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Adultery जय का सफर-(Struggle,Adultery,Incest)

कहानी कैसी लगी?


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(Episode 2)

शालू की आंखे खड़ी की खड़ी थी।सामने जय tv देखते हुए लेटे हुए सो गया था।पर चुदाई की आदत के कारण उसका लन्ड शांत नही था।ओ सो गया था पर उसका लन्ड खड़ा था।शार्ट में तंबू गाड़ के खड़ा था।
शालू की मन में कम चुत में ज्यादा हलचल मचने लगी।
शालू का हाथ उसके साड़ी के ऊपर से चुत पर घूमने लगा।
उसने हिम्मत करके जय के साइड में जा बैठी।Tv रिमोट से बन्द की,और शॉर्ट में तने लन्ड को पास से ताड़ने लगीं।
चुत के प्यासे लन्ड की शॉर्ट के नीचे से होने वाली हलचल उसे साफ समझ आ रही थी।
उसका खुद के ऊपर का संयम खोये जा रहा था।उसने उठ के सारे दरवाजे खिड़कियों को बंद किया।और उसके पास आकर उसके शॉर्ट को नीचे कर दिया अंडरवियर के साथ।
जय का लन्ड अभी खुली ठंडी हवा में गर्म होके तड़पते हुए झटके दे रहा था।
आज तक इतना तगड़ा लन्ड सिर्फ उसने विजय मतलब जय के बाप का ही देखा था।कुछ देर उसने उसे विजय ही समझ लिया था।लन्ड के दर्शन से उसका मन और अस्थिर होने लगा।चुत में पानी का सागर बहने वाला था।
उसने उसका लन्ड हाथ में लिया और सहलाया।उसको अजीबसा सुकून मिला लन्ड हिलाक़े।
उसने थोड़ी देर अयसेही लन्ड को हिलाया।लन्ड अभी लोहा बन गया था।उसने लोहे के उस रॉड को अपने मुह में लेके घुमाया।पूरे लन्ड को आइसक्रीम कैंडी की तरह चारो ओर से चाटने लगी।उसने लण्ड को चूसना चालू किया।कभी कभी अंडो को भी मुह में ले लेती थी।ओ चुसम चुसाई में पूरी घुस गयी थी।
लन्ड के तनाव से जय की नींद खुल गयी।उसने नीचे देखा तो शालू उसका लन्ड मुह में लिए हवसी की तरह चूस रही थी,पर उसने क्या सोचा मालूम नही पर उसने उस वाकिये पर कोई रिएक्शन नही दिया।
बहोत टाइम की चुसाई के बाद आखिर जय के लन्ड ने पानी छोड़ दिया।शालू ने हवस की प्यासी की तरह पूरा चाट के लन्ड साफ किया।
जैसे ही शालू ठीकठाक होकर अंदर किचन में गयी।जय थोड़ी देर रुक उठा और बाथरूम में जेक फ्रेश हुआ।
बाहर आया तो खाना बाहर टेबल पर लगाके शालू जा चुकी थी।
जय ने खाना खत्म ही किया था की उसके मोबाइल में एक मेसेज आया।वो जहा काम पे जा रहा था उस आंटी के पति का मेसेज"कल हम बाहर जा रहे है।कल मत आना"

