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Adultery जब तक है जान

R_Raj

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#21

भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .........
मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की ये बारिश मुझे कैसे भिगोएगी, सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी जंगल में मोर को नाचते तो दुनिया ने देखा था पर मैंने उसे देखा, उसे देखा और देखता ही रह गया. बारिश की बूंदों संग खेलती वो ,फुल पत्तियों संग डोलती वो . उगता सूरज भी देखा था ,दोपहर को तपता सूरज भी देखा था पर बारिश में उगता चाँद मैंने पहली बार देखा था, वो सांवली सूरत ,उसके गुनगुनाते होंठ जैसे बंसी की कोई तान . मेरी जगह को कवी, शायर होता तो उसकी पहली तमन्ना यही होती की वक्त का पन्ना वही उस छोटे से लम्हे में रुक जाए.
तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी और उसके हाथ थम गए. उसने अपना नाच रोका और मुझे देखने लगी.


“माफ़ी चाहूँगा , मेरा इरादा बिलकुल भी नहीं था आपका ध्यान भटकाने का ” मैंने कहा

“हम्म ” उसने मेरे पास आते हुए कहा

केसरिया लहंगा चोली में वो सांवली सूरत , उसकी आभा में कोई तो बात थी . कुछ देर वो बस मुझे देखती रही और फिर वो जाने लगी .

“बारिश बहुत तेज है ,क्या मैं आपकी मदद करू, मेरा मतलब है इस समय आप अकेली है आपको घर तक छोड़ दू ” मालूम नहीं क्यों मैंने उसे ये बात कह दी

“घर , हाँ घर तो जाना ही है बस देखना है की देर कितनी लगेगी ” उसने कहा

मैं- कुछ समझा नहीं

वो- मेरा घर पास में ही है , वैसे तुम क्यों भटक रहे हो

मैं- सच कहूँ, घर जाने का मन नहीं था

“एक हम है जो घर को तरसते है एक ये है जो घर को घर नहीं समझते ” उसने कहा

मैं- समझा नहीं

तभी बादलो से बिजली लड़ पड़ी, इतनी जोर की आवाज थी की एक पल के लिए लगा की सूरज ही उग आया हो , शोर से जैसे कानो के परदे फट ही गए हो बिजली पास में ही गिरी थी वो दौड़ पड़ी उसके पीछे मैं भागा. खंडहर की मीनार को ध्वस्त कर दिया था बिजली ने पत्थरों के आँगन में मीनार के टुकड़े बिखरे हुए थे .

“नुक्सान बहुत हुआ है ” मैंने कहा

“खंडहर नहीं है ये मंदिर था किसी ज़माने में, और ज़माने ने ही भुला दिया इसे. ” उसने कहा और जाकर उस जगह बैठ गयी जहाँ पर माता की मूर्ति थी मैं भी बैठ गया .


“क्या कहानी है इस जगह की ” मैंने सवाल किया

“समय से पूछना क्यों भुला दिया गया ” उसने जवाब दिया

मैं- तुम्हारी आधी बाते तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है

“इतनी भी मुश्किल नहीं मैं ” वो बोली

मैं- आसान भी तो नहीं

वो- तुम्हे लौट जाना चाहिए अब

मैं- तुम नहीं जाओगी

वो- मेरा घर यही है , तालाब के पीछे घर है मेरा

मैं- ठीक है तुम्हे छोड़ते हुए मैं भी निकल जाऊँगा

उसने काँधे उचकाए और सीढियों से उतरते हुए हम उस जगह जा पहुंचे जहाँ एक झोपडी थी

मैं- यहाँ रहती हो तुम

वो- हाँ

मैं- बस्ती से इतनी दूर तुम्हे परेशानी नहीं होती

वो- बस्ती में जायदा परेशानी होगी मुझे

“ठीक है , मिलते है फिर ” मैंने कहा कायदे से मुझे आगे बढ़ जाना चाहिए था पर मेरे पैर जाना नहीं चाहते थे वहां से

वो- क्या हुआ

मैं- बारिश की वजह से ठण्ड सी लग रही है चाय मिल सकती है क्या एक कप

वो- दस्तूर तो यही है की इस मौसम में कुछ चुसकिया ली जाये पर अफ़सोस आज मेरे घर चाय नहीं मिल पायेगी मैंने कुछ दिन पहले ही बकरी बेचीं है

मैं- कोई बात नहीं फिर तो

“मुझे लगता है की तुम्हे अब जाना चाहिए ” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा और मैं गाँव की तरफ चल दिया .पुरे रस्ते मैं बस उसके बारे में ही सोचता रहा .

