• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery जब तक है जान

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#16

“भरे मेले में आपकी और तेजा की ऐसी लड़ाई हुई की न किसी ने सुनी न किसी ने देखी.तेजा और उसके साथियों का जो हश्र आपने किया था मौत का ऐसा तांडव की जिक्र करते भी डर लगता है . सिर्फ तेजा ही बच पाया, बचा तो क्या बस नाम का ही जीवन है बरसो से कोमा में पड़ा है, मेले को रक्त से रंग दिया था आपने इतना रक्त की चौधरी साहब भी फिर संभाल नहीं पाये थे बात को. ” जुगनू ने बात खत्म की
मैं- पर तेजा से लड़ने की क्या वजह थी

जुगनू- इस बात को लेकर आप में और चौधरी साहब में झगडा हुआ था पर न कभी आपने बताया न कोई जान पाया.

“पिताजी को किसने मारा ” मैंने सवाल किया

जुगनू- कौन जाने . आपके गायब होने के बाद वो बहुत अकेले हो गए थे , खुद को बस कमरे में बंद कर लिया था और फिर एक दिन वो घर से गए फिर लाश ही आई उनकी

मैं- माँ, के साथ क्या हुआ था .

जुगनू- बीमार थी वो . सदमे से बाहर आ ही नहीं पायी आपके जाने के बाद एक रोज नाज ने बताया की माँ नहीं रही ....... सब ख़त्म हो गया भाई जी मुनीम और नाज ने कब्ज़ा लिया सब कुछ . हमें भी निकाल दिया घर से पर हमारे खून में बहते नमक को नहीं निकाल पायी . बिजली ने दूकान खोल ली मैं खेतो को संभालता हु ऐसे ही जिन्दगी चल रही है बस

मैं- जमीनों पर कब्ज़ा नहीं किया उन दोनों ने

जुगनू- सात बरस बीत गये भाई जी , इधर आकर भी नहीं देखा उन्होंने कभी . अब आप लौट आये हैं मुझे यकीन है की खुशिया भी लौट आएँगी .

मैं- लाला का कितना खौफ है इलाके में

जुगनू- वक्त पहले जैसा नहीं रहा भाई जी , रसूख कम हुआ है पर फिर भी चलती तो है ही


“घर की साफ़ सफाई करवाओ , जो भी मरम्मत हो करवाओ और जल्दी ही वहां रहना शुरू करो और जुगनू मुनीम की कुंडली निकालो मुझे भरोसा नहीं है उस पर एक बात और घर का जितना भी पुराना सामान हटाया गया है वो मुझे चाहिए ” मैंने कहा और वहां से चल दिया .

मेरे लिए अपनी यादो को वापिस पाना बेहद जरुरी हो गया था , दुशमन के साथ साथ अपनों से भी सावधान रहना जरुरी था . अतीत में जो भी हुआ था उसकी कोई ठोस वजह रही होगी और अपने आज को जीने के लिए मुझे गड़े मुर्दे उखाड़ने ही थे . मैंने अपने सीने पर हाथ फेरा और छाती के जख्मो ने भी याद दिलाने की कोई कसर नहीं छोड़ी की जिसने भी ये जख्म दिए वो नफरत तो बहुत करता होगा मुझे. दूसरी बात जो मुझे खाए जा रही थी वो ये की सोनिया बुआ को किसने मारा होगा .

गाँव में आने के बाद दुर्जन ने हमला किया फिर पंचायत में बहिष्कार . दुर्जन का समझ सकता हूँ उसके भाई की वजह से खुन्नस जायज थी पर सरपंच का लाला के पक्ष में झुकना जम नहीं रहा था जबकि पिस्ता के अनुसार पिताजी ने बहुत मदद की थी गाँव वालो की . सोचते सोचते मैं मुनीम के घर पहुच गया दरवाजा बंद नहीं था बस ढाल दिया था. मैं अन्दर गया नाज को गीले बाल सुखाते हुए पाया, शायद अभी नहा कर निकली होगी. गीले बालो से टपकती बूंदे उसके झुकने की वजह से उसके वक्षो की घाटी में जा रही थी .

“तुम ” नाज ने दुपट्टा उठाने की जरा भी कोशिश नहीं की

मैं- तुमसे मिलने का मन था चला आया

नाज- रात भर गायब थे तुम, अपनी मर्जी चलाते हो ये जानते हुए भी हालात नाजुक है

मैं उसके पास गया और उसके हाथ को पकड़ कर बोला- जब तुम मेरे साथ हो मुझे भला क्या ही फ़िक्र
नाज कुछ कहती उस से पहले ही मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और अपने सीने से लगा लिया. भीगे बदन की खुसबू मेरे तन को महका गयी.

“क्या कर रहे हो देवा ” नाज धीमे से बोली

मैं- वही , जो बहुत सालो से किया नहीं

हाथ को निचे ले जाते हुए मैंने नाज के गोल नितम्ब को सहलाया और नाज के सुर्ख होंठो को अपने होंठो से जोड़ लिया. नाज ने आँखे गहरी करते हुए मुझे देखा और हमारा चुम्बन शुरू हो गया. उस चुम्बन में इतनी गहराई थी , इतनी तपन थी की मैंने अपने होंठो को जलते हुए पाया पर अगले ही पल नाज मेरे आगोश से बाहर निकल गयी

“नहीं देव, अभी नहीं ” उसने अपनी सांसो को दुरुस्त करते हुए कहा

“क्यों नाज, इतने समय बाद ये पल आया है जब मैं तुम्हे प्यार करू और तुम मना कर रही हो ये जानते हुए भी की तुम क्या हो मेरे लिए ” मैंने कहा

“अभी नहीं देव, मुनीम जी आते ही होंगे मौका लगते ही मैं आ जाउंगी ” उसने कहा

मैं बेशक उसकी लेना नहीं चाहता था पर इस बात की पुष्टि जरुर हो गयी थी की अतीत में नाज के साथ रंगरेलिया बहुत मनाई गयी थी . घर आकर देखा की जुगनू और बिजली भी पहुच गए थे और सफाई करने में लगे थे .मैंने थोडा पानी पिया और ऊपर जाकर सो गया .
“जेठ जी चाय ” बिजली की आवाज से मेरी नींद टूटी .

कप लेते हुए मैंने देखा बाहर बूंदा-बांदी हो रही थी . ठंडी हवा संग चाय की चुसकिया सकून दे रही थी . एक चीज जो मुझे परेशान कर रही थी वो थी लाला की चुप्पी , अपने बेटे की मौत के बाद भी उसका खून ठंडा था . क्या ये तूफ़ान से पहले की चुप्पी थी . मैंने लाला के गाँव जाने का सोचा , बेशक ये तार्किक निर्णय नहीं था पर कोई न कोई कड़ी तो तलाश करनी ही थी . सोचते सोचते मेरी नजर निचे आँगन में बिजली पर पड़ी जो बारिश की बूंदों के बीच सफाई में लगी हुई थी . गीला लहंगा जैसे उसकी जांघो से चिपक सा गया था जिसकी वजह से उसकी बीच की जगह नुमाया हो रही थी . पर मैं ये क्यों देख रहा था मैंने अपने ख्यालो को झटका और आवाज देते हुए कहा की बारिश में न भीगे.


इस से पहले की अँधेरा हो जाता मैं घर से निकल गया और पैदल ही लाला के गाँव की तरफ चल दिया . कुछ दुकाने बंद हो चुकी थी कुछ बंद होने वाली थी ऐसी ही एक दूकान पर कुछ लोग बिअठे थे मौसम मस्त होने के कारन श्याद पेग चल रहे थे इस से पहले की मैं किसी से कुछ पूछता अचानक से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और जैसे ही मैंने मुड कर देखा.........................
Ye Naaj ke sath toh hero ka chakkar tha hi but Munim aur ye dono hi property hadapne ke chakkar me the shayad kya koi aur unhe control kar raha hai aur kya pata hero ki maa ko bhi Naaj ne hi maar diya ho aur property aur dushmani ke chakkar me pita ji ko dekhte Lala ke yahan ye kaun mil gaya
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#17
मैं पीछे मुड कर देखा और अगले ही पल लट्ठ के वार से मेरी आँखों के आगे सितारे नाच गए .

“लालाजी को संदेसा भेजो , दुर्जन का कातिल खुद मरने आया है .” लट्ठ मारने वाले ने जोर से कहा

सर से बहती रक्तधारा को महसूस करते हुये मैंने देखा की अचानक से ही माहौल बदल गया था .लट्ठ के अगले प्रहार को रोकते हुए मैंने देखा की लोग इकठ्ठा होने शुरू हो गए है

“मरोगे साले तुम सब के सब ” मैंने कहा

“मौत के मुह में आकर भी अकड देखो साले की ” उनमे से किसी ने कहा

“सबसे पहले तुझे ही मारूंगा ” मैं उसकी तरफ लपका पर पहुच ही नहीं पाया,लाला के गढ़ में आने का निर्णय मेरे खिलाफ हो गया था . मैंने लट्ठ छीन लिया और भीड़ से भिड गया . पर कितनो से भिड़ता पुरे गाँव के आगे भला किसका जोर चला है आज भी क्या ही चलता . और फिर वो लम्हा भी आया जब मैं धरती पर गिरा हुआ अपनी सांसो को बस संभाल लेना चाहता था . रात बहुत भारी, काली हो गयी थी .फिर सब कुछ शांत हो गया , मुझे तो ऐसा ही लगा था की जब तक वो शक्श वहां नहीं आ गया जिसे दुनिया लाला के नाम से जानती थी .
६ फुट ऊंचाई, चेहरे पर सफ़ेद दाढ़ी ,काफी हट्टा कट्टा था वो . धीमे धीमे चलते हुए वो मेरे पास आया.