रात के 9 बज गए थे,जय अकेले अकेले बहोत बोर हो रहा था।ओ समय बिताने के लिए समुंदर किनारे बैठने के लिए गया।
समंदर के पास जाकर 15 ,20 मि में वो वहां से घर निकलने लगा तो उसका ध्यान नीलू मौसी के घर पे गया।
ओ सहज में नीलू मौसी के घर के पास गया तो बाहर के खाट पर उसका पति दारू पिके पड़ा था। अंदर नीलू मौसी की आवाज आ रही थी।लगता है ओ रो रही थी।
जय दरवाजा खोल अंदर गया।उसने देखा पलंग के साइड में नीलू मौसी रो रही थी।रूम में थोड़ा अंधेरा था।
जय नीलू मौसी के पास गया।नीचे बैठ के सर पे हाँथ रखने वाला था तभी नीलू मौसी चिल्ला उठी
"मत मारो मत मारो मुझे,कल दूंगी पैसा बोला न आआआआआ हहहहहह आआआ"
जय को बहुत बुरा फील हो रहा था।उसने हल्केसे सहलाते हुए सर पे,मौसी से बोला"मौसी मैं हु जय।"
जय कुछ आगे बोले उससे पहले मौसी ने उसे अपने बाहो में जखड लिया और और जोर से रोने लगी।
जय उसको बहोत कोशिश कर रहा था,समझाने की पर उसको इतना दर्द दिया गया था की ओ बस रोये जा रही थी।
उसके शरीर पर साड़ी नही थी।सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट।
उसको उसके पतीने बहोत ही बेदर्दी बेरहमी से मारा अइसे लग रहा था।क्या करे नशे में लोग होश में नही होते है।
जय पलंग को टिका के नीचे बैठा और पैर फैला दिए।नीलू मौसी उसके पैर पे सर रखके सो गयी।
जय की भी थोड़ी देर में आंख लग गयी।कुछ ही पल निकले।जय को शालू के यौवन की याद आ गयी।उसकी उस चुसम चुसाई की याद आने लगी।बस जय के लन्ड देव ने हरकत चालू की।नीलू मौसी कोण्ही पे सोई थी तो जय का एक हाथ उसके कंधे पर था यानी बाहु के ऊपर।जय सपने में ही शालू को चोदने के बारे में सोचने लगा।उसका लन्ड तो हरकते कर ही रहा था पर अभी हाथ भी हरकत में आ गया था।
ओ नीलू को शालू समझ उसके चुचो को सहलाने मसलने लगा।

नींद में जय नीलू मौसी के चुचे नोच नोच के मसल रहा था।नीलू चाची भी अभी गरम हो रही थी।उसने भी साथ देते हुए ब्लाउज के बटन खोल चुचो को आझाद कर दिया।उसके गालोपर लन्ड की फ़ंफ़नाहट महसूस होने लगी।ओ उठ गयी।जैसी ही ओ उठी जय की आंख भी खुल गयी।
सामने बड़े चुचे वाली नीलू देख ओ चौक गया उस बात को ओ समझ पाता उससे पहले ही नीलू ने उसके पेंट की चैन खोल दी और लन्ड को हाथ में लेकर मसलने लगी।उनका चुदाई का सिलसिला रातभर चलता रहा।नीलू कितनी भी चुदासीमाल हो आखिरकार उम्र हो चुकी थी।वो थक के सो गयी।
दूसरे दिन सुबह जय उठा तयार हो ही रहा था तभी शालू आ गयी।दरवाजा खुला था तो ओ सीधा अंदर घुस गयी।
जय ने उनको चाय पूछा पर उसने मना किया और सिर्फ उसे तैयार होते वक्त ताड रही थी।जब जय रेडी हुआ दोनो काम पे निकल गए।10 से 15 मिनट का फासला था चलते हुए।दोनो बिल्डिंगके 5 वे मंजिल पर पहुंचे।दोनो का काम करने का फ्लैट आमने सामने था।दोनो एकदूसरे को स्माइल देके अपने अपने फ्लैट में घुसे।


जय अंदर घुसा तो अंकल बेड पे बैठे थे।जय ने उनको नमस्ते किया।अंकल ने जय उनकी ड्रिंक बनाने बोला।
जय ने कहा की उसे ड्रिंक बनानी नही आती।अंकल ने उसे ग्लास और बोटल लाने बोला।अंकल और आंटी का रूम को लग के ही दारू की बॉटल्स की अलमारी थी।जय जैसे ही बोटल निकालने गया तो उसे रूम में से आंटी की आवाज आई।

"साले कौनसे भड़वे लोगो को लेके आते हो,दम ही नही सालो में 1 राउंड में ही फुस हो जाता है इनका,चल चल बे भोसडीके जल्दी खत्म कर ,आज भी सारा पैसा पानी में गया।"

