaya hero ko bua vidhwa thi aur hero ke pita ko bhi kisi ne maar diya ab koi nahi hai uski Family ka aur Pista ki shadi ki raat se hi gayab hai hero aur Jogan but hero ko 5 goliyan kaisi lagi dekhte hai ab kaun aa gaya
 

Abhishek Kumar98

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#14

सुबह कुछ शोर से मेरी आँखे खुली तो मैंने निचे आकर देखा श्वेता जोर जोर से मुझे आवाजे दे रही थी .

“इतनी सुबह तुम यहाँ ” मैंने कहा

श्वेता- सोनिया जी के घर को खाली करवा दिया, चाबी देनी थी तुम्हे तो चली आई

मैं- चाबी तो बहाना है जो बात है वो बताओ

श्वेता- कैसे समझ जाते हो तुम जो भी मैं कहना चाहती हूँ खैर, मुझे कुछ और भी मिला है जो यक़ीनन तुमसे ही जुड़ा है शायद इस से तुम्हारी यादे ताजा हो जाये.

श्वेता ने मुझे एक लिफाफा दिया जिसे खोलते ही कुछ तस्वीरे मेरे सामने आ गयी. तस्वीरे पुराणी तो थी पर फिर भी साफ़ थी. ये मेरी तस्वीरे थी पर मेरे अकेले की नहीं मेरे साथ कोई और भी थी उन तस्वीरों में . जाना पहचाना चेहरा जिसे देखते ही मेरे चेहरे पर नूर आ गया, होंठ मुस्कुरा पड़े. ऐसे लगा की बरसो बाद किसी अपने को देखा हो .

“कौन है देव ये ” पुछा श्वेता ने

“जोगन ” दिल के किसी कोने से आवाज आई और बारिश और तेज हो गयी .

सांवला चेहरा, बिल्लोरी आँखे , ठोड़ी पर गोदे गए तीन तिल.कलाई में लाल धागा , केसरिया लहंगा-चोली में क्या खूब लग रही थी वो . उसके गले में वो ही लाकेट था जो पिस्ता ने मुझे दिया था .

“मिले क्या तुम इससे, ” श्वेता ने कहा

मैं- नहीं , अभी तक तो नहीं पर उम्मीद है जल्दी ही मिल पाऊंगा .

और कुछ बातचीत के बाद श्वेता ने मुझे बताया की जल्दी ही वो तमाम प्रॉपर्टी मेरे नाम शिफ्ट करवा देगी , मुनीम के टच में है वो . दोपहर होते होते वो लौट गयी. मैं बस वो तस्वीरे देखता रहा जब तक की नाज ने आकर मुझे टोका नहीं .

“पंचायत होगी शाम को तुम्हे लेकर ” उसने कहा

मैं- क्यों भला

नाज- तुम्हारी वजह से

मैं- मेरी वजह से क्या

नाज- तुम जानते हो

मैं- ये गाँव नहीं जानता , ना तुम जानती हो किन हालातो में मैं वापिस यहाँ लौटा हूँ . मुझे परवाह नहीं पंचायत की

नाज- फिर भी तुम्हे जाना तो होगा वहां हो सकता है कोई बात तुम्हारे भले की ही निकल आये

न चाहते हुए भी शाम को मैं पंचायत में पहुँच ही गया .

“देवा, इस गाँव के लिए ये ख़ुशी की बात है की चौधरी फूल सिंह का वारिस वापिस लौट आया पर अब पहले जैसा न समय रहा है न हालात . तुम्हारे और दुर्जन के बीच जो भी दुश्मनी थी , उसकी मौत से दोनों गाँवो के संबंधो में फर्क आयेगा. दोनों गाँवो के लोग काम धंधे के सिलसिले में आते जाते रहते है ” सरपंच ने गला खंखारते हुए कहा .

मैं- साफ़ साफ बोल सरपंच जो तेरे मन में है

सरपंच- तुम यहाँ से चले जाओ देवा,

मैं- ये गाँव घर है मेरा , सात साल से भटक रहा हूँ अकेला, ले देकर परिवार के नाम पर बुआ ही थी वो भी मारी गयी . यहाँ आकार पता चला की कुछ नहीं बचा, माँ-बाप भी नहीं रहे, मेरे बदन में पांच गोलियों के घाव है और मुझे कुछ नहीं मालूम ये किसने किया, कौन मारना चाहता है मुझे, मेरे बाप को किसने मारा. मेरे साथ क्या हुआ था . नियति ने मुझे मौका दिया है अपने सवालो के जवाब मांगने का वो लिए बिना मैं जाने वाला नहीं .

