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Adultery जब तक है जान

Abhishek Kumar98

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#26

भीगा मौसम, लहराते पेड़-पौधे और सामने चलती चुदाई , मेरा खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था तभी मेरी नजर उस
औरत के चेहरे पर पड़ी और मैं बुरी तरह से चौंक गया . मुझे उम्मीद नहीं थी . साली मुझे पाठ पढ़ा रही थी की ज्यादा आग लगी है तो कोई औरत ढूंढ लो और खुद खुले में चुद रही थी.जिस उत्साह से चुदाई चल रही थी लगने लगा था की अब मामला कुछ ही देर का है . पर तभी मेरे दिमाग में सवाल आया की ये आदमी कौन है क्योंकि उसने मुह पर कपडा बाँधा हुआ था .मन किया की दोनों को पकड लिया जाये रंगे हाथ पर तभी उस आदमी ने नाज को धक्का देकर खुद से परे कर दिया और तुंरत ही वहां से जाने लगा. काम होने के बाद उसने एक बार भी नाज को नहीं देखा और पल भर में ही गायब हो गया. ऐसी भी बहनचोद क्या जल्दी थी .खैर, नाज ने अपने कपड़ो को सही किया और चबूतरे से उतर कर रस्ते पर जाने को ही हुई थी की मैं दौड़ कर उसके सामने आ गया.

“देवा, देवा तुम यहाँ इस वक्त ” नाज ने थूक गटकते हुए कहा

मैं- मेरी छोड़ो तुम यहाँ क्या कर रही हो मासी

“खेतो पर गयी थी , बारिश का जोर हुआ तो रुक गयी थी इधर ” नाज ने साफ़ झूठ बोला.

“हसीन औरते झूठ बोलते समय और भी खूबसूरत लगती है ” मैंने बुदबुदाया

नाज- कुछ कहा तुमने

मैं-नहीं कुछ भी नहीं.

मैं नाज से कहना चाहता था की साली अभी कुछ देर पहले तो उचक उचक कर लंड ले रही थी और अभी देखो कितनी मासूम बन रही थी पर अगर औरत को जोर से पाया तो फिर क्या पाया. चाहता तो उसे चोद सकता था उसी समय पर उसमे मजा नहीं रहता. पर सोच जरुर लिया था की जल्दी ही नाज की चूत मारी जाएगी. बारिश में भीगते हुए हम लोग गाँव में पहुँच ही गए.

“आज तो देर बहुत हो गयी ” नाज ने अपने घर की तरफ मुड़ते हुए कहा
मैं रुक गया .

“क्या हुआ देव ”नाज बोली

“कबूतरी कच्छी जंचती है तुम पर ” मैंने नाज से कहा और उसके पैर जैसे धरती पर जम गए. मैं तुरंत अपने घर में घुस गया . घर गया तो पाया की माहोल में कुछ तल्खी सी थी माँ के चेहरे पर चिंता को पढ़ लिया मैंने

“ क्या हुआ माँ, परेशान सी लगती हो ” मैंने पुछा

माँ- किसी ने अपनी शराब फक्ट्री पर हमला किया , काफी नुक्सान हुआ है . तेरे पिताजी बाहर गए है उनको मालूम होगा तो कलेश बहुत बढ़ जायेगा देवा.वैसे ही आजकल क्रोध उनकी नाक पर रहता है मुझे बड़ी फ़िक्र हो रही है

मैं- माँ, सही हुआ है ये जिसने भी किया है . पिताजी के काले धंधे लोगो का भला नहीं करते. शराब से कितने घर बर्बाद होते है तो कभी ना कभी आंच हमारे घर तक भी आयेगी न. वैसे भी ये खून खराबा आये दिन का ही नाटक हुआ पड़ा है .

माँ- लिहाज करना भूल ही गए हो आजकल तुम

मैं- सच कहना कोई बदतमीजी भी तो नहीं ना माँ, तुमसे क्या ही छिपा है .झूठे रुतबे, झूठी शान के बोझ को कब तक धोना पड़ेगा हमें. पिताजी खुश होते है की वो बाहुबली है , इलाके में उनका सिक्का चलता है पर माँ पीठ पीछे वो ही लोग हमें गालिया बकते है . गाँव में कोई हमसे बात तक नहीं करना चाहता.

माँ- गाँव वालो के लिए इतना सब कुछ करने के बाद भी उनके मन में फरक है तो ये हमारी नहीं उनकी समस्या है

मैं- सही कहा माँ तुमने.
माँ- कायदे से तुझे चिंता होनी चाहिए थी की किसने हमारे काम पर हमला किया . हमारे लोगो को चोट आई है , अगर हमने कदम नहीं उठाया तो कल को फिर कोई ऐसी ही हिमाकत करेगा . कैसा बेटा है तू घर पर आंच आई है और तुझे परवाह ही नहीं .


