चन्द्रमा घर चली गयी लेकिन मुझे काशमकश में डाल गयी, सेक्स मेरे लिए नयी बात नहीं थी, मैंने का मजा हज़ारो बार लिया लिया था, खास कर अपनी पहली गर्ल फ्रेंड के साथ, तब नया न्य जवान हुआ था और वो भी बिलकुल ताज़ा खिले गुलाब की कच्ची काली के जैसे थी, सूंदर मुख, कठोर चूची, और गजब की गांड, एक दम कठोर, कभी कभीउसको डॉगी स्टाइल में चोदते हुए उसके चूतड़ों पर स्पॅंक कर देता था तो मानो पूरा कमरा चट की आवाज़ से गूँज उठता था, मैंने अपने आठ साल के रेलशियनशिप में कामसूत्र के लगभग हर पैतरे को आज़माया था लेकिन ये मामला थोड़ा अलग था, अलग होने की बस यही दलील थीकि लड़की उम्र बहुत काम थी, मैं लाख चोदू सही लेकिन इतना आगे डिफ्रेंस के लिए मैं अपने मन को मन नहीं पा रा था, जो कुछ मार्किट में हुआ था उसको याद करके कहीं न कहीं मन थोड़ी गलानि ज़रूर थी, लेकिन ये गलानि भी ज़ायदा देर तक नहीं पायी, क्योंकि रात होते ही चन्द्रमा का व्हाट्सप्प मैसेज आ गया,
चन्द्रमा : सो गए क्या ?
मैं : अरे नहीं! अभी कहा अभितो कहाँ भी नहीं खाय।
चन्द्रमा : तो खा लीजिये
मैं : हाँ खाऊंगा थोड़ी देर में, आज शाम खाया था न तो अभी मन नहीं हो रहा
चन्द्रमा : हाँ सच में, मेरा भी मन नहीं है खाने का, वैसे मोमोस मस्त थे ना ?
मैं मोमोस पढ़कर चौंक गया, ये लड़की मोमोस की ही बात कर रहीहै या अपने मुम्मो की ?
मैं : हाँ बहुत मस्त (जो अभी कुछ देर पहले तक मन में थोड़ी आत्मा गलानि थी वो मुझे गन्दी सी गली दे कर कहीं दूर जा खड़ी हुई।)
चन्द्रमा : कभी फिर आना फरीदाबाद तोह यहाँ खिलाऊंगा आपको, यहाँ के भी बड़े मस्त होते है।
मैं : हाँ ज़रूर तुम ख़ालिओगी तो पक्का खाऊंगा, वैसे मुझे मोमोस कुछ खास पसंद नहीं है।
चन्द्रमा : एक बार मेरे यहाँ के खा के देखना फिर खुद पसंद करने लगोगे ।
मैं : हाँ तुम्हारे तो मैं पक्का खाऊंगा, मज़े ले ले क।
चन्द्रमा : अच्छा अभी मन कर रहे थे की मुझे खास पसंद नहीं है अब अचानक क्योँ ?
मैं : तुम्हारे मोमोस है ना इसलिए
चन्द्रमा : जी नहीं नहीं मेरे नहीं रामु के मोमोस (इठलाती हुई )
मैं : अरे मेरा मतलब वही है, अब तुम्हारे यहाँ के है तोह मेरे लिए तुम्हारे ही हुए ना।
चन्द्रमा : अच्छा बस बस, अच्छा मेरी एक बात सुनो ज़रा ये देख के बताओ कैसा है ?
मैं : क्या देखु ?
तभी व्हाट्सप्प पर एक पिक आगयी, जिसमे उसने आज वाला एक टॉप डाला हुआ था, ब्लैक कलर का टॉप जिसमें उसका रंग एक दम गोरा दिख रहा था, गोरे गोरे हाथ, उभरी हुई चूचियां, टॉप हल्का सा टाइट था जिसके कारन चूचियों पर तन गया था जिसके कारन टॉप हल्का सा ऊपर होक उसके गोरे पेट और नाभि के दर्शर्न करा रहा था, मैंने बादलों के बीच से ईद का चाँद शर्मा के झाँक रहा हो, जीन्स में पड़ा लण्ड ताव खाने लगा और फिर से चूत पाने को आतुर हो गया, मैंने खुद को जल्दी से संभाला क्यूंकि तब तक चन्द्रमा का 2-३ मैसेज आ चूका था।
चन्द्रमा :अरे बताओ ना ?
चन्द्रमा : अरे कहाँ चले चले गए, जल्दी बताओ ना कैसा है ये टॉप ?
मैं : यही हूँ यार, एक दम मस्त है तुम्हारी तरह।
चन्द्रमा : सच में ?
मैं : हाँ बिलकुल
चन्द्रमा : मुझे हल्का टाइट लगा लिखे बाकि फिटिंग मस्त आयी है। है ना ?