चोबारे में गया तो पाया की बुआ कुछ परेशान सी थी

मैं- क्या हुआ बुआ कुछ परेशान सी लगती हो

बुआ के चेहरे पर अस्मंस्ज्स के भाव थे हो न हो वो उसी किताब की वजह से परेशान थी , अब सीधे सीधे तो मुझ से पूछ सकती नहीं थी

बुआ- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं

मैंने रेडियो चला दिया, बारिश के मौसम में बड़ा साफ़ पकड़ता था . हलकी आवाज में गाने सुनते हुए मैंने वो शाम काटी, कभी कभी मेरी और बुआ की निगाहें मिल जाती थी , जिन्दगी में मैंने पहली बार बुआ को गौर से देखा, पांच फूट लम्बी , गोरी, भारी छातिया और पीछे को उभरे हुए कुल्हे, मेरे दिमाग में हलचल सी मचने लगी, शयद उस किताब में पढ़ी कहानियो का असर था ये .



रात घिर आई थी , चूँकि बारिश अभि भी हो रही थी तो हलकी सी ठण्ड थी मैंने चादर ओढ़ ली, बुआ मेरे पास ही लेटी ही थी रात न जाने कितनी बीती कितनी बची थी पर मैं जाग रहा था .बुआ ने अपना मुह मेरी तरफ किया और अपने पैर को मेरे पैर पर चढ़ा लिया बुआ की गरम साँसे मैंने अपने गालो पर महसूस की . कुछ देर बाद बुआ ने अपने होंठ मेरे गालो रख दिए और हलके से पप्पी ली. मेरा तो बदन ही सुन्न हो गया था . बुआ का बदन धीरे धीरे हिलने लगा था पर क्यों हिल रहा था मैं ये समझ नहीं आ रहा था .

बुआ थोड़ी सी मेरी तरफ सरकी और हलके से बुआ ने मेरे होंठो से खुद के होंठ जोड़ दिए, जीवन का पहला चुम्बन मेरी बुआ ले रही थी \मैं चाह कर भी अपने लिंग में भरती उत्तेजना को रोक नहीं सका , चूँकि बुआ की जांघ मेरे ऊपर थी तो शायद उन्होंने भी मेरे लिंग का तनाव महसूस किया होगा . फिर बुआ सीढ़ी होकर लेट गयी , कुछ देर जरा भी हरकत नहीं हुई और फिर अचानक से बुआ ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया . बेशक कमरे में अँधेरा था पर मैं शर्म से मरा जा रहा था मेरी बुआ अपने ही भतीजे के साथ ये अब कर रही थी . बुआ पेंट के ऊपर से मेरे लिंग को सहला रही थी और मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ की ठीक उसी समय बुआ का हाथ अपनी सलवार में था . फिर बुआ ने हाथ लिंग से हटाया और मेरे हाथ को उसकी चुचियो पर रख दिया बुआ सोच रही थी की मैं गहरी नींद में हु पर मैं जागा हुआ था , मैं सोचने लगा की ऐसा बुआ ने क्या पहले भी मेरे साथ ही किया होगा
Itne Din Bhatakne Ke Bad Mai Aur Kahani, Dono Jogan Se Mil Hi Liye

Fauji Bhai Ki,
Wahi Lekhani, Wahi Andaz, Wahi Suspense, Wahi pyar,
Wahi Jazbaat, Wahi Khayal, Wahi Dard Ka Izhaar,
Wahi Shayari, Wahi Likha, Wahi Uski Muskurahat,
Wahi Mehfil, Wahi Baat, Wahi Dil Ki Raahat.
Wahi Love Triangle, Wahi Kumar Sanu Ka Gana,

Dil Mein Gungunaahat, Jise Sunke Ho Yaaye Diwana.
 

R_Raj

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#52

एक एक पल बड़ी बेचैनी संग गुजर रहा था, जब पूरी तरह से लगा की मासी सो चुकी है तो मैंने तलाशी अभियान शुरू किया. मुनीम की तिजोरी पर कोई भी ताला नहीं लगा था, ये हैरान करने वाली बात थी . अन्दर कुछ गड्डी रखी थी, कुछ आभूषण थे पर जो मुझे चाहिए था वैसा कुछ नहीं था. और सवाल भी यही था की अगर यहाँ नहीं तो फिर कहाँ. तसल्ली के लिए मैंने छानबीन कर तो ली थी पर मुझे कुछ नहीं मिला. थक कर मैं कुर्सी पर बैठ गया और सोती हुई नाज को देखने लगा. सच में बहुँत ही खूबसूरत थी वो . पर मेरी आँखों में नींद नहीं थी बिलकुल भी नहीं थी. नजर नाज की ऊपर निचे होती छाती पर जमी हुई थी पिछले कुछ समय में नाज के साथ जो भी सुख मैंने लिया था, चुदाई के जो भी लम्हे जिए थे उन्हें भुलाना कठिन था.