“किसी की मजाल नहीं की मेरे घर की तरफ आँख उठा सके ” मैंने कहा ही था की तभी बाहर से मुनादी करने वाले की आवाज आने लगी .
“सुनो सुनो, सुनो आज रात करीब घंटे भर बाद सब लोग गाँव की चौपाल में इकठ्ठा हो जाए .पंचायत लगेगी ” मुनादी करने वाले की आवाज गली में गूंजने लगी .

मैं बाहर गया .

“पंचायत कैसे होगी, पिताजी तो गाँव में है ही नहीं. और ये पंचायत किस सिलसिले में हो रही है ” मैंने सवाल किया

“मुझे नहीं पता भाई जी, मुझे मुनीम जी ने आदेश दिया मुनादी का आप मुनीम जी से पता कर लो ” उसने कहा और आगे बढ़ गया.
आजकल गाँव में कुछ न कुछ नाटक होते ही रहते थे अब बारिश से भरे रात में पंचायत का आयोजन ऐसा क्या ही हो गया था . पर हमारी गांड के घोड़े भी चढ़ती जवानी की चाबुक से दौड़ रहे थे तो मैं मुनीम के घर पहुँच गया .


“मुनीम जी ” मैंने आवाज दी

“कौन है ” नाज ने बाहर आते हुए कहा .

“तुम इस वक्त यहाँ ”इतना ही बोल सकी क्योंकि जैसे ही हमारी नजरे मिली वो नजरे चुराने लगी. दिल तो मेरा भी धडक गया उसकी गदराई छातियो को देख कर पर फिलहाल मेरी प्रथमिकताये कुछ और थी .

“मुनीम जी कहा है मासी ” मैंने कहा

नाज- घर पर नहीं है आये नहीं अभी तक

मैं- पंचायत का आयोजन करने का आदेश दिया है उन्होंने

नाज- मुझे नहीं मालुम इस बारे में

मैं- हां, तुम्हारे तो अपने अलग ही काम है

नाज- देव मेरी बात सुनो

मैं- अभी नहीं मासी. मुझे जाना है पंचायत क्यों हो रही है मालूम करना है

नाज- मेरी बात सुनो देव.

पर नाज की बात अधूरी ही रह गयी क्योंकि तभी लगभग दौड़ते हुए बुआ वहां आ गयी और बोली- देव, तुम पंचायत में नहीं जाओगे.............

मैं- क्यों भला

बुआ- समझने की कोशिश करो देव


मैं- क्या कह रही हो बुआ, ऐसा क्या है जो मुझे नहीं जाना चाहिए वहां

बुआ- सवाल बहुत करते हो तुम , मैंने कह दिया न नहीं जाना तुम्हे तो नहीं जाना

मैं- मैं जाऊंगा जरुर जाऊंगा

बुआ- समझता क्यों नहीं तू

मैं- तो बता न

बुआ- क्योंकि................................
Waise bada Gyan de rahi thi hero ko aur khud khule aam chudti fir rahi hai Aur ab najre chura Rahi hai but bua kyu mana kar rahi hai panchayat me jane se kya Pista mil gayi aur sharab wali jagah par kisne hamla kawaya hoga hero ke dad ne bhi bahut dushman bana liye hai
 
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Abhishek Kumar98

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#27

“क्योंकि ,पंचायत में जो होगा तू सह नहीं सकेगा” बुआ ने कहा

मैं- इस घर के लोगो को अजीब बिमारी है साफ़ साफ नहीं कहनी कोई भी बात मेरे पंचायत में ना जाने से कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा जो मुझे रोकती हो

बुआ- पिस्ता मिल गयी है, उसे पकड़ कर ला रहे है उसके नसीब का फैसला आज रात होगा.


“क्या पिस्ता मिल गयी “ कहते हुए मेरे चेहरे पर जो नूर था शुक्र ये की रात थी वर्ना कोई भी देख कर दीवाना कह देता . पर अगले ही पल उस नूर की जगह डर ने ले ली.

“पिस्ता, पिस्ता को लेकर पंचायत क्यों होगी ” धडकते दिल से मैंने सवाल किया.

बुआ- बहुत भोला है तू देवा, इस घर में रह कर भी तू नहीं समझा की औरत की कोई आजादी नहीं होती यहाँ. इस गाँव में औरत पांव की जुती तो हो सकती है पर उसके आँचल को लहराने की इजाजत नहीं है . मैंने चाहत देखी है तेरी आँखों में उस लड़की के लिए इसलिए तुझे रोक रही हु.