सरपंच- गाँव का मुखिया होने के नाते मेरी जिम्मेवारी है की मैं गाँव के माहौल को बिगड़ने न दू .

मैं- सरपंच , ये मेरी लड़ाई है . लाला को मैं देख लूँगा वैसे भी मैं गाँव से मदद की मांग नहीं करता. न मेरी गाँव से कोई अपेक्षा है न गाँव मुझसे कोई अपेक्षा करे, पर अगर मुझे मालूम हुआ की मेरे परिवार की बर्बादी में कोई भी गाँव वाले का हाथ है तो फिर मैं जो करूँगा वो करूँगा.

सरपंच- ठीक है फिर, पंचायत फैसला करती है की चौधरी फूल सिंह का लड़का जिए या मरे गाँव का कोई भी व्यक्ति इस से सम्बन्ध नहीं रखेगा . देव से कोई भी किसी भी परकार का लेनदेन नहीं करेगा. अब तक मुनीम की सरपरस्ती में गाँव के लोग इसकी जमीनों पर काम करते थे अब नहीं करेंगे, दुकान वाला इसे कोई कोई सामान नहीं देगा. हम सब लाला के पास जायेंगे और माफ़ी मानेंगे साथ ही बताएँगे की इस लड़के से हमारा कोई लेना देना नहीं है . और जो भी पंचायत के इस फैसले को नहीं मानेगा उसका भी हुक्का-पानी बंद कर दिया जायेगा साथ ही कड़ी सजा दी जाएगी

“और वो कड़ी सजा क्या होगी सरपंचा ” जैसे ही मेरे कानो में ये आवाज आई मैंने पलट कर देखा पीछे से पिस्ता चली आ रही थी गुलाबी सूट आँखों पर काला चश्मा लगाये .दुपट्टे की कहाँ परवाह थी उसे.

“मैंने पुछा की वो कड़ी सजा क्या होगी सरपंचा ” किसी जहरीली नागिन सी फुफकारी वो ..

“तू बीच में मत पड़ पिस्ता , ”एक गाँव वाले ने कहा

“क्यों न पडू बीच में, मैं भी इसी गाँव की हूँ ” पिस्ता ने कहा

“गाँव की थी तू भी तो छोड़ गयी ये गाँव , इतनी बड़ी हो गयी , विधायक हो गयी कभी मुड कर देखा इस गाँव को और लौटी भी तो इसके लिए, ” सरपंच ने हिकारत से थूका.

पिस्ता- हम सब के अपने अपने कारन है

सरपंच- फ़िलहाल तो मुझे अपने कारणों की चिंता है , अपने लोगो की चिंता है

“अगर तुम्हारी रगों में खून की जगह पानी बहने लगा है तो धिक्कार है तुम लोगो पर , चौधरी साहब के कितने अहसान रहे है इस गाँव पर और तुम साले कायर लोग . उतार कर फेंक दो ये पगड़िया और सलवार पहन लो . भूल गए तुम लोग वो दिन जब चौधरी के दर पर हाथ जोड़े खड़े रहते थे मदद के वास्ते ” पिस्ता ने कहा

“जुबान पर लगाम रख छोरी , गाँव की बहन बेटी है ख्याल रख कहीं ऐसा न हो की मर्यादा की रेखा पार हो जाये. वर्ना आज भी गाँव भुला नहीं है की तू क्या थी , सब जानते है की जिसकी सपोर्ट तू कर रही है क्या रिश्ता था या आज भी है उसके साथ तेरा . शुक्र था तू इतने साल नहीं आई, तेरे साए से गाँव की औरते दूर रही वर्ना उन पर न जाने क्या असर पड़ता ” पंचायत में से एक आदमी ने कहा
पिस्ता- मैं क्या थी क्या हूँ उसकी फ़िक्र मत कर सुरता, देव की सपोर्ट की बात नहीं है बात है कायदे की , उसूलो की . पर तुम जैसे चूतिये क्या जाने की रिश्ते क्या होते है . और मुझे तो ये पंचायत तमाम झूठी आन बाण के किस्से ना ही सुनाये तो बेहतर होगा. इस गाँव की क्या औकात है है मैं तब भी जानती थी आज भी जानती हूँ. देव यही रहेगा और हक़ से रहेगा मंजूर है तो ठीक नहीं तो अपनी माँ चुदाये ये पंचायत और सरपंच.

पिस्ता की बात सुन कर मुझे हंसी आ गयी .