पर बात फिर भी यही थी की वो कागज जो जोगन ने मुझे दिया वो गया तो कहा गया . कोई भी आदमी अपनी कीमती चीज कहाँ रखता है मुनीम की तिजोरी में मेरे मतलब का कुछ भी नहीं था . ओह तेरी, मुझे मेरी भूल का अंदाजा हुआ मेरी तो तलाश ही गलत थी मुनीम नहीं नाज , नाज अपनी सबसे कीमती चीज कहाँ रखेगी , कहाँ छुपा सकती थी ये क्यों नहीं सोच रहा था मैं . यहाँ मन की उलझन और बढ़ने वाली थी क्योंकि कागज उस छिपे हुए घर में नहीं था तो फिर एक ही जगह बचती थी जो इन सबको जोडती थी और वो था मंदिर. मैंने उसी पल मंदिर में जाने का निर्णय लिया . कशमश थी की नाज को अकेला छोड़ कर जाऊ या नहीं. कही उस पर फिर से हमला हो गया तो ? वैसे तो भोर होने में देर ही कितनी थी फिर पिस्ता ने वादा तो क्या था की दिन में वो मेरे साथ होगी मंदिर में . पर दिल बहन के लंड को चैन नहीं था . तो मैंने अपने कदम घर से बहार निकाल ही लिए.

बढती ठण्ड में कदमो से कदम मिलाते हुए जल्दी ही मैं अपनी सांसो को दुरुस्त करते हुए उस खंडहर के सामने खड़ा था जिसने मेरे दिल में सवालो का धुआ उठा रखा था,

“क्या कहानी है तुम्हारी, क्या छिपाया हुआ है तुमने अपने अन्दर ” एक बार फिर मेरी सांसो ने उन खामोश दीवारों से सवाल किया और अपने कदमो को सीढियों से होते हुए ऊपर की तरफ बढ़ा दिया. इस मंदिर की सबसे अजीब बात इसकी ख़ामोशी नहीं थी बल्कि वो शोर था जिसे बस कोई सुनने वाला चाहिए था. और इस रात , मैं अतीत के उस शोर को इतनी शिद्दत से सुनना चाहता था की मेरे आज की फिर कोई परवाह, कोई फ़िक्र ही न रहे. लाला किसी भी कीमत पर इस खंडहर को चाहता था और मेरे पिता इस से अपनी सरपरस्ती कभी छोड़ना नहीं चाहते थे. कोई पहरा नहीं न कोई सुरक्षा कोई भी हां कोई भी कभी भी यहाँ किसी भी वक्त आ जा सकता था तो फिर क्या था यहाँ पर जो होकर भी नहीं था और अगर था तो क्यों था . सोचते हुए मैं हर एक दिवार को महसूस करते हुए इधर उधर घूम रहा था . आसमान में चाँद बादलो से आँख मिचौली खेलने लगा था , बारिश कभी भी हो सकती थी . एक बार दो बार तीन बार मैं जितना देख सकता था तलाश कर सकता था मैने किया पर ये खंडहर जैसे कोई खेल खेल रहा था मुझसे , ये खामोश दीवारे जैसे हंस रही थी मुझ पर .

शायद इसकी ये ख़ामोशी ही वो खासियत थी जिसने मेरे जैसे कितने लोगो की दिलचस्पी का मजाक बनाया हुआ था

“सबसे ज्यादा धोखा इन्सान को कोई देता है तो उसकी आँखे ” अचानक से ही मेरे मन में ये बात आई और मैंने सोचा की ये खंडहर एक धोखा ही तो था . धोखा , हाँ क्योंकि अक्सर वो राज ,राज ही रह जाते है जो आँखों के सामने होते है इस मंदिर की सबसे ख़ास बात थी खंडित मूर्ति , मुझे यहाँ पर जोगन मिली वो भी इस मूर्ति को घूरते हुए , मेरे पिता मिले वो भी इसी मूर्ति को घूरते हुए . मैंने अपना माथा मूर्ति के चरणों में लगाया और गहनता से जांच करने लगा , बारिश अब जोर पकड़ने लगी थी आसमान बिजलियों से भरने लगा था . ऐसा कर्कश शोर , ऐसी चमक की लगे दिन ही निकल आया हो . पर जैसा की शाहरुख़ खान साहब ने कहा था की किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो कायनात आपको उस से मिलाने में लग जाती है . आज की रात ये कायनात शायद मेरे लिए ही थी गरजती बिजली की रौशनी में मेरी नजर मूर्ति के दांतों पर पड़ी और मैं समझ गया. मूर्ति का एक दांत अलग सा और जैसे ही मैंने उसे छुआ, हल्का सा दबाव दिया खट की सी आवाज हुई करीब तीन फूट के आसपास फर्श निचे को धंसा और पत्थरों की बनी सीढिया निचे को जाती हुई दिखने लगी. अगर कोई उस समय मेरे होंठो पर आई मुस्कराहट को देख पाता तो समझता की बेंतेहा ख़ुशी किसे कहते है .



जैसे जैसे मैं सीढिया उतर रहा था अँधेरा कम होते जा रहा था और जल्दी ही मैं मंदिर के निचे बने उस कमरे में था जहाँ पर रौशनी थी , चिमनिया जल रही थी और मेरे सामने ठीक सामने नाज मोजूद थी .