“देव, आँखे ही तरस गयी थी तुम्हारे दीदार की . बहुत इंतज़ार करवाया तुमने पर तुम्हारी इसी अदा के कायल है हम.वादा निभाना कोई तुमसे सीखे, क्या नहीं कर सकते थे हम. हमारे घर के दो चिरागों की लौ तुमने बुझा दी. दुर्जन की राख में अभी भी तपन बाकी है और तेजा , उसे देख कर बरसो से मर रहे है हम. चाहते तो तुम्हे उसी दिन मार सकते थे जब हमें मालूम हुआ था की तुम वापिस लौट आये पर क्या करे ये खोखले उसूल. अपनी बातो का पक्का होना भी साला गुनाह से कम नहीं है. ” सर्द लहजे में लाला ने अपनी बात कही

मैं- तो किसने रोका है लाला, मैं भी हूँ तुम भी हो यहाँ . ख़त्म कर ले ये किस्सा , किस्मत तुझे दूसरा मौका नहीं देगी और मैं भी नहीं.
“तेरे अन्दर जो ये अकड हैं न ये टूटती क्यों नहीं. सारा जमाना हमारे आगे झुकता है पर एक तू है की मानता ही नहीं . फ़िक्र न कर मैं तुझे मारूंगा, आज के आज ही मारूंगा पर उस से पहले मैं वो वजह जानना चाहता हूँ की क्यों तूने तेजा की जिन्दगी बदतर कर दी . तेरी वजह से मौत तक रूठ गयी उस से . पर ना जाने क्यों मुझे लगता है किस्मत मेहरवान है तुझ पर चल एक सौदा करते है तू उस वजह को ले आ हमारे सामने और हम वादा करते है तेरी मौत दर्दनाक नहीं होगी “ लाला ने अपनी छड़ी मेरे सीने पर रखते हुए कहा .

“चूतिये लाला. मौत का क्या है मौत तो आनी जानी है तकलीफ तो साली जिन्दगी देती है . मैं तो अपनी तकलीफ के चलते यहाँ आया था पर तू साले मुझसे भी दुखी है .तू मुझसे क्या सौदा करेगा मेरी तो यादे तक बेवफाई कर गयी पर इतना जरुर है की तेजा ने कुछ तो बुरा किया ही होगा जो उसे ये सजा मिली .” लाला की छड़ी का सहारा लेकर मैं खड़ा हुआ.


“यादो का किस्सा फिर कभी देखूंगा लाला, पहले इस किस्से को ख़त्म करते है . तेरे में जोर है तो मार दे वर्ना मरने को तैयार रह. ” मैंने लाला की छाती में लात मारने का प्रयास किया पर लाला के आदमियों के रहते सफल नहीं हो सका.

“कब तक मार खायेगा , क्यों तडपता है देव, बता क्यों नहीं देता उस दिन क्या हुआ था कब तक यादो का नाटक करेगा ” लाला ने फिर पुछा
“तेरी और तेरे बेटे की किस्मत मेहरवान है लाला. अगर वो वजह मुझे याद होती तो अब तक तुम्हारी लाशे पड़ी होती ”हिकारत से मैंने लाला के चेहरे पर थूक दिया .

“तेरी ये जुर्रत ” लाला के आदमी ने फिर से मेरे सर पर लट्ठ मारा

तलवार लाओ हमारी ”लाला ने कहा

पर इस से पहले की लाला तलवार का वार कर पाता गोली चलने की आवाज आई और तलवार लाला के हाथ से गिर गयी

“रुक जाओ लाला , ” सबने उस तरफ देखा जहाँ से गोली चलने की आवाज आई थी और तुरंत ही लाला ने अपने हाथ जोड़ लिए
“मंत्री जी आप ” लाला ने कहा

“हाँ, हम ये तुम्हारा नहीं हमारा शिकार है . जिसे शहर के चप्पे चप्पे में तलाश किया वो यहाँ छुप कर बैठा है . तूने क्या सोचा था लड़के तू हमारे बेटे को दुःख देकर कर चैन से रह पायेगा. ” मंत्री ने कहा


“न मैंने उस दिन शुरुआत की थी मंत्री न आज करूँगा. गलती रोकी की थी उसकी हालत का जिम्मेदार मैं नहीं तेरी कमजोर परवरिश और उसका गुरुर थी . ” मैंने कहा

“चुप कर गुस्ताख ” मंत्री ने थप्पड़ मारा मुझे

“हुजुर, आप अपने हाथ मत रंगिये इसके गंदे खून से ये काम मुझे करने दीजिये बरसो आप की सेवा की है इतना हक़ दीजिये मुझे ” लाला ने तलवार फिर से उठाई औ रमेरी पीठ पर वार किया .


पर मैं चीखा नहीं , मैंने अपने हाथो से तलवार को पकड लिया .

“पीठ पर वार किया है छाती पर खाओगे ” मैंने लाला के हाथ से तलवार छीन ना चाही पर लाला भी कम ताकतवर नहीं था . कभी वो भारी तो कभी मैं . और एक ऐसा पल आया जब मैंने लाला को धर ही देता की तभी उमंत्री ने पास पड़े पत्थर को मुझ पर दे मारा. खांसते हुए मैं जमीन पर गिर गया .उठने की हिम्मत ही नहीं रही .

“बस बहुत हुआ ” मंत्री ने बन्दूक मुझ पर तान दी

“नहीं पिताजी नहीं ” मंत्री का ध्यान जरा सा भटका और गोली मेरे कंधे को छू कर निकल गयी . दर्द से बिलबिला उठा मैं .

“बहु, तुम यहाँ क्या कर रही हो . क्यों आई तुम यहाँ ” मंत्री ने हैरानी से पिस्ता को देखा जो वहां पहुच गयी थी .”

“अपने आप को ये गलती करने से रोक लीजिये पिताजी वर्ना अनर्थ हो जायेगा ” पिस्ता ने कहा

“हमारे रोकी का गुनेहगार है ये बहु और तुम इसकी तरफदारी कर रही हो और तुम कैसे जानती हो इसे ” मंत्री ने असमंजस से पुछा

“आपकी औलाद ना लायक है पिताजी , रोकी ने खुद वो झगडा किया था आप चाहे तो श्वेता से पूछ लीजिये ” पिस्ता ने कहा

“जो भी हो इसे इसके किये की सजा नहीं दी तो इलाके में हमारा क्या ही रुतबा रह जायेगा दुनिया कहेगी मंत्री अपने बेटे को न्याय नहीं दिलवा पाया जनता का क्या भला करेगा ” मंत्री ने फिर से बन्दूक मुझ पर तानी

“जुबान पर लगाम रखो बहु ,कही हम भूल नहीं जाए की तुम कौन हो क्यों कर रही है इसकी इतनी तरफ दारी क्या लगता है ये तेरा क्या नाता है इसका तुझसे ”मंत्री ने कहा.


“कोई क्या ही जानेगा क्या लगता है ये मेरा. कोई क्या ही समझेगा क्या नाता है मेरा इस से , पर आज ये जमाना इतना जरुर जान ले की अगर किसी ने भी, किसी ने भी अगर देव का अहित करने की सोची तो मैं बता दू मौत कैसी होती है वो मेरी सूरत में देख ले. लिहाज की बात हुई है तो मैं कहती हूँ पिताजी आप चले जाइये यहाँ से .मेरे होते हुए देव को हाथ लगाना तो दूर किसी ने नजरे भी दिखाई तो वो आँखे दुबारा देखने लायक नहीं रहेगी. देव और मौत के दरमियान मैं खड़ी हूँ . कोई माई का लाल चाहे तो कोशिश कर ले फिर ये इल्जाम हमें ना देना की इस रात किसने क्या किया क्योंकि सुबह तो फिर कोई देखे न देखे .”

“”बहुत जुबान चलती है छोरी “ लाला का एक आदमी पिस्ता की तरफ लपका और अगले ही पल पिस्ता की बन्दूक ने उसका सर खोल दिया . इधर मैं अपनी डूबती सांसो को संभालना चाहता था उधर पिस्ता का क्रोध काल बना हुआ था .पर अचानक ही शोर थम गया .


“हो गया जोश ठंडा, गोली ख़त्म हो गयी क्या करेगी अब तू ” लाला ने आगे बढ़ कर पिस्ता को थप्पड़ मारा .

“गोलिया ही तो ख़त्म हुई मैं नहीं ” पिस्ता ने लाला का प्रतिकार करना चाहा पर लाला ने उसे निचे गिरा दिया .

“इस बहन के लंड के दम पर तू उछल रही थी न अब देख इसकी आँखों के सामने मैं तेरा क्या हाल करूँगा. और मंत्री जी आप भी नहीं रोकेंगे मुझे, जो आपकी न हुई उस से क्या ही वास्ता रखना .” लाला ने झुक कर गिरी हुई पिस्ता की साडी का पल्लू अपने हाथ में लेकर उसे खींचना चाहा.

“देव, उठ देव ” पिस्ता जोर से चीखी

“कोई नहीं सुनेगा तेरी अब क्या कहा था तूने मौत और देव के बीच में तू खड़ी है , देख हरामजादी देख मौत से भी बदतर क्या होता है तू देख ” लाला ने पिस्ता की पसलियों में लात मारी


“देव उठो देव उठो अनर्थ हो रहा है देव उठो बचाओ देव बचाओ ” कानो में पिघले शीशे की तरफ वो टूटी आवाज मेरे दिल तक उतर गयी और झट से मेरी आँखे खुल गयी . दिल में दर्द आँखों में आंसू लिए उठा

“ये हाथ जिनसे तूने पिस्ता को छुआ है लाला ये हाथ तेरे कंधो पर नहीं रहेंगे ” मैं लाला की तरफ बढ़ा


“कोई बीच में नहीं आएगा ” दहाडा लाला

मैं- आज चाहे पूरा गाँव , ये सहर ये दुनिया भी अगर बीच में आई तो जलेगी. तू जानना चाहता था न की तेरा बेटा कोमा में क्यों है . तुझे मारने से पहले बताऊंगा मैं यही बताऊंगा अभी बताऊंगा. मुझे याद आ गया है लाला ...... मेरा अतीत याद आ गया है मुझे..................................
Mamla kuch jyada hi bigad gaya aur Pista bhi aa gayi Mantri bhi aa gaya aur apne bete ki galti hi nahi maan raha hai aur ab hoga tandav kyunki hero ko sab yaad aa gaya hai
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#18

देव उठो देव

पिघले शीशे की तरह वो चीख मेरे कानो के पर्दों को झुलसा रही थी . आँखों में उसकी तस्वीर तो थी पर वो नहीं थी , नहीं थी वो. मैंने तलवार उठाई और गुस्से में क्या किया कोई परवाह नहीं थी . जब मैंने अपना मुह पोंछा तो चारो तरफ अगर कुछ था तो सिर्फ लाशे और कांपता हुआ लाला.

“तू वजह जानना चाहता था न की क्यों मैंने तेरे बेटे का वो हाल किया . बताता हु तुझे ” मैंने लाला पर वार किया और उसके हाथ की उंगलिया धरती पर गिर गयी . लाला की चीख गूंजने लगी.

मैंने एक नजर मंत्री पर डाली . जिसके चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी.