“चाहत देखी फिर भी रोकती है बुआ ” मैंने कहा

बुआ- हाँ, इसलिए रोकती हूँ क्योंकि जमाना आशिको का कभी साथी नहीं रहा चढ़ती जवानी की रवानी में कही तुमसे ऐसी कोई गलती न हो जिसका पछतावा उम्रभर रहे क्योंकि चाहत के रोग की कभी दवा नहीं होती .

इस से पहले की मैं बुआ को कोई भी जवाब देता हमारे आगे से तीन चार गाडिया निकली और मेरा दिल कांप गया किसी अनिष्ट की आशंका से मैं गाडियों के पीछे भागा और चौपाल पर पहुँच गया. मेरे देखते देखते पिताजी के एक आदमी ने पिस्ता को गाडी से निकाल पर नीम निचे चबूतरे पर पटक दिया. दर्द से कराही वो. मैंने देखा चोट लगी थी उसे, कुरता काँधे पर से फटा था .

“पिस्ता ” दौड़ कर मैं उसके पास गया और उसे अपने आगोश में भर लिया .

“देव ” उसने हौले से कहा और मेरी बाँहों में झूल गयी . सकून, करार जो भी था उस लम्हे में बहुत था. दुआ बस ये थी की, अगर कही खुदा था तो गुजारिश थी की उस लम्हे में इस कायनात को समेट ले. दीन दुनिया को भुलाकर मैं पिस्ता को आगोश में लिए खड़ा था .न कोई होश था ना कोई ख्याल था सिर्फ वो थी और मैं था. पर कब तक

“देवा, ये क्या कर रहा है तू ” पिताजी की सख्त आवाज ने मुझे धरातल पर लाकर इतनी जोर से पटका की सच्चाई ने मेरे घुटनों को टक्कर मारी.

“तेरी जुर्रत कैसे हुई नीच जात की लड़की को छूने की ” पिताजी ने मुझे लताड़ते हुए कहा .
मैं- जुर्रत तो आपके आदमियों की भी नहीं होनी चाहिए थी इसे हाथ लगाने की , जी तो करता है की आपके इन आदमियों के हाथो को अभी तोड़ दू.

“जुबान को लगाम दे देवा, ” पिताजी बोले.

मैं- चल पिस्ता घर चल

पिताजी- कहीं नहीं जाएगी ये, जब तक की ये पंचायत फैसला नहीं कर दे, सजा तो मिलेगी इसे

मैं- किस बात का सजा

पिताजी- गाँव से भाग कर गयी थी ये , बहन-बेटियों को लिहाज में रहना चाहिए . इसे सजा जरुर मिलेगी वर्ना देखा देखी और लडकिया भी ये कदम उठाएंगी

मैं- कैसा लिहाज पिताजी, और किस ज़माने में जी रहा है ये गाँव, गाँव की छोड़ो , आप किस ज़माने में जी रहे है , किस बात का समाज जहाँ आदमी को अपनी मर्जी से जीने की आजादी नहीं है, कैसा गुरुर , कैसी आन बाण शान जो आदमी को आदमी नहीं समझती . कहने को अपना गाँव है अपने लोग है, अपने लोग है तो फिर क्यों जात-पात में बांटे हुए है अपने ही लोग . ये नीच जात की है आप ऊँची जात के . इसकी माँ रोज हमारे घर आती है हमारा कचरा साफ करती है बर्तन मांजती है उन्ही बर्तनों में हम खाना खाते है . हमारे घर में बना खाना इनके घर जाता है , होली-दिवाली इनके घर ,हमारे घर से मिठाई जाती है . सुख दुःख में आप इनके साथ खड़े रहते है तो फिर ये निचे और हम ऊँचे कैसे हुए पिताजी .

“समाज के ताने ताने से छेड़खानी करने का किसी को कोई अधिकार नहीं वैसे भी ये पंचायत इस मुद्दे पर है की घर से भागने के लिए इस लड़की को क्या सजा दी जाये ” पिताजी ने लाठी को जमीन पर मारते हुए कहा .

मैं- कोई सजा नहीं मिलेगी पिस्ता को . नहीं मानेगी वो किसी भी पंचायत के उलजलूल फैसले को

पिताजी- तुम अपनी हद पार कर रहे हो लड़के .

मैं- मुखिया को अपनी हद याद दिला रहा हूँ मैं .

“गुस्ताख ” अगले ही पल पिताजी का थप्पड़ मेरे गाल पर आ पड़ा


“देव ” चीखी पिस्ता

“पंचायत की कार्यवाही शुरू की जाये ” पिताजी ने कहा

मैं- कोई पंचायत नहीं होगी , पिस्ता अपने घर जाएगी


“”देवा, बेटा घर चल “माँ भी पंचायत में आ पहुंची थी .