“छोरी, इस बात का गुरूर मत कर की तू विधायक है , होगी तेरे पास सियासी ताकत पर पंचायत भी किसी तरह से कम नहीं है . हमारा फैसला अडिग रहेगा. ” सरपंच ने तल्खी से कहा

“तो फिर ठीक है देखते है , तुम अपनी जिद रख लो मैं अपना हक़ रखता हूँ ” मैंने कहा

“चल देव यहाँ से , चुतियो की बसती में क्या ही रखा है ” पिस्ता ने अपना चश्मा सीधा किया और मेरा हाथ पकड़ कर हम लोग गाँव से बाहर की तरफ बढ़ गए....................
Ye gaon Wale bhi matlab nikalte hi palla jhaad lete hai bahut matlabi hai acha hua Jo Pista aa gayi
 

Abhishek Kumar98

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#15

“कब तक खामोश बैठे रहोगे,” पिस्ता ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा

मैं-तुम्हे पंचायत से पंगा नहीं लेना चाहिए था

पिस्ता- तुम्हे कब से परवाह होने लगी इन सब बातो की , हम बाज़ है देव , हमारी तक़दीर में आसमानों की बुलंदिया लिखी है इन चूजों की परवाह करेंगे तो कैसे जी पाएंगे

मैं- फिर भी इग्नोर करना ही ठीक है वैसे भी मैं अपने आप में उलझा हूँ कौन दुश्मन है कौन दोस्त समझ नहीं आ रहा . कोई तो मिल जाये जो बताये की आखिर हुआ क्या था किसने किया था

पिस्ता- तुम मिल गए यादे भी मिल जाएगी.

मैं- तुम्हारा और नाज का क्या पंगा है

पिस्ता- उसकी गांड में धुआं उठा हुआ है जब से उसको मालूम हुआ की तुम और मैं एक है . तुम पर हक़ रखना चाहती है वो

“पर उसने तो कहा की वो माँ सी है मेरे लिए ” मैंने कहा

पिस्ता- बेशक, उसमे कोई शक नहीं पर लड़कपन में हम सब ने बहुत गलतिया की है नाज के साथ सोना उन्ही गलतियों में से एक है
मुझे पिस्ता की बात पर जरा भी यकीन नहीं हो रहा था पर वो कह रही थी तो सच ही होगा.

“हम लोग कैसे थे बीते दिनों में ” मैंने कहा

पिस्ता- बताया न हम लोग बाज़ थे आसमान में उड़ने को बेताब . नोजवान तुम और दहकती आग मैं. किसी ज़माने में हम दोस्त थे पर आज मुझे कहने में हर्ज नहीं की प्यार तुमसे ही किया .

मैं- प्यार किया तो शादी किसी और से क्यों की

पिस्ता- इसका जवाब तुम्हारी यादो से मांगो. फिलहाल मुझे जाना होगा कुछ और जिम्मेदारिया निभानी है पर मैं लौट आउंगी जल्दी ही और तब बस हम दोनों होंगे .

मैं- रोकी कैसा है

पिस्ता- फिलहाल तो होश में नहीं है पर तुम उसकी फ़िक्र न करो

मैं-चाहता नहीं था वो सब करना

पिस्ता- कहा न , उसकी फ़िक्र ना करो

पिस्ता ने मेरे गालो पर किस किया और जाने लगी

मैं- जोगन कहाँ है

पिस्ता- नहीं जानती पर तुम मिल गए वो भी मिल जाएगी . ध्यान रखना अपना मैं जल्दी ही आउंगी .

उसके जाने के बहुत देर बाद भी मैं उसी चबूतरे पर बैठा रहा . रात घिरने लगी थी पर किसे ही परवाह थी . दिमाग इस बात में उलझा था की क्या सच में मैंने नाज की ली होगी. अतीत वैसा तो कतई नहीं था जैसा की मैं सोच रहा था . न जाने क्या गुल खिलाये गए थे इन गलियों में . कदम घर की तरफ बढ़ने चाहिए थे पर मैं एक बार फिर से जोगन की झोपडी में पहुच गया . घुप्प अँधेरे के दरमियान अपनी खोयी यादो के उजाले तलाशता मैं बस जोगन से मिलना चाहता था .

आँख खुली तो मौसम बहुत खुशगवार था , ठंडी पुरवाई मेरे टूटे बदन को राहत दे रही थी रात भर मैं झोपडी में सीली चारपाई पर ही पड़ा था . तालाब के पानी से हाथ-मुह धोकर मैं वापिस से गाँव की तरफ चल दिया घर जाने का मन था नहीं और जाये तो भी जाये कहाँ . ऐसे ही मैं चलते चलते खेतो की तरफ पंहुच गया ,मेरी यादो से ज्यादा वफादार तो मेरे पैर थे जो अपनी जमीन को पहचानते जो थे .