“हैरान हो मुझे देख कर ” नाज बोली



मैं- तुम्हे तो सोती हुई छोड़ आया था मैं



नाज- हम जैसो के नसीब में चैन कहा वो भी इन हालातो में जब तुम मान ही नहीं रहे हो

नाज चलते हुए उस बड़े अलाब के पास गयी और अपने ब्लाउज से वो ही कागज निकाल लिया जो मुझे जोगन ने दिया था .

मैं- तुम्हे ये नहीं चुराना चाहिए था .

नाज- क्या करे बरखुरदार . हमारी जिन्दगी में जो भी थोडा सकून था वो तुम ख़तम करने को आमादा हो करे तो क्या करे. तुमसे कुछ कह नहीं सकती , तुम्हे कुछ बता नहीं सकती . इधर कुआ तो उधर खाई जायेया तो कहा जाये मैं और मेरा मासूम दिल .

मैं- अक्सर दिल के बोझ क किसी को बताने से बोझ हल्का हो जाता है

नाज- उफ़ ये किताबी बाते

मैं- फिलहाल तो मुझे वो कागज चाहिए



नाज ने मेरी तरफ देखा और बड़ी ही मासूमियत से वो कागज आग के हवाले कर दिया.

“किसी और की ये हरकत होती तो मासी मैं इसी आग में जला देता उसे “मैंने गुस्से से कहा

”किसी और ने यहाँ आने की गुस्ताखी की होती तो मैं भी उसे अब तक इस आग में जला चुकी होती “ पहली बार मैंने नाज के एक नए रूप को देखा

“क्या लिखा था उसमे ” मैंने गुस्से से पुछा

नाज- बिखरता हुआ घर लिखा था उस कागज में

मैं- तुम्हे क्या लगता है की इस कागज जो जलाने से तुम मुझे रोक पाओगी . जिसने कागज दिया मैं उस से ही पूछ लूँगा.

नाज- बेशक हक़ है तुम्हे .पर मैं अपने बेटे को फिर से उसकी भलाई के लिए ही सलाह दूंगी की दूर रहो .

इधर उधर चलते हुए मैं बस उस कमरे को ही देख रहा था और नाज शायद नहीं चाहती थी . सामने की दीवार पर कुछ तस्वीरे थी जिन्हें धुल ने ढक लिया था . एक कोने में कुछ अलमारिया थी .

“तो ये कमरा ही वो दिलचस्प वजह है जो इस मंदिर को ख़ास बनाता है ” मैंने कहा

नाज- हाँ भी और ना भी . मंदिर कभी दिलचस्प नहीं था कोई तवज्जो नहीं देता था इसे कभी भी नहीं . पर ये कमरा ख़ास था सबसे अनोखा सबसे छिपा हुआ.

इसके आगे नाज कुछ नहीं बोल पाई. उसके शब्द चीख में बदल गए नाज की पीठ में चाकू धंस चूका था . मेरी नजर सीढियों पर गयी तो वहां पर एक साया था जो वापिस मुड रहा था . बिना नाज की परवाह किये मैं उस साये के पीछे भागा और जब तक मैं आँगन में आया वो साया गायब था .

“आज नहीं ” मैंने दांत चबाते हुए कहा और बिजिली की रौशनी में मुझे वो साया भागते हुए दिखा मैं उसके पीछे हो लिया. आज चाहे जो हो जाये पर आज की रात जैसा मैंने पहले भी कहा मेरे साथ थी . वो साया मुझे छकाते हुए जंगल में इधर उधर भाग रहा था मेरी सांसे जवाब देने लगी थी पर आज हार नहीं माननी थी . एक पल फिर ऐसा आया की वो मुझसे बस कुछ ही दूर था पर हाथ डालने से पहले ही वो छका गया. मैंने एक लकड़ी का टुकड़ा उसकी तरफ फेंका जो किस्माट्स इ उसके पैरो पर लगा. कुछ देर के लिए वो लडखडाया और मैंने धर लिया उसे.


“आज नहीं , बस बहुत हुआ बहुत दौड़ लिए अब और नहीं ” मैंने कहा और उसके नकाब को खींच लिया. ....................
Kya zabardast kahani hai!

Yeh kahani sach mein apni twists aur characters ke saath kaafi engaging hai. Jo tareeke se faujji bhai ne emotions aur suspense ko story mein daala hai, woh waaqai amazing hai. Har page par kuch naya milta hai, aur main is kahani mein aur gehraai se jaane ka intezaar nahi kar sakta. Plotline aur prose ka combination kaafi achha lag raha hai

Ab agle update ke intezaar me.
 