“मेले में तेजा ने उस पाक दामन को गन्दा करने की सोची थी जिस आँचल को मैंने थामा हुआ था . तेरे बेटे को गुरुर था की कोई उसका झांट भी नहीं उखाड़ सकता और देख आज एक भी झांट नहीं बचा उसके पास . मैंने तेजा से कहा था माफ़ी मांग ले पर साले को चुल थी, तेरी नाकाम परवरिश की, उसको लगता था की तू बहुत बड़ी तोप है . तेरा बेटा है तो जो चाहे करेगा पर देख मैं खड़ा हूँ आज यहाँ और सात साल पहले भी खड़ा था हक़ के लिए, इंसाफ के लिए पर अफ़सोस तू नहीं रहेगा , क्या कहा था तूने एक सौदा करते है ये रात मेहरबान है , बेशक ये रात मेहरबान है ” मैंने कहा और अगले वार के साथ लाला का दायाँ हाथ उसके जिस्म से अलग हो गया

“तू तो अभी से घबरा गया लाला, अभी तो कसाईपना देखना है तुझे ” बोटी बोटी काटते हुए गरज रहा था मैं उस रात. लाला का काम तमाम करने के बाद मैं मंत्री की तरफ मुखातिब हुआ .

“बहन के लंड मंत्री, आ तू भी बदला लेले रोकी की गांड तोड़ने का . ” इस से पह्ले की मैं मंत्री का नंबर लगाता पिस्ता ने मुझे रोक लिया

“नहीं देव नहीं , तुझे मेरी कसम ”

“कोई और हैं इस गाँव में जिसके अन्दर बदला लेने की चुल मची हो ” मैंने चिल्ला कर पुछा पर कोई आवाज नहीं आई.

“पानी ले आ जरा पिस्ता ” मैंने कहा और दिवार का सहारा लेकर बैठ गया . कुछ घूँट पिए कुछ थूक दिया .

“मंत्री , तेरे बेटे की हालत का जिम्मेदार मैं नहीं हु, न मेरी उस से पहले कोई दुश्मनी थी न आज है . मैं अपने आप से परेशान हु मुझे और तंग न करो . होंगे तुम शहर के मालिक मुझे मेरे गाँव में रहने दो ना तुम मेरे रस्ते आओ न मैं कभी तुम्हे परेशान करूँगा. समझ आये तो ठीक बाकी मर्जी तुम्हारी ” मैंने मंत्री से कहा

“बहु चलो ” मंत्री मरी सी आवाज में बोला

पर पिस्ता टस से मस नहीं हुई.

“सुना नहीं तुमने बहु ” मंत्री से सख्ती से कहा

पिस्ता- मैं यही रहूंगी पिताजी

मंत्री- जानती हो क्या कह रही हो इसका नतीजा क्या होगा

पिस्ता -कल क्या हो किसने सोचा पर आज के लिए मैंने अपना फैसला ले लिया है

मंत्री- तुम्हे पछताना न पड़े

पिस्ता- पछताई तो मैं कभी भी नहीं


मंत्री पैर पटकते हुए चला गया रह गए हम दोनों और वहां पड़ी लाशे.

“खून खराबा बहुत हो गया देव, इसे संभालना मुश्किल होगा ” पिस्ता ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .

“हो तो गया ” मैंने कहा

हमारी आँखे एक दुसरे से मिली, कुछ इशारे हुए और मैंने गाड़ी से तेल की पीपी निकालना शुरू किया, पिस्ता ने लाशो को इकठ्ठा करना शुरू किया . सबूत मिटाने की बचकानी कोशिश .

“आने वाला समय मुश्किल होगा ” पिस्ता ने गाडी में बैठते हुए कहा

मैं- वो भी देखेंगे

कुछ देर बाद गाड़ी वहां पहुँच गयी जो रास्ता गाँव की तरफ जाता था पर मैंने उसे दूसरी दिशा में मोड़ दिया.

“गाँव नहीं तो कहाँ ” पिस्ता ने अपनी जुल्फों को बांधते हुए कहा

मैं- जान जाएगी

मैंने गाडी जंगल की तरफ मोड़ दी. रात अँधेरे को चीर कर सुबह में मिल जाना चाहती थी और मैं यादो को चीर कर अतीत में पहुंचना चाहता था . आँखों में भर आये पानी के कतरों को आस्तीन से साफ़ किया मैंने आसमान में बदल गरजने लगे थे . जंगल के तक़रीबन हिस्से को पार करने के बाद आख़िरकार मैं उस जगह पर पहुच ही गया जो न जाने कब से बाट देख रही थी की कोई तो आएगा उसके सूनेपन को बाँटने .

“तो तुम सच ही कहते थे इस बारे में ” पिस्ता ने लगभग चहकते हुए कहा

मैं- तुमने कभी माना भी तो नहीं था

पिस्ता- दीवानों की बातो का भला माना भी है किसीने
मैं- दीवानगी का वो एक दौर था जो तेरी ना के साथ बीत गया था तू चली गयी रह गए हम और ये घर .

“तेरा हर इल्जाम कबूल है सर्कार ” पिस्ता ने कहा

काले पत्थरों से बना वो घर जंगल में इस तरह से छिपा था की पहली नजर में कोई देख ही नहीं पाए. चारो तरफ सफेदे के पेड़ो से घिरा हुआ पत्थरों का ढेर ही लगता था जब तक की कोई गहरी नजरो से समझ न सके,थोडा जोर लगाना पड़ा दरवाजा खोलने के लिए .बरसो बाद रौशनी हुई थी यहाँ पर चिमनी की लौ मेरी तन्हाई को जला देने को बेताब सी थी .


बर्तनों पर धुल जमी थी, बिस्तर रुसवा था पानी का मटका सूखा पड़ा था . वक्त ने मेरी तरह इसे भी भुला दिया था .

“तुम आ गए हो वो भी आ जाएगी ” पिस्ता ने मेरा हाथ थामते हुए कहा

“सोना चाहता हु कुछ देर ” मैंने इतना कहा और पिस्ता ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया .

“दुःख के दिन बीते देव, हमें भी अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर ” मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा पिस्ता ने .
“सुख , ” मैंने हौले से कहा और उस दिन की याद में खो गया जब से ये कहानी, ये फ़साना शुरू हुआ .


आँख खुली तो घर में चीख-पुकार मची थी . कुछ नहीं सुझा तो चोबारे से निचे आया जिन्दगी में मैंने पहली बार अपनी माँ को रोते हुए देखा था . दिल इतनी जोरो से धडकने लगा था ,एक लड़के के लिए सबसे मुश्किल वक्त वो होता है जब उसकी माँ की आँखों में आंसू हो.
“क्या हुआ माँ . ” बड़ी मुश्किल से मैं कह पाया.
पर इस से पहले की माँ जवाब देती आँगन में जीप आकर रुकी और .................................
Chalo abhi ke liye hero ne sab sambhal liya aur mantri ko bhi bhej diya aur Pista bhi hero ke sath hi reh gayi aur Lala bhi khatam aur atit ki yaade me kya hai dekhte hai
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#19

आँगन में जीप आकर रुकी और धक्के से बुआ को फेंक दिया गया. मैंने बुआ को देखा हाल-बेहाल आँखों का काजल आंसुओ से जंग हार चूका था .गोरे गालो पर थप्पड़ के निशान उपडे हुए थे . दर्द से कराही वो
“बुआ ,क्या हुआ तुम्हे ” मैं बुआ की तरफ आआगे बढ़ा ही था की हाथ में बन्दूक लिए पिताजी जीप से उतरे और हिकारत से बुआ की तरफ देखते हुए माँ से बोले- इसे काबू में रखना सावित्री,चौधरी को अपनी साख बहुत प्यारी है बहन न होती तो आज इसकी भी लाश गिरा देता .इसके जैसी से तो बहन होती ही ना तो ठीक रहता .

पिताजी ने हिकारत से थूका और अपने कुरते पर लगे खून को नलके के पानी से धोने लगे.

“बुआ ” मैंने बुआ का हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया. बुआ किसी बुत की तरह कुर्सी पर बैठी खिड़की से बाहर को देखे जा रही थी .

“बुआ, थोडा पानी पी लो ” मैंने गिलास बुआ को दिया कुछ घूँट पानी उनके गले से निचे उतरा और फिर वो रोने लगी . रोती ही रही जब तक की उसके मन का गुबार कम नहीं हो गया वो रोती ही रही . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या कहू, कैसे संभालू उसे . मैं घुटनों के बल बैठा और बुआ की गोदी में अपना सर रख दिया . उनके आंसू मेरे दिल में उतरने लगे थे .

कुछ दिन घर का माहौल बड़ा मनहूस था , जिस घर की सुबह आरती की गूँज से होती थी मातम सा पसरा हुआ था बुआ न कुछ खाती थी ना पीती थी उनकी आँखों के आंसू सूखते ही नहीं थे. पिताजी रात रात भर घर नहीं आते थे और जब आते तो उनके कपडे खून में रंगे होते थे . अपना ही घर कैद सा लगने लगा था .जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक बोझिल दोपहर मैं घर से निकल आया. कहते हैं न की जिन्दगी में कोई न कोई दिन ऐसा आता है जब आपको लगता है की यही तो था मेरा लम्हा , वो दोपहर भी कुछ ऐसी ही थी , ऐसा तो बिलकुल नहीं था की मैं उसे जानता नहीं था पर उस दिन नजरो ने न जाने किस नजर से उसे देखा की फिर और कुछ कभी देख ही नहीं पाये.

भरी दुपहरी में पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो रोटी खा रही थी . पीले सूट पर नीला दुपट्टा आलती पालती मारे बैठी वो मुझे उस बियाबान में किसी खिले गुलाब सी लगी .
“छोटे चौधरी तुम यहाँ इस उजाड़ में ” उसने निवाला तोड़ते हुए बेपरवाही से कहा

मैं- तुम भी तो हो इस उजाड़ में

“हमारा तो रोज का ही काम है , पशु न चारायेंगे तो कैसे काम चलेगा हमारा पर तुम महलो वाले कभी कभी ही दीखते है न यहाँ ” उसकी बात बात कम ताना सा ज्यादा लगी मुझे

मैं- महल, काश तू कभी महलो की कैद को समझ पाये.
मैं उसके पास ही बैठ गया .