मैं : मैं बिलकुल। बाकि ढुलके शायद टाइट ना रहे
चन्द्रमा : हाँ मैं भी यही सोंच रही थी, अच्छा चलो बाई, मम्मी खाने को बुला रही है, अच्छा एक और बात, आज के लिए थैंक यू आपने अच्छी शॉपिंग कराई। मैं कुछ कहता तब तक वह ऑफलाइन हो गयी।
अभी की चैटिंग से ये बात तो क्लियर थी की आज जोकुछ वो अंजाने में नहीं हुआ, उसमे उसकी भी मर्जी थी, फिर मैंने मन से सारे विचारो को निकल के फेंक दिया और जो हो रहा है होने देने का फैसला किया और आराम से बिस्तर में घुस कर सो गया।
एक दो दिन उधर से भी चुप्पी रही और मैं अभी बिजी रहा अपने काम में, कभी कभी मन होता की उस से बात करू फिर रोक लेता मन को की थोड़ा इंतज़ार करो देखते है उसके और से कुछ और रिस्पांस आता है या नही।
संडे का दिन सुबह सुबह उसका कॉल आया मैं पिक किया तोह उधर से उसने उसका मेट्रो कार्ड रिचार्ज करने बोलै १०० रूपये का, स्टेशन से हो नहीं रहा था, मैंने upi से करा दिया फिर उस से मैसेज में पूछा कहा जा रहे हो ?
उसका जवाब आया " आपके पास और कहा? "
मैं : अचानक कैसे ? और मैं तो अभी घर पर हूँ ?
चन्द्रमा : हाँ तो घर से निकलो और और अपने ऑफिस पहुँचो मैं वही आरही हूँ
मैं : तुमने मेरा ऑफिस देखा है क्या ?
चन्द्रमा : नहीं, लेकिन मेको पता है आपका ऑफिस लाजपत नगर के पास है और आप अकेले होते हो संडे के दिन
मैं : मैं तुमको बड़ी जानकारी मेरे बारे में
चन्द्रमा : इतने दिन से आपको जानती हो अब इतना भी पता नहीं होगा क्या ?
मैं : ये तोह है, ठीक है मैं निकल रहा हूँ, तुम मेट्रो स्टेशन के नीचे ही मिलन।
चन्द्रमा : ठीक है
मैं फटाफट रेडी हो के घर से भगा, डर था की कही पगल लड़की सीधे ऑफिस न पहुंच जाये, अब मैं लाख खिलेंद्र किसिम का आदमी सही काम में अपनी एक रेपुटेशन बना राखी थी, चार लोग सम्मान करते थे और आस पड़ोस के लोगों को भी पता था की मैं अच्छे चैरेक्टर का व्यक्ति हूँ, जो मैं बनाये रखना चाहता था , इसीलिए मैं उसको देख भाल के अपने ऑफिस में बुलना चाहता था, जैसे तैसे मैं ऑफिस पंहुचा और जल्दी जल्दी बिखड़े पड़े ऑफिस को समेटा और सब ठीक थक करके पंखा एक चला के रूम को ठंढा करके चन्द्रमा की कॉल का वेट करने लगा, लगभग १०मिन बाद उसका कॉल आया, मैंने जल्दी से स्टेशन पंहुचा तो देखा वो स्टेशन की सीढ़ियों पर टेक लगाए खड़ी है उसी ब्लैक टॉप और ब्लैक टाइट लेगिंग्स में, बाला की सुन्दर लग रही थी, शायद बाल धो के आयी थी, खुले बाल उसके क्यूट चेहरे के दोनों और बिखरे हुए थे, मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल उठा और एक शर्मीली सी मुस्कान उसके चेहरे पर बिखर गयी। धीरे कदमो से चलके वो मेरे पास आयी और मैं सम्मोहित सा उसके हर कदम को साँस रोके देख रहा था। पास पहुंच कर उसने वही अपना कोमल पायरा सा छोटा हाथ हैंडशेक के लिए बढ़ाया, मैं अभी हैंड शेक करहि रहा था की एक और कोमल और छोटा सा हाथ मेरी और आया मैं एक दम चौंक कर उस हाथ वाले की और देखा, एक पायरी सी सावली सी बड़े बड़े नैनों वाली लड़की हाथ बढ़ाये खड़ी थी , मैं अचकचाते हुए हाथ बढ़ा के हैंडशेक कियातोह चन्द्रमा ना मुस्कुराते हुए कहा
चन्द्रमा : इससे मिलिए ये मेरी सहेली है मुस्कान,
मैं : हेलो मुस्कान
मुस्कान : हेलो
अब मैं कंफ्यूज था, बड़ी पगल लड़की है अगर फ्रैंड के साथ आना था तो बता तो देती, और अगर मस्ती करने का प्लान था तो फिर ये कवाब में हड्डीको लेके क्यों आयी। मैंने चन्द्रमा को हल्का सा इशारा करके साइड में बुलाया
मैं : अरे फ्रैंड के साथ आयी हो तो बता तो देती
चन्द्रमा : मुझे तो खुद नहीं पता था, मेट्रो में मिल गयी थी तब से साथ चेप हो गयी
मैं : मैं ठीक फिर चलो कही रेस्टुरेंट में चलते है, ऐसे किसी लड़की कोअकेले ऑफिस में लेके जाना ठीकनही लग रहा है ,पता नहीं क्या सोचे मन में।
चन्द्रमा : हाँ यही ठीक है
फिर हम पास के ही मक्डोनल्ड में जा के बैठ गए, बात चीत से पता चला की मुस्कान और ये पडोसी है और बहुत पक्की दोस्ती है लेकिन मेट्रो में अचानक मिलने पहले तक चन्द्रमा ने उसे मेरे बारे में नहीं बताया थ।