Sanju@

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एक एक पल बड़ी बेचैनी संग गुजर रहा था, जब पूरी तरह से लगा की मासी सो चुकी है तो मैंने तलाशी अभियान शुरू किया. मुनीम की तिजोरी पर कोई भी ताला नहीं लगा था, ये हैरान करने वाली बात थी . अन्दर कुछ गड्डी रखी थी, कुछ आभूषण थे पर जो मुझे चाहिए था वैसा कुछ नहीं था. और सवाल भी यही था की अगर यहाँ नहीं तो फिर कहाँ. तसल्ली के लिए मैंने छानबीन कर तो ली थी पर मुझे कुछ नहीं मिला. थक कर मैं कुर्सी पर बैठ गया और सोती हुई नाज को देखने लगा. सच में बहुँत ही खूबसूरत थी वो . पर मेरी आँखों में नींद नहीं थी बिलकुल भी नहीं थी. नजर नाज की ऊपर निचे होती छाती पर जमी हुई थी पिछले कुछ समय में नाज के साथ जो भी सुख मैंने लिया था, चुदाई के जो भी लम्हे जिए थे उन्हें भुलाना कठिन था.



पर बात फिर भी यही थी की वो कागज जो जोगन ने मुझे दिया वो गया तो कहा गया . कोई भी आदमी अपनी कीमती चीज कहाँ रखता है मुनीम की तिजोरी में मेरे मतलब का कुछ भी नहीं था . ओह तेरी, मुझे मेरी भूल का अंदाजा हुआ मेरी तो तलाश ही गलत थी मुनीम नहीं नाज , नाज अपनी सबसे कीमती चीज कहाँ रखेगी , कहाँ छुपा सकती थी ये क्यों नहीं सोच रहा था मैं . यहाँ मन की उलझन और बढ़ने वाली थी क्योंकि कागज उस छिपे हुए घर में नहीं था तो फिर एक ही जगह बचती थी जो इन सबको जोडती थी और वो था मंदिर. मैंने उसी पल मंदिर में जाने का निर्णय लिया . कशमश थी की नाज को अकेला छोड़ कर जाऊ या नहीं. कही उस पर फिर से हमला हो गया तो ? वैसे तो भोर होने में देर ही कितनी थी फिर पिस्ता ने वादा तो क्या था की दिन में वो मेरे साथ होगी मंदिर में . पर दिल बहन के लंड को चैन नहीं था . तो मैंने अपने कदम घर से बहार निकाल ही लिए.

बढती ठण्ड में कदमो से कदम मिलाते हुए जल्दी ही मैं अपनी सांसो को दुरुस्त करते हुए उस खंडहर के सामने खड़ा था जिसने मेरे दिल में सवालो का धुआ उठा रखा था,

“क्या कहानी है तुम्हारी, क्या छिपाया हुआ है तुमने अपने अन्दर ” एक बार फिर मेरी सांसो ने उन खामोश दीवारों से सवाल किया और अपने कदमो को सीढियों से होते हुए ऊपर की तरफ बढ़ा दिया. इस मंदिर की सबसे अजीब बात इसकी ख़ामोशी नहीं थी बल्कि वो शोर था जिसे बस कोई सुनने वाला चाहिए था. और इस रात , मैं अतीत के उस शोर को इतनी शिद्दत से सुनना चाहता था की मेरे आज की फिर कोई परवाह, कोई फ़िक्र ही न रहे. लाला किसी भी कीमत पर इस खंडहर को चाहता था और मेरे पिता इस से अपनी सरपरस्ती कभी छोड़ना नहीं चाहते थे. कोई पहरा नहीं न कोई सुरक्षा कोई भी हां कोई भी कभी भी यहाँ किसी भी वक्त आ जा सकता था तो फिर क्या था यहाँ पर जो होकर भी नहीं था और अगर था तो क्यों था . सोचते हुए मैं हर एक दिवार को महसूस करते हुए इधर उधर घूम रहा था . आसमान में चाँद बादलो से आँख मिचौली खेलने लगा था , बारिश कभी भी हो सकती थी . एक बार दो बार तीन बार मैं जितना देख सकता था तलाश कर सकता था मैने किया पर ये खंडहर जैसे कोई खेल खेल रहा था मुझसे , ये खामोश दीवारे जैसे हंस रही थी मुझ पर .

शायद इसकी ये ख़ामोशी ही वो खासियत थी जिसने मेरे जैसे कितने लोगो की दिलचस्पी का मजाक बनाया हुआ था