जय थोड़ा चौक सा गया।पर उसे हालात का अभी पता चल चुका था,की क्या मसला है यह पे।उसने बोतल और ग्लास अंकल को दिया,अंकल ने पेग बना कर दारू पीना चालू किया।जय भी घर में इधर उधर भटक रहा था।घर में और भी दो नोकर नोकरानी थे।उनको हेल्प कर रहा था।नोकर और नोकरानी के साथ ही उसने खाना खाया।दारू पीकर अंकल सोफे पे ही लेट गए।


जय नोकर नोकरानी के साथ जान पहचान बढ़ा रहा था।उसे उनके साथ रहके बहुत कुछ मालूम हुआ।ओ नोकर नोकरानी करीब 40 से45 के उम्र के बीच के थे।ओ भाभी मतलब अंकल आंटी के बेटे की बीवी के पिताजी के नोकर थे।मतलब ये घर जायदाद भाभी जी के पिता की थी।भाभी जी का प्रेम विवाह हुआ था।भाभी के पिता ने आधी जायदाद जमाई और आधी अपने बेटी के नाम कर चल बसे।भाभी के फैमिली में कोई नही था।

भैया के माता पिता तो है इतना ही मालूम था।बात अभी अंकल आंटी की तो अंकल थोड़े अजीब तरह के थे।उन्हें गे लोग पसंद थे।ओ उनके साथ मजे करते थे।चाची तो पहलेसे ही लड़के बाज थी।लड़का भी लड़की बाज था,पर भाभी जी से शादी करना सिर्फ उसकी पैसों की हवस थी।हनीमून के बाद ओ 3 चार महीने में 1 2 बार ही उसे शरीर सुख देता था।भाभी को ये बात मालूम थी पर समाज में उनके बाप की इज्जत न टंग जाए इसलिए चुप थी।पर हा अंकल आंटी भैया कोई भी उनको न कुछ डांटते थे न मारते पीटते थे,सच बोले तो सब की अपनी अलग दुनिया थी।अपार्टमेंट्स में सभ्यता दिखाने के लिए इन लोगो ये काम करने के लिए शहर के बाहर दो फार्म हाउस लिए थे।


फिर जय एक अजीबोगरीब बाते सुनी उस नोकर नोकरानी से।चाची की उम्र हो चुकी थी तो बहोत से कॉल बॉय उनसे चुदाई करना पसंद नही करते थे,इस शहर में जो कुछ मिलते थे ओ जल्दी जल्दी में काम निपटा कर निकल जाते।और हर बार तगड़े कॉल बॉय की रेट बकाया करने इतने पैसे नही थे उनके पास।और दूसरी ओर की बात अइसी की शालू भैया की चुदाई की माल थी।जी हा सही सुने,जो आपका हाल है वही मेरा था जब मैंने उसका नाम सूना।शालू सिर्फ नाम के लिए नौकरानी थी।वो सुबह से दोपहर काम करती और जैसे ही भाभी शाम को सस्तन जाती तो यह पर रासलीला चालू।इसलिए इन दोनो नोकर नोकरानी को यहां अंकल आंटी के सेवा में भेजा।

इतनी बाते ये लोग बक ही चुके थे तो जय ने ये भी पूछ लिया की तुम लोग होते हुए मुझे क्यों नोकरी दी?
तो ओ बोले:"क्या मालूम,निर्मला आई थी।शालू से बोली पैसों की जरूरत है,और ओ भी घर बैठे क्या करेगा,उसे भी यह पर लगाओ न।पर यह पर तो और आदमियो की जरूरत नही थी फिर भी क्यो?

शाम को जाते वक्त जय चुप चाप चल रहा था शालू को इगनोर कर रहा था।शालू को भी थोड़ा अजीब लगा।जय घर जाकर फ्रेश हुआ।रात ढलते ढलते शालू खाना बनाके लेके आई।किचन में खाना परोस ही रही थी।की जय ने उसे पीछे से जाकर बाहों में भरा।

शालू सहर गयी।पर उसने छूटने की कोशिश नही की।जय का लन्ड उसके गांड को महसूस हो रहा था।उसे ये महसूस हुआ की वही तगड़ा लन्ड उसकी साड़ी के ऊपर घिस रहा है जिसे उसने कल चुसा था।

जय:क्यो चाची मजा आया।

शालू ने मजाक में कह दिया:मजा कहा इसमे,कुछ भी तो नही।

जय ने मजाक को थोड़ा टेढ़ा किया:सही है दिनभे दिनु भैया का लेती हो तो हमसे क्या मजा आएगा।

ये अल्फाज सुन शालू चकरा गयी।ओ झट से घूमी और कहि:"कौन बोला ये तुझे।किसने ये...!?