“जरुर माँ घर जरुर जायेगे पर पिस्ता को लेकर ” मैंने माँ से कहा

“देवा की माँ इस से पहले की हम भूल जाये ये ना लायक हमारी औलाद है इसे ले जाओ यहाँ से ” पिताजी का गुस्सा चरम पर बढ़ने लगा था .

“मैं सजा के लिए तैयार हु चौधरी साहब ” पिस्ता ने बाप-बेटे के बीच आते हुए कहा.

“सजा ही देनी है तो दीजिये ये तमाशा किसलिए , गलती हुई मुझसे तो सजा दीजिये ” पिस्ता ने कहा

पिताजी- शर्म बेच खाई है तुम जैसी लडकियों ने अपने सुख के लिए तुम्हे जरा भी परवाह नहीं रहती की जिस घर से तुम भाग रही हो तुम्हारे बिना क्या रह जायेगा उस घर में,देख जरा तेरी माँ की आँखों में झांककर. बीते दिनों में इसकी आँखों ने मुझसे सिर्फ एक सवाल किया की कब लौटेगी इसकी बेटी. जिन हाथो ने तुझे इतना बड़ा किया तुझे शर्म नहीं आई उन्हें रुसवा करते हुए.

पिस्ता- मैंने कोई गुनाह नहीं किया

पिताजी- माँ-बाप को समाज में नीचा दिखाने से भी बड़ा कोई गुनाह है क्या

“बच्ची है वो.माफ़ कर दीजिये ” माँ ने बीच-बचाव करते हुए कहा .

“चौधरीन ,हद पार कर रही हो तुम ” पिताजी बोले

“ये पंचायत पिस्ता को कोड़े मारने का सजा देती है जब तक की इसकी पीठ से मांस न उधड जाये अभी इसी वक्त ” पिताजी ने कहा
मैं- अगर किसी ने भी पिस्ता को हाथ भी लगाया तो वो हाथ , हाथ नहीं रहेगा.

“चौधरी साहब , बच्चे है अपने ही ” माँ ने हाथ जोड़ दिए. मेरी माँ पंचायत में हाथ जोड़ रही थी मेरे लिए इस से ज्यादा शर्मिंदगी क्या ही होती .

पिताजी- ठीक है जाने दूंगा पिस्ता को पर इसे बताना होगा किसके साथ गयी थी इसका आशिक कौन है . अभी के अभी जाने दूंगा इसे.
पिताजी ने धुर्त्पना दिखा दिया था . वैसे भी जाने कैसे देता वो जब बात मूंछो की हो .

“बता लड़की कौन है तेरा आशिक किसके साथ गयी थी तू ” पिताजी ने सवाल किया.


“मेरा कोई आशिक नहीं ” चीखी वो

“झूठ बोलती है हरामजादी अगर ये आशिक का नाम नहीं बताती तो कोड़े मारो इसे ” पिताजी ने थप्पड़ मारा पिस्ता को

“दुबारा हाथ मत लगाना इसे पिताजी ” गुर्राया मैं

“तो फिर तू ही पूछ ले इससे, जिसकी इतनी तरफदारी कर रहा है किसकी साथ मुह काला कर रही थी ये, किसने इसे सलाह दी थी भागने की ” बोले वो .

मैं- आप जानना चाहते है न की कौन है इसका आशिक , मैं बताता हु , पर पहले वादा कीजिये की कोई भी पिस्ता को हाथ नहीं लगाएगा

पिताजी- ठीक है वादा

“मैं हूँ इसका आशिक . मैंने ही इसे वहां जाने को कहा था जहाँ से आप इसे लाये है ” मैंने पिताजी के सामने सफ़ेद झूठ बोला

“कहदे की ये झूठ है देवा ” पिताजी ने अपनी लाठी उठा ली

मैं- सच को सुनने की क्षमता रखिये

अगले ही पल पिताजी की लाठी मेरे बदन पर आ पड़ी .
Bahut jabardast update bhai jaisa socha tha waisa hi hua Pista mili bhi toh Chaudhary use chhodenge nahi aur hero aur uski maa dono ko bachaane ki koshish kar rahi hai fir bhi baat bigadti ja rahi hai ab dekhte hai ek baap apne hi bete ki kitni buri haalat karta hai
 

Abhishek Kumar98

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#28

“मैं ही हूँ वो ” मैंने कहा और पिताजी के सब्र का बाँध टूट गया.

“देवा को कोड़े मारे जाये ” पिताजी ने आदेश दिया

“ये क्या कह रहे है चौधरी जी , हमारा बेटा है वो ” माँ ने बीच में आते हुए कहा.

पिताजी- न्याय सबके लिए है , अगर आज इसे सजा नहीं दी तो समाज को क्या ही सन्देश जायेगा.