“ऐसे क्या देख रहा है ” उसने कहा

मैं-आधी रोटी देगी क्या , रात से कुछ खाया नहीं मैंने
“क्यों मजाक करे है छोटे चौधरी . तू म्हारी रोटी खायेगा . ये हवाए बड़ी तेजी से बातो को फैलाती है किसी को मालूम हुआ तो मुझसे ज्यादा तेरी जग हंसाई होगी गाँव में ” बोली वो

मैं- रोटी तो रोटी होवे है मेरे घर की हो या तेरे घर की . मालूम ना था की रोटी की भी जात होती है . भूख लगी थी तो मांग ली .

“बाते अच्छी करते हो तुम, टींट का आचार है चलेगा तुझे ” बोली वो

मैंने सर हिलाया. उसने एक रोटी आगे की .


“लस्सी की तरफ निगाह न कर कतई न दूंगी ” उसने कहा

मैं- आधी रोटी और लूँगा

वो मुस्कुरा पड़ी .

“तू रोज़ आती है इधर ” मैंने पुछा

वो- रोज तो नहीं पर मन जब भी करे आ जाती हूँ

मैं- कल आएगी क्या

वो- क्यों भला

मैं- पता नहीं , पर अच्छा लगा तुझे देख के

वो- ऐसा क्या देख लिया मुझमे छोटे चौधरी

“देव ,नाम है मेरा ” मैंने कहा

वो- जानती हु

मैं- तो फिर देव ही कह न

वो- तूने भी तो नहीं लिया मेरा नाम अभी तक

मैं-जुबान पर तेरे आचार का चटखारा मोजूद है अभी तक तेरा नाम लिया तो स्वाद खो जायेगा वो

“और खा लेना , तुम भी क्या याद करोगे ” उसने कहा

मैं- ठीक है कल से मेरे नाम की रोटी अलग से बना लेना

वो- चल बाते बहुत हुई, कुछ लकडिया बीन लेती हु फिर निकलती हु घर की तरफ

मैं उसे लकडिया बीनते हुए देखता रहा . फिर उसने अपनी बकरियों को हांका और जाने लगी .

“सुन जरा, फिर मिलेगी क्या ” मैंने कहा

“पिस्ता नाम है मेरा, और दूसरी बात मिलने वाले कभी ऐसे नहीं पूछते, बस मिल लिया करते है

दो पल की ख़ुशी घर आते ही गायब हो गयी.

“बुआ, कब तक ऐसे खामोश रहोगी . मैं नहीं जानता क्या हुआ है आपके साथ पर आप की मुस्कान रौनके है इस घर की , आप की चुप्पी मेरे कलेजे को छील रही रही है . इस घर में एक आप ही तो हो मेरी , आप ही तो हो वो जिसकी ऊँगली पकड़ कर चला मैं अपने लाडले को इतना तो हक़ दो की आपके दुःख को बाँट सके वो ” मैंने बुआ से कहा


“कुछ नहीं हुआ, कुछ भी तो नहीं हुआ मुझे. तू आज नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब जान जायेगा तू ” बुआ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

“देवा,” तभी निचे से पिताजी की आवाज आई और मैं सहमते हुए उनके पास गया .

“ तुम्हारी माँ ने बताया की आजकल तुम कुछ नाराज से हो . खाना पीना भी ठीक से नहीं हो रहा .” कहा उन्होंने

मैं- घर का माहौल ठीक नहीं है शायद उसका असर है

पिताजी- क्या हुआ है घर के माहौल को , हमें तो सब ठीक लगता है

मैं- बुआ तो ठीक नहीं है

पिताजी- तुम्हे उसकी चिंता करने की जरुरत नहीं है अभी बैठे है हम . तुम्हारे खेल-कूद के दिन है यार दोस्त बनाओ थोडा बाहर की हवा खाओ . किसी भी चीज की जरुँत हो तो हम बैठे है


मैंने कुछ नहीं कहा बस अपने बाप को समझने की कोसिस करते रहा और फिर बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गया .................
Ye Soniya bua shayad kisi se pyar karti thi jiski wajah se hero ke dad ne bua ko Peeta aur bakiyo ko maar diya aur achi mulakat rahi hero ki Pista se pehli
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#20

ताज़ी हवा में साँस जो ली , कसम से दिल किया की इस घर को छोड़ कर कहीं भाग जाऊ. बाप आन बाण शान के आगे बढ़ नहीं पा रहा था बेटा घर की चार दिवारी को तोड़ देना चाहता था . अपने आप में गुम कब मैं बनिए की दूकान तक पहुच गया पता ही नहीं चला काफी लोग इकट्ठे थे वहां पर तो मैं उनकी बाते सुनने लगा. मालूम हुआ की गाँव में रागनी प्रोग्राम होगा , मन तो मेरा बहुत था पर बाप के आगे कैसे जुगत लगायी जाये सोच का विषय था.

सोच ही रहा था की मैंने सामने से पिस्ता को आते देखा जो सर पर गेहूं का कट्टा लिए थी , हमारी आँखे आँखों से मिली और दिल में अजीब सी हुक सी उठ गयी . कट्टा थोडा सा भारी था तो मैंने उसकी मदद की चक्की पे तुलवाने में .

“रात को रागनी में आएगा क्या देवा ” उसने हौले से कहा

मैं- मन तो है पर ...........

पिस्ता- मैं तो जरुर आयुंगी , बड़े दिनों बाद गाँव में रागनी आई है . सुना है इस बार जो कलाकार आई है गजब ही है .

मैं-तू आएगी तो मैं भी आऊंगा चाहे कुछ भी हो जाये

घर आने के बाद मैं जुगत में था की कैसे जाऊ. जब कुछ न सूझा तो माँ ही सहारा था .

“माई, गाँव में रागनी आई है तू कहे तो मैं भी देख आऊ ”मैंने हिम्मत जुटा कर कहा

माँ- ये कोई पूछने की बात है देवा, जो तेरे जी में आये वो कर

मैं- पिताजी कहीं गुस्सा करेंगे तो

माँ- शाम को ही वो तुझसे कह रहे थे न की जिन्दगी को जीनी सीख

जैसे ही स्पीकर चालु हुआ मैं चौपाल में पहुँच गया. भीड़ काफी हो गयी थी जो पहले आया वो आगे बैठ गए थे ताकि नजदीक से मजा ले सके. गाना बजाना मस्त हो रहा था गाँव के लोग झूमने लगे थे की तभी बिजली ने अपनी माँ चुदवा ली, चारो तरफ अँधेरा छा गया बीडी पीते हुए कुछ लोग बिजली वालो को कोस रहे थे , काफी देर तक इंतज़ार करने के बाद भी जब लाइट नहीं आई तो लोग अपने अपने घरो की तरफ सरकने लगे की अँधेरे में किसी ने मेरी बांह पकड़ ली.

“प्रोग्राम की तो लग गयी ” पिस्ता ने हौले से कहा

मैं- कहाँ थी तू

पिस्ता- न पूछ कहाँ थी मैं , मुझे देखने की इच्छा होती तो तू तलाश ही लेता

मैं- तुझसे वादा किया था मैं तो आ गया ही

पिस्ता- अच्छा जी, बोल तो ऐसे रहा है जैसे मेरे सारे कहने मानेगा

मैं- ये ही समझ ले. मजा आ रहा था प्रोग्राम में पर अब क्या कर सकते है वापिस घर जाना ही होगा.

पिस्ता- इतने बोझ से क्यों कहता है . घर तो जाना ही है

मैं- काश तू समझ पाती, वो घर काटने को दौड़ता है मुझे . उस घर में इन्सान कम रहते है पुरखो की आन बाण शान के किस्से ज्यादा है .घर नहीं कैद है वो .

पिस्ता- ये बात तो हैं , चौधरी साहब ज्यादा ही तवज्जो देते है इन विचारो को

बाते करते हुए हम गली की तरफ बढ़ने लगे थे और फिर पिस्ता अपनी दहलीज पर रुक गयी .

“कल मिल सकते है क्या ” मैंने कहा

वो- कल की बात करता है मैं तो अभी भी तेरे साथ ही हूँ

चाह कर भी मैं आगे कुछ न कह सका उससे और अपने घर की तरफ बढ़ गया . एक नजर बुआ पर डाली जो सोयी हुई थी मैंने भी अपनी चादर ली और सो गया . सुबह जागा तो देखा मौसम बहुत खुशगवार था लगता था की बारिश होगी ही होगी बुआ कमरे ने नहीं थी मैं बिस्तर सही कर ही रहा था की तकिये के निचे मुझे कुछ दिखा . वो एक किताब थी जिसके कवर पर एक नंगी लड़की थी कुशगवार मौसम होने के बावजूद मैंने अपने माथे पर पसीने को महसूस किया. दो पन्ने, सिर्फ दो पन्ने ही पढ़ पाया था मैं और शरीर में बहता खून दौड़ने लगा था .तभी निचे से माँ की आवाज आई तो मैंने वो किताब छिपा ली और निचे गया .

“हाँ माँ ” मैंने कहा .

माँ - देवा, नाज के साथ खेतो में चले जा जरा .

मैं- ठीक है

कुछ देर बाद मैं और नाज खेतो के रस्ते पर पैदल पैदल जा रहे थे

“किस सोच में डूबा है देव ” नाज ने पुछा

मैं- बस यूँ ही

नाज- लगता है में बरसेगा

मैं- कितनी देर का काम है खेतो पर

नाज- ज्यादा समय नहीं लगेगा तुझे जल्दी है क्या

मैं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं मुझे जाना था कही

नाज- इस ख़राब मौसम में कहाँ जायेगा तू

मैं- पता नहीं

मैंने कंधे उचकाए . खेतो पर पिताजी और मुनीम जी पहले से ही मोजूद थे . हमें देख कर पिताजी मुस्कुराये नाज ने घूँघट निकाल लिया
“मुनीम जी कहते है की हमें गेहू,बाजरे को पीछे छोड़ कर किसी और चीज की खेती करनी चाहिए तुम्हारा क्या ख्याल है ” पिताजी ने कहा

मैं- जो आपको ठीक लगे

पिताजी- संतरे का बाग़ लगाया जाये , फल के फल हो जायेंगे और शराब के लिए माल भी यही से उपलब्ध हो जायेगा.

मैंने हां में सर हिला दिया . पिताजी की नजरे मुझ पर ही जमी थी मुझे डर था की कहीं शर्ट के निचे छिपी उस किताब को न ताड़ ले वो पर कुछ देर बाद वो दोनों चले गए.

