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Adultery जब तक है जान

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#38

की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
 
Last edited:

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
Waah kya baat hai foji bhai, sahandar update, per bhai itne din baad update diya hai to kuch bada update hi de dete😉 mann hi nahi bhara, Chaudhary kuch mann ki baat karna chahta tha per dev ne aage baat ki hi nahi, naaj bhi lagta hai dev ko degi hi, bas kab tak? Ye dekhna hai, or pista to chud hi gai samjho, per KLPD KAR DI TUMNE :?: Awesome update again and great writing efforts ✍️ :applause::applause::applause:
 

kas1709

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#38

की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
Nice update....
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#38

की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
Shandar super hot erotic lovely update 💓 💓 🔥 🔥 🔥
 

parkas

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की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
Bahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and lovely update....
 

dhparikh

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#38

की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
Nice update....
 

Napster

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#38

की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय और मस्ती भरा अपडेट है भाई मजा आ गया
देव के लंड को आज पिस्ता की मदमस्त चुद का पानी लग ही जायेगा
बहुत खुब
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

S M H R

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की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
Kya bhai phir se KLPD kR diya
 

Abhishek Kumar98

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#30

“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
Pata nahi ye Naaz kya kehna chahti thi aur aur Pista ke sath ab kheto me acha waqt bita kiya aur ab usne khud keh di ki wo Dev ko apni chut de bhi degi aur khub ache se dikha bhi degi but ab ye chillai kyu
 

Abhishek Kumar98

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#32

सामने जो देखा तो तमाम नजाकत की बातो पर हकीकत का ऐसा तमाचा पड़ा की लेने-देने की तमाम बताए झट से गायब हो गयी, जो चाँद खूबसूरत बड़ा लग रहा था उसी चाँद की रौशनी अब जैसे काटने को लगी थी, सामने पिताजी के उस आदमी राजू की लाश पड़ी थी जिसने मुझे कोड़े मारे थे .सच कहूँ तो मेरी गांड फट गयी थी वो नजारा देख कर , बड़ी बेदर्दी से मारा गया था उसे, उसकी पीठ की खाल उधेडी हुई थी .बदन पर जहाँ तहां चाक़ू के वार थे .

“नहीं होना था ये ” मैंने कहा

पिस्ता कांपती रही डर के मारे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और जितनी तेजी से दौड़ सकते थे दौड़ लिए .

“चाहे कुछ भी हो जाये पिस्ता, किसी को भी ये मालूम नहीं होना चाहिए की हम लोग इसकी लाश के पास थे वर्ना पंगा बहुत बड़ा हो जायेगा और देने के लिए कोई जवाब नहीं रहेगा.समझ रही है न मेरी बात ” मैंने उसे कहा

पिस्ता-पर मारा किसने

मैं- जिसने भी मारा अपना कोई लेना देना नहीं है चाहे कुछ भी हो. अपना दूर रहना है इस सब से

पिस्ता- पर अपन ने तो कुछ किया ही नहीं

मैं- चुतियो की सरदार,पंचायत में चीख चीख कर तू ही कह रही थी ना की राजू की खाल उतार लुंगी

पिस्ता- अरे वो तो मौके की नजाकत ......

मैं- माँ चुदा गयी नजाकत लोडे लगने वाले है , जैसे ही गाँव में मालूम होगा सब यही सोचेंगे की हो न हो बदले की कार्यवाही हुई है .

पिस्ता ने अपना माथा पीट लिया

“आगे से सोच समझ कर ही बोलूंगी मैं तो ” उसने कहा
मैं- पानी पी थोडा और सो जा , सुबह कोई भी पूछे तो यही कहना है की घर पे ही थी.