“सबसे ज्यादा धोखा इन्सान को कोई देता है तो उसकी आँखे ” अचानक से ही मेरे मन में ये बात आई और मैंने सोचा की ये खंडहर एक धोखा ही तो था . धोखा , हाँ क्योंकि अक्सर वो राज ,राज ही रह जाते है जो आँखों के सामने होते है इस मंदिर की सबसे ख़ास बात थी खंडित मूर्ति , मुझे यहाँ पर जोगन मिली वो भी इस मूर्ति को घूरते हुए , मेरे पिता मिले वो भी इसी मूर्ति को घूरते हुए . मैंने अपना माथा मूर्ति के चरणों में लगाया और गहनता से जांच करने लगा , बारिश अब जोर पकड़ने लगी थी आसमान बिजलियों से भरने लगा था . ऐसा कर्कश शोर , ऐसी चमक की लगे दिन ही निकल आया हो . पर जैसा की शाहरुख़ खान साहब ने कहा था की किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो कायनात आपको उस से मिलाने में लग जाती है . आज की रात ये कायनात शायद मेरे लिए ही थी गरजती बिजली की रौशनी में मेरी नजर मूर्ति के दांतों पर पड़ी और मैं समझ गया. मूर्ति का एक दांत अलग सा और जैसे ही मैंने उसे छुआ, हल्का सा दबाव दिया खट की सी आवाज हुई करीब तीन फूट के आसपास फर्श निचे को धंसा और पत्थरों की बनी सीढिया निचे को जाती हुई दिखने लगी. अगर कोई उस समय मेरे होंठो पर आई मुस्कराहट को देख पाता तो समझता की बेंतेहा ख़ुशी किसे कहते है .



जैसे जैसे मैं सीढिया उतर रहा था अँधेरा कम होते जा रहा था और जल्दी ही मैं मंदिर के निचे बने उस कमरे में था जहाँ पर रौशनी थी , चिमनिया जल रही थी और मेरे सामने ठीक सामने नाज मोजूद थी .



“हैरान हो मुझे देख कर ” नाज बोली



मैं- तुम्हे तो सोती हुई छोड़ आया था मैं



नाज- हम जैसो के नसीब में चैन कहा वो भी इन हालातो में जब तुम मान ही नहीं रहे हो

नाज चलते हुए उस बड़े अलाब के पास गयी और अपने ब्लाउज से वो ही कागज निकाल लिया जो मुझे जोगन ने दिया था .

मैं- तुम्हे ये नहीं चुराना चाहिए था .

नाज- क्या करे बरखुरदार . हमारी जिन्दगी में जो भी थोडा सकून था वो तुम ख़तम करने को आमादा हो करे तो क्या करे. तुमसे कुछ कह नहीं सकती , तुम्हे कुछ बता नहीं सकती . इधर कुआ तो उधर खाई जायेया तो कहा जाये मैं और मेरा मासूम दिल .

मैं- अक्सर दिल के बोझ क किसी को बताने से बोझ हल्का हो जाता है

नाज- उफ़ ये किताबी बाते

मैं- फिलहाल तो मुझे वो कागज चाहिए



नाज ने मेरी तरफ देखा और बड़ी ही मासूमियत से वो कागज आग के हवाले कर दिया.

“किसी और की ये हरकत होती तो मासी मैं इसी आग में जला देता उसे “मैंने गुस्से से कहा

”किसी और ने यहाँ आने की गुस्ताखी की होती तो मैं भी उसे अब तक इस आग में जला चुकी होती “ पहली बार मैंने नाज के एक नए रूप को देखा

“क्या लिखा था उसमे ” मैंने गुस्से से पुछा

नाज- बिखरता हुआ घर लिखा था उस कागज में

मैं- तुम्हे क्या लगता है की इस कागज जो जलाने से तुम मुझे रोक पाओगी . जिसने कागज दिया मैं उस से ही पूछ लूँगा.

नाज- बेशक हक़ है तुम्हे .पर मैं अपने बेटे को फिर से उसकी भलाई के लिए ही सलाह दूंगी की दूर रहो .

इधर उधर चलते हुए मैं बस उस कमरे को ही देख रहा था और नाज शायद नहीं चाहती थी . सामने की दीवार पर कुछ तस्वीरे थी जिन्हें धुल ने ढक लिया था . एक कोने में कुछ अलमारिया थी .

“तो ये कमरा ही वो दिलचस्प वजह है जो इस मंदिर को ख़ास बनाता है ” मैंने कहा

नाज- हाँ भी और ना भी . मंदिर कभी दिलचस्प नहीं था कोई तवज्जो नहीं देता था इसे कभी भी नहीं . पर ये कमरा ख़ास था सबसे अनोखा सबसे छिपा हुआ.

इसके आगे नाज कुछ नहीं बोल पाई. उसके शब्द चीख में बदल गए नाज की पीठ में चाकू धंस चूका था . मेरी नजर सीढियों पर गयी तो वहां पर एक साया था जो वापिस मुड रहा था . बिना नाज की परवाह किये मैं उस साये के पीछे भागा और जब तक मैं आँगन में आया वो साया गायब था .