“मैं ठोड़ी घास काट लेती हूँ फिर चलेंगे ” नाज ने कहा

मैं वहीँ पर बैठ गया . नाज निचे बैठ कर घास काट रही थी उसने अपने लहंगे को घुटनों तक ऊपर किया हुआ था गोरी पिंडलिया मुझे दिख रही थी . चूँकि उसकी पीठ थी मेरी तरफ तो उसके बैठने की वजह से उसके कुलहो की गोलाई साफ़ दिख रही थी मुझे, नाज की मैं बहुत इज्जत करता था पर आज ना जाने क्या हो रहा था मेरे साथ .

“पोटली उठवा दे देवा,” उसने मुझे पुकारा तो मैं नाज के पास गया . खेतो की उमस के कारन नाज का ब्लाउज गीला हो गया था और गहरी सांसे लेने के कारन उसकी बड़ी बड़ी चुचिया ऊपर निचे होने लगी थी . उसके बदन से आती पसीने की महक का नशा सा चढ़ने लगा था और मैंने अपनी पेंट के अन्दर कुछ तनाव सा भी महसूस किया खैर मैंने घास की पोटली नाज के सर पर रखी और वो जाने लगी . मेरी नजर उसकी गांड पर ही जमी रही जब तक की वो नजरो से ओझल ना हो गयी.


वो कहते हैं न की कोई न कोई दिन ऐसा आता है जिन्दगी जो जिन्दगी को जीना सिखा देता है या जिन्दगी कैसे जीनी है उस दिशा में आपको ले जाता है , शायद वो दिन ये ही था मेरी जिन्दगी का . पिस्ता से मिलने के लिए जब तक मैं बड के पेड़ तक पंहुचा तो बारिश अच्छी खासी गिरने लगी थी . वो अभी तक आई नहीं थी वहां पर काफी देर इंतज़ार किया पर वो आती भी कैसे भरी बरसात में . मोर बोल रहे थे , कोयल कूक रही थी जंगल कभी इतना प्यारा नहीं लगा था . बारिश में नहाते हुए मैं जंगल में भटकने लगा . भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .......................
Chalo dheere dheere ab pista aur hero ki mulakat badh rahi hai aur but ye kitab bua ko kisne di aur pata nahi ab hero kaha chala gaya shayad ab Jogan ki entry hone wali hai
 
Last edited:

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#21

भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .........
मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की ये बारिश मुझे कैसे भिगोएगी, सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी जंगल में मोर को नाचते तो दुनिया ने देखा था पर मैंने उसे देखा, उसे देखा और देखता ही रह गया. बारिश की बूंदों संग खेलती वो ,फुल पत्तियों संग डोलती वो . उगता सूरज भी देखा था ,दोपहर को तपता सूरज भी देखा था पर बारिश में उगता चाँद मैंने पहली बार देखा था, वो सांवली सूरत ,उसके गुनगुनाते होंठ जैसे बंसी की कोई तान . मेरी जगह को कवी, शायर होता तो उसकी पहली तमन्ना यही होती की वक्त का पन्ना वही उस छोटे से लम्हे में रुक जाए.
तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी और उसके हाथ थम गए. उसने अपना नाच रोका और मुझे देखने लगी.


“माफ़ी चाहूँगा , मेरा इरादा बिलकुल भी नहीं था आपका ध्यान भटकाने का ” मैंने कहा

“हम्म ” उसने मेरे पास आते हुए कहा

केसरिया लहंगा चोली में वो सांवली सूरत , उसकी आभा में कोई तो बात थी . कुछ देर वो बस मुझे देखती रही और फिर वो जाने लगी .

“बारिश बहुत तेज है ,क्या मैं आपकी मदद करू, मेरा मतलब है इस समय आप अकेली है आपको घर तक छोड़ दू ” मालूम नहीं क्यों मैंने उसे ये बात कह दी

“घर , हाँ घर तो जाना ही है बस देखना है की देर कितनी लगेगी ” उसने कहा

मैं- कुछ समझा नहीं

वो- मेरा घर पास में ही है , वैसे तुम क्यों भटक रहे हो

मैं- सच कहूँ, घर जाने का मन नहीं था

“एक हम है जो घर को तरसते है एक ये है जो घर को घर नहीं समझते ” उसने कहा

मैं- समझा नहीं

तभी बादलो से बिजली लड़ पड़ी, इतनी जोर की आवाज थी की एक पल के लिए लगा की सूरज ही उग आया हो , शोर से जैसे कानो के परदे फट ही गए हो बिजली पास में ही गिरी थी वो दौड़ पड़ी उसके पीछे मैं भागा. खंडहर की मीनार को ध्वस्त कर दिया था बिजली ने पत्थरों के आँगन में मीनार के टुकड़े बिखरे हुए थे .

“नुक्सान बहुत हुआ है ” मैंने कहा

“खंडहर नहीं है ये मंदिर था किसी ज़माने में, और ज़माने ने ही भुला दिया इसे. ” उसने कहा और जाकर उस जगह बैठ गयी जहाँ पर माता की मूर्ति थी मैं भी बैठ गया .


“क्या कहानी है इस जगह की ” मैंने सवाल किया

“समय से पूछना क्यों भुला दिया गया ” उसने जवाब दिया

मैं- तुम्हारी आधी बाते तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है

“इतनी भी मुश्किल नहीं मैं ” वो बोली

मैं- आसान भी तो नहीं

वो- तुम्हे लौट जाना चाहिए अब

मैं- तुम नहीं जाओगी

वो- मेरा घर यही है , तालाब के पीछे घर है मेरा

मैं- ठीक है तुम्हे छोड़ते हुए मैं भी निकल जाऊँगा

उसने काँधे उचकाए और सीढियों से उतरते हुए हम उस जगह जा पहुंचे जहाँ एक झोपडी थी

मैं- यहाँ रहती हो तुम

वो- हाँ

मैं- बस्ती से इतनी दूर तुम्हे परेशानी नहीं होती

वो- बस्ती में जायदा परेशानी होगी मुझे

“ठीक है , मिलते है फिर ” मैंने कहा कायदे से मुझे आगे बढ़ जाना चाहिए था पर मेरे पैर जाना नहीं चाहते थे वहां से

वो- क्या हुआ

मैं- बारिश की वजह से ठण्ड सी लग रही है चाय मिल सकती है क्या एक कप

वो- दस्तूर तो यही है की इस मौसम में कुछ चुसकिया ली जाये पर अफ़सोस आज मेरे घर चाय नहीं मिल पायेगी मैंने कुछ दिन पहले ही बकरी बेचीं है

मैं- कोई बात नहीं फिर तो

“मुझे लगता है की तुम्हे अब जाना चाहिए ” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा और मैं गाँव की तरफ चल दिया .पुरे रस्ते मैं बस उसके बारे में ही सोचता रहा .

चोबारे में गया तो पाया की बुआ कुछ परेशान सी थी

मैं- क्या हुआ बुआ कुछ परेशान सी लगती हो

बुआ के चेहरे पर अस्मंस्ज्स के भाव थे हो न हो वो उसी किताब की वजह से परेशान थी , अब सीधे सीधे तो मुझ से पूछ सकती नहीं थी

बुआ- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं

मैंने रेडियो चला दिया, बारिश के मौसम में बड़ा साफ़ पकड़ता था . हलकी आवाज में गाने सुनते हुए मैंने वो शाम काटी, कभी कभी मेरी और बुआ की निगाहें मिल जाती थी , जिन्दगी में मैंने पहली बार बुआ को गौर से देखा, पांच फूट लम्बी , गोरी, भारी छातिया और पीछे को उभरे हुए कुल्हे, मेरे दिमाग में हलचल सी मचने लगी, शयद उस किताब में पढ़ी कहानियो का असर था ये .



रात घिर आई थी , चूँकि बारिश अभि भी हो रही थी तो हलकी सी ठण्ड थी मैंने चादर ओढ़ ली, बुआ मेरे पास ही लेटी ही थी रात न जाने कितनी बीती कितनी बची थी पर मैं जाग रहा था .बुआ ने अपना मुह मेरी तरफ किया और अपने पैर को मेरे पैर पर चढ़ा लिया बुआ की गरम साँसे मैंने अपने गालो पर महसूस की . कुछ देर बाद बुआ ने अपने होंठ मेरे गालो रख दिए और हलके से पप्पी ली. मेरा तो बदन ही सुन्न हो गया था . बुआ का बदन धीरे धीरे हिलने लगा था पर क्यों हिल रहा था मैं ये समझ नहीं आ रहा था .

बुआ थोड़ी सी मेरी तरफ सरकी और हलके से बुआ ने मेरे होंठो से खुद के होंठ जोड़ दिए, जीवन का पहला चुम्बन मेरी बुआ ले रही थी \मैं चाह कर भी अपने लिंग में भरती उत्तेजना को रोक नहीं सका , चूँकि बुआ की जांघ मेरे ऊपर थी तो शायद उन्होंने भी मेरे लिंग का तनाव महसूस किया होगा . फिर बुआ सीढ़ी होकर लेट गयी , कुछ देर जरा भी हरकत नहीं हुई और फिर अचानक से बुआ ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया . बेशक कमरे में अँधेरा था पर मैं शर्म से मरा जा रहा था मेरी बुआ अपने ही भतीजे के साथ ये अब कर रही थी . बुआ पेंट के ऊपर से मेरे लिंग को सहला रही थी और मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ की ठीक उसी समय बुआ का हाथ अपनी सलवार में था . फिर बुआ ने हाथ लिंग से हटाया और मेरे हाथ को उसकी चुचियो पर रख दिया बुआ सोच रही थी की मैं गहरी नींद में हु पर मैं जागा हुआ था , मैं सोचने लगा की ऐसा बुआ ने क्या पहले भी मेरे साथ ही किया होगा
Bahut jabardast introduction raha bahut sunder man moh lene wale dance ke sath Jogan ka aur ache se uske sath bhi samay bita kar aa gaya hero aur ab hero ki bua lagta hai bahut garam hai isliye uske sath aisa kar rahi hai
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#22

सुबह उठा तो बदन में दर्द सा था हाथ मुह धो ही रहा था की मैंने पिताजी की आवाज सुनी जो किसी बात को लेकर बुआ पर चिल्ला रहे थे मुझे देख कर वो चुप हो गए बुआ अन्दर चली गयी .