पिस्ता- देवा झूठ बोल रहा है चौधरी साहब,

पिताजी- बेशर्मी में भी कितनी तड़प होती है आज मालूम हुआ हमें. इस लड़की को यही रहने दो, ये भी देखेगी की लोक लाज को डुबोने की क्या सजा होती है .

कोड़े के पहले वार ने ही मेरी टीशर्ट को तार तार कर दिया था और अगले वार ने मुझे वास्तिवकता का अहसास करवा दिया.दर्द बहुत था पर मैं चीखा नहीं . सत सत की आवाज चौपाल में गूंजती रही .

“बस कीजिये चौधरी जी बस कीजिये मर जायेगा वो ”माँ ने अपना आँचल फैला दिया अपने ही पति के सामने

“पंचायत बर्खास्त की जाती है ” पिताजी ने कहा और तमाशा ख़त्म हो गया. माँ दौड़ कर आई और मुझे अपने आगोश में ले लिया . माँ के आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.

“चौधराइन, घर चलो अभी .इस ना लायक के लिए आंसू बहाने की जरुरत नहीं ” पिताजी ने कहा और माँ को ना चाहते हुए भी उनके साथ जाना पड़ा.

“क्यों, देव, क्यों. क्यों तुमने मेरी मुसीबत अपने सर ली ” पिस्ता ने रोते हुए कहा .

“दोस्त है मेरी तू, तुझ पर कोई मुसीबत आये और मैं पीछे हट जाऊ काहे की दोस्ती हुई फिर ” मैंने पेड़ का सहारा लेते हुए कहा .

पिस्ता- दोस्ती का ये मतलब नहीं

मैं- थोडा पानी पिला दे यार.

पास के नलके से पानी भर लाइ वो.दो घूँट अन्दर जाते ही खांसी सी उठ आई.

“आराम से , ” उसने कहा

मैं- तू आ गयी आराम भी आ ही जायेगा.

पिस्ता- कमीना है तू पूरा

हम दोनों वहीँ चौपाल पर बैठे रहे , कहने को कुछ नहीं था . सन सन करती हवा पिस्ता के बालो को चूम कर जा रही थी . मौसम कुछ ठंडा सा पड़ गया था .

“क्या देख रहा है इस तरह से ” पिस्ता बोली

मैं- सोहनी बहुत लग रही है तू

पिस्ता- किसी और वक्त ये कहता तो मानती मैं

मैं- मैं तो बस कह देता हूँ , मान या न मान तेरी मर्जी .

पिस्ता ने मेरे गले में झप्पी डाली और अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. उस रात चौपाल में उस चुम्बन को किसी ने देखा या नहीं देखा पर दो दिलो ने धडकनों में उठते चाहत के तूफ़ान को इस शिद्दत से महसूस किया की हम अपने दर्द को भूल गए.

“कब तक चुप रहेगा कुछ तो बोल ” ख़ामोशी को तोडा उसने

मैं- ना जाने कल का दिन कैसा होगा

पिस्ता- मुश्किलों भरा होगा तेरे लिए भी मेरे लिए भी आज जो तमाशा हुआ होना नहीं चाहिए था . तुझे तेरे बापू से पंगा नहीं करना था
.
मैं- तू क्यों फ़िक्र करती है , बहुत दिनों से ये गुबार भरा था मेरे अन्दर, तंग था मैं बाप के रोज रोज के कलेश से आज मन में भरी नफरत निकाल दी मैंने. तू नहीं जानती पिस्ता, उस घर में रहना कितना मुश्किल है जहाँ आदमी को आदमी नहीं समझा जाता ,

पिस्ता- फिर भी तुझे इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए था .

मैं- चुप हो जा वर्ना पिटेगी मुझसे. जरा सहारा दे, कब तक यहाँ बैठे रहेंगे चलते है .वैसे भी दर्द बहुत हो रहा है मुझे . मरहम पट्टी करवानी पड़ेगी. साला, कोड़े की मार तो बहुत ही भयंकर पड़ती है
.
पिस्ता- एक दिन आयेगा , इसका बदला लिया जाएगा बेशक चौधरी साहब का आदमी है राजू पर एक दिन आएगा जब उसे इन कोड़ो का ब्याज समेत हिसाब लिया जायेगा. आज की रात कभी नहीं भूली जाएगी.


मैं- शांत हो जा मेरी झांसी की रानी. चल वैध के घर ले चल मुझे.

मरहम पट्टी करवाते टाइम गांड ऐसी फटी की पूछो ही मत . वैध ने न जाने कैसा लेप लगाया की लगा पूरी पीठ जैसे जल ही गयी हो. कस कर पट्टी बाँधी वैध ने कुछ गोली दी और हम वहां से आ गये.