दिनु वही अंकल आंटी का बेटा।शालू आगे कुछ बोलती उसमे ही जय ने उसे टोका:अरे चाची सबको मालूम है अपार्टमेंट में बस कोई बोलता नही।

शालू नीचे मुह कर शर्म से लाल हुई,क्या बोलू उसे सूझ ना रहा था।
जय ने उसके पीछे जाते जाते चूतड़ पे दे चपेट मारा:"ये जो फुला हुआ लेकर घूमती हो ओ सब दिनु भैया का कमाल।

शालू तो सिर्फ़ मुह झुकाए खड़ी थी।क्योकि जय की बातों में सच्चाई थी जिसका उसे जवाब नही मिल रहा था।

जय पूरा विलन वाले अंदाज में था। ओ आगे आके उसने उसकी झुकी गर्दन को ऊपर किया।शालू की आंखे अपनी सच्चाई छुपाने की नाकाम कोशिशों में लगी थी।जय ने विलन जैसी स्माइल दी और साड़ी का पल्लू पकड़ के अइसा खिंचा वो पूरी साड़ी निकलने तक।शालू ब्लाउज पेटीकोट में थी।उसने शालू के चुचो पे हाथ रख मसलना चालू किया

जय:तुम्हारे चुचे बड़े मस्त है।बड़े बड़े कद्दू की माफिक।बहोत दबाता है क्या वो।अच्छे खासे बड़े कर दिए है।

शालू सिर्फ सिहर रही थी।जय के चुचो को मसलने से निप्पल्स को नोचने से दर्द भी हो रहा था पर उतने ही मजे भी आ रहे थे।

जय ने अचानक से उसके गालो को दबोच ओंठ बाहर किये और बोला ये वही ओंठ है,जिससे तूने कितनो का लण्ड चुसा होगा औऱ उनकी रात रंगीन की होगी।पर मेरे साथ नाइंसाफी क्यो?

इस बात पर शालू बोली:"क्या?कौनसी नाइंसाफी?

जय:"भूल गयी कल की रात?

शालू समझ गयी की जय को कल के कार्यक्रम की मालूमात थी।ओ जवाब देती उससे पहले जय ने उसे घुमाकर किचन के ओटे पे उसे झुकाया पेटीकोट ऊपर किया पेंटी नीचे की और लन्ड बाहर निकाल के गांड पे घिसया।पल में लन्द लोहा बन गया।उसने लोहा का सिरा चुत के छेद में रखा और घुसा दिया

"उइ मा मर गयी,निकाल निकाल जय,दर्द हो रहा है आआह'

शालू की सिसकारी चिल्लाहट उसे सुनाई नही दे रही थी,उसने पल भर देर न करते हुए धक्कों की स्पीड बढ़ा दी।करीब 15 से 20 मिनिट उसे चोदा।पहले बार बड़ा लण्ड लिया तो उसे दर्द हुआ पर बाद में ओ सेट होकर मजे लेने लगी।
जब ओ झड़ने वाला था उसने लन्ड बाहर निकाल के शालू के मुह में ठोस दिया।शालू ने भी उसे मजे से पिया।

जय:कैसे लगा अभी चाची,दीनू भैया और तेरे पति से बेहतर तो होगा ना?

शालू:मेरा पति और दिनु दोनो एक ही जमात के वो भी निठल्ले और उनके लण्ड भी।दिनु पैसा देता है इसलिए नही तो ओ कुछ काम का नही।पर तू दमदार है।

जय:वो तो है।

जय ने खाना खत्म किया।बर्तन वगैरा संभाल कर शालू चली गयी।और जय भी सो गया।कल उसे काम पर जो जाना था।
 

Ankitshrivastava

Well-Known Member
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Nice story....

Keep rocking......
 
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