“अरे देवा भाई जी , अच्छा हुआ जो आप यहाँ आ गए मैं बस आने ही वाला था घर आपसे मिलने जैसे ही मुझे मालूम हुआ की आप लौट आये है ...... ” उस लड़के के आगे के शब्द गले में ही रुंध गए लगभग दौड़ते हुए वो मेरे सीने से लग गया और मैंचाह कर भी उसकी भावनाओ का सम्मान नहीं कर सका .


”क्या हुआ भाई जी , कुछ बोलते क्यों नहीं. अच्छा नाराज है आप हमसे .गलती मेरी ही है . आपसे जल्दी मिलने नहीं आया इसलिए न ” उसने हाथ जोड़ते हुए कहा

मैं- वो बात नहीं नहीं है . दरअसल मैं शर्मिंदा हूँ मेरी याददाश्त ठीक नहीं है मैं तुम्हे पहचान नहीं पा रहा और तुम इतने मन से गले लगे.

“मैं आपका जुगनू भाई जी . आज दो रोटी जो खा रहे है आपकी ही बदोलत है भाई जी . कोई हमसे ही कमी रही होगी जो आज ये दिन आया की आप जुगनू को नहीं पहचान पा रहे. ” जुगनू बोला

उसकी आँखों में आई नहीं मेरे दिल को भिगो गयी .

“रे, जुगनू. खाना खा ले फिर ताना मारेगा की ठंडा ही लाती हु,” कुंवे पर बने कमरे की तरफ से आवाज आई तो मेरा ध्यान उस तरफ गया . खाने की पोटली लिए वो ही दूकान वाली खड़ी थी . सफ़ेद ब्लाउज और नीले घाघरे में क्या ही जंच रही थी वो .

“रे, बिजली अच्छा हुआ तू आ गयी देख , देख तो सही कौन आया है ” जुगनू ने उसे पास बुलाते हुए कहा

“ये बिजली है देवा भाई, हमारी बहुरिया . अरे उधर क्यों खड़ी है हाथ जोड़ भाई जी के आगे ” जुगनू ने कहा

बिजली ने खाने की पोटली निचे रखी और झट से घूँघट निकाल लिया

“माफ़ी जेठ जी उस रात मैं आपको पहचान नहीं पायी ” उसने कहा

मैं- कोई बात नहीं बिजली ,वैसे भी तुम्हारा आभार मुझे घर तक ले जाने के लिए

“खडी क्यों है खाना परोस भाई जी , खाना खायेंगे न ” जुगनू ने इतने स्नेह से कहा की मैं मना कर ही नहीं पाया.

घी में सनी रोटिया, कचरी की चटनी और जीरे वाली लस्सी . कसम से दो रोटिया मैंने ज्यादा ही खेंच दी. बहुत देर तक अपनी उंगलियों पर चटनी के चटखारे की महक को महसूस करता रहा मैं.

“कहाँ थे भाई जी , कहाँ कहाँ नहीं तलाशा हमने आपको . ऐसी भी क्या नाराजगी थी ” जुगनू ने कहा

मैंने देखा बर्तन समेटते हुए बिजली की तीखी निगाहें घूँघट में से ही मुझ पर जमी हुई थी .

मैं- कुछ याद नहीं जुगनू. यहाँ आने के बाद मालूम हुआ की लाला हरदयाल के परिवार से दुश्मनी है

जुगनू- हमें भी उसी दिन मालूम हुआ था की भाई जी को इतना गुस्सा आता है . जिस बेरहमी से आपने लाला के बेटे तेजा को मारा था आज तक कोमा में है वो .

मैं- क्या तू बता सकता है की तेजा से लड़ाई किस बात पर हुई थी

जुगनू- लोग कहते है की आपकी तेजा से गहरी दुश्मनी थी यहाँ तक की आपने चौधरी साहब तक की बात को काट दिया था मेले में .
मैं- क्या हुआ था मेले में

“रक्तपात ” जुगनू के शरीर में झुरजुरी दौड़ गयी ......
Chalo Pista bhi chali gayi baad me aa hi jayegi wo bhi aur kheto me Jugnu ke sath sath uski biwi Dukan wali bhi mil gayi aur Jaan pehchan bhi ho gayi ab Jugnu hi bata sakta hai kya hua tha us time
 
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