“तेरा घर आ गया जा अन्दर ” मैंने कहा

पिस्ता- नहीं

मैं- जा न

पिस्ता- माँ नाराज है

मैं उसे लेकर अन्दर गया . काकी जागी हुई थी .

“क्यों आये हो तुम यहाँ , इतनी बदनामी करवा के बी चैन नहीं आया क्या तुम लोगो को ” काकी गुस्से से बोली

मैं- शांत हो जा काकी, मेरा तेरी लड़की से कोई भी ऐसा वैसा नाता नहीं जिसकी वजह से इसे या तुझे शर्मिंदगी हो. पंचायत में मैंने सिर्फ इसे बचाने के लिए वो सब कहा था .

काकी- झूठ बोलते हो तुम

मैं- मेरा नहीं कमसे कम अपनी बेटी का तो विश्वास रख . मैं नहीं जानता की वो घर से क्यों भागी थी पर इतना जरुर है की वो तेरा मान बहुत करती है . तेरी अमानत तुझे लौटा कर जा रहा हूँ .

एक नजर पिस्ता को देखा और फिर मैं वहां से निकल गया . घर जाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी मैं सोचने लगा की कहाँ जाऊ, देखा नाज का दरवाजा खुला था मैं अन्दर गया और सोफे पर जाकर सो गया.


अगले दिन आँख खुली तो खुद को चौबारे में ना पाकर अजीब सा लगा कुछ देर लगी मुझे समझने में की मैं हु कहाँ पर . रात की बात याद आई तो सर का दर्द और बढ़ गया .

“उठ गए देव ” नाज ने मेरी तरफ आते हुए कहा. मैंने उसे देखा. आज उसने थोडा मेकअप किया हुआ था होंठो पर गुलाबी लिपस्टिक,गालो पर लाली . नाज थी तो गदराई औरत . ठोड़ी देर के लिए मैं ब्लाउज से झांकती चुचियो की गहराई में खो ही तो गया था .

“चाय मिलेगी क्या मासी ” मैंने कहा तो वो उठ कर रसोई में जाने लगी. मेरी नजर उसकी गांड पर पड़ी जो ज्यादा ही लचक रही थी .

“कुछ खाने का लोगे क्या ” नाज ने रसोई से ही आवाज दी तो मैं उठ कर रसोई में चला गया.

“जो भी दोगी ले लूँगा ” मैंने कहा तो उसने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- कल रात तगड़ा तमाशा किया तुमने उस लड़की के लिए इतना बवाल काटने की क्या ही जरुरत थी और मालूम नहीं था की इतने बड़े छुपे रुस्तम निकलोगे तुम

अब उस चुतिया की बच्ची से क्या कहते की क्या रिश्ता है मेरा और पिस्ता का तो बात को घुमा दिया

“मैंने भी नहीं सोचा था तुम भी छुपी रुस्तम निकलोगी ” मैंने चाय का कप पकड़ते हुए कहा .

नाज-तूने सब कुछ देखा न पेड़ के निचे

मैं- हाँ

नाज- तेरे पास मौका था फायदा उठाने का

मैं- फायदा क्यों उठाना , तुम मेरी ही तो हो. बदन में दर्द होने के बावजूद मैंने नाज की कमर में हाथ डाला और उसे अपने से चिपका लिया वो मेरे इतने पास थी की उसकी सांसो की महक को मैं महसूस कर पा रहा था .

“देवा” धीरे से बोली वो और अगले ही पल मैंने अपने होंठ नाज के होंठो से जोड़ दिए................
Chalo abhi ke liye toh hero ne kode khakar baat sambhal li kuch had tak aur Pista ki maa ko bhi bata diya ki wo jhut bol Raha tha aur Naaj se bhi najdikiyan badh rahi hai
 

Ajju Landwalia

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#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................

Bahut hi umda update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Pista ki maa ke kandhe par banduk rakh kar chaudhary sahab panchayat ka election jitna chahte he...............

Ye kursi ki hawas bhi badi hi kutti cheej hoti he.........apne matlab ke liye kya kya nahi karwati............

Naaz ka koi na koi aisa raaj jarur he, jo vo dev se chhupa rahi he.............(shayad vo chaudhary yani dev ke pita ki rakhail ho) khair der saber uska bhi pata chal jayega

Jungle ke us kamre ka bhi abhi tak kuch nahi pata chala...............aakhirkar kiska he vo kamra???