“आज नहीं ” मैंने दांत चबाते हुए कहा और बिजिली की रौशनी में मुझे वो साया भागते हुए दिखा मैं उसके पीछे हो लिया. आज चाहे जो हो जाये पर आज की रात जैसा मैंने पहले भी कहा मेरे साथ थी . वो साया मुझे छकाते हुए जंगल में इधर उधर भाग रहा था मेरी सांसे जवाब देने लगी थी पर आज हार नहीं माननी थी . एक पल फिर ऐसा आया की वो मुझसे बस कुछ ही दूर था पर हाथ डालने से पहले ही वो छका गया. मैंने एक लकड़ी का टुकड़ा उसकी तरफ फेंका जो किस्माट्स इ उसके पैरो पर लगा. कुछ देर के लिए वो लडखडाया और मैंने धर लिया उसे.


“आज नहीं , बस बहुत हुआ बहुत दौड़ लिए अब और नहीं ” मैंने कहा और उसके नकाब को खींच लिया. ....................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है नाज ने न जाने कितने राज छुपा रखे हैं मंदिर के नीचे एक कमरा जंगल में एक कमरा पता नहीं और कितने छिपे हुए कमरे मिलने वाले हैं नाज नहीं चाहती है कि देव अतीत के बारे में जाने इसलिए जोगन का दिया हुआ कागज उसने जला दिया किसी ने नाज पर हमला कर दिया है लगता है ये वही शख़्स जिसको देव ने नाज और पिस्ता की मां के साथ देखा था
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#53

मेरे हाथो में केवल वो नकाब ही नहीं आया था बल्कि सामने उस सख्श को देख कर मैं बस हैरान ही नहीं परेशान भी हो गया था .

”क्यों काकी क्यों ” मैंने पिस्ता की माँ से सवाल किया

काकी- करना पड़ा और कोई रास्ता नहीं था

मैं- सोचा नहीं था तुम इतनी नफरत पाले हुए हो हमारे परिवार के लिए . तभी मैं सोचु की अनजान हमलावर को चाह कर भी क्यों नहीं पकड़ पा रहे थे हम , दुश्मन तो घर के अन्दर ही था .

काकी- नही देव, मैं वो दुश्मन नहीं . नाज पर हमला करने के मेरे अपने कारन है

मैं- और वो क्या है

काकी- चाह कर भी मैं तुम्हे नहीं बता सकती

मैं- तुम्हे क्या लगता है बिना जाने मैं तुम्हे जाने दूंगा.

काकी- चाहो तो कोशिश कर लो

मैं- पिस्ता की माँ ना होती तो तुम ये ना कहते

काकी- चौधरी के बेटे ना होते तो तुम ये ना कहते

मैं- मजबूर कर रही हो तुम मुझे

काकी- जो चाहे समझो तुम

मैंने काकी की बाह पकड़ कर मरोड़ी और बोला- इस से पहले की मैं लिहाज भूल जाऊ , सब बता दो काकी क्यों किया नाज पर हमला

काकी- उसे मरना ही होगा आज नहीं तो कल..

“तड़क ”अगले ही पल मेरा थप्पड़ काकी के गाल पर आ लगा. हालातो ने मुझे ना जाने कहा लाकर खड़ा कर दिया. गुस्से में मैंने पेड़ के तने पर मुक्का मारा .

“मजबूर मत कर काकी , कही मेरे हाथो से अनर्थ न हो जाये. ”मैंने कहा

काकी- इस से बड़ी खुशनसीबी क्या ही होगी



अगले ही पल मेरे हाथ काकी के गले पर कस गए , काकी की आँखे बाहर निकलने को बेताब होने लगी पर उसके होंठो पर जो मुस्कराहट थी उसने मुझे बेचैन कर दिया था . इस से पहले की मैं पकड़ कम करता . “धाय ” की आवाज हुई और काकी मेरी बाँहों में झूल गयी . काकी को किसी ने गोली मार दी थी , ये मचलती रात बहन की लौड़ी अजीब आँख मिचौली खेल रही थी. कोई और भी था जो हम पर नजर रखे हुए था . मैंने पाया की काकी की सांसे चल रही थी , उसे बचाना बहुत जरुरी था . मैंने काकी को कंधे पर उठाया और दौड़ पड़ा .

“बैध जी , बैध जी ” मैंने किवाड़ को पीटते हुए आवाज लगाईं

“कौन है ” बैध ने किवाड़ खोलते हुए कहा

और जैसे ही बैध ने मुझे देखा , उसने तुरंत काकी को लिटाया और जांच करने लगा.

“बड़े हॉस्पिटल ले जाना होगा इसे अभी के अभी ” उसने कहा

मैं- जीप लाता हु मै

मैं दौड़ कर गया और हम लोग शहर की तरफ चल दिए. बैध बार बार देख रहा था की नब्ज़ चल रही है या नहीं . खैर, काकी का उपचार शुरू हुआ . मालूम हुआ की घाव गहरा होने के बावजूद जान तो बच गयी पर वो होश में नहीं आई थी . इस तमाम घटना के बीच मुझे नाज का ध्यान आया उसे तो मैं मंदिर में ही छोड़ आया था . बैध को हॉस्पिटल में ही छोड़ कर मैं तुरंत मंदिर की तरफ मुड गया .