“तुझे कितनी बार कहा है की मुनीम जी से काम सीख ले , ” पिताजी ने कहा

मैं- शराब से लोगो की जिन्दगी बर्बाद होती है , मैं ये काम नहीं करूँगा हां खेती की पूरी जिम्मेदारी ले लूँगा

पिताजी- ये जो तमाम सुख सुविधाए तुमको मिलती है न उसी शराब की कमाई से आती है और तुझे क्या परवाह है लोगो की जिन्दगी की ये मत भूल तू किसका बेटा है . पैदा तो मैंने शेर किया था पर तुझे देख कर लगता है की शेर के घर में गीदड़ पैदा हो गया है . ये दुनिया बड़ी मादरचोद है यहाँ अच्छाई एक लिमिट तक ही रहती है , सरल सहज लोग जल्दी ही बर्बाद हो जाते है . इस बात को समझ लेगा तो जी लेगा दुनिया में वर्ना धिक्कार ही रहेगा तुझ पर .मैंने आगे कुछ नहीं कहा और घर से बाहर निकल गया .


देखा पिस्ता अपने घर के बाहर ही बैठी थी .

“और चौधरी साहब आज इधर किधर ” उसने मुझे देखते हुए कहा .

मैं- और कोई काम नहीं है क्या बाप के ताने सुनकर आया हूँ तू भी ताने मार ले

“आजा बैठ के बात करते है ” पिस्ता ने मुझे घर के अन्दर आने को कहा

मैं उसके पीछे गया .

“क्या हुआ जो सुबह सुबह उदासी चेहरे पर ले आये ” उसने कहा

मैं- वही रोज का किस्से, बाप चाहता है की मैं उसके कारोबार को संभालू. मैं शराब नहीं बनाना चाहता न बेचना चाहता हूँ . मैंने कहा खेती कर लूँगा तो बाप चिढ गया उसकी आन बाण से तंग आ चूका हूँ मैं

पिस्ता- सही कहते है बड़े चौधरी , तू एकलौती औलाद है उनकी और फिर कौन बा चाहेगा की औलाद कामयाब ना हो.

मैं- तू उस घर में रहती न तो तू समझती कितना जहर है उन दीवारों में

पिस्ता- दुनिया तेरी तरह नहीं सोचती देव, जिस जहर की तू बात करता है वो चौधरी ही नहीं इस गाँव के हर घर में फैला है , ये दुनिया इतनी भी आसान नहीं है जितनी तू समझता है और फिर तूने जाना ही क्या है . जिस आन बान शान से तू नफरत करता है तेरे जीवन की सच्चाई है जिस से तू कभी भाग नहीं पायेगा. जात-पात की दीवारे इतनी ऊँची है की इंसानियत बौनी पड़ ही जाती है .


“फिर तो मुझ को इन्सान होना ही नहीं चाहिए पिस्ता, फिर तो इस चौधरी को तेरे घर में पैर ही नहीं रखना चाहिए था . क्या बकवास है ये सब. मैं तेरे साथ इसलिए हूँ क्योंकि तू समझती है मुझे. अपने मन की कह सकता हु तुझसे .मुझे लगता है की कोई है जो मेरे साथ है .और अगर ये सब करने से मुझे मेरा चौधरी होना रोकता है तो मैं खुद को चौधरी मानता ही नहीं ” मैंने कहा

पिस्ता- फिर तो तेरा आने वाला वक्त मुश्किल रहेगा देव .

मैं- देखेंगे वो भी फिलहाल कुछ है तो खिला दे भूख सी लगी है बैसे भी अब घर नहीं जाने वाला मैं जब तक बापू रहेगा .

पिस्ता- ये भी कोई कहने की बात है

पिस्ता ने मुझे खाना परोसा .

“क्या सोचने लगा देवा ” लस्सी का गिलास भरते हुए बोली वो

मैं- इस रोटी और मेरे घर की रोटी में फर्क है , वो रोटी अपनी सी नहीं लगती और ये रोटी रोज नहीं मिल सकती .

पिस्ता- चुपचाप खा ले, किसी को मालूम हुआ की तू मेरे घर खाना खाया है तो गाँव में बवाल हो जाये

मैं- वो भी देखेंगे ,वैसे तेरे घर वाले गए कहाँ कोई दिख नहीं रहा

पिस्ता- वो होते तो क्या तू अन्दर होता

हम दोनों हंस पड़े. मैं सोचने लगा की बुआ वाली बात पिस्ता को बतानी चाहिए या नहीं . कुछ देर उसके साथ रहने के बाद मैं गाँव में निकल गया .मालूम हुआ की रागनी प्रोग्राम वाले अपना सामान समेट कर चले गए जबकि प्रोग्राम कम से कम हफ्ते भर तो चलना ही था . कब तक भटकता , घर पहुंचा तो देखा की माँ कपडे धो रही थी पिताजी के कुरते पर खून के दाग थे .आज मैंने हिम्मत करके माँ से सवाल कर ही लिया

मैं- माँ, ये दाग मैं अक्सर ही देखता हूँ इस कुरते पर .

“तू जानता है न इस घर में सवाल करने की इजाजत नहीं है देवा. ” माँ ने कहा

मैं- मैं नहीं तुम तो सवाल कर सकती हो न माँ. मुझसे ना सही पर तुमसे तो कुछ नहीं छिपा ना माँ

“इस घर में औरतो को भी इजाजत नहीं है ” माँ ने कहा

मैं- पिताजी ऐसा क्या करते है . कहने को तो हमारी शराब की फक्ट्री है दान पुन्य भी करते है जमीने है फिर भी ये सब

माँ- बाहुबली है तेरे बापू , और फिर तुझे अगर इतना ही जानने की ललक है तो फिर धंधा संभाल क्यों नहीं लेता तू

“कुछ बाते घर के बेटे को घर में ही मालूम हो जाये तो बेहतर होगा माँ, कल किसी और से मैं जानूंगा तो कहीं इस घर की आन बान शान पर असर ना हो ”मैंने कहा . माँ कुछ नहीं बोली.

“भाभी मैं कुछ देर घर से बहार जाना चाहती हूँ ” बुआ ने आते हुए कहा

माँ- चौधरी सहाब को मालूम हुआ तो जानती हो न क्या होगा.

मैं- बुआ पर इतनी बंदिशे क्यों है माँ

माँ- तू चुप कर , आजकल जुबान बहुत चलने लगी है तेरी अन्दर जा और तुम ,मैं कुछ कहना नहीं चाहती. कम से कम मुझे तो चैन से जीने दो .
पैर पटकते हुए मैं कमरे में जाने की जगह एक बार फिर से निकल गया घर से. पर कहते हैं न की जब मन में व्यथा हो तो मन कही भी नहीं लगता खेतो पर भी करार नहीं आया तो मैं जंगल में भटकने लगा और भटकते भटकते मैंने एक बार फिर जंगल में कुछ ऐसा देखा की साला समझ में आया ही नहीं की ये सब आखिर है क्या......................
Ye Hero ke dad bhi bahut khatarnak hai aur ab hero ko bhi sharab ke business ke liye keh rahe hai aur pista ke sath bhi hero ka rishta badh raha hai aur ab hero firse Jogan ki taraf chal diya
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#२३

काले पत्थरों का वो दो कमरों का मकान जिसे एक नजर में कोई देख नही पाए. चारो तरफ पेड़ पौधों से घिरा वो मकान जंगल के उस हिस्से में था जहाँ पर बरसो में ही किसी के पैर पड़ते होंगे और मैं अपने सामने उस खामोश मकान को देख रहा था जो बेताब था अपनी कहानी मुझे बताने को . अचानक ही मेरी धड़कने बढ़ सी गयी थी , जंगल की ख़ामोशी मेरे कलेजे में उतरने की कोशिश करने लगी थी. पर किसे परवाह थी, ये उम्र ही ऐसी थी . नयी जवानी थी बेताबिया थी .

करीब चार फूट ऊंची दिवार कूदकर मैं दरवाजे के पास पहुंचा, दरवाजे पर कोई भी ताला नहीं था , मैंने कुण्डी खोली ,कमरे में धुल सी जम आई थी पर फिर भी साफ़ सा ही था . चूँकि अँधेरा सा था अन्दर तो मैंने बिना किसी हिचक के खूँटी पर टंगी लालटेन रोशन कर ली, मेरे सिवा वहां पर कोई था भी तो नहीं. कमरे में एक चारपाई थी जिस पर कोई बिस्तर नहीं था एक अलमारी थी जिसकी कुण्डी मैंने खोली तो लगा की कुण्डी नहीं किस्मत का ताला ही खोल लिया हो . अलमारी ऊपर से निचे तक पैसो से भरी थी .

लोग दस बीस के लिए तरसते थे पर अलमारी में सौ,पांचसौ के नोटों की गड्डी ही गड्डी थी. लोगो को कहते ही सुना था की गांड फट गयी पर मतलब आज समझा था की गांड कैसे फटती है . जंगल के अनजाने हिस्से में सुनसान मकान में पैसो से भरी अलमारी . किसी ने सोचा भी नहीं होगा और इतने पैसे बिना की सुरक्षा के . दिमाग की नसे साली फूल गयी . कांपते हाथो से से मैंने एक सौ की गड्डी को उठाया, कमरे में हलकी सी सीलन की बदबू थी पर नोटों की खुसबू जैसे ही नाक के रस्ते मन में उतरी, दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. मैंने दो गड्डी जेब में रख ली. दुसरे कमरे में कुछ नहीं था कुछ पुराने बर्तन थे जो ऐसे ही पड़े थे , एक कुल्हाड़ी थी . मैंने सावधानी से कुण्डी लगाई . कुछ समय लिया मन में नक्शा समझा इस जगह का और फिर वहां से निकल लिया.

अँधेरा घिरने लगा था , पर मुझे घर नहीं जाना था एक बार फिर मैं उस जगह पहुँच गया जहाँ पर जाना ही था मुझे, उसी झोपडी के सामने मैं , मेरी नजर उस पर उसकी नजर मुझ पर पड़ी मैंने उसकी आँखों की त्योरियो को बढ़ते देखा .

“तुम यहाँ, ” कहा

मैं- इधर से गुजर रहा था

“जब झूठ बोलना नहीं आता तो बोलना नहीं चाहिए ”उसने कहा

मैं मुस्कुरा दिया.

“तुमसे मिलने ही आया हूँ ,वैसे भी एक चाय उधार है तुम पर ” मैने कहा

“फिर तो आज तुम्हे निराशा नहीं होगी , मैं बनाने ही वाली थी चाय चलो एक से भले दो ” उसने कहा और मुझे बैठने को कहा.

सीले मौसम में चटक चटक जलती लकडियो की आंच को देखने का भी अपना ही सुख है, पतीली में हौले हौले खौलती चाय का उबाल , ठोड़ी सी तेज चीनी की खुसबू इस से जायदा और क्या ही कहे, उस पहली चुस्की ने मुझे करार सा ही तो दे दिया.