Keep rocking Bro
 

Abhishek Kumar98

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#29

नाज के होंठ चुमते हुए मैं अपने हाथ को उसकी कमर से होते हुए उसके नितम्बो पर ले गया और कस कर उन ठोस मांस के गोलों को दबाया . बदन में उठी उत्तेजना की लहर इतनी ज्यादा थी की नाज ने अपनी चूत पर मेरे लंड की कठोरता को महसूस किया पर अगले ही पल वो मुझसे अलग हो गयी और बोली- औरत को जोर से हासिल नहीं किया जाता उसके मन को जीता जाता है देवा.

मैं- तुमने ही कहा था न कोई औरत ढूंढ लो मैंने तलाश ली

नाज- मुझे लगता है ये सब तुम्हे पिस्ता के साथ करना चाहिए

मैं- वो बस मेरी दोस्त है पर तुम्हारे साथ मैं इस रिश्ते को और आगे ले जाना चाहता हूँ

नाज- बड़ा मुश्किल सफ़र रहेगा फिर तो तुम्हारा , मैं किसी और की अमानत हूँ

मैं- अमानत में खयानत तो पेड़ के निचे हो ही रही थी

नाज- उस रात तुमने कहा था मासी तुम समझ नहीं पाओगी मैं समझा नहीं पाउँगा, आज मैं कहती हूँ तुम समझ नहीं पाओगे मैं समझा नहीं पाउंगी पर मैं परख जरुर लुंगी तुम्हारी मुझे लगेगा की तुम तैयार हो तो मैं तुम्हारी मनचाही जरुर करुँगी .

मैं - ये भी ठीक है मासी

नाज- तुम्हारा अहसान है की तुमने जबरदस्ती नहीं की , वर्ना इतना होने के बाद कोई भी मौका नहीं छोड़ता है

मैं- मौका क्या तलाशना जब तुम हो ही मेरी .

वो मुस्कुरा पड़ी मैंने उसे गले से लगा लिया. शरारत करते हुए मैंने एक बार फिर से उसकी गांड को मसल दिया , इस बार उसने पूरी आजादी दी मुझे और हम बैठक में आ गए.


“चौधरी साहब बड़े नाराज है तुमसे ” नाज ने कहा

मैं- किसे परवाह है

नाज- पिता है वो तुम्हारे

मैं- मैंने कहा न किसे परवाह है मुझे अपनी जिन्दगी जिनी है मैने सोच लिया कैसे जीनी है

नाज- और कैसे जी जाएगी ये जिन्दगी, एक बात बता दू तुम्हे , तुम जानते ही नहीं जिन्दगी क्या होती है कैसी होती है . चौधरी साहब के वजूद के बिना तुम इस काबिल भी नहीं की एक समय की रोटी खा सको . तुम्हे बुरा जरुर लगेगा पर कडवी हकीकत समझने की कोशिश करना

मैं- बात वो नहीं है मासी,मैं तंग आ गया हूँ उनके नियम कायदों से . ये मत करो वो मत करो आन बाण सान के आगे मेरी इंसानियत शर्मिंदा हो जाती है
.
मासी- आज मेरी कही बात को नहीं समझोगे तुम पर एक दिन आएगा जब तुम जान जाओगे ये दुनिया वैसी तो बिलकुल नहीं है जैसा तुमने सोचा है .

मैं- देखी जाएगी, और पिताजी भला कितना नाराज रहेंगे दो चार दिन में गुस्सा ठंडा हो ही जायेगा न फिलहाल मुझे जाना होगा और हाँ कुछ दिन मैं घर नहीं जाने वाला यही रहूँगा

नाज- तुम्हारा ही घर है पर मेरी सलाह मानो तो पिस्ता से दूर रहना कुछ दिन गाँव में तनाव है और बढ़ जायेगा.

मैं- उसी से मिलने जा रहा हूँ

“ये लड़का भी ना ” नाज ने मुस्कुराते हुए अपने माथे पर हाथ मारा और मैं बाहर गली में आ गया. पिस्ता के घर गया तो वो नहीं थी वहां पर . मैं जंगल की तरफ निकल गया . कुछ नहीं सूझा तो मैं जोगन की तरफ चला गया बेशक वो नहीं थी पर फिर भी क्यों मुझे तलब थी . मैंने दरवाजा खोला उसकी झोपडी का और बिस्तर पर औंधा पसर गया. आँख खुली तो शाम ढल रही थी , बदन में दर्द पसरा हुआ था हाथ मुह धोकर मैंने दिया जलाया और ठोड़ी देर वहीँ बैठ गया. दिल में ख्याल आया की उसी काले पत्थरों वाले घर में चला जाये पर फिर नहीं गया. वहां से चुराए पैसे अभी तक खर्च भी तो नहीं किये थे . वापसी में मुझे खेतो की तरफ पिस्ता बैठी मिल गयी.