रात और दिन के भी अपने ही खेल होते है , कौन कह सकता था की अब इतना शांत दिख रहे इस स्थान पर रात के अँधेरे में क्या हुआ था . कमरे में नाज नहीं थी अलबत्ता खून के निशान यूँ के यूँ थे . एक बात और मैंने नोटिस की, की कमरे से वो धुल चढ़ी तस्वीरे हटा दी गयी थी . दो बाते, एक पिस्ता को उसकी माँ के बारे में बताना दूजा नाज के हालात जानना . गाड़ी से उतरा ही था की मुझे नाज मिली. हमेशा के जैसे मुस्कुराते हुए, जैसे कल रात कुछ हुआ ही नहीं हो. मैंने उसे पकड़ा और जीप से सटा दिया.

“धीरे देव दुखता है ” बोली वो

मैं- कैसी हो , ठीक तो हो न

नाज- धीरे बोलो देव .

मैं- बहुत सी बाते करनी है

नाज- अभी नहीं , दोपहर को मैं तुम्हे वहीँ मिलूंगी जहाँ कोई आता जाता नहीं . यहाँ बात करने का कोई औचित्य नहीं हम आज भी अपनी परेशानियों को इस चोखट से बहार रखते है .

मैंने उसे छोड़ा और पिस्ता के घर चल पड़ा. घर के बाहर ही वो कपडे धो रही थी . मैंने उसे अन्दर आने को कहा

“क्या हुआ देव ” उसने हाथ पोंछते हुए कहा .

समझ नहीं आ रहा था पर उसे बताना तो था, तो जी पर पत्थर रख कर मैंने उसे कल रात की घटना बताई बस ये छुपा लिया की नाज पर हमला उसकी माँ ने किया था . पिस्ता बहुत घबरा गयी , आखिर माँ पर हमला हुआ था .

“मुझे अभी ले चल शहर ” बोली वो

मैं- हाँ , मेरी सरकार .

पिस्ता बहुत रोई उसकी माँ को देख कर मैंने रोका नहीं उसे , कभी कभी आंसुओ को बह ही जाना चाहिए. खबर लगते लगते पिताजी और माँ सा भी आ पहुंचे थे . पिताजी ने डॉक्टर लोगो से बहुत देर तक बात की और फिर वो मुझसे मुखातिब हुए.

“कहाँ मिली परमेश्वरी तुझे ” पिताजी ने पुछा

मैंने कहानी में थोड़ी हेराफेरी करके पिताजी को सारी कहानी बताई .पर मुझे मालूम था की पिताजी को मेरी बात का जरा भी यकीन नहीं था .

“चाय ” मैंने पिस्ता को कप दिया .

पिस्ता- किसने किया ये देव

मैं- मालूम होता तो चीर नहीं दिया होता उसे अब तक

पिस्ता- जो भी हो छोडूंगी नहीं उसे मैं

मैं- फ़िक्र ना कर, वो जो भी है उसके दिन गिनती के ही रह गए है .

पिस्ता वही रुक गयी मैं लौट आया. ढलती दोपहर में एक बार फिर काले पत्थरो का वो मकान मेरा आशियाना था और नाज मुझसे पहले ही मोजूद थी .

“घाव कैसा है तुम्हारा ” मैंने कहा

नाज- इतनी जल्दी नहीं मरने वाली. ये खेल तो चलता ही रहेगा जब तक मैं ख़त्म करना नहीं चाहू

मैं- तो करती क्यों नहीं इसे ख़तम

नाज- तुम्हे क्या लगता है देव, इस दुनिया में क्या महत्वपूर्ण है अतीत की गलतिया या फिर ये आज जो हम जी रहे है .

मैं- बेशक आज पर अगर अतीत दुश्मन बन जाये तो फिर वर्तमान का फर्ज है की सुलझाया जाये मामले को

नाज- सब ख़त्म हो जायेगा .

मैं- साथ तो कुछ नहीं जाना मासी .

नाज- पर मैं अपने साथ ले जाउंगी, अपनी दौलत को

मैं- दौलत , तो ये सब दौलत के लिए हो रहा है

नाज- दुनिया, जर जोरू और जमींन के पार क्यों नहीं देखती

मैं- तो फिर किस दौलत की बात करती हो

नाज- जिसे खो दिया मैंने . जो होकर भी मेरी ना हो सकी

इस से पहले की मैं नाज़ से कुछ और सवाल कर पाता गोलियों की आवाजो ने जंगल में शोर मचा दिया. मैं और नाज हैरान हो गए. शोर इतना जोरदार था की जंगल कांप उठा था . मैं बहार आया और दौड़ पड़ा उस तरफ और जब मैं वहां पंहुचा तो उठते धुए के बीच जो मैंने देखा पैरो तले जमीन खिसक गयी . मेरे सामने, मेरे सामने.............
 
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