उसे समझा कर मैं आगे तो बढ़ गया पर मेरे पैर कांप रहे थे ,कोई तो था जो इस खेल में अपनी रोटी सेंक रहा था . पर क्या मकसद था उसका अपना था पराया था कौन था कौन जाने. पर जो भी था उसे जानने की कोशिश करनी बहुत जरुरी थी , बाप की फैक्ट्री पर हमला होना, उसके आदमियों पर मारामारी और अब ये हत्या . दिल तो किया की बाप की मुसीबते बाप को ही सुलझाने दी जाये पर फिर वो बात याद आई की वो खून खून ही क्या जिसमे उबाल ना हो.

आँख खुली तो मैंने खुद को चौपाल के चबूतरे पर सोये हुए पाया. हाथ मुह धोकर मैं सीधा अपने घर गया . पिताजी सोये हुए थे पर मैंने उन्हें उठाया

“कल रात राजू की हत्या कर दी किसी ने ” मैंने बताया उनको .

“मेरा आदमी था मैं देखूंगा इस मामले को , तेरा काम नहीं है इन सब में पड़ना आराम कर ” पिताजी ने कहा

मैं- कौन है वो दुश्मन

पिताजी ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोले- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं अभी मैं जिन्दा हु

पिताजी ने कुरता पहना और जीप लेकर बाहर चले गए.

“तो नवाब साहब घर लौट आये , मिट गयी अकड़ दो दिन में ही होश आ गए ठिकाने , इस घर बिना कोई नहीं तुम्हे पूछने वाला समझ आ गयी हो तो नाश्ता कर लो ” माँ ने मुझे देख कर कहा

मैं कुछ नहीं बोला . माँ ने मुझे खाने की थाली दी

“वैसे तो औलाद बड़ी हो जाये तो माँ का उसे कुछ कहना उचित नहीं और ये जानते हुए भी की तुझे माननी नहीं मेरी बात फिर भी कहती हु की उस छोरी से दूर रह. तेरे लिए भी ठीक रहेगी और इस घर के लिए भी ” माँ ने कहा

मैं- रोटी खा लेने दो न, उसका जिक्र कहा से आया अब
माँ- उसका जिक्र तो अब रोज ही होगा. हमारा लड़का जिसकी जुबान नहीं खुलती थी गाँव में आशिकी करते घूमेगा तो जिक्र होगा ही न, बाप दुनिया को सलीका सिखाते फिर रहा बेटा क्रांति का झंडा उठा लिया. बीच में माँ आ गयी . आदमी की न सुने तो परेशानी औलाद का पक्ष न ले तो आदमी के ताने सुने .

मैं- माँ , अपनी औलाद पर तुझे भरोसा नहीं क्या, तेरी परवरिश हूँ मैं , तू ही बता तेरी परवरिश क्या इतनी कमजोर है जो कुछ भी गलत करेगी.

माँ- इसीलिए तो कहती हूँ उस छोरी का साथ छोड़ दे .

परवरिश तो कमजोर ही रही की मालूम ही न हुआ कब तू उसके चक्कर में आ गया.

मैं- माँ, मेरा उस से कुछ भी ऐसा वैसा रिश्ता नहीं है जिससे की कोई भी शर्मिंदा हो , पिस्ता बस दोस्त है मेरी .

माँ- गाँव में ऐसी दोस्ती नहीं होती , ऐसी दोस्ती को बस बदनामी मिलती है .

मैं- तो बदनामी ही सही माँ .

माँ- तरस आता है मुझे

मैं- तरस ही सही

माँ- तुझ पर नहीं अपने आप पर तरस आता है मुझे, आज तू मेरी बात नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब तुझे ये दिन जरुर याद आएगा की तेरी माँ को कितनी परवाह थी तेरी, खैर तेरी अगर यही इच्छा है तो मैं आज के बाद तुझे कभी नहीं टोकुंगी पर तू इतना जरुर करना की हमेशा आँखों से आँखे मिला सके.


मेरे पास कहने को कुछ नहीं था , घर से निकल गया और जंगल में पहुँच गया . आजकल घर से जायदा घर तो ये जंगल लगने लगा था . भटकते भटकते मैं जोगन की झोपडी तक पहुँच गया मालूम हुआ की वो लौट आई है.