मैं- सब कही देख आया और तू यहाँ बैठी है

पिस्ता- मन नहीं लग रहा था तो आ गयी इस तरफ

मैं-मन तो मेरा भी नहीं लग रहा था तेरे बिना

पिस्ता- लाइन मारना बंद कर

मैं- फिर बोल जरा

पिस्ता- तू कभी सीरियस होगा के नहीं

मैं- अच्छा ठीक है . क्यों परेशां है

पिस्ता- सबको लगता है की मैंने दी है तुझे

मैं- क्या दी है

पिस्ता- समझता नहीं क्या

मैं- समझा फिर

पिस्ता-चूतिये, सबको लगता है की मैंने चूत दी है तुझे

चूत सुन कर मेरे कान खड़े हो गए .

मैं- पर तूने नहीं दी . कल तेरी माँ को समझाया तो था मैंने

पिस्ता- तुझे क्या जरुरत थी क्रांति का झंडा उठाने की , क्यों गाँव के सामने पुकार रहा था की तू आशिक है मेरा.

मैं- क्या हुआ फिर, नहीं हु तो हो जाऊंगा तू अगर चाहेगी तो .

पिस्ता- तू समझता नहीं क्यों देवा

मैं- भोसड़ी वाली मैं नहीं समझता , पगली दोस्त समझा है तुझे, और दोस्ती निभानी आती है , अगर वहां पर खड़ा ना होता तो तेरी मखमली पीठ उधेड़ देनी थी मेरे बाप ने. और फिर गलती तो तेरी हैं ही , क्यों भागी थी तू घर से बहन की लोडी . एक मिनट रुक कही सच में तेरा कोई आशिक तो नहीं

पिस्ता- कोई आशिक नहीं है मेरा और घर से भागी नहीं थी मैं ,

मैं- तो कहा गयी थी फिर तू

पिस्ता- अरे वो मैं हेरोइन बनना चाहती थी तो सोचा इस गाँव में अपना कुछ होना नहीं है निकल ले बम्बई पर तेरे बाप ने सपना तोड़ दिया, धर लिया रस्ते में ही .

मैं- कमीनी, कम से कम मुझे तो बता सकती थी न बड़ी आई माधुरी बनने वाली . जानती है तेरे बिना मेरा क्या हाल हुआ था . ऐसा कोई पल नहीं बीता जब मुझे तेरी फ़िक्र न हुई हो.

पिस्ता- गलती हु माफ़ी दे यार

मैं- माफ़ी तो दे दूंगा पर ये बता देगी कब, वैसे भी गाँव में बदनामी तो हो ही गयी है तो दे ही दे.

पिस्ता के गाल गुलाबी हो गए बोली- अच्छा जी, बड़ी हसरत हो रही है लेने की . ले भी लेगा कहीं ऐसा न हो की कच्छा उतरते ही सब गीला हो जाये तेरा

मैं- वो क्यों होगा भला

पिस्ता- तूने ली है कभी किसी की पहले

मैं- तूने दी है किसी को पहले

पिस्ता- तू बनेगा पहला मेरी लेने वाला.

मैं- वो ही तो बोल रहा हूँ देगी तो ले लूँगा.

पिस्ता- तूने देखी है कैसी होती है

मैं- तू दिखा दे

पिस्ता- सची में

मैं- और नहीं तो क्या .

“ठीक हो जा पहले कही जोश जोश में और दर्द न बढ़ जाए तेरा ” हस्ते हुए बोली वो

मैं भी मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम दोनों वहां बैठे बाते करते रहे और फिर गाँव में आ गये. पिस्ता खुद के घर चली गयी मैं नाज के घर आ गया. मुनीम जी बैठक में ही थे तो मैं उनके पास चला गया .

“कुछ मालूम हुआ की फक्ट्री में हमला किसने किया ” मैंने पुछा

मुनीम- नहीं, अभी कोई सुराग नहीं मिला पर जल्दी ही तलाश लेंगे हम

मैं- किसी पे शक

मुनीम- भाई जी, किसी की कोई मजाल नहीं जो चौधरी साहब की तरफ आँख उठा सके

मैं- पिताजी ऐसे काम करते ही क्यों है की ये सब हो साफ़ सुथरे धंधे क्यों नहीं करते हम

मुनीम- भाई जी, जब आप कारोबार संभालेंगे तो समझ जायेंगे

फ़िलहाल खाने का समय हो रहा है खाना खाते है फिर मुझे जाना है .

मैं- रात तो घर पर रहने की होती है न

मुनीम- कई काम रात को ही होते है


खाना खाने के बाद मुनीम चला गया रह गए मैं और मासी.
Chalo acha hai waqt aane par Naaj hero ko maje bhi karwa degi aur len den ki bhi baate ho gayi Pista se aur ab shayad Naaj kuch maje Kara de hero ko akele bhi hai
 
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