“हौले हौले पियो वर्ना जीभ जल जाएगी ” उसने कहा

मैं- मुझे गरमा गर्म चाय की ही आदत है . वैसे तुम्हे डर नहीं लगता इस बियाबान में रहते हुए

वो- जंगल से जायदा जानवर आजकल इंसानी बस्तियों में पाए जाते है

जब उसने ये कहा तो मेरे अक्स में पिताजी की तस्वीर आई .

“तुम करती क्या हो ” मैंने पुछा

वो- तक़दीर देखती हूँ

मुझे हंसी आ गयी उसकी बात सुनकर

मैं- ऐसा कुछ नहीं होता

वो - तो मत मानो

मैं- अच्छा, ठीक है मेरी तक़दीर बताओ

उसने मेरा हाथ अपने हाथ में थामा और देखते हुए कुछ बुदबुदाने लगी और फिर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया

मैं- बताओ भी अब

वो- मैं मजाक कर रही थी , ऐसा कुछ नहीं होता.

मुझे लगा की शायद वो कुछ छिपा रही है . मैंने चाय की अंतिम चुस्की ली और कप को रख दिया. उसके माथे पर उलझन सी थी .

मैं- क्या हुआ

वो- कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं .ये मन भी न कभी कभी . बारिश फिर से होने वाली है , लकडिया अन्दर रख लेती हूँ

मैं- मदद करू तुम्हारी

वो- नहीं

वो काम करती रही मैं निहारता रहा उसे. उसके साथ होने पर अलग सा सकून महसूस किया मैंने. उसकी ख़ामोशी बातो से ज्यादा अच्छी थी . वापिस आया तो पाया की गाँव में बिजली नहीं थी , ना किसी ने खाने का पुछा न मैंने खाया. बरसात गिरने लगी थी मैंने खिड़की का पल्ला ढाल दिया और बिस्तर पर लेट गया.चादर के अन्दर मैं और बुआ हमेशा की तरह ही लेटे हुए थे नींद नहीं थी आँखों में बुआ की सांसो को महसूस करते हुए मैंने बुआ की छातियो पर अपने हाथ रखा और धीरे धीरे बुआ की चूची को सहलाने लगा. य जानते हुए भी की वो जागी हो सकती है इस बार मैंने पहल अपनी तरफ से की थी .


“सी ईईइ ” बुआ ने हलकी सी सिसकारी भरी, जोश जोश में चूची थोडा जोर से दबाई गयी मुझसे. बुआ लिपट गयी मुझसे और हमारे होंठ एक दुसरे के होंठो से मिल गए. बुआ की जीभ मेरी जीभ से रगड़ खाई तो बदन में ऐसा करंट दौड़ा की लाज छोड़ कर मैंने अपने दोनों हाथ बुआ के नितम्बो पर कस दिए , जीवन में पहली बार ये अवसर आया था जब मैं नारी के हुस्न को ऐसे सहला रहा था , उस किताब की तमाम कहानिया मेरे मन में चलने लगी थी . मेरे लिंग की तनाव को बुआ अवस्य ही अपनी जांघो के बीच महसूस कर रही होगी बहुत देर तक हम दोनों एक दुसरे को चुमते रहे पर इस से पहले की हम और आगे बढ़ पाते निचे से आई आवाज ने हमारे होश उड़ा दिए......................
Bahut jabardast update bhai aakhirkar chai pi hi li hero ne Jogan ke yahan but ye ghar kiska hai jisme itne paise hai kahi chaudhri sahab ka toh nahi aur aisa kya dekh liya Jogan ne hero ke hatho me jo use bata nahi Rahi thi aur ab hero ne bhi pehel kardi apni bua ke sath but firse maja kirkira kar diya kisi ne
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#24

“चौधरी साहब, चौधरी साहब मदद कीजिये ” निचे से किसी औरत की आवाज जोर जोर से आ रही थी, बुआ झट से मुझसे अलग हुई और मैं लालटेन जला कर निचे आया तो पाया की पिस्ता की माँ थी .

“काकी , तुम इस वक्त यहाँ क्या हुआ ” मैंने धडकते दिल से कहा

“क्या हुआ परमेश्वरी , इतनी रात को क्यों आई हो ” पिताजी ने आँगन में आते हुए कहा .

“चौधरी साहब, मेरी लड़की गायब है ” काकी ने कहा

पिताजी- क्या मतलब गायब है , इधर-उधर हुई होगी, मालूम कर ले क्या पता अड़ोसी-पडोसी या किसी सहेली के घर गयी हो .

परमेश्वरी- मुझे लगता है वो भाग गयी किसी के साथ चौधरी साहब, उसके कपडे का झोला भी गायब है और घर से कुछ पैसे भी ले गयी वो .

काकी की बात सुनकर मेरे पैरो तले जमीन ही खिसक गयी. आँखों के आगे अँधेरा सा ही छा गया. पिस्ता भाग गयी , क्यों, किसके साथ . साला समझ से बाहर ही हो गया था ये सब कुछ.

“चिंता मत कर परमेश्वरी , वो केवल तेरी ही बेटी नहीं है गाँव की इज्जत का भी सवाल है , जाने दे उसे कितना दूर जाती है तेरी चोखट पर लाकर जल्दी ही पटक दूंगा उसे. ”पिताजी की आँखों में मैंने गुस्से की लहर देखी.

मेरे तो सर में दर्द ही हो गया था चोबारे में आने के बाद मैं खिड़की पर खड़ा हो गया और आसमान को देखने लगा पिस्ता क्यों भाग गयी घर से इसका दुःख नहीं था किसके साथ गयी ये सोच कर मेरा मन रोने को हो रहा था क्या उसकी जिन्दगी में कोई और था .

“क्या सोचने लगा देव ” बुआ ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .

मैं- दोस्त है वो मेरी.

“तेरी दोस्त कब से हो गयी वो ”बुआ ने कहा

मैं- कहा न दोस्त है , मुझे फ़िक्र होने लगी है उसकी

बुआ- फ़िक्र की बात तो है , तेरी दोस्त है तो उसने कुछ तो बताया ही होगा तुझे, और अगर तुझे उसकी फ़िक्र है तो तलाश ले उसे की भाई जी तलाश ले उसे . अगर वो उनके हाथ लग गयी तो फिर तू सोच भी नहीं सकता की क्या होगा .

मैंने बुआ की आँखों में खौफ देखा.

“कुछ नहीं होगा उसे, कुछ नहीं होने दूंगा मैं उसे.”मैंने कहा

बुआ- कितना चाहता है तू उसे

मैं- चाहता , दोस्त है वो मेरी

बुआ- पर मैं तो तेरी आँखों में कुछ और देख रही हूँ, भाई जी से पहले अगर पिस्ता तुझे मिल जाये तो कुछ भी करना उसे यहां से इतना दूर कर देना की कोई साया भी तलाश न कर सके उसे, वर्ना आने वाला समय बहुत कठिन होगा उसके लिए भी और तेरे लिए भी

मैं-क्या कह रही है बुआ

बुआ- अगर तू सच्चा है तो रब ही राखा है तेरा . लालटेन बुझा दे ये रात यु ही नहीं कटेगी अब .


मेरी खामोश जिन्दगी अचानक से ही सरपट दौड़ने लगी थी, अचानक ही इतनी सारी घटनाये होने लगी थी . सुबह गाँव में अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी, जाहिर था पिस्ता वाली खबर सबको मालूम हो ही गयी थी . मैं पिस्ता के घर गया .

“भाई जी , यहाँ ” काकी ने कहा

मैं- काकी, बहुत जरुरी बात करनी है तुमसे . ये बताओ पिस्ता कहाँ जा सकती है

काकी- मुझे क्या मालूम बेटा, मेरी तो उसने सुनी ही नहीं कभी मुह काला करवा गयी हरामजादी ऐसी बेटी दुश्मन को भी न मिले.

मैं- बुरा क्यों सोचती हो काकी, हो सकता है बात वैसी ना हो जैसा सब सोच रहे है वैसे भी ये दुनिया किसी का अच्छा नहीं सोचती .

काकी- क्या कहूँ बेटा, कुछ समझ नहीं आ रही .

मैं- कुछ तो करती होगी,किसी के साथ तो रहती होगी

काकी- ऐसा तो कुछ नहीं था , जंगल चली जाती थी कभी बकरिया लेकर कभी लकडिया लाने बाकी समय मुई रेडियो से चिपकी रहती थी गाने सुनती रहती थी . हजार बार कहा की घर के कामो में ध्यान दे ब्याह के बाद ये सब ही काम आयेंगे पर नही मानती थी .

काकी की बातो से मुझे कुछ भी ऐसा नहीं मिला जो मदद कर सके. मैंने बहुत कोशिश की पर पिस्ता का कुछ पता नहीं चला. जीना हराम हो गया था खाना पीना तो दूर की बात थी . दिन पर दिन गुजरने लगे थे पर पिस्ता ऐसे गायब हुई की जैसे कभी थी ही नहीं, मैं उसकी माँ के पास जाकर दिलासा देता उसे पर हर गुजरते दिन के साथ मैं टूटने लगा था .


“बहुत दिनों से देख रही हु, ना कुछ बताते हो न कुछ छिपाते हो. क्या हुआ है तुम्हे.बस चुपचाप बैठे रहते हो ” चाय का कप पकड़ाते हुए पुछा उसने .

मैं- कुछ नहीं है कहने को मेरे पास

वो- बेशक, पर मैंने सुना है की मन में किसी बात को दबाना नहीं चाहिए और फिर अपने दर्द को हम किसी अपने के साथ बाँट भी तो सकते है न .इतना तो मेरा हक़ है ही तुम मुझे बता सको .

ये बात उसने इतने अधिकार से कही थी की मैं न चाहते हुए भी उसे पिस्ता के बारे में बता ही दिया.

“मामला गंभीर है और सम्भावनाये काफी. पहली तो जाहिर है यही की पिस्ता भाग गयी और दूसरी ये की हो सकता है किसी ने उसका अपहरण कर लिया हो ” उसने कहा

मैं- पर क्यों करेगा कोई ऐसा

“जवान है, खूबसूरत है जैसा तुमने कहा .हो सकता है किसी की नियत में खोट आ जाये. . हो सकता है की किसी ने उसे अगवा करके उसके साथ कुछ ऐसा वैसा किया और मार दिया हो ” उसने हौले से कहा

मेरा दिल इस अनिष्ट की बात सुनकर रोने को हो आया.