“कब आई तुम ” मैंने उस से कहा

जोगन- बसकुछ देर पहले ही ,आजा अन्दर बैठते है

मेरे अन्दर आते ही उसने झोले से कुछ मिठाई निकाली और मुझे दी.

मैं- ये बढ़िया किया , भूख भी लगी है

वो- खाले, तेरे लिए ही है ये सब

मैं- तू भी खाले,

जोगन- मुझे भूख नहीं थोड़ी थकान है आराम करुँगी
उसने चादर ओढ़ी और बिस्तर में घुस गयी मैं मिठाई का आनंद लेता रहा. बाहर देखा रुत मस्ताने को बेताब भी मैंने भी एक गुदड़ी निचे बिछाई और आँखों को मूँद लिया. जागा तो बदन में बहुत दर्द हो रहा था . चीस मार रही थी , बाहर अँधेरा हुआ पड़ा था मतलब की बहुत सोया था मैं .बाहर आकर देखा जोगन चूल्हे पर रोटी सेक रही थी .

मैं- उठाया क्यों नहीं मुझे

वो- गहरी नींद में थे तुम

मैं- फिर भी, कितनी रात हुई मुझे चले जाना था
जोगन- रात का क्या गिनना, कितनी गयी कितनी बाकी . खाना खाकर ही जाना अब तेरे हिस्से की रोटी भी बना ली है .

जलते चूल्हे के पास बैठ कर मैंने खाना खाया , जोगन के हाथ में कोई तो बात थी . एक रोटी फ़ालतू खा ली मैंने.

“कुछ परेशान सा लगता है ” उसने कहा

मैं- पीठ में दर्द हो रहा है

वो- देखू जरा

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- पूरी शर्ट खून से भीगी हुई है तेरी तो क्या हुआ है ये

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- किसने किया ये

मैं- जाने दे, कहानी ऐसी है की तू सुन नहीं पायेगी और मैं बता नहीं पाऊंगा.

“फिर भी गलत किया चाहे जो भी कारन रहा हो.तू रुक मैं आभी आती हु ” उसने कहा और जंगल की तरफ दौड़ पड़ी .
मैं आवाज देता रह गया. कुछ देर बाद वो हाथ में कुछ जड़ी लेकर आई

“इसके लेप से तुझे आराम मिलेगा ” उसने लेप मेरी पीठ पर लगाया . राहत सी मिली

जोगन- शहर में किसी बड़े डाक्टर को दिखा ले इसे, जख्म जल्दी ठीक नहीं होने वाले.

मैं- वैध से पट्ठी करवाई थी

जोगन- कहा न शहर जा

मैं- नाराज क्यों होती है , चला जाऊँगा. वैसे तू बता इतने दिन कहाँ गयी थी

जोगन- बताया तो था कुछ काम से बाहर थी

मैं- वही तो पूछ रहा हु बाहर कहा

जोगन- अगली बार जाउंगी तो तुझे साथ ले जाउंगी . चलेगा न

मैं- अरे ये भी कोई कहने की बात है

वो मुस्कुरा दी . मैं वहां से चल दिया. गुनगुनाते हुए मैं मस्ती में अपने रस्ते बढे जा रहा था .हालाँकि मुझे अँधेरे में थोडा डर भी लग रहा था पर मैं गाँव में पहुँच ही गया , आँगन में जीप खड़ी थी मतलब पिताजी घर पर ही थे , दबे पाँव मैं चोबारे के दरवाजे पर पहुंचा और जैसे ही मैंने दरवाजे को खोला..............................
Hero ki maa bhi hero ki bahut parwa karti ha but es Raju ko kisne maar diya aur Jogan se bhi milna ho gaya aur aaram bhi kar liya hero ne ab dekhte hai ghar me kya hota hai
 
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