“ये सिर्फ वो सम्भावनाये है जिन पर हम विचार कर रहे है .” बोली वो

मैं क्या कहता उसे .पर कुछ तो हुआ ही होगा वर्ना पिताजी जैसा बाहुबली आदमी तक उसने इतने दिन में तलाश नहीं कर पाया तो दूसरी सम्भावना होने के अनुमान अचानक से बहुत बढ़ गए थे . घर आया तो रात काफी हो चुकी थी मालूम हुआ की पिताजी बाहर थे और माँ बुआ गाँव में कीर्तन में गए थे, घर पर मैं अकेला था .न जाने मुझे क्या ख्याल आया बुआ की अलमारी खोली मैंने. ऊपर के दो खानों में कपडे भरे हुए थे, कुछ गहने थे निचे वाले खाने में जुतिया. साइड में कुछ किताबे थे जिनमे शायरिया थी और फिर मुझे वो मिला जो शायद मैं देखना चाहता था . दो और वैसी ही किताबे जिनमे अश्लील कहानिया थी पर मेरी दिलचश्पी उसमे थी , वो रंगीन चित्रों वाली किताब जिसमे सम्भोग के चित्र थे. तरह तरह से चुदाई की फोटो. नसों में बहता खून का जोर लंड में उतर आया था .

जैसे ही उत्तेजना का सुरूर दौड़ा दिमाग से तमाम चिंता, फ़िक्र दूर हो गयी मैंने अपनी पेंट को खोला और कच्छे को सरकाते हुए लिंग को आजाद कर लिया . हाथ से उसे सहलाया तो बदन में कम्पन होने लगा. जिन्दगी में पहली बार मैं हस्मैथुन कर रहा था और जब लगा ही था की मैं उस सुख को प्राप्त करने वाला हु . एक आवाज ने मेरी सिट्टी पिट्टी गुम कर दी.

“बेशरम क्या कर रहा है ये ”



मैं घबराहट में पलटा और तभी मेरे लिंग से पिचकारी सी निकली और उसके पेट पर काफी सारा सफेद सफ़ेद लग गया.................
Ye Pista kaha gayab ho gayi aur bua ne shai pehchana hero pyar karta hai Pista se aur use idea bhi sahi diya but wo use mil tab na aur Jogan bhi sahi guess Kiya hai aisa bhi ho sakta hai aur bua ke paas se aur kitab mil gayi aur hero ke mutth karte huye Kaun aa gaya jispar hero ka garma garam pani gir gaya
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,269
8,992
188
#25

“बेशरम, ख़राब कर दिए कपडे मेरे ” नाज ने गुस्से से कहा

“मासी, बात समझो वैसा कुछ नहीं जो तुम समझ रही हो . ”

नाज- क्या नहीं समझी मैं और सबसे पहले कच्छा ऊपर करो

नाज ने मेरे लंड को देखते हुए कहा

मैंने कच्छा और पेंट ऊपर की .

मैं- मासी,किसी से कहना मत ये जो भी हुआ तुम समझ नहीं पाओगी , मैं कितनी भी सफाई दू बेकार है.

“ये क्या है तेरे हाथ में ” नाज ने वो रंगीन चित्रों वाली किताब उठा ली और उसके चेहरे के भाव बदलने लगे हर बदलते पन्ने के साथ .लगभग आधी किताब उसने देखी और फिर बिना कुछ बोले निचे चली गयी रह गया मैं अकेला . मन में कही ना कही डर भी था की कहीं नाज चोबारे वाली घटना माँ को नहीं बता दे . पर सुबह ऐसा कुछ भी नहीं हुआ सब कुछ नार्मल ही था सिवाय बुआ के वयवहार को . शायद उसे मालूम हो गया था की मैंने उसकी अलमारी खोली थी पर मुझे क्या ही परवाह थी .


जिदंगी की तलाश में न जाने किस मोड़ पर आकर खड़ा था मैं , मेरी दोस्त जिससे अपने मन की बात कह सकता था वो गायब थी , मगरूर बाप , हवस से भरी बुआ क्या ही बढ़िया परिवार था मेरा . ख्यालो में खोया था की तभी माँ ने मुझे कुछ सामान नाज के घर देकर आने को कहा .न चाहते हुए भी मुझे वहां जाना पड़ा .

“मासी ” मैंने आवाज दी पर अन्दर से कोई नहीं बोला.

दरवाजा खुला था तो मैं अन्दर चला गया . नाज कहीं दिख नहीं रही थी वापिस जाने ही वाला था की सामने से नाज आती दिखी . हम दोनों को कल रात की बात ध्यान आई तो मैं नजरे चुराने लगा और वो भी शायद.

“मासी , माँ ने आचार का मर्तबान भेजा है ” मैंने कहा

नाज- रसोई में रख दो

मैं सामान रख कर जा ही रहा था की नाज ने मुझे रोका और बोली- चाय पीकर जाना,

मैं- नहीं, मुझे काम है

नाज- काम, कल देखा था मैंने काम

मैं- शर्मिंदा मत करो मासी

नाज- ठीक है रात गयी बात गयी चाय पीकर जा

नाज और मैंने चाय पि जब मैं चलने को था तो नाज बोली- जो सुख तुम हाथ से तलाश रहे थे वो बिना औरत के कभी नहीं मिलता . किसी को तलाश लो मेरी सलाह मानो तो .

मैं- सलाह के लिए शुक्रिया पर मैंने कल भी कहा था तुम समझ नहीं पाओगी

नाज- क्या नहीं समझ पाऊँगी मैं

मैं- मुझे जल्दी है , फिर कभी मैं कोशिश करूँगा

नाज- मैं खेतो पर जाउंगी तुम चाहो तो चल सकते हो

हम बात कर ही रहे थे की तभी मुनीम जी आ गये , उन्होंने नाज को कोई काम बताया था तो मैं बाहर आ गया. न जाने मुझे या सुझा मैं शराब की फक्ट्री पर पहुँच गया . दारू बनाने में लोग लगे हुए थे. अजीब सी घटिया सी, खट्टी बदबू फैली हुई थी , मैंने सोचा की अगर कोई शराबी दारू को बनते हुए देखे तो फिर कभी पिए ही नहीं. भट्ठियो का जायजा लिया, मेरा मन मुझसे कुछ कह रहा था जो मैं समझ नही पा रहा था .


ले देकर जिन्दगी बस खेत जंगल तक ही सिमट कर रह गयी थी. फक्ट्री से निकल कर गाँव की तरफ जा रहा था की रस्ते में मुझे वो मिल गयी .

“तुम यहाँ ” मैंने कहा

“रस्ते आने जाने के लिए ही होते है न ” बोली वो

मैं- नहीं मेरा मतलब वो नहीं था, सोचा नहीं था तुम ऐसे मिल जाओगी किसी राह में

वो- रस्ते इसीलिए तो होते है वो हमें कहीं न कहीं यु ही मिलवा देते है किसी न किसी से

मैं- और वो कोई, किसी कौन है

वो- फिलहाल के लिए तो तुम और मैं देव

मैं- मुझे तो पुकार लेती हो पर मैं तुम्हे किस नाम से पुकारू आज तक तुमने अपना नाम बताया नहीं


वो- तुमने कभी पुछा ही नहीं वैसे जमाना मुझे जोगन कहता है

मैं- जोगन, ये भी भला कोई नाम हुआ

वो- नाम तो ये ही है तुम सुझा दो कोई और नाम जो तुम्हे अच्छा लगे.तुम उस से पुकार लेना मुझे

मैं- सोच कर बताऊंगा जोगन.वैसे कहा जा रही हो .

जोगन- तुम्हारे गाँव से आ रही हूँ कुछ सामान लेना था तो ले आई

मैं - मुझे बता देती मैं ला देता

जोगन- ला तो देते पर कुछ काम खुद को ही करने पड़ते है . खैर, दो-चार रोज़ तुम घर की तरफ मत आना. मैं मिलूंगी नहीं तुम्हे

मैं- क्यों

वो- किसी काम से मैं जा रही हूँ बाहर

मैं - मैं भी चलू क्या तुम्हारे साथ वैसे भी इस गाँव में दम घुटता है मेरा.

वो- अभी तो नहीं पर अगली बार जरुर . वैसे मेरा एक काम करना जब तक मैं लौट नहीं आती तुम खंडित मंदिर में दिया जला दिया करोगे क्या .

मैं- क्यों नहीं.

वो- ठीक है फिर मिलते है कुछ दिनों बाद . एक तो पिस्ता गायब थी और अब जोगन भी जा रही थी पर यही तो शायद जिन्दगी थी. खैर मैं खेतो पर चले गया और चारपाई डाल कर सो गया. जागा तो शाम हो रही थी मौसम बेईमान सा था . बारिश हो भी सकती थी नहीं भी ,आसमान काला था मुझे ध्यान आया की दिया जलाना है तो मैं वहां पर पहुँच गया जोगन के बताये अनुसार मुझे तेल और बाती मिल गयी. अँधेरे में दिए की रौशनी बड़ी ही प्यारी लग रही थी . इस जगह पर सकून तो मिलता था .न जाने क्यों मैं झोपडी पर पहुँच गया पर दरवाजा बंद ही होना था एक डंडी उठाये मैं जंगल के रास्ते से घर की तरफ जा रहा था बारिश पड़ने लगी थी मैंने रास्ता बदला और तेज तेज कदमो से आगे बढ़ने लगा. पर मौसम भी साला छेड़खानी पर उतर आया था ,बारिश से बचने के लिए मैंने सोचा की किसी पेड़ की शरण ले लेता हु पर मैं क्या जानता था की इस बार जंगल में क्या दिख जायेगा. दौड़ते हुए मैं उस बड के पेड़ से कुछ ही दूर था की मेरे कदम रुक से गए , भरी बरसात में मैंने देखा की पेड़ के तने पर हाथ लगाये एक औरत अपना लहंगा उठाये झुकी थी और उसके पीछे कोई आदमी था .......

बहनचोद , इस बारिश में कौन चुदाई कर रहा था. सोचते हुए मैं कुछ कदम आगे बढ़ा और तभी मेरी नजर.......................

Acha toh ye Naaz hai aur wo bhi sab samajh gayi acha hua usne kisi ko bataya nahi phele Pista chali gayi aur ab Jogan bhi chali gayi but chudai kaun kar rahe hai oed ke paas wo bhi barish